Prime Minister's Office

Text of PM’s reply to the No Confidence Motion in Lok Sabha on 20 July, 2018

Posted On: 20 JUL 2018 11:42PM by PIB Delhi

आदरणीय अध्यक्षा जी, मैं आपका आभार व्‍यक्‍त करता हूं, जिस धैर्य के साथ आपने सदन का आज संचालन किया है। यह अविश्‍वास प्रस्‍ताव एक प्रकार से हमारे लोकतंत्र की महत्‍वपूर्ण शक्ति का परिचायक है। भले ही टीडीपी के माध्‍यम से यह प्रस्‍ताव आया हो, लेकिन उनके साथ जुड़े हुए कुछ माननीय सदस्‍यों ने प्रस्‍ताव का समर्थन करते हुए बातें कही है। और एक बहुत बड़ा वर्ग है जिसने प्रस्‍ताव का विरोध करते हुए बातें कही है। मैं भी आपसब से आग्रह करूंगा कि हम सब इस प्रस्‍ताव को खारिज करें और हम सब तीस साल के बाद देश में पूर्ण बहुमत के साथ बनी हुई सरकार को जिस गति से काम किया है उस पर फिर से एक बार विश्‍वास प्रकट करें।

वैसे मैं समझता हूं यह अच्‍छा मौका है कि हमें तो अपनी बात कहने का मौका मिल ही रहा है, लेकिन देश को यह भी चेहरा देखने को मिला है कि कैसी नकारात्‍मकता है, कैसा विकास के प्रति विरोध का भाव है। कैसे कैसे नकारात्‍मक राजनीति ने कुछ लोगों को घेर के रखा हुआ है और उन सबका चेहरा निखर करके सज-धज के बाहर आया है। कईयों के मन में प्रश्‍न है कि अविश्‍वास प्रस्‍ताव आया क्‍यों? न संख्‍या है, न सदन में बहुमत है और फिर भी इस प्रस्‍ताव को सदन में लाया क्‍यों गया। और सरकार को गिराने की इतना ही उतावलापन था तो मैं हैरान था कि सामने इसको 48 घंटे रोक दिया जाए, चर्चा की जल्‍दी जरूरत नहीं है। अगर अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर जल्‍दी चर्चा नहीं होगी तो क्‍या आसमान फट जाएगा क्‍या? भूकंप आ जाएगा क्‍या?  न जाने अगर चर्चा की तैयारी नहीं थी, 48 घंटे और देर कर दो, तो फिर लाए क्‍यों? और इसलिए मैं समझता हूं कि इसको टालने की जो कोशिश हो रही थी, वो भी इस बात को बताती है कि उनकी क्‍या कठिनाई है।

न मांझी, न रहबर, न हक में हवाएं, है कश्‍ती भी जरजर, यह कैसा सफर है।

कभी तो लगता है कि सारे जो भाषण मैं सुन रहा था, जो व्‍यवहार देख रहा था मैं नहीं मानता हूं कि कोई अज्ञानवश हुआ है, और न ही यह झूठे आत्‍मविश्‍वास के कारण हुआ है। यह इसलिए हुआ है कि अहंकार इस प्रकार की प्रभुति करने के लिए खींच के ले जा रहा है। मोदी हटाओ, और मैं हैरान हूं आज सुबह भी कि अभी तो चर्चा प्रारंभ हुई थी, मतदान नहीं हुआ था, जय-पराजय का फैसला नहीं हुआ था, फिर भी जिनको यहां पहुंचने की उत्‍साह है.. उठो, उठो, उठो। न यहां कोई उठा सकता है, न बिठा सकता है, सवा सौ करोड़ देशवासी बिठा सकते हैं, सवा सौ करोड़ देशवासी उठा सकते हैं।

लोकतंत्र में जनता पर भरोसा होना चाहिए, इतनी जल्‍दबाजी क्‍या है?... और अहंकार ही है जो कहता है कि हम खड़े होंगे, प्रधानमंत्री 15 मिनट तक खड़े नहीं हो पाएंगे ।

आदरणीय अध्‍यक्ष महोदया जी, मैं खड़ा भी हूं और चार साल जो हमने काम किये हैं उस पर अड़ा भी हूं। हमारी सोच उनसे अलग है। हमने तो सीखा है  सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  खैर मैं सार ग्रहण करने के लिए काफी कोशिश कर रहा था, लेकिन आज मिला नहीं सार। डंके की चोट पर अहंकार यह कहलाता है 2019 में पावर में आने नहीं देंगे, जो लोगों में विश्‍वास नहीं करते और खुद को ही भाग्‍यविधाता मानते हैं उनके मुंह से ऐसे शब्‍द निकलते हैं।

लोकतंत्र में जनता जनार्दन भाग्‍यविधाता होती है लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर भरोसा होना जरूरी है। अगर 2019 में कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनती है, तो मैं बनूंगा प्रधानमंत्री, लेकिन दूसरो की ढेर सारी ख्‍वाहिश है उनका क्‍या होगा? इस बारे में confusion है। अध्‍यक्ष महोदया जी, यह सरकार का floor test नहीं है, यह तो कांग्रेस का अपने तथाकथित साथियों का floor test है। मैं ही प्रधानमंत्री बनूंगा के सपने पर और 10-20 थोड़े मोहर लगा दें, इसके लिए trial चल रहा है। इस प्रस्‍ताव के बहाने अपने कुनबे को जो जमाने की कोशिश की है, कहीं बिखर न जाए इसकी चिंता पड़ी है। एक मोदी को हटाने के लिए, जिसके साथ कभी देखने का संबंध नहीं, मिलने का संबंध नहीं, ऐसी  धाराओं को इकट्ठा करने का प्रयास हो रहा है।

मेरी कांग्रेस के साथियों को सलाह है कि जब भी अगर आपको अपने संभावित  साथियों की परीक्षा लेनी है तो जरूर लीजिए, लेकिन कम से कम अविश्‍वास प्रस्‍ताव का तो बहाना न बनाइये। जितना विश्‍वास वो सरकार पर करती है कम से कम उतना विश्‍वास अपने संभवित साथियों पर तो करिये। हम यहां इसलिए है कि हमारे पास संख्‍याबद्ध है, हम यहां इसलिए हैं कि सवा सौ करोड़ देशवासियों का हमें आशीर्वाद है। अपनी स्‍वार्थसिद्धी के लिए देश के मन पर, देशवासियों के दिये आशीर्वाद पर कम से कम अविश्‍वास न करे। बिना पुष्टिकरण किये, बिना वोट बैंक की राजनीति किये, सबका सा‍थ, सबका विकास, यह मंत्र पर हम काम करते रहे हैं। पिछले चार वर्ष में उस वर्ग और क्षेत्र में काम जिसके पास चमक-धमक नहीं। पहले भी 18 हजार गांव में बिजली पहुंचाने का काम पहले भी सरकारें कर सकती थी, लेकिन अध्‍यक्ष महोदया इन 18 हजार गांवों में 15 हजार गांव पूर्वी भारत के और उन 15 हजार में भी 5 हजार गांव पूरी तरह नॉर्थ ईस्‍ट से आप कल्‍पना कर सकते हैं, इन इलाकों में कौन रहता हैं। हमारे आदिवासी, हमारे गरीब ये महानुभाव ही रहते हैं। दलित, पीडि़त हो, शोषित हो, वंचित हो, जंगलों में जिंदगी गुजारने वालों हो, इनका बहुत बड़ा तबका रहता है, लेकिन ये लोग ये क्‍यों नहीं करते थे, क्‍योंकि यह उनके वोट के गणित में फिट नहीं होता था। और उनका इस आबादी पर विश्‍वास नहीं था, उसी के कारण नॉर्थ ईस्‍ट को अलग-थलग कर दिया गया। हमने सिर्फ इन गांवों में बिजली पहुंचाई ऐसा नहीं, अपने कनेक्टिविटी के हर मार्ग पर तेज गति से काम किया।

बैंक के दरवाजें... गरीबों के नाम पर बैंकों का राष्‍ट्रीयकरण हुआ, लेकिन बैंक के दरवाजें गरीबों के लिए नहीं खुले। जब उनकी सरकारें थी, इतने साल बैठे थे, वे भी गरीबों के लिए बैंक के दरवाजें खोल सकते थे। लगभग 32 करोड़ जनधन खाते खोलने का काम हमारी सरकार ने किया। और आज 80 हजार करोड़ रुपया इन गरीबों ने बचत करके इन जनधन अकाउंट में जमा किये है। माताओं और बहनों के लिए, उनके सम्‍मान के लिए 8 करोड़ शौचालय बनाने का काम इस सरकार ने किया है। यह पहले की सरकार भी कर सकती थी। 'उज्‍जवला योजना' से साढ़े चार करोड़ गरीब माताओं-बहनों को आज धुआं मुक्‍त जिंदगी और बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य का काम, यह विश्‍वास जगाने का काम हमारी सरकार ने किया है। ये वो लोग थे जो 9 सिलेंडरों के 12 सिलेंडर इसी की चर्चा में खोये हुए थे। उनके अविश्‍वास के बीच वो जतना को भटका रहे थे। एक अंतर्राष्‍ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार बीते दो वर्षों में पांच करोड़ देशवासी भीषण गरीबी से बाहर आए, 20 करोड़ गरीबों को मात्र 90 पैसे प्रतिदिन और एक रुपये महीने के प्रीमियम पर बीमा का सुरक्षा कवच भी मिला। आने वाले दिनों में 'आयुष्‍मान भारत योजना' के तहत पांच लाख रुपयों का बीमारी में मदद करने का insurance इस सरकार ने दिया है। इनको इन बातों पर भी विश्‍वास नहीं है। हम किसानों की आय 2022 तक दोगुना करने तक की दिशा में एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं। उस पर भी इनको विश्‍वास नहीं। हम बीज से ले करके बाजार तक संपूर्ण व्‍यवस्‍था के अंदर सुधार कर रहे हैं सीमलेस  व्‍यवस्‍थाएं बना रहे हैं, इस पर भी उनको विश्‍वास नहीं है। 80 हजार करोड़ रुपये से ज्‍यादा खर्च करके बरसों से अटकी हुई 99 सिंचाई योजनाओं को उन परियोजनाओं को पूरा करने का काम चल रहा है, कुछ परियोजनाएं पूर्णत: पर पहुंच चुकी हैं, कुछ का लोकार्पण हो चुका है, लेकिन इस पर भी इनका विश्‍वास नहीं है। हमने 15 करोड़ किसानों को Soil Health Card पहुंचाया, आधुनिक खेती की तरफ किसानों को ले गए। लेकिन इस पर भी इनका विश्‍वास नहीं है। हमने यूरिया में neem coating, उन्‍होंने थोड़ा करके छोड़ दिया, शत-प्रतिशत किये बिना उसका लाभ नहीं मिल सकता है। हमने शत-प्रतिशत neem coating का काम किया।, जिसका लाभ देश के किसानों को हुआ है। यूरिया की जो कमी महसूस होती थी, वो बंद हुई है और इस पर भी इनका विश्‍वास नहीं है। न सिर्फ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्‍यम से किसानों को विश्‍वास दिलाने का काम किया, न सिर्फ premium कम किया, लेकिन insurance का दायरा भी हमने बढ़ाया। उदाहरण के तौर पर 2016-17 में किसानों ने करीब 1300 करोड़ रुपये बीमा के प्रीमियम के रूप में दिया, जबकि उन्‍हें सहायता के रूप में 5500  करोड़ रुपये से ज्‍यादा की claim राशि दी गई, यानि किसानों से जितना लिया गया, उससे तीन गुना ज्‍यादा claim राशि उनको हम पहुंचा दिये, लेकिन इन लोगों को विश्‍वास नहीं होता है।

माननीय अध्‍यध महोदया एलईडी बल्‍ब... जरा बताये तो सही कि क्‍या कारण है कि उनके कालखंड में एलईडी बल्‍ब साढ़े तीन सौ, चार सौ, साढ़ चार सौ रुपये में बिकता था। आज वो एलईडी बल्‍ब 40-45 रुपये में पहुंच गया। और 100 करोड़ एलईडी बल्‍ब आज बिक चुके हैं। इतना ही नहीं, पांच सौ से ज्‍यादा urban bodies में 62 लाख से ज्‍यादा एलईडी बल्‍ब स्‍ट्रीट लाइट में लग चुके हैं और उसके कारण उन नगरपालिकाओं के खर्च में भी बचत हुई है। उनके समय में मोबाइल मैनुफैक्‍चरिंग कंपनियां दो थी, आज मोबाइल फोन बनाने वाली 120 कंपनियां हैं, लेकिन उनका विश्‍वास काम नहीं कर रहा। युवाओं के स्‍वरोजगार के लिए पहले पढ़े-लिखे नौजवानों को certificate पकड़ा दिया जाता था। वो रोजी-रोटी के लिए भटकता था, हमने मुद्रा योजना के तहत 13 करोड़ नौजवानों को लोन देने का काम किया है। इतना ही नहीं, वक्‍त बदल चुका है। आज 10 हजार से ज्‍यादा स्‍टार्टअप हमारे देश के नौजवान चला रहे हैं और देश को Innovative India की तरफ ले जाने का काम कर रहे हैं। एक समय था जब हम डिजिटल लेन-देन की बात करने के लिए तो यही सदन में बड़े-बड़े विद्वान लोग कहने लगे, हमारा देश तो अनपढ़ है, डिजिटल ट्रांजेक्‍शन कैसे कर सकता है, हमारे देश के गरीब को तो यह कैसे पहुंच सकता है?

अध्‍यक्ष महोदया जी, जो लोग इस प्रकार से देश की जनता की ताकत को कम आंकते थे, उनको जतना ने करारा जवाब दिया है। अकेले भीम ऐप और मोबाइल फोन से एक महीने में 41 thousand crore रुपये का ट्रांस्‍जेक्‍शन यह हमारे देश के नागरिक आज कर रहे हैं। लेकिन उनका देश की जनता पर विश्‍वास नहीं है, अनपढ़ है, यह नहीं करेंगे, वो नहीं करेंगे, यही मानसिकता का परिणाम है।

अध्‍यक्ष महोदया जी, Ease of doing business में 42 अंक में सुधार हुआ, इनको उस पर भी शक होने लगा है। उन संस्‍थाओं पर भी अविश्‍वास करने लगे हैं। Global Competitive Index में 31 अंक का सुधार हुआ है, उसमें भी इनको शक हो रहा है। innovation index में 24 अंक में सुधार हुआ है। Ease of doing business को बढ़ाकर सरकार cost of doing business को कम कर रही है। मेक इन इंडिया हो या जीएसटी इन पर भी इनका विश्‍वास नहीं है। भारत ने अपने साथ ही पूरी दुनिया की economic growth को मजबूती दी है। बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में सबसे तेज गति से विकसित होने वाली अर्थव्‍यवस्‍था भारत छठें नंबर की अर्थव्‍यवस्‍था है। और यह जयकारा सरकार में बैठे हुए लोगों का नहीं है। सवा सौ करोड़ हिन्‍दुस्‍तानियों के पुरूषार्थ का है। अरे इसके लिए तो गौरव करना सीखो। लेकिन वो भी गौरव करना नहीं जानते हैं।

5 trillion डॉलर की economy बनने की दिशा में आज तेज गति से आगे बढ़ रहा है। हमने कालेधन के खिलाफ लड़ाई छेड़ी है और यह लड़ाई रूकने वाली नहीं हैं। और मैं जानता हूं इसके कारण कैसे-कैसे लोगों को परेशानी हो रही है। वो गांव अभी भी उनके भर नहीं रहे हैं, यह तो आपके व्‍यवहार से हमें पता चलता है। हमने टेक्‍नोलॉजी का उपयोग किया। और टेक्‍नोलॉजी के माध्‍यम से सरकारी खजाने के रुपये, जो कहीं और चले जाते थे उसमें 90 हजार करोड़ रुपये बचाने का काम टेक्‍नोलॉजी के माध्‍यम से किया है। गलत हाथों में जाता है, किस प्रकार चलता था, देश भलिभांति जानता है। ढ़ाई लाख से ज्‍यादा shell कंपनियां उसको हमने ताले लगा दिए। और भी करीब दो लाख, सवा दो लाख कंपनियां आज भी नजर में हैं, कभी भी उन पर ताला लगने की संभावना हो सकती है। क्‍योंकि इसको पनपाया किसने, कौन ताकतें थी जो इसको बढ़ावा देती थी और इन व्‍यवस्‍थाओं के माध्‍यम से अपने खेल खेले जा रहे थे। बेनामी संपत्ति का कानून सदन ने पारित किया। 20 साल तक notify नहीं किया गया, क्‍यों? किसको बचाना चाहते थे? और हमने आ करके इस काम को भी किया और मुझे खुशी है अब तक चार, साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की संपत्ति इस बेनामी संपत्ति की तरह जब्त कर दी गई है। देश को विश्‍वास है, दुनिया को विश्‍वास है, दुनिया की सर्वश्रेष्‍ठ संस्‍थाओं को विश्‍वास है, लेकिन जो खुद पर विश्‍वास नहीं कर सकते, वो हम पर विश्‍वास कैसे कर सकेंगे।

और इस प्रकार की मानसिकतिा वाले लोगों के लिए हमारे शास्‍त्रों में बहुत अच्‍छे ढंग से कहा गया है। 'धारा नैव पतन्ति चातक मुखे मेघस्‍य किं दोषणम् यानी चातक पक्षी के मुंह में बारिश की बूंद सीधे नहीं गिरती तो इसमें बादल का क्‍या दोष।

अध्‍यक्ष महोदय, कांग्रेस को खुद पर अविश्‍वास है। यह अविश्‍वास से घिरे हुए हैं, अविश्‍वास ही उनकी पूरी कार्यशैली, उनकी सांस्‍कृतिक जीवन शैली का हिस्‍सा है। उनको विश्‍वास नहीं है, स्‍वच्‍छ भारत उसमें भी विश्‍वास नहीं है, अंतर्राष्‍ट्रीय योग दिवस उस पर भी विश्‍वास नहीं है, देश के मुख्‍य न्‍यायाधीश उन पर विश्‍वास नहीं, रिजर्व बैंक उन पर भी विश्‍वास नहीं। अर्थव्‍यवस्‍था के आंकड़े देने वाली संस्‍थाएं उन पर भी विश्‍वास नहीं है। देश के बाहर पासपोर्ट की ताकत क्या बढ़ रही है या अंतर्राष्‍ट्रीय मंचों पर देश का गौरवगान कैसे हो रहा है उस पर भी उनको विश्‍वास नहीं है। चुनाव आयोग पर विश्‍वास नहीं, ईवीएम पर विश्‍वास नहीं । क्‍यों? क्‍योंकि उनको अपने ऊपर विश्‍वास नहीं है और यह अविश्‍वसास क्‍यों बढ़ गया, जब कुछ लोग मुट्ठी भर लोग अपना ही विशेष अधिकार मानते थे, अपना ही विशेष अधिकार मानकर जो बैठे थे जब यह जनाधिकार में परिवर्तित होने लगा तो जरा वहां पर बुखार चढ़ने लगा, परेशानी होने लगी। क्‍योंकि जब प्रक्रियाओं को प्रभावित करने की परंपराओं को बंद किया गया तो उनको परेशानी होना बड़ा स्‍वाभाविक था। जब भ्रष्‍टाचार पर सीधा प्रहार होने लगा तो उनको परेशानी होनी बहुत स्‍वाभाविक थी। जब भ्रष्‍टाचार की कमाई आनी बंद हो गई तो उनकी बेचेनी बढ़ गई, यह भी साफ है, जब कोर्ट-कचेरी में उन्‍हें भी पेश होना पड़ा तो उनको भी जरा तकलीफ होने लगी।

मैं हैरान हूं, यहां ऐसे विषयों को स्‍पष्‍ट किया गया। आजकल शिवभक्ति की बातें हो रही है। मैं भी भगवान शिव को प्रार्थना करता हूं। मैं सवा सौ करोड़ देशवासियों को भी प्रार्थना करता हूं आपको इतनी शक्ति दें, इ‍तनी शक्ति दें कि 2024 में आप फिर से अविश्‍वास प्रस्‍ताव ले आए। मेरी आपको शुभकामनाएं हैं। यहां पर डोकलाम की चर्चा की गई। मैं मानता हूं कि जिस विषय की जानकारी नहीं है कभी-कभी उस पर बोलने से बात उलटी पड़ जाती हैं। उसमें व्‍यक्ति का नुकसान कम है, देश का नुकसान है। और इसलिए ऐसे विषयों पर बोलने से पहले थोड़ा संभालना चाहिए । हमें घटनाक्रम जरा याद रहना चाहिए जब सारा देश, सारा तंत्र, सारी सरकार एकजुट हो करके, डोकलाम के विषय को ले करके प्रगतिशील थी, अपनी-अपनी जिम्‍मेदारियां संभाल रही थी, तब डोकलाम की बातें करते हुए चीन के राजदूत के साथ बैठ‍ते हैं। और बाद में कभी न तो कभी हां। जैसे फिल्‍मी अंदाज में चल रहा था, नाटकीय ढंग से चल रहा था। कोई कहता था मिले फिर कहता था नहीं मिले, क्‍यों भई? ऐसा suspense क्‍यों? मैं समझता हूं.. और कांग्रेस प्रवक्‍ता ने तो पहले साफ मना कर दिया था कि उनके उपाध्‍यक्ष चीनी राजदूत को मिले ही नहीं हैं। इस बीच एक प्रेस विज्ञप्ति भी आ गई और फिर कांग्रेस को मानने के लिए मजबूर होना पड़ा हां मुलाकात तो हुई थी। क्‍या देश, देश के विषयों की कोई गंभीरता नहीं होती है क्‍या? क्‍या हर जगह पर बचकाना हरकत करते रहेंगे क्‍या?

यहां पर राफेल विवाद को छेड़ा गया। मैं कल्‍पना नहीं कर सकता उस सत्‍य को इस प्रकार से कुचलाया जा सकता है। सत्‍य को इस प्रकार से रोंदा जाता है। और बार-बार, चीख-चीख करके देश को गुमराह करने का काम। और इन्‍हीं विषयों पर, देश की सुरक्षा से जुड़े हुए विषयों पर ही इस प्रकार से खेल खेले जाते हैं। यह देश कभी माफ नहीं करेगा। यह कितना दुखद है कि इस सदन पर लगाए गए आरोप पर दोनों देश को बयान जारी करना पड़ा। मैं समझता हूँ.. और दोनों देश को खंडन करना पड़ा। क्‍या ऐसी बचकाना हरकत हम करते रहेंगे। कोई जिम्‍मेदारी है कि नहीं है। जो लोग इतने साल सत्‍ता में रहे.. बिना हाथ पैर के, बिना कोई सबूत बस चीखते रहो, चिल्‍लाते रहो। सत्‍य का गला घोटने की कोशिश है, देश की जनता भलिभांति जानती हैं और हर बार जनता ने आपको जवाब दिया है। और अब सुधरने का मौका है, सुधरने की कोशिश करें। यह राजनीति  का स्‍तर देशहित में नहीं है और मैं इस सदन के माध्‍यम से अध्यक्षा जी, मैं देशवासियों को विश्‍वास दिलाना चाहता हूं , देशवासियों को आश्‍वस्‍त करना चाहता हूं कि यह समझौता दो देशों के बीच हुआ है। यह कोई व्‍यापारिक पार्टियों के साथ नहीं हुआ है। दो जिम्‍मेदार सरकारों के बीच में हुआ है और पूरी पारदर्शिता के साथ हुआ है। और मेरी प्रार्थना भी है कि यह राष्‍ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर, इतने संवेदनशील मुद्दे पर यह बचकाना बयानों से बचा जाए। यह मेरा आग्रह है।

और नामदार के आगे मैं प्रार्थना ही कर सकता हूं। क्योंकि हमने देखा है, ऐसी मानसिक प्रवृत्ति बन चुकी है कि देश के सेनाध्यक्ष को किस भाषा का प्रयोग किया गया है। क्या देश के सेनाध्यक्ष के लिये इस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया जाएगा। आज भी हिन्दुस्तान के हर सिपाही जो सीमा पर होगा, जो निवृत्त होगा, आज उसको इतनी गहरी चोट पहुंची होगी जिसकी सदन की बैठकर हम कल्पना नहीं कर सकते। जो देश के लिये मर मिटने को तैयार रहते हैं, जो देश की भलाई के लिये बात करते हैं, उस सेना की जवानों के पराक्रम को उन प्रकारामों को स्वीकारने आपको सामर्थ नहीं होगा, लेकिन आप सर्जिकल स्ट्राइक को जुमला स्ट्राइक बोले। आप सर्जिकल स्ट्राइक को जुमला स्ट्राइक बोले। ये देश कभी माफ नहीं करेगा। आपको गालियां देनी है तो मोदी मौजूद है। आपकी सारी गालियां सुनने के लिये तैयार है। लेकिन देश के जवान जो मर मिटने के लिये निकले हैं, उनको गालियां देना बंद कीजिये। सर्जिकल स्ट्राइक को जुमला स्ट्राइक। इस प्रकार से सेना को अपमानित करने का काम निरंतर चलता है।

माननीय अध्‍यक्ष मोहदया, पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा ये अविश्वास ये कांग्रेस की फितरत है। कांग्रेस ने देश में अस्थिरता फैलाने के लिये अविश्वास प्रस्ताव की सवैंधानिक व्यवस्था का दुरुपयोग किया। हमने अखबार में पढ़ा कि अविश्वास प्रस्ताव की स्वीकृति के तुरंत बाद बयान दिया गया, कौन कहता है हमारे पास नम्बर नहीं है। ये अहंकार देखिए। मैं इस सदन को याद कराना चाहता हूं 1999 राष्ट्रपति भवन के सामने खड़े होकर के दावा किया गया था, हमारे पास तो 272 की संख्या है और हमारे साथ और भी जुड़ने वाले हैं, 272, पूरे देश में और अटल जी की सरकार को सिर्फ एक वोट से गिरा दिया, लेकिन खुद जो 272 का दावा किया था। वो खोखला निकला और 13 महीनों में देश को चुनाव के अंदर जाना पड़ा। चुनाव थोपे गए देश पर माननीय अध्यक्ष महोदया आज फिर एक स्थिर जनादेश उसको अस्थिर करने के लिये खेल खेले जा रहे हैं। राजनीतिक अस्थिरता के दौरान अपनी स्वार्थ सिद्धि करना ये कांग्रेस की फितरत रही है। 1979 में किसान नेता माटी के लाल चौधरी चरण सिंह जी को पहले समर्थन का भ्रम दिया और फिर वापस ले लिया। एक किसान एक कामगार का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है। चन्द्रशेखर जी का भी उसी तरह, modus operandi वही था। पहले सहयोग की रस्सी फैंको और फिर धोखे से उसे वापिस खींचो यही खेल चलता रहा। यही फॉर्मूला 1997 में फिर अपनाया गया। पहले देवगौड़ा जी को, पहले आदरणीय देवगौड़ा जी को अपमानित किया गया और फिर इंद्र कुमार गुजराल जी की बारी आई। क्या देवगौड़ा जी हो, क्या मुलायम सिंह यादव हो, कौन बोल सकता है कि कांग्रेस ने लोगों के साथ क्या किया है। जमीन से उठे अपने श्रम से लोगों के हृदय में जगह बनाने वालों के जन नेता के रूप में उभरे हुए, उन्होंने उन नेताओं को उन दलों को कांग्रेस ने छला है और बार बार देश को अस्थिरता में धकेलने का पाप किया है। कैसे कांग्रेस ने अपनी सरकार बचाने के लिये दो दो बार विश्वास को खरीदने का प्रयास किया वोट के बदले नोट ये खेल कौन नहीं जानता। आज यहां एक बात और कही गई, यहां पूछा गया प्रधानमंत्री अपनी आंख में मेरी आँख भी नहीं डाल सकते। माननीय अध्यक्ष महोदया, सही है हम कौन होते हैं जो आप की आंख में आंख डाल सकें। गरीब मां का बेटा, पिछड़ी जाति में पैदा हुआ। हम कहां आपसे आंख मिलाएंगे। आप तो नामदार हैं नामदार, हम तो कामगार हैं, आपकी आंख में आंख डालने की हिम्मत हमारी नहीं है। हम नहीं डाल सकते और इतिहास गवाह है। अध्यक्ष महोदया जी, इतिहास गवाह है। सुभाष चन्द्र बोस ने कभी आंख में आंख डालने कि कोशिश की उनके साथ क्या किया। मुरारजी भाई देसाई गवाह है उन्होंने आंख में आंख डालने की कोशिश की क्या किया गया। जय प्रकाश नारायण गवाह है उन्होंने आंख में आंख डालने की कोशिश की उनके साथ क्या किया गया। चौधरी चरण सिंह उन्होंने आंख में आंख डालने की कोशिश की उनके साथ क्या किया गया। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आंख में आंख डालने की कोशिश की उनके साथ क्या किया गया। चन्द्र शेखर जी ने आंख में आंख डालने की कोशिश की उनके साथ क्या किया गया।  अरे प्रणब मुखर्जी ने आंख में आंख डालने की कोशिश की उनके साथ क्या किया गया। अरे इतना ही नहीं हमारे शरद पवार जी ने आंख में आंख डालने की कोशिश की उनके साथ भी क्या किया गया। मैं सारा कच्चा चिट्ठा खोल सकता हूं। ये आंख में आंख और इसलिये आंख में आंख डालने की कोशिश करने वालों को कैसे अपमानित किया जाता है। कैसे उनको ठोकर मारकर निकाला जाता है। एक परिवार का इतिहास इस देश में अनजान नहीं है और हम तो कामगार भला हम नामदार से आंख में आंख कैसे डाल सकते हैं।  और आंखों की बात करने वालों की आंखों की हरकतों ने आज टीवी पर पूरा देश देख रहा हा। कैसे आंख खोली जा रही है कैसे बंद की जा रही है। ये आंखों का खेल।

माननीय अध्यक्ष महोदया जी, लेकिन आंख में आंख डालकर के आज इस सत्य को कुचला गया है। बार बार कुचला गया है सत्य को बार बार रौंदा गया है। यहाँ कहा गया, कांग्रेस ही थी, जीएसटी में पैट्रोलियम क्यों नहीं लाया। मैं पूछना चाहता हूं अपने परिवार के इतिहास के बाहर भी तो कांग्रेस का इतिहास है। अपने परिवारों के बाहर कांग्रेस सरकारों का भी इतिहास है अरे जहां इतना तो ध्यान रखो, जब यूपीए सरकार थी तब पैट्रोलियम को बाहर रखने का जीएसटी के बाहर रखने का निर्णय आपकी सरकार ने किया था। आपको ये भी मालूम नहीं है। आज यहां ये भी बात कही गई कि आप चौकीदार नहीं भागीदार हैं। माननीय अध्यक्ष महोदया, मैं गर्व के साथ कहना चाहता हूं हम चौकीदार भी हैं, हम भागीदार भी हैं, लेकिन हम आपकी तरह सौदागर नहीं हैं, ठेकेदार नहीं हैं। न हम सौदागर हैं, न ठेकेदार हैं। हम भागीदार हैं देश के गरीबों के दुख के भागीदार हैं। हम देश के किसानों के पीड़ा के भागीदार हैं। हम भागीदार हैं देश के नौजवानों के सपनों के भागीदार हैं। हम भागीदार हैं देश के उन 115 जिले जो अंकांक्षी जिले हैं, उनके विकास के सपनों के भागीदार हैं। हम, हम देश के विकास को नई राह पर ले जाने वाले मेहनतकश मजदूरों के भागीदार हैं। हम भागीदार हैं और हम भागीदार रहेंगे। उनके दुख को बांटना ये हमारी भागीदारी है। हम निभाएंगे हम ठेकेदार नहीं हैं। हम सौदागर नहीं है, हम चौकीदार भी हैं हम भागीदार भी हैं। हमें गर्व है इस बात का।

कांग्रेस का एक ही मंत्र है, या तो हम रहेंगे और अगर हम नहीं हुए तो फिर देश में अस्थिरता रहेगी। अफवाहों का साम्राज्य रहेगा। ये पूरा कालखंड देख लीजिये। वहां भी भुग्त भोगी बैठे हैं। वहां क्या हुआ सबको मालूम है।

अफवाहें उड़ाई जाती हैं। झूठ फैलाया जाता है। प्रचार किया जाता है। आज के इस युग में अफवाहें फैलाने के लिये टैक्नॉलॉजी भी उपलब्ध है। और आरक्षण खत्म हो जाएगा। दलितों पर अत्याचार रोकने वाला कानून खत्म कर दिया गया है। देश को हिंसा की आग में झोंकने के षड़यंत्र हो रहे हैं। अध्यक्ष महोदया जी, ये लोग राजनीति दलितों, पीड़ितों, शोषितों, वंचितों, गरीबों को इमोशनल ब्लैकमेलिंग करके राजनीति करते रहे हैं। कामगारों, किसानों उनके दुखों की चिंता किये बिना समस्याओं के समाधान के रास्ते खोजने की बजाय चुनाव जीतने के शॉर्टकट ढूंढ़ने का प्रयास हो रहे थे। और उसीका कारण है कि देश का बहुत बड़ा तबका सशक्तिकरण से वंचित रह गया है। बार बार बाबा साहेब आम्बेडकर की भाषा उनके पहनावे पर उनकी राजनीति पर मजाक उड़ाने वाले लोग, आज बाबा साहेब के गीत गाने लगे हैं।  धारा 356 का बार बार दुरुपयोग करने वाले हमें लोकतंत्र के पाठ पढ़ाने की बातें करते हैं। जो सरकार, जो मुख्यमंत्री पसंद नहीं आता था उसको हटाना अस्थिरता पैदा करना ये खेल देश आजाद होने के तुरंत बाद शुरू कर दिया गया जो कभी भी मौका नहीं छोड़ा गया है। और इसी नीति का परिणाम 1980, 1991, 1998, 1999 देश को समय से पहले चुनाव के लिये घसीटा गया। चुनाव में जाना पड़ा। एक परिवार के सपनो, आकांक्षाओं के सामने जो भी आया उसके साथ यही बर्ताव किया गया। चाहे देश के लोकतंत्र को ही दाँव पर क्यों न लगाना पड़े स्वाभाविक है जिनकी ये मानसिकता पड़ी है, जिनके अंदर इतना अहंकार भरा हो, वो हम लोगों को कैसे स्वीकार कर सकते हैं। हमारा यहां बैठना उनको कैसे गवारा हो सकता है। ये हम भलीभांति समझते हैं। और इसिलये हमको नापसंद करना बहुत स्वाभाविक है।

माननीय अध्यक्ष महोदय, कांग्रेस पार्टी जमीन से कट चुकी है। वो तो डूबे हैं लेकिन उनके साथ जाने वाले भी ‘हम तो डूबे हैं सनम तुम भी डूबोगे।’ लेकिन मैं अर्थ और अनर्थ में हमेशा उलझे हुए अपने आपको बहुत बड़ा विद्वान मानने वाले और विद्वता को जिनको अहंकार है। और वो हर समय उलझे हुए एक व्यक्ति ने बात बताई थी उन्हीं के शब्दों को मैं कोट करना चाहिए।

“कांग्रेस पार्टी अलग अलग राज्यों में क्यों और कैसे कमजोर हो गई है। मैं एक ऐसे राज्य से आता हूं। जहां इस पार्टी का प्रभुत्व समाप्त हो गया है। क्यों कांग्रेस इस बात को समझ नहीं पाई कि सत्ता अब उच्च वर्ग साधन सम्पन्न वर्गों से गांव देहात के लोगों इंटरमीडियेट कास्ट और यहां तक की ऐसी जातियों को कथित सोशल ऑर्डर में सबसे नीचे है। गरीब बेरोजगार जिनके पास संपत्ति नहीं, जिनकी कोई आमदनी नहीं, जिनकी आवाज आज तक सुनी नहीं गई, उन तक पहुंची है। जैसे जैसे पावर नीचे की तरफ चलती गई। जैसा कि लोकतंत्र में होना चाहिए। वैसे वैसे अनेक राज्यों में कांग्रेस का प्रभाव खत्म होता गया”। ये इनपुट quotable quote है। और ये हैं 11 अप्रेल, 1997 का और देवगौड़ा जी की सरकार का जो विश्वास प्रस्ताव चल रहा था। उस समय अर्थ और अनर्थ में उलझे हुए आपके विद्वान महारथी श्रीमान चिदंबरम जी का ये वाक्य है। कुछ विद्वान लोगों को ये बातें शायद वहां लोगों को समझ नहीं आईं होगी।

18 साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार ने तीन राज्यों का गठन किया। उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ कोई खींचातानी न कोई झगड़ा, मिल बैठकर के जो जहां से निकले उनके साथ बैठ कर के रास्ते निकाले और तीनों राज्य बहुत शांति से प्रगति कर रहे हैं और देश के विकास में योगदान दे रहे हैं। लेकिन राजनीतिक लाभ पाने के लिये आंध्र के लोगों को विश्वास में लिये बिना राज्यसभा  के दरवाजों को बंद करके जोर और जुल्म के बीच हाऊस ऑर्डर में नहीं था तो भी आपने आंध्र और तेलंगाना का विभाजन किया। उस समय मैंने ये कहा था, उस समय मैंने कहा था तेलुगु हमारी मां है, उस समय हमने कहा था तेलुगु हमारी मां है, तेलुगु का spirit को टूटना नहीं चाहिए। उन्होंने बच्चे को बचा लिया मां को मार दिया है। हम सबका दायित्व है की तेलुगु के इस spirit को बचा लिया जाए। ये शब्द मेरे उस समय थे और आज भी मैं मानता हूं लेकिन 2014 मैं और आपका तो क्या हाल हुआ। आपको लगता था एक जाएगा तो जाएगा लेकिन दूसरा मिल जायेगा। लेकिन जितना जनता इतनी समझदार थी न ये भी मिला न वो भी मिला और आप पीछे ये मुसीबत छोड़कर चले गए। और आपके लिये ये नया नहीं आपने भारत पाकिस्तान का विभाजन किया आज भी मुसीबतें झेल रहे हैं। आपने इनका भी विभाजन ऐसे किया है। उनको विश्वास दिलाया होता तो शायद ये मुसीबत ना आती। लेकिन कुछ नहीं सोचा और मुझे बराबर याद है चन्द्र बाबू का और वहां के हमारे तेलंगाना के सीएम का। केसीआर का पहले साल बंटवारे को लेकर के तनाव रहता था, झगड़े होते थे गवर्नर को बैठना पड़ता था होम मिनिस्टर को बैठना पड़ता था मुझे बैठना पड़ता था। और उस समय टीडीपी की पूरी ताकत तेलंगाना के खिलाफ लगाए रखते थे। उसी में लड़ते थे। हम उनको शांत करने की बहुत कोशिश करते थे। संभालने की कोशिश करते थे। और टीआरएस ने मैच्योरिटी दिखाई, वो अपने आप विकास में लग गये। उधर क्या हाल हुआ आप जानते हैं। संसाधनों का विवाद आज भी चल रहा है। बंटवारा ऐसा किया आप लोगों ने संसाधनों का विवाद आज भी चल रहा है। एनडीए की सरकार ने सुनिश्चित किया कि आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के विकास में कोई कमी नहीं आएगी। और हम पूरी तरह उसपर कमिटेड हैं। और हमने जो कदम उठाए मुझे कुछ मीडिया रिपोर्ट याद है। कुछ मीडिया रिपोर्ट मुझे याद आ रही हैं। इसी सदन के एक माननीय सदस्य उन्होंने बयान दिया था TDP के। उन्होंने बयान दिया था Special Category Status से कहीं ज्यादा बेहतर Special package है। ये लोगों ने दिया था। वित्त आयोग की सिफारिश को फिर से दौहराना चाहता हूं। वित्त सिफारिश के तहत आयोग ने Special or General Category राज्यों के भेद को समाप्त कर दिया। आयोग ने एक नई Category North Eastern को और हिल स्टेट की बना दी। इस प्रक्रिया में आयोग ने इस बात का भी ध्यान रखा कि अन्य राज्यों को आर्थिक नुकसान न हो। एनडीए सरकार आंध्र प्रदेश के लोगों की आशा, आकांक्षाओं का सम्मान करती है। एनडीए सरकार आंध्र प्रदेश के लोगों की आशाओं, अपेक्षाओं का सम्मान करती है। लेकिन साथ ही साथ हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि सरकार 14वीं वित्त आयोग द्वारा दी गई सिफारिशों से बंधी हुई है। इसलिये आंध्रप्रदेश राज्य के लिये एक नया Special Assistance Package बनाया गया। जिससे राज्य को उतनी वित्तीय सहायता मिले जितनी उसे Special Category Status मिलने से प्राप्त होती है। इस निर्णय को 8 सितम्बर 2016 को लागू किया गया। 4 नवम्बर 2016 को आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री ने स्वयं इस पैकेज को स्वीकार करते हुए वित्त मंत्री का धन्यवाद किया। एनडीए सरकार आंध्रप्रदेश Re-Organization Act or Special Assistance Package पर किये हुए हर Commitment को पूरा करना चाहती थी। लेकिन टीडीपी ने अपनी विफलताओं को छुपाने के लिये u turn किया। और माननीय अध्यक्ष महोदया जी, टीडीपी ने जब एनडीए छोड़ने का तय किया तो मैंने चन्द्र बाबू से फोन किया था। टीडीपी एनडीए से निकले चन्द्र बाबू से मेरी फोन पर बात हुई। और मैंने चन्द्र बाबू से कहा था कि बाबू आप वाईएसआर के जाल में फंस रहे हो। वाईएसआर के चक्र में आप फंस रहे हो। और मैंने कहा आप वहां की स्पर्धा में, आप वहां की स्पर्धा में आप किसी भी हालत में आप बच नहीं पाओगे। ये मैंने एक दिन उनको कहा था। और मैं देख रहा हूं। झगड़ा उनका वहां का है। उपयोग सदन का किया जा रहा है। आंध्र प्रदेश की जनता भी इस घनघोर अवसरवादिता को देख रही है। चुनाव नजदीक आते गए, प्रशंसा आलोचना में बदल गई। कोई भी विशेष incentive या  Package देते हैं तो उसका प्रभाव दूसरे क्षेत्रों पर भी पड़ता है। और इसी सदन में आप भी जरा सुन लीजिए। इसी सदन में तीन साल पहले श्रीमान वीरप्पा मोइली जी ने कहा था। How you can create this kind of inequality and inequity between one state and the other state. It is a major issue after all you are   an arbitrator. ये बात मोइली जी ने कही थी।

और मैं आज इस सदन के माध्यम से आंध्र के लोगों को विश्वास दिलाना चाहता हूं। मैं आंध्र की जनता को विश्वास दिलाना चाहता हूं। चाहे राजधानी का काम हो चाहे कसानों की भलाई का काम हो केन्द्र सरकार एनडीए की सरकार आंध्र की जनता की कल्याण के काम में कोई पीछे नहीं रहेगी। उनकी जो मदद कर सकते हैं हम करते रहेंगे। आंध्र का भला हो उसी में देश का भला हो। ये हमारी सोच है। हम विकास में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। हमारा प्रयास हमारा काम करने का तरीका समस्याओं को सुलझाने का है। वन रैंक वन पैंशन कौन थे जिन्होंने इतने दशकों तक इसको लटकाए रखा था। जीएसटी का विषय इतने वर्षों तक किसने लटका के रखा था। और आज यहां बताया गया कि गुजरात के मुख्यमंत्री ने रोका था। मैं इस सदन को जानकारी देना चाहता हूं। उस समय के जो कर्ता धर्ता थे उनको भी मालूम है। मेरी मुख्यमंत्री के नाते चिट्ठियां भी मौजूद है। मैं ने उस समय भारत सरकार को कहा था जीएसटी में राज्यों के जो कनसर्न हैं इसको एड्रेस किये बिना आज जीएसटी को आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। आप राज्यों ने जो genuine  मुद्दे उठाएं हैं राज्यों के साथ बैठ कर के उनका समाधान किये। लेकिन इनका अहंकार इतना था कि वे राज्यों की एक बात सुनने को तैयार नहीं थे। और उसी का कारण था और ये भी मैं आज रहस्य खोलता हूं। बीजेपी के सिवाए अन्य दलों के मुख्यमंत्री भी कांग्रेस के भी मुख्यमंत्री मुझे मिलते थे मीटिंगों में वो कहते थे हम तो बोल नहीं पाएंगे मोदी जी आप बोलिए हमारे राज्य का भी कुछ भला हो जाएगा। और मैंने आवाज उठाई थी। और जब प्रधानमंत्री बना तो मेरा मुख्यमंत्री का अनुभव काम आया। और मुख्यमंत्र के उस अनुभव के कारण सभी राज्यों के कनसर्न को एड्रेस करना तय किया। सभी राज्यों को onboard लाने में सफल हुए और तब जाकर के जीएसटी हुआ है। अगर आपका अहंकार न होता आपने राज्यों की समस्याओं को समझा होता तो जीएसटी पांच साल पहले आ जाता। लेकिन आपके काम का तरीका लटकाने का रहा है।

काले धन पर सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी बनाने को कहा था। कौन लटका कर बैठा था ये आप लोगों ने लटकाया था। बेनामी संपत्ति कानून किसने लटका कर के रखा था। एनडीए सरकार द्वारा खरीफ की फसल में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी की लागत डेढ़ सौ प्रतिशत करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। ये रोका था किसने अरे आपके पास तो ये रिपोर्ट 2006 से पड़ी थी। और आप 2014 तक सरकार में थे। आठ साल तक आपको रिपोर्ट याद नहीं आई। हमने निर्णय किया था हम किसानों को एमएसपी डेढ़ गुना करके देंगे। हमनें किया। और जब यूपीए सरकार 2007 में राष्ट्रीय कृषि नीति का ऐलान किया, तो उसमें 50 प्रतिशत वाली बात को खा गए, उसको गायब कर दिया गया। इसके आगे भी सात साल कांग्रेस की सरकार रही। लेकिन एमएसपी सिर्फ बाते करते रहे। और जनता को किसानों को झूठा विश्वास देते रहे।

मैं आज एक और बात भी बताना चाहता हूं। देश के लिये ये जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है। जिनको सुनना नहीं है उनके काम ये आने वाली नहीं है, लेकिन देश के लिये जरूरी है। हम 2014 में आए। तब कई लोगों ने हमको कहा था कि इकोनॉमी पर व्हाइट पेपर लाया जाए। ये हमारे मन में भी था व्हाइट पेपर लाएंगे। लेकिन जब हम बैठे और शुरु में सारी जानकारियां पाने लगे, एक के बाद एक ऐसी जानकारी आई हम चौंक गए। क्या अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति पैदा करके रहेगी। और इसलिये मैं आज कहानी सुनाना चाहता हूं। क्या परिस्थिति पैदा की। ये कहानी की शुरुआत हुई 2008 में और 2009 में चुनाव था। कांग्रेस को लगने लगा था कि अब एक साल बचा है। जितनी बैंके खाली कर सकते हो करो एक बार जब आदत लग गई तो फिर बैंकों का अंडरग्राऊंड लूट 2009 से 2014 तक चलता रहा। जब तक कांग्रेस सत्ता में थी तब तक ये बैंकों को लूटने का खेल चलता रहा। एक आंकड़ा इस सदन के लोगों को भी चौंका देगा आजादी के साठ साल बाद माननीय अध्यक्षा जी, आजादी के साठ साल मैं, साठ साल में हमारे देश के बैंकों ने लोन के रूप में जो राशि दी थी, वो 18 लाख करोड़ थी। साठ साल में 18 लाख करोड़ लेकिन 2008 से 2014 छह साल में ये राशि 18 लाख करोड़ से 52 लाख करोड़ हो गई। साठ साल में 18 लाख... छह साल में 52 लाख पहुंचाई। और ये छह साल में साठ साल में जो हुआ था। उसको डबल कर दिया। ये कैसे हुआ दुनिया में इन्टरनेट बैंकिंग तो बहुत देर से आया। लेकिन कांग्रेस के लोग बुद्धिमान लोग हैं। कांग्रेस के लोग बुद्धिमान हैं कि दुनिया में इन्टरनेट बैंकिंग आने से पहले भारत में फोन बैंकिंग शुरू हुआ। ये टेलीफोन बैंकिंग शुरू हुआ। और टेलीफोन बैंकिंग का ही कमाल था कि छह साल में 18 लाख से 52 लाख अपने चहेते लोगों को खजाना लुटा दिया गया बैंकों से। और तरीका क्या था कागज देखना कुछ नहीं टेलीफोन आया लोन दे दो, लोन देने का समय आया उसके लिये दूसरी लोन दे दो। वो लोन देने का समय आया दूसरी लोन दे दो। जो गया सो गया जमा करने के लिये नई लोन दे कर चलो यही कुचक्र चलता गया। और देश और देश की बैंक NPA की विशाल जंजाल में फंस गया। ये NPA का जंजाल एक तरह से भारत की बैंकिंग व्यवस्था के लिये एक landmine की तरह बिछाया गया। हमने पूरी पारदर्शिता से जांच शुरू की। NPA की सही स्थिति क्या है। इसके लिये मैकेनिज़्म शुरू किया। हमने इसमें इतना बारीकी से गये कि NPA का जंजाल गहराता गया निरंतर गहराता गया। NPA बढ़ने का एक और कारण यूपीए सरकार ने कुछ ऐसे निर्णय लिये जिसके कारण देश में कैपिटल गुड्स में इम्पोर्ट में बेतहाशा वृद्धि हुई। आपको ये जानकर के हैरानी होगी कि कैपिटल गुड्स का इम्पोर्ट कस्टम ड्यूटी को कम करके इतना ज्यादा बढ़ाया गया कि हमारे कच्चे तेल के आयात के समतुल्य हो गया। इन सारे इम्पोर्ट की फाईनेंसिंग बैंकों के लोन के जरिये की गई। देश में कैपिटल गुड्स उत्पादन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। बैंकों की लेंडिंग के बिना प्रोजैक्ट अस्सेस्मेंट के बिना क्लियरेंस ले ली गई। यहां तक की बहुत सारे प्रोजैक्ट में तो Equity के बदले लोन भी बैंकों ने दिया। अब एक तरफ तो इन कैपिटल गुड्स के आयात और प्रोजैक्ट के निर्माण में कस्टम ड्यूटी या सरकार के टैक्स में कमी की गई। वहीं दूसरी तरफ सरकारी क्लियरेंस देने के लिये कुछ नये टैक्स लॉ बनाए गए। जो टैक्स सरकार के खाते में नहीं जाते थे। इस टैक्स के कारण सारे प्रोजैक्ट क्लियरेंस में देरी हुई। बैंकों के लोन फंसे रहे। और NPA बढ़ता रहा। आज भी जब बार बार NPA की स्थिति के ऊपर अपने बयान देते हैं, तो सरकार को बाध्य हो कर के देश की जनता के सामने इस सदन के माध्यम से मुझे तथ्य फिर से रखने की जरूरत पड़ी है। एक तरफ तो हमारी सरकार ने बैंकों की books में इन सभी NPA को ईमानदारी के साथ दिखाने का निर्णय लिया। वहीं दूसरी तरफ हमने बैंक में सुधार के लिये बहुत सारे नीतिगत निर्णय लिये। जो देश की अर्थव्यवस्था को आने वाले वर्षों में मदद पहुंचाएंगे। पचास करोड़ रुपये से ज्यादा सारे NPA अकाउंट की समीक्षा की गई है। इनमें विलफुल डिफॉल्टर्स और फ्रॉड की संभावना का आंकलन किया जा रहा है। बैंकों में स्ट्रेस असेट्स की मैनेजमेंट के लिये एक नई व्यवस्था तैयार की गई है। दो लाख दस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि बैंकों के रिकैपिटलाइजेशन के लिये दी जा रही है। हमारी सरकार ने इनसोलवेंसी और बैंकक्रप्सी कोड बनाए हैं। इसके द्वारा top twelve डिफॉल्टर्स जो की कुल NPA के 25 प्रतिशत के बराबर हैं। ये केस national company law tribunal द्वारा किये जा चुके हैं। इन 12 बड़े केस में लगभग तीन लाख करोड़ रुपये की राशि फंसी हुई है। सिर्फ एक साल में इनमें से तीन बड़े मामलों में हमारी सरकार ने लगभग 55 प्रतिशत की रिकवरी पाई है। वहीं अगर कुल 12 बड़े मामलों की बात करें तो उनमें से लगभग 45 प्रतिशत की रिकवरी की जा चुकी है। ऐसे ही लोगों के लिये कल ही लोकसभा ने Fugitive economic offender bill पास किया है। बैंक का कर्ज न चुकाने वालों के लिये अब देश के कानून से बचना और मुश्किल हो गया है और इससे NPA पर भी नियंत्रण लगने में भी मदद मिलेगी। अगर 2014 में एनडीए सरकार न बनती जिस तौर तरीके से कांग्रेस सरकार चला रही थी, अगर वही व्यवस्था चलती रहती, तो आज देश बहुत बड़े संकट में गुजरता होता।

मैं इस सदन के माध्यम से देश को ये बताना चाहता हूं कि पहले की सरकार देश पर स्पेशल फॉरेन करंसी नॉन रेसिडेंट डिपोजिट यानी FCNR के लगभग 32 बिलियन डॉलर्स 32 मिलियन डॉलर का कर्ज छोड़ कर के गई थी। इस कर्ज को भी   भारत पूरी तरह आज वापस कर चुकी है। ये काम हमने कर दिया है।

माननीय अध्यक्ष महोदया, देश में ग्राम स्वराज अभियान इसको आगे बढ़ाने के लिये महत्मा गांधी के सपनों को साकार करने के लिये हमनें 15 अगस्त तक 65 हजार गांवों के सभी के पास बैंक खाता हो, गैस कनेक्शन हो, हर घर में बिजली हो, सभी का टीकाकरण हुआ हो, सभी को बीमा का सुरक्षा कवच मिला हो और हर घर में एलईडी बल्ब हो, ये गांव कुल 115 जिलों में है। जिनको गलत नीतियों ने पिछड़ेपन का अविश्वास दिया और हमनें उनको आकांक्षा का नया विश्वास दिया। न्यू इंडिया की व्यवस्थाएं स्मार्ट भी हैं, सेंस्टिव भी हैं। स्कूलों में लैब के ठिकाने नहीं थे, हमनें अटल टिंकरिंग लैब, स्किल इंडिया, खेलो इंडिया अभियानों से प्रतिभा की पहचान और सम्मान बढ़ा दिया है। महिलाओं के लिये जीवन के हर पड़ाव को ध्यान में रखते हुए योजनाएं बनाई और मैं आज गर्व के साथ कहना चाहता हूं। कैबिनेट कमैटी ऑन सिक्योरिटी में पहली बार देश में दो महिलाएं बैठती हैं। और दो महिला मंत्री निर्णय में भागीदार होती है। महिलाओं को फाइटर   पायलेट के तौर पर induct किया गया है। तीन तलाक झेल रही मुस्लिम बहनों के साथ सरकार मजबूती के साथ खड़ी है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जन आंदोलन बना है। अनेक जिलों में बेटियों के जन्म में बढ़ोतरी बेटियों पर अत्याचार करने वालों के लिये फांसी तक का प्रावधान लोकतांत्रिक व्यवस्था में हिंसा और अत्याचार को इजाजत नहीं दी जा सकती है। ऐसी घटनाओं में किसी एक भारतीय का भी निधन दुखद है। मानवता की मूल भावना के खिलाफ है। जहां भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं। वहां पर राज्य सरकारें कार्रवाई कर रही है।

मैं आज इस सदन के माध्यम से राज्य सरकारों को फिर से आग्रह करूंगा कि जो भी ऐसी हिंसा करे उसके खिलाफ सख्त कारर्वाई की जाए। देश को 21वीं सदी के देश के सपनों को पूरा करना है। भारत माला से हाईवे का जाल पूरे देश में बिछाया जा रहा है। सागर माल से पोर्ट डेवलपमेंट और पोर्टलेड डेवलपमेंट उसको बढ़ावा दिया जा रहा है। टायर टू और टयर थ्री सिटी में हवाई कनेक्टिविटी पर काम तेजी से आगे बढ़ रहा है। देश के शहरों में मैट्रो का व्यापक विस्तार हो इस पर काम चल रहा है। यह देश की हर पंचायत तक इन्टरनेट पहुंचाने के लिये तेज गति से काम हुआ है। देश इसका साक्षी है। गांव से लेकर के बड़े शहरों तक गरीब और मध्यम वर्गीय जीवन में बड़े बदलाव ला रही है। पहले की सरकारों के मुकाबले हमारे सरकार की गति कही ज्यादा तेज है। चाहे सड़कों का निर्माण हो, रेलवे लाइनों का बिजलीकरण हो, देश की उत्पादन क्षमता वृद्धि करने की हो, नये शिक्षा संस्थान हो, आईआईटी, आईआईएम हो, मैडिकल सीटों की संख्या में वृद्धि हो, कर्मचारी वही है, ब्यूरोक्रेसी वही है, फाइलों का तौर तरीका वही है, लेकिन उसके बावजूद भी ये पोलिटीकल विल है। जिसके कारण देश के सामर्थ में नई ऊर्जा भर कर के हम आगे बढ़ रहे हैं। इस देश में रोजगार को लेकर के बहुत सारे भ्रम फैलाए जा रहे हैं। और फिर एक बार सत्य को कुचलने का प्रयास आधारहीन बातें कोई जानकारी नहीं, ऐसे ही गपोले चलाना अच्छा होगा अगर उसमें थोड़ा बारीकी से ध्यान देते तो देश के नौजवानों को निराश कर कर के राजनीति करने का पाप नहीं करते। सरकार ने सिस्टम में उपलब्ध रोजगार से संबंधित अलग अलग आंकड़ों को देश के समक्ष हर महीने प्रस्तुत करने का निर्णय किया है। संगठित क्षेत्र यानी फॉर्मल सैक्टर में रोजगार में वृद्धि का मापने का ये तरीका है, Employee Provident Fund यानी EPF में कर्मचारियों की घोषणा सितम्बर 2017 से लेकर मई 2018 इन 9 महीनों में लगभग 45 लाख नए नेट  सब्स्क्राइबर ईपीएफ से जुड़े हैं। इनमें से 77% 28 वर्ष से कम उम्र के हैं। फार्मल सिस्टम  में न्यू पैंशन स्कीम  यानी NPS में पिछले 9 महीने में 5 लाख 68 हजार से ज्यादा लोग जुड़े हैं। इस तरह ईपीएफ और NPS के दोनों आंकड़ों को मिलाकर ही पिछले नौ महीनों में फार्मल सैक्टर में 50 लाख से ज्यादा लोग रोजगार में जुड़े हैं। ये संख्या पूरे वर्ष के लिये 70 लाख से भी ज्यादा होगी। इन 70 लाख कर्मियों में ईएसआईसी के आंकड़ों को सम्मिलित नहीं किया गया है। क्योंकि इनमें अभी आधार लिंकिंग का काम चल रहा है। इसके अतिरिक्त देश में कितनी ही प्रोफेशनल बॉडीज़ हैं, जिनमें युवा प्रोफेशनल डिग्री लेकर अपने आपको रजिस्टर करते हैं और अपना काम करते हैं। उदाहरण के तौर पर डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, आर्किटेक्ट्स, लॉयर्स, चार्टर्ड अकांउटेंट्स, कॉस्ट अकाउंट्स कंपनी, कंपनी सेक्रेटरीज, इनमें एक स्वतंत्र इनडिपेंडेंट इंस्टिट्यूट ने सर्वे किया है। और इनडिपेंडेंट इंस्टिट्यूट स्टडी कह रहा है, उन्होंने जो आंकड़े रखे हैं। उनका कहना है 2016-17 में लगभग 17000 नये चार्टर्ड अकांउटेंट सिस्टम में जुड़े हैं। इनमें से 5000 से ज्यादा लोगों ने नई कंपनियां शुरू की हैं। अगर एक चार्टर्ड अकांउट संस्था में बीस लोगों को रोजगार मिलता है, तो इन संस्थाओं में एक लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर, डेंटल सर्जन और Ayush डॉक्टर हमारे देश में 80 हजार से ज्यादा पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर, डेंटल सर्जन और Ayush के डॉक्टर शिक्षित होकर के प्रति वर्ष कॉलेज से निकलते हैं। इनमें से अगर साठ प्रतिशत भी खुद की प्रैक्टिस करें तो प्रति डॉक्टर पांच लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे और ये संख्या 2 लाख 40 हजार होगी। लोयर 2017 में लगभग 80 हजार अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट लोयर बने इनमें से अगर 60 प्रतिशत लोगों ने अपनी प्रैक्टिस शुरू की होगी और अपने दो तीन लोगों को रोजगार दिया होगा, तो लगभग दो लाख रोजगार उन वकीलों के माध्यम से मिला है। इन तीन प्रोफेशन में ही 2017 में 6 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार के अवसर मिले हैं। अब अगर इनफॉर्मल सैक्टर की बात करें, तो ट्रांस्पोर्ट सैक्टर में काफी लोगों को रोजगार मिलता है। पिछले वर्ष ट्रांस्पोर्ट सैक्टर में सात लाख 60 हजार कामर्शियल  गाड़ियों की बिक्री हुई।  सात लाख 60 हजार कामर्शियल गाड़ियां अगर इसमें से 25 प्रतिशत गाड़ियां बिक्री पुरानी गाड़ियों को बदलने के लिये मानें तो पांच लाख 70 हजार गाड़ियां सामान ढुलाई के लिये सड़क पर उतरी और नयी उतरीं। ऐसी एक गाड़ी पर दो लोगों को भी अगर रोजगार मिलता है, तो रोजगार पाने वालों की संख्या 11 लाख 40 हजार होती है। उसी तरह अगर हम पैसेंजर गाड़ियों की बिक्री को देखें तो ये संख्या 25 लाख 40 हजार की थी। इनमें से अगर 20 प्रतिशत गाड़ियां पुरानी गाड़ियों को बदलने की मानी जाए, तो लगभग 30 लाख गाड़ियां सड़कों पर उतरीं। इन नई गाड़ियों में अगर केवल 25 प्रतिशत भी ऐसी मानी जाए जो एक ड्राइवर को रोजगार देती है, तो वो पांच लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा। उसी तरह से पिछले साल हमारे यहां 2 लाख 55 हजार ऑटो की बिक्री हुई है। इनमें से 10 प्रतिशत की बिक्री अगर पुरानी ऑटो बदलने की मानी जाए, तो लगभग दो लाख तीस हजार नये ऑटो पिछले वर्ष सड़क पर उतरे हैं। क्योंकि ऑटो दो शिफ्ट में चलते हैं, तो दो ऑटो से तीन लोगों को रोजगार मिलता है। ऐसे में तीन लाख चालीस हजार लोगों को नए ऑटो के जरिये रोजगार मिलता है। अकेले ट्रांस्पोर्ट सैक्टर को इन तीन वाहनों से पिछले एक वर्ष में बीस लाख लोगों को नये अवसर मिले हैं।

ईपीएफ, एनपीएस, प्रोफेशनल ट्रांस्पोर्ट सैक्टर की अगर हम जोड़कर के देखें एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अकेले पिछले वर्ष रोजगार मिला है। और एक इंडिपेंडेंट संस्था का सर्वे कह रहा है। मैं उस इंडिपेंडेंट इंस्टिट्यूट को कोट कर रहा हूं। ये सरकारी आंकड़े मैं नहीं बोल रहा हूं। और इसलिये मेरा आग्रह है, कि कृपा करके बिना तथ्यों के सत्य को कुचलने का प्रयास न किया जाए। देश को गुमराह करने का प्रयास न किया जाए, आज देश एक अहम पड़ाव पर है, आने वाले पांच वर्ष सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों के जिसमें 85 प्रतिशत हमारे नौजवान देश की नियत तय करने वाले हैं। न्यू इंडिया देश की नई आशाओं, आकांक्षाओं का आधार बनेगा। जहां संभावनाओं, अवसरों, स्थिरता इसका अनन्त विश्वास होगा। जहां समाज के किसी भी वर्ग, किसी भी क्षेत्र के प्रति कोई अविश्वास नहीं होगा। कोई भेदभाव नहीं होगा। इस महत्वपूर्ण समय में बदलते हुए  वैश्विक परिवेश में हम सभी को साथ मिलकर के चलने की आवश्यकता है।

अध्यक्ष महोदया जी, जिन लोगों ने चर्चा में भाग लिया मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं। मैं फिर एक बार आंध्र की जनता के कल्याण के लिये एनडीए की सरकार कोई कमी नहीं रहेगी। हिन्दुस्तान में विकास की राह पर चलने वाले हर किसी के लिये जी जान से काम करने का व्रत लेकर के हम आए हैं। मैं फिर एक बार इन सभी महानुभावों को 2024 में अविस्वास प्रस्ताव लाने का निमंत्रण देकर के मेरी बात को समाप्त करता हूं। और मैं इस अविश्वास प्रस्ताव को पूरी तरह खारिज करने के लिये इस सदन को आग्रह करता हूं। आपने मुझे समय दिया मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूं धन्यवाद ।

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अतुल तिवारी / शहबाज हसीबी / हिमांशु सिंह / तारा / शौकत अली



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