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भारतीय रिज़र्व बैंक ने अप्रैल 2025 का मौद्रिक नीति अपडेट जारी किया रिज़र्व बैंक ने रेपो रेट घटाकर 6 प्रतिशत किया, वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जीडीपी ग्

Posted On: 09 APR 2025 20:53 PM

प्रस्तावना

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने अपनी 54वीं और वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली बैठक में सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर 25 आधार अंक घटाकर छह प्रतिशत कर दिया है जो तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। रेपो दर वह दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है, और इस दर में कटौती का उद्देश्य उधार और निवेश को बढ़ावा देना है। यह निर्णय ऐसे समय आया है जब वैश्विक आर्थिक स्थितियां उथल-पुथल से भरी हैं और फिर से व्यापारिक तनाव उभरकर सामने आया है। इससे कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है, अमेरिकी डॉलर कमजोर हुआ है, बॉन्ड यील्ड में नरमी आई है और इक्विटी बाजारों में सुधार हुआ है। दुनिया भर के केंद्रीय बैंक घरेलू चिंताओं को दूर करने के लिए अपनी नीतियां सावधानी से समायोजित कर रहे हैं।

भारत के भीतर, परिदृश्य में सुधार के संकेत मिले हैं। मुद्रास्फीति, विशेष तौर पर खाद्य मुद्रास्फीति में अपेक्षा से अधिक कमी आई है, जिससे कुछ राहत मिली है, हालांकि वैश्विक और मौसम संबंधी जोखिम बरकरार हैं। पिछले वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में कमजोर प्रदर्शन के बाद विकास दर में सुधार हो रहा है, लेकिन यह अभी भी देश की क्षमता से कम है। मौद्रिक नीति समिति संकल्प के साथ जारी अप्रैल 2025 की मौद्रिक नीति रिपोर्ट में आगामी महीनों के लिए सकल घरेलू उत्पाद-जीडीपी वृद्धि पूर्वानुमान और मुद्रास्फीति प्रक्षेपण की रूपरेखा भी दी गई है। यह साल भारतीय रिज़र्व बैंक के लिए उल्लेखनीय वर्ष है क्योंकि एक अप्रैल 1935 को इसकी स्थापना के 90 साल पूरे हो रहे हैं। दशकों से, यह मुद्रास्फीति के प्रबंधन, विकास दर वृद्धि और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने की अपनी भूमिकाओं से पूर्ण-सेवा देने वाले केंद्रीय बैंक के रूप में विकसित हुआ है।

मौद्रिक नीति समिति के प्रमुख नीतिगत निर्णय

  • मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर में 25 आधार अंक घटाने का निर्णय लिया, जिससे यह तत्काल प्रभाव से 6 प्रतिशत पर आ गया है। रेपो दर वह दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देता है।
  • इसके परिणामस्वरूप, तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 5 दशमलव 75 प्रतिशत पर समायोजित की गई है। एसडीएफ बैंकों को बिना किसी संपार्श्विक (ऐसी संपत्ति या वस्तु जिसे उधारकर्ता ऋणदाता को ऋण के लिए सुरक्षा के रूप में गिरवी रखता है) के आरबीआई के पास अतिरिक्त धनराशि जमा करने की अनुमति देता है।
  • मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) दर और बैंक दर दोनों को संशोधित कर 6 दशमलव दो-पांच प्रतिशत कर दिया गया है। एमएसएफ का मतलब है मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी। यह भारतीय रिज़र्व बैंक का ऐसा प्रावधान है जो अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को यदि अंतर-बैंक निधि पूरी तरह से समाप्त हो जाए तो ओवर नाइट तरलता प्राप्त करने की सक्षमता प्रदान करता है। यह एक आपातस्थिति सुविधा है जो बैंकों को रेपो दर से अधिक दर पर ऋण लेने की अनुमति देता है।
  • दर समायोजन भारतीय रिज़र्व बैंक के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति लक्ष्य 4 प्रतिशत को ±2 प्रतिशत के लचीले बैंड के भीतर प्राप्त करने के उद्देश्य के अनुरूप हैं, साथ ही आर्थिक विकास को भी समर्थित करता है।

 

विकास मूल्यांकन

भारतीय रिजर्व बैंक ने 2025-26 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जो पिछले वर्ष के 9 दशमलव 2 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के बाद 2024-25 के अनुमान के समान ही रहेगी। तिमाही अनुमान में पहली तिमाही में 6 दशमलव 5 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6 दशमलव 7 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6 दशमलव 6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6 दशमलव 3 प्रतिशत है। यह फरवरी के अनुमान से 20 आधार अंकों की गिरावट दर्शाता है, जो वैश्विक अस्थिरता को प्रतिबिम्बित करता है। उन्नत जलाशय स्तरों और अच्छी फसल उत्पादकता से कृषि में सकारात्मक स्थिति बनी हुई है, जिससे ग्रामीण मांग बनी रहने की उम्मीद है। बेहतर कारोबारी माहौल के बीच विनिर्माण में पुनरुद्धार के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं

निवेश में, उच्च क्षमता उपयोग, बुनियादी ढांचे पर सरकार के निरंतर जोर और बैंकों और कॉरपोरेट्स जगत की मजबूत बैलेंस शीट के कारण गतिविधियों में तेजी आ रही है। वित्तीय स्थितियों में सुधार से भी स्थिति से उबरने में मदद मिली है। सेवाओं में निर्यात स्थिर रहने की संभावना है, लेकिन वैश्विक अनिश्चितताओं और व्यापार व्यवधानों से व्यापारिक निर्यात में परेशानी आ सकती है। भविष्य के दृष्टिगत, भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2026-27 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6 दशमलव 7 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया है, जो निरंतर सुधार में गति का संकेत देता है।

 

मुद्रास्फीति संबंधी दृष्टिकोण

जनवरी और फरवरी 2025 के दौरान हेडलाइन मुद्रास्फीति में कमी आई, जो खाद्य कीमतों में तेज गिरावट के कारण हुई। रबी फसल को लेकर अनिश्चितताएं काफी हद तक दूर हो गई हैं और दूसरे अग्रिम अनुमानों में पिछले वर्ष की तुलना में रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन और अधिक दाल उत्पादन के संकेत मिले हैं जिससे खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आने की संभावना है। इस अनुकूल प्रवृत्ति को खरीफ की मजबूत आवक और अगले तीन और बारह महीनों में मुद्रास्फीति की संभावना में कमी के संकेत से बल मिला है जो हाल के सर्वेक्षणों में परिलक्षित होता है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट ने अवस्फीतिकारी दृष्टिकोण को और मजबूत किया है। इसके अनुसार, 2025-26 के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति 4.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिसमें तिमाही अनुमानों में – पहली तिमाही में 3 दशमलव 6 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 3 दशमलव 9 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 3 दशमलव 8 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4 दशमलव 4 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

पूर्वानुमान में मुद्रास्फीति स्थिर लग रही है, लेकिन वैश्विक अनिश्चितताएं और मौसम संबंधी आपूर्ति आशंका मुद्रास्फीति में जोखिम उत्पन्न कर सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने अनुमानों में मानसून सामान्य माना है और इसी आधार पर जोखिमों को समान रूप से संतुलित बताया है।

बाह्य क्षेत्र संक्षिप्त और त्वरित अवलोकन

  • मजबूत सेवाएं और धन प्रेषण: जनवरी-फरवरी 2025 में सेवाओं का निर्यात मजबूत रहा, जिसमें सॉफ्टवेयर, व्यापार और परिवहन सेवाओं की प्रमुख भूमिका रही। शुद्ध सेवाओं और धन प्रेषण प्राप्तियों के बड़े अधिशेष में रहने की उम्मीद है, जिससे व्यापार घाटे को कम किया जा सकेगा।
  • सतत चालू खाता घाटा: अनुमान है कि 2024-25 और 2025-26 दोनों के लिए चालू खाता घाटा (सीएडी) स्थिर स्तरों के भीतर ही रहेगा, जिसे लचीले बाह्य प्रवाह से मदद मिलेगी।
  • मिश्रित निवेश प्रवाह: स्थिर व्यापक आर्थिक बुनियादों के कारण सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश-एफडीआई मजबूत रहा, जबकि उच्च प्रत्यावर्तन और बाहरी निवेश के कारण शुद्ध एफडीआई में कमी आई। इक्विटी बहिर्वाह के बावजूद ऋण प्रवाह द्वारा प्रेरित शुद्ध एफपीआई प्रवाह 2024-25 में एक दशमलव 7 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया।
  • पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार: 4 अप्रैल, 2025 तक, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 676 दशमलव 3 बिलियन डॉलर था, जो लगभग 11 महीने का आयात कवर प्रदान करता है और भारत की बाह्य आर्थिक शक्ति को दर्शाता है।

तरलता और वित्तीय बाज़ार की स्थितियां

  • तरलता की कमी और रिज़र्व बैंक का हस्तक्षेप: जनवरी 2025 में, बैंकिंग प्रणाली को धन की कमी का सामना करना पड़ा, जिसे तरलता घाटा के रूप में जाना जाता है। इसके समाधान के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 23 जनवरी को तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) द्वारा 3 दशमलव 1 लाख करोड़ रुपये प्रदान किए – यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें बैंकों को नकदी प्रवाह में अस्थायी बेमेल को प्रबंधित करने के लिए अल्प अवधि के लिए रिज़र्व बैंक से ऋण लेने की अनुमति देता है।
  • बेहतर लिक्विडिटी स्थिति: रिज़र्व बैंक ने बाद में आर्थिक तंत्र में लगभग 6 दशमलव 9 लाख करोड़ रुपये डाले। मार्च के अंत में सरकारी खर्च में वृद्धि से इसमें और मदद मिली। इन उपायों से आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ और 7 अप्रैल 2025 तक आर्थिक प्रणाली में 1 दशमलव 5 लाख करोड़ रुपये का लिक्विडिटी सरप्लस था - जिसका अर्थ है कि बैंकों में उधार देने और निवेश के लिए अधिक पैसा उपलब्ध था।
  • बाजार दरों में नरमी: अधिक तरलता उपलब्ध होने के साथ, भारित औसत कॉल दर (डब्ल्यूएसीआर) – (वह औसत ब्याज दर जिस पर बैंक एक-दूसरे को रात भर के लिए उधार देते हैं) - में गिरावट आई और यह रेपो दर के करीब पहुंच गई (वह ब्याज दर जिस पर रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है)। यह स्थिर अल्पकालिक उधार लागतों को दर्शाता है।
  • ऋण बाजार में कम वित्तपोषण लागत: वाणिज्यिक पत्रों (सीपी) और जमा प्रमाणपत्रों (सीडी) - कंपनियों और बैंकों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अल्पकालिक उधार उपकरण - और 91-दिनों के ट्रेजरी बिल - एक अल्पकालिक सरकारी सुरक्षा - पर ब्याज दरों के बीच अंतर कम हो गया। प्रसार के इस संकुचन का अर्थ है कि वित्तीय बाजारों में उधार लेना सस्ता हो गया। भारतीय रिज़र्व बैंक ने कहा है कि वह स्थितियों पर नजर रखना जारी रखेगा और पर्याप्त तरलता बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार कार्रवाई करेगा।

निष्कर्ष

मौद्रिक नीति समिति की 54वीं बैठक उपरांत जारी अप्रैल 2025 की मौद्रिक नीति रिपोर्ट में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मूल्य स्थिरता बनाए रखते हुए विकास को समर्थन देने का संतुलित दृष्टिकोण परिलक्षित होता है। नीतिगत रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती कर इसे 6 प्रतिशत करने का निर्णय मुद्रास्फीति में कमी, विशेष रूप से खाद्य कीमतों में कमी और आर्थिक गतिविधि में धीरे-धीरे सुधार के आधार पर लिया गया है। 2025-26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 6 दशमलव 5 प्रतिशत अनुमानित है और मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत लक्ष्य बैंड के भीतर रहने की संभावना है। वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद रिपोर्ट सतर्क आशावाद का संकेत देती है।

बाह्य स्तर पर, मजबूत सेवा निर्यात और मजबूत प्रेषण प्रवाह से माल व्यापार घाटे में कमी आई है, जिससे चालू खाता घाटा स्थिर बना हुआ है। इस बीच, बेहतर प्रणाली तरलता, कम अल्पकालिक उधार लागत और स्थिर विदेशी मुद्रा भंडार भारत की वित्तीय प्रणाली की प्रत्यास्थता को रेखांकित करते हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने उभरती स्थितियों पर नजदीकी नज़र रखने और व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए समय पर संतुलित उपाय करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।

संदर्भ:

पीडीएफ देखने के लिए यहां क्लिक करें।

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एमजी/आरपीएम/केसी/एकेवी/केके

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