Social Welfare
भारत में आपातकाल
Posted On: 24 JUN 2025 19:09 PM
आपातकाल के दौरान कानूनी और राजनीतिक कार्रवाइयों का कालक्रम
भारत में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल लागू किया गया था।
आपातकाल की पृष्ठभूमि
आपातकाल की घोषणा उस समय की गई जब राजनीतिक अशांति और न्यायिक निर्णयों ने सत्तारूढ़ नेतृत्व की वैधता को चुनौती दी।
- 1970 के दशक की शुरुआत में सरकार के खिलाफ विपक्ष ने आंदोलन तेज कर दिया। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार और गुजरात में विरोध प्रदर्शन बढ़े।
- छात्रों के आंदोलन, बेरोज़गारी, महंगाई और भ्रष्टाचार की धारणा से जन-असंतोष बढ़ा।
- 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जगमोहनलाल सिन्हा ने निर्णय दिया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1971 के लोकसभा चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया।
- न्यायालय ने उन्हें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत दोषी पाया और छह वर्षों के लिए किसी भी निर्वाचित पद को धारण करने से अयोग्य करार दिया।
- यह मामला समाजवादी नेता राज नारायण ने दायर किया था, जो रायबरेली में श्रीमती गांधी से हार गए थे। उनकी कानूनी चुनौती के परिणामस्वरूप इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह ऐतिहासिक फैसला आया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने बाद में इस फैसले पर सर्शत स्थगन आदेश दिया —श्रीमती गांधी प्रधानमंत्री बनी रह सकती थीं और संसद में भाग ले सकती थीं, लेकिन उन्हें वोट देने के अधिकार से रोक दिया गया।
- इस फैसले के बाद राजनीतिक संकट और गहरा गया तथा उनके त्यागपत्र की मांग उठने लगी।
आपातकाल की घोषणा
आपातकाल की औपचारिक घोषणा भारत के संवैधानिक इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई।
- 25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने अनुच्छेद 352 के तहत "आंतरिक अशांति" का हवाला देकर देश में आपातकाल की उद्घोषणा की।
- यह निर्णय सरकार द्वारा जारी एक प्रेस नोट के बाद लिया गया, जिसमें जयप्रकाश नारायण सहित कुछ लोगों पर पुलिस और सशस्त्र बलों को आदेशों की अवहेलना के लिए भड़काने का आरोप लगाया गया था।
- यह भारत का तीसरा आपातकाल था, परंतु शांति काल में घोषित होने वाला पहला। इससे पहले देश में आपातकाल चीन (1962) और पाकिस्तान (1971) के साथ युद्ध के दौरान घोषित किया गया था।
- उस समय अनुच्छेद 352 युद्ध, बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति के आधार पर राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने की अनुमति देता था।
- 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा "आंतरिक अशांति" के स्थान पर "सशस्त्र विद्रोह" शब्द जोड़ा गया।
- कार्यपालिका को व्यापक अधिकार प्राप्त हुए और राज्यों की शक्तियाँ केंद्र सरकार के अधीन आ गईं।
कानूनी उपाय एवं मौलिक अधिकारों का निलंबन
आपातकाल की उद्घोषणा के बाद संवैधानिक सुरक्षा उपायों को व्यवस्थित रूप से निलंबित कर दिया गया।
- 27 जून 1975 को अनुच्छेद 358 और 359 को लागू किया गया।
- अनुच्छेद 358 के तहत अनुच्छेद 19 में दिए गए अभिव्यक्ति, भाषण, आंदोलन और सभा की स्वतंत्रता के अधिकार निलंबित किए गए।
- अनुच्छेद 359 के अंतर्गत अनुच्छेद 14, 21 और 22 जैसे मौलिक अधिकारों (कानून के समक्ष समानता, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, तथा गिरफ्तारी से सुरक्षा) के प्रवर्तन को निलंबित किया गया।
- नागरिकों को न्यायालय में इस संदर्भ में याचिका दायर करने से भी वंचित कर दिया गया।
- जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और अन्य विपक्षी नेताओं को आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा) के तहत गिरफ्तार किया गया।
- आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा) का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। शाह आयोग के अनुसार, लगभग 35,000 लोगों को बिना किसी सुनवाई के निवारक हिरासत में रखा गया।
मीडिया पर सेंसरशिप और नियंत्रण
- आपातकाल के दौरान संस्थागत तंत्र और प्रशासनिक आदेशों के माध्यम से प्रेस और सार्वजनिक सूचना पर कड़ा नियंत्रण रखा गया।
- 26 जून 1975 से सभी समाचार पत्रों पर पूर्व-सेंसरशिप लगा दी गई।
- संपादकों को समाचार, संपादकीय और तस्वीरें प्रकाशित करने से पहले सरकारी मंजूरी लेना आवश्यक था।
- सरकार ने प्रेस सामग्री की निगरानी के लिए क्षेत्रीय सेंसर के साथ-साथ राष्ट्रीय सेंसर की नियुक्ति की। रेडियो-फोटो प्रसारण को भी सरकारी मंजूरी के दायरे में लाया गया।
- 5 जुलाई 1975 को विदेशी संवाददाताओं के टेलेक्स संदेशों पर पाबंदी लगा दी गई तथा उनकी पूर्व जांच की गई।
- 20 जुलाई 1975 को सिनेमा पर नियंत्रण कड़ा करने के लिए सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत फिल्म सेंसर बोर्ड का पुनर्गठन किया गया।
- 1 फरवरी 1976 को सरकार ने चार प्रमुख समाचार एजेंसियों अर्थात् प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई), यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई), समाचार भारती और हिंदुस्तान समाचार को मिलाकर एक इकाई बना दी, जिसका नाम ’समाचार’ रखा गया।
- भारतीय प्रेस परिषद , जो एक वैधानिक निगरानी संस्था थी, को समाप्त कर दिया गया।
आपातकाल के दौरान संविधान संशोधन
आपातकाल के दौरान संसद ने अनेक संवैधानिक संशोधन पारित किये, जिनसे न्यायिक समीक्षा और संस्थागत जांच कमजोर हो गयी।
- 38वें संशोधन ने अदालतों को राष्ट्रपति के आपातकाल घोषित करने के निर्णय पर सवाल उठाने से रोक दिया।
- 39वें संशोधन ने प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव को न्यायिक जांच से बाहर रखा।
- 42वें संशोधन ने केंद्र सरकार की शक्तियों को और बढ़ा दिया। इसने मौलिक अधिकारों पर निर्देशक सिद्धांतों को प्राथमिकता दी, संवैधानिक संशोधनों की न्यायिक समीक्षा पर रोक लगा दी तथा उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की शक्तियों में कटौती की।
- 42वें संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच वर्ष से बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया गया।
जबरन नसबंदी और जनसंख्या नियंत्रण अभियान
- आपातकाल के सबसे विवादास्पद पहलुओं में से एक जबरन नसबंदी अभियान था।
- यह अभियान 1975 में तीव्र जनसंख्या नियंत्रण प्रयास के एक हिस्से के रूप में शुरू हुआ था।
- 1975-76 में कुल 26.42 लाख नसबंदी ऑपरेशन किए गए। 1976-77 में यह संख्या बढ़कर 81.32 लाख हो गई।
- दो वर्षों में 1.07 करोड़ नसबंदी ऑपरेशन किए गए।
- कई राज्यों ने आवश्यक सेवाओं तक पहुंच को नसबंदी से जोड़ दिया। अगर लोगों के दो या तीन से ज़्यादा बच्चे हैं और वे नसबंदी करवाने से इनकार करते थे, तो उन्हें राशन, आवास, नौकरी, स्वास्थ्य सेवा और ऋण देने से मना कर दिया जाता था।
आपातकाल का समापन
आम चुनावों से उत्पन्न राजनीतिक बदलाव के बाद मार्च 1977 में आपातकाल औपचारिक रूप से समाप्त हो गया।
- आपातकाल 21 मार्च 1977 को हटा लिया गया।
- लोकसभा के लिए आम चुनाव 16 से 20 मार्च 1977 के बीच आयोजित किये गये।
- कांग्रेस पार्टी हार गयी और 24 मार्च 1977 को जनता पार्टी ने सरकार बनायी।
- आपातकाल के दौरान सत्ता के दुरुपयोग की जांच के लिए मई 1977 में शाह जांच आयोग का गठन किया गया था।
• 44वां संविधान संशोधन 1978 में अधिनियमित किया गया।
- इसने आपातकाल के लिए “आंतरिक अशांति” के स्थान पर “सशस्त्र विद्रोह” को बनाया।
- इसने न्यायिक समीक्षा को भी बहाल किया तथा भविष्य की उद्घोषणाओं के लिए कानूनी सुरक्षा उपाय भी प्रस्तुत किये।
शाह जांच आयोग
मार्च 1977 में आपातकाल समाप्त होने के बाद सरकार ने इसके प्रभाव और इस अवधि के दौरान की गई कार्रवाइयों की जांच के लिए एक आयोग नियुक्त किया।
- शाह जांच आयोग की स्थापना मई 1977 में की गई, जिसकी अध्यक्षता भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.सी. शाह ने की थी।
- इसका अधिदेश 25 जून 1975 और 21 मार्च 1977 के बीच हुई ज्यादतियों की जांच करना था।
- आयोग ने सरकारी शक्ति के दुरुपयोग, निवारक नजरबंदी, प्रेस सेंसरशिप और नसबंदी अभियान की जांच की।
- इसने सार्वजनिक सुनवाई, गवाहियों और आधिकारिक अभिलेखों के जरिए साक्ष्य एकत्र किए।
- आयोग ने 1978 और 1979 के बीच तीन रिपोर्टें प्रस्तुत कीं।
प्रमुख निष्कर्ष:
- हिरासत: 1 जनवरी 1975 तक, भारतीय जेलों में 1,83,369 कैदियों की क्षमता के मुकाबले 2,20,146 कैदी थे। इनमें से 1,26,772 विचाराधीन कैदी थे।
- नसबंदी अभियान: आपातकाल के दौरान देशभर में 1.07 करोड़ से ज़्यादा नसबंदी की गईं। इनमें अविवाहित व्यक्तियों से जुड़ी 548 शिकायतें और नसबंकदी ऑपरेशन से जुड़ी 1,774 मौतें शामिल थीं।
- जबरन सेवानिवृत्ति: इस अवधि के दौरान 25,962 सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को समय से पहले सेवानिवृत्त कर दिया गया।
- प्रेस पर पाबंदी: सेंसरशिप लागू होने के शुरुआती दिनों में दिल्ली में समाचार पत्रों के कार्यालयों की बिजली आपूर्ति काट दी गई थी।
- विषय-वस्तु पर नियंत्रण: संसदीय और न्यायिक कार्यवाही पर सेंसरशिप लगा दी गई। न्यायालय के फैसलों को उनके प्रकाशित रूप में संपादित या नियंत्रित किया गया।
- मीडिया वर्गीकरण: समाचार पत्रों को उनके संपादकीय रुख और कवरेज के आधार पर 'मित्रवत', 'तटस्थ' या 'शत्रुतापूर्ण' के रूप में लेबल किया गया था।
निष्कर्ष
जून 1975 से मार्च 1977 तक आपातकाल ने भारत की संवैधानिक, कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। मौलिक अधिकारों को निलंबित किया गया, निवारक हिरासत को बढ़ाया गया और मीडिया पर पाबंदी लगाई गई। संवैधानिक संशोधनों ने संस्थागत शक्तियों को बदल दिया। इस दौरान बड़े पैमाने पर नसबंदी कार्यक्रम लागू किया गया। इसे वापस लेने के बाद एक जांच बैठाई गई तथा आपातकालीन शक्तियों के भविष्य में उपयोग को विनियमित करने के लिए कानूनी प्रावधानों में संशोधन किया गया।
स्रोत: पीआईबी अभिलेखागार, शाह जांच आयोग (तीसरी और अंतिम रिपोर्ट)
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