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अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
Posted On: 15 AUG 2025 12:53 AM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 15 अगस्त, 2025 को स्वतंत्रता दिवस समारोह पर उद्धबोधन:
- प्रत्येक देशवासी अंतरिक्ष क्षेत्र का कमाल देखकर गर्वित हो रहा है। हमारे ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला स्पेस स्टेशन से लौट चुके हैं।
- हम अपने दम पर गगनयान की तैयारी कर रहे हैं। हम अपने बलबूते पर स्पेस स्टेशन बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
- मुझे बहुत गर्व हो रहा है कि देश के 300 से अधिक स्टार्टअप स्पेस के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन स्टार्टअप्स में हजारों नौजवान पूरे सामर्थ्य के साथ जुटे हैं।
प्रस्तावना
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेतृत्व में, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने देश को वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया है। 1975 में भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट के ऐतिहासिक प्रक्षेपण से लेकर, देश ने पीएसएलवी के ज़रिए लागत-प्रभावी उपग्रह प्रक्षेपणों में अग्रणी भूमिका निभाई है, और 400 से अधिक विदेशी उपग्रहों को कक्षा में पहुँचाया है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक अहम मोड़ 2014 में प्रमुख अंतरिक्ष सुधारों की शुरुआत के साथ आया। सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए खोलने के मकसद से कई नीतिगत बदलाव शुरू किए हैं। ये सुधार क्रांतिकारी बदलाव साबित हुए हैं, जिन्होंने भारत की अंतरिक्ष क्षमता को उजागर किया है और भारत के लिए एक बड़ी छलांग के लिए एक मंच तैयार किया है।
बीएचईएल, एचएएल और बीईएल जैसे सार्वजनिक उपक्रम, भारत के अंतरिक्ष अभियानों के लिए विभिन्न कारकों और बुनियादी ढाँचे के विकास में अहम भूमिका निभा रहे हैं और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे रहे हैं, जबकि निजी कंपनियाँ और स्टार्ट-अप प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में उभर रहे हैं।

प्रमुख उपलब्धियाँ
प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), इस बदलावों की इस श्रंखला में अग्रणी रही है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता की सफलता की कहानी इसरो से आगे तक फैली हुई है।
• निसार (2025)
- निसार अपनी तरह का पहला मिशन है, जिसे इसरो और नासा ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। इस उपग्रह को 30 जुलाई 2025 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था।
o निसार मिशन का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी और भारतीय विज्ञान समुदायों के साझा हित वाले क्षेत्रों में भूमि और बर्फ के विरूपण, भूमि पारिस्थितिकी तंत्र और समुद्री क्षेत्रों का अध्ययन करना है।
o यह मिशन नासा और इसरो के बीच पहला संयुक्त पृथ्वी अवलोकन सहयोग है, जिसे जीएसएलवी-एफ16 के ज़रिए प्रक्षेपित किया जाएगा, जो पृथ्वी की भूमि और बर्फ से ढकी सतहों की सभी मौसमों में, दिन-रात की तस्वीरें प्रदान करेगा।
• एक्सिओम-4 मिशन (2025)
- एक्सिओम मिशन 4 ने भारत, पोलैंड और हंगरी के लिए, मानव अंतरिक्ष उड़ान को मुमकिन बनाया है, और यह 40 से अधिक सालों में हर देश की पहली सरकारी प्रायोजित उड़ान है। हालाँकि एक्स-4, इन देशों के इतिहास में दूसरा मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन है, लेकिन यह पहली बार है जब तीनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर किसी मिशन को अंजाम दिया है।
- आईएसएस पर सूक्ष्म शैवाल, बीज अंकुरण, टार्डिग्रेड्स, पेशी कोशिका पुनर्जनन, सायनोबैक्टीरिया वृद्धि, मानव-उपकरण संपर्क और सूक्ष्मगुरुत्व के संपर्क में आने वाले फसल के बीजों पर किए गए प्रयोग आगे बढ़ चुके हैं या समाप्त हो चुके हैं, और नमूने मिशन के बाद के विश्लेषण के लिए वापस भेज दिए गए हैं।
• अंतरिक्ष डॉकिंग और सर्विसिंग (स्पेडेक्स) - 2025
- स्पेडेक्स ने डॉकिंग, अनडॉकिंग, ईंधन भरने और पेलोड स्थानांतरण में भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया, जो एक आत्मनिर्भर अंतरिक्ष स्टेशन के लिए ज़रुरी है।
- 16 जनवरी 2025 को भारत, निम्न पृथ्वी कक्षा (एलईओ) में उपग्रह डॉकिंग प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा करने वाला चौथा देश बन गया।
- एक अत्यंत जटिल प्रक्रिया के तहत, 20 किलोग्राम के दो उपग्रह, जो शुरू में 11 से 12 किमी की दूरी पर एक-दूसरे से अलग हुए थे, सटीक नियंत्रण और माप के बाद डॉक किए गए।
o मार्च 2025 से शुरू होकर, इस प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए प्रयोगों की एक श्रृंखला आयोजित की जाएगी।
- इसके अलावा, पाँच-मॉड्यूल वाले अंतरिक्ष स्टेशन के विकास को मंज़ूरी मिल गई है, जिसका पहला मॉड्यूल 2028 में लॉन्च होने वाला है।
• चंद्रयान-3 (2023)
- 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया गया चंद्रयान-3, भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि साबित हुआ, क्योंकि यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक उतरा।
- इस मिशन ने भारत को इस क्षेत्र में सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश बना दिया, जो अपने स्थायी रूप से छायादार क्रेटरों, जिनमें पानी की बर्फ हो सकती है, के कारण वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत अहमियत रखते है।
- चंद्रयान-3 ने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बनाया और चंद्रमा की मिट्टी और पर्यावरण के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाया।
• आदित्य एल-1: भारत का पहला सौर मिशन (2023)
- इसका उद्देश्य सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है, जो पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है।
- फरवरी 2025 में, आदित्य-एल1 पर लगे सौर पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) ने, निचले सौर वायुमंडल, अर्थात् प्रकाशमंडल और वर्णमंडल में एक शक्तिशाली सौर ज्वाला 'कर्नेल' का अभूतपूर्व दृश्य कैद किया।
• नाविक (2023)
- भारतीय तारामंडल के साथ नेविगेशन, भारत की तकनीकी दक्षता के मुकुट में एक शानदार रत्न है। नाविक प्रणाली मुख्य रूप से नेविगेशन और स्थिति निर्धारण के लिए आईआरएनएसएस (भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली) संकेतों का उपयोग करती है।
- नाविक भारत की आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, जो उपग्रह नेविगेशन की दुनिया में खूबसूरती से चमक रहा है, और अब स्वदेश निर्मित नाविक सक्षम चिपसेट, इसे वास्तव में 'मेड इन इंडिया' का रत्न बना देंगे।
- 7 अगस्त 2025 तक, 11 उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया जा चुका है। वर्तमान में चार उपग्रह पीएनटी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, चार उपग्रहों का उपयोग एकतरफ़ा संदेश प्रसारण के लिए किया जा रहा है, और एक उपग्रह अपनी सेवा समाप्ति के बाद सेवामुक्त हो गया है।
- एनवीएस-03 को 2025 के अंत तक प्रक्षेपित करने की योजना है। इसके बाद, छह महीने के अंतराल पर, एनवीएस-04 और एनवीएस-05 को प्रक्षेपित करने की योजना है।
• पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों की ईओएस श्रृंखला (2021-2024)
- इसरो के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह 'ईओएस-08' को अगस्त 2024 में लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी)-डी3 द्वारा प्रक्षेपित किया गया था।
- ईओएस-08 मिशन के प्राथमिक उद्देश्यों में एक सूक्ष्म उपग्रह का डिज़ाइन और विकास, सूक्ष्म उपग्रह बस के अनुकूल पेलोड उपकरण बनाना और भविष्य के परिचालन उपग्रहों के लिए ज़रुरी नई तकनीकों को शामिल करना शामिल है।
- कृषि, वानिकी, आपदा प्रबंधन और महासागर अध्ययन के लिए बहु प्रक्षेपण (ईओएस-01, ईओएस-03, ईओएस-04, ईओएस-06, ईओएस-08)।

• चंद्रयान-2 (2019)
- 22 जुलाई 2019 को प्रक्षेपित, चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल थे।
- हालाँकि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हुई, लेकिन वैज्ञानिक डेटा संग्रह और तकनीकी प्रगति के मामले में यह मिशन सफल रहा।
o इस मिशन ने भारत की चंद्र क्षमताओं और वैज्ञानिक अनुसंधान का विस्तार किया।
• मंगलयान (2014)
o इसरो मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान भेजने वाली चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गई है।
o मंगलयान अंतरिक्ष यान ने 23 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया, जिससे इसरो ऐसा करने वाला पहला एशियाई और दुनिया का चौथा देश बन गया और इसने यह उपलब्धि अद्वितीय लागत-प्रभावशीलता के साथ हासिल की।
आगे की राह
गगनयान कार्यक्रम
गगनयान कार्यक्रम को लगभग 20,193 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ स्वीकृत किया गया था। यह भारत की पहली स्वदेशी मानव अंतरिक्ष उड़ान पहल है। इसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) में भेजना है।
गगनयान मिशन की वर्तमान स्थिति और प्रमुख तकनीकी प्रगति इस प्रकार है:
o मानव-आधारित प्रक्षेपण यान (एचएलवीएम3): विकास और भू-परीक्षण पूरा हो गया है।
o कक्षीय मॉड्यूल: क्रू मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल के लिए प्रणोदन प्रणालियाँ विकसित हो गईं हैं और उनका परीक्षण कर लिया गया है। ईसीएलएसएस इंजीनियरिंग मॉडल साकार हुआ है।
o क्रू एस्केप सिस्टम (सीइएस): 5 प्रकार की मोटरें विकसित की गईं और उनका गतिहीन परीक्षण किया गया है।
o बुनियादी ढाँचा स्थापित: कक्षीय मॉड्यूल तैयारी सुविधा, गगनयान नियंत्रण केंद्र, गगनयान नियंत्रण सुविधा, चालक दल प्रशिक्षण सुविधा, द्वितीय प्रक्षेपण पैड संशोधन।
o पूर्ववर्ती मिशन: सीईएस के सत्यापन के लिए एक परीक्षण वाहन विकसित किया गया और टीवी-डी1 में उड़ान परीक्षण किया गया। टीवी-डी2 और आईएडीटी-01 के लिए गतिविधियाँ प्रगति पर हैं।
o उड़ान संचालन और संचार नेटवर्क: ग्राउंड नेटवर्क कॉन्फ़िगरेशन को अंतिम रूप दिया गया। आईडीआरएसएस-1 फीडर स्टेशन और स्थलीय संपर्क स्थापित किए गए।
o चालक दल पुनर्प्राप्ति संचालन: पुनर्प्राप्ति परिसंपत्तियों को अंतिम रूप दिया गया। पुनर्प्राप्ति योजना तैयार की गई।
o सेवा मॉड्यूल प्रणोदन प्रणाली (एसएमपीएस): योग्यता परीक्षण कार्यक्रम सहित विकास कार्य पूरा हुआ।
o पहला मानवरहित मिशन (जी1): सी32-जी चरण और सीईएस मोटर्स का काम पूरा हो गया है। एचएस200 मोटर्स और सीईएस फ़ोर का काम क्रू मॉड्यूल जेटिसनिंग मोटर के साथ किया जा रहा है। क्रू मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल संरचना का काम हो गया है। क्रू मॉड्यूल चरण-1 की जाँच पूरी हो गई है।
लक्षित तिथियाँ इस प्रकार हैं:
o दूसरा परीक्षण वाहन मिशन (टीवी-डी2) – 2025 की तीसरी तिमाही में।
o गगनयान मिशन के तहत पहली मानवरहित कक्षीय उड़ान - 2025 की चौथी तिमाही।
o दूसरी और तीसरी मानवरहित कक्षीय उड़ान (जी2 और जी3)- 2026
अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी)
पिछले उपभोजित प्रक्षेपण यानों, जिन्हें एकल उपयोग के लिए डिज़ाइन किया गया था, उनके विपरीत, यह नया वाहन एक अनोखी विशेषता, पहले चरण में पुनर्प्राप्ति और दोबारा उपयोग किए जाने की खासियत रखता है। विकासाधीन अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान की एलईओ तक की पेलोड क्षमता 30,000 किलोग्राम होगी, जो एसएलवी3 की तुलना में 1,000 गुना अधिक है।
चंद्रयान-4
o चंद्रयान-3 की सफलता के आधार पर, चंद्रयान-4 में 9,200 किलोग्राम का उपग्रह होगा। इस मिशन में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर नमूना संग्रह और आगे के प्रयोग शामिल होंगे।
o चंद्रयान-4 में सटीक स्थल और डॉकिंग सिस्टम, नेविगेशन और एटीट्यूड कंट्रोल, रोबोटिक ड्रिल और स्कूप, रोबोटिक आर्म, स्वायत्त असेंट प्रणाली, हीट शील्ड और चंद्र नमूना वापसी के लिए धीमी प्रणाली का उपयोग किया जाएगा।
o मिशन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सिमुलेशन, ग्राउंड टेस्ट और समीक्षा के लिए तंत्र।
o मिशन की जटिलता और इसका पैमाना, भारत की बढ़ती चंद्र अन्वेषण क्षमताओं को उजागर करता है, जिसमें चार मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में जाएँगे और दो सतह पर उतरेंगे।
- में निम्नलिखित मिशनों की योजना बनाई गई है:
- टीवी-डी2 मिशन: दूसरा परीक्षण यान मिशन, एक निरस्त परिदृश्य का अनुकरण करते हुए, गगनयान क्रू एस्केप सिस्टम का प्रदर्शन करेगा। क्रू मॉड्यूल समुद्र में स्पलैशडाउन से पहले थ्रस्टर्स और पैराशूट का उपयोग करके अलग हो जाएगा और नीचे उतरेगा, जिसके बाद पुनर्प्राप्ति ऑपरेशन होंगे।
- एलवीएम3-एम5/ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 मिशन: एनएसआईएल के साथ समझौते के तहत, एएसटी स्पेसमोबाइल इंक., यूएसए द्वारा ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 उपग्रहों का एक वाणिज्यिक प्रक्षेपण।
इसरो संचार, नेविगेशन, आपदा न्यूनीकरण और संसाधनों की निगरानी के लिए उपग्रहों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। कुल मिलाकर प्रयोगों के लिए एक अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्रमा पर भारतीयों को उतारने सहित अंतरग्रहीय अन्वेषण के लिए एक प्रवेश द्वार का निर्माण करना एक प्रमुख लक्ष्य है।
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति, इसरो द्वारा संचालित, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और निजी नवप्रवर्तकों द्वारा समर्थित, तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक एकीकृत राष्ट्रीय प्रयास को दर्शाती है। विश्वस्तरीय अंतरिक्ष प्रणालियों को स्वदेशी रूप से डिज़ाइन, विकसित और तैनात करके, राष्ट्र न केवल अपनी रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित कर रहा है, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में अपना गौरवपूर्ण स्थान भी मज़बूत कर रहा है, जो आत्मनिर्भर भारत की सच्ची भावना को साकार करता है।
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