Farmer's Welfare
जनता के हाथों में शक्ति
भारत में सहकारी समितियों की त्वरित उन्नति और उनमें हो रहे बदलाव
Posted On: 25 JUL 2025 9:12AM
“भारत के लिए, सहकारी समितियाँ संस्कृति का आधार हैं, जीवन शैली हैं।
भारत अपनी भावी प्रगति में सहकारी समितियों की बड़ी भूमिका देखता है।”
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
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मुख्य बिंदु
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• भारत में 30 क्षेत्रों में 8.44 लाख से अधिक सहकारी समितियाँ हैं, जो ग्रामीण ऋण, रोज़गार और आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रही हैं।
• सहकारी समितियों को कुशल, डिजिटल और आपदा-प्रतिरोधी समितियों में बदलने के लिए 22 जुलाई, 2025 तक 73,492 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) के कम्प्यूटरीकरण के प्रस्तावों को मंज़ूरी दी गई है और 59,920 पीएसीएस को एकीकृत ईआरपी प्लेटफ़ॉर्म पर जोड़ा गया है।
• एक ही प्लेटफ़ॉर्म से विविध ग्रामीण सेवाएँ प्रदान करने के लिए 22 जुलाई, 2025 तक 23,173 नई बहुउद्देशीय पीएसीएस, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियाँ पंजीकृत की गई हैं।
• जेम पर, 667 सहकारी समितियों को खरीदार के रूप में पंजीकृत किया गया है और 31 मार्च, 2025 तक सहकारी समितियों द्वारा 319.02 करोड़ रुपये के 2,986 लेनदेन हुए हैं।
• राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (एनसीईएल) ने 8,863 पीएसीएस /सहकारी समितियों को शामिल किया है, जिनके माध्यम से 27 देशों को 5,239.5 करोड़ रुपये मूल्य की कृषि वस्तुओं का सफलतापूर्वक निर्यात किया गया है।
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भारत अपनी सहकारिता की संस्कृति के पुनरुत्थान का साक्षी बन रहा है, जिसमें जमीनी स्तर की समितियाँ सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण और समावेशी विकास के शक्तिशाली इंजन के रूप में उभर रही हैं। भारत में सहकारी समितियों की परिवर्तनकारी शक्ति का उल्लेखनीय उदाहरण राजस्थान की बोरखेड़ा ग्राम सेवा सहकारी समिति है। वर्ष 1954 में केवल 15 सदस्यों और मात्र 30 रुपये के शेयर के साथ स्थापित यह समिति आज 8,299 से अधिक सदस्यों और 107.54 लाख रुपये के शेयर के साथ एक संपन्न समिति के रूप में विकसित हो चुकी है - जिनमें से 70 प्रतिशत से अधिक हाशिए के समुदायों से हैं। बीते दशकों में यह कृषि के मूलभूत स्वरूप से आगे बढ़ते हुए काफी विकसित हो चुकी है। अब यह तीन शाखाओं के साथ एक मिनी बैंक का संचालन करती है और अकेले 2018-19 में इसने 4.55 करोड़ रुपये की जमा राशि जुटाई। इसका ई-मित्र प्लस सेंटर बीमा और आधार-लिंक्ड सुविधाओं से लेकर जाति और आय प्रमाण पत्र और उपयोगिता बिल भुगतान तक की महत्वपूर्ण नागरिक सेवाएँ प्रदान करता है। इस सहकारी समिति को एनसीडीसी राष्ट्रीय सहकारी उत्कृष्टता पुरस्कार (2010) और एनसीडीसी क्षेत्रीय पुरस्कार (2018) से सम्मानित किया जा चुका है। यह बदलाव कोई अकेला मामला नहीं है—बल्कि यह सहकारी क्षेत्र को पुनर्जीवित करने की एक राष्ट्रव्यापी मुहिम का हिस्सा है।
वर्तमान में, भारत में 8.44 लाख से अधिक सहकारी समितियां हैं, जो ऋण, आवास, विपणन, डेयरी, मत्स्य पालन आदि सहित 30 क्षेत्रों में फैली हैं - और ग्रामीण ऋण, स्वरोजगार और सामूहिक आर्थिक मजबूती की दिशा में आवश्यक साधन के तौर पर कार्य कर रही हैं।
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भारत में सहकारी समितियों की त्वरित उन्नति
8.44 लाख सहकारी समितियां
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30 क्षेत्र
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73,492 पीएसीएस के कम्प्यूटरीकरण के प्रस्ताव
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जेम पर 667 सहकारी समितियाँ खरीदार के रूप में पंजीकृत
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59,920 पीएसीएस को एकीकृत ईआरपी प्लेटफ़ॉर्म पर जोड़ा गया
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जेम पर सहकारी समितियों द्वारा 319.02 करोड़ रुपये के 2,986 लेनदेन
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23,173 नई बहुउद्देशीय पीएसीएस, सहकारी समितियाँ पंजीकृत
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एनसीईएल ने 8,863 पीएसीएस /सहकारी समितियों को शामिल किया है, 27 देशों को 5,239.5 करोड़ रुपये मूल्य की कृषि वस्तुओं का सफल निर्यात किया है
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स्रोत – सहकारिता मंत्रालय

और तो और विकास की इस गति की छाप गुजरात के बच्चों में भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रही है। साबरकांठा की बाल गोपाल बचत एवं ऋण सहकारी समिति, भारत की एकमात्र ऐसी सहकारी समिति है, जो विशेष रूप से 0-18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए है। इस अनूठे “बाल बचत संस्कार” मॉडल के माध्यम से, बच्चों को सेविंग बॉक्स दिए जाते हैं और उनमें जमा हुई राशि हर महीने उनके बैंक खातों में 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर जमा की जाती है। मार्च 2024 तक, 335 गाँवों के 19,020 बाल सदस्यों ने 17.47 करोड़ रुपये की बचत की है। यह सहकारी समिति सदस्य बच्चे के अभिभावक को स्व-गारंटीकृत ऋण और बच्चे की उच्च शिक्षा के लिए संपत्ति पर ऋण भी प्रदान करती है। कुल 1,070 बच्चों के अभिभावकों को ऋण दिए गए हैं और कुल 5,370 बच्चों को वित्तीय परामर्श दिया गया है।

परिवर्तन की यह लहर 2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना के साथ शुरू हुई। मात्र चार वर्षों में, इसने सहकारी समितियों का आधुनिकीकरण, डिजिटलीकरण करने और उनमें विविधता लाने के लिए 61 सुविचारित पहल शुरू की हैं। सबसे परिवर्तनकारी पहलों में 73,492 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) के कम्प्यूटरीकरण के प्रस्ताव को मंज़ूरी, 59,920 पीएसीएस को (22 जुलाई, 2025 तक) एकीकृत उद्यम संसाधन नियोजन (ईआरपी) प्लेटफ़ॉर्म से जोड़ना और नए उप-नियमों के तहत बहुउद्देशीय सहकारी मॉडलों की औपचारिक शुरुआत शामिल है।
तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में, अरकंदनल्लूर पीएसीएस डिजिटल तैयारी का एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती है। जब विनाशकारी बाढ़ ने इसके भौतिक ढाँचे और कागजी दस्तावेजों को नष्ट कर दिया, तो समिति द्वारा पीएसीएस कम्प्यूटरीकरण और क्लाउड-बेस्ड स्टोरेज को पहले से अपना लिए जाने की बदौलत शीघ्रता से पुनर्निर्माण संभव हो सका। कर्मचारियों ने सदस्यों और लेन-देन के डेटा को दूरस्थ रूप से एक्सेस किया, और न्यूनतम व्यवधान के बाद सेवाएँ शीघ्रता से फिर से शुरू हो गईं। तभी से यह मामला आपदा-प्रतिरोधी सहकारी डिज़ाइन का एक आदर्श बन गया है। इसी से मिलता-जुलता मामला महाराष्ट्र की खरसाई विविध कार्यकारी सोसाइटी का भी है। पहले की अकुशलताओं और कागजी लेखांकन के बोझ तले दबी, इस समिति ने पीएसीएस कम्प्यूटरीकरण कार्यक्रम के तहत पूर्ण रूप से ईआरपी सिस्टम को अपना लिया। तब से, इसके प्रदर्शन में सटीकता, पारदर्शिता, गति और सदस्यों की संतुष्टि—सभी मानदंडों पर सुधार हुआ है। अब यह इस बात का एक आदर्श उदाहरण है कि डिजिटल युग में सहकारी समितियाँ कैसे फल-फूल सकती हैं।
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सरकार की रणनीति में बड़े पैमाने का विस्तार भी शामिल है। 22 जुलाई, 2025 तक, 23,173 नई बहुउद्देशीय पीएसीएस, डेयरी और मत्स्य पालन सहकारी समितियाँ पंजीकृत हो चुकी हैं। इन पीएसीएस को एकल ईआरपी-आधारित डिजिटल आर्किटेक्चर के आधार पर अनाज भंडारण, उर्वरक और बीज वितरण, एलपीजी और पेट्रोल पंप, और जन औषधि केंद्रों को संभालने के लिए डिज़ाइन किया जा रहा है।
विज़न स्पष्ट है: प्रत्येक गांव में एक सहकारी समिति , जो बहु-सेवा केन्द्र के रूप में कार्य करेगी।
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यह डिजिटल बदलाव केवल वित्त तक ही सीमित नहीं है। 31 मार्च, 2025 तक, 667 सहकारी समितियाँ सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) पर खरीदार के रूप में पंजीकृत हो चुकी थीं । राष्ट्रीय बाज़ारों तक ग्रामीण कारीगरों की पहुँच बढ़ाने के लिए इन सहकारी समितियों को विक्रेता के रूप में भी शामिल करने के प्रयास किए जा रहे हैं। 31 मार्च, 2025 तक, इन सहकारी समितियों द्वारा 319.02 करोड़ रुपये के 2,986 लेनदेन हो चुके थे।
डिजिटल से स्थिरता का रुख करें, तो गुजरात के खेड़ा ज़िले की ढुंडी सौर ऊर्जा उत्पादक सहकारी समिति इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है। टाटा कंसल्टिंग और आईडब्ल्यूएमआई के सहयोग से पंजीकृत, यह भारत की पहली सहकारी सौर ऊर्जा समिति है। 12 में से 9 किसान-सदस्यों के खेतों में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर सिंचाई करने और अतिरिक्त ऊर्जा राज्य ग्रिड को बेचने के लिए सौर पैनल लगाए गए हैं। दो वर्षों में, उन्होंने हरित ऊर्जा के माध्यम से 8 लाख रुपये अर्जित किए हैं, जिससे डीज़ल पर निर्भरता कम हुई है और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा मिला है।
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भारत में सहकारी समितियाँ तेज़ी से स्थानीय सामुदायिक केंद्रों के रूप में काम कर रही हैं, जो वित्तीय सेवाओं, शैक्षिक विकास, कल्याणकारी योजनाओं, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और आवश्यक उपयोगिताओं के लिए एक एकीकृत मंच प्रदान करती हैं—जिससे जमीनी स्तर पर समावेशी विकास को बढ़ावा मिलता है। पश्चिम बंगाल की कहानियाँ इस राष्ट्रव्यापी गति को और सुदृढ़ता भी प्रदान करती हैं।
 
मधुसूदनकाटी कृषि ऋण समिति (एसकेयूएस) बुनियादी कृषि ऋण से आगे बढ़कर पूर्ण-सेवा प्रदाता बहुउद्देशीय पीएसीएस बन गई है। यह किसान क्रेडिट कार्ड और स्वयं सहायता समूह ऋण प्रदान करती है, इफको और बेनफेड उत्पादों सहित उर्वरकों और कीटनाशकों के खुदरा और थोक विक्रेता के रूप में कार्य करती है। यह समिति एक कस्टम हायरिंग सेंटर, ग्रामीण जल परियोजना, कृषि उपज खरीद केंद्र और उपभोक्ता वस्तुओं की दुकानें भी चलाती है। अपनी आर्थिक गतिविधियों के अलावा, यह स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन और एक चिकित्सा केंद्र, बाल उद्यान और सामुदायिक केंद्र का संचालन करके सामाजिक कल्याण में सक्रिय रूप से योगदान देती है। इसी प्रकार, मुराकाटा समाबे कृषि उन्नयन समिति (एसकेयूएस) की शुरुआत 45 सदस्यों से हुई थी और 2022 तक यह संख्या बढ़कर 1,603 सदस्य हो गई। शुरुआत में यह एक गैर-जमा ऋण समिति के रूप में काम करती थी, अब जमा सुविधाओं सहित समग्र बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करती है। यह समिति स्थानीय किसानों को किफायती दरों पर कस्टम हायरिंग सेंटर सेवाएँ प्रदान करती है। अधिकांशतः वनाच्छादित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को कवर करते हुए यह मुख्य रूप से कृषि-आधारित समुदाय को सेवाएं प्रदान करती है। पहले एकल फसल की खेती तक सीमित रहने वाले स्थानीय किसान अब केसीसी ऋण, फसल बीमा और किफायती कटाई सेवाओं तक व्यापक पहुंच से लाभान्वित हो रहे हैं, जिससे साल भर खेती संभव हो रही है।
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जम्मू और कश्मीर के पुंछ ज़िले में, गोल्ड एमपीसीएस लिमिटेड को उसकी व्यापक ग्रामीण सेवाओं के लिए जाना जाता है। यह फसल ऋण, बीमा, पीएम सूर्य घर योजना की सुविधा प्रदान करती है और एक कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) के रूप में कार्य करती है। वित्त वर्ष 2023-24 में, इस समिति के सीएससी ने 641 लेनदेन पूरे किए, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 (11 नवंबर, 2024 तक) में 1,852 लेनदेन दर्ज किए गए, जो इसकी बढ़ती लोकप्रियता और उपयोगिता को दर्शाता है। पिछले छह महीनों में, सीएससी के माध्यम से 9.16 लाख रुपये मूल्य के लेनदेन किए गए—जिससे नागरिकों को पैन कार्ड बनवाने, बीमा और बिल भुगतान में मदद मिली। इसी प्रकार, किश्तवाड़ (जम्मू और कश्मीर) में, अथोली बहुउद्देशीय सहकारी समिति स्थानीय समुदाय के लिए जीवन रेखा का काम करती है। आदर्श उपनियमों के तहत संचालित, यह समिति एक जन औषधि केंद्र चलाती है और सीएससी सेवाएँ प्रदान करती है और आंगनवाड़ी केंद्रों को पोषण संबंधी आपूर्ति प्रदान करती है। वित्त वर्ष 2024-25 में इसका कारोबार 18.66 लाख रुपये था, जो समाज में इसकी बढ़ती व्यावसायिक सफलता और प्रभाव को दर्शाता है।
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भारत के सहकारी सुधारों ने राष्ट्रीय स्तर पर भी आकार लिया है। सहकारी समितियों को बाज़ारों तक पहुँच, ब्रांडिंग और निर्यात क्षमता प्रदान करने के लिए 2023 में, तीन बहु-राज्य सहकारी समितियों का गठन किया गया:
• राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (एनसीईएल)
• राष्ट्रीय सहकारी ऑर्गेनिक्स लिमिटेड (एनसीओएल)
• भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड (बीबीएसएसएल)
31 मार्च 2025 तक, एनसीईएल ने सामूहिक निर्यात की सुविधा के लिए पहले ही 8,863 पीएसीएस/सहकारी समितियों को शामिल कर लिया है। इसके अलावा, एनसीईएल ने चावल, गेहूं, मक्का, चीनी, प्याज और जीरा सहित लगभग 13.08 एलएमटी कृषि वस्तुओं का सफलतापूर्वक निर्यात किया है, जिनका मूल्य 27 देशों में 5,239.5 करोड़ रुपये है। यद्यपि 5,185 पीएसीएस/सहकारी समितियां एनसीओएल की सदस्य बन गई हैं। एनसीओएल ने 'भारत ऑर्गेनिक्स ब्रांड' के तहत लगभग 167.1 लाख रुपये के 21 उत्पाद लॉन्च किए हैं। एनसीओएल ने 10 राज्यों में नोडल एजेंसियों के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर भी हस्ताक्षर किए हैं। दूसरी ओर, 19,171 पीएसीएस/सहकारी समितियां बीबीएसएसएल की सदस्य बन गई हैं। बीबीएसएसएल को 13 राज्यों में बीज लाइसेंस प्रदान किया गया है।
मंत्रालय ने इस परिवर्तन को और तेज़ करने के लिए हाल ही में 24 जुलाई, 2025 को एक नई राष्ट्रीय सहकारी नीति शुरू की है। राष्ट्रीय सहकारी नीति का उद्देश्य सहकारी संस्थाओं को समावेशी बनाना, उन्हें पेशेवर रूप से प्रबंधित करना, उन्हें भविष्य के लिए तैयार करना और विशेष रूप से ग्रामीण भारत में बड़े पैमाने पर रोज़गार और आजीविका के अवसर पैदा करने में सक्षम बनाना है। नई सहकारी नीति 2025-45 तक यानी अगले दो दशकों के लिए भारत के सहकारी आंदोलन में एक मील का पत्थर साबित होगी। नई नीति "सहकार-से-समृद्धि" के विज़न को प्राप्त करने का रोडमैप तैयार करेगी और 2047 तक भारत के "आत्मनिर्भर" और "विकसित" बनने की सामूहिक महत्वाकांक्षा में योगदान देगी।
नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति
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नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति का उद्देश्य
- "सहकार-से-समृद्धि" के विज़न को बढ़ावा देना
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था की प्रगति की रफ्तार में तेजी लाना
- रोज़गार के अवसरों का बड़े पैमाने पर सृजन करना
- देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूती प्रदान करना
- सहकारिता क्षेत्र को अपना सामर्थ्य हासिल करने में मदद करना
- सहकारिता संस्थाओं के लिए समग्र दृष्टिकोण तैयार करना
- नीतिगत, कानूनी और संस्थागत अवसंरचना तैयार करना
- सहकारिता आधारित विकास मॉडल को बढ़ावा देना
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स्रोत : सहकारिता मंत्रालय

इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के तहत सहकारिता मंत्रालय ने भारतीय सहकारी समितियों को वैश्विक मंच पर स्थापित करने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय कार्य योजना शुरू की है। यह योजना अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों, सर्वोत्तम प्रथाओं के दस्तावेज़ीकरण और डिजिटल पहुँच के माध्यम से भारत के सफल सहकारी मॉडलों—जैसे अमूल, इफको और कृभको—को प्रदर्शित करने पर ध्यान केंद्रित करती है। सरकार सहकारी निर्यात को बढ़ावा देने, सहकारी समितियों के भीतर स्टार्टअप्स को समर्थन देने और देश-व्यापी शिक्षा को सुगम बनाने के लिए भी काम कर रही है। इस पहल का उद्देश्य भारत की जमीनी ताकत और विशाल सदस्यता आधार का लाभ उठाकर सहकारी नवाचार का वैश्विक केंद्र बनाना है।
भारत की कुछ सफलतम सहकारी समितियाँ
सहकारी समितियाँ
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क्षेत्र
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उल्लेखनीय उपलब्धि
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अमूल (जीसीएमएमएफ)
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डयेरी
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भारत की सबसे बड़ी डेयरी सहकारी समिति; जिसने "श्वेत क्रांति" में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया; जिसका कारोबार 7.3 बिलियन से अधिक है।
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इफको
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उर्वरक
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भारत की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारी समिति और प्रति व्यक्ति जीडीपी के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी समिति; 7.3 बिलियन (वित्त वर्ष 23) से अधिक राजस्व सहित इसकी उल्लेखनीय वृद्धि ने इसे फॉर्च्यून इंडिया 500 सूची में स्थान दिलाया।
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कर्नाटक दुग्ध संघ (नंदिनी)
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डयेरी
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भारत में दूसरी सबसे बड़ी डेयरी सहकारी समिति; कर्नाटक में 15 दुग्ध संघों के साथ काम करती है, प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों से दूध खरीदती है; शहरी और ग्रामीण दोनों बाजारों में अपनी सेवाएं देती है, जिससे 1,500 से अधिक सदस्य लाभान्वित होते हैं।
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इंडियन कॉफ़ी हाउस सोसाइटी
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उपभोक्ता/रेस्तरां
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श्रमिक सहकारी समितियों के नेटवर्क द्वारा प्रबंधित; इसके लगभग 400 कॉफी आउटलेट हैं
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उरालुंगल श्रम अनुबंध सहकारी समिति
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श्रम सहकारी समिति
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भारत की सबसे पुरानी श्रम सहकारी समिति; लगभग 1415 व्यक्तियों की सदस्यता के साथ यूएलसीसीएस ने 7500 से अधिक परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा किया है
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भारत में सहकारी समितियों की त्वरित उन्नति अब कोई काल्पनिक आदर्श नहीं रह गया है—यह एक जमीनी, मूलभूत क्रांति है। सहकारी समितियाँ न केवल लोगों को सशक्त बना रही हैं—बल्कि वे समावेशी, लोकतांत्रिक विकास की नए सिरे से परिकल्पना भी कर रही हैं। एक सदी पहले एक जन आंदोलन के रूप में शुरू हुई यह मुहिम अब भारत के न्यायसंगत और समावेशी विकास की कुंजी बन सकती है।
संदर्भ
सहकारिता मंत्रालय
कुरुक्षेत्र पत्रिका : जुलाई 2025 संस्करण (पृष्ठ सं. 22)
https://cooperatives.gov.in/en
https://www.cooperation.gov.in/en/2023-2024
https://x.com/MinOfCooperatn/status/1816337535905550687
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2146772
https://www.cooperation.gov.in/en/major-initiative-of-the-ministry
https://vamnicom.gov.in/uploads/4f51e1ee3035ac8005355277540565be.pdf
https://vamnicom.gov.in/uploads/ebc76414f685d0ee399c9b8f993505d0.pdf
https://www.cooperation.gov.in/sites/default/files/2025-03/IYC%20Annual%20Action%20Plan-English.pdf
पीएम इंडिया
https://www.pmindia.gov.in/en/news_updates/pm-inaugurates-ica-global-cooperative-conference-2024/
गुजरात सरकार
https://rcs.gujarat.gov.in/Home/ICASS
राजस्थान सरकार
https://rajsahakar.rajasthan.gov.in/Content/SuccessStory/Borkheda_Village_Service_Cooperative_Society_Kota.pdf
पश्चिम बंगाल सरकार
https://cooperation.wb.gov.in/assets/pdf/Madhusudankati.pdf
https://cooperation.wb.gov.in/assets/pdf/Murakata-SKUS.pdf
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