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आत्मनिर्भर भारत की एक झलक
मेक इन इंडिया किस प्रकार भारत की वैश्विक फार्मास्युटिकल छवि को बदल रहा है
Posted On: 13 APR 2025 2:49PM
परिचय
रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग, किफायती दवाओं के मूल्य निर्धारण और उपलब्धता, अनुसंधान और विकास तथा अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों से संबंधित मामलों के लिए उत्तरदायी है। भारत को उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण दवाओं का विश्व का सबसे बड़ा प्रदाता बनाने के विजन के साथ, विभाग का प्रयास मेक इन इंडिया पहल के साथ संयोजन करना है। भारतीय दवा उद्योग घरेलू और वैश्विक दोनों बाजारों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली, लागत प्रभावी दवाओं के विनिर्माण में लगातार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और उसका प्रभुत्व ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं, प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण और स्वदेशी ब्रांडों के मजबूत नेटवर्क में बना हुआ है।
भारत पिछले छह से सात वर्षों से यूनिसेफ का सबसे बड़ा वैक्सीन आपूर्तिकर्ता रहा है, जो कुल खरीदी गई मात्रा में 55 प्रतिशत से 60 प्रतिशत योगदान देता है और क्रमशः डीपीटी, बीसीजी और खसरे के टीकों के लिए डब्ल्यूएचओ की मांग का 99 प्रतिशत, 52 प्रतिशत और 45 प्रतिशत योगदान देता है।
भारतीय दवा उद्योग का अवलोकन
चिकित्सा उपकरण
भारत में चिकित्सा उपकरण क्षेत्र भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का, विशेष रूप से सभी चिकित्सा स्थितियों और विकलांगताओं की रोकथाम, निदान, उपचार और प्रबंधन के लिए एक अनिवार्य और अभिन्न अंग है। चिकित्सा उपकरण क्षेत्र एक बहु-विषयक क्षेत्र है। इसके घटक उपकरण श्रेणियां हैं-
- विद्युत-चिकित्सा उपकरण
- प्रत्यारोपण
- उपभोग्य और डिस्पोजेबल
- सर्जिकल उपकरण
- इन विट्रो डायग्नोस्टिक रिएजेंट
चिकित्सा उपकरण उद्योग के कई क्षेत्र अत्यधिक पूंजी केंद्रित हैं, जिनमें लंबी निर्माण अवधि होती है। इनमें नई प्रौद्योगिकियों के निरंतर समावेशन तथा क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकियों के अनुकूल होने के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों के सतत प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
चिकित्सा उपकरणों का निर्यात और आयात
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
औषधि विभाग, औषधि और मेडिटेक कार्यकलापों में सरकारी अनुमोदन के अंतर्गत आने वाले एफडीआई प्रस्तावों पर एफडीआई नीति के अनुसार अनुमोदन या अस्वीकृति के लिए विचार करता है।
एफडीआई प्रवाह (फार्मास्युटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों दोनों) वित्तीय वर्ष 2024-25 में, अप्रैल 2024 से दिसंबर 2024 तक 11,888 करोड़ रुपए रहा।
इसके अतिरिक्त, फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान ब्राउनफील्ड परियोजनाओं के लिए 7,246.40 करोड़ रुपए के 13 एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी दी है।
उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना
भारत सरकार द्वारा 2020 में शुरू की गई उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना एक रूपांतरकारी पहल है जिसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, निवेश आकर्षित करना, आयात पर निर्भरता कम करना और निर्यात बढ़ाना है। आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया पहल के विजन के अनुरूप, यह योजना उत्पादन प्रदर्शन के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है, कंपनियों को परिचालन बढ़ाने, उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
फार्मास्यूटिकल्स के लिए, इस पहल का उद्देश्य की स्टार्टिंग मैटेरियल्स (केएसएम), ड्रग इंटीमीडियट (डीआई) और एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडियंट (एपीआई) पर आयात निर्भरता को कम करना है, जिससे भारत का विनिर्माण आधार मजबूत होगा। उत्पादन और नवोन्मेषण को बढ़ावा देकर, यह घरेलू क्षमताओं और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाता है।
पीएलआई योजनाओं का अवलोकन
विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के लिए भारत सरकार की बड़ी पहल के हिस्से के रूप में फार्मास्यूटिकल्स विभाग तीन पीएलआई योजनाओं का संचालन करता है। इनमें शामिल हैं:
- फार्मास्यूटिकल्स के लिए पीएलआई योजना
- महत्वपूर्ण केएसएम/डीआई/एपीआई के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए पीएलआई योजना
- चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए पीएलआई योजना
फार्मास्यूटिकल्स के लिए पीएलआई योजना
फार्मास्यूटिकल्स के लिए पीएलआई योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 फरवरी 2021 को मंजूरी दी थी, जिसका वित्तीय परिव्यय 15,000 करोड़ रुपए है और उत्पादन अवधि वित्त वर्ष 2022-2023 से वित्त वर्ष 2027-28 तक है, यह तीन श्रेणियों के तहत चिन्हित उत्पादों के विनिर्माण के लिए 55 चयनित आवेदकों को छह साल की अवधि के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। इस योजना के तहत, उच्च मूल्य वाले फार्मास्युटिकल उत्पाद जैसे पेटेंट/पेटेंट रहित दवाएं, बायोफार्मास्युटिकल्स, कॉम्प्लेक्स जेनरिक, कैंसर रोधी दवाएं, ऑटोइम्यून दवाएं आदि का विनिर्माण किया जाता है।
योजना की मुख्य विशेषताएं:
यह योजना तीन श्रेणियों के अंतर्गत औषधीय वस्तुओं के विनिर्माण में सहायता करती है:
- श्रेणी 1: बायोफार्मास्युटिकल्स, जटिल जेनेरिक दवाएं, पेटेंट प्राप्त दवाएं या पेटेंट समाप्ति के निकट पहुंचने वाली दवाएं, जीन थेरेपी दवाएं, दुर्लभ रोगों के उपचार से संबंधित दवाएं और कॉम्पलेक्स एक्सीपिएंट्स।
- श्रेणी 2: एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडियंट (एपीआई), की स्टार्टिंग मैटेरियल्स (केएसएम) और ड्रग इंटीमीडियट (डीआई)।
- श्रेणी 3: पुनःप्रयोजन वाली दवाएं, ऑटोइम्यून दवाएं, कैंसर रोधी दवाएं, मधुमेह रोधी दवाएं, हृदय संबंधी दवाएं और इन-विट्रो डायग्नोस्टिक (आईवीडी) उपकरण।
केएसएम, डीआई और एपीआई के लिए पीएलआई योजना
केएसएम, डीआई और एपीआई के लिए पीएलआई योजना 20 मार्च 2020 को शुरू की गई थी, जिसका वित्तीय परिव्यय वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2029-30 की अवधि के लिए 6,940 करोड़ रुपये है। भारत में महत्वपूर्ण की स्टार्टिंग मैटेरियल्स (केएसएम)/ड्रग इंटीमीडियट और एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडियंट (एपीआई) के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का मुख्य उद्देश्य 41 चिन्हित थोक दवाओं के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है ताकि उनकी उच्च आयात निर्भरता को दूर किया जा सके।
केएसएम, डीआई और एपीआई के लिए पीएलआई योजना के अंतर्गत उपलब्धियां
पीएलआई योजना के तहत एक महत्वपूर्ण उपलब्धि लक्षित निवेश को पार करना है। प्रारंभिक प्रतिबद्धता 3,938.57 करोड़ रुपए थी, वास्तविक प्राप्त निवेश पहले ही 4,253.92 करोड़ रुपए (दिसंबर 2024 तक) तक पहुंच चुका है।
बल्क ड्रग्स के लिए पीएलआई योजना के तहत कुल 48 परियोजनाओं का चयन किया गया है, जिनमें से दिसंबर 2024 तक 25 बल्क ड्रग्स के लिए 34 परियोजनाएं आरंभ कर दी गई हैं।
बल्क दवाओं के लिए पीएलआई योजना के अंतर्गत उल्लेखनीय परियोजनाएं
पेनिसिलिन जी परियोजना (काकीनाडा, आंध्र प्रदेश): 1,910 करोड़ रुपए का निवेश; प्रतिवर्ष 2,700 करोड़ रुपए का आयात प्रतिस्थापन अपेक्षित।
क्लावुलैनिक एसिड परियोजना (नालागढ़, हिमाचल प्रदेश): 450 करोड़ रुपए का निवेश; प्रति वर्ष 600 करोड़ रुपए का आयात प्रतिस्थापन अपेक्षित है।
चिकित्सा उपकरणों के लिए पीएलआई योजना
चिकित्सा उपकरणों के लिए पीएलआई योजना हाई-एंड चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण में सहायता करने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए शुरू की गई थी। यह योजना रेडियोलॉजी, इमेजिंग, कैंसर देखभाल और प्रत्यारोपण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माताओं को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। इस योजना की अवधि वित्तीय वर्ष 2020-21 से वित्तीय वर्ष 2027-28 तक है, जिसका कुल वित्तीय परिव्यय 3,420 करोड़ रुपये है। इस योजना के तहत, चयनित कंपनियों को भारत में विनिर्मित और योजना के लक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले चिकित्सा उपकरणों की वृद्धिशील बिक्री के 5 प्रतिशत की दर से पांच साल की अवधि के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाता है।
आवेदक की श्रेणी
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प्रोत्साहन अवधि
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प्रोत्साहन दर
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श्रेणी ए
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वित्त वर्ष 2022-23 से वित्त वर्ष 2026-27
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प्रति आवेदक 121 करोड़ रुपये तक सीमित 5 प्रतिशत
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श्रेणी बी
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वित्त वर्ष 2022-23 से वित्त वर्ष 2026-27
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प्रति आवेदक 40 करोड़ रुपये तक सीमित 5 प्रतिशत
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योजना के अंतर्गत प्रोत्साहन का विवरण इस प्रकार है:
https://static.pib.gov.in/WriteReadData/specificdocs/documents/2025/jan/doc202516481901.pdf
बल्क ड्रग पार्कों को बढ़ावा देना
मार्च 2020 में स्वीकृत, बल्क ड्रग पार्क योजना (वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2025-26) का उद्देश्य विनिर्माण लागत को कम करने और बल्क ड्रग्स में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए विश्व स्तरीय सामान्य बुनियादी ढांचे वाले पार्क स्थापित करना है। इस योजना के तहत गुजरात, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। वित्तीय सहायता प्रति पार्क 1,000 करोड़ रुपए या परियोजना लागत का 70 प्रतिशत (पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए 90 प्रतिशत) तक सीमित है, जिसका कुल परिव्यय 3,000 करोड़ रुपए है।
प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना
सभी को किफायती मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) का लक्ष्य पूरे भारत में किफायती, गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना है।
इस पहल के अंतर्गत कुछ कार्यकलाप इस प्रकार हैं:
जागरूकता बढ़ाना: जेनेरिक दवाओं के लाभों के बारे में जनता को शिक्षित करना, यह रेखांकित करना कि किफायती होने का अर्थ गुणवत्ता से समझौता करना नहीं है तथा इस धारणा का प्रतिकार करना कि उच्च कीमत का अर्थ बेहतर प्रभावशीलता है।
जेनेरिक दवाओं के प्रेस्क्रिप्शन को प्रोत्साहित करना: विशेष रूप से सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों को निम्न लागत वाली दवाओं को प्रेस्क्राइव करने के लिए प्रेरित करके जेनेरिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देना।
पहुंच में वृद्धि: चिकित्सीय श्रेणियों में आवश्यक जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना, वंचित समुदायों तक पहुँचने पर ध्यान केंद्रित करना।
8 अप्रैल, 2025 तक देश भर में कुल 15,479 जन औषधि केंद्र हैं।
फार्मास्यूटिकल्स उद्योग सुदृढ़ीकरण योजना (एसपीआई स्कीम)
एसपीआई योजना एक केंद्रीय क्षेत्र योजना (सीएसएस) है जिसका परिव्यय 500 करोड़ रुपये है और योजना अवधि वित्त वर्ष 2021-22 से वित्त वर्ष 2025-26 तक है।
निष्कर्ष:
भारत के फार्मास्यूटिकल और मेडिकल डिवाइस सेक्टर विज्ञान, नवोन्मेषण और विनिर्माण में देश की बढ़ती क्षमताओं के प्रमाण हैं। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं और प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) जैसी दूरदर्शी पहलों के माध्यम से, फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने न केवल घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया है, बल्कि किफायती स्वास्थ्य सेवा समाधानों तक समान पहुंच भी सुनिश्चित की है। मेक इन इंडिया विजन के तहत आत्मनिर्भरता के लिए अपनी निरंतर प्रतिबद्धता के साथ, भारत उच्च गुणवत्ता वाली, लागत प्रभावी दवाओं और चिकित्सा प्रौद्योगिकियों के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए तैयार है। इससे उसके नागरिक सशक्त होंगे और वैश्विक स्वास्थ्य परिणामों में उल्लेखनीय योगदान भी प्राप्त होगा।
संदर्भ:
आत्मनिर्भर भारत की एक झलक
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एमजी/केसी/एसकेजे/एसके
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