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“त्रिपुर सुंदरी मंदिर: पूर्वोत्तर में आध्यात्मिक पर्यटन की एक नई सुबह”
Posted On:
21 SEP 2025 3:11PM
“"पूर्वोत्तर विविधताओं से भरे हुए हमारे देश का सबसे विविधतापूर्ण क्षेत्र है। पूर्वोत्तर पर्यटन के लिए एक संपूर्ण पैकेज है।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी - राइजिंग नॉर्थ ईस्ट इन्वेस्टर्स समिट,[1]
मुख्य बिंदु
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- त्रिपुर सुंदरी मंदिर पुनर्विकास – वर्ष 2020-21 में ₹34.43 करोड़ की लागत पर स्वीकृत इस परियोजना ने पवित्र शक्ति पीठ को संरक्षित करते हुए सुविधाओं, कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर को उन्नत किया।
- प्रशाद की पहुंच का विस्तार - इस योजना के तहत 28 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 54 परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें प्रमुख तीर्थस्थलों तथा विरासत स्थलों को विश्व स्तरीय सुविधाओं से समृद्ध किया जा रहा है।
- आस्था और विकास साथ-साथ - प्रधानमंत्री मोदी के "विकास भी, विरासत भी" के विज़न को प्रतिबिंबित करते हुए, PRASHAD विरासत संरक्षण को विकास के साथ जोड़ता है, और उत्तर-पूर्व को आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र बनाता है।
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परिचय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर पर्यटन को विरासत और विकास के बीच एक सेतु के रूप में वर्णित करते रहे हैं, और उनकी नज़र में भारत के विकास में आध्यात्मिक पर्यटन का विशेष स्थान है। तीर्थस्थल केवल आस्था के केंद्र ही नहीं, बल्कि संस्कृति और समुदाय के जीवंत प्रतीक भी हैं, और प्रशाद - तीर्थयात्रा पुनर्जीवन एवं आध्यात्मिक विरासत संवर्धन योजना (PRASHAD - Pilgrimage Rejuvenation and Spiritual, Heritage Augmentation Drive) जैसी पहलों के तहत, इनमें से कई को नया जीवन मिला है। सुविधाओं को बेहतर बनाकर, कनेक्टिविटी में सुधार करके और इन पवित्र स्थलों की पवित्रता को संरक्षित करके सरकार ने आध्यात्मिक यात्राओं को और अधिक संतुष्टिदायक बनाने के साथ-साथ स्थानीय समुदायों में आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देने का प्रयास किया है। यही वह दृष्टिकोण है—जहाँ भक्ति और विकास का मिलन होता है—जिसने देश भर में तीर्थयात्रा के अनुभव को नया रूप दिया है।
इसी विज़न को आगे बढ़ाते हुए, प्रधानमंत्री 22 सितंबर, 2025 को उदयपुर में पुनर्विकसित त्रिपुर सुंदरी मंदिर, जो 51 प्रतिष्ठित शक्तिपीठों[2] में से एक है, का उद्घाटन करने के लिए त्रिपुरा में होंगे। प्राचीनकाल से अपनी पवित्रता और अपार सांस्कृतिक मूल्यों के लिए प्रसिद्ध, त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में एक पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का प्रशाद योजना के तहत आधुनिक सुविधाओं और बेहतर बुनियादी ढाँचे के साथ पुनरुद्धार किया गया है। यह उद्घाटन पूर्वोत्तर के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जिसने त्रिपुरा को भारत के आध्यात्मिक पर्यटन मानचित्र पर मजबूती से स्थापित कर दिया है और इस बात को पुष्ट किया है कि कैसे विरासत-आधारित विकास परंपराओं को संरक्षित करने के साथ-साथ प्रगति को भी प्रेरित कर सकता है।
त्रिपुर सुंदरी मंदिर: राष्ट्रीय महत्व का एक शक्ति पीठ
त्रिपुर सुंदरी मंदिर, जिसे माताबाड़ी के नाम से भी जाना जाता है, पूर्वोत्तर भारत के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है और त्रिपुरा की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत का एक स्थायी प्रतीक है। महाराजा धन्य माणिक्य द्वारा 1501 ई. में स्थापित, यह उपमहाद्वीप के 51 शक्तिपीठों में एक विशिष्ट स्थान रखता है। किंवदंती के अनुसार, भगवान शिव के तांडव नृत्य के दौरान देवी सती का दाहिना पैर यहीं गिरा था, जिससे इस भूमि में दिव्य पवित्रता का संचार हुआ।



स्रोत: अतुल्य भारत और त्रिपुरा पर्यटन
वास्तुकला की दृष्टि से, यह मंदिर सादगी और शालीनता को दर्शाता है। इसका चौकोर विन्यास और ढलानदार छत ग्रामीण बंगाल की झोपड़ियों की शैली की झलक देते हैं, जो स्थानीय सौंदर्यशास्त्र को आध्यात्मिक प्रतीकवाद के साथ जोड़ते हैं। त्रिपुर सुंदरी मंदिर को कूर्म पीठ के रूप में भी पूजा जाता है, क्योंकि इसका आधार कछुए के कूबड़ के आकार का है, जो हिंदू परंपरा में स्थिरता और सहनशीलता का एक शुभ प्रतीक माना जाता है। यह पवित्र जुड़ाव निकटवर्ती कल्याण सागर झील द्वारा और भी गहरा हो जाता है, जहाँ भक्त कछुओं को इस स्थल की पवित्रता के जीवित प्रतीक के रूप में पूजते हैं। गर्भगृह के भीतर दो मूर्तियाँ विराजमान हैं - मुख्य देवी, देवी त्रिपुर सुंदरी, एक पाँच फुट ऊँची मूर्ति जिसे पीठासीन माता के रूप में पूजा जाता है, और एक छोटी मूर्ति, जिसे छोटो-माँ या देवी चंडी के नाम से जाना जाता है। यह छोटी मूर्ति कभी त्रिपुरा के राजाओं के लिए विशेष महत्व रखती थी, जो इसे शिकार अभियानों और युद्धों में सुरक्षा और सौभाग्य के दिव्य ताबीज के रूप में साथ ले जाते थे।
देवी त्रिपुर सुंदरी राज्य की पहचान में गहराई से समाई से हुई है, क्योंकि माना जाता है कि राज्य का त्रिपुरा नाम देवी त्रिपुर सुंदरी के नाम पर ही पड़ा है। इस प्रकार यह मंदिर न केवल एक भक्ति स्थल है, बल्कि एक सांस्कृतिक आधार[3] भी है। मंदिर का प्रबंधन राज्य द्वारा नियुक्त एक समिति द्वारा किया जाता है, और माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर ट्रस्ट इसके दीर्घकालिक विकास का मार्गदर्शन करता है।
समन्वयवाद के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला यह मंदिर शक्तिवाद, वैष्णववाद और विविध समुदायों को एकजुट करता है, जहाँ हिंदू, मुस्लिम और आदिवासी समूह, सभी इसके अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। अपनी आध्यात्मिक भूमिका के अलावा, यह मंदिर त्रिपुरा के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन की आधारशिला बना हुआ है, और अपनी स्थापत्य कला, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
प्रशाद (PRASHAD) योजना
विज़न और उद्देश्य
प्रशाद - तीर्थयात्रा पुनर्जीवन एवं आध्यात्मिक विरासत संवर्धन योजना (PRASHAD - Pilgrimage Rejuvenation and Spiritual, Heritage Augmentation Drive) पर्यटन मंत्रालय द्वारा पर्यटकों की सुविधा, सुगम्यता, सुरक्षा और स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए शुरु की गई थी। तीर्थयात्रा पुनरुद्धार एवं आध्यात्मिक, विरासत संवर्धन अभियान (प्रशाद) शुरू किया गया। इस योजना का उद्देश्य एकीकृत, समावेशी और सतत् विकास के माध्यम से इस तीर्थ/धरोहर नगरी की आत्मा का संरक्षण करना भी है, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
उद्देश्य
यह योजना विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए धन मुहैया कराती है, जिनमें शामिल[4] हैं:

कार्यान्वयन दृष्टिकोण
प्रशाद एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसका वित्तपोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। परियोजनाओं का चयन सांस्कृतिक महत्व, पर्यटकों की संख्या और विकास क्षमता के आधार पर किया जाता है, जिससे राज्यों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है। स्थायित्व और सामुदायिक लाभ सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों और स्थानीय हितधारकों के परामर्श से योजनाएँ तैयार की जाती हैं।
परिणाम और प्रभाव
विरासत संरक्षण को आधुनिक सुविधाओं के साथ जोड़कर, इस योजना ने तीर्थस्थलों को आस्था, संस्कृति और अर्थव्यवस्था के समग्र केंद्रों में बदल दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "विकास भी, विरासत भी" के विज़न को प्रतिबिंबित करते हुए, इसने पर्यटन से जुड़ी आजीविका के नए अवसर पैदा किए हैं। "विकास भी, विरासत भी" - विरासत के साथ-साथ विकास, विकसित भारत 2047 के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
अपनी शुरुआत से ही, प्रशाद योजना ने देश भर में लगातार अपना विस्तार किया है। अगस्त 2025 तक 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करती, कम से कम 54 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिनकी स्वीकृत सहायता राशि ₹1,168 करोड़ से अधिक है। ये परियोजनाएँ प्राचीन मंदिरों और सूफी तीर्थस्थलों से लेकर बौद्ध मठों और ऐतिहासिक नगरों तक, तीर्थस्थलों और विरासत स्थलों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर करती हैं। ये सभी परियोजनाएँ संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करते हुए विश्व स्तरीय आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र बनाने की इस योजना की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
त्रिपुर सुंदरी मंदिर में विशेष पहलें:
केंद्र सरकार की प्रशाद योजना के तहत त्रिपुर सुंदरी मंदिर का बड़े पैमाने पर पुनर्विकास किया जा रहा है। वर्ष 2020-21 में ₹34.43 करोड़ की लागत से स्वीकृत और पर्यटन मंत्रालय द्वारा प्रबंधित, यह परियोजना मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र के कायाकल्प के एक व्यापक प्रयास को दर्शाती है, जिससे इसके धार्मिक महत्व और त्रिपुरा में आध्यात्मिक पर्यटन के केंद्र के रूप में इसकी भूमिका, दोनों में वृद्धि होगी।
पुनर्विकास ने मंदिर की संरचना के संरक्षण से परे, इसे पूरी तरह से एक नया रूप दिया है। मुख्य मंदिर क्षेत्र में नई सुविधाओं में एक फ़ूड कोर्ट, बहुउद्देशीय हॉल, भोग और प्रसाद घर, पूजा की दुकानें, आधुनिक शौचालय और मंदिर की प्रकाश व्यवस्था शामिल हैं। आसपास के बुनियादी ढाँचे का भी आधुनिकीकरण किया गया है, जिसमें सीवेज और जल आपूर्ति प्रणालियाँ, एक भूमिगत टैंक, वर्षा जल निकासी नालियाँ, भू-सज्जा और ऊर्ध्वाधर वृक्षारोपण, साइनेज, सौर पीवी पावर सिस्टम, एक बाहरी द्वार, विद्युत कार्य, और शौचालय तथा चेंजिंग रूम जैसी उन्नत सार्वजनिक सुविधाएँ शामिल हैं।
सितंबर 2025 तक, लगभग 80% कार्य पूरा हो चुका है और परियोजना कार्यान्वयन के अंतिम चरण में है। अब तक जारी की गई किश्तों की राशि ₹28.01 करोड़ है, और इस मंदिर का औपचारिक उद्घाटन 22 सितंबर, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाएगा। इस व्यापक विकास का एक प्रमुख आकर्षण मंदिर के पास 51 शक्तिपीठों का एक पार्क बनाना है, जिसमें सभी 51 पवित्र स्थलों की प्रतिकृतियाँ होंगी, जिन्हें भक्तों और सांस्कृतिक पर्यटकों, दोनों को आकर्षित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
एक साथ मिलकर, ये उन्नयन सदियों पुराने शक्तिपीठ को विश्व स्तरीय आध्यात्मिक गंतव्य के रूप में स्थापित कर रहे हैं, आजीविका को बढ़ावा देते हुए, त्रिपुरा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की रक्षा कर रहे हैं, पर्यटन अवसंरना को मजबूत कर रहे हैं, और भारत तथा पड़ोसी देशों के भक्तों के लिए आगंतुक सुविधाओं में सुधार कर रहे हैं।


त्रिपुरा और पूर्वोत्तर भारत पर व्यापक प्रभाव
प्रशाद योजना पूर्वोत्तर क्षेत्र (एनईआर) की आध्यात्मिक और आर्थिक क्षमता को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। बुनियादी ढाँचे के उन्नयन को विरासत संरक्षण के साथ जोड़कर, यह तीर्थस्थलों को पर्यटन-आधारित विकास के इंजन में बदलने में मदद कर रही है। इस क्षेत्र का बढ़ता आकर्षण स्पष्ट है: घरेलू पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई है, गाँवों में होमस्टे की संख्या बढ़ रही है, युवा गाइडों के लिए रोजगार का विस्तार हो रहा है, और समग्र पर्यटन और यात्रा पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत हो रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने हाल के मंचों पर इस बात पर ज़ोर दिया है कि पर्यावरण-पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन और विरासत का जीर्णोद्धार केवल संख्याओं तक सीमित नहीं है—ये सीधे तौर पर नौकरियों, स्थानीय उद्यमों और स्थायी आजीविका में तब्दील होते हैं।
पूर्वोत्तर में प्रशाद का सफ़र लगभग एक दशक पहले साल 2015-16 में असम के प्रतिष्ठित कामाख्या मंदिर के उन्नयन के साथ शुरू हुआ था, जिसने इस क्षेत्र में विरासत-आधारित विकास की नींव रखी। तब से, परियोजनाओं का मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में लगातार विस्तार हुआ है, और सबसे हालिया परियोजना वर्ष 2024-25 में मिज़ोरम के वांगछिया में शुरू हुई है, जो दर्शाता है कि कैसे यह योजना निरंतर विकसित हो रही है और सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्व[5] के नए स्थलों को अपना रही है।
क्रम संख्या.
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राज्य
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परियोजना का नाम
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स्वीकृति का वर्ष
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1
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असम
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गोहाटी और उसके आसपास कामाख्या मंदिर और तीर्थस्थल का विकास।
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2015-16
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2
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नागालैंड
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नागालैंड में तीर्थयात्रा अवसंरचना का विकास
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2018-19
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3
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मेघालय
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मेघालय में तीर्थयात्रा सुविधा का विकास
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2020-21
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4
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अरुणाचल प्रदेश
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परशुरामकुंड, लोहितजिला का विकास।
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2020-21
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5
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सिक्किम
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युक्सोम के चार संरक्षक संतों में तीर्थयात्रा सुविधा का विकास
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2020-21
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6
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त्रिपुरा
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उदयपुर के त्रिपुर सुंदरी मंदिर का विकास
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2020-21
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7
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मिजोरम
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मिजोरम राज्य में तीर्थयात्रा और विरासत पर्यटन के लिए बुनियादी ढांचे का विकास
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2022-23
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8
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नागालैंड
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ज़ुन्हेबोटो में तीर्थयात्रा पर्यटन बुनियादी ढांचे का विकास
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2022-23
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9
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मिजोरम
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चंफाई जिले के वांगछिया में प्रशाद योजना के तहत बुनियादी सुविधाओं का विकास
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2024-25
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निष्कर्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर पूर्वोत्तर को "पर्यटन के लिए एक संपूर्ण पैकेज" बताते रहे हैं, जो ई-ए-एस-टी - सशक्तीकरण, कार्य, सुदृढ़ीकरण और परिवर्तन (E-A-S-T—Empower, Act, Strengthen, Transform) के विज़न से प्रेरित है। यह परिवर्तन आधुनिक राजमार्गों, रेल नेटवर्क, हवाई अड्डों, जलमार्गों और डिजिटल बुनियादी ढाँचे में निवेश द्वारा संचालित हो रहा है, जो पर्यटकों और निवेशकों, दोनों में विश्वास जगाते हैं।[6]
त्रिपुर सुंदरी मंदिर का पुनर्विकास इसी दृष्टिकोण को साकार रूप में दर्शाता है। सदियों पुराना यह शक्तिपीठ, अपनी पवित्रता को अक्षुण्ण रखते हुए आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित होकर, अब न केवल एक आध्यात्मिक प्रकाश स्तंभ के रूप में, बल्कि स्थानीय समृद्धि के स्रोत के रूप में भी खड़ा है। व्यापक क्षेत्र के लिए, ऐसी परियोजनाएँ दर्शाती हैं कि कैसे विरासत-आधारित विकास स्थायी आजीविका, फलते-फूलते उद्यमों और साझा गौरव की गहरी भावना का मार्ग बन सकता है।

इस दृष्टिकोण के केंद्र में प्रशाद योजना है, जिसका उद्देश्य तीर्थस्थलों के भौतिक उन्नयन से आगे बढ़कर तीर्थ पर्यटन के एक एकीकृत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है। स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत करते हुए सांस्कृतिक अनुभवों को समृद्ध करके, प्रशाद त्रिपुरा और पूरे पूर्वोत्तर को नया महत्व दे रहा है, यह सुनिश्चित करते हुए कि आस्था के स्थल भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहें और विकास के इंजन के रूप में उनकी पुनर्कल्पना की जाए।
“त्रिपुर सुंदरी मंदिर: पूर्वोत्तर में आध्यात्मिक पर्यटन की एक नई सुबह”
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