Farmer's Welfare
न्यूनतम समर्थन मूल्य: सुरक्षा कवच से लेकर आत्मनिर्भरता तक
मजबूत खरीद वसूली, किसानों का बढ़ता कवरेज दायरा, डिजिटल सुधार और राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता
Posted On:
10 OCT 2025 12:15PM
प्रमुख बिंदु
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- रबी मार्केटिंग सीजन 2026- 27 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य राशि स्वीकृत। अनाज खरीद की मात्रा करीब 297 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान जबकि किसानों को इससे 84263 करोड़ रुपये की आमदनी हासिल होगी।
- रबी मार्केटिंग सीजन 2026- 27 में किसानों को गेहूं की उत्पादन लागत पर करीब 109 प्रतिशत मार्जिन प्राप्त होगा।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत खाद्यान्नों के लिए किसानों को मिलने वाला भुगतान रकम वर्ष 2014 -15 के 1. 06 लाख करोड़ से करीब तीन गुना बढ़कर वर्ष (जुलाई) 2024 - (जून) 25 में 3. 33 लाख करोड़ हुआ। इस दौरान सरकारी अनाज खरीदी 761. 40 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 1175 लाख मीट्रिक टन हो गयी। इससे देश के करीब 1. 84 करोड़ किसानों को फायदा हुआ।
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भारत का किसान हर फसल सीजन में अपने खेतों में बेहद कड़ी मेहनत करता है। परन्तु मौसम की अनिश्चितता और प्रतिकूल बाजार की वजह से किसानों को अपनी फसल पर पर्याप्त मुनाफा नहीं मिल पाता। बेमौसम की बरसात, सूखा या बाढ़ किसानों के महीनों की कड़ी मेहनत को कुछ चंद दिनों में धो देता है। यहाँ तक की जब फसल की कटाई होती है तो बाजार की उतार चढ़ाव वाली प्रवृति की वजह से किसानों को अपने फसल को औने पौने दाम में यानी अपने उत्पादन लागत से भी कम कीमत पर बेचने को बाध्य होना पड़ता है। छोटे और सीमान्त किसान जो अपनी आजीविका के लिए पूरे तौर से अपनी खेती पर निर्भर करते हैं, वे उपरोक्त स्थिति से कर्ज के स्थायी भवरजाल में फंस जाते हैं। इनकी आमदनी घट जाती है और एक समय आता है जब वे यहाँ तक की खेती के कार्य को त्याग देते हैं। इन परिस्थितियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए एक लाइफ लाइन का कार्य करता है। देखा जाए तो न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसके जरिये सरकार किसानों के फसल को एक पूर्व निर्धारित कीमत पर क्रय कर उन्हें ऐन मौके पर समर्थन प्रदान करती है। उदाहरण के तौर पर गेहूं के किसान को वर्ष 2026 -27 के लिए अपने एक क्विंटल गेहूं के लिए 2585 रुपये मिलने की गारंटी है चाहे खुले बाजार में इसकी कीमत कितनी भी कम क्यों ना हो। इसी प्रकार धान के किसान भी अपनी फसल को किसी भी सरकारी खरीद एजेंसी को 2369 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेच सकते है। कहने की बात ये है कि किसान के लिए उसके फसल की मूल्य गारंटी का प्रावधान उसे अपनी खेती में उन्नत बीज और खेती तकनीक पर ज्यादा निवेश करने का प्रोत्साहन भी प्रदान करता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति और इसका निर्धारण
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सरकार कृषि लागत व मूल्य आयोग की अनुशंसा पर हर वर्ष करीब 22 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी निर्धारित करती है। इस निर्धारण में विभिन्न फसल से संबंधित राज्य सरकारों और केंद्रीय विभागों के सुझावों व चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाता है। गौरतलब है की सरकार तोरिया, नारियल की भी सरसों व रेपसीड तथा कोपरा की निर्धारित एमएसपी के आधार पर सरकारी खरीद दरें तय करती है। 22 स्वीकृत फसलें जिनकी सरकार द्वारा एमएसपी दरें तय की जाती है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करते समय कृषि लागत व मूल्य आयोग कई महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करता है। इनमे उत्पादन की लागत, घरेलू व विश्व बाजार में विभिन्न फसलों की मांग व आपूर्ति की स्थिति, अनाजों की घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय कीमतें , अंतर फसली मूल्य समानता, कृषि व गैर कृषि के बीच के व्यापार अधिमान, कृषि मूल्य नीति के शेष अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव तथा उत्पादन लागत पर न्यूनतम पचास प्रतिशत मुनाफा मार्जिन। इसके अलावा आयोग उत्पादन लागत की गणना करते समय हर तरह की लागत का ध्यान रखता है जिसमे सभी तरह के लगाए गए मानव श्रम, बैल या मशीन पर आने वाली लागत, लीज पर ली गयी जमीन पर दिया गया लगान, बीज, रासायनिक व प्राकृतिक उर्वरक पर किया गया व्यय, सिंचाई शुल्क, कृषि उपकरणों की घिसावट व्यय, ऋण पर दिए जाने वाले ब्याज, पम्प सेट में बिजली या डीजल का खर्च और विविध व्यय जिसमे परिवार का श्रम भी शामिल है। एमएसपी निर्धारित करने के लिए लागत गणना का जो फार्मूला है वह सभी 22 फसलों और सभी राज्यों के लिए एक समान है। गौरतलब है कि इस गणना में हर कृषक परिवार के पारिवारिक श्रम को जरूर शामिल किया जाता है।
गौरतलब है कि वर्ष 2018-19 से सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगातार बढ़ोत्तरी करती आ रही है। और इस बढ़ोत्तरी का आधार है वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में इस बात की घोषणा की किसी भी फसल की एमएसपी दर लागत की डेढ़ गुनी ज्यादा रखी जाएगी यानी की किसानो को पचास प्रतिशत का औसत मुनाफा मार्जिन सुनिश्चित हो।

एमएसपी के आंकड़े: रबी फसलों के मार्केटिंग सीजन 2026 -27 तथा खरीफ फसलों के मार्केटिंग सीजन 2025 -26 की निर्धारित एमएसपी दरें
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केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने मार्केटिंग सीजन 2026 -27 के लिए सभी रबी फसलों की एमएसपी में बढ़ोत्तरी को स्वीकृति प्रदान कर दी है। इसके अलावा चालू वर्ष 2025 -26 मार्कटिंग सीजन की सभी खरीफ फसलों की एमएसपी दरों में बढ़ोत्तरी की है जिससे किसानों के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित हो। ये सभी बढ़ोत्तरी पहली अक्टूबर से लागू होंगी।
रबी फसलें
|
S.N.
|
Crops
|
MSP 2026-27 (₹/quintal)
|
Cost of Production 2026-27 (₹/quintal)
|
Margin Over Cost (%)
|
MSP 2025-26 (₹/quintal)
|
Increase in MSP (Absolute)
|
1
|
गेहूं
|
2,585
|
1,239
|
109%
|
2,425
|
160
|
2
|
जौ
|
2,150
|
1,361
|
58%
|
1,980
|
170
|
3
|
चना
|
5,875
|
3,699
|
59%
|
5,650
|
225
|
4
|
मसूर
|
7,000
|
3,705
|
89%
|
6,700
|
300
|
5
|
रेपसीड और सरसों
|
6,200
|
3,210
|
93%
|
5,950
|
250
|
6
|
सूरजमुखी
|
6,540
|
4,360
|
50%
|
5,940
|
600
|
S.N.
|
Crops
|
MSP 2025-26 (₹/quintal)
|
Cost of Production 2025-26 (₹/quintal)
|
Margin Over Cost (%)
|
MSP 2024-25 (₹/quintal)
|
Increase in MSP (Absolute)
|
खरीफ फसलें
|
1
|
धान
|
सामान्य
|
2,369
|
1,579
|
50%
|
2,300
|
69
|
ग्रेड 1
|
2,389
|
---
|
---
|
2,320
|
69
|
2
|
ज्वार
|
हाइब्रिड
|
3,699
|
2,466
|
50%
|
3,371
|
328
|
मालदांडी
|
3,749
|
---
|
---
|
3,421
|
328
|
3
|
बाजरा
|
|
1,703
|
63%
|
2,625
|
150
|
4
|
रागी
|
|
3,257
|
50%
|
4,290
|
596
|
5
|
मक्का
|
|
1,508
|
59%
|
2,225
|
175
|
6
|
तुर /अरहर
|
|
5,038
|
59%
|
7,550
|
450
|
7
|
मूंग
|
|
5,845
|
50%
|
8,682
|
86
|
8
|
उड़द
|
|
5,114
|
53%
|
7,400
|
400
|
9
|
मूंगफली
|
|
4,842
|
50%
|
6,783
|
480
|
10
|
सूरजमुखी बीज
|
|
5,147
|
50%
|
7,280
|
441
|
11
|
सोयाबीन पीला
|
|
3,552
|
50%
|
4,892
|
436
|
12
|
तिल
|
|
6,564
|
50%
|
9,267
|
579
|
13
|
रामतिल / नाइजर सीड
|
|
6,358
|
50%
|
8,717
|
820
|
14
|
कपास
|
मध्यम स्टेपल
|
7,710
|
5,140
|
50%
|
7,121
|
589
|
लांग स्टेपल
|
8,110
|
---
|
---
|
7,521
|
589
|
व्यावसायिक फसलें
|
1
|
जूट
|
5,650
|
3,387
|
67%
|
5,335
|
315
|
S.N.
|
Crops
|
MSP 2025 (₹/quintal)
|
Cost of Production 2025 (₹/quintal)
|
Margin Over Cost (%)
|
MSP 2024(₹/quintal)
|
Increase in MSP (Absolute)
|
2
|
गरी/नारियल
|
|
11,582
|
7,721
|
50%
|
11,160
|
422
|
|
12,100
|
---
|
---
|
12,000
|
100
|
वर्ष 2025 -26 मार्केटिंग सीजन के सभी खरीफ फसल:
|
पिछले वर्ष की तुलना में जिस फसल पर एमएसपी में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी की गयी है वह है नाइजर सीड। इसकी कीमत में 820 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी हुई है। इसके बाद रागी की कीमत में 596 रुपये प्रति क्विंटल, कपास की एमएसपी में 589 रुपये प्रति क्विंटल तथा तिल की एमएसपी में 579 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गयी है।
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किसानों की मुनाफा मार्जिन की बात करें तो उन्हें सर्वाधिक मुनाफा बाजरा पर मिल रहा है जो इसकी उत्पादन लागत पर 63 प्रतिशत ज्यादा है, इसके बाद मक्का पर 59 प्रतिशत और उड़द पर 53 प्रतिशत है। बाकी फसलों पर किसानों की मार्जिन औसत रूप से 50 प्रतिशत है। हाल के वर्षो में देखें तो सरकार अनाजों के अलावा कई अन्य फसलों की खेती को प्रोत्साहन दे रही है जिसमे दलहन, तिलहन और पौष्टिक अनाज यानी श्रीअन्न है। इन फसलों की एमएसपी में निरंतर यथोचित बढ़ोत्तरी की गयी है।
|
वर्ष 2026-27 मार्केटिंग सीजन के रबी फसल:
|
इस सीजन में जिस रबी उत्पाद पर एमएसपी दर में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी की गयी है वह है कुसुम जिसकी कीमत में 600 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी हुई है । इसके बाद मसूर जिसकी कीमत में 300 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी हुई है। रेपसीड, सरसो, चने, जौ और गेहूं इन सभी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में क्रमशः 250, 225, 170 और 160 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी हुई है।
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इनमे गेहूं पर सबसे ज्यादा इसकी सकल राष्ट्रीय औसत भारित उत्पादन लागत पर सर्वाधिक 109 प्रतिशत की मार्जिन मिल रही है। जबकि रेपसीड और सरसों पर 93 प्रतिशत, मसूर पर 89 प्रतिशत, चना पर 59 प्रतिशत, जौ पर 58 प्रतिशत और कुसुम पर 50 प्रतिशत की मार्जिन किसानों को प्राप्त होने का अनुमान है। रबी फसलों पर एमएसपी में की गई यह बढ़ोत्तरी एक तरफ किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करेगी दूसरी तरफ भारतीय कृषि को ज्यादा से ज्यादा फसल विविधीकरण के लिए प्रोत्साहित करेगी।
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रबी मार्केटिंग सीजन 2026 -27 के दौरान अनुमान है की सरकार द्वारा खाद्यान्नों की कुल खरीद वसूली 297 लाख मीट्रिक टन होगी और किसानों को इन नयी प्रस्तावित एमएसपी कीमतों से करीब 84263 करोड़ रुपये की आमद होगी।
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कहना होगा की सरकार की किसानों से अनाज खरीद करने की सदैव सक्रिय प्रणाली से हर वर्ष अनाज की खरीद मात्रा बढ़ी है साथ साथ किसानों को समय से भुगतान मिलना सुनिश्चित हुआ है। यह इस बात को दर्शाता है की एमएसपी दरों में निरंतर बढ़ोत्तरी किसानो के लिए एक बड़े आर्थिक संबल देने का काम करती है। देखा जाए तो बीते वर्षों में अनाज खरीद की समूची प्रणाली काफी मजबूत और विस्तृत हुई है जिससे देश के अनेकानेक राज्यों के और विभिन्न बहुफसली किसानों की इनमे ज्यादा भागीदारी सुनिश्चित हुई है।
अनाज और मोटे अनाज की खरीद और संग्रहण का कार्य आम तौर पर भारतीय खाद्य निगम और इनके द्वारा चयनित राज्य एजेंसियों द्वारा किया जाता है। गेहूं और धान की कितनी मात्रा किसानों से खरीदी जाएगी इसका निर्धारण भारत सरकार भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकारों से हर मार्केटिंग सीजन के पूर्व परामर्श के उपरांत करती है। खरीद की मात्रा निर्धारण में इस बात का भी सरकार द्वारा ध्यान रखा जाता है की इस बार कितना अनाज उत्पादन का अनुमान है , किसानों के पास अनाज का कितना बाजार अतिरेक होगा तथा फसल का इस बार का पैटर्न क्या है।
दलहन, तिलहन और सूखे नारियल गोले- इनकी खरीद आम तौर पर किसानों के मूल्य प्रोत्साहन योजना के लिए बनी प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान पीएम् आशा के जरिये किया जाता है। इस कार्य में सबंधित राज्य सरकारों से जब इस बात के सुझाव मिलते हैं कि इन कृषि जिंसों के बाजार मूल्य निर्धारित एमएसपी मूल्यों से कम हैं। पीएम आशा कार्यक्रम की प्रमुख क्रय एजेंसी भारत सरकार की दो प्रमुख केंद्रीय सहकारी एजेंसी नाफेड और एनसीसीएफ हैं।
कपास और जूट- इनकी एमएसपी दरों पर खरीद का कार्य भारतीय कपास निगम और भारतीय जूट निगम द्वारा किया जाता है। गौरतलब है की इन दोनों जिंसों की किसानों से खरीद की कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की गयी है।
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम आशा)
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उद्देश्य
पीएम आशा का उद्देश्य किसानों को उनके उत्पादों का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के साथ साथ बाजार में उपभोक्ताओं के लिए आवश्यक वस्तुओं को उचित दर पर उपलब्ध कराना है।
प्रमुख अवयय व कार्य
पीएम आशा अभियान का एक मुख्य मकसद मूल्य समर्थन स्कीम को सुचारू बनाना है। जब अधिसूचित वस्तुओं मसलन दालों , तिलहन और नारियल की पैदावार के समय जब बाजार कीमत एमएसपी से भी कम होती है तब नाफेड और एनसीसीएफ अपने पूर्व पंजीकृत किसानों से उनके वैध जमीन रिकॉर्ड देखकर सीधे खरीद लेती है। इस कदम से किसानों को बिना किसी बिचौलिए के अपने उत्पाद उचित कीमत पर बेचना संभव हो जाता है।
जारी रहेगा
पन्द्रहवें वित्त आयोग के दौरान भारत सरकार ने पीएम आशा कार्यक्रम को अगले 2025 -26 तक जारी रखने का निर्णय लिया
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एमएसपी से लेकर आत्मनिर्भरता तक
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भारत ने दलहनों के उत्पादन में अत्यंत महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है। हालाँकि प्रधामंत्री ने आगामी 2027 तक दलहन के उत्पादन का एक बड़ा महत्वकांछी लक्ष्य निर्धारित किया है जिससे हमारी आयात पर निर्भरता पूरी तरह से समाप्त हो जाए। इसमें इस बात पर बल दिया गया है की किसानों के सहयोग से भारत आगामी दिसम्बर 2027 के पहले तक दलहन के उत्पादन में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जायेगा । इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वर्ष 2025 के बजट में इस बात की घोषणा की गयी है की केंद्र सरकार द्वारा राज्यों में उत्पादित अरहर , उड़द और मसूर का शत प्रतिशत हिस्सा किसानों से लगातार अगले चार वर्षो तक खरीदा जायेगा( इस वादे की पूर्ति के लिए भारत सरकार ने पीएम आशा के लिए दलहन खरीद की रकम 45 हज़ार करोड़ से बढाकर 60 हज़ार करोड़ कर दी है।
25 मार्च 2025 तक देश के पांच राज्यों आंध्र, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना के किसानों से 2.46 लाख मीट्रिक टन अरहर दाल ख़रीदे गए। इससे 1. 71 लाख किसानों को फायदा हुआ।

पिछले 11 वर्षों में देश में दलहन उत्पादन के मामले में जबरदस्त प्रगति हासिल हुई है। एक समय था जब दलहन की खेती का बड़ा संकुचित रकबा होता था, बड़ी सीमित मात्रा में सरकार की तरफ से इसकी खरीद होती थी और आयात पर हमारी निर्भरता बहुत ज्यादा थी और इसकी बाजार कीमतें आसमान छुआ करती थी। अब यह दलहन क्षेत्र बढ़े उत्पादन, बढ़ी एमएसपी दर पर बड़ी मात्रा में सरकारी खरीद, आयात पर घटी निर्भरता तथा तुलनात्मक रूप से स्थिर मूल्य का प्रतीक बनता दिख रहा है। बताते चलें एमएसपी दर पर दलहन की खरीद जो वर्ष 2009 -14 के दौरान महज 1. 52 लाख मीट्रिक टन थी वह बढ़कर वर्ष 2020 -25 के दौरान 82. 98 लाख मीट्रिक टन हो गयी है। यानी 7350 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी।
इसी प्रकार तिलहन की मामले में इसकी एमएसपी खरीद भी पिछले 11 साल में करीब 1500 प्रतिशत बढ़ी है।

धान की खरीद के मामले में पिछले सालों के दौरान महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। वर्ष 2004-14 के दौरान धान की कुल क्रय मात्रा 4590 लाख मीट्रिक टन थी जो वर्ष 2014-25 के दौरान बढ़कर 7608 लाख मीट्रिक टन हो गयी। कुल 14 खरीफ फसलों जिन्हें एमएसपी के दायरे में रखा गया है की कुल मिला कर खरीद की मात्रा वर्ष 2004-14 के दौरान जो 4679 मीट्रिक टन थी वह वर्ष 2014-25 के दौरान बढ़कर 7871 लाख मीट्रिक टन हो गई। यह बढ़ोत्तरी किसानों को मिलने वाली एमएसपी की नीति की वजह से है जिसके अंतर्गत वर्ष 2004-14 के दौरान जहाँ केवल 4. 44 लाख करोड़ रुपए की धान की खरीद हुई वह वर्ष 2014-25 के दौरान बढ़कर 14.16 लाख करोड़ रुपए हो गई। इसी प्रकार सभी 14 खरीफ फसलों की बात करें तो इस दौरान एमएसपी भुगतान की मात्रा 4. 75 लाख करोड़ से बढ़कर 16. 35 लाख करोड़ हो गई।
2024 -25 की रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने कुल 266 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की जो पिछले साल के 262 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा थी। इस सफलता से देश को खाद्यान्न आत्मनिर्भरता हासिल करने में भारी मदद मिली है। इस खरीद से करीब 22 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं जिनके बैंक खाते में 61 हज़ार करोड़ की राशि उनके एमएसपी भुगतान के बतौर सीधे तौर पर स्थान्तरित की गई।

कुल मिलाकर सभी खाद्यान्नों की वसूली में सतत बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है जो 2014-15 में 761. 40 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2024 -25 में 1175 लाख मीट्रिक टन हो गई। इस विस्तार से करीब 1. 84 करोड़ किसानों को फायदा हुआ। एमएसपी भुगतान की व्यय राशि करीब तीन गुनी बढ़ गयी जो 1. 06 लाख करोड़ से बढ़कर 3. 33 लाख करोड़ हो गई।

एमएसपी वसूली की बढ़ी मात्रा से सीधे तौर पर किसानों के कवरेज का दायरा बढ़ा और उनकी आय भी बढ़ी। एमएसपी प्रणाली से लाभान्वित किसानों की संख्या 2021-22 में 1. 63 करोड़ से बढ़कर 2024-25 1.84 करोड़ हो गई। इस दौरान एमएसपी की कुल वितरित रकम भी 2. 25 लाख करोड़ बढ़कर 3. 33 लाख करोड़ हो गई। यानी की एमएसपी की बढ़ी वसूली मात्रा, किसानों का कवरेज दायरा और भुगतान रकम की मात्रा में निरंतर बढ़ोत्तरी इस बात का द्योतक है की सरकार किसानों के बेहतर आमदनी और उनकी आर्थिक सुरक्षा के प्रति कितनी संकल्पित है।
एमएसपी खरीद में प्रौद्योगिकी और पारदर्शिता
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समूची न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली में पारदर्शिता, कार्यक्षमता और सुचारू कार्यान्वयन की बहाली के लिए सरकार ने विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्मो का गठन किया है।
- अंडर प्राइस सपोर्ट स्कीम (पीएसएस):

नाफेड संस्था द्वारा विकसित ई-समृद्धि और एनसीसीएफ द्वारा विकसित ई-संयुक्ति पोर्टल किसानों के पंजीयन से लेकर उनके अंतिम भुगतान तक की प्रक्रिया को सुचारू बनाता है। इसके अंतर्गत किसान अपने आधार, भूमि दस्तावेज, बैंक विवरण और फसल सूचना के जरिये अपना ऑनलाइन पंजीयन करते हैं। पंजीयन के बाद किसान अपनी फसल स्टॉक को किसी सम्बंधित स्कीम के तहत पास के क्रय केंद्र का चयन कर सकता है जहाँ उसे निर्धारित समय स्लॉट मिल जाता है और फसल आपूर्ति के बाद उसे सीधे एमएसपी भुगतान उसके बैंक खाते में चला जाता है। ना इसमें कोई देरी की शिकायत और ना ही बिचौलिए का सामना।

भारतीय कपास निगम द्वारा विकसित कपास किसान ऐप एमएसपी के दायरे में आये सभी किसानों को प्रदान किया गया है। इस ऐप के जरिये किसान को स्व पंजीयन, टाइम स्लॉट बुकिंग, गुणवत्ता निर्धारण, भुगतान प्रक्रिया और बहुभाषी विकल्प चुनने की सुविधा मिलती है। इस वजह से प्रतीक्षा अवधि और कागजी काम घट जाता है तथा सभी कार्य तीव्र और पारदर्शी तरीके से संचालित हो जाते हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली की पूरी संरचना किसानों को लगातार आय सुरक्षा प्रदान कर रही है। वर्ष 2018-19 से कृषि उत्पादन लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत की लाभ मार्जिन दिए जाने की सरकार की नीति इस दिशा में प्रभावी रूप से कारगर हुई है। समय के अंतराल में एमएसपी के तहत कृषि जिंसों की बढ़ी वसूली मात्रा, एमएसपी की बढ़ाई गई दरों से किसानो की बढ़ी भुगतान मात्रा तथा किसानो के बढे एमएसपी कवरेज से इसे और बल मिला है। दलहनों , तिलहनों और पौष्टिक अनाज श्रीअन्न पर दिए गए जोर तथा लक्षित खरीदी व डिजिटल सुधारों से भारतीय कृषि का विस्तारीकरण हुआ है और इन चीजों के आयात पर हमारी निर्भरता कम होती गई है। कुल मिलाकर ये सभी उपाय सरकार की एमएसपी को न केवल किसानों के आर्थिक सुरक्षा कवच बनाने की एक दीर्घकालीन रणनीति के रूप में इस्तेमाल किये जाने की तरफ इशारा करते हैं। बल्कि सभी महत्वपूर्ण फसलों के मामले में राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता हासिल करने में भी एमएसपी को एक प्रेरक यंत्र के रूप में इस्तेमाल की तरफ इशारा करते हैं।
सन्दर्भ:
लोक सभा
राज्य सभा
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
एपीडा
पीआईबी प्रेस रिलीज
पीआईबी विश्लेषक
पीआईबी तथ्यपत्र
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