Economy
हस्तशिल्प - भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का केंद्र
Posted On:
09 DEC 2025 3:42PM

भूमिका

भारत का हस्तशिल्प क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कारीगरों और शिल्पकारों को आजीविका प्रदान करता है, निर्यात में योगदान देता है और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने में सहायक है। 318 जीआई-टैग प्राप्त हस्तशिल्प उत्पादों और लगभग 455 औपचारिक रूप से वर्गीकृत शिल्प श्रेणियों के साथ, यह क्षेत्र भारत की रचनात्मक परंपराओं की अद्भुत विविधता को दर्शाता है।
|
हर हस्तशिल्प के पीछे की कला
हस्तशिल्प वे वस्तुएँ हैं जो मुख्य रूप से हाथों से बनाई जाती हैं, भले ही निर्माण प्रक्रिया में कुछ औज़ार या मशीनों का उपयोग भी किया गया हो; ऐसी वस्तुएँ देखने में बेहद आकर्षक होती हैं; इनमें कुछ खास विशिष्टताएं होती हैं, जो सौंदर्य, कला, परम्परा या संस्कृति से संबंधित हो सकती हैं। साथ ही, ये समान उपयोग में ली जाने वाली मशीनों से बनी वस्तुओं सेस्पष्ट रूप से भिन्न होती हैं।
|
भारत विश्व के महत्वपूर्ण हस्तशिल्प आपूर्तिकर्ताओं में से एक है; और प्रामाणिक, टिकाऊ, हस्तनिर्मित उत्पादों की बढ़ती वैश्विक मांग के साथ, देश अपनी हस्तशिल्प अर्थव्यवस्था को विस्तार देने के लिए विशिष्ट रूप से सक्षम है। भारत के विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में कारीगरों के पास अंतर्निहित कौशल, तकनीकें और पारंपरिक शिल्पकला है, जो हस्तशिल्प उद्योग की रीढ़ बनती हैं। यद्यपि अधिकांश कारीगर कम पूंजी निवेश के साथ अंशकालिक रूप से शिल्प कार्य में संलिप्तहोते हैं, फिर भी मूल्य-वर्धन उच्च बना रहता है, जिससे हस्तशिल्प आय का एक व्यवहार्य स्रोत बन जाता है। यह क्षेत्र अत्यंत श्रम-प्रधान और विकेन्द्रीकृत है तथा देश के कोने-कोने तक विस्तृत है।
|
भारत की शिल्प विरासत का जश्न
राष्ट्रीय हस्तशिल्प सप्ताह (8–14 दिसंबर) प्रतिवर्ष मनाया जाता है जिससे भारत के कारीगरों का सम्मान किया जा सके और हस्तशिल्प क्षेत्र के सांस्कृतिक एवं आर्थिक महत्व को उजागर किया जा सके। यह कारीगर समुदायों के योगदान को पहचानने, पारंपरिक कौशल को प्रोत्साहित करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के इस महत्वपूर्ण खंड को सशक्त बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराने का अवसर प्रदान करता है।
हस्तशिल्प में उत्कृष्टता का सम्मान
इस वर्ष की प्रमुख विशेषता राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार हैं, जो भारत की शिल्प विरासत में उत्कृष्ट योगदान देने वाले विशिष्ट शिल्प गुरुओं को सम्मानित करते हैं। इनमें शिल्प गुरु पुरस्कार — जो हस्तशिल्प क्षेत्र का सर्वोच्च सम्मान है — तथा राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं, जो विभिन्न शिल्प रूपों में उत्कृष्टता और नवाचार को मान्यता देते हैं। मिलकर ये सभी पुरस्कार देशभर के कारीगरों के कौशल, रचनात्मकता और सांस्कृतिक संरक्षण का जश्न मनाते हैं।
|
हस्तशिल्प क्षेत्र की आर्थिक शक्ति
रोज़गार और कारीगर जनसांख्यिकी
हस्तशिल्प उद्योग में बड़ी संख्या में कारीगर काम करते हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के। वर्तमान में भारत में लगभग 64.66 लाख हथकरघा और हस्तशिल्प कारीगर हैं, जिनमें से बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में केंद्रित है। अगस्त 2025 तक, महिलाओं की हथकरघा बुनकरों में 71% और कुल कारीगरों में 64% की हिस्सेदारी थी। महिलाओं की इतनी मजबूत भागीदारी ग्रामीण तथा अर्द्ध-शहरी समुदायों में महिलाओं के रोजगार तथा सशक्तिकरण में इस क्षेत्र केयोगदान को दर्शाती है।
विविध कारीगर कार्यबल के साथ यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था की सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिनमें अधिकांश अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंध रखते हैं। यह शिल्प गतिविधियों में विभिन्न समुदायों की व्यापक भागीदारी को दर्शाता है, जिससे हस्तशिल्प क्षेत्र समाज के विभिन्न वर्गों में समावेशी विकास और आजीविका का माध्यम बनता है।
भारतीय हस्तशिल्प क्षेत्र कृषि परिवारों और अन्य लोगों को अंशकालिक या पूरक रोजगार भी प्रदान करता है, जिससे फसल का मौसम न होनेपर और कृषि कार्यों में कमी के समय में आय का सुचारू प्रवाह सुनिश्चित होता है। इसके अलावा, चूंकि शिल्प छोटे सेट-अप (अक्सर घर पर ही) और न्यूनतम पूंजी के साथ किया जा सकता है, यह विशेष रूप से दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के लिए आजीविका का एक व्यवहार्य स्रोत प्रदान करता है।
|
साल 2024 तक, कारीगर पहचान कार्यक्रम के तहत32 लाख से अधिक कारीगरों का पंजीकरण हुआ है। इनमें से लगभग 20 लाख कारीगर महिलाएँ हैं, जो ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में इस योजना की भूमिका को उजागर करता है।
|
सरकार हस्तशिल्प को आजीविका का एक प्रमुख स्रोत मानती है, जो स्थानीय गैर-कृषि रोजगार को मजबूत करने में सहायक है। कई पारंपरिक शिल्प कौशल पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ते आए हैं और संस्थागत समर्थन के साथ, इन कौशलों को मान्यता और बढ़ावा दिया जा रहा है। कारीगरों को पहचान आईडी कार्ड जारी करने की सरकार की पहल का उद्देश्य इन कारीगरों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाना है, जिससे वे भारत सरकार की योजनाओं से लाभ प्राप्त कर सकें। कारीगरों की पहचान को औपचारिक रूप देने और उन्हें संगठित करने का यह कदम शिल्पकारों के लिए काम की बेहतर परिस्थितियां पैदा करने और उनकी मोल-भाव कर पाने की क्षमता बढ़ाने की नींव तैयार कर रहा है।
वित्तीय वर्ष 2025 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर 2025) में, भारत के कुल वस्त्र और परिधान (हस्तशिल्पसहित) निर्यात का आंकड़ा 18,235.44 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। भारत के हस्तशिल्प निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जैसा कि वैश्विक चुनौतियों के बावजूद कुल वस्त्र और परिधान क्षेत्र के स्थिर प्रदर्शन से भी देखा जा सकता है। वर्ष 2024-25 में, हस्तशिल्पनिर्यात (हाथ से बने गांठदार कालीन को छोड़कर) 33,122.79 करोड़ रुपये तक पहुँच गया, जो कि 2014-15 में रहे 20,082.53 करोड़ रुपये से कहीं ज़्यादा है।

वर्ष 2024-25 के दौरान मुख्य निर्यात श्रेणियों में कला धातु उत्पाद (₹4,386 करोड़), लकड़ी के उत्पाद (₹8,524 करोड़), हाथ से प्रिन्ट किए गए वस्त्र (₹3,217 करोड़), कढ़ाई किया हुआऔर क्रोशिए से बना सामान (₹4,350 करोड़), और नकली आभूषण (₹1,511 करोड़) शामिल हैं। ये आंकड़े भारत के शिल्प निर्यात की विविधता और भारतीय शिल्प उत्पादों के लिए वैश्विक मांग को दर्शाते हैं। लगभग 37% निर्यात अमेरिका को जाता है, जबकि 61% भारत के हस्तशिल्प अन्य प्रमुख बाजारों को निर्यात किए जाते हैं।
भारत के मज़बूत आर्थिक विकास और सरकार द्वारा निर्यातकों को दिए जा रहे सक्रिय सहयोग के चलते हस्तशिल्प निर्यात की संभावनाएँ सकारात्मक बनी हुई हैं।
शिल्प कौशल को सशक्त बनाने हेतु हस्तशिल्प को सरकार का समर्थन
सरकार ने हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्र के लिए समर्पित योजनाओं और नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से समर्थन प्रदर्शित किया है। यह सतत् समर्थन इस क्षेत्र के आधुनिकीकरण, कारीगरों की आय बढ़ाने और क्षेत्र की मजबूती सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण रहा है। प्रमुख सरकारी पहलों और उनके प्रभाव में शामिल हैं:
राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी):
एनएचडीपीहस्तशिल्प क्षेत्र के संवर्धन के लिए प्रमुख योजना है। वित्तीय वर्ष 2022-26 के लिए इसकी स्वीकृत धनराशि ₹837 करोड़ है। 2023-24 के दौरान, एनएचडीपीके तहत 2,325 परियोजनाएँ और कार्यक्रम स्वीकृत किए गए, जिससे 66,000 से अधिक कारीगरों को लाभ मिला।
यह योजना लक्षित बाजारों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हस्तशिल्प क्लस्टरों और कारीगरों को मूलभूत सामग्री, अवसंरचना सहायता और क्षमता वृद्धि के माध्यम से व्यापक समर्थन प्रदान करती है। इसके घटक शुरु से अंत तक सहायता देने, अनुकूल वातावरण पैदा करने और मशीन से बने उत्पादों के साथ निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
ध्यान मुख्यत:विपणन प्लेटफॉर्म, अवसंरचना सहायता, और नए प्रवेशकों के लिए डिज़ाइन तथा कौशल प्रशिक्षण प्रदान करके प्रत्येक कारीगर को मुख्यधारा में लाने और साथ ही, पारंपरिक शिल्पों को संरक्षित करने पर केंद्रित होता है। क्षेत्र को मजबूत बनाने और कारीगरों को सशक्त बनाने के साथ-साथ, यह योजना आम आदमी जीवन ज्योति योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना जैसी पहलों के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा भी प्रदान करती है, जिसमें वरिष्ठ कारीगरों के लिए पेंशन सहायता भी शामिल है।
कुल मिलाकर, एनएचडीपीयोजना इस क्षेत्र को उच्च विकास पथ पर ले जाने और मौजूदा सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए निम्नलिखित तीन-आयामी दृष्टिकोण अपनाती है: -
- विशिष्ट बाजार के लिए प्रीमियम हस्तशिल्प उत्पादों का संवर्धन।
- उपयोगिता-आधारित, लाइफ़स्टाइल और बड़े पैमाने पर उत्पादन वाले हस्तशिल्प उत्पादों के उत्पादन आधार का विस्तार।
- कारीगरों का सशक्तिकरण तथा उन्हें स्थायित्व प्रदान करना, साथ ही धरोहर/अल्प विकसित शिल्पों को संरक्षण तथा सुरक्षा प्रदान करना।
|
संगठित कौशल विकास पहलों के माध्यम से कारीगरों का सशक्तिकरण
आज, राष्ट्रीय और वैश्विक बाजारों में शिल्प के उत्पादन और वितरण की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार मानकीकृत उत्पादन, कुशल मानव संसाधन, डिज़ाइन डेटाबेस, त्वरित और प्रभावी प्रोटोटाइपिंग, और बेहतर संचार कौशल आवश्यक हैं। उपकरण और तकनीक में प्रगति के साथ, भारत में कारीगर कार्यबल तेजी से विकसित हो रहा है। इन क्षेत्रों में कारीगरों का समर्थन करने के लिए, एनएचडीपीके तहत "हस्तशिल्प क्षेत्र में कौशल विकास" की अवधारणा बनाई गई है, जिसमें निम्नलिखित चार घटक शामिल हैं:
- डिज़ाइन और प्रौद्योगिकी विकास कार्यशाला: वर्तमान बाज़ार की डिज़ाइन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कारीगरों के मौजूदा कौशल का उपयोग करके नए डिज़ाइन और प्रोटोटाइप विकसित करने पर केंद्रित होती है।
- गुरु शिष्य हस्तशिल्प प्रशिक्षण कार्यक्रम: इसका उद्देश्य तकनीकी और सॉफ्ट-स्किल प्रशिक्षण के माध्यम से पारंपरिक शिल्प ज्ञान का श्रेष्ठ कारीगरों से नए कारीगरों तक हस्तांतरण करना है, जिससे कौशल में अंतर को कम किया जा सके और बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षित कार्यबल तैयार हो सके।
- व्यापक कौशल उन्नयन कार्यक्रम: यह राष्ट्रीय कौशल योग्यताएँ रूपरेखा (एनएसक्यूएफ़) प्रशिक्षण के माध्यम से पारंपरिक शिल्पों को पुनर्जीवित करके कौशल में अंतर को कम करता है, जिससे कौशल उन्नयन, डिज़ाइन नवाचार और कारीगरों की दक्षताओं में वृद्धि संभव हो पाती है।
- उन्नत टूलकिट वितरण कार्यक्रम: यह कारीगरों को उन्नत टूलकिट प्रदान करता है,जिससे उत्पादकता बढ़ाई जा सके, समान गुणवत्ता सुनिश्चित हो, और हस्तशिल्प क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उत्पादन को समर्थन मिल सके।
|
कारीगर क्लस्टरों के माध्यम से क्षेत्र संवर्धन
- व्यापक हस्तशिल्प क्लस्टर विकास योजना (सीएचसीडीएस)
एनएचडीपीके पूरक के रूप में व्यापक हस्तशिल्प क्लस्टर विकास योजना (सीएचसीडीएस) है, जिसके लिए वित्तीय वर्ष 2022-26 के लिए ₹142.5 करोड़ का आवंटन किया गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य विश्व स्तरीय अवसंरचना के साथ हस्तशिल्प क्लस्टरों का विकास करना है, जिससे स्थानीय कारीगरों और लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) की व्यावसायिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके और अधिक उत्पादन तथा निर्यात सुनिश्चित किया जा सके।
ये क्लस्टर कारीगरों और उद्यमियों को समर्थन देने का लक्ष्य रखते हैं जिससे वे आधुनिक इकाइयाँ स्थापित कर सकें, जिनमें उन्नत अवसंरचना, नवीनतम तकनीक, पर्याप्त प्रशिक्षण और मानव संसाधन विकास के साधन हों, साथ ही बाजार से सम्पर्क और उत्पादन में विविधता भी सुनिश्चित की जा सके।
कार्यक्रम के व्यापक उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- चयनित क्लस्टरों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए उच्च यूनिट मूल्य प्राप्ति के माध्यम से बाजार हिस्सेदारी और उत्पादकता में वृद्धि करना।
- तितर-बितर कारीगरों को एकीकृत करना, प्राथमिक स्तर के उद्यमों को मजबूत करना, और उन्हें एसएमईसे जोड़ना जिससे पैमाने की अर्थव्यवस्था प्राप्त हो,महत्वपूर्ण सामूहिक आधार तैयार किया जा सकेऔर गुणवत्ता एवं मानकीकरण की वैश्विक बाजार आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
- दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अवसंरचना, प्रौद्योगिकी, उत्पाद विविधीकरण, डिज़ाइन विकास, कच्चे माल के भंडार, विपणन, प्रचार और सामाजिक सुरक्षा के लिए आवश्यक समर्थन तथा सम्पर्क प्रदान करना।
- रणनीति में क्षमता निर्माणके लिएमजबूत तकनीकी और कार्यक्रम प्रबंधन सहायता प्रदान करना, हस्तक्षेपोंका रूपांकन करना और उन्हें एक सक्षम पेशेवर एजेंसी के माध्यम से लागू करना शामिल है।

- पारंपरिक उद्योगों के पुनरुद्धार हेतुकोष योजना (एसएफ़यूआरटीआई)
भारत का हस्तशिल्प क्षेत्र देश के ग्रामीण विकास प्रयासों से गहराई से जुड़ा हुआ है और गैर-कृषि आजीविकाओं को समर्थन देता है। पारंपरिक उद्योगों के पुनरुद्धार के लिए कोष योजना (एसएफ़यूआरटीआई) के तहत 100 से अधिक हस्तशिल्प क्लस्टर हैं, जिनका उद्देश्य ग्रामीण कारीगरों की प्रतिभा, रचनात्मकता, उद्यमशीलता और मेहनत को विभिन्न क्षेत्रों में मान्यता देना और परंपरागत उद्योगों को अधिक उत्पादक, लाभकारी और स्थायी रोजगार उत्पन्न करने में सक्षम बनाना है, जिससे कारीगरों को सशक्त और स्व-शासित उद्यमियों में परिवर्तित किया जा सके।
|
आत्मनिर्भर कारीगर
अम्बेडकर हस्तशिल्प विकास योजना (राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम का घटक) जैसी योजनाओं के तहत, सरकार इन क्लस्टरों में कारीगर समूहों या निर्माता कंपनियों के गठन का समर्थन करती है और उन्हें डिज़ाइन एवं तकनीकी विकास कार्यशाला जैसी आवश्यकताओं के अनुसार हस्तक्षेप प्रदान करती है।
इसका उद्देश्य कारीगरों को वित्तीय और विपणन मुख्यधारा में शामिल करना और साथ ही उनके पारंपरिक शिल्पों को संरक्षित रखना है।
|
बाजार तक पहुँच और वैश्विक समाकलन
हस्तशिल्प क्षेत्र द्वारा ग्रामीण विकास में योगदान को विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों में इसके समावेश से और प्रमाणित किया जाता है। उदाहरण के लिए, पारंपरिक कौशल को जीवित रखने वाले जीआईटैग वाले उत्पादों का समर्थन करके, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) पहल कई जिलों के क्षेत्रीय उत्पादों को उजागर करती है, जिससे विकास को समर्थन मिलता है। कई स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) शिल्प उत्पादन में लगे हैं, जिन्हें क्षमता निर्माण और पर्यावरण-हितैषी नवाचारों के माध्यम से समर्थन प्राप्त है। ग्रामीण कारीगरों को शहरी बाजारों से जोड़ने और वैश्विक समाकलन प्रदान करने के लिए, सरकार विपणन कार्यक्रम और प्रदर्शनियों की सुविधा प्रदान करती है।
अकेले2023-24के वित्त वर्षमें ही, राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम के तहत 786 घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय विपणन कार्यक्रम स्वीकृत किए गए, साथ ही डिज़ाइन और प्रशिक्षण पहलें भी आयोजित की गईं, जिससे पूरे भारत में लगभग 66,775 कारीगरों को लाभ मिला। वित्तीय वर्ष 2025-26 में, एनएचडीपीके तहत कुल 132 विपणन कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है। ये कार्यक्रम कारीगरों के लिए बाजार तकउनकी पहुँच को मजबूत करने के उद्देश्य से आयोजित किए जाते हैं।
|
दृश्यता बढ़ाने और नए बाजार संपर्क स्थापित करने वाले प्लेटफ़ॉर्म
इंडी हाट – भारत की हस्तशिल्प और हथकरघा धरोहर का प्रदर्शन:12 से 18 फरवरी 2025 तक राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय और हस्तकला अकादमी, नई दिल्ली में आयोजित 2025 संस्करण के इंडी हाट में देश भर के 85 कारीगरों और बुनकरों द्वारा बनाए गए 80 विभिन्न प्रकार के हस्तनिर्मित और हाथ से बुने गए उत्पादों का जीवंत प्रदर्शन किया गया।
आईआईटीएफ़ में विशेष हथकरघा और हस्तशिल्प प्रदर्शनी: भारत मंडपम में आयोजित इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर (आईआईटीएफ) के हिस्से के रूप में, वस्त्र मंत्रालय ने हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास आयुक्त कार्यालय द्वारा संचालित विशेष हथकरघा और हस्तशिल्प प्रदर्शनी एवं बिक्री का आयोजन किया। इस पवेलियन में 27 राज्यों की हथकरघा और हस्तशिल्प परंपराओं का प्रतिनिधित्व करते हुए 206 स्टॉल्स लगाए गए, साथ ही इसमें “भारतीय वस्त्रों के आदिवासी खजाने” पर एक थीम आधारित प्रदर्शन भी शामिल था।
|
हथकरघा और हस्तशिल्प के निकट संबंध को देखते हुए, सरकार ने गत 5 वर्षों के दौरान356 छोटे और 2 मेगा हथकरघा क्लस्टर स्वीकृत किए, 880 विपणन कार्यक्रम आयोजित किए, 42,895 मुद्रा ऋण स्वीकृत किए, 5,34,162 बुनकरों को प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई)/प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) में नामांकित किया और 163 निर्माता कंपनियाँ गठित कीं (02.12.2025 तक), जिससे पूरे देश के हथकरघा बुनकरों को लाभ मिल सके। इन लाभों से पूरे देश में लगभग 6.45 लाख हथकरघा बुनकरों को लाभ पहुंचा है।
एमएसएमईभागीदारी के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना: इसके अलावा, एमएसएमईभागीदारी बढ़ाने के लिए, सरकार ने नए आवेदकों के लिए निवेश आवश्यकता को कम करके योजना में संशोधन किया है। निवेश आवश्यकता को भाग-1 के लिए ₹300 करोड़ से ₹150 करोड़ और भाग-2 के लिए ₹100 करोड़ से ₹50 करोड़ कर दिया गया है। न्यूनतम वृद्धिशील कारोबार मानदंड को भी 25% से घटाकर 10% कर दिया गया है और उत्पाद सूची को विस्तृत कर इसमें अधिक मानव निर्मित फाइबर (एमएमएफ़) परिधान, फैब्रिक्सऔर तकनीकी वस्त्र शामिल किए गए हैं। योजना का लाभ लेने के लिए नई कंपनी स्थापित करने की आवश्यकता भी हटा दी गई है।
कौशल विकास समर्थन: उत्पादन प्रोत्साहनों के साथ-साथ, समर्थ (SAMARTH)–वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण योजना - जैसी योजनाओं का विस्तार किया गया है जिससे कारीगरों और बुनकरों को प्रशिक्षित किया जा सके। दिसंबर 2025 तक, समर्थ के तहत 5.35 लाख लाभार्थियों को प्रशिक्षित किया गया और 4.20 लाख को रोजगार प्रदान किया गया।
बाजार संवर्धन और अवसंरचना: वस्त्र और हस्तशिल्प व्यापार को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिएमंत्रालय निर्यात संवर्धन परिषदों (ईपीसी) की सुविधा प्रदान करता है, जिनमें पारंपरिक उत्पाद-केंद्रित परिषदें, जैसे हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद (एचएचईसी), कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी), तथा हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसीएच) और साथ ही व्यापार मेलों एवं प्रदर्शनियों में भागीदारी हेतु सहयोग प्रदान करने के लिए उद्योग संघ भी शामिल हैं। मंत्रालय ग्लोबल मेगा टेक्सटाइल इवेंट, भारत टीईएक्सको भी समर्थन प्रदान करता है, जो भारत की वस्त्र मूल्य श्रृंखला की शक्ति को प्रदर्शित करता है और वस्त्र, फैशन तथा हस्तशिल्प के क्षेत्र में नवीनतम नवाचारों को उजागर करता है, जिससे भारत को स्रोत और निवेश के लिए वैश्विक पसंदीदा गंतव्य के रूप में स्थापित किया जा सके।
निर्यात संवर्धन पहलें: वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में वस्त्र और परिधान, जिसमें हस्तशिल्प भी शामिल हैं, के निर्यात में उल्लेखनीय मजबूती देखी गई। क्षेत्र के निर्यात (हस्तशिल्प सहित) को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने और उसकी निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता सुधारने के लिए, सरकार ने राज्य और केंद्र करों तथा उपकरों की छूट (RoSCTL) योजना लागू की। RoSCTL(जो परिधान/गारमेंट्स और मेड-अप्स के लिए लागू है)के अंतर्गत न आने वाले वस्त्र उत्पादों को निर्यातित उत्पादों पर करों और शुल्कों की छूट (RoDTEP) योजना के तहत कवर किया गया है, जिससे छिपी हुई निर्यात लागत (कर और शुल्क) कम होगी। इसके अतिरिक्त, चूंकि एमएसएमई मुख्य रूप से हस्तशिल्प उत्पादन में योगदान देते हैं, हाल ही में निर्यात संवर्धन मिशन के दो घटकों—निर्यात प्रोत्साहन (वित्तीय सक्षमकर्ता पर केंद्रित) और निर्यात दिशा (गैर-वित्तीय सक्षमकर्ता पर केंद्रित)— के ज़रिए हस्तशिल्प क्षेत्र के समग्र उत्पादन, वितरण और विकास में योगदान मिलने की उम्मीद है।
हाल के नीतिगत सुधारों में GST को तर्कसंगत किया जाना और 29 श्रम कानूनों को 4 श्रम संहिताओं - वेतन संहिता 2019, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020, औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और व्यावसायिकसुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थितियाँ संहिता 2020 - में एकीकृत किया जाना शामिल है। मूर्तियों, चित्रकला, इनले कार्य, टेराकोटा, हैंडबैग, कला उत्पाद और टेबलवेयर पर जीएसटीदर में कटौती ने कारीगरों और शिल्पकारों को बड़ी राहत दी है। यह “वोकल फॉर लोकल” के तहत देशी उत्पादन को प्रोत्साहित करता है, आयात पर निर्भरता कम करता है और रोजगार सृजित करता है। ये संहिताएँ श्रमिक कल्याण और गरिमा का समर्थन करती हैं। न्यूनतम वेतन का सार्वभौमिकरण, लिंग के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध और विस्तृत सामाजिक सुरक्षा जैसी व्यवस्थाएँ सभी श्रमिकों को लाभान्वित करेंगी।
निष्कर्ष
भारत का हस्तशिल्प क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में लाखों कारीगरों को समर्थन प्रदान करके, यह भारत के पारंपरिक कौशल और शिल्प कौशल के गहन भंडार को दर्शाता है। हस्तनिर्मित और टिकाऊ उत्पादों में वैश्विक रुचि बढ़ने के साथ, इस क्षेत्र में विस्तार की मजबूत संभावना है। सरकार की पहलों और योजनाओं, जिनमें कौशल प्रशिक्षण, क्लस्टर विकास, विपणन समर्थन, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और निर्यात सुविधा शामिल हैं, का उद्देश्य कारीगरों के लिए बेहतर अवसर सृजित करना और उन्हें व्यापक बाजार तक पहुँच प्रदान करना है। ये हस्तक्षेप उत्पादकता में सुधार कर रहे हैं, मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत कर रहे हैं और कारीगरों को अधिक पूर्वानुमेय और उच्च आय अर्जित करने में सक्षम बना रहे हैं।
समृद्ध विरासत, कुशल कारीगरों और निरंतर नीतिगत समर्थन के समृद्ध संयोजन के साथ, भारत का हस्तशिल्प क्षेत्र समावेशी विकास को बढ़ावा देने, ग्रामीण आजीविकाओं को समर्थन देने और आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक प्रगति में सार्थक योगदान देने के लिए उपयुक्त स्थिति में है।
पीआईबी रिसर्च
संदर्भ
डीसी-एमएसएमई (हस्तशिल्प):
About Us | Official website of Development Commissioner (Handicrafts), Ministry of Textiles, Government of India
https://handicrafts.nic.in/pdf/GIList.pdf
https://handicrafts.nic.in/pdf/NewCraft.pdf
handicrafts.nic.in/CraftDefinition.aspx
https://handicrafts.nic.in/pdf/Scheme.pdf
https://indian.handicrafts.gov.in/static-pdf/scheme-guideline.pdf
https://handlooms.nic.in/assets/img/upcoming_markeing/AMC2025-26_02-04-2025.pdf
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय:
sfurti.msme.gov.in/SFURTI/Reports/DPR_Functional_Upto.aspx
https://www.msme.gov.in/sites/default/files/MSME-ANNUAL-REPORT-2024-25-ENGLISH.pdf
https://static.pib.gov.in/WriteReadData/specificdocs/documents/2022/apr/doc20224636101.pdf
वस्त्र मंत्रालय:
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2199236®=1&lang=1
https://www.pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=2089306®=3&lang=2
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2197522®=3&lang=1
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2157864®=3&lang=2#:~:text=Govt,reliant
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2073886®=3&lang=2
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2197519®=3&lang=2
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2199515®=3&lang=1
वित्त मंत्रालय:
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2192229®=3&lang=2
https://www.pib.gov.in/FactsheetDetails.aspx?Id=149281®=3&lang=1
श्रम एवं रोज़ग़ार मंत्रालय:
https://www.pib.gov.in/FactsheetDetails.aspx?Id=150508®=3&lang=1
हस्तशिल्प निर्यात प्रोत्साहन परिषद:
https://www.epch.in/sites/default/files/policies/exportsofhandicrafts.htm
संसदीय प्रतिक्रियाएँ:
https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/185/AS237_eb5QqY.pdf?source=pqals
https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/185/AU351_GpRWNL.pdf?source=pqals
https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/184/AU4956_YS5OfB.pdf?source=pqals
अन्य:
https://ddnews.gov.in/en/president-murmu-to-confer-handicrafts-awards-on-december-9/
https://www.ibef.org/blogs/empowering-districts-empowering-india-the-odop-revolution
See in PDF
***
पीके/केसी/पीके
(Backgrounder ID: 156421)
आगंतुक पटल : 33
Provide suggestions / comments