वित्त मंत्रालय
विमुद्रीकरण पर केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली के लेख का मूलपाठ
Posted On:
08 JAN 2017 6:51PM by PIB Delhi
केन्द्रीय वित्त् मंत्री श्री अरुण जेटली के लेख ‘विमुद्रीकरण- पिछले दो महीने पर एक दृष्टि’ का पूरा मूलपाठ निम्न है:
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के उच्चतर मूल्य वर्ग के करेंसी नोटों के लीगल टेंडर होने की समाप्ति के निर्णय को दो महीनेबीत चुके हैं। परिणामस्वरूप उन नोटों का विमुद्रीकरण हो गया है। जब किसी देश की 86 प्रतिशत करेंसी जो कि उसकेसकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 12.2 प्रतिशत है, को बाजार से निचोड़कर बाहर फेंका जाएगा और इसके स्थान परनई मुद्रा लाई जाएगी तो स्पष्ट तौर पर इस निर्णय के महत्वपूर्ण परिणाम होंगे। अब बैंकेों के आगे लगने वाली कतारेंखत्म हो गई हैं और पुनर्विमुद्रीकरण आगे बढ़ चला है, यहां इस निर्णय और इसके प्रभाव के पीछे के तर्कों का विश्लेषणकरना सार्थक होगा।
1. काले धन के खिलाफ कदम
नरेंद्र मोदी सरकार को पहले ही दिन से यह एकदम स्पष्ट था कि वह छाया अर्थ व्यवस्था और काले धन के खिलाफ कदमउठाएगी। इस दिशा में सरकार का सर्वोच्च न्यायलय के आदेश पर एसआइटी का गठन करना पहला कदम था।प्रधानमंत्री ने ब्रिसबेन में जी-20 देशों के सम्मेलन में इसका प्रस्ताव दिया था कि आधार के अपक्षरण और लाभ केहस्तांरतरण की दिशा में सूचना साझेदारी के अंतरराष्ट्रीय सहयोग की गति तेज की जानी चाहिए। इस उद्देश्य कोअमेरिका के साथ की गई व्यवस्था ने आगे बढ़ाया। राजग सरकार ने स्विटजरलैंड के साथ 2019 से लागू होने वालीव्यववस्था को भी पूरा किया। इसके तहत स्विटजरलैंड में रखे गए भारतीय नागरिकों के धन का विस्तृत विवरण औरइसी तरह भारत में स्विस नगरिकों के धन के बारे में एक-दूसरे को सूचना देने का प्रावधान है। वर्ष 1996 से मॉरिशस केसाथ चली आ रही दोहरा कर बचाव संधि पर फिर बातचीत की जा रही है। संधि प्रभावी ढंग से वापसी(राउंड ट्रिपिंग) को बढ़ावा देने वाली है। इस पर पुन: बातचीत हो गई है। इसी तरह की संधियों पर साइप्रस और सिंगापुर के साथ भीफिर से बातचीत हुई। भारत के बाहर अवैध संपत्ति से संबंधित काले धन कानून ने एक खिड़की खोली है जिसके तहतऐसे खुलासों के लिए 60 प्रतिशत कर के साथ दस साल की कैद का प्रावधान है।
45 प्रतिशत कर वाली आयकर खुलासा घोषणा स्कीम(आईडीएस) -2016 बहुत ही सफल रही। काले धन के जरिये खर्चकरने पर दो लाख से अधिक के खर्च पर पैन कार्ड अनिवार्य करने से बाधा पैदा हुई है। सन् 1988 में बना बेनामी कानूनकभी भी लागू नहीं किया गया। अब इसमें संशोधन किया गया है और इसे क्रियान्वित किया गया है। इस साल जीएसटीलागू होना है, जिससे बेहतर अप्रत्यक्ष कर प्रशासन मिलेगा और कर अपवंचना को और अधिक दक्ष कानून से रोकाजाएगा। इस दिशा में उच्च मूल्य वर्ग के नोटों का विमुद्रीकरण करने का निर्णय एक बड़ा कदम था।
2. नया सामान्य
वर्ष 2015-16 में कुल जनसंख्या 125 करोड़ में केवल 3.7 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया। इनमें 99 लाखलोगों ने 2.5 लाख रुपये से अपनी आय कम दिखाई और इन्होंने कोई कर का भुगतान नहीं किया,1.95 करोड़ लोगों नेअपनी आय पांच लाख रुपये से कम दिखाई ,52 लाख लोगों ने अपनी आय पांच से दस लाख रुपये के बीच दिखाई औरकेवल 24 लाख लोगों ने अपनी आय दस लाख रुपये से अधिक दिखाई। इसके लिए कोई ठोस प्रमाण की जरूरत नहीं किप्रत्यक्ष और अप्रत्यकक्ष कर दोनों के मामले में भारत अभी भी कर अदा करने के मामले में बड़ा गैर- अनुपालना वालासमाज बना हुआ है। गरीबी उन्मूलन,राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए जरूरी व्यय के मामले पर कर अदा नकरने के कारण समझौता करना पड़ा है। सात दशक तक एक सामान्य भारतीय नकदी और चेक द्वारा लेन-देन करता रहाहै। ‘पक्का ’ और ‘कच्चा ’ खाता व्यापार की भाषा है। कर चोरी न तो गलत माना जाता है और न ही अनैतिक। यह जीनेका एक रास्ता था। कई सरकारों ने सार्वजनिक हितों से समझौते के बाद भी इसे ‘सामान्य’ रूप से चलने दिया।प्रधानमंत्री के निर्णय का इरादा एक नया ‘सामान्य’ बनाने का है। यह भारत और भारतीयों के खर्च करने की रुपरेखा मेंपरिवर्तन चाहता है। यह स्पष्ट’ रूप से विध्नकारी कदम है। सभी तरह के सुधार विध्नकारी होते हैं। ये पीछे से चले आ रहीयथास्थिति को बदलते हैं। विमुद्रीकरण ईमानदारी के लिए प्रीमियम और बेईमानी के व्यवहार करने वालों को दंडितकरना है।
3. नकदी के प्रतिकूल परिणाम
कागजी मुद्रा एक गुमनाम ब्याज वाला बांड है। इसके साथ कोई नाम या इतिहास संबंधित नहीं होता। अपराध नकदीऔर बिना नकदी के भी हो सकता है लेकिन अति नकदी को विनिमय के माध्य म के रूप में भूमिगत अर्थव्यवस्था द्वारामदद की जाती है। कर भुगतान के मामले में गैर अनुपालना का परिणाम कर चोरों के पक्ष में और वंचितों तथा गरीबों केविरुद्ध अन्यायपूर्ण संवर्द्धन का निर्माण करता है। हवाला के रास्ते के जरिये नकदी का पहाड़ टैक्स हैवेन में मूल कागजीमुद्रा से पहुंचता है। नकदी की सुविधा रियल टाइम में पता न लगने योग्य़ भुगतान है। नकदी घुसखोरी,भ्रष्टाचार, नकलीमुद्रा और आतंकवाद का निधिकरण करती है। नैतिक और विकसित समाज सतत रूप से अति नकदी से प्रौद्यौगिकीसहायक बैंकिंग और डिजिटल कारोबार की ओर बढ़ चले हैं। कागजी मुद्रा कई तरह की बुराइयों के दरावाजा खोलती है।जब सरकारें कर चोरों से अधिक कर संग्रह करने में सक्षम होती हैं तो वे अन्य दूसरों से कम कर जमा करने की बेहतरस्थिति में होती हैं। नकदी कम करने से हो सकता है कि अपराध और आतंकवाद खत्म न हो लेकिन इन्हें गंभीर चोटपहुंचा सकती है। राज्यों को बताया गया कि नकदी के भंडार तब तक अपने आप खत्म नहीं होंगे जब तक कि सरकारेंकागजी मुद्रा की मात्रा कम करने के लिए कोई कदम न उठाएंगी।
4. निर्णय की व्यापकता
प्रधानमंत्री के उच्च मूल्य वर्ग करेंसी को विस्थापित करने और अंततोगत्वा इसे विमुद्रित करने के निर्णय के लिए साहसऔर सहनशीलता दोनों की आवश्यकता थी। इस निर्णय के कार्यान्वयन में पीड़ा छुपी थी। इससे अल्प अवधि मेंआलोचना और असुविधा दोनों हो सकती है। विमुद्रीकरण की अवधि के दौरान करेंसी की अल्प मात्रा की वजह सेआर्थिक कार्यकलापों में कमी का अर्थव्यवस्था पर एक अस्थायी प्रभाव पड़ सकता था। इस निर्णय में गोपनीयता का उच्चस्तर और कागजी करेंसी की भारी मात्रा में छपाई, बैंकों, डाकघरों, बैंक मित्रों एवं एटीएम के जरिए वितरण शामिल हैं।
यह तथ्य कि भारी मात्रा में उच्च मूल्य वर्ग करेंसी बैंकों में जमा की गई है, इस धन को वैध नकदी नहीं ठहराता। कालाधन अपना रंग केवल इसीलिए नहीं बदल लेता कि इसे बैंकों में जमा किया गया है। इसके विपरीत, यह अपनी गुमनामीखो बैठता है और अब इसे इसके मालिक की पहचान मिल जाती है। इस प्रकार राजस्व विभाग इस धन पर कर लगानेका हकदार बन जाएगा। किसी भी सूरत में, आयकर अधिनियम के संशोधन में ही इसका प्रावधान है कि अगर कथित धनको स्वैच्छिक रूप से घोषित किया गया, या अस्वैच्छिक रूप से इसका पता लगा तो यह विभेदकारी और कराधान के उच्चदरों और आर्थिक दंड के लिए उत्तरादायी होगा।
5. आज की स्थिति
पीड़ा और असुविधा की अवधि अब समाप्त होती जा रही है। आर्थिक कार्यकलापों की पुनर्बहाली हो रही है। स्पष्ट रूप सेआज बैंकों के पास विकास के लिए उधारी देने हेतु काफी अधिक धन उपलब्ध है। चूँकि यह धन बैंकों के पास निम्न लागतजमाओं की स्थिति में है, इससे ब्याज दरों का नीचे आना तय है। ये दोनों चीजें पहले ही हो चुकी हैं। लाखों करोड़ रूपये, जो बाजार में खुली करेंसी के रूप में प्रचलन में थे, अब बैंकिंग प्रणाली में प्रवेश कर चुके हैं। न केवल इस धन ने अपनीगुमनामी खो दी है, इस पर कर लगाए जाने के बाद, इस धन के मालिक इसे अधिक कारगर तरीके से उपयोग करने केहकदार हो जाते हैं। इससे बैंकिंग लेन-देन के आकार और इसके बाद अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि होना तय है।मध्यकालिक एवं दीर्घकालिक स्थिति में जीडीपी अधिक बड़ा और अधिक स्वच्छ होगा। बैंकिंग प्रणाली में प्रविष्ट औरआधिकारिक रूप से लेन-देन में शामिल धन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से उच्चतर कराधान की पर्याप्त संभावनापैदा करेगा। केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही निश्चित रूप से लाभान्वित होंगी। अर्थव्यवस्था में नकदी एवं उच्च रूप सेडिजिटाइज्ड लेन-देन का उपयोग होगा।
6. विपक्ष
ऐसे बड़े निर्णय का कार्यान्वयन करते समय सामाजिक रूप से कोई बड़ी अराजक स्थिति पैदा नहीं हुई। स्वतंत्र मीडियासंगठनों द्वारा कराए गए सभी जनमत सर्वेक्षणों से प्रदर्शित हुआ है कि बड़ी संख्या में लोगों ने सरकार के निर्णय कासमर्थन किया है। विपक्षी दलों ने संसद का एक पूरा सत्र बाधित कर दिया। उनके विरोध अप्रभावी रहे हैं। अर्थव्यवस्था मेंबाधा पड़ने के उनके अतिश्योक्तिपूर्ण दावे गलत साबित हुए हैं। यह दुःख की बात है कि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी नेप्रौद्योगिकी, बदलाव एवं सुधारों दोनों का विरोध करते हुए एक राजनीतिक स्थिति अपनाने का निर्णय किया। इसनेकाले धन के अनुकूल यथास्थिति का पक्ष लिया।
7. सुस्पष्ट अंतर
प्रधानमंत्री एवं उनके विरोधियों के दृष्टिकोण में एक सुस्पष्ट अंतर था। प्रधानमंत्री एक भविष्यदर्शी के रूप में काम कर रहेथे और एक अधिक आधुनिक, प्रौद्योगिकी केंद्रित स्वच्छ अर्थव्यवस्था के बारे में सोच रहे थे। अब वह राजनीतिकनिधीयन प्रणालियों को स्वच्छ करने की बात कर रहे हैं जबकि उनके विरोधी एक नकदी केंद्रित, नकदी पैदा करने वालीऔर नकदी विनिमय प्रणाली को जारी रखने वाली प्रणाली के पक्षधर हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और श्री राहुलगांधी के बीच का अंतर स्पष्ट है – प्रधानमंत्री अगली पीढ़ी के बारे में सोच रहे थे जबकि राहुल गांधी केवल यह देख रहे थेकि किस प्रकार संसद के अगले सत्र को बाधित किया जा सके।
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वीएल/एसकेजे/एकेआर/डीए- 62
(Release ID: 1480163)
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