Prime Minister's Office
Text of PM’s address to Dedicated Water Supply Schemes based on Vatrak, Mazum and Meswo Dam, in Modasa
Posted On:
30 JUN 2017 8:10PM by PIB Delhi
मंच पर विराजमान राज्य के लोकप्रिय और यशस्वी मुख्यमंत्री श्री विजयभाई रुपाणी, उप-मुख्यमंत्री श्री नीतिन भाई पटेल, पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती आनंदीबेन पटेल, गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष भाई श्री रमणभाई, गुजरात सरकार के मंत्री महोदय श्री भूपेन्द्र सिंह चुडासमा, श्री गणपत भाई वसावा, श्री बाबु भाई बोखरिया, श्री शंकर भाई, केन्द्र सरकार में मेरे साथी मंत्री महोदय और गुजरात के आदिवासी समाज के अग्रणी भाई श्री जसवंत भाई भाभोर, राज्य के मंत्री श्री वल्लभ भाई, केन्द्र में संसद में मेरे साथी श्रीमान दीपसिंह राठोड़ जी, मोडासा नगरपालिका के अध्यक्ष वनिता बेन, भारतीय जनता पक्ष के प्रदेश अध्यक्ष श्री जितुभाई वाघाणी, भाजप के जिल्ला अघ्यक्ष भाई रणवीर सिंह, भाई के सी पटेल और यहां एकत्रित विशाल जनसमुदाय में उपस्थित मेरे प्यारे भाईओ और बहनो,
कैसे हो? मजे मे?
आज मैं मोडासा में एक विशिष्ट जवाबदेही अदा करने के लिये आया हूं। लेकिन मोडासा में आना-जाना मेरे लिये कोई नई बात नहीं। मोडासा भी मेरे लिये नया नहीं है। उन दिनो मैं बस से मोडासा आता था। कंधे पे थेला होता था और मोडासा में मेरा मुकाम सामान्यतः राजा भाई के घर होता था। उन दिनो ये वनिता प्राथमिक कक्षा में अध्ययन करती थी। और आज वही वनिता मोडासा नगरपालिका की अध्यक्षा है, मोडासा के विकास के लिये कार्य करती है। कभी-कभार स्कूटर पर सवार होकर मोडासा आना-जाना होता था। मोडासा,मालसर, मेघरज – पूरे रुट पर फिरता था। कई सालों तक यहां के जन-जन के साथ जुड़ने का, उनके जीवन को समझने का और उनके साथ जीने का सौभाग्य मुझे मिला है। आज जल के साथ संबंधित ये महाकाय योजना साकार हो रही है। आज पानी, जल आप के घर तक पहुंच रहा है। सामान्यतः दिपावली हमारा सबसे बडा त्यौहार है। आपने आज तक जितनी दिपावली मनाई हो, उन सब की खुशी से भी ज्यादा खुशी का अवसर आज है। आज का कार्यक्रम किसी पाईप लाइन, कोई नहर तक सीमित नहीं है। हम सभी जानते है के हमारे शरीर में शिरा और धमनी के माध्यम से रक्त संचार होता है, शरीर के एक-एक अंग को रक्त मिलता है, इस तरह शरीर का विकास होता है। शरीर के किसी भाग में शिरा और धमनी के माध्यम से रक्त संचार बंद हो जाता है, तो उस अंग को लकवा हो जाता है। जिस तरह हमारे शरीर के लिये रक्त संचार जरुरी है, ठीक उसी तरह किसी भी विस्तार के विकास के लिये पानी या जल आवश्यक है। संस्कृति और समुदाय के लिये जल जीवन है, प्राण वायु है।
हम सभी जानते है कि जहां पानी का प्रवाह होता है, वहां सजीवता होती है। जहां पानी का अभाव होता है, वहां निर्जीवता पनपती है। इसलिये जबसे भारतीय जनता पक्ष को गुजरात की जनता की सेवा करने का अवसर मिला है, तब से हमारे नेतृत्व ने कार्य में एकसूत्रता दिखाई है। भारतीय जनता पक्ष के सरकार में चाहें केशुभाई पटेल का नेतृत्व हों, श्रीमती आनंदीबेन पटेल का नेतृत्व हो या विजयभाई रुपाणी का नेतृत्व हो या फिर मुझे सेवा करने का अवसर मिला हो – आप को एकसूत्रतता देखने को मिलेगी। भारतीय जनता पक्ष की जितनी सरकार बनी, आपने भाजपा को जितना समय कार्य करने का अवसर दिया, हमारे नेतृत्व ने कभी आधे-अधूरे कार्य नहीं किये। सरकारी सहाय के टुकडे फेंक कर चुनाव जीतने का मार्ग हमने कभी अपनाया नहीं।
एक जमाना था। मालपुर और मेघरज के मेरे भाईओ, जरा याद कीजिये। हम सभी सरकार के पास किसलिये जाते थे? तहसीलदार को किस समस्या के लिये आवेदन दिया करते थे? जब अकाल पडता था, तब मालपुर, मेघरेज, खेडब्रह्मा, अंबाजी, दांता तक, हम सरकार को कागज का टुकडा देते थे, कोई नेता आये तो उसे आवेदन करते थे, कोई मंत्री आये तो उसे भी कागज का टुकडा थमाते थे। और हमारी मांग क्या होती थी? हम अरज करते थे कि साहब, इस साल अकाल पडे, तो हमारे गांव में मिट्टी का काम कराने की मंजूरी दीजिएगा। गढ्ढे खोद के मिट्टी का काम करने की और इस मिट्टी से हमारे गांव में मार्ग बनाने का काम कीजिएगा। और जो सरकार मिट्टी का काम कराती थी, उसे मार्ग पर बिछाने का काम कराती थी, उसे वो बड़े से बड़ा काम गिनाती थी, अपनी उपलब्धि के स्वरूप पेश करती थी। और सरपंच गा-बजाके पूरे गांव को कहता था कि, इस साल चुनाव में इस पक्ष को वोट देना है, क्योंकि इस साल अकाल में इसी पक्ष की सरकार ने गांव में खुदाई करवाई, मिट्टी को मार्ग पर बिछाया। हमारे यहां सरकारें बनी और चली गई। और काम किसे कहते है? गढ्ढे खोदे, मिट्टी निकाली और मार्ग पर बिछायी – इसी को हमने काम कहा, विकास कहा। इसी नाम पर राज करके गुजरात को विकास की यात्रा से वंचित रखा गया।
भाईओ और बहनो,
आज पूरे देश में गुजरात के विकास मॉडल की चर्चा क्यों होती है? क्योंकि हमने आधे-अधूरे काम करना बंद किया, भ्रष्टाचार को रोका और स्पष्ट लक्ष्यांक के साथ परिणामलक्ष्य कार्य किए। इसी वजह से आज गुजरात का विकास मॉडल पूरे देश में अनुकरणीय बना। आपको इसका एक उदाहरण दूं। जब सालों पहले नर्मदा योजना का विचार किया गया था, जिन सरकारों ने इसकी योजना बनाई थी, उस सभी के दस्तावेज उपलब्ध है। उस दस्तावेजो में आप के खेत को, आप के विस्तार को नर्मदा का पानी मिलेगा उस का जरा-सा भी उल्लेख नहीं है। उसका नामों-निशान नहीं है। नर्मदा का न, अरावल्ली जिल्ला या साबरमती के उपरवास में इस योजना को पानी मिलेगा – इनमें से किसी बात का उल्लेख नहीं है। जिस तरह शरीर में सभी शिराओ और धमनिओं में रक्त संचार हो, तो ही उसका विकास होता है, ठीक उसी तरह गुजरात के कोनें-कोनें में पानी का प्रवाह अविरत बहें तो ही उसका स्थायी विकास संभव था। उस सपने को हमने संजोया था। और मैं इस राज्य की युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित करना चाहता हूं, शिक्षित करना चाहता हूं, जानकारी देना चाहता हूं कि आप की आयु 15, 17 या 18 साल की होंगी, लेकिन तकलीफ किसे कहते है, उसका अहसास शायद आपको नहीं होगा। आपकी माता पानी के लिये 3-5 किलोमीटर चलकर गांव से बाहर जाती थी – ये दृश्य शायद आपने देखा नहीं होगा। आपके बड़े भाई 25-30 साल के होंगे। उनको रात को अभ्यास करने की इच्छा होती थी, लेकिन बिना बिजली के अभ्यास करने में कितनी समस्या होती थी – ये उनको पता है, शायद आपको अहसास नहीं होगा। आप के बड़े भाई को अभ्यास करने के लिये 5-7 किलोमीटर दूर स्कूल जाना पडता था। सप्ताह में दो दिन बस आती थी। ये दिन आपके बड़े भाई ने देखे होंगे, शायद आपको पता भी नहीं होगा। 15-17 साल के इन युवाओं को अहसास नहीं हैं कि – दुःख किसे कहते है, समस्या कैसी होती है, अंधेरा कैसा होता है, बिना सड़क, बिजली के कितनी दिक्कतें होती है, नजदीक में स्कूल न होने की वजह से कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है – इन बातों से ये युवा पीढ़ी वाकिफ नहीं है।
मेरे देश के बड़े-बुजुर्ग लोगों से अपील हैं कि आप घर में आपके परिवार के युवा सदस्यों को बताइए कि सालों पहले जीवन कैसा था? हम कैसे जीते थे? बिना बिजली के दिन कैसे बीतते थे? बिना बिजली के अंधकारमय रातें कैसी लगती थी? बारिश के लिये कैसे तरसते थे? जब तक हम उस भयानक दिनों को याद नहीं रखेंगे, तब तक हमें पानी का मूल्य समझ में नहीं आयेगा और इसलिये भाईओं, जनजागृति आवश्यक है। वात्रक हो, माझुम हो या फिर मेश्वो या हाथमती हो – सभी जलाशय क्रिकेट के मैदान जैसे थे। इस के अंदर आप कबड्डी खेल सकते थे। बारिश के महिनों के अलावा पानी नहीं दिखता था। एक सपना संजोया था – सुजलाम सुफलाम योजना का।
भाईओ और बहनो,
आप ही बताओ कि मही नदी का उदय भाजपा सरकार के आने के बाद हुआ था? भाजपा के सत्ता में आने के बाद मही नदी का अवतरण हुआ था। मही सदीओं से बह रह थी। उसका पानी सदियों से प्रवाहित हो रहा था। उसका पानी समुंद्र में मिल जाता था और खारा हो जाता था। मुझे पूछना है कि भाजपा से पूर्व शासन करती किसी सरकार को क्यों ख्याल नहीं आया की मही नदी के पानी को बनास तक ले जाये और किसानों के जीवन को समृद्ध किया जाए? हजारो करोड़ रुपये खर्च करके 450 किमी लंबाई की सुजलाम सुफलाम योजना पूर्ण कर दी। दशकों से कोर्ट-कचहरी और भारत सरकार के विभिन्न विभागो की दया पर निर्भर नर्मदा योजना आज जाकर पूर्ण हुई है। मुझे भी दिल्ली जाने के बाद इन सभी चीजो को व्यवस्थित करने के लिए पसीना बहाना पड़ा है।
भाईओ और बहनो,
सुजलाम सुफलाम योजना के अंतर्गत हमने उन विस्तारों तक पानी पहुंचाया, जहां नर्मदा का पानी पहुंचता नहीं था। ये विस्तार, ये प्रदेश उजाड़, विरान है। इन विस्तारों में पानी कि किल्लत देखने को मिलती थी। यहां के किसान एक फसल लेने के लिये ईश्वर पर निर्भर था, वो अच्छी बारिश के लिये ईश्वर को प्रार्थना करता था और आज सुजलाम सुफलाम के बदौलत वो साल में तीन-तीन फसल का मालिक बन गया है। सालों पहले शहर में अपने घर में पानी की 2 इंच की पाइपलाइन लाने के लिये उसे रुपये कहां से आएंगे ये सोचना पड़ता था। काफी मशक्कत करनी पडती थी। हर मोहल्ले में, हर घऱ तक पानी पहुंचाना हो तो उसे 25 वर्ष की योजना बनानी पडती थी, उसके लिये फंड की व्यवस्था करनी पडती थी। जरा सोंचे, हमने पूरे गुजरात में कोने-कोने में महाकाय पाईप लाइन बिछा दी। ये पाईप इतनी बडी है कि आप मारुति कार लेकर जा सकते है। सड़क बनाने की समस्या थी पर हमने खेत के अंदर से फसल को नुकसान करे बिना पाईप को बिछाया। केनाल बनाने के लिये किसान के पास से जमीन लेनी पडती थी। पर हमने ज्यादा खर्च करके एक तीर से दो निशान साधे – एक, किसान की जमीन को बचाया, और दो – उनकी जमीन को हरी करी दी। ये काम करने का हमने सफल प्रयास किया।
मित्रो,
ये विज्ञान की भी खूबी है। मैं चाहता हूं कि गुजरात की इंजीनियरिंग शाखा के सभी छात्र, इंजीनियरिंग शाखा के अभ्यास क्रम में, श्रीमान भूपेन्द्रसिंह यहां उपस्थित है, अभ्यास क्रम में गुजरात के जल प्रकल्प में किस प्रकार की तकनीक का इस्तेमाल हुआ, पम्पिंग स्टेशन का निर्माण कैसे हुआ, पानी को इतनी ऊंचाई पर कैसे पहुंचाया जाता है, इतनी दूर से पानी को कैसे लाया जाता है, संपूर्ण तकनीक किस तरह काम करती है – ये सभी चीजों को इंजीनियरिंग शाखा के छात्रों को समझाना चाहिये, उनके अभ्यास क्रम में शामिल किया जाना चाहिये। तब जाकर उसे पता चलेगा कि गुजरात कैसे चमत्कार कर दिखाता है!
55 मंजिला इमारत। आपको याद होगा कि अहमदाबाद में सालों पहले एक बहुमंजिला इमारत बनी थी। लाल दरवाजा के पास ये इमारत बनी थी। दस या बारह मंजिला थी। हम गांव में स्कूल में से अहमदाबाद की टूर पर गये थे। तो टूर में दो चीजे दिखाते थे – एक, कांकरिया और दूसरा, बहुमंजिला सरकारी भवन। दस-बारह मंजिला इमारत हम सबके लिये अजुबा थी और पहली बार लिफ्ट देखी थी। हम सभी बच्चे लिफ्ट कैसे आती-जाती है वो अचरज के साथ देखते थे।
भाईओ और बहनो,
ये ज्यादा पुरानी बात नहीं है। आप जानते है कि ये पानी मेश्वो तक, माझुम तक के आपके वात्रक तक – पानी इस तरह पहुंचेगा नहीं, 55 मंजिला भवन – उसको देखना हो तो ये पगड़ी नीचे गिर जाए, टोपी नीचे गिर जाए, तब जाकर दिखे। 55 मंजिला भवन में पानी को नीचे से उपर ले जाने में कितनी मुश्किल होती है? जरा सोचो,पूरी नदी को 55 मंजिला भवन की ऊंचाई तक ले जायेंगे और फिर अरावल्ली के जिल्ले के 600 गांवो में पानी जाएगा। आप कल्पना कीजिये। ये सिर्फ रुपये-पैसे का खेल नहीं है। ये भगीरथ प्रयास है, जिसका आशय भविष्य की पीढ़ीओं को समृद्ध करने का है, गुजरात के किसानों को सुखी करने का है, गुजरात की माताओं और बहनों को पानी के लिये पांच-पांच किलोमीटर तक पैदल जाना न पड़े इसके लिये किया गया पुरुषार्थ है। ये प्रयास बेकार नहीं जाना चाहिये। मेरे लिये ये गौरव की बात है कि आनंदीबेन ने जिस कार्य की शुरुआत की, जिसे विजयभाई ने आगे बढाया और उसकी बदौलत मुझे अरावल्ली की गोद में आकर इसका लोकार्पण करने का सौभाग्य या अवसर मुझे मिला।
शामलाजी का पुनर्निर्माण हुआ। आप मुझे बताइए के ये श्यामसुंदर शामलाजी मेरी सरकार बनने के बाद अवतरित हुए थे। ये मंदिर हमारी सरकार के पहले का नहीं है? मेरे मुख्यमंत्री बनने से पहले मेरा ये कालिया राजा नहीं था? जवाब दीजिये, शरमाईये नहीं। मेरे आदिवासी भाईओ आपको तो पता है। आप शामलाजी के मंदिर में जाये तो घूमते-घूमते पैर सूज जाये तब जाकर भगवान के दर्शन होते थे और आज देखो, शामलाजी का भव्य निर्माण कर दिखाया। शामलाजी में भगवान तो सदियों से बैठा था, पर उसकी देख-रेख करने वाला गांधी नगर में कोई नहीं था और इसलिये वो एक कोनें में छूपा हुआ था। हमने उसे उसका गौरव फिर से वापस दिलाया है।
भाईओ और बहनो,
सामान्यतः ऐसी मान्यता है कि भगवान बुद्ध का प्रभाव सिर्फ पूर्वीय भारत और एशिया के कुछ गिने चुने देशों में था। भगवान बुद्ध का प्रभाव पश्चिम भारत में भी था, पर इसकी जानकारी बहुत कम लोगों की थी। पर जब शामलाजी के नजदीक देव की मोरी में उत्खनन हुआ, तब भगवान बुद्ध के अवशेष मिले। लोगों को अचरज हुआ कि पश्चिम भारत में भी भगवान बुद्ध का प्रभाव था। मेरा सदभाग्य है कि मेरा जन्म वडनगर में हुआ, जिसके बारे में चीनी प्रवासी युएनत्संग ने लिखा है कि वडनगर में 10,000 बौद्ध भिक्षुओं के लिये छात्रालय था। जब मैं चीन गया था, तब चीन के राष्ट्रपति मुझे उनके गांव ले गये। जब युएनत्संग वापस चीन गये, तब चीन के वर्तमान राष्ट्रपति के गांव में रहे थे। खास बात ये है कि भारत में युएनत्संग सबसे ज्यादा समय मेरे गांव वडनगर में रहे और वापस चीन जाकर उसके वर्तमान राष्ट्रपति के गांव में रहे। उन्होनें यहा एक संग्रहालय का निर्माण कराया है। वहां उन्होंनें मुझे सब कुछ दिखाया, युएनत्संगने गुजरात के बारे में, वडनगर के बारे में जो कुछ चाइनीज भाषा में लिखा था उसकी जानकारी मुझे दी। कहने का तात्पर्य ये है कि बुद्ध का प्रभाव गुजरात में था। अरावल्ली में देव की मोरी में उनके अवशेष मिले है। मेरा एक सपना है कि इस देव की मोरी में, अरावल्ली पर भगवान बौद्ध का एक भव्य स्मारक बनाना। दुनिया भर के यात्री उसे देखने आये ये सपना है मेरा। मुझे भरोसा है कि गुजरात जनता को आशीर्वाद मिला तो उस सपने को भी पूरा करके दिखाऊंगा।
भाईओ और बहनो,
यहां मोडासा के बस पोर्ट के शिलान्यास की विधि की और बस पोर्ट की योजना का चित्र प्रस्तुत किया गया तब पूरे माहौल में खुशी छा गई थी, तालीयों की गड़गड़ाहट सुनाई दी थी। कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी गरीब इन्सान बस में प्रवास करता होगा। अमीर लोग हवाई जहाज में सफर करते है और उसके लिये एयरपोर्ट तो भव्य होते है। दिन में दो हवाई जहाज आते है, फिर भी एयरपोर्ट भव्यातिभव्य होते है। और हर रोज हजारों लोग सफऱ करने के लिये जिस बस स्टेशन में आते है, उस पर किसी का ध्यान दरकार नहीं होता। सभी तरफ कचरे के ढेर होते हैं, गंदगी होती है, दीवारें पिचकारी से लाल होती है, शौचालय में तो आप कदम भी नहीं रख सकते। भाईओ और बहनों, गरीबो के लिये ये सुविधा क्यों नहीं इस विचार के साथ गुजरात सरकार ने अत्याधुनिक बस पोर्ट के निर्माण की शुरुआत की। आज हिंदुस्तान के कोनें-कोनें से लोग देखने आते है कि एयरपोर्ट से भी बस पोर्ट बड़ा हो सकता है, अच्छा हो सकता है, सुंदर हो सकता है, ज्यादा सुविधा वाला हो सकता है, गरीबों को ज्यादा उपयोगी हो सकता है – इस प्रकार के कार्य करने कि दिशा में हम अग्रसर है।
भाईओ और बहनो,
आज यहां एपीएमसी के नये भवन का उद्घाटन करने का मुझे अवसर मिला। भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण योजना शुरु की है। हिंदुस्तान के किसानों को आज अपने गांव से थोडे दूर मार्केट यार्ड में जाकर अपना उत्पादन बेचना पडता है। किसान यार्ड में व्यापारी जो दाम तय करता है, उसी दाम पर किसानों को अपना उत्पादन बेचना पडता है। लेकिन अब किसानों को उससे मुक्ति मिलने वाली है, मजबूरी का जीवन जीने की आवश्यकता नहीं है। हमने E-NAM (इलेक्ट्रोनिक – नेशनल एग्रिकल्चर मार्केट) नाम की एक व्यवस्था का सर्जन किया है। इस व्यवस्था के साथ देशभर के 400 एपीएमसी मार्केट संलग्न है, जिसमें मोडासा का एपीएमसी भी शामिल है। अब किसान अपने मोबाइल पर इन सभी मार्केट के साथ जुड़ जायेगा। वो अब देश के विभिन्न बाजारों में अपने उत्पादन के दाम जान सकेगा, उसको जहां ज्यादा दाम मिले वहां अपने उत्पादन की ब्रिकी कर सकेगा। हमने इ-नाम नाम के इस टेकनोलॉजी आधारित प्लेटफोर्म पर एक समान, एकीकृत राष्ट्रीय कृषि बाजार को खड़ा किया है, जिसका सिर्फ एक उद्देश्य है – किसानों का उद्धार करना। अब किसान अपने माल की बिक्री बंगाल, बिहार, कोचि या पंजाब – किसी भी राज्य में कर सकेगा। अब किसान अपना उत्पादन की बिक्री कब,कहां और किस दाम पर करना है ये तय कर सकेगा। ये काम इस सरकार ने कर दिखाया है। पूरे देश को संकलित करने का, कृषि बाजारो को संलग्न करने का काम इस सरकार ने कर दिखाया है। मुझे यकीन है कि इसका फायदा आने वाले दिनो में इस देश के किसानों को मिलेगा।
भाईओ और बहनो,
भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण योजना शुरू की है – किसान संपदा योजना। आज हमारे यहां किसानों के उत्पादन के रख-रखाव की पर्याप्त सुविधा नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप कई उत्पादन बेकार हो जाते है। फलफलादि का आयुष्य कम होता है। अगर समय पर ग्राहक तक न पहुंचे, तो बिगड़ जाते है और किसानों को घाटा होता है। कुल देखे तो इससे देश को हजारों करोड़ो का घाटा होता है और किसानों के मेहनत बेकार होती है। इसी वजह से भारत सरकार ने किसान संपदा योजना शुरु की है और इसके तहत हजारों करोड़ों रुपये का इस्तेमाल किसानों के उत्पादनों की मूल्य वृद्धि के लिये, फूड प्रोसेसिंग के लिये, उसके रख-रखाव के लिये विविध संसाधन का निर्माण करने के लिये किया जाएगा। वेस्ट में से बेस्ट की फिलोसोफी हमने किसान संपदा योजना में अपनायी है। इस योजना से किसानों की जमीन की गुणवत्ता बढ़ेगी, उसकी कोई चीज बेकार नहीं जायेगी। भारत सरकार ने नवम्बर में दिल्ली में हिंदुस्तान के अब तक का एग्री प्रोसेसिंग का बड़ा ग्लोबल इवेन्ट आयोजित करके दुनिया में किस प्रकार की तकनीक का इस्तेमाल होता है उसका प्रदर्शन कर किसानों के प्रशिक्षित करने का महाअभियान शुरु किया है। इसका उद्देश्य किसानों को समृद्ध करने का है।
भाईओ और बहनो,
आजादी मिलने के बाद पहली बार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रस्तुत की गई है। ये ऐसी योजना है, जिसमें मेरे किसान सुरक्षिता की अनुभूति कर सकता है। आज तक कई फसल बीमा प्रस्तुत किए गए थे, लेकिन उसमें से ज्यादातर बैंक के साथ ऋण संबंधित थी। दरअसल ये योजना बैंक की गारन्टी ज्यादा थी, किसानों की सुरक्षा की कम। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों को रू. 100 के प्रीमियम में सिर्फ दो से पांच रुपये चुकाने होते हैं, जबकि बाकी की रकम भारत सरकार या राज्य सरकार चुकाती है। पहले बीमे में पूरे जिल्ले का हिसाब होता था, अब हर गांव का हिसाब होगा। कोई जिल्ले में पांच गांव में बारिश न हुई, तो उस गांव के किसान बीमा के हकदार बनेगें – इस प्रकार की व्यवस्था का सर्जन किया गया है। पहले पानी के भर जाने की वजह से फसल को नुकसान हो तो बीमा नहीं मिलता था, पर अब मिलता है। मान लो कि, जून महिने में बारिश होगी इस आशा में किसान ने सभी तैयारी कर दी, बियारण का छंटकाव किया, मजदूरों को तय कर लिया, पर जून महिने में बारिश न हुई तो? जुलाई-अगस्त में बारिश न हुई तो? पहली बार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में ईश्वर की अनुकंपा से बारिश न हुई तो किसान को उसके खेत में से लघुतम आवक देने की बीमा की गारन्टी दी गई है। कई बार ज्यादा बारिश हो तो बीमा मिलता है, फसल बिगड़ जाये तो बीमा मिलता है, हिमप्रपात हो तो बीमा मिलता है, पर खेत में फसल का ढ़ग हो, बाजार में अनाज पहुंचाना हो, और बीच में बारिश, आंधी या कोई कुदरती-कृत्रिम आपत्ति की वजह से फसल को नुकसान हो, तो इसका मुआवजा भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में देने का काम हमने किया है, जो पहले नहीं मिलता था।
भाईओ और बहनो,
गुजरात के ज्यादा से ज्यादा किसानों ने इस प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ लेने की शुरुआत की है। आप जितना ज्यादा लाभ लेंगे, इतनी मात्रा में सुरक्षा बढेगी।
भाईओ और बहनो,
साल 2022 में हिंदुस्तान अपनी आजादी की 75वी सालगिरह मनायेगा। साल 2003 में मैंने कहा था कि आने वाले पांच साल में हम गुजरात के किसानों की आय दुगनी करेंगे और हमने वो कर दिखाया और आज मैं कहता हूं कि साल 2022 में हिंदुस्तान के स्वतंत्रता की 75वी सालगिरह पर, जिस धरती पर लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ का मंत्रोच्चार किया, उस धरती पर हिंदुस्तान के किसानों की आय दुगनी करने का अभियान हमने शुरु किया है। बीज से लेकर बाजार तक एक चेन का निर्माण करके साल 2022 तक हिंदुस्तान के किसानों की आय दुगुनी हो – ये महाअभियान हमने शुरु किया है और आज ये योजना किसानों की, गांवो की समृद्धि के महाअभियान का एक भाग है। आज नर्मदा का पानी 55 मंजला इमारत जितनी उंचाई तक पहुंचाकर पूरे अरावल्ली जिल्ले को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराने का एक महान कार्य गुजरात सरकार ने किया है, और इस प्रकार का मानवता का कार्य, गुजरात के गांवो को सुखी, समृद्ध करने का कार्य,गुजरात की माताओ और बहनो को मुसीबतों में से मुक्ति दिलाने का अभियान, गुजरात के किसानों को स्वनिर्भर करने का कार्य – इस प्रकार के पावन कार्य में भागीदार होने के लिये मुझे आमंत्रित किया, मुझे आप के बीच आने का सौभाग्य दिया, आप के आशीर्वाद पाने का अवसर दिया – इस पर मैं राज्य सरकार का अंतःकरण से आभारी हूं। और आप सभी को, मेरे मोडासा के नागरिको को, मेरे मालपुर, मेघरज, बायड, भीलोडा और आसपास के गांव के नागरिको को शुभकामना देता हूं।
मेरे साथ पूरी ताकात से मुठ्टी बंद करके बोलिये, मैं कहूंगा नर्मदे आप बोलेंगे सर्वदे।
नर्मदे....
सर्वदे...
नर्मदा मैया हमारे घर आयी है, उसे नर्मदा के पूजारियों के मिजाज का अहसास होना चाहिये...
नर्मदे....
सर्वदे...
नर्मदे....
सर्वदे...
नर्मदे....
सर्वदे...
मित्रो,
आप का बहुत-बहुत धन्यवाद।
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AKT/AK/MK
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