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राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को अपने संवैधानिक अधिकार से पिछड़े वर्ग की हर शिकायत पर हर क्षेत्र    में उन्हें न्याय दिलाने का काम करने का अधिकार है: कर्नाटक उच्च न्यायालय                                                                             

Posted On: 26 SEP 2025 7:01PM by PIB Delhi

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा दिनांक 24.07.2023 को मण्डल आयुक्त, नागपुर के साथ समीक्षा बैठक तथा जनसुनवाई में कर्नाटक पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड से संबंधित विस्थापित किसानों ग्रामीणों, मजदूरों के भूमि अधिग्रहण को लेकर महाराष्ट्र सरकार और कर्नाटक सरकार के बीच में वर्ष 2016 में किये गये करार के अनुसार उसके अम्ल के निर्देश दिए गए थे तथा किसानों का मुआवजा विस्थापन अधिग्रहण वेतन अन्य मामलों पर अम्ल कराने हेतु मण्डल आयुक्त, नागपुर एवं अन्य संबंधित अधिकारियों को कर्नाटक पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड के अधिकारियों के समक्ष जो निर्देश दिए थे, उसके खिलाफ कर्नाटक सरकार तथा कर्नाटक पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड ने आयोग के निर्देश के खिलाफ माननीय कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की थी। इस याचिका पर  कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा आयोग के निर्देश पर स्टे आर्डर दिया गया था। इस स्टे आर्डर को आयोग द्वारा अपने संवैधानिक अधिकार से कर्नाटक सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम कर्नाटक पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड द्वारा किए जा रहे अन्याय और छल को लेकर और 2018 में संवैधानिक दर्जा जिसमें 338बी में जो अधिकार है, उस पर आयोग द्वारा अपनी भूमिका स्पष्ट की गयी। वर्ष 2018 में श्री नरेन्द्र मोदी सरकार के द्वारा दिया गया संवैधानिक दर्जा के चलते ही आयोग ने अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए दिनांक 24.07.2023 को किसानों के हित में और कर्नाटक पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड द्वारा हो रहे अत्याचार को कर्नाटक उच्च न्यायालय के सामने प्रभावी तरीके से रखा। जिसमें माननीय कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा दिए हुए स्टे आर्डर और याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आयोग के संवैधानिक अधिकार एक कागजी नहीं क्रियान्वयन करने के लिए संविधान के अनुसार सम्मान से इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। संकुचित भावनाओं से इसे नहीं देंखे। इन भावनाओं के साथ में  कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार की याचिका खारिज की।

एनसीबीसी ने  कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने मजबूती से अपना पक्ष रखा और रिट याचिका पर दिनांक 14.08.2025 को सुनवाई पूरी हुई और दिनांक 19.09.2025 को कर्नाटक हाईकोट ने एनसीबीसी के पक्ष में निर्णय सुनाया

  •  कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने दिनांक 19.09.2025 के निर्णय में उल्लेख किया है कि संविधान में अनुच्छेद 338B को शामिल किया गया है जिसने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सांविधिक दर्जे (Statutory Body) को बढ़ाकर एक संवैधानिक निकाय (Constitutional Body) बना दिया है। संवैधानिक दर्जे के रूप में आयोग का काम है- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा करना, केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक सलाहकारी भूमिका निभाना, एक शिकायत निवारण तंत्र होना और जातियों के शामिल / निष्कासन संबंधी सिफारिशें करना। संवैधानिक दर्जा दिए जाने की वजह से, जाहिर तौर पर, शिकायतों को प्रभावी ढंग से बाध्य करने के लिए आयोग को पर्याप्त शक्तियां हैं।
  •  कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि अनुच्छेद 338B के उपखण्ड यह आदेश देते हैं कि आयोग का कर्तव्य संविधान के तहत सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच और निगरानी करना होगा और पिछड़े वर्गों के अधिकारों से वंचित होने की सुरक्षा और शिकायत निवारण के कर्तव्य से संबंधित कई अन्य कर्तव्य भी निभाने होंगे।
  •  कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि आयोग जो सुनवाई कर रहा था वह किसी एक कर्मचारी की शिकायत नहीं है, बल्कि विस्थापित ग्रामीणों की सामूहिक पुकार है, जिनका जीवन खनन कार्यों के कारण प्रभावित हो रहा है। आयोग एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) नहीं है, बल्कि एक संवैधानिक निकाय (Constitutional Body) है और संविधान कोई कानून नहीं है, यह सभी कानूनों का स्रोत है।
  •  कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में जोर देते हुए कहा है कि कोर्ट, उपरोक्त विवाद को केवल संविदात्मक बारीकियों के संकीर्ण चश्मे से नहीं देख सकता। संविधान मात्र कागज पर लिखे हुए बेजान शब्द नहीं है, यह न्याय, समता और हाशिए पर पड़े लोगों के कल्याण का जीवंत प्रमाण है। अनुच्छेद 338B, अपने स्पष्ट आदेश द्वारा, आयोग को पिछड़े वर्गों की शिकायतों की रानी और समाधान करने का कर्तव्य सौंपता है। इसकी शक्तियाँ भ्रामक नहीं हैं, बल्कि वे उतनी ही व्यापक हैं जितना कि वह उद्देश्य जिसकी रक्षोपायों के लिए इसे बनाया गया है। अन्यथा मानना, कमजोर लोगों की आवाज को दबाना होगा और उस उद्देश्य को निरर्थक बनाना होगा, जिसके लिए आयोग को संविधान में शामिल किया गया था। जिन ग्रामीणों ने अपनी जमीनें छोड़ दी हैं, वे संविधान की सहानभूति के पान हैं। उनकी दुर्दशा एक समझौते के तौर पर असुविधा नहीं, बल्कि एक संवैधानिक चिंता का विषय है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग  कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले का पुरजोर स्वागत करता है। ओबीसी के विस्थापित किसानों के परिजनों को न्याय मिला है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सफलता की मुख्य वजह  मोदी सरकार द्वारा आयोग को दिया गया संवैधानिक दर्जा तथा संविधान के अनुच्छेद 338बी में दिये गये अधिकारों के चलते यह निर्णय हाईकोर्ट द्वारा दिया गया।

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