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जीएसटी कटौती से अरुणाचल प्रदेश के किसानों, शिल्पकारों और एमएसएमई को मजबूती

Posted On: 09 OCT 2025 12:15PM by PIB Delhi

प्रमुख बिंदु

  • अरुणाचल प्रदेश में प्रमुख कृषि, बागवानी, प्रसंस्करण और शिल्प उत्पादों पर जीएसटी दरें 12-18 प्रतिशत से घट कर 5 प्रतिशत हो गई हैं। इसके परिणामस्वरूप कीमतों में 6 से 11 प्रतिशत तक कमी आने से उत्पादकों के लाभ में प्रत्यक्ष वृद्धि हुई है।
  • अरुणाचल प्रदेश की आबादी का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा कृषि पर निर्भर है। जीएसटी में कमी से प्रदेश के संतरे, कीवी और आदी केकिर अदरक जैसे उत्पाद स्वदेशी और वैश्विक स्तर पर ज्यादा किफायती और प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।
  • जीएसटी 18 प्रतिशत से घट कर 5 प्रतिशत होने से बिस्किट 11 प्रतिशत और अचार 7 प्रतिशत सस्ते हो जाएंगे।

 

परिचय

हाल ही में किये गए जीएसटी सुधारों से आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर कर का बोझ काफी हद तक कम हुआ है, इससे वे उपभोक्ताओं के लिए ज्यादा किफायती हो गई हैं। इन सुधारों का उद्देश्य प्रमुख क्षेत्रों में लागत कम किये जाने से  उपभोक्ता मांग को बढ़ावा देना, घरेलू उद्योगों की प्रर्तिस्पर्धिता को बढ़ा कर एक ऐसा प्रभाव पैदा करना है जो समग्र आर्थिक विकास को गति प्रदान करे। भारत का सबसे दूरस्थ पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश भी इन सुधारों से लाभान्वित हुआ है।

टैक्स में कटौती से अरुणाचल प्रदेश के विकास की प्राथमिकताओं को पूरा करने,   कृषि आधार को मज़बूत करने और सामाजिक-आर्थिक प्रगति को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। यहाँ की 70% से ज़्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है और राज्य के पारंपरिक हस्तशिल्प की घरेलू और वैश्विक स्तर पर अच्छी माँग है। इसके आलावा अन्य प्रमुख क्षेत्रों में बेंत और बाँस, लकड़ी की नक्काशी और बागवानी आदि शामिल हैं। इन प्रमुख क्षेत्रों को अधिक लागत-प्रतिस्पर्धी बनाकर, जीएसटी में किये गए सुधार, मांग को बढ़ावा देंगे, बाजार पहुंच को व्यापक बनाने के साथ साथ निर्यात बढ़ाएंगे और अरुणाचल प्रदेश के समग्र आर्थिक विकास में तेजी लाएंगे।

कृषि एवं बागवानी (फल एवं कृषि पैदावार)

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अरुणाचल प्रदेश भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का सबसे बड़ा राज्य है, यह मुख्यतः कृषि प्रधान है और प्राकृतिक संसाधनों एवं विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों से समृद्ध है। राज्य की सामाजिक-आर्थिक विकास रणनीतियों की आधारशिला कृषि है। प्रमुख कृषि और बागवानी उत्पादों पर हाल ही में जीएसटी में 12% से 5% की कटौती से राज्य के उत्पाद घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों में सस्ते और प्रतिस्पर्धी हो गए हैं। इस कर राहत से न केवल उत्पादन और विपणन लागत कम होती है, बल्कि मांग भी बढ़ती है साथ ही बिक्री और निर्यात क्षमता भी बढ़ती है। इससे अरुणाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले किसानों को सीधा लाभ हुआ है।

 

अरुणाचल के संतरे और प्रसंस्कृत उत्पाद

अरुणाचल प्रदेश के वाकरो (लोहित), डम्बुक (निचला दिबांग), पूर्वी सियांग और तवांग जैसे क्षेत्रों में जीआई-टैग वाले अरुणाचली संतरे की पैदावार होती है, जो उच्च टीएसएस और अम्लता से उत्पन्न अपने खास  खट्टे-मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है। इसे प्रसंस्कृत करके सूखे खट्टे फल, जूस और जैम/जेली भी बनाये जाते हैं। 15,971 हेक्टेयर के बागों में फैले इस क्षेत्र पर लगभग 30000 से 40,000 परिवार  निर्भर करते हैं और 2022-23 में 62,633 मिलियन टन (खेत पर उपज का मूल्य: लगभग 501 करोड़) उत्पादन हुआ। कीटों के हमले, श्रमिकों की कमी और सीमित कोल्ड स्टोरेज जैसी चुनौतियों के बावजूद, यह हज़ारों आदिवासी परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है।

2018 में दुबई को 1 मीट्रिक टन निर्यात से शुरुआत की गयी और कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) यूएई, भूटान और आसियान देशों (दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ, वर्तमान सदस्य ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम) में निर्यात को बढ़ावा देता है।

जूस और जैम पर जीएसटी को 12% से घटाकर 5% करने से कीमतें लगभग 6.5% कम हो गई हैं (100 रुपए वाले जूस के लिए 112 रुपए की जगह अब 105 रुपए देने होंगे)।इससे प्रसंस्करणकर्ताओं को मदद मिलेगी, फसल-उपरांत नुकसान कम होगा और प्रतिस्पर्धिता बढ़ेगी।

अरुणाचल की कीवी और प्रसंस्कृत उत्पाद

अरुणाचल प्रदेश भारत का सबसे बड़ा कीवी उत्पादक है, राष्ट्रीय उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 50% से अधिक है। 2022-23 में राज्य में 4,492 मीट्रिक टन (खेत पर मूल्य: 67.4 करोड़) का उत्पादन हुआ। यह राज्य भारत के पहले प्रमाणित जैविक, जीआई-टैग वाले कीवी उत्पादन का गढ़ है, इसकी खेती मुख्य रूप से जीरो घाटी (निचला सुबनसिरी), पश्चिम कामेंग, तवांग, सी-योमी, कामले और पापुम पारे में की जाती है। प्रसंस्कृत कीवी उत्पादों जैसे जैम, मुरब्बे के लिए और फ्रूट ड्रिंक्स के लिए नारा आबा वाइनरी द्वारा कीवी सीधे किसानों से खरीदी जाती है। छोटे आदिवासी किसान कीवी की बागवानी करते हैं और राज्य के कीवी मिशन 2025 से जुड़े हैं। गौरतलब है कि अरुणाचल प्रदेश का लक्ष्य 13 जिलों में कीवी की खेती का विस्तार करना है। यह क्षेत्र हजारों परिवारों को आजीविका प्रदान करता है। दुबई में एपीडा के सफल बाजार परीक्षण से इसका निर्यात बढ़ने की क्षमता के संकेत मिलते हैं।

कीवी और प्रसंस्कृत उत्पादों पर हाल ही में जीएसटी को 12% से घटाकर 5% करने से कीमतों में लगभग 6.5% की कमी आई है, जिससे इसमें एमएसएमई की भागीदारी बढ़ी है, मूल्य संवर्धन में सहायता मिली है और कीवी मिशन 2025 के उद्देश्यों को मजबूती मिली है।

बड़ी इलायची

बड़ी इलायची, पूर्वी हिमालय का एक प्रमुख मसाला है। यह एक उच्च मूल्य वाली नकदी फसल है और अरुणाचल प्रदेश की मिश्मी जनजातियों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। अंजॉ (सबसे बड़ा उत्पादक), पूर्वी और ऊपरी सियांग, सुबनसिरी, तिरप और चांगलांग जिलों में उगाई जाने वाली यह इलायची हजारों किसानों की आजीविका का मुख्य साधन है। 2021-22 में, राज्य में  1,695 मीट्रिक टन बड़ी इलायची का उत्पादन हुआ, जिसका मूल्य लगभग 211-237 करोड़ रुपये था। भारत इसका एक प्रमुख वैश्विक निर्यातक है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 10-13 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम के बीच हैं।

मसालों पर जीएसटी 5% ही रखी गयी है, जबकि हाल ही में ट्रैक्टर और उसके पुर्जों जैसे कृषि उपकरणों पर जीएसटी दरों में 12-18% से 5% तक की कटौती की गई है, जिससे इसकी लागत में 7-13% की कमी आई है। परिणामस्वरूप बड़ी इलायची के उत्पादकों की आय में वृद्धि होगी।

आदि केकिर अदरक

अरुणाचल प्रदेश में अदरक की एक जीआई-टैग वाली किस्म आदि केकिर अदरक की उपज होती है, यह अपने विशिष्ट आकार और सुगंध के लिए जानी जाती है। यह अदरक पूर्वी और ऊपरी सियांग जिलों में अदरक उपजाने वाले किसानों द्वारा उपजाई जाती है और अचार और कैंडी बनाने वाले कई परिवारों और स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की आजीविका का मुख्य स्रोत है। अपनी उत्कृष्ट गुणवत्ता और सांस्कृतिक महत्व के लिए मूल्यवान, इस स्थानीय मसाले के  निर्यात की संभावनाएं अब बढ़ रही हैं, 2024 में मिली जीआई मान्यता से इसे और मजबूती मिलेगी।

हाल के सुधारों में अदरक के प्रसंस्कृत उत्पादों पर जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% कर दी गई है जिससे इसके अचार उत्पाद लगभग 7% सस्ते हो गए हैं और इससे एसएचजी और छोटे प्रसंस्करणकर्ताओं के मुनाफे में सीधे तौर पर सुधार हुआ है।

डेयरी उत्पाद- याक चुरपी (पनीर)

याक चुरपी, जीआई-टैग वाला  हिमालयी पनीर है, इसका  उत्पादन पारंपरिक रूप से अरुणाचल प्रदेश के तवांग और पश्चिम कामेंग जिलों में याक पालने वाले ब्रोक्पा और मोनपा समुदायों द्वारा किया जाता है। लगभग 1,200 याक चरवाहे अपनी आय के प्राथमिक स्रोत के रूप में इस डेयरी उत्पादन पर निर्भर हैं। यह पनीर प्रोबायोटिक से भरपूर है और स्थानीय भोजन के साथ-साथ पर्यटकों को भी यह नाश्ता काफी लुभाता है।

याक चुरपी पर जीएसटी को 12% से घटाकर 5% करने से यह लगभग 7% सस्ती हो गई है, जिससे मांग को बढ़ावा मिलने के साथ साथ स्थानीय याक पालने वालों की आजीविका को भी सहारा मिलेगा।

वस्त्र एवं हस्तशिल्प

अरुणाचल प्रदेश में 20 से ज़्यादा प्रमुख जनजातियों हैं, जिनमें से प्रत्येक अपनी अनूठी परंपराओं, शिल्प कौशल और कलात्मक विरासत के लिए जानी जाती है। इस क्षेत्र के प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए, कारीगर लंबे समय से रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ें जैसे बुने हुए कपड़ों से लेकर बाँस और बेंत के शिल्प, टोकरियाँ, कालीन और फ़र्नीचर बनाते हैं। इसके प्रसिद्ध हथकरघा उत्पादों में मिश्मी और शेरदुकपेन शॉल भी शामिल हैं। अरुणाचल प्रदेश के कालीन भी बहुत प्रसिद्ध हैं, अपनी गुणवत्ता और शिल्प कौशल की वजह से ये कालीन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी पसंद किये जाते हैं।

इडु मिश्मी वस्त्र

इडु मिश्मी जनजाति की महिलाएँ इडु मिश्मी वस्त्रों का उत्पादन कर अपनी समृद्ध बुनाई विरासत को संरक्षित कर रही हैं। यह वस्त्र मुख्यतः दिबांग घाटी और निचले दिबांग में पौराणिक प्रतीकों से ओतप्रोत ज्यामितीय पैटर्न के लिए जाने जाते हैं। यह शिल्प कला अरुणाचल प्रदेश के कुल लगभग 94,000 बुनकरों में से लगभग 2,000-3,000 कारीगरों की आजीविका का जरिया है। ये वस्त्र मेलों और एम्पोरिया में बेचे जाते हैं, लेकिन इन्हें मशीन-निर्मित विकल्पों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि अभी इनका निर्यात बहुत कम है लेकिन 2014 में मिली जीआई मान्यता से भविष्य के बाज़ारों में इसके बढ़ने की संभावनाएं हैं।

हाल ही में जीएसटी को 12% से घटाकर 5% करना एक महत्वपूर्ण कदम है। 8,000 रूपये की शॉल पर, जीएसटी 560 रूपये कम हो गया है जिससे कारीगरों को लाभ हुआ है और इस पारंपरिक शिल्प को जारी रखने में मदद मिली है।

हस्तनिर्मित कालीन (मोनपा/शेरदुकपेन/तिब्बती)

अरुणाचल प्रदेश में हस्तनिर्मित कालीन बौद्ध समुदायों (मोनपा और शेरदुकपेन) और तवांग, पश्चिम कामेंग, चांगलांग और ऊपरी सियांग में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों द्वारा बनाए जाते हैं। यह उद्योग लाहोउ समूह में लगभग 101 कारीगरों और अन्य केंद्रों में सैकड़ों अन्य कारीगरों को रोजगार देता है। ये कालीन अक्सर एम्पोरियमों और पर्यटन बाज़ारों में बेचे जाते हैं। इनमें बौद्ध रूपांकनों सहित पारंपरिक डिज़ाइनों को उकेरा जाता है और भारत के विशाल कालीन बाज़ार में इनके निर्यात की काफ़ी संभावनाएँ हैं। इन पारंपरिक कालीनों में खतान और मकसू-मकतान खास किस्म के हैं।

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हाल ही में जीएसटी सुधारों का इस क्षेत्र पर उत्साहजनक प्रभाव पड़ा है,  20,000 रुपये के कालीन पर 1,400 रुपये की टैक्स कटौती से महिला कारीगरों की आय में सीधे तौर पर वृद्धि हुई है और इस शिल्प कला की विरासत को बनाये रखने में सहायता मिली है।

बाँस और बेंत का फ़र्नीचर/शिल्प

अरुणाचल प्रदेश में बाँस, बेंत का फ़र्नीचर और शिल्प मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों के पुरुष कारीगरों द्वारा बनाए जाते हैं, जिनमें आदि, अपातानी, न्यिशी, मिशमी, नोक्टे और वांचो जैसे आदिवासी समुदाय शामिल हैं। हज़ारों कारीगर, घरों और बाज़ारों के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाते हैं। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण निचली दिबांग घाटी में बना 500 फुट ऊँचा आदि बाँस का पुल है। राज्य में 8824 मिलियन बांस के तने (कल्म) का प्रचुर भंडार है। भारत बाँस के फ़र्नीचर का निर्यात करता रहा है और अरुणाचल प्रदेश के खास डिज़ाइनों के लिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों ही बाज़ारों में प्रबल संभावनाएँ हैं।

हाल ही में जीएसटी दर को 12% से घटाकर 5% करने से खरीदारों के लिए इसकी कीमतों में उल्लेखनीय कमी आई है और प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। उदाहरण के लिए, 10,000 रूपये के फर्नीचर सेट पर लगभग 625 रूपये टैक्स कम हुआ है, जिससे उत्पाद सस्ते हो जाते हैं और माँग बढ़ती है। कारीगरों को आय में सीधा लाभ होता है साथ ही इस पारंपरिक शिल्प क्षेत्र में एमएसएमई के विकास को भी प्रोत्साहन मिलता है।

लकड़ी की नक्काशी और मुखौटे

तवांग और पश्चिम कामेंग (मोनपा और शेरडुकपेन जनजातियाँ) और तिराप और लोंगडिंग (वांचो जनजाति) में, पुरुष कारीगर लकड़ी की नक्काशी करते हैं, जिसमें अनुष्ठान की वस्तुएँ, मुखौटे और पाइप शामिल हैं। वांचो नक्काशी का संबंध शिकार की परंपराओं से है, जबकि मोनपा मुखौटे बौद्ध अनुष्ठानों का अभिन्न अंग हैं।इस क्षेत्र में कुछ हज़ार कारीगर कार्यरत हैं, जिनमें से कई केवीआईसी (खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग) से प्रशिक्षण और सहायता प्राप्त करते हैं। पर्यटन बाज़ारों में पर्यटक ये मुखौटे 2,100 से 2,500 रूपये तक खरीदतें हैं। प्राचीन वस्तुओं की कीमतें और भी ज़्यादा होती हैं। हालाँकि वर्तमान में निर्यात की मात्रा सीमित है, फिर भी आदिवासी कला की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में आशाजनक संभावनाएँ हैं।

हाल ही में जीएसटी में 12% से 5% की कटौती से उद्योग को और अधिक मदद मिली है 15,000 रूपये के मास्क पर, लगभग 1,050 रूपये  की कर बचत से उत्पाद अधिक किफायती हो गए हैं, जिससे पर्यटकों में बिक्री बढ़ी है और कारीगरों की आय में सुधार हुआ है।

मोनपा हस्तनिर्मित कागज़ (मोन शुगु)

तवांग के मोनपा कारीगर मोनपा हस्तनिर्मित कागज़ बनाते हैं, जो एक प्राचीन छाल से बनने वाला कागज़ है जिसे बौद्ध धर्मग्रंथों की विरासत को संरक्षित करने के लिए केवीआईसी के सहयोग से पुनर्जीवित किया गया है। यह कागज़ मठों और पर्यटकों को लगभग 50 रूपये  प्रति कागज़  की दर से बेचा जाता है। वर्तमान में, 14 कारीगर, जिनमें से 12 महिलाएँ हैं, इस शिल्पकला में लगे हुए हैं और स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित करने के प्रयास जारी हैं। गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में पर्यावरण-अनुकूल कागज़ की माँग बढ़ रही है।

हाल ही में जीएसटी में 12% से 5% की कटौती से प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है-500 रूपये  के बंडल पर लगभग 35 रूपये की टैक्स बचत से यह उत्पाद अधिक किफायती और बिक्री योग्य हो गया है।

प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और एमएसएमई

अरुणाचल प्रदेश में कई महिला स्वयं सहायता समूह और युवाओं द्वारा शुरू किये गए स्टार्टअप खाद्य प्रसंस्करण में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। ईटानगर, पासीघाट, अंजॉ और नामसाई जैसे प्रमुख केंद्रों में  बिस्कुट, नमकीन और सॉस जैसी वस्तुओं का उत्पादन होता है। इस क्षेत्र में 632 पंजीकृत एमएसएमई हैं जिनमें 4,591 लोग कार्यरत हैं, इसके साथ ही 41,069 व्यक्ति अनौपचारिक रूप से जुड़े हैं।

इस उद्योग को जैविक कृषि उत्पाद होने का भी लाभ मिलता है, स्थानीय कस्बों और मेलों में इन उत्पादों की आपूर्ति की जाती है और राज्य के सकल राज्य मूल्य वर्धन (जीएसवीए) ​​में यह 22.6% का योगदान देता है। हालाँकि अभी निर्यात की मात्रा सीमित है फिर भी फलों के मुरब्बों और अचार के बाज़ार में संभावनाएँ बढ़ रही हैं।

हाल ही में जीएसटी में की गई कटौती से प्रतिस्पर्धा मजबूत हुई है, बिस्कुट पर जीएसटी 18% से घटाकर 5% कर दिया गया है, जिससे यह लगभग 11% सस्ता हो गया है, जबकि अचार लगभग 7% सस्ता हो गया है। इससे उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ हुआ है।

लकड़ी उद्योग (प्लाईवुड, विनियर)

अरुणाचल प्रदेश में वन-आधारित उद्योग काफी महत्वपूर्ण है। यह राज्य की अर्थव्यवस्था का केंद्र है क्योंकि राज्य के 80% भाग में वन हैं। लकड़ी एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है और लकड़ी उद्योग वन-समृद्ध जिलों में संचालित होता और यह मुख्य रूप से प्लाईवुड और विनियर पर केंद्रित है। यह उद्योग आरा मिलों और प्लाईवुड मिलों में रोजगार प्रदान करता है और इसकी आपूर्ति, निर्माण एवं फर्नीचर बाजारों में की जाती है।

प्लाईवुड और विनियर के लिए, जीएसटी को 12% से घटाकर 5% करने से काफी राहत मिली है। अब 1 लाख रूपये के प्लाईवुड ढेर पर लगभग 7,000 रूपये की कर बचत होती हैहालांकि दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ वानिकी प्रबंधन आवश्यक है।

निष्कर्ष

जीएसटी में किये गए सुधारों  में  नई दरों को 12-18% से घटाकर 5% कर दिया गया  है, इससे अरुणाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था को बल मिला है। कृषि, बागवानी, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, हस्तशिल्प, वस्त्र, बांस और बेंत के फर्नीचर और लकड़ी आधारित उद्योगों पर टैक्स कम होने से इन उत्पादों की कीमतें कम हुई हैं और उत्पादकों का मुनाफा बढ़ा है।

प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों पर 6-11 प्रतिशत कम खर्च आएगा। हस्तशिल्प उत्पादों की कीमतों में 560-7000 रुपए की कमी आएगी। इससे प्रतिस्पर्धिता और मांग बढ़ेगी तथा एमएसएमई और जनजातीय शिल्पकारों को लाभ होगा। इन सुधारों से स्वदेशी और निर्यात बाजार तक पहुंच में बढ़ोतरी होगी तथा पारंपरिक और जीआई टैग वाले उत्पादों को प्रोत्साहन मिलेगा। इनसे समूचे अरुणाचल प्रदेश में संवहनीय वृद्धि, रोजगार और समावेशी विकास को बल मिलेगा।

संदर्भ

arunachalpradesh.gov.in

https://arunachalpradesh.gov.in/

agri.arunachal.gov.in

https://agri.arunachal.gov.in/

आईबीईएफ

https://ibef.org/industry/arunachal-pradesh-presentation

ASEAN.org

https://asean.org/member-states/

mygov.in

https://blog.mygov.in/the-role-of-traditional-craftsmanship-in-the-tourism-industry-of-arunachal-pradesh/

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