रक्षा मंत्रालय
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अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर व्‍यवसाय करने वाली कम्‍पनियों को भारत के जीवंत पोत निर्माण उद्योग के सामर्थ्‍य का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि अगली पीढ़ी की समुद्री क्षमताओं को मिलकर तैयार किया जा सके और एक सुरक्षित भविष्‍य बनाया जा सके: समुद्र उत्कर्ष में रक्षा मंत्री


“हमारे शिपयार्ड विमान वाहक पोतों को अनुसंधान पोतों और व्‍यावसायिक जहाजों तक ले जाने में सक्षम हैं, यह क्षमता भारत को जहाज निर्माण, जहाजों की मरम्‍मत, और समुद्री नवोन्‍मेष का वैश्विक केन्‍द्र बनाती है”

“भारतीय शिपयार्ड हमारी उभरती हुई नीली अर्थव्‍यवस्‍था के महत्‍वपूर्ण स्‍तम्‍भ हैं”

प्रविष्टि तिथि: 25 NOV 2025 2:57PM by PIB Delhi

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोगियों से भारत के जीवंत जहाज निर्माण उद्योग के सामर्थ्‍य का इस्तेमाल करने और अगली पीढ़ी की समुद्री क्षमताओं को विकसित करने की अपील की है, जिससे स्‍थायी टेक्नोलॉजी और मज़बूत आपूर्ति श्रृंखला बन सके और दुनिया के लिए एक नवोन्‍मेषी, समावेशी और सुरक्षित भविष्य बन सके। वे 25 नवम्‍बर, 2025 को नई दिल्ली में रक्षा उत्‍पादन विभाग द्वारा आयोजित एक सेमिनार, समुद्र उत्कर्ष में मुख्‍य भाषण दे रहे थे, जिसमें भारतीय शिपयार्ड्स की क्षमताओं को दिखाया गया था।

रक्षा मंत्री ने कहा कि भारतीय जहाज निर्माण उद्योग, जिसमें जोशीले पब्लिक सेक्टर के उपक्रम और गतिशील प्राइवेट सेक्टर के साझेदार शामिल हैं, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर राष्ट्रीय हितों की रक्षा करता है, और भारत ‘न केवल जहाज, बल्कि विश्वास’; ‘न केवल प्लेटफॉर्म, बल्कि साझेदारी’ बनाकर समुद्री सदी को आकार देने में मदद करने के लिए तैयार है। जो चीज भारत को सच में अलग बनाती है, वह है इसका एकीकृत एंड-टू-एंड जहाज निर्माण इकोसिस्टम। कॉन्सेप्ट डिजाइन और मॉड्यूलर निर्माण से लेकर आउटफिटिंग, रिफिट, मरम्मत और पूरे जीवन चक्र समर्थन तक, जहाज निर्माण प्रक्रिया का हर चरण देश में ही विकसित और पूरा किया जाता है। उन्होंने इस अवसर पर मौजूद उद्योग के हितधारकों, विदेशी साझेदारों, प्रतिनिधियों और सशस्त्र बलों और मंत्रालयों के अधिकारियों से कहा, हमारे पब्लिक और प्राइवेट शिपयार्ड, हजारों एमएसएमई के सहयोग से, एक मजबूत मूल्‍य श्रृंखला बना चुके हैं जो स्टील, प्रोपल्शन, इलेक्ट्रॉनिक्स, सेंसर और एडवांस्ड कॉम्बैट सिस्टम तक फैली हुई है।

श्री राजनाथ सिंह ने बताया कि भारत का जहाज निर्माण इकोसिस्टम विश्‍व स्‍तर के अनेक प्लेटफॉर्म की ताकत पर टिका है जो टेक्नोलॉजी की परिपक्‍वता और औद्योगिक गहराई को दिखाते हैं। उन्होंने बताया कि भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत, कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां और स्टेल्थ फ्रिगेट और डिस्ट्रॉयर जैसी प्रमुख परियोजनाएं न केवल देश की नौसेना की ताकत को दिखाते हैं, बल्कि बढ़ती डिज़ाइन क्षमता, ऑटोमेशन और सिस्टम इंटीग्रेशन विशेषज्ञता को भी दिखाते हैं।

रक्षा मंत्री ने कहा कि भारतीय शिपयार्ड ग्लोबल कमर्शियल और दोहरे इस्‍तेमाल वाले समुद्री उद्योग में बड़ी कम्‍पनियों के तौर पर उभर रहे हैं। उन्होंने हाई-एंड पैसेंजर और कार्गो वेसल, कोस्टल फेरी, पॉल्यूशन कंट्रोल और रिसर्च शिप, और इसरो और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओशन टेक्नोलॉजी के लिए दुनिया के सबसे एडवांस्ड डीप-सी माइनिंग सपोर्ट वेसल का ज़िक्र किया। उन्होंने घरेलू इस्तेमाल और ग्लोबल क्लाइंट्स के लिए ग्रीन-फ्यूल वेसल, एलएनजी कैरियर, रोल-ऑन रोल-ऑफ वेसल और हाई-एफिशिएंसी कमर्शियल शिप बनाकर एक फोर्स मल्टीप्लायर के तौर पर उभरने के लिए प्राइवेट सेक्टर की प्रशंसा की।

श्री राजनाथ सिंह ने कहा, हम विमानवाहक पोत से लेकर अत्‍याधुनिक अनुसंधान पोत और ऊर्जा दक्ष व्‍यावसायिक पोत तक देने में सक्षम हैं। यह समावेशी क्षमता भारत को आने वाले दशक में जहाज निर्माण, जहाज की मरम्‍मत और समुद्री नवोन्‍मेष का वैश्विक केन्‍द्र बनने के लिए मज़बूती से तैयार करती है।

रक्षा मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक का हर जहाज़ जो अभी बन रहा है, वह भारतीय शिपयार्ड में बन रहा है, जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने का सबूत है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत के जहाज निर्माण क्षेत्र में बदलाव कई आगे की सोच वाले पॉलिसी सुधारों पर टिका है, जिसमें मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 और मैरीटाइम अमृत काल विज़न 2047, रक्षा उत्‍पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति और रक्षा खरीद मैनुअल 2025 शामिल हैं।

श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार की कोशिशों का नतीजा यह है कि भारतीय नौसेना की 262 स्वदेशी डिज़ाइन और डेवलपमेंट परियोजनाएं अंतिम चरण में हैं। उन्होंने आगे कहा, हमें अपने प्लेटफॉर्म में ज़्यादा स्वदेशी विषय सूची होने का भी गर्व है। हमारे कुछ शिपयार्ड इस दशक में 100 प्रतिशत स्वदेशी कंटेंट हासिल करने की राह पर हैं। इसका मतलब है कि भारत से सप्लाई किए जाने वाले नौसेना के किसी भी जहाज़ को आपूर्ति श्रृंखला में कम से कम दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

रक्षा मंत्री ने भरोसा जताया कि जल्द ही भारत का कमर्शियल बेड़ा भी पूरी तरह से देश में ही बनेगा। उन्होंने कहा, दोनों तटों पर हमारे शिपयार्ड अब मॉडर्न फैब्रिकेशन लाइनें, एडवांस्ड मैटीरियल-हैंडलिंग सिस्टम, ऑटोमेटेड डिज़ाइन टूल्स, मॉडल टेस्टिंग फैसिलिटी और डिजिटल शिपयार्ड टेक्नोलॉजी चलाते हैं। ये सभी वैश्विक मानकों के हिसाब से हैं।

भारतीय शिपयार्ड को भारत की उभरती नीली अर्थव्‍यवस्‍था का एक महत्‍वपूर्ण स्‍तम्‍भ बताते हुए, श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि रक्षा प्लेटफॉर्म के अलावा, समुद्र की गहरी साइंटिफिक समझ, समुद्री इकोसिस्टम की मज़बूत निगरानी, स्‍थायी मछली पालन और भारत के बड़े समुद्र तट और एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में समुद्री कानून लागू करने की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई तरह के खास जहाज़ डिज़ाइन और बनाए गए हैं।  ग्रीन, कुशल और सस्टेनेबल जहाज़ बनाने के तरीकों की ओर बदलाव पर ज़ोर देते हुए, उन्होंने कहा कि भारतीय शिपयार्ड तेज़ी से पर्यावरण के अनुकूल टेक्नोलॉजी अपना रहे हैं, जिसने उन्हें क्लाइमेट-रेज़िलिएंट मैरीटाइम ग्रोथ में एक्टिव योगदान देने वाले के तौर पर स्थापित किया है।

रक्षा मंत्री ने भारतीय प्लेटफॉर्म द्वारा किए गए मानवीय सहायता और आपदा राहत मिशन का खास ज़िक्र किया, जिसमें कोविड-19 के दौरान ऑपरेशन समुद्र सेतु, 2025 के म्यांमार भूकंप के दौरान ऑपरेशन ब्रह्मा, और इस साल आईएनएस विक्रांत ने एमवी हीलन स्टार से एक साहसी चिकित्सा निकासी अभियान चलाया। उन्होंने कहा कि ये मिशन इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भारतीय शिपयार्ड ऐसे जहाज बनाते हैं जो सीमाओं की रक्षा करते हैं, जान बचाते हैं और ग्लोबल समुद्री स्थिरता बनाए रखते हैं। उन्होंने कहा कि इन गतिविधियों को डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, एआई-सक्षम शिपयार्ड प्रोसेस, हाइब्रिड प्रोपल्शन और फ्यूचर-फ्यूल रेडीनेस से और आसान बनाया जाता है, जिससे भारत वैश्विक मानकों के साथ जुड़ता है।

मुश्किल मरम्मत के लिए भारतीय शिपयार्ड में आने वाले विदेशी जहाजों की बढ़ती संख्या पर, श्री राजनाथ सिंह ने इसे भारत की क्षमता, भरोसे और लागत में मुकाबला करने की क्षमता की साफ पहचान बताया। उन्होंने कहा, हम पूरे हिन्‍द-प्रशांत क्षेत्र के लिए पसंदीदा आजीविका और मरम्‍मत केन्‍द्र बनना चाहते हैं।

सेमिनार की विषय वस्‍तु 2500 बीसीई - 2025 सीईजहाज निर्माण की उत्कृष्टता के 4,524 साल पूरे होने का जश्न’ पर, रक्षा मंत्री ने कहा कि यह विषय वस्‍तु सिर्फ एक औद्योगिक महत्वाकांक्षा को नहीं, बल्कि एक सभ्यतागत निरंतरता को दिखाती है। उन्होंने बताया कि लोथल की पुरानी गोदी से लेकर मुंबई, गोवा, विशाखापत्तनम, कोलकाता और कोच्चि के आधुनिक शिपयार्ड तक, भारत की समुद्री यात्रा विकास और लचीलेपन की कहानी है। उन्होंने कहा कि खोज, नवोन्‍मेष और सम्‍पर्क की सदियों पुरानी भावना को आज भी आगे बढ़ाया जा रहा है।

अपने भाषण में, रक्षा राज्य मंत्री श्री संजय सेठ ने समुद्र उत्कर्ष को एक अहम कार्यक्रम बताया जो भारत की जहाज निर्माण क्षमता का जश्न मनाता है और उसे दिखाता है। उन्होंने कहा, समुद्र उत्कर्ष हमें भारत की समृद्ध विरासत की याद दिलाता है और जहाज बनाने और मरम्मत में मॉडर्न अत्‍याधुनिक तकनीक और मजबूत राष्ट्रीय क्षमता के साथ इसकी दक्षता और सामर्थ्‍य को दिखाता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व और रक्षा मंत्री के मार्गदर्शन में, हमारा जहाज बनाने का क्षेत्र कई गुना बढ़ा है। उनकी कल्‍पना ने हमारे समुद्री क्षेत्र को मजबूत करने की दिशा में बढ़ावा दिया है।

श्री संजय सेठ ने कहा कि समुद्र उत्कर्ष नवीनतम नवोन्‍मेष को दिखाता है, जो भारत के समुद्री उद्योग के बढ़ते विश्‍वास को आगे बढ़ाते हैं। उन्होंने नवोन्‍मेष, कौशल विकास, सहयोग और निर्यात प्रतिस्‍पर्धात्‍मकता के क्षेत्र में लगातार ध्‍यान देने की अपील की, और इन्हें भारत के एक बड़े जहाज निर्माण देश के तौर पर आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी चीज़ें बताया। उन्होंने भारत के लंबे समुद्री इतिहास पर भी रोशनी डाली, और कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता से ही, फलते-फूलते शिपयार्ड ने हमेशा देश को समुद्र के ज़रिए दुनिया से जोड़ा है।

इस मौके पर, सचिव (रक्षा उत्‍पादन) श्री संजीव कुमार ने शिपयार्ड को भारत की औद्योगिक ताकत और आत्मनिर्भरता का स्‍तम्‍भ बताया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में, ये डिजिटल उपकरण, ऑटोमेशन और पेशेवर सर्वश्रेष्‍ठ कार्य प्रणाली को अपनाकर मॉडर्न, वैश्विक प्रतिस्‍पर्धात्‍मकता यार्ड में बदल गए हैं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि चाहे जटिल युद्धपोत हों, मिड-लाइफ अपग्रेड हों, या कमर्शियल रिपेयर हों, भारत आज कैपेबिलिटी, लोकेशन और क्वालिटी का एक आदर्श संयोजन देता है।

सचिव (रक्षा उत्‍पादन) ने कहा, हमारे शिपयार्ड सिर्फ़ औद्योगिक सुविधा ही नहीं हैं; वे भारत के समुद्री पुनरुत्थान और बढ़ते राष्ट्रीय आत्मविश्वास के प्रतीक हैं। सरकार इस क्षेत्र को मज़बूती प्रदान करने, आधुनिकीकरण, क्षमता निर्माण, कौशल प्रदान करने, औद्योगिक साझेदारी और भविष्य के लिए ग्रीन शिपबिल्डिंग को सहयोग करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। एसएजीएआर (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फ़ॉर ऑल इन द रीजन) के अंतर्गत प्रधानमंत्री की कल्‍पना के अनुसार उनके मार्गदर्शन में और हमारे दीर्घकालिक नौवहन मानचित्र मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 और मैरीटाइम अमृत काल विज़न 2047 की सहायता से, हमारे शिपयार्ड एक आत्मनिर्भर, इनोवेटिव और ग्लोबली कनेक्टेड समुद्री भारत को आकार दे रहे हैं।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत, रक्षा मंत्री ने एक कॉफ़ी-टेबल बुक ‘शिपयार्ड्स ऑफ़ भारत - इंफ्रास्ट्रक्चर, कैपेबिलिटी, कैपेबिलिटी, आउटरीच’ और दो कलेक्शन - ‘समुद्र नवप्रवर्तन’ और भारतीय शिपयार्ड के लिए 10-साल का एआई रोडमैप जारी किया।

 

रक्षा मंत्री और रक्षा राज्य मंत्री ने अलग-अलग शिपयार्ड के लगाए गए स्टॉल भी देखे, जहाँ मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर और एक्सपेंशन प्लान दिखाए गए। कार्यक्रम के दौरान युद्धपोत निर्माण, पनडुब्‍बी निर्माण/रिफिट, मानवरहित/ऑटोनॉमस सिस्टम, और कमर्शियल शिपबिल्डिंग और रिपेयर पर भी सत्र आयोजित किए गए। इस मौके पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, चीफ ऑफ द नेवल स्टाफ एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी और वरिष्‍ठ नागरिक और सैनिक अधिकारी मौजूद थे।

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