इफी में छाई यादों, संघर्षशीलता और जिजीविषा की कहानियां
लापता होने वालों की यादेंः ‘फॉरेंसिक’ में निजी पीड़ा बन जाती है सियासी
‘कू हैंडजा’ में जिंदा हो उठती हैं मोज़ाम्बिक की सत्य कथाएं
इफी में आज दर्शकों को कोलंबिया और मोज़ाम्बिक के कैमरों से हाशिए पर की जिंदगियों की दुर्लभ झलक देखने को मिली। ‘फॉरेंसिक्स‘ और ‘कू हैंडजा’ की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहानीकला की वह ऊंचाई देखने को मिली जो जितनी कला की है उतनी ही यादों और संघर्षशीलता की भी।
फेडरिको अतेहोर्तुआ आर्टेगा की ‘फॉरेंसिंक’ तीन आख्यानों को एक सूत्र में पिरोने वाली एक बिंदास और प्रयोगधर्मी फिल्म है। इनमें से एक कथा एक मृतक ट्रांसजेंडर के जीवन को फिर से रचने वाली महिला निर्देशक की है। दूसरी में फेडरिको का अपना फिल्मकार परिवार एक रिश्तेदार के लापता होने से जूझ रहा है। तीसरी कहानी अपराध फोरेंसिक रोगविज्ञानी केरेन क्विंटेरो की गवाही की है। ये तीनों आख्यान मिल कर एक निजी अनुभव को कोलंबिया के उथलपुथल भरे अतीत और विलोप से उपजे जख्मों का संधान करने वाली राजनीतिक कथा में तब्दील कर देते हैं।

फेडरिको ने अपनी रचना के वास्तविक जीवन से संबंध पर दिल खोल कर बातचीत की। उन्होंने कहा, ‘‘यह अनेक कोलंबियाइयों की कहानी है। देश में हर कोई लापता हुए किसी आदमी को जरूर जानता है। इस फिल्म में लोगों को अपने चाचा या भाई का चेहरा नजर आता है और कुछ की तो आंखें भर आती हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कथा को लोगों के मन की गहराई तक उतरते दिखना वास्तव में दिल को छू जाता है। यादें जरूरी हैं। वे नई पीढ़ी को टकराव की मानवीय कीमत के बारे में बताती हैं।’’
फेडरिको की नजर में इस फिल्म के लिए किया गया अनुसंधान महत्वपूर्ण होने के साथ ही चुनौतीपूर्ण भी था। यह फिल्म अपने लापता परिजनों की तलाश कर रहे लोगों के बीच एकजुटता की भावना का मंच बन जाती है।

दुनिया भर में, 'कु हैंड्ज़ा' फिल्म, जिसका निर्माण जैसिंटा मारिया डी बैरोस दा मोटा पिंटो और रुई सीज़र डी ओलिवेरा सिमोस ने किया है, वास्तविकता का एक अलग ही कलेवर लेकर आई। मोजाम्बिक के समाज को दर्शाती यह फिल्म असाधारण परिस्थितियों का सामना कर रहे आम लोगों के जीवन को दिखाती है। बेंजामिन अपने बेटे के जन्मदिन के लिए पैसे जुटाने की जद्दोजहद कर रहा है, फिलिमोन परिवार और युद्धकालीन कर्तव्यों के बीच संतुलन बिठा रहा है और यूलैलिया बच्चे को जन्म देने के बस कुछ ही दिनों बाद एक लैंडफिल पर काम करने के लिए लौटती है। जैसिंटा ने बताया कि फिल्म की प्रामाणिकता इसके लोगों से आती है, क्योंकि वे अभिनेता नहीं हैं, बल्कि असल जिंदगी जी रहे हैं जिन्हें एक सिनेमाई कथा में पिरोया गया है। उन्होंने कहा, "मोजाम्बिक निर्देशक के लिए दूसरा घर बन गया था। हम इन जिंदगियों को ईमानदारी से चित्रित करना चाहते थे, जैसे कि हम भी उन्हीं में से एक हों।"

हालांकि दोनों फ़िल्में अलग-अलग वास्तविकताओं पर आधारित हैं, लेकिन अनसुनी बातों को आवाज़ देने की अपनी काबिलियत में एक जैसी हैं। ‘फॉरेंसिंक’ कोलंबिया के दुख और राजनीतिक उथल-पुथल को दिखाती है, जबकि 'कु हैंड्ज़ा' मोज़ाम्बिक की ज़िंदगी की जीवटता और रोज़मर्रा की हिम्मत को दिखाती है। साथ ही, वे दर्शकों को याद दिलाती हैं कि सिनेमा से सिर्फ़ मनोरंजन ही नहीं किया जा सकता, बल्कि इसमें सीमाओं के पार मानवीय अनुभव को दर्ज करने, जोड़ने और रोशन करने की भी ताकत है।
सत्र के अंत तक, यह स्पष्ट हो गया था ये फिल्में सिर्फ कहानियाँ ही नहीं दिखाती बल्कि उससे कहीं अधिक काम करती हैं। ये दुनिया के बीच पुल बनाती हैं, जो दर्शकों को उन संघर्षों से लड़ने और उनमें जिजीविषा और उम्मीद जगाती हैं जहाँ वे शायद कभी भी न जा पाएं उसके बावजूद वे उन्हें गहराई से महसूस करते हैं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस लिंक
इफ्फी के बारे में
1952 में शुरू हुआ, इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया (इफ्फी) दक्षिण एशिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा फिल्म समारोह है। इसे राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम, सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार और एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ़ गोवा, गोवा सरकार द्वारा सयुंक्त रूप से आयोजित किया जाता है। यह समारोह सिनेमा के शक्तिशाली मंच के तौर पर उभरा है जिसमें साहसिक प्रयोग मिलते हैं और प्रसिद्ध फिल्मकार शामिल होते हैं। इफ्फी को वास्तव में आकर्षक बनाने वाली चीज़ है इसका रोमांचक मिश्रण जिसमें अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाएँ, सांस्कृतिक प्रदर्शन, मास्टरक्लासेस, श्रद्धांजलियां और ऊर्जा से भरपूर ‘वेव्स’ का फिल्म बाज़ार शामिल हैं और विचारों और सहयोगों को उड़ान मिलती है। गोवा के लुभावने तटों में 20 से 28 नवंबर तक आयोजित होने वाला 56वाँ संस्करण भाषाओं, शैलियों, नवोन्मेष और आवाज़ों का एक शानदार समारोह है। यह विश्व मंच पर भारत की रचनात्मक प्रतिभा का एक गहन उत्सव है।
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