अकिनोला डेविस जूनियर को ‘माई फादर्स शैडो’ के लिए रजत मयूर-विशेष जूरी पुरस्कार
जूरी ने फिल्म की उत्कृष्ट पटकथा और कलाकारों के बेहतरीन अभिनय को सराहा
राजनीतिक उथल-पुथल के बीच परिवार में जटिल संबंधों को उकेरती है ‘माई फादर्स शैडो’
ब्रिटिश नाइजीरियाई फिल्मकार अकिनोला डेविस जूनियर की सशक्त और विचारोत्तेजक फिल्म ‘माई फादर्स शैडो’ को 56वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफी) में विशेष जूरी पुरस्कार प्रदान किया गया है। जूरी ने इस फिल्म की असाधारण सिने कला और निर्देशक की विशिष्ट कलात्मक दृष्टि को मान्यता देते हुए इसे 15 फिल्मों के बीच अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में विजेता चुना। पुरस्कार गोवा के मुख्यमंत्री श्री प्रमोद सावंत और केंद्रीय सूचना और प्रसारण तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री डॉ एल मुरुगन ने प्रदान किया। इस अवसर पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव श्री संजय जाजू, इफी की जूरी के प्रमुख श्री राकेश ओमप्रकाश मेहता और महोत्सव के निदेशक श्री शेखर कपूर भी उपस्थित थे।

इफी के विशेष जूरी पुरस्कार को आधिकारिक तौर पर रजत मयूर विशेष जूरी पुरस्कार के रूप में जाना जाता है। यह उस फिल्म को दिया जाता है जो जूरी की राय में सिनेमा के किसी भी पहलू में असाधारण उत्कृष्टता प्रदर्शित करती हो। निर्देशक को दिए जाने वाले इस पुरस्कार में एक रजत मयूर, 15 लाख रुपए नकद और प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है।
जूरी ने कहा, ‘‘इस फिल्म की पृष्ठभूमि नाइजीरिया का 1993 का अराजक राष्ट्रपति चुनाव है जब हिंसक दमन के खिलाफ अदम्य मानवीय भावना उठ खड़ी हुई थी। इस माहौल में फोलारिन देर से मिल रही तनख्वाह लेने के लिए अपने दो बेटों के साथ लागोस जाता है। एक बेहतरीन पटकथा तथा मायूस पिता और भ्रमित और भयभीत बेटों के लाजवाब अभिनय के जरिए यह फिल्म प्रेम, परवरिश और सुलह का अभाव जैसे विषयों को बखूबी प्रदर्शित करती है। इस फिल्म का गर्म आगोश अपने में अंतरंग क्षणों और सूक्ष्म भंगिमाओं को समेटे है।
इफी ने ‘माई फादर्स शैडो’ को पुरस्कृत कर वैश्विक कहानीकला की एक उल्लेखनीय कृति और आधुनिक सिनेमा के दायरों का विस्तार करने वाली फिल्मकारों की रचनात्मक शक्ति को मान्यता दी है।

‘माई फादर्स शैडो’ की संक्षिप्त कथा
यह नाइजीरिया की राजधानी लागोस में 1993 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान एक दिन की अर्द्ध आत्मकथात्मक कहानी है। दो नौजवान भाई आकिन और रेमी देरी से मिल रही तनख्वाह लेने के लिए उथल-पुथल भरे शहर में एक दिन अपने अलग रहने वाले पिता फोलारिन के साथ एक दिन गुजारते हैं। फिल्म अंतरंग क्षणों और सूक्ष्म भंगिमाओं की मदद से राजनीतिक उथल-पुथल के बीच परिवार के जटिल रिश्तों को खंगालती है। यह प्रेम, वियोग और सुलह के विषयों को बेहद सजीव ढंग से प्रदर्शित करती है।
इफ्फी के बारे में
1952 में शुरू हुआ, इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया (इफ्फी) दक्षिण एशिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा फिल्म समारोह है। इसे राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम, सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार और एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ़ गोवा, गोवा सरकार द्वारा सयुंक्त रूप से आयोजित किया जाता है। यह समारोह सिनेमा के शक्तिशाली मंच के तौर पर उभरा है जिसमें साहसिक प्रयोग मिलते हैं और प्रसिद्ध फिल्मकार शामिल होते हैं। इफ्फी को वास्तव में आकर्षक बनाने वाली चीज़ है इसका रोमांचक मिश्रण जिसमें अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाएँ, सांस्कृतिक प्रदर्शन, मास्टरक्लासेस, श्रद्धांजलियां और ऊर्जा से भरपूर ‘वेव्स’ का फिल्म बाज़ार शामिल हैं और विचारों और सहयोगों को उड़ान मिलती है। गोवा के लुभावने तटों में 20 से 28 नवंबर तक आयोजित होने वाला 56वाँ संस्करण भाषाओं, शैलियों, नवोन्मेष और आवाज़ों का एक शानदार समारोह है। यह विश्व मंच पर भारत की रचनात्मक प्रतिभा का एक गहन उत्सव है।
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