अणु ऊर्जा विभाग
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संसद प्रश्न: पीएफबीआर परियोजना में हासिल की गई उपलब्धियाँ

प्रविष्टि तिथि: 04 DEC 2025 6:19PM by PIB Delhi

परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) ने पीएफबीआर के लिए रिएक्टर कोर में प्रारंभिक ईंधन लोडिंग (आईएफएल), क्रिटिकल अवस्‍था में लाने हेतु प्रथम प्रयास (एफएसी) और निम्न शक्ति भौतिकी प्रयोग (एलपीपीई) की अनुमति 16.10.2025 को जारी की। रिएक्टर में 37 सब-असेंबलीज़, जिनमें 28 ईंधन सब-असेंबलीज़ शामिल हैं, का लोडिंग कार्य जारी है। सभी ईंधन सब-असेंबलीज़ को रिएक्टर कोर में लोड करने के बाद अगला महत्वपूर्ण चरण एफएसी होगा।

घरेलू परमाणु उद्योग के वर्तमान पारिस्थितिकी तंत्र में सरकार और निजी, दोनों इकाइयाँ शामिल हैं। विभागीय उद्यम परमाणु सामग्री (भस्म्य सामग्री, न्युट्रॉन अवशोषक, हैवी वॉटर, ज़रकोनियम मिश्रधातु उत्पाद आदि), परमाणु रिएक्टर ईंधन असेंबली, घटक, परमाणु डिटेक्टर/सेंसर आदि के निर्माण में संलिप्‍त हैं।

700 मेगावाट-इलैक्ट्रिक पीएचडब्ल्यूआर, 200 मेगावाट-इलैक्ट्रिक भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (बीएसएमआर-200) और 55 मेगावाट-इलैक्ट्रिक स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर-55) के लिए अधिकांश परमाणु उपकरण भारतीय निजी उद्योगों की क्षमता में आते हैं। परमाणु ऊर्जा क्षमता विस्तार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, विभाग नए विक्रेताओं के विकास को प्राथमिकता देता है, जिसमें भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) द्वारा मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है, जिससे “मेक इन इंडिया” के लक्ष्य को पूरा किया जा सके। आदेशों के पैमाने से निजी खिलाड़ियों की क्षमता वृद्धि को बढ़ावा मिलने की संभावना है।

परमाणु खनिज अन्वेषण एवं अनुसंधान निदेशालय (एएमडी), जो परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) की एक घटक इकाई है, को देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का समर्थन करने के लिए यूरेनियम, थोरियम, नियोबियम, टैण्टलम, बेरिलियम, लिथियम, ज़रकोनियम, टाइटेनियम और रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) के खनिज संसाधनों की पहचान और मूल्यांकन करने का दायित्व सौंपा गया है।

उपरोक्त तत्वों के अतिरिक्त खनिज संसाधनों की पहचान और संवर्धन करने के लिए, एएमडी देश के संभावित भूवैज्ञानिक क्षेत्रों में एकीकृत और बहु-विषयी अन्वेषण (जिसमें भू-भौतिक, भू-वैज्ञानिक, भू-रासायनिक और रेडियोमेट्रिक सर्वेक्षण शामिल हैं) कर रहा है।

यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल), जो डीएई के अंतर्गत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, देश में यूरेनियम अयस्क के खनन और प्रसंस्करण में संलिप्‍त है। कंपनी झारखंड राज्य में सात यूरेनियम खदानों और दो प्रसंस्करण संयंत्रों का संचालन कर रही है तथा आंध्र प्रदेश राज्य में एक यूरेनियम खदान और प्रसंस्करण संयंत्र संचालित कर रही है।

डीएई के पास वर्तमान रिएक्टरों और बढ़ती रिएक्टर फ्लीटों, जिसमें स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) की फ्लीटें भी शामिल हैं, से उत्पन्न होने वाले रेडियोधर्मी अपशिष्ट के सुरक्षित और दीर्घकालिक प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक और आंतरिक रूप से संरेखित ढांचा मौजूद है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और ईंधन चक्र सुविधाओं से उत्पन्न होने वाले परमाणु अपशिष्ट को “परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962”, इसके बाद किए गए संशोधनों और परमाणु ऊर्जा (रेडियोधर्मी अपशिष्ट का सुरक्षित निपटान) नियम, 1987 के प्रावधानों के तहत सुरक्षित रूप से प्रबंधित/निपटाया जाएगा।

अपशिष्ट प्रबंधन की नीति के अनुसार, किसी भी भौतिक रूप में अपशिष्ट को पर्यावरण में तब तक नहीं छोड़ा/निपटाया जाता, जब तक उसे नियमों के तहत मंजूरी, छूट न प्राप्‍त हो या उसे इन नियमों से बाहर न रखा गया हो। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के संचालन और रखरखाव से उत्पन्न निम्न और मध्यम स्तर के अपशिष्ट संयंत्र स्थल पर ही प्रबंधित किए जाते हैं। इन अपशिष्टों का उपचार किया जाता है, उनका संकेंद्रण और सघनन किया जाता है, उन्हें सीमेंट जैसे ठोस रूप में स्थिर किया जाता है और विशेष रूप से निर्मित संरचनाओं जैसे कि रिइनफोर्समेंट कंक्रीट ट्रेंच और टाइल होल में निपटाया जाता है। निपटान सुविधा की सतत् निगरानी की जाती है, जिससे निपटाए गए अपशिष्ट में मौजूद रेडियोधर्मिता की प्रभावी निरोधकता सुनिश्चित की जा सके।

हल्के संवर्धित यूरेनियम (एसईयू) को प्रस्तावित स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) के लिए संभावित ईंधन माना जाता है। खर्च किए गए ईंधन को संभालने और उसका मूल स्‍थान पर ही (इन-सीटू) भंडारण करने के लिए प्रणालियां नियोजित की गई हैं। घरेलू ईंधन के मामले में, खर्च किए गए ईंधन का पुनःप्रसंस्करण कर मूल्यवान परमाणु सामग्री को पुनर्प्राप्त करने और कुल परमाणु अपशिष्ट भार को कम करने का प्रस्ताव है। परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन की व्यापक नीति कुल परमाणु अपशिष्ट भार को कम करने के लिए समान रहती है, अर्थात् उपयोगी रेडियोआइसोटोप्स, यदि कोई हों, की पुनर्प्राप्ति, उसके बाद अपशिष्ट की मात्रा में कमी और स्थिर ग्लास मैट्रिक्स में अपशिष्ट का काँच में स्थिरीकरण (विट्रीफिकेशन), तथा इंजीनियर की गई सुविधाओं में भंडारण, जिनकी निगरानी अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप की जाती है।

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पीके/केसी/पीके


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