सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय
आशा का पुल: साहिबगंज का गंगा पार मार्ग राहत, रोज़गार और कनेक्टिविटी का वादा करता है
प्रविष्टि तिथि:
03 DEC 2025 1:14PM by PIB Delhi
दशकों से साहिबगंज (झारखंड) और आसपास के ज़िलों के लोग दो वास्तविकता के बीच जी रहे हैं। एक गंगा के उस पार और दूसरा उस पार। किलोमीटरों में दूरी भले ही कम हो, लेकिन संघर्ष लंबा रहा है, महँगी नाव यात्राएँ, छूटे हुए अपॉइंटमेंट, समय पर अस्पताल न पहुँच पाने वाले परिवार और सामान देर से पहुँचने के कारण व्यापारियों को ज़्यादा पैसे देने पड़ते हैं। अब जब झारखंड में एन एच-133B को बिहार में एन एच-131A से जोड़ने वाला नया पुल तैयार हो रहा है, तो उम्मीदें स्टील और कंक्रीट का मूर्त रूप ले चुकी हैं।
महादेव गंज के निवासी रामकेश कहते हैं "हमारे लिए नाव के लिए 100 रूपये बहुत बड़ी रकम है।" वे लंबे इंतज़ार, अप्रत्याशित स्टीमर और मनिहारी या कटिहार जाने के अतिरिक्त तनाव का ज़िक्र करते हैं। वे कहते हैं, "हम अपनी मर्ज़ी से यात्रा नहीं कर पाते। इस पुल के बनने से हमारी नदी की समस्या आखिरकार खत्म हो जाएगी और कटिहार पहुँच आसान हो जाने पर कई ज़रूरी चीज़ें सस्ती हो जाएँगी।"
त्वरित तथ्य:
- परियोजना की लंबाई 8 किलोमीटर
- कुल परियोजना लागत: 1,977.66 करोड़ रूपये
- समापन तिथि वित्तीय वर्ष 2026-2027
झारखंड और बिहार के बीच हर मौसम में सीधा संपर्क प्रदान कर यह पुल माल ढुलाई, खासकर झारखंड के संसाधन-समृद्ध क्षेत्रों से खनिज माल ढुलाई को तेज़ करेगा। इससे परिवहन तेज़ और अधिक कुशल हो जाएगा। कम परिवहन समय से ईंधन और रसद लागत में कमी आएगी, उपभोक्ताओं के लिए कीमतें कम होंगी और स्थानीय व्यापारियों को बेहतर प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी।
सुशील याद करते हैं "कभी-कभी तो शादियाँ भी समय पर नहीं हो पाती थीं," उन्हें याद है कि कैसे स्टीमर न होने से यात्रियों को लंबे चक्कर लगाने पड़ते थे। उनके लिए यह पुल गरिमा और विश्वसनीयता का प्रतीक है। हम समय और पैसा बचाएँगे। जीवन ज़्यादा शांतिपूर्ण होगा।"
आपातकालीन पहुँच एक और जीवन बदलने वाला वादा है। एक दुकानदार अब्दुल कहते हैं "आपात स्थिति में रात हमारी दुश्मन बन जाती है।" एम्बुलेंस नौका सेवा के इंतज़ार में रुकी रहती थीं और मरीज़ों को भारी देरी का सामना करना पड़ता था। स्थायी सड़क मार्ग होने से लोगों तक चिकित्सा सहायता तेज़ी से पहुँच सकेगी। यह पुल बाढ़ के दौरान स्थानीय लोगों की सुरक्षा को भी मज़बूत करेगा क्योंकि जलमार्गों में उफान आने पर यह एक भरोसेमंद मार्ग प्रदान करेगा।
व्यक्तिगत राहत के अलावा क्षेत्रीय संपर्क में भी बदलाव आएगा। इस पुल से संथाल परगना (झारखंड) को बिहार, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों से निर्बाध रूप से जोड़ने और नेपाल, भूटान और बांग्लादेश की ओर व्यापार गलियारों में सुधार की उम्मीद है। मौसमी अलगाव के आदी समुदायों के लिए इसका मतलब है नए बाज़ार, सीमा पार व्यापार में सुगमता और क्षेत्र में निवेश के लिए एक मज़बूत आधार।
अब्दुल कहते हैं "पत्थर, रेत और अन्य सामग्री ढोने वाले ट्रकों से डीज़ल और समय की बचत होगी। इससे यहाँ की लागत कम होगी। लोग अलग-अलग ज़िलों में काम करके उसी दिन वापस आ सकते हैं।"
आज नदी के किनारे खड़े होकर क्रेनों को गर्डर उठाते हुए देखने वाले लोगों के लिए, यह पुल पहले से ही उनकी उम्मीदों का भार उठा रहा है।
जो कभी विभाजक धारा थी, अब अवसरों की राह बन रही है। रामकेश, सुशील और अब्दुल के लिए और साहिबगंज और उसके आसपास के हज़ारों लोगों के लिए यह पुल सिर्फ़ बुनियादी ढाँचे से कहीं बढ़कर है: यह एक पूरा हुआ वादा है, रोज़मर्रा का बोझ हल्का हुआ है और एक ऐसा भविष्य है जो आखिरकार नज़दीक आ गया है।
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पीके/ केसी/ एसके
(रिलीज़ आईडी: 2199773)
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