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शैक्षणिक सत्र में सांस्कृतिक निरंतरता पर हुई चर्चा


प्रतिनिधियों ने चोल युगीन नटराज मूर्ति व बीएचयू के दुर्लभ अभिलेख भी देखे

प्रविष्टि तिथि: 07 DEC 2025 8:40PM by PIB Delhi

काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पं. ओंकारनाथ ठाकुर प्रेक्षागृह में तृतीय शैक्षणिक सत्र का आयोजन किया गया। यह सत्र समूह 3—लेखकों एवं मीडिया पेशेवरों—के लिए आयोजित था। “सांस्कृतिक निहितता और सभ्यतागत निरंतरताएँ: काशी–तमिल संबंध” विषय पर हुई पैनल चर्चा में श्री अमिताभ भट्टाचार्य, प्रो. सदानंद शाही, प्रो. सिशिर बसु, प्रो. ए. गंगाधरन, डॉ. तुलसीरमन पी., तथा केटीएस प्रतिनिधिमंडल के दो सदस्य श्री दिलीपन पुगाल और सुश्री हरी श्वेता—ने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन प्रो. बनिब्रत महंता और डॉ. के. लक्ष्मणन ने किया। कार्यक्रम के दौरान सीपीआर की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया गया तथा राइटर्स क्लब द्वारा 14 तमिल भाषा की पुस्तकों का विश्वविद्यालय को उपहार स्वरूप प्रदान किया गया।

स्वागत भाषण में प्रो. संजय कुमार ने कहा कि काशी और तमिल संस्कृति एक ही सभ्यता के दो आधार स्तंभ हैं। उन्होंने नयनार, आलवार, महाकवि सुब्रमण्य भारती और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसी विभूतियों का उल्लेख करते हुए बताया कि किस प्रकार इनकी आध्यात्मिक एवं दार्शनिक परंपराओं ने काशी और तमिलनाडु को जोड़ा है। वरिष्ठ पत्रकार श्री अमिताभ भट्टाचार्य ने बनारस को “बहुलतावाद की यात्रा” बताते हुए कहा कि काशी तमिल संगमम् वास्तव में चौथे नहीं, बल्कि “चार हजारवें संस्करण” जैसा है, क्योंकि यह संवाद प्राचीन काल से निरंतर चलता आया है। प्रो. सदानंद शाही ने आलवार काव्य, आंडाल की संप्रेषण परंपरा और भक्ति आंदोलन के प्रसार पर प्रकाश डाला। 


प्रो. सिशिर बसु ने कहा कि संचार ही संस्कृति है और संस्कृति ही संचार; यदि हम संवाद खो देंगे, तो अपनी विविधता भी खो देंगे। प्रो. ए. गंगाधरन ने तमिल संगमों की विद्वत् परंपरा की चर्चा करते हुए बताया कि तमिलनाडु में 484 काशी विश्वनाथ मंदिर काशी–तमिल सांस्कृतिक एकता का प्रमाण हैं। सुश्री हरी श्वेता ने कहा कि तकनीक आज युवाओं के बीच भक्ति और अध्यात्म का नया माध्यम बन रही है। श्री दिलीपन पुगाल ने तमिल लोककलाओं में संरक्षित रामायण–महाभारत की कथाओं का उल्लेख किया और काशी को एक ऐसे वृक्ष की उपमा दी जिसकी शाखाएँ पूरे देश में फैली हैं। सत्र के प्रारंभ में डॉ. शिवशक्ति प्रसाद द्विवेदी ने सीपीआर का प्रदर्शन किया, जिसका तमिल अनुवाद डॉ. तुलसीरमन ने किया।

अपने भ्रमण कार्यक्रम के अंतर्गत प्रतिनिधिमंडल ने भारत कला भवन का भी दौरा किया, जहाँ उन्होंने 1956 में तत्कालीन तमिलनाडु के राज्यपाल श्री प्रकाश द्वारा संग्रहालय को उपहार में दी गई चोल युगीन कांस्य नटराज प्रतिमा को देखा। प्रतिनिधियों ने इसे अत्यंत प्रेरणादायक अनुभव बताया और भारत की प्राचीन मूर्तिकला परंपरा, शैव दर्शन तथा चोल शिल्प कौशल की गहन समझ प्राप्त की। भारत कला भवन के अधिकारियों ने बताया कि यह प्रतिमा संग्रहालय की सबसे दुर्लभ एवं मूल्यवान धरोहरों में से एक है, जो भारतीय सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। प्रतिनिधियों ने इसके संरक्षण और प्रस्तुतीकरण की सराहना की और कहा कि इस ऐतिहासिक उपहार ने काशी–तमिल सभ्यतागत संबंधों को और सुदृढ़ किया है।

इसके अतिरिक्त, प्रतिनिधि मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र स्थित ‘महान आर्काइव्स’ भी गए, जहां उन्होंने बीएचयू की स्थापना, महामना मालवीय जी के योगदान तथा स्वतंत्रता-पूर्व काल से संबंधित दुर्लभ फ़ोटोग्राफ़, पत्रों और दस्तावेज़ों का अवलोकन किया। इस भ्रमण ने उन्हें विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक विकास और राष्ट्रीय पुनर्जागरण में उसकी भूमिका की गहरी झलक प्रदान की। 

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SC/AK/DS


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