जल शक्ति मंत्रालय
azadi ka amrit mahotsav

ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर प्रणाली को अपनाना

प्रविष्टि तिथि: 04 DEC 2025 6:18PM by PIB Delhi

मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के उप-योजना के रूप में दिनांक 09.04.2025 को कमान क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन (एम-सीएडीडब्‍ल्‍यूएम) आधुनिकीकरण को मंजूरी दी है। इस योजना का उद्देश्य सिंचाई जल आपूर्ति नेटवर्क के आधुनिकीकरण के माध्यम से निर्दिष्‍ट क्लस्टर में मौजूदा सहायक नहरों या अन्य जल स्रोतों से सिंचाई जल उपलब्‍ध कराना है। इस योजना के अंतर्गत स्थापित जल स्रोतों से खेत तक (लगभग 1 हेक्टेयर तक) लघु-सिंचाई को सहयोग प्रदान करने वाली बैकएंड अवसंरचना के निर्माण की परिकल्पना की गई है। साथ ही  योजना का उद्देश्य किसान को जल का कुशल उपयोग करने हेतु  दबावयुक्त पाइप सिंचाई नेटवर्क प्रदान करके खेतों में जल उपयोग दक्षता (डब्‍लयूयूई ) को  बढ़ाना और किसानों को ड्रिप/स्प्रिंकलर प्रणाली  को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना है। एम-सीएडीडबल्‍यूएम प्रायोगिक कार्यान्वयन के अंतर्गत 23 राज्य/संघ राज्‍य क्षेत्र शामिल हैं, जिसका विवरण अनुलग्‍नक-I पर दिया गया है। दादरा और नगर हवेली संघ राज्‍य क्षेत्र प्रायोगिक राज्यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों की सूची में शामिल नहीं है।

राष्ट्रीय जल मिशन (एनडब्ल्यूएम) के उद्देश्‍यों में से एक अर्थात, जल उपयोग दक्षता को 20% बढ़ाने जैसी अपेक्षाओं को पूरा करने हेतु  जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (बीडब्ल्यूयूई) की स्थापना की गई है ताकि सिंचाई, औद्योगिक और घरेलू क्षेत्रों में जल का कुशल उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।

किसानों में ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम के बारे में जागरूकता पैदा करने  और इसे प्रचारित करने हेतु बीडब्ल्यूयूई द्वारा निम्नलिखित कदम उठाए गए:

i. सही फ़सल: राष्ट्रीय जल मिशन द्वारा वर्ष 2019 में सही फ़सलअभियान की शुरुआत की गई। इस पहल के अंतर्गत, बीडब्ल्यूयूई ने अटल भूजल योजना और स्मॉल फ़ार्मर्स एग्रीबिजनेस कंसोर्टियम (एसएफएसी) के सहयोग से वित्तीय वर्ष 2024–25 के दौरान 7 राज्यों में 14 अभियान की योजना तैयार की थी, जिनमें से सभी को पूरा कर लिया गया है। इस अभियान का उद्देश्य जल-संकट प्रभावित क्षेत्रों में किसानों को कम पानी वाली और अधिक जल-कुशल फ़सलों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना और बेहतर जल प्रबंधन हेतु लघु सिंचाई तकनीकों से संबंधित जागरूकता को बढ़ाना है।

ii. आधारभूत अध्ययन: ्रमुख और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं की जल उपयोग क्षमता (डब्‍ल्‍यूयूई) का मूल्यांकन करने हेतु, एनडब्‍ल्‍यूएम ने तीन प्रमुख संस्थानों: वॉटर एंड लैंड मैनेजमेंट ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट (डब्‍ल्‍यूएएलएएमटीएआरआई), हैदराबाद; वॉटर एंड लैंड मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट (डब्‍ल्‍यूएएलएमआई), औरंगाबाद; और सेंटर फॉर वॉटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट (सीडब्‍ल्‍यूआरडीएम), कोझिकोड के माध्यम से 17 आधारभूत अध्ययनों को पूर्ण किया है:

iii. सिंचाई क्षेत्र में जल उपयोग दक्षता (डब्‍ल्‍यूयूई) पर क्षेत्रीय सम्मेलन: "सिंचाई क्षेत्र में जल उपयोग दक्षता (डब्‍लयूयूई) पर पहला क्षेत्रीय सम्मेलन" का आयोजन दिनांक 22.11.2025 को चौधरी चरण सिंह राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान (सीसीएस एनआईएएम), जयपुर, राजस्थान में किया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य सिंचाई क्षेत्र पर विशेष रूप से जोर देते हुए जल दक्षता को बढ़ाना और सभी क्षेत्रों में जल उपयोग की सर्वोत्तम पद्धतियों को प्रोत्साहित करना था। इस कार्यक्रम में लगभग 150 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें छह राज्यों (राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक) और दो संघ राज्‍य क्षेत्रों (लेह और जम्मू एवं कश्मीर) के जल संसाधन एवं कृषि विभागों के अधिकारी और किसान शामिल थे।

कृषि और किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्‍ल्‍यू) वर्ष  2015-16 से देशभर में केन्‍द्र प्रायोजित योजना पर ड्रॉप मोर क्रॉप (पीडीएमसी) का कार्यान्‍वयन कर रहा है। पीडीएमसी का मुख्य उद्देश्य लघु सिंचाई नामतड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली के माध्यम से खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता (डबल्‍यूयूई) को बढ़ाना है। वर्ष 2015-16 से 2021-22 तक, पीडीएमसी का कार्यान्‍वयन  प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीमएकेएसवाई ) के एक घटक के रूप में किया गया। वर्ष 2022-23 से, पीडीएमसी का कार्यान्‍वयन  राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत किया जा रहा है। पीडीएमसी  के अंतर्गत, सरकार ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणालियों की स्थापनाओं के लिए छोटे और सीमांत किसानों को 55% और अन्य किसानों को 45% वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसके अलावा, राज्य सरकार भी अपने राज्य बजट से किसानों को टॉप-अप सब्सिडी प्रदान करती है। प्रत्येक लाभार्थी के संबंध में लघु सिंचाई प्रणाली की स्थापना के लिए दी जाने वाली सहायता 5 हेक्टेयर तक सीमित है।

इसके अतिरिक्‍त, कृषि में जल उपयोग दक्षता (डब्‍ल्‍यूयूई) बढ़ाने हेतु लघु सिंचाई को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार ने वर्ष 2018-19 में नाबार्ड  के साथ मिलकर 5000 करोड़ रुपये की प्रारंभिक कोष राशि के साथ एक लघु सिंचाई कोष (एमआईएफ) की स्‍थापना की। एमआईएफ का मुख्य पीडीएमसी योजना के अंतर्गत उपलब्‍ध सहायता के अतिरिक्‍त,  राज्यों को लघु सिंचाई हेतु किसानों को टॉप-अप/अतिरिक्‍त प्रोत्‍साहन हेतु संसाधनों को जुटाने में मदद करना है। कृषि एवं कृषक कल्‍याण मंत्रालय  राज्यों द्वारा लिए गए ऋण पर 2% का ब्याज अनुदान प्रदान करता है। यह ब्याज अनुदान पीएम-आरकेवीवाई-पीडीएमसी के बजट आवंटन से उपलब्ध कराया जा रहा है। केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी दिनांक 03.10.2024 को हुई बैठक में कोष राशि को दोगुना करके 10000 करोड़ रुपये करने को मंजूरी दी है।

केंद्रीय भूमिजल बोर्ड (सीजीडब्‍ल्‍यूबी) ने भूमिजल प्रबंधन और विनियम (जीडब्‍ल्‍यूएमएंडआर) योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (नैक्यूम) की शुरूआत की है। जलभृत मानचित्रण का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के साथ जलभृत/क्षेत्र विशेष भूमिगत जल प्रबंधन योजनाएँ तैयार करने हेतु जलभृत वितरण और उनकी विशेषताओं का निर्धारण करना है। दादरा और नगर हवेली संघ राज्‍य क्षेत्र और मध्य प्रदेश राज्य सहित देश के लगभग 25 लाख वर्ग किलोमीटर के समस्त मानचित्रण योग्य क्षेत्रों के लिए जलभृत मानचित्रण का कार्य पूरा कर लिया गया है। नैक्यूम अध्ययनों के आधार पर, भूमिगत जल प्रबंधन योजनाएँ तैयार की गई हैं जिनमें सतत भूमिजल विकास हेतु मांग पक्ष प्रबंधन उपायों में से एक के रूप में फसल विविधीकरण, जल उपयोग दक्षता (डब्‍ल्‍यूयूई) और संरक्षण उपायों जैसे कि ड्रीप/स्प्रिंकलर को लागू करने और बढ़ावा देने की सिफारिश की गई है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) सिंचाई के पानी को व्‍यापक रूपे से सुरक्षित रखने हेतु विभिन्न फसलों के लिए सूक्ष्म-सिंचाई सहित कुशल सिंचाई तकनीकों के माध्यम से पानी के विवेकपूर्ण उपयोग का परामर्श दिया है। आईसीएआर  के अनुसार, ड्रिप सिंचाई सहित सूक्ष्म-सिंचाई में पारंपरिक बाढ़ सिंचाई में 30-50% की तुलना में जल उपयोग दक्षता  80-95% तक है। किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों जैसे मृदा मेड़ में बोवाई, वैकल्पिक नाली सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई, ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग, बीज ड्रिल और ड्रम सीडर के माध्यम से सीधे धान बोना (डीएसआर), वैकल्पिक गीला और सुखा विधि, लेजर भूमि समतलन, कम पानी की आवश्यकता वाले किस्मों को आदि को अपनाने का परामर्श दिया गया है। ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को बढ़ावा देने और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से जल-घुलनशील उर्वरकों का उपयोग (फर्टिगेशन) करने हेतु,आईसीएआर  प्रशिक्षण प्रदान करता है, किसानों को इस संबंध में शिक्षा प्रदान करने हेतु क्षेत्र प्रदर्शन आयोजित करता है।

कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (डीएआरई) के अंतर्गत केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (सीएयू) विशेष रूप से ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों को अपनाने के माध्यम से कृषि क्षेत्र में जल का कुशल उपयोग बढ़ाने में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। सीएयू  कार्यक्रमों/परियोजनाओं जैसे:  (i) सिंचाई जल प्रबंधन (आईडब्‍ल्‍यूएम) अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) (ii) प्रिसिजन फार्मिंग डेवलपमेंट सेंटर (पीएफडीसी) (iii) जलवायु सहनशील कृषि कार्यक्रम (iv) जलवायु लचीलापन कृषि राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) परियोजना (v) कृषि विज्ञान केंद्र (केविके) के माध्‍यम से विभिन्‍न  अनुसंधान, प्रदर्शन और विस्तार गतिविधियों  को कार्यान्वित कर रहा है।

इसके अलावा, राष्ट्रीय जल नीति (2012) में जल संसाधनों के कुशल उपयोग पर बल  दिया गया है।

कृषि और किसान कल्याण विभाग (डीओएएंडएफडब्‍ल्‍यू) प्रधान मंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (पीएम- आरकेवीवाई) के अंतर्गत प्रमुख हरित क्रान्ति राज्यों अर्थात हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फसल विविधीकरण कार्यक्रम (सीडीपी) को लागू कर रहा है, ताकि पानी खपत करने वाले धान की खेती को अन्य फसलों जैसे दाल, तिलहन, मोटे अनाज, पौष्टिक अनाज (श्री अन्ना), कपास और कृषि वानिकी में स्थानांतरित किया जा सके। सीडीपी  के अंतर्गत, राज्य सरकारों के माध्यम से किसानों को चार प्रमुख घटकों अर्थात वैकल्पिक फसल प्रदर्शन, कृषि यांत्रीकीकरण और मूल्य संवर्धन, क्षेत्र-विशिष्ट गतिविधियाँ और जागरूकता, प्रशिक्षण आदि के लिए आकस्मिक सहयोग इत्‍यादि के लिए सहायता प्रदान की जा रही है। स्‍थल- विशिष्ट गतिविधियों के अंतर्गत, पानी वाले उपकरणों के लिए सहायता प्रदान की जा रही है।

नैक्यूम कार्यक्रम के भाग के रूप में जलभृत प्रबंधन योजनाओं के सिद्धांतों को जनता तक पहुँचाने हेतु जमीनी स्तर पर सार्वजनिक सहभागिता कार्यक्रम (पीआईपी) आयोजित किए जा रहे हैं। कृषि क्षेत्र में जल के कुशल उपयोग को प्रोत्साहित करने वाले फसल-विविधिकरण सहित  विभिन्‍न भूजल प्रबंधन योजनाओं के बारे में विभिन्न हितधारकों को जागरूक बढाने के लिए दादरा और नगर हवेली संघ राज्‍य क्षेत्र और मध्य प्रदेश राज्य सहित देश के विभिन्‍न भागों में लगभग 1550  सार्वजनिक सहभागिता कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं।

आईसीएआर की ओर से अत्यधिक जल की खपत करने वाली फसलों से दालों, तिलहन, मक्का और कृषि-वानिकी की ओर फसल पद्धतियों के विविधीकरण का सुझाव दिया गया है। इसके अलावा, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय कम जल-खपत वाली फसलों की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं और किसानों को बाजरा, दालों और तिलहन की ओर स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, जाकि जलवायु-अनुकूल हैं और जिनके लिए पारंपरिक अत्यधिक जल-खपत वाली अनाज की तुलना में जल की आवश्यकता काफी कम होती है। केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र (केविके) दालों, तिलहन और बाजरा पर प्रमुख प्रदर्शनी (एफएलडी) और प्रशिक्षण आयोजित कर रहे हैं ताकि इन फसलों को लोकप्रिय बनाया जा सके, उत्पादकता बढ़ाई जा सके और टिकाऊ, कम जल-उपयोग वाली कृषि की दिशा में विविधीकरण का समर्थन किया जा सके।

जल संसाधन परियोजनाओं की आयोजना, वित्तपोषण, क्रियान्वयन और रखरखाव राज्य सरकारों द्वारा उनके अपने संसाधनों और प्राथमिकताओं के अनुसार स्वयं किया जाता है। इसके अतिरिक्‍त, भारत सरकार विभिन्‍न योजनाओं/कार्यक्रमों जैसे पीएमकेएसवाई, राष्ट्रीय परियोजनाएँ, विशेष पैकेज आदि के माध्यम से सतत विकास और जल संसाधनों के कुशल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए राज्‍य सरकारों के प्रयासों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। ईआरएम (विस्‍तार, नवीनीकरण और आधुनिकीकरण) परियोजनाएँ, जिनमें नहरों का आधुनिकीकरण और रखरखाव भी शामिल है, पीएमकेएसवाई - त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी ) के अंतर्गत वित्‍त पोषण प्रदान किया जाता है।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के अंतर्गत प्रौद्योगिकीय कार्यकलाप और नवाचार उपायों जैसे भू-पाइपलाइन (यूजीपीएल) नेटवर्क, पाइप वितरण नेटवर्क (पीडीएन), स्‍काडा आधारित जल वितरण, जीआईएस/सैटेलाइट आधारित निगरानी, प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस), सूक्ष्म सिंचाई इत्‍यादि को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि जल परिवहन में होने वाले नुकसान को कम किया जा सके, प्रति-बूँद जल उत्पादकता में सुधार हो और खेतों तक सूक्ष्म सिंचाई को सक्षम बनाया जा सके। पीएमकेएसवाई के अंतर्गत भू पाइपलाइन (यूजीपीएल) का व्यापक रूप से उपयोग किया गया है। वितरण नेटवर्क में यूजीपीएल का राज्य-वार विवरण अनुलग्‍नक-II पर दिया गया है।

यह सूचना जल शक्ति राज्यमंत्री श्री राज भूषण चौधरी द्वारा लोकसभा में लिखित प्रश्न के उत्तर में प्रदान की गई है।

***

एनडी

 

अनुलग्नक-I

एम-सीएडीडब्‍ल्‍यूएम योजना के अंतर्गत पायलट परियोजनाओं/क्लस्टरों का विवरण

क्र.सं.

राज्य/संघ राज्‍य क्षेत्र

क्लस्टर का नाम

क्लस्टर सीसीए (हेक्‍टेयर)
(लगभग)

  1.  

आंध्र प्रदेश

पेद्दागेड्डा प्रोजेक्ट डब्‍ल्‍यूयूए -क्लस्टर 3,4,5,6

3,061

  1.  

अरुणाचल प्रदेश

डेकम रिकमेंग (लेदुम गांव)

978

  1.  

असम

सिंगुआ एफआईएस

1200

  1.  

बिहार

महमदपुर बादल (480)

2,450

  1.  

बिहार

बंगरा- किशुनपुर

2,195

  1.  

छत्तीसगढ़

बगिया

4831

  1.  

गोवा

साल, वडावल, मेंकुरेम /अडवलपाल

1,563

  1.  

गुजरात

मांडवी-मंगरोल तालुका गांव

6,069

  1.  

गुजरात

पिंचवी

523

  1.  

हरियाणा

पनिहार-चौधरीवास

4,950

  1.  

हिमाचल प्रदेश

हरोली ब्लॉक, जिला ऊना

4889

  1.  

कर्नाटक

तुंगभद्रा बाएं तट वाली नहर की यहायक नदी 54 9 आर

2,600

  1.  

कर्नाटक

हट्टिकुनी

2,145

  1.  

मध्य प्रदेश

गुडरिया

2,320

  1.  

मध्य प्रदेश

नेतंगांव

2,387

  1.  

मध्य प्रदेश

बहुती पीएच2

3160

  1.  

महाराष्ट्र

असोदा भदाली ब्रांच नहर वाघुर एलबीसी

4996

  1.  

मणिपुर

पेंगजंग

500

  1.  

मेघालय

लिंगखोई एफआईपी

170

  1.  

मिजोरम

चंफाई सब-वैली एमसीएडी क्लस्टर, चंफाई

320

  1.  

नागालैंड

मोंगलेउ जलुकी

200

  1.  

ओडिशा

एमसीएडी क्लस्टर-V

3,180

  1.  

पंजाब

एसबीएस नगर

856

  1.  

पंजाब

लुधियाना, मालेरकोटला, फतेहगढ़ साहिब

1500

  1.  

राजस्थान

बिसलपुर परियोजना की दाई मुख्‍य नहर (आएमसी)

5,000

  1.  

तमिलनाडु

पल्लडम एक्सटेंशन नहर

4,989

  1.  

त्रिपुरा

ब्रह्मचेर्रा

135

  1.  

उत्तर प्रदेश

बांसगांव

224

  1.  

उत्तर प्रदेश

बरगदवा

149

  1.  

उत्तर प्रदेश

जंगल गौरी-I

152

  1.  

उत्तर प्रदेश

मलांव और मझगवां

550

  1.  

उत्तर प्रदेश

प्रजापतिपुर

284

  1.  

उत्तर प्रदेश

राजधानी

790

  1.  

जम्मू और कश्मीर

पट्यारी

400

कुल

69,715


 

 

अनुलग्नक-II

वितरण प्रणाली में यूजीपीएल का विवरण

क्रम संख्या

राज्य

वितरण प्रणाली में यूजीपीएल (किमी में लगभग)

1

असम

64.29

2

गोवा

34.49

3

गुजरात

35939.80

4

हिमाचल प्रदेश

562.000

5

झारखंड

1901.70

6

मध्य प्रदेश

222.72

7

महाराष्ट्र

9209.00

8

मणिपुर

75.87

9

ओडिशा

1133.14

10

पंजाब

1443.72

11

राजस्थान

18594.12

कुल

69180.85

*****

 

एनडी


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