प्रधानमंत्री कार्यालय
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष चर्चा की शुरुआत की
प्रधानमंत्री ने कहा- वंदे मातरम ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को बल दिया
प्रधानमंत्री ने कहा- वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होते देखना हम सभी के लिए गर्व की बात है
प्रधानमंत्री ने कहा- वंदे मातरम वह शक्ति है जो हमें, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित करती है
प्रधानमंत्री ने कहा- वंदे मातरम ने भारत में हजारों वर्षों से गहराई से जड़ें जमाए विचार को फिर से जागृत किया
प्रधानमंत्री ने कहा- वंदे मातरम में हजारों वर्षों की सांस्कृतिक ऊर्जा भी समाहित होने के साथ-साथ स्वतंत्रता का उत्साह और स्वतंत्र भारत का दृष्टिकोण भी शामिल था
प्रधानमंत्री ने कहा- लोगों के साथ वंदे मातरम का गहरा सम्बंध हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की यात्रा को दर्शाता है
प्रधानमंत्री ने कहा- वंदे मातरम ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को बल और दिशा दी
प्रधानमंत्री ने कहा- वंदे मातरम के सर्वव्यापी मंत्र ने स्वतंत्रता, त्याग, शक्ति, पवित्रता, समर्पण और लचीलेपन को प्रेरित किया
प्रविष्टि तिथि:
08 DEC 2025 3:44PM by PIB Delhi
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज लोकसभा में राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर आयोजित विशेष चर्चा की शुरुआत की। प्रधानमंत्री ने इस महत्वपूर्ण अवसर पर सामूहिक चर्चा का मार्ग चुनने के लिए सदन के सभी सम्मानित सदस्यों का हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम, वह मंत्र और आह्वान है जिसने राष्ट्र के स्वतंत्रता आंदोलन को ऊर्जा और प्रेरणा दी, त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया। इस सदन में वंदे मातरम को याद किया जाना सभी के लिए सौभाग्य की बात है। श्री मोदी ने इस बात पर बल दिया कि यह गर्व की बात है कि राष्ट्र वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के ऐतिहासिक अवसर का साक्षी बन रहा है। उन्होंने कहा कि यह कालखंड हमारे सामने इतिहास की अनगिनत घटनाओं को लेकर आता है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि यह चर्चा न केवल सदन की प्रतिबद्धता को दर्शाएगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए शिक्षा का स्रोत भी बन सकती है, बशर्ते सभी सामूहिक रूप से इसका सदुपयोग करें।
श्री मोदी ने कहा कि यह वह दौर है जब इतिहास के कई प्रेरक अध्याय एक बार फिर हमारे सामने आ रहे हैं। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि राष्ट्र ने हाल ही में संविधान के 75 वर्ष पूरे होने का गौरवपूर्ण जश्न मनाया है। उन्होंने कहा कि देश सरदार वल्लभभाई पटेल और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती भी मना रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि हाल ही में राष्ट्र ने गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी दिवस मनाया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर यह सदन राष्ट्रगीत की सामूहिक ऊर्जा को अनुभव करने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि वंदे मातरम की 150 वर्ष की यात्रा अनेक पड़ावों से होकर गुजरी है। यह याद करते हुए कि जब वंदे मातरम के 50 वर्ष पूरे हुए थे, तब राष्ट्र अंग्रेजी शासन के अधीन रहने को विवश था, श्री मोदी ने कहा कि जब इसके 100 वर्ष पूरे हुए, तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उन्होंने बताया कि वंदे मातरम के शताब्दी समारोह के समय देश के संविधान का गला घोंटा गया था। उन्होंने यह भी कहा कि जब वंदे मातरम के 100 वर्ष पूरे हुए, तो देशभक्ति की राह पर जी-जान से चलने वालों को सलाखों के पीछे कैद कर दिया गया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि जिस गीत ने देश की स्वतंत्रता को ऊर्जा दी, दुर्भाग्य से जब इसके 100 वर्ष पूरे हुए, तो उस समय इतिहास का एक काला अध्याय चल रहा था और लोकतंत्र स्वयं गंभीर तनाव में था।
श्री मोदी ने बल देकर कहा, "वंदे मातरम के 150 वर्ष उस महान अध्याय और गौरव को फिर से स्थापित करने का अवसर प्रस्तुत करते हैं, इसलिए सदन और राष्ट्र को इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।" उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह वंदे मातरम ही था जिसने 1947 में देश को आज़ादी दिलाई और स्वतंत्रता संग्राम का भावनात्मक नेतृत्व इसके आह्वान में समाहित था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब वे 150वें वर्ष में वंदे मातरम पर चर्चा शुरू करने के लिए खड़े हुए, तो सत्ता पक्ष या विपक्ष में कोई मतभेद नहीं था, क्योंकि उपस्थित सभी लोगों के लिए यह वास्तव में वंदे मातरम के ऋण को स्वीकार करने का अवसर था। इसने लक्ष्य-उन्मुख नेताओं को स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। इसके परिणामस्वरूप हमें स्वतंत्रता मिली और आज सभी सदन में बैठ सकते हैं। उन्होंने बल देकर कहा कि सभी सांसदों और जनप्रतिनिधियों के लिए, यह उस ऋण को स्वीकार करने का एक पवित्र अवसर है। श्री मोदी ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने और पूरे देश - उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम - को एक स्वर में एकजुट करने वाली प्रेरणा, वंदे मातरम की भावना द्वारा एक बार फिर हमारा मार्गदर्शन करने पर बल दिया। उन्होंने सभी से स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा देखे गए सपनों को साकार करने के लिए मिलकर आगे बढ़ने और 150वें वर्ष में वंदे मातरम को सभी के लिए प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह आत्मनिर्भर राष्ट्र के निर्माण और 2047 तक विकसित भारत के विजन को साकार करने के संकल्प की पुनः पुष्टि करने का अवसर है।
श्री मोदी ने कहा कि वंदे मातरम की यात्रा 1875 में बंकिम चंद्र जी के साथ शुरू हुई। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि इस गीत की रचना ऐसे समय में हुई थी जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद, ब्रिटिश साम्राज्य अस्थिर था और उसने भारत पर तरह-तरह के दबाव और अन्यायपूर्ण नीतियां थोपकर, भारतवासियों को अधीनता स्वीकार करने पर विवश कर दिया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि उस दौर में, अंग्रेजों के राष्ट्रगान, 'गॉड सेव द क्वीन' को भारत के घर-घर में फैलाने की साजिश रची जा रही थी। उन्होंने बल देकर कहा कि यही वह समय था जब बंकिम दा ने इस साजिश को चुनौती दी और इसका और भी ज़ोरदार जवाब की उस चुनौती से वंदे मातरम का जन्म हुआ। उन्होंने बताया कि कुछ साल बाद, 1882 में, जब बंकिम चंद्र ने 'आनंद मठ' लिखा, तो इस गीत को उसमें शामिल किया गया।
प्रधानमंत्री ने वंदे मातरम ने उस विचार को पुनर्जीवित किया जो हज़ारों वर्षों से भारत की रगों में गहराई से समाने की बात पर बल देते हुए कहा कि वही भावना, वही मूल्य, वही संस्कृति और वही परंपरा वंदे मातरम के माध्यम से राष्ट्र को बेहतरीन शब्दों और उदात्त भावना के साथ उपहार में दी गई थी। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम केवल राजनीतिक स्वतंत्रता या सिर्फ़ अंग्रेजों को भगाकर अपना रास्ता बनाने का मंत्र ही नहीं है, बल्कि यह उससे कहीं आगे तक जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम मातृभूमि को स्वतंत्र कराने, भारत माता को बेड़ियों से मुक्त कराने का एक आदर्श युद्ध भी था। उन्होंने कहा कि जब हम वंदे मातरम की पृष्ठभूमि और उसके मूल्यों की धारा को देखते हैं, तो हमें वैदिक युग से बार-बार दोहराई जाने वाली सच्चाई दिखाई देती है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि जब हम वंदे मातरम कहते हैं, तो यह हमें वैदिक घोषणा की याद दिलाता है, इसका अर्थ है कि यह भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यही विचार भगवान श्री राम ने भी प्रतिध्वनित किया था जब उन्होंने लंका के वैभव का त्याग करते हुए कहा था, "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम इस महान सांस्कृतिक परंपरा का आधुनिक अवतार है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब बंकिम दा ने वंदे मातरम की रचना की, तो यह स्वाभाविक रूप से स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज़ बन गया। उन्होंने बल देकर कहा कि पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक, वंदे मातरम प्रत्येक भारतीय का संकल्प बन गया।
कुछ दिन पहले, 150 वर्ष पूरे होने पर वंदे मातरम के शुभारंभ पर श्री मोदी ने कहा था कि वंदे मातरम में हज़ारों वर्षों की सांस्कृतिक ऊर्जा समाहित है, इसमें स्वतंत्रता की भावना है और एक स्वतंत्र भारत का दृष्टिकोण भी निहित है। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश काल में, भारत को कमज़ोर, अक्षम, आलसी और निष्क्रिय दिखाने का एक चलन चल पड़ा था और यहां तक कि औपनिवेशिक प्रभाव में शिक्षित लोग भी यही भाषा बोलते थे। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बंकिम दा ने इस हीन भावना को दूर किया और वंदे मातरम के माध्यम से भारत के शक्तिशाली स्वरूप को प्रकट किया। उन्होंने कहा कि बंकिम दा ने ऐसी पंक्तियां रचीं जो इस बात पर बल देती हैं कि भारत माता ज्ञान और समृद्धि की देवी होने के साथ-साथ शत्रुओं पर शस्त्र चलाने वाली प्रचंड चंडिका भी हैं।
श्री मोदी ने इन शब्दों, भावनाओं और प्रेरणाओं ने गुलामी की निराशा में भारतीयों को साहस देने की बात को रेखांकित करते हुए कहा कि इन पंक्तियों ने लाखों देशवासियों को यह एहसास दिलाया कि संघर्ष जमीन के एक टुकड़े के लिए नहीं था, न ही केवल सत्ता के सिंहासन पर कब्जा करने के लिए था, बल्कि उपनिवेशवाद की जंजीरों को तोड़ने और महान परंपराओं, गौरवशाली संस्कृति और हजारों वर्षों के गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित करने के लिए था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम का जन-जन से गहरा जुड़ाव हमारे स्वतंत्रता संग्राम की एक लंबी गाथा के रूप में अभिव्यक्त हुआ। उन्होंने आगे कहा कि जब भी किसी नदी का उल्लेख होता है—चाहे वह सिंधु हो, सरस्वती हो, कावेरी हो, गोदावरी हो, गंगा हो या यमुना हो—वह अपने साथ संस्कृति की एक धारा, विकास का प्रवाह और मानव जीवन का प्रभाव लेकर आती है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि इसी प्रकार, स्वतंत्रता संग्राम का प्रत्येक चरण वंदे मातरम की भावना से प्रवाहित हुआ और इसके तटों ने उस भावना को पोषित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसी काव्यात्मक अभिव्यक्ति, जहां स्वतंत्रता की पूरी यात्रा वंदे मातरम की भावनाओं से गुंथी हुई हो, शायद दुनिया में कहीं और न मिले।
श्री मोदी ने कहा कि 1857 के बाद अंग्रेजों को यह एहसास हो गया था कि उनके लिए भारत में लंबे समय तक रहना मुश्किल होगा और इसी सपने के साथ वे आए थे, उन्हें लगा कि जब तक भारत का विभाजन नहीं होगा, जब तक यहां के लोगों को आपस में लड़ाया नहीं जाएगा, तब तक यहां शासन करना असंभव होगा। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो का रास्ता चुना और बंगाल को अपनी प्रयोगशाला बनाया, क्योंकि वे जानते थे कि उस समय बंगाल की बौद्धिक शक्ति राष्ट्र को दिशा, शक्ति और प्रेरणा देती थी, और भारत की सामूहिक शक्ति का केंद्र बिंदु बन गई थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि यही कारण था कि अंग्रेजों ने सबसे पहले बंगाल को बांटने की कोशिश की, क्योंकि उनका मानना था कि बंगाल के विभाजन के बाद देश भी बिखर जाएगा और वे अपना शासन जारी रख सकेंगे। उन्होंने याद दिलाया कि 1905 में, जब अंग्रेजों ने बंगाल के विभाजन का पाप किया था, तब वंदे मातरम चट्टान की तरह अडिग रहा। उन्होंने बल देकर कहा कि बंगाल की एकता के लिए, वंदे मातरम गली-गली में गूंजने वाला नारा बन गया और इसने लोगों को प्रेरित किया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि बंगाल के विभाजन के साथ, अंग्रेजों ने भारत को कमजोर करने के गहरे बीज बोने की कोशिश की, लेकिन वंदे मातरम, एक आवाज और एकता के सूत्र के रूप में, अंग्रेजों के लिए एक चुनौती और राष्ट्र के लिए एक मजबूत चट्टान जैसी ताकत बन गया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यद्यपि बंगाल का विभाजन हुआ, लेकिन इसने एक विशाल स्वदेशी आंदोलन को जन्म दिया और उस समय वंदे मातरम की गूंज हर जगह सुनाई दी। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा पैदा की गई इस भावना की शक्ति को अंग्रेजों ने समझा, उनके गीत ने अंग्रेजी शासन की नींव इतनी हिला दी कि वे इस पर कानूनी प्रतिबंध लगाने के लिए बाध्य हो गए। प्रधानमंत्री ने कहा कि इसे गाने पर दंड दिया जाता था, इसे छापने पर दंड दिया जाता था, और यहां तक कि वंदे मातरम शब्द का उच्चारण करने पर भी कठोर कानूनों के तहत दंड दिया जाता था। उन्होंने बारीसाल का उदाहरण देते हुए बताया कि सैकड़ों महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और उसमें योगदान दिया, उस जगह वंदे मातरम गाने पर सबसे ज़्यादा अत्याचार किए गए थे। उन्होंने याद किया कि बारीसाल में माताएं, बहनें और बच्चे वंदे मातरम की गरिमा की रक्षा के लिए आगे आए थे। श्री मोदी ने साहसी सरोजिनी घोष का उल्लेख किया, उन्होंने घोषणा की थी कि जब तक वंदे मातरम पर प्रतिबंध नहीं हटता, वह अपनी चूड़ियां उतार देंगी और उन्हें फिर कभी नहीं पहनेंगी, जो उस समय में अत्यंत महत्वपूर्ण प्रतिज्ञा थी। उन्होंने कहा कि बच्चे भी पीछे नहीं रहे, उन्हें कोड़े मारे गए, छोटी उम्र में ही जेल में डाल दिया गया, फिर भी वे अंग्रेजों की अवहेलना करते हुए वंदे मातरम का नारा लगाते हुए सुबह के जुलूसों में शामिल होते रहे। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि बंगाल की गलियों में एक बंगाली गीत गूंजता था, जिसका अर्थ था, "प्रिय मां, आपकी सेवा करते हुए और वंदे मातरम का नारा लगाते हुए, चाहे प्राण भी चले जाएं, वह जीवन धन्य है," जो बच्चों की आवाज़ बन गया और राष्ट्र को साहस दिया।
श्री मोदी ने यह भी बताया किया कि 1905 में, हरितपुर गांव में, वंदे मातरम का जाप करने वाले बहुत छोटे बच्चों को बेरहमी से पीटा गया था, इस घटना से उन्हें जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसी तरह, 1906 में, नागपुर के नील सिटी हाई स्कूल के बच्चों ने एक साथ वंदे मातरम का जाप करने के उसी "अपराध" के लिए अत्याचारों का सामना किया, अपनी ताकत के माध्यम से मंत्र की शक्ति साबित की। प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि भारत के वीर सपूत बिना किसी डर के फांसी पर चढ़ गए, अपनी आखिरी सांस तक वंदे मातरम का जाप करते रहे- खुदीराम बोस, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, रोशन सिंह, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रामकृष्ण विश्वास और अनगिनत अन्य जिन्होंने वंदे मातरम को अपने होठों पर रखते हुए फांसी को गले लगा लिया। उन्होंने कहा कि यद्यपि ये बलिदान विभिन्न जेलों, विभिन्न क्षेत्रों, विभिन्न चेहरों और भाषाओं के साथ हुए, प्रधानमंत्री ने चटगांव विद्रोह को याद किया, जहां युवा क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को चुनौती दी थी, और हरगोपाल बल, पुलिन विकास घोष और त्रिपुर सेन जैसे नाम इतिहास में चमकते हैं। उन्होंने बताया कि 1934 में जब मास्टर सूर्य सेन को फांसी दी गई थी, तो उन्होंने अपने साथियों को एक पत्र लिखा था, और उसमें केवल एक ही शब्द था - वंदे मातरम।
उन्होंने कहा कि भारत के लोगों को गर्व होना चाहिए, क्योंकि विश्व इतिहास में कहीं और ऐसी कोई कविता या गीत नहीं मिलता जिसने सदियों से लाखों लोगों को एक ही लक्ष्य के लिए प्रेरित किया हो और उन्हें अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया हो, जैसा कि वंदे मातरम ने किया था। श्री मोदी ने कहा कि दुनिया को यह जानना चाहिए कि गुलामी के दौर में भी, भारत ने ऐसे व्यक्तित्वों को जन्म दिया जो भावनाओं का ऐसा गहन गीत रचने में सक्षम थे, जो मानवता के लिए एक आश्चर्य है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें इसे गर्व के साथ घोषित करना चाहिए, और फिर दुनिया भी इसका जश्न मनाना शुरू कर देगी। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि वंदे मातरम स्वतंत्रता का मंत्र है, त्याग का मंत्र है, ऊर्जा का मंत्र है, पवित्रता का मंत्र है, समर्पण का मंत्र है, त्याग और तपस्या का मंत्र है, और वह मंत्र है जिससे कष्ट सहने की शक्ति मिली। उन्होंने कहा कि यह मंत्र वंदे मातरम है। प्रधानमंत्री ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की इस रचना को याद किया, "एक सूत्र में बंधे हैं हज़ारों मन, एक ही कार्य के लिए समर्पित हैं हज़ारों जीवन - वंदे मातरम।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि उस दौर में, वंदे मातरम की रिकॉर्डिंग दुनिया के विभिन्न हिस्सों तक पहुंची और लंदन, जो क्रांतिकारियों के लिए एक तरह का तीर्थस्थल बन गया था, लोगों ने इंडिया हाउस में वीर सावरकर को वंदे मातरम गाते देखा, जहां यह गीत बार-बार गूंजता था, और राष्ट्र के लिए जीने-मरने को तैयार लोगों के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत बना। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उसी समय, बिपिन चंद्र पाल और महर्षि अरबिंदो घोष ने एक अखबार शुरू किया और उसका नाम 'वंदे मातरम' रखा, क्योंकि यह गीत ही प्रत्येक कदम पर अंग्रेजों की नींद उड़ाने के लिए काफी था। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब अंग्रेजों ने अखबारों पर प्रतिबंध लगाए, तो मैडम भीकाजी कामा ने पेरिस में एक अखबार प्रकाशित किया और उसका नाम 'वंदे मातरम' रखा।
श्री मोदी ने कहा, "वंदे मातरम ने भारत को आत्मनिर्भरता का मार्ग भी दिखाया।" उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उस दौर में माचिस से लेकर बड़े-बड़े जहाज़ों तक, वंदे मातरम लिखने की परंपरा विदेशी कंपनियों को चुनौती देने का माध्यम बन गई और स्वदेशी के मंत्र में बदल गई। उन्होंने बल देकर कहा कि स्वतंत्रता के मंत्र का विस्तार स्वदेशी के मंत्र के रूप में हुआ।
प्रधानमंत्री ने 1907 की एक और घटना के बारे में बताया, जब वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई ने स्वदेशी कंपनी के लिए एक जहाज बनाया था और उस पर वंदे मातरम अंकित किया था। उन्होंने बताया कि राष्ट्रकवि सुब्रमण्य भारती ने वंदे मातरम का तमिल में अनुवाद किया और भजनों की रचना की, और उनके कई देशभक्ति गीतों में वंदे मातरम के प्रति समर्पण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारती ने भारत का ध्वज गीत भी लिखा था, इसमें वंदे मातरम अंकित ध्वज का वर्णन है। उन्होंने तमिल पद्य का उल्लेख किया, इसका अनुवाद इस प्रकार है: "हे देशभक्तों, मेरी मां के दिव्य ध्वज को देखो और आदरपूर्वक प्रणाम करो।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि वह सदन के समक्ष वंदे मातरम पर महात्मा गांधी की भावनाओं को रखना चाहते हैं। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका 'इंडियन ओपिनियन' में 2 दिसंबर 1905 को महात्मा गांधी द्वारा लिखे गए एक लेख के बारे में बताया। उस लेख में गांधी जी ने उल्लेख किया है कि बंकिम चंद्र द्वारा रचित वंदे मातरम पूरे बंगाल में अत्यधिक लोकप्रिय हो गया था और स्वदेशी आंदोलन के दौरान, विशाल सभाएं आयोजित की गईं जहां लाखों लोगों ने बंकिम का गीत गाया। प्रधानमंत्री ने गांधी जी के शब्दों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह गीत इतना लोकप्रिय हो गया था कि लगभग राष्ट्रगान जैसा हो गया था। गांधी जी ने लिखा कि इसकी भावनाएं अन्य राष्ट्रों के गीतों की तुलना में महान और मधुर थीं और इसका एकमात्र उद्देश्य हमारे भीतर देशभक्ति की भावना जागृत करना था। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि गांधी जी ने इस गीत का वर्णन भारत को माता के रूप में देखने और उसकी पूजा करने के रूप में किया था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस वंदे मातरम को महात्मा गांधी ने 1905 में राष्ट्रगान के रूप में देखा था और जो देश-विदेश में प्रत्येक भारतीय के लिए अपार शक्ति का स्रोत था, उसे पिछली शताब्दी में घोर अन्याय का सामना करना पड़ा। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि वंदे मातरम के साथ ऐसा विश्वासघात क्यों हुआ, ऐसा अन्याय क्यों हुआ और कौन सी ताकतें इतनी शक्तिशाली थीं कि उन्होंने पूज्य बापू की भावनाओं को भी दबा दिया और इस पवित्र प्रेरणा को विवादों में घसीट दिया। श्री मोदी ने बल देकर कहा कि आज जब हम वंदे मातरम के 150 वर्ष मना रहे हैं, तो यह हमारा कर्तव्य है कि हम नई पीढ़ियों को उन परिस्थितियों से अवगत कराएं जिनके कारण यह विश्वासघात हुआ। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि वंदे मातरम के विरोध की मुस्लिम लीग की राजनीति तेज हो रही थी और मोहम्मद अली जिन्ना ने 15 अक्टूबर 1937 को लखनऊ से वंदे मातरम के खिलाफ नारा लगाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि मुस्लिम लीग के निराधार बयानों का दृढ़ता से मुकाबला करने और उनकी निंदा करने के बजाय, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने वंदे मातरम के प्रति अपनी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) पार्टी की प्रतिबद्धता की पुष्टि नहीं की और वंदे मातरम पर ही सवाल उठाना शुरू कर दिया। उन्होंने याद किया कि जिन्ना के विरोध के ठीक पांच दिन बाद, 20 अक्टूबर 1937 को, नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने जिन्ना की भावना से सहमति जताई और कहा कि वंदे मातरम की 'आनंद मठ' पृष्ठभूमि मुसलमानों को परेशान कर सकती है। प्रधानमंत्री ने नेहरू जी के शब्दों का भी उल्लेख किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके बाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से एक बयान आया कि 26 अक्टूबर 1937 से कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक कोलकाता में होगी और उसमें वंदे मातरम के प्रयोग की समीक्षा की जाएगी। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इस समीक्षा के लिए बंकिम बाबू के बंगाल, बंकिम बाबू के कोलकाता को चुना गया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरा देश चकित और स्तब्ध था और देश भर के देशभक्तों ने प्रभातफेरी निकालकर और वंदे मातरम गाकर इस प्रस्ताव का विरोध किया। उन्होंने बल देकर कहा कि दुर्भाग्य से 26 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस ने अपने फ़ैसले में वंदे मातरम पर समझौता कर उसे खंडित कर दिया। उन्होंने कहा कि यह फ़ैसला सामाजिक समरसता की आड़ में लिया गया था, लेकिन इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक दिए और उसके दबाव में आकर तुष्टिकरण की राजनीति अपनाई।
सदन को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि तुष्टिकरण की राजनीति के दबाव में, कांग्रेस वंदे मातरम के विभाजन के लिए झुकी और इसीलिए एक दिन उसे भारत के विभाजन के लिए झुकना पड़ा। उन्होंने बल देकर कहा कि कांग्रेस ने अपने फ़ैसले दूसरों को सौंप दिए थे और दुर्भाग्य से उसकी नीतियां अपरिवर्तित हैं। प्रधानमंत्री ने विपक्ष और उसके सहयोगियों की तुष्टिकरण की राजनीति करने और वंदे मातरम को लेकर लगातार विवाद पैदा करने की कोशिशों के लिए आलोचना की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का असली चरित्र उसके अच्छे समय में नहीं, बल्कि चुनौतियों और संकट के दौर में प्रकट होता है, जब उसे लचीलेपन, शक्ति और क्षमता की कसौटी पर परखा और सिद्ध किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि 1947 में स्वतंत्रता के बाद, जहां देश की चुनौतियां और प्राथमिकताएं बदल गईं, वहीं राष्ट्र की भावना और प्राणशक्ति वही रही, जो प्रेरणा देती रही। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि जब भी भारत संकटों का सामना करता है, राष्ट्र वंदे मातरम की भावना के साथ आगे बढ़ता है। उन्होंने कहा कि आज भी, 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे अवसरों पर, यह भावना हर जगह दिखाई देती है क्योंकि हर घर में तिरंगा शान से लहराता है। उन्होंने याद दिलाया कि खाद्य संकट के दौरान, वंदे मातरम की भावना ने ही किसानों को देश के अन्न भंडार भरने के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने कहा कि जब भारत की स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश की गई, जब संविधान पर वार किया गया और आपातकाल लगाया गया, तो वंदे मातरम की शक्ति ने ही राष्ट्र को ऊपर उठने और विजय पाने में सक्षम बनाया। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि जब भी देश पर युद्ध थोपे गए, जब भी संघर्ष की स्थिति आई, तो वंदे मातरम की भावना ने ही सैनिकों को सीमाओं पर डटे रहने के लिए प्रेरित किया और यह सुनिश्चित किया कि भारत माता का ध्वज विजय पताका में लहराता रहे। उन्होंने आगे कहा कि कोविड-19 के वैश्विक संकट के दौरान भी, राष्ट्र इसी भावना के साथ खड़ा रहा, चुनौती को परास्त किया और आगे बढ़ा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह राष्ट्र की शक्ति है, ऊर्जा का एक शक्तिशाली प्रवाह है जो देश को भावनाओं से जोड़ता है, चेतना का प्रवाह है और प्रगति को गति देने वाली अखंड सांस्कृतिक धारा का प्रतिबिंब है। श्री मोदी ने बल देकर कहा, "यह केवल वंदे मातरम स्मरण के लिए नहीं, बल्कि नई ऊर्जा और प्रेरणा प्राप्त करने और इसके लिए खुद को समर्पित करने का समय है।" उन्होंने दोहराया कि राष्ट्र वंदे मातरम का ऋणी है। वंदे मातरम ने हमारे यहां तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया है और इसलिए इसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। प्रधानमंत्री ने इस बात का भी उल्लेख किया कि भारत के पास हर चुनौती से पार पाने की क्षमता है और वंदे मातरम की भावना उस शक्ति का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत या भजन नहीं है, बल्कि प्रेरणा का एक स्रोत है जो हमें राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्यों के प्रति जागृत करता है और इसे निरंतर बनाए रखना चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि जैसे-जैसे हम एक आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर रहे हैं, वंदे मातरम हमारी प्रेरणा बना हुआ है। उन्होंने कहा कि समय और रूप भले ही बदल जाएं, महात्मा गांधी द्वारा व्यक्त की गई भावना आज भी प्रबल है और वंदे मातरम हमें एकता के सूत्र में पिरोता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि महान नेताओं का सपना स्वतंत्र भारत का था, जबकि आज की पीढ़ी का सपना समृद्ध भारत का है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि जिस तरह वंदे मातरम की भावना ने स्वतंत्रता के स्वप्न को पोषित किया, उसी तरह यह समृद्धि के स्वप्न को भी पोषित करेगी। उन्होंने सभी से इसी भावना के साथ आगे बढ़ने, एक आत्मनिर्भर भारत बनाने और 2047 तक एक विकसित भारत के स्वप्न को साकार करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि अगर आज़ादी से 50 साल पहले कोई आज़ाद भारत का सपना देख सकता था, तो 2047 से 25 साल पहले हम भी एक समृद्ध और विकसित भारत का सपना देख सकते हैं और उसे साकार करने के लिए खुद को समर्पित कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि इस मंत्र और संकल्प के साथ, वंदे मातरम हमें प्रेरित करता रहेगा, हमें हमारे ऋण की याद दिलाता रहेगा, अपनी भावना से हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा और इस स्वप्न को पूरा करने के लिए राष्ट्र को एकजुट करता रहेगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह चर्चा राष्ट्र को भावनाओं से भरने, देश को प्रेरित करने और नई पीढ़ी को ऊर्जा देने का कारण बनेगी और उन्होंने इस अवसर के लिए अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त की।
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पीके/केसी/वीके/जीआरएस
(रिलीज़ आईडी: 2200542)
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