गृह मंत्रालय
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महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध

प्रविष्टि तिथि: 10 DEC 2025 2:43PM by PIB Delhi

भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत 'पुलिस' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' राज्य के विषय हैं। कानून व्यवस्था बनाए रखने, नागरिकों, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेश प्रशासनों की है और वे मौजूदा कानूनों के प्रावधानों के अंतर्गत ऐसे अपराधों से निपटने के लिए सक्षम हैं। भारत सरकार महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की रोकथाम और नियंत्रण को सर्वोच्च महत्व देती है और आपराधिक कानूनों में संशोधन, तकनीकी और अवसंरचनात्मक सहायता का विकास, पुलिस कर्मियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना, वित्तीय सहायता और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह जारी करने सहित कई उपायों के माध्यम से आवश्यक हस्तक्षेप करती है। ये कदम नीचे दिए गए हैं:

    1. गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रत्येक पुलिस स्टेशन में महिला सहायता डेस्क (डब्ल्यूएचडी) स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की है, जिसका उद्देश्य पुलिस स्टेशनों को महिलाओं के लिए अधिक सुलभ और अनुकूल बनाना है।
    2. आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली सभी आपात स्थितियों के लिए अखिल भारतीय, एकल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संख्या (112) आधारित प्रणाली प्रदान करती है, जिसमें संकट के स्थान पर क्षेत्र संसाधनों के कम्प्यूटर सहायता प्राप्त प्रेषण की सुविधा होती है।
    1. स्मार्ट पुलिसिंग और सुरक्षा प्रबंधन में प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए, सुरक्षित शहर योजना का पहला चरण 8 शहरों (अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई) में कार्यान्वित किया जा रहा है।
    1. गृह मंत्रालय ने देश भर में यौन अपराधियों की जांच और उन पर नजर रखने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता के लिए "यौन अपराधियों पर राष्ट्रीय डेटाबेस" (एनडीएसओ) शुरू किया है।
    1. गृह मंत्रालय ने पुलिस के लिए एक ऑनलाइन विश्लेषणात्मक उपकरण "यौन अपराधों के लिए जांच ट्रैकिंग प्रणाली" शुरू की है, ताकि उन्हें आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2018 के अनुसार यौन उत्पीड़न के मामलों में समयबद्ध जांच की निगरानी और ट्रैक करने में सुविधा हो सके।
    2. जांच में सुधार लाने के लिए गृह मंत्रालय ने केंद्रीय और राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में डीएनए विश्लेषण इकाइयों को मजबूत करने के लिए कदम उठाए हैं। इसमें चंडीगढ़ स्थित केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में अत्याधुनिक डीएनए विश्लेषण इकाई की स्थापना शामिल है। निर्भया निधि के अंतर्गत राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं (एफएसएल) में डीएनए फोरेंसिक क्षमताओं को मजबूत करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता प्रदान की गई है।
    1. गृह मंत्रालय ने यौन उत्पीड़न के मामलों में फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र करने के लिए दिशानिर्देश और यौन उत्पीड़न साक्ष्य संग्रह किट में मानक संरचना को अधिसूचित किया है।
    2. पर्याप्त मानव संसाधन उपलब्ध कराने के लिए, जांच अधिकारियों, अभियोजन अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम चलाए गए हैं। अब तक, पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरएंडडी) और एलएनजेएन राष्ट्रीय अपराध विज्ञान एवं फोरेंसिक विज्ञान संस्थान (अब राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय का दिल्ली परिसर) द्वारा 35,377 जांच अधिकारियों, अभियोजकों और चिकित्सा अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो ने प्रशिक्षण के अंतर्गत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 18,020 यौन उत्पीड़न साक्ष्य संग्रह किट वितरित किए हैं।
    1. तीन नए कानून यानी भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (बीएसए) 1 जुलाई, 2024 से लागू किए गए हैं। महिलाओं और बच्चों के विरूद्ध अपराध के मामले में रोकथाम, जांच और अभियोजन से संबंधित इन कानूनों की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
      • महिला एवं बाल अपराध को अन्य सभी अपराधों पर प्राथमिकता दी गई है। महिला एवं बाल अपराध को भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अध्याय-V के अंतर्गत समेकित किया गया है, जो भारतीय न्याय संहिता का पहला मूल अध्याय है।
      • विवाह, रोजगार, पदोन्नति आदि के झूठे वादे पर या पहचान छिपाकर यौन संबंध बनाने के लिए एक नया अपराध भी बीएनएस में शामिल किया गया है।
      • बीएनएस में, नाबालिग सामूहिक बलात्कार पीड़ितों के लिए उम्र का अंतर खत्म कर दिया गया है। पहले 16 साल और 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए अलग-अलग सज़ाएं निर्धारित थीं। इस प्रावधान में संशोधन किया गया है और अब अठारह साल से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सज़ा का प्रावधान है।
      • पीड़िता को अधिक सुरक्षा प्रदान करने तथा बलात्कार के अपराध से संबंधित जांच में पारदर्शिता लागू करने के लिए, पुलिस द्वारा पीड़िता का बयान ऑडियो वीडियो माध्यम से दर्ज किया जाएगा।
      • महिलाओं के विरुद्ध कुछ अपराधों के मामलों में, पीड़ित का बयान, जहां तक ​​संभव हो, एक महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाना चाहिए और उसकी अनुपस्थिति में एक पुरुष मजिस्ट्रेट द्वारा एक महिला की उपस्थिति में दर्ज किया जाना चाहिए ताकि संवेदनशीलता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके और पीड़ितों के लिए एक सहायक वातावरण बनाया जा सके।
      • चिकित्सकों को बलात्कार की पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट 7 दिनों के अंदर जांच अधिकारी को भेजने का आदेश दिया गया है।
      • किसी अपराध को अंजाम देने के लिए बच्चे को काम पर रखने, नियुक्त करने या संलग्न करने के लिए एक नया अपराध शामिल किया गया है। इसके अलावा, वेश्यावृत्ति आदि के उद्देश्य से बच्चे को खरीदने के लिए अधिकतम सजा को बढ़ाकर चौदह वर्ष कर दिया गया है, जो पहले केवल 10 वर्ष थी।
      • बीएनएस की धारा 143 के तहत शोषण के उद्देश्य से किसी बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को परिभाषित) की तस्करी करने पर कम से कम 10 वर्ष का कठोर कारावास, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना लगाया जा सकता है। भीख मंगवाना भी तस्करी के एक प्रकार के शोषण के रूप में शामिल किया गया है और यह बीएनएस, 2023 की धारा 143 के अंतर्गत दंडनीय है। इसके अतिरिक्त, धारा 144(1) के अंतर्गत तस्करी किए गए बच्चों के यौन शोषण को कम से कम 5 वर्ष के कठोर कारावास से दंडित किया जाता है, जिसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

नए कानून में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों के पीड़ितों को सभी अस्पतालों में मुफ्त प्राथमिक उपचार या चिकित्सा उपचार का प्रावधान है। यह प्रावधान चुनौतीपूर्ण समय में पीड़ितों की भलाई और स्वास्थ्य लाभ को प्राथमिकता देते हुए, आवश्यक चिकित्सा देखभाल तक तत्काल पहुंच सुनिश्चित करता है।

गृह मंत्रालय ने केंद्रीय पीड़ित मुआवजा कोष (सीवीसीएफ) के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2016-17 में कुल 200 करोड़ रुपये जारी किए, जो राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357ए (बीएनएसएस की धारा 396) के प्रावधानों के अंतर्गत अधिसूचित पीड़ित मुआवजा योजनाओं (वीसीएस) को प्रभावी ढंग से लागू करने और विभिन्न अपराधों, विशेष रूप से बलात्कार, एसिड हमले, बाल अपराध, मानव तस्करी आदि सहित यौन अपराधों के पीड़ितों को वित्तीय सहायता जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु एकमुश्त वित्तीय सहायता थी।

न्याय विभाग द्वारा वर्ष 2019 से त्वरित परीक्षण विशेष न्यायालयों (एफटीएससी) की स्थापना के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना लागू की जा रही है, जिसमें विशेष रूप से बाल यौन शोषण अपराध (पीओसीएसओ) न्यायालय भी शामिल हैं। ये न्यायालय बलात्कार और बाल यौन शोषण अपराध (पीओसीएसओ) अधिनियम, 2012 के अंतर्गत लंबित मामलों के समयबद्ध सुनवाई और निपटान के लिए समर्पित हैं। उच्च न्यायालयों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 30 सितम्‍बर, 2025 तक, 29 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 773 एफटीएससी, जिनमें 400 विशेष रूप से बाल यौन शोषण अपराध (पीओसीएसओ) न्यायालय शामिल हैं, कार्यरत हैं, जिन्होंने योजना की शुरुआत से अब तक 3,50,685 मामलों का निपटारा किया है।

अपराध की शिकार महिलाओं और बच्चों की सहायता के लिए, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय देश भर में वन स्टॉप सेंटर (ओएससी) योजना लागू कर रहा है। वन स्टॉप सेंटर योजना का उद्देश्य हिंसा से प्रभावित महिलाओं को निजी और सार्वजनिक दोनों स्थानों पर एक ही जगह एकीकृत सहायता और सहयोग प्रदान करना है, साथ ही पुलिस, चिकित्सा, कानूनी सहायता और परामर्श, मनोवैज्ञानिक सहायता सहित विभिन्न सेवाओं तक तत्काल, आपातकालीन और गैर-आपातकालीन पहुंच को सुगम बनाना है ताकि महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा से लड़ा जा सके। देश भर में 864 ओएससी कार्यरत हैं और 30 सितंबर, 2025 तक 12.67 लाख से अधिक महिलाओं को सहायता प्रदान की जा चुकी है।

महिला हेल्पलाइन के सार्वभौमीकरण (डब्ल्यूएचएल) योजना 1 अप्रैल, 2015 से लागू की गई है, जिसका उद्देश्य रेफरल सेवा के माध्यम से देशभर में हिंसा से प्रभावित महिलाओं को तत्काल और 24 घंटे आपातकालीन और गैर-आपातकालीन सहायता प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत, सहायता और जानकारी चाहने वाली महिलाओं को शॉर्ट कोड 181 के माध्यम से 24 घंटे टोल-फ्री दूरसंचार सेवा प्रदान की जाती है। महिला हेल्पलाइन 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यरत है।

लापता और जरूरतमंद बच्चों तक सहायता पहुंचाने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098 संचालित की जाती है, जो चौबीसों घंटे सातों दिन चालू रहती है। प्रमुख रेलवे प्लेटफार्मों पर जरूरतमंद बच्चों की सहायता के लिए रेलवे चाइल्ड लाइन भी चलाई जा रही हैं।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय मिशन शक्ति के अंतर्गत "समर्थ्या" योजना का संचालन भी करता है, जिसमें शक्ति सदन का एक घटक कठिन परिस्थितियों में फंसी महिलाओं को राहत और पुनर्वास प्रदान करना है।

सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) और राज्यों में इसके समकक्ष संस्थानों के माध्यम से, सेमिनार, कार्यशालाओं, ऑडियो-विजुअल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आदि के जरिए महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षा के साथ-साथ कानून और नीतियों के विभिन्न प्रावधानों के बारे में लोगों को जागरूक कर रही है। दर्ज शिकायतों के संबंध में, आयोग हितधारकों, विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों के साथ मामला उठाती है ताकि शिकायतों का निवारण हो सके और उनका तार्किक निष्कर्ष निकाला जा सके।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 22 जनवरी, 2025 को सभी कार्यात्मक विशेषताओं के साथ 'मिशन शक्ति पोर्टल' का शुभारंभ किया। इस पोर्टल का उद्देश्य महिलाओं के लिए विभिन्न सरकारी सेवाओं की सुलभता बढ़ाना, बचाव, संरक्षण और पुनर्वास के लिए गुणवत्तापूर्ण तंत्र स्थापित करना और विभिन्न योजनाओं और कानूनों के अंतर्गत कार्य करने वाले अधिकारियों और कर्तव्य धारकों की क्षमता का निर्माण करना है।

इसके अतिरिक्त, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने समय-समय पर राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सलाह जारी की है।

गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री बंदी संजय कुमार ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।

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पीके/केसी/एचएन/एमपी


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