विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
संसद प्रश्न: बायोफार्मास्युटिकल क्षेत्र में स्वदेशी विनिर्माण
प्रविष्टि तिथि:
10 DEC 2025 4:34PM by PIB Delhi
भारत सरकार ने बायोफार्मास्युटिकल अर्थात जैव-औषधि क्षेत्र में उद्यमिता एवं स्वदेशी निर्माण को प्रोत्साहित करने और सहायता देने के लिए कई कदम उठाए हैं।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने 2012 में जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) की स्थापना धारा 8 के एक गैर-लाभकारी सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम के रूप में की थी। इसका उद्देश्य देश में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करना, नवाचार को प्रोत्साहित करना और उद्यमिता को बढ़ावा देना है। यह संगठन विशेष रूप से फार्मा और बायोफार्मा सहित स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए अनुसंधान, विकास और उद्योग सहयोग को नई गति प्रदान करता है।
- प्रारंभिक चरण के नवाचारों के लिए वित्तपोषण और सहायता
बिग (बायोटेक्नोलॉजी इग्निशन ग्रांट), स्पर्श (उत्पादों के लिए सामाजिक नवाचार कार्यक्रम) जैसी प्रमुख वित्त पोषण योजनाएं शुरू की गई: किफायती और सामाजिक रूप से प्रासंगिक स्वास्थ्य समाधानों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बीआईआरएसी ने सीड कोष (सतत उद्यमिता एवं उद्यम विकास) और लीप कोष (उद्यमी-संचालित किफायती उत्पादों का शुभारंभ) जैसी इक्विटी योजनाओं की शुरुआत की। ये योजनाएं स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के साथ-साथ विचार-मंथन और व्यावसायीकरण के बीच मौजूद वित्तपोषण अंतराल को दूर करते हुए निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास को भी महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करती हैं। बीआईआरएसी की इन गतिविधियों का व्यापक प्रभाव स्पष्ट है—बिग योजना से लगभग 1000 स्टार्टअप और उद्यमियों को लाभ मिला है, जबकि स्पर्श कार्यक्रम ने 150 से अधिक फैलोशिप प्रदान की हैं, जिनसे 100 से अधिक स्टार्टअप विकसित हुए तथा 65 से अधिक आईपी का सृजन संभव हुआ है।
- भारत के जैव प्रौद्योगिकी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना
बीआईआरएसी ने देशभर में नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए एक व्यापक एवं सुदृढ़ इनक्यूबेशन नेटवर्क विकसित किया है। वर्तमान में 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले 94 इनक्यूबेशन एवं प्री-इनक्यूबेशन केंद्र 3000 से अधिक इनक्यूबेटरों तथा फेलो को सहायता प्रदान कर रहे हैं। बायोनेस्ट (बायोइनक्यूबेटर नर्चरिंग एंटरप्रेन्योरशिप फॉर स्केलिंग टेक्नोलॉजीज) और ई-युवा (एम्पावरिंग यूथ फॉर अंडरटेकिंग वैल्यू-एडेड इनोवेशन एंड ट्रांसलेशनल रिसर्च) जैसी योजनाओं के माध्यम से युवाओं, शोधकर्ताओं तथा स्टार्टअप्स को अत्याधुनिक सुविधाएं, तकनीकी मार्गदर्शन व उद्यमिता के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (एनबीएम) को सहयोग प्रदान कर रहा है, जो कैबिनेट द्वारा अनुमोदित एक प्रमुख कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य “बायोफार्मास्यूटिकल्स के प्रारंभिक विकास हेतु खोज अनुसंधान में तेजी लाने के लिए उद्योग–अकादमिक सहयोगात्मक मिशन— ‘भारत में नवाचार (आई3): जैव प्रौद्योगिकी उद्यमियों को सशक्त बनाना और समावेशी नवाचार में तेजी लाना’” को आगे बढ़ाना है। यह मिशन जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन भारत की नवाचार अनुसंधान क्षमता और उत्पाद विकास अवसंरचना को नई ऊंचाइयों तक ले जा रहा है। विशेष रूप से यह टीकों, जैविक दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के विकास पर केंद्रित है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियों का प्रभावी समाधान तैयार किया जा सके।
एनबीएम की कुछ प्रमुख उपलब्धियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- एनबीएम के अंतर्गत 100 से अधिक बायोफार्मा-केंद्रित परियोजनाओं को सहायता प्रदान की गई है, जिनमें बड़ी संख्या में एमएसएमई और स्टार्टअप शामिल हैं। इसके साथ ही (परीक्षण, सत्यापन एवं विनिर्माण जैसी) साझा सुविधाओं के विकास को भी बढ़ावा दिया गया है, जिससे देश में बायोलॉजिक्स, टीकों और डायग्नोस्टिक्स के क्षेत्र में घरेलू क्षमता व आत्मनिर्भरता को उल्लेखनीय रूप से सुदृढ़ किया गया है।
- उत्पाद विकास के क्षेत्र में मिशन ने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। इसके तहत 2 कोविड-19 टीके—ज़ाइकोव-डी और कॉर्बेवैक्स—सफलतापूर्वक विकसित एवं व्यावसायीकृत किए गए। इसके अलावा मधुमेह के उपचार हेतु बायोसिमिलर लिराग्लूटाइड, कोविड-19 के लिए पेगिलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2बी, देश का पहला स्वदेशी एमआरआई स्कैनर, एकल-उपयोग बायोरेक्टर, 9 कोविड-19 निदान किट, वेंटिलेटर तथा अभिकर्मक भी विकसित किए गए। साथ ही प्रयोगशाला सूचना प्रबंधन प्रणाली (एलआईएमएस) और सीएचओ सेल कल्चर मीडिया जैसी महत्वपूर्ण तकनीकों को भी सफलतापूर्वक तैयार कर व्यावसायिक स्तर तक पहुंचाया गया है।
- पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना - एनबीएम ने देश में अनुसंधान एवं जीएमपी विनिर्माण क्षमताओं को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके तहत स्थापित 18 अत्याधुनिक सुविधा केंद्र अब तक 500 से अधिक विशिष्ट सेवाएं प्रदान कर चुके हैं। नवाचारों के पेटेंट दाखिल करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सरल एवं तेज बनाने हेतु 7 प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कार्यालयों (टीटीओ) का एक समन्वित राष्ट्रीय नेटवर्क विकसित किया गया है। इसके अलावा, टीकों एवं चिकित्सकीय प्रौद्योगिकियों के परीक्षण को अधिक सक्षम, सुरक्षित व मानकों के अनुरूप बनाने के लिए जीसीपी-अनुरूप 46 नैदानिक परीक्षण स्थलों का एक मजबूत नेटवर्क स्थापित किया गया है, जिससे अनुसंधान से उत्पाद विकास की प्रक्रिया और भी सुगम हुई है।
डीबीटी ने कैबिनेट की मंजूरी से वर्ष 2024 के दौरान देश में उच्च-प्रदर्शन जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए बायोई3 नीति को लागू किया है, जिसका अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार पर प्रभाव पड़ेगा।
इस पहल के तहत, देशभर में बायोमैन्युफैक्चरिंग कार्यक्रम के सभी प्रमुख विषयगत क्षेत्रों में अत्याधुनिक बायोफाउंड्री और बायोमैन्युफैक्चरिंग हब स्थापित किए जा रहे हैं, जिनमें "प्रेसिजन बायोथेरेप्यूटिक्स" भी शामिल है। इन हबों का मुख्य उद्देश्य मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, एमआरएनए-आधारित थेरेपी, सेल एवं जीन थेरेपी सहित अन्य उन्नत प्रेसिजन दवाओं के स्वदेशी उत्पादन को गति देना है। ये सभी कार्यक्रम सरकारी सहायता और सहयोग के माध्यम से संचालित किए जा रहे हैं।
औषधि विभाग देश के औषधि क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए 15,000 करोड़ रुपये के कुल बजट के साथ उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना लागू कर रहा है। इसका उद्देश्य निवेश और उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहित करके भारत की विनिर्माण क्षमता को बढ़ाना है और साथ ही उच्च मूल्य वाले उत्पादों के विविधीकरण के माध्यम से औषधि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त सुनिश्चित करना है। इस योजना के अंतर्गत जैव-औषधीय उत्पादों को भी पात्र श्रेणी में शामिल किया गया है, जिन पर बिक्री में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि के आधार पर 10% की प्रोत्साहन दर प्रदान की जाती है।
उपलब्धियां:
- सितंबर 2025 तक, इस योजना के तहत टीकों सहित 46 जैवऔषधीय उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है।
- इस योजना के अंतर्गत पात्र जैवऔषधीय पदार्थों की संचयी बिक्री (वित्त वर्ष 2022-23 से सितंबर 2025 तक) 26,832 करोड़ रुपये की है, जिसमें 16,290 करोड़ रुपये का निर्यात शामिल है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पशु विज्ञान संस्थान उद्यमिता और स्वदेशी जैव-औषधीय विनिर्माण को बढ़ावा दे रहे हैं। आईसीएआर-एनआईएचएसएडी (राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान) प्राथमिकता वाले टीके और निदान विकसित करता है। आरकेवीवाई-रफ्तार के तहत आईसीएआर-आईवीआरआई (भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान) पशु विज्ञान इनक्यूबेटर पशुधन बायोफार्मा स्टार्टअप्स को 5 लाख रुपये (नवोदय) और 25 लाख रुपये (समृद्धि) के अनुदान के माध्यम से समर्थन देता है, साथ ही अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना, मार्गदर्शन तथा नियामक/व्यावसायीकरण सहायता भी प्रदान करता है।
कुछ प्रमुख उपलब्धियां:
- अब स्वदेशी मुर्गीपालन टीकों और निदान उत्पादों का व्यावसायिक उत्पादन हो रहा है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हो रही है।
- चार कंपनियां एनआईएचएसएडी के एच9एन2 टीके का निर्माण कर रही हैं, जिससे एवियन इन्फ्लूएंजा से निपटने की तैयारियों को मजबूती मिल रही है।
- एक उद्योग भागीदार ने अप्रत्यक्ष एलिसा किट का व्यावसायीकरण किया है, जिससे किफायती राष्ट्रव्यापी निगरानी संभव हो गई है।
- आरकेवीवाई-रफ्तार के तहत वित्त पोषित जीनक्स्ट जीनोमिक्स प्राइवेट लिमिटेड क्लासिकल स्वाइन फीवर व ब्रुसेला के लिए निदान विकसित कर रही है और चिकित्सीय एंटीबॉडी, सेल लाइन तथा बायोसिमिलर को आगे बढ़ा रही है।
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पीके/केसी/एनके/डीए
(रिलीज़ आईडी: 2201767)
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