विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
विज्ञान संचार और उसकी पहुँच का उत्सव: विज्ञानिका - विज्ञान साहित्य महोत्सव 2025
प्रविष्टि तिथि:
10 DEC 2025 5:57PM by PIB Delhi
केंद्रीय वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसन्धान (सीएसआईआर )-राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान(सीएसआईआर - एनआईएससीपीआर), नई दिल्ली ने विज्ञान भारती (विभा), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम ), पुणे और पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के संयुक्त सहयोग से 8-9 दिसंबर 2025 को भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव (एआईएसएफ ), 2025 के अन्तर्गत विज्ञानिका: विज्ञान साहित्य महोत्सव 2025 का सफल आयोजन किया ।
यह दो दिवसीय महोत्सव विज्ञान, साहित्य, भाषा और रचनात्मक संचार के समागम का उत्सव था, जिसमें देशभर के प्रमुख विज्ञान संचारक, वैज्ञानिक, संपादक, विद्वान और विज्ञान कवि एक साथ जुटे। इस आयोजन का उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण की संस्कृति को बहुभाषी तथा सांस्कृतिक रूपों में निहित विज्ञान संचार के माध्यम से मजबूत करना था।
8 दिसंबर को “भारतीय विज्ञान विमर्श में साहित्य और संचार माध्यमों की भूमिका” शीर्षक से उद्घाटन सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र में भारत में वैज्ञानिक चर्चा के आयोजन में साहित्य और संचार माध्यमों की भूमिका पर विचार विमर्श किया गया । सीएसआईआर - एनआईएससीपीआर के डाक्टर परमानंद बर्मन ने ‘विज्ञानिका’ का परिचय प्रस्तुत किया। विज्ञान भारती के डाक्टर नील सरोवर भावेश ने भारतीय संदर्भ में विज्ञान संचार के महत्व पर प्रकाश डाला। विभा के महासचिव विवेकानंद पई ने अपना मुख्य भाषण दिया। उन्होंने विज्ञान संचार में भारतीय दृष्टिकोण की आवश्यकता पर चर्चा की और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में भारत के उल्लेखनीय योगदान को उजागर किया।
प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर, पूर्व उप-कुलपति, पंजाब विश्वविद्यालय ने भारत के वैज्ञानिक संस्थानों और विज्ञान संचार के इतिहास पर विचार साझा किए। डाक्टर गीता वाणी रायसम, निदेशक, सीएसआईआर - एनआईएससीपीआर ने भारतीय संदर्भ में विज्ञान संचार के महत्व को रेखांकित किया और उन्होंने सीएसआईआर - एनआईएससीपीआर के इस क्षेत्र में योगदान का उल्लेख किया। कार्यक्रम के अंत में, डाक्टर रश्मि शर्मा, प्रमुख, एनसीएसटीसी, डीएसटी ने वर्तमान विज्ञान संचार के तरीकों पर चर्चा की। उनके विचार पूरे देश में सुलभ और संदर्भ-संवेदनशील विज्ञान संचार की निरंतर आवश्यकता को दर्शाते हैं। इस अवसर पर डाक्टर अतुल कुमार श्रीवास्तव,आईआईटीएम ने अपना धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में विज्ञान काव्य सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें कविता और विज्ञान का जीवंत समागम प्रस्तुत हुआ। इस कार्यक्रम ने दिखाया कि कैसे रचनात्मक अभिव्यक्ति के जरिये वैज्ञानिक विचारों को उजागर किया जा सकता है। कार्यक्रम में शामिल प्रमुख विज्ञान कवियों में प्रो. मनोज कुमार पात्रय्या, पूर्व निदेशक, सीएसआईआर - एनआईएससीएआर, प्रो. राजेश कुमार, आईआईटी इंदौर; श्री मोहन सगोड़ा, सहायक संपादक , ‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’; साथ ही प्रतिष्ठित विज्ञान कवि सुश्री राधा गुप्ता, प्रो. नीर राघव, श्री यशपाल सिंह ‘यश’, टीएसआरएस संदीप और डॉ. अनुराग गौर शामिल थे। उनकी कविताओं ने विज्ञान से जुड़ी जनता की भागीदारी में कविता की ताकत को दर्शाया।
विज्ञानिका के दूसरे दिन एक वैज्ञानिक सत्र “विज्ञान से समृद्धि – आत्मनिर्भर भारत के लिए” आयोजित हुआ, जो पारंपरिक ज्ञान संचार और राष्ट्रीय स्वावलंबन में उसकी भूमिका पर केंद्रित था। इस सत्र में प्रमुख वक्ताओं में डॉ. अरविंद रणाडे, निदेशक, एनआईएफ ने पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा के लिए बौद्धिक संपदा (आईपी ) ढांचे की आवश्यकता और ज्ञान धारकों को उचित मान्यता देने पर जोर दिया। डॉ. विश्वजननी जे. सत्तिगेड़ी, प्रमुख, सीएसआईआर -टीकेडीएल ने पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण, प्रसार और नीति क्रियान्वयन के महत्व को रेखांकित किया। डॉ. एन. श्रीकांत, उप महानिदेशक, सीसीआरएएस ने पारंपरिक ज्ञान के मूल्य संवर्धन और वैज्ञानिक आधार सहित सही संचार की आवश्यकता पर जोर दिया। अंत में, डॉ. कनुप्रिया वशिष्ठ, वरिष्ठ प्रोग्राम अधिकारी, डीबीटी -बीआइआरएसी ने भारत में जीवन विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी नवाचारों पर बात की। चर्चा में भारत की समृद्ध पारंपरिक ज्ञान विरासत की आधुनिक वैज्ञानिक व नवाचार प्रणाली में समाहित करने और प्रभावी संचार की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
“अपनी भाषा अपना विज्ञान” नामक एक पैनल चर्चा में भारतीय भाषाओं की विज्ञान संचार और जागरूकता में महत्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया गया। इस पैनल में प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर, श्री देबोब्रत घोष (संपादक, साइंस इंडिया), डॉ. मनीष मोहन गोरे (संपादक, विज्ञान प्रगति), डॉ. एच. एस. सुधिरा (निदेशक, रिसर्च मैटर्स, गुब्बी लैब्स), और डॉ. नानौचा शर्मा (निदेशक, बीआरआईसी-आईबीएसडी, मणिपुर) ने हिस्सा लिया। पैनल ने बताया कि अपनी भाषा में विज्ञान संचार समावेशन, समझ और गहरी जन भागीदारी को बढ़ावा देता है।
विज्ञानिका का समापन “विज्ञान संचार के नवाचारी और सृजनात्मक तरीके” विषयक संवादात्मक सत्र से हुआ, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने अपनी पहुंच रणनीतियाँ प्रस्तुत कीं। इसमें श्री कोल्लेगला शर्मा, पूर्व मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर - सीएफटीआरआई ; श्री जी. हरिकृष्णन, निदेशक, क्षमता निर्माण और जन जागरूकता, इसरो ; डॉ. सौरभ शर्मा, जेएनयू ; और सुश्री पूजा राठौड़, वन्यजीव छायाकार और फिल्म निर्माता, ने कथा कहने, ऑडियो-विजुअल मीडिया, क्षेत्रीय सहभागिता और जन-सामना वैज्ञानिक कथाओं जैसे तरीकों को साझा किया। उनके विचारों ने भारत में विज्ञान संचार के बदलते स्वरूप को उजागर किया।
एआईएसएफ 2025 के अंतर्गत आयोजित इस विज्ञानिका उत्सव ने विज्ञान और समाज के बीच पुल बनाने की अपनी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया। साहित्य, कला, भारतीय भाषाओं और रचनात्मक माध्यमों के माध्यम से इस आयोजन ने सांस्कृतिक रूप से आधारित विज्ञान संचार की रूपांतरणकारी क्षमता को दर्शाया, जो एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जागरूक और सहभागितापूर्ण समाज के निर्माण में सहायक है।





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पीके/ केसी/ एम एम / डीए
(रिलीज़ आईडी: 2201844)
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