महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
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भारत सरकार ने महिलाओं में तनाव कम करने, उससे निपटने और प्रबंधन के लिए विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक, बहु-आयामी एवं समन्वित प्रतिक्रिया लागू की

प्रविष्टि तिथि: 12 DEC 2025 4:39PM by PIB Delhi

भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में ‘‘सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं स्वच्छता; अस्पताल एवं औषधालय’’ को राज्य सूची में रखा गया है, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य भी शामिल है। इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, अस्पतालों, सामुदायिक देखभाल और पुनर्वास के प्रावधान और वितरण की प्राथमिक जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की है।

हालांकि, भारत सरकार राज्य सरकार का समर्थन करती है और उसने एक व्यापक, बहुआयामी और समन्वित व्यवस्था लागू की है जो अधिकार-आधारित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल, टेली-मानसिक स्वास्थ्य सुविधा, आघात-संवेदी मनोसामाजिक सहायता, वैधानिक कार्यस्थल सुरक्षा उपाय, नियोक्ता-प्रेरित व्यावसायिक स्वास्थ्य उपाय, लैंगिक-संवेदनशील स्वास्थ्य उपाय और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण कार्यक्रमों को जोड़ती है ताकि सभी क्षेत्रों में महिलाओं के बीच तनाव को रोका जा सके, कम किया जा सके और प्रबंधित किया जा सके।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए उत्पीड़न की रोकथाम, लैंगिक संवेदनशीलता, कार्मिक प्रबंधन और जहां प्रशासनिक रूप से संभव हो लचीली कार्य व्यवस्थाओं पर निर्देश एवं दिशानिर्देश जारी करने वाला नोडल विभाग है। ऐसे उपाय, जागरूकता अभियान, आंतरिक शिकायत निवारण तंत्र और त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई के साथ मिलकर, सुरक्षित कार्य वातावरण बनाने और उत्पीड़न से संबंधित तनाव को कम करने में योगदान करते हैं।
केंद्र सरकार महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है और इसने राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन की सहायता के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें महिला हेल्पलाइन -181, बाल हेल्पलाइन - 1098 और आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस-112) जैसी हेल्पलाइनों का संचालन, नए आपराधिक कानूनों के तहत जीरो एफआईआर और ई-एफआईआर की अवधारणा और पीड़ितों को संस्थागत सहायता प्रदान करना शामिल है।

इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाएं प्रदान करने तथा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाओं के वितरण के दौरान एवं उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों के लिए ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा, संवर्धन और पूर्ति करने का एक अधिनियम है। उक्त अधिनियम आत्महत्या के प्रयास को भी अपराध की श्रेणी से बाहर करता है, जिससे यह मान्यता मिलती है कि गंभीर तनाव से ग्रस्त व्यक्तियों को दंडात्मक कार्रवाई के बजाय देखभाल और पुनर्वास की आवश्यकता होती है और मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के पंजीकरण और विनियमन तथा सेवाओं की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार के लिए निगरानी तंत्र का प्रावधान करता है।

मानसिक विकारों के बोझ से निपटने के लिए भारत सरकार देश में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) लागू कर रही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएप) के जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (डीएमएचपी) घटक को 767 जिलों में कार्यान्वयन के लिए मंजूरी दी गई है, जिसके लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से सहायता प्रदान की जाती है। डीएमएचपी के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) स्तरों पर उपलब्ध कराई जाने वाली सुविधाओं में अन्य बातों के अलावा, बाह्य रोगी सेवाएं, मूल्यांकन, परामर्श/मनो-सामाजिक हस्तक्षेप, गंभीर मानसिक विकारों से ग्रस्त व्यक्तियों को निरंतर देखभाल और सहायता, नशीली दवाओं की लत, संपर्क सेवाएं, एम्बुलेंस सेवाएं आदि शामिल हैं।

उपरोक्त के अलावा, सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को मजबूत करने के लिए भी कदम उठा रही है। सरकार ने 1.81 लाख से अधिक उप स्वास्थ्य केंद्रों (एसएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में उन्नत किया है। इन आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में प्रदान की जाने वाली व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के पैकेज में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को भी शामिल किया गया है। आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में मानसिक, तंत्रिका संबंधी और मादक द्रव्यों के सेवन संबंधी विकारों (एमएनएस) पर विभिन्न कैडरों के लिए परिचालन दिशानिर्देश और प्रशिक्षण नियमावली जारी की गई हैं।

मानव संसाधन विकास योजना-ए के अंतर्गत एनएमएचपी के तृतीयक देखभाल घटक में मानसिक स्वास्थ्य विशिष्टताओं में स्नातकोत्तर विभागों में छात्रों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ तृतीयक स्तर की उपचार सुविधाएं प्रदान करने के लिए 25 उत्कृष्टता केंद्रों को मंजूरी दी गई है। इसके अलावा, सरकार ने मानव संसाधन विकास योजना-बी के अंतर्गत मानसिक स्वास्थ्य विशिष्टताओं में 47 स्नातकोत्तर विभागों को मजबूत करने के लिए 19 सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों को भी सहायता प्रदान की है।

देश में सरकार द्वारा संचालित 47 मानसिक अस्पताल हैं, जिनमें राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु, लोकप्रिया गोपीनाथ बोरदोलोई क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, तेजपुर, असम और केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान, रांची जैसे तीन केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान शामिल हैं। सभी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं भी प्रदान की जाती हैं।

सरकार ने देश में गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और देखभाल सेवाओं तक पहुंच को और बेहतर बनाने के लिए 10 अक्टूबर, 2022 को एक ‘‘राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम’’ शुरू किया है। 27.11.2025 तक 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने 53 टेली मानस प्रकोष्ठ स्थापित किए हैं। टेली-मानस सेवाएं राज्यों द्वारा चुनी गई भाषा के आधार पर 20 भाषाओं में उपलब्ध हैं। हेल्पलाइन नंबर पर 29,82,000 से अधिक कॉल का जवाब दिया जा चुका है।

सरकार ने 10 अक्टूबर, 2024 को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर टेली मानस मोबाइल एप्लिकेशन भी लॉन्च किया है। टेली-मानस मोबाइल एप्लिकेशन एक व्यापक मोबाइल प्लेटफॉर्म है जिसे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों, जैसे कि कल्याण से लेकर मानसिक विकारों तक जैसी स्थिति में सहायता प्रदान करने के लिए विकसित किया गया है। इसके अलावा, मौजूदा ऑडियो कॉलिंग सेवा का उन्नयन करते हुए टेली-मानस के अंतर्गत एक वीडियो परामर्श सुविधा शुरू की गई है।
सरकार ने यह माना है कि लैंगिक आधारित हिंसा, उत्पीड़न और असुरक्षा महिलाओं में मनोवैज्ञानिक आघात और दीर्घकालिक तनाव के प्रमुख कारण हैं और इस हेतु तत्काल सुरक्षा, समग्र समर्थन और दीर्घकालिक पुनर्वास प्रदान करने के लिए कई तंत्र स्थापित किए हैं। मिशन शक्ति के योजना के अंतर्गत वन स्टॉप सेंटर (ओएससी) संबल प्रदान करने का एक घटक है। एक अप्रैल, 2015 से पूरे देश में लागू इस योजना को केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्त पोषित किया जाता है। यह निजी एवं सार्वजनिक दोनों स्थानों पर हिंसा से प्रभावित और संकटग्रस्त महिलाओं को एक ही छत के नीचे एकीकृत सहायता और समर्थन प्रदान करता है। यह जरूरतमंद महिलाओं को चिकित्सा सहायता, कानूनी सहायता और सलाह, अस्थायी आश्रय, पुलिस सहायता और मनोसामाजिक परामर्श सहित कई सेवाएं भी प्रदान करता है। देश भर में 864 ओएससी कार्यरत हैं और 30 सितंबर, 2025 तक 12.67 लाख से अधिक महिलाओं को सहायता प्रदान की जा चुकी है।

पुलिस थाने किसी भी महिला के लिए पहला और एकमात्र संपर्क बिंदु होंगे तथा ये महिलाओं के लिए अधिक अनुकूल एवं सुलभ हों, यह सुनिश्चित करने के लिए 14,649 महिला सहायता डेस्क (डब्ल्यूएचडी) स्थापित किए गए हैं, जिनमें से 14,653 का नेतृत्व महिला पुलिस अधिकारी कर रही हैं।

जरूरतमंद महिलाओं और संकटग्रस्त महिलाओं को सहायता और समर्थन प्रदान करने, विभिन्न आपात स्थितियों के लिए सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस-112) स्थापित की गई है, जिसमें क्षेत्र/पुलिस संसाधनों के कम्प्यूटर-सहायता प्राप्त प्रेषण की सुविधा है। ईआरएसएस के अतिरिक्त, पश्चिम बंगाल को छोड़कर 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एक पूर्णतः कार्यरत समर्पित महिला हेल्पलाइन (डब्ल्यूएचएल-181) संचालित है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को ईआरएसएस के साथ एकीकृत किया गया है। इसके अलावा, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय मिशन शक्ति के अंतर्गत ‘‘सामर्थ्य’’ योजना का संचालन करता है, जिसमें शक्ति सदन नामक एक घटक कठिन परिस्थितियों में फंसी महिलाओं को राहत एवं पुनर्वास प्रदान करना है, जिसमें मनोसामाजिक परामर्श भी शामिल है।

मंत्रालय ने 22 जनवरी, 2025 को सभी कार्यात्मक विशेषताओं के साथ ‘मिशन शक्ति पोर्टल’ आरंभ किया है। इस पोर्टल का उद्देश्य महिलाओं के लिए विभिन्न सरकारी सेवाओं की सुलभता बढ़ाना, बचाव, संरक्षण और पुनर्वास के लिए गुणवत्तापूर्ण तंत्र स्थापित करना और विभिन्न योजनाओं और कानूनों के तहत कार्यवाहकों और कर्तव्य धारकों की क्षमता का निर्माण करना है।
जिन सार्वजनिक स्थानों पर महिलाएं काम करती हैं और रहती हैं वहां उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षित शहर परियोजनाओं के तहत विभिन्न घटकों को आठ शहरों (अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई) में लागू किया गया है। महिलाओं के लिए सुरक्षित परिवहन सुनिश्चित करने हेतु रेलवे मंत्रालय द्वारा ट्रेन में सवार महिला यात्रियों की सुरक्षा के लिए सात प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर कमान एवं नियंत्रण केंद्र और टैब की सुविधा सहित एकीकृत आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रबंधन प्रणाली (आईईआरएमएस), कोंकण रेलवे में वीडियो निगरानी प्रणाली, वीडियो निगरानी प्रणालियों के साथ एकीकृत कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आधारित चेहरा पहचान प्रणाली (एफआरएस) जैसी रेल और सड़क परिवहन परियोजनाएं तथा राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में कमान एवं नियंत्रण केंद्र के साथ वाहन निगरानी मंच जैसी परियोजनाएं और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी), बेंगलुरु महानगर परिवहन निगम (बीएमटीसी), तेलंगाना राज्य सड़क परिवहन निगम आदि जैसी कुछ राज्य विशिष्ट परियोजनाएं लागू की गई हैं।

पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआर एंड डी) ने कई पहलें की हैं, जिनमें जांच अधिकारियों, अभियोजन अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम शामिल हैं। बीपीआर एंड डी ने पुलिस थानों में महिला सहायता डेस्क के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) भी तैयार की हैं।

पुलिस थानों में महिला हेल्प डेस्क के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए बीपीआर एंड डी ने मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) भी तैयार की हैं। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की रोकथाम और पता लगाने तथा अपराध के पीड़ितों के साथ बातचीत के दौरान पुलिस के उचित व्यवहार और दृष्टिकोण संबंधी कौशल पर जोर दिया गया है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने ‘कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013’ (पीओएसएच अधिनियम) के विभिन्न प्रावधानों को विधिवत रूप से शामिल करते हुए शी-बॉक्स पोर्टल भी लॉन्च किया है। यह पोर्टल देश भर में गठित आंतरिक समितियों (आईसी) और स्थानीय समितियों (एलसी) से संबंधित सूचनाओं का एक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध केंद्रीकृत भंडार प्रदान करता है, चाहे वे सरकारी क्षेत्र में हों या निजी क्षेत्र में। यह शिकायतें दर्ज करने और ऐसी शिकायतों की स्थिति पर नजर रखने के लिए एक साझा मंच भी प्रदान करता है। इस पोर्टल में एक ऐसी सुविधा शामिल है जिसके तहत इस पर दर्ज की गई शिकायतें केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और निजी क्षेत्र के संबंधित कार्यस्थलों के आईसी/एलसी को स्वचालित आगे बढ़ा दी जाएंगी। यह पोर्टल प्रत्येक कार्यस्थल के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान करता है, जिसे यह सुनिश्चित करना होता है कि शिकायतों की वास्तविक समय में निगरानी के लिए नियमित आधार पर डेटा/जानकारी को अद्यतन किया जाए।

महिलाओं के रोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए चार श्रम संहिताएं - मजदूरी संहिता, 2019, औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों संहिता, 2025 - ने नवंबर 2020 से प्रभावी 29 पूर्ववर्ती श्रम कानूनों को लागू किया है।
व्यावसायिक और निवारक स्वास्थ्य के संबंध में व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों (ओएसएच) संहिता, 2020 के अंतर्गत कार्यस्थल पर समानता और सुरक्षा को मजबूत कानूनी समर्थन दिया गया है। लिंगभेद को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि प्रत्येक संस्थान में महिलाओं और पुरुषों के साथ समान गरिमा और अवसर के साथ व्यवहार किया जाए।
समान काम के लिए समान वेतन की गारंटी के माध्यम से इस सिद्धांत को सुदृढ़ किया जाता है, जिससे वेतन असमानताओं को समाप्त किया जा सके और सभी क्षेत्रों में निष्पक्षता को बढ़ावा दिया जा सके। एक प्रगतिशील कदम के तहत, महिलाओं को रात्रिपाली में काम करने और भूमिगत खनन एवं भारी मशीनरी संचालन सहित सभी प्रकार के रोजगारों में काम करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते इसके लिए वे अपनी पूर्व सहमति दें और नियोक्ता पर्याप्त सुरक्षा उपाय लागू करें।

श्रमिकों के स्वास्थ्य और उत्पादकता की सुरक्षा के लिए संहिता सामान्य कार्य घंटों को प्रतिदिन आठ घंटे और प्रति सप्ताह 48 घंटे तक सीमित करती है। महिलाओं सहित सभी श्रमिकों को केवल उनकी सहमति से ही ओवरटाइम काम करने की अनुमति दी गई है और इसके लिए उन्हें नियमित वेतन दर से दोगुनी दर पर भुगतान करना अनिवार्य है। निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करते हुए, इस संहिता के अंतर्गत नियोक्ताओं को निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा जैसे कि महिला श्रमिकों सहित कर्मचारियों के लिए उचित स्वास्थ्य रिकॉर्ड बनाए रखने के साथ-साथ मुफ्त वार्षिक स्वास्थ्य जांच प्रदान करना भी आवश्यक है। ये सभी प्रावधान मिलकर श्रमिक अधिकारों को औपचारिक रूप देते हैं, समावेशिता को बढ़ावा देते हैं और व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को भारत के श्रम सुधारों की आधारशिला के रूप में स्थापित करते हैं।

स्वास्थ्य, सुरक्षा और कार्यस्थल से संबंधित तात्कालिक उपायों के अलावा, सरकार महिलाओं में तनाव के संरचनात्मक निर्धारकों को संबोधित करने के लिए दीर्घकालीन सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण और सहनशीलता निर्माण को एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में अपनाती है। स्किल इंडिया और विभिन्न आजीविका एवं उद्यमिता कार्यक्रमों के अंतर्गत की गई पहल महिलाओं के लिए रोजगार क्षमता, आय सुरक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ाती है, जिससे वित्तीय असुरक्षा से संबंधित तनाव कम होता है। सामाजिक अभियान और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे प्रमुख कार्यक्रम लैंगिक समानता और बालिकाओं एवं महिलाओं की सामाजिक मान्यता, भेदभाव के मूल कारणों और दीर्घकालिक मनोसामाजिक बोझ को संबोधित करते हैं। वित्तीय समावेशन, लघु ऋण, स्वयं सहायता समूह प्रोत्साहन और महिला कल्याण कार्यक्रमों का समन्वय आर्थिक लचीलापन बनाने और दीर्घकालिक तनावों को कम करने के लिए अपनाए जाने वाले अन्य साधन हैं।

उपरोक्त केंद्रीय कार्यक्रमों और योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों के साथ करीबी समन्वय में किया जाता है, जो स्वास्थ्य सेवा वितरण के लिए प्राथमिक एजेंसियां ​​हैं; केंद्र सरकार नीतिगत मार्गदर्शन, क्षमता निर्माण, तकनीकी दिशानिर्देश जारी करने, केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत वित्तीय सहायता, आवधिक निगरानी और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, महिला एवं बाल विकास, गृह एवं रोजगार, श्रम एवं बाल विकास जैसे मंत्रालयों के बीच अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को सुगम बनाकर राज्य की कार्रवाई में सहयोग करती है।
इन उपायों का उद्देश्य तनाव को रोकना और कम करना, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सहायता सेवाओं तक समय पर पहुंच सुनिश्चित करना, महिलाओं को हिंसा और उत्पीड़न से बचाना और जीवन चक्र के दौरान गरिमा, लचीलापन और कल्याण को बढ़ावा देना है।

यह जानकारी महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में दी।

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पीके/केसी/एसएस


(रिलीज़ आईडी: 2203395) आगंतुक पटल : 51
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