विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
जैव-प्रौद्योगिकी विभाग की उपलब्धियाँ – वर्षान्त समीक्षा-2025
भारत की जैव-अर्थव्यवस्था ने एक दशक में 16 गुना वृद्धि की, यह 10 अरब डॉलर (2014) से बढ़कर 165.7 अरब डॉलर (2024) पर पहुँच गई है, और जैव प्रौद्योगिकी को भारत की विकास गाथा का एक मुख्य स्तंभ बनाते हुए, साल 2030 तक इसके 300 अरब डॉलर तक पहुँचने का मार्ग स्पष्ट है
छह बायोफाउंड्री और एक उच्च-प्रदर्शन जैवविनिर्माण प्लेटफॉर्म स्थापित करके भारत का पहला राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क लॉन्च किया गया, जिससे बायोई3 नीति के तहत देशीय जैवनिर्माण को सुदृढ़ किया जा सके
जीनोमइंडिया परियोजना ने भारतीय जीनोमिक डेटा सेट के लॉन्च और FeED एवं आईबीडीसी पोर्टलों के संचालन के साथ एक राष्ट्रीय कीर्तिमान हासिल किया, जिससे 10,000 पूर्ण जीनोम अनुक्रम वैश्विक स्तर पर सुलभ हो गए
बायोमेडिकल रिसर्च करियर प्रोग्राम (बीआरसीपी) फेज-III को, ₹1,500 करोड़ के कुल आवंटन के साथ, केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूरी दे दी गई, जिससे भारत के दीर्घकालिक बायोमेडिकल शोध प्रतिभा प्रवाह को सुदृढ़ किया जा सकेगा
अंतरिक्ष जैवप्रौद्योगिकी में प्रमुख सफलता प्राप्त हुई, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (एक्सिओम-4) पर भारत का पहला मानव मांसपेशी स्टेम-सेल प्रयोग और भविष्य की अंतरिक्ष मिशनों के लिए माइक्रोग्रेविटी में सूक्ष्म शैवाल और सायनोबैक्टीरिया के विकास का सत्यापन शामिल है।
नेशनल बायोफार्मा मिशन ने परिवर्तनकारी स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियां डिलीवर कीं, जिनमें ZyCoV-D और कॉर्बेवैक्स टीके, घरेलू एमआरआई स्कैनर, बायोसिमिलर, डायग्नोस्टिक्स, बायोरिएक्टर और वेंटिलेटर शामिल हैं
डेटा-संचालित टीबी उन्मूलन को सुदृढ़ किया गया, जिसमें 18,000 एमटीबी आइसोलेट का अनुक्रमण, एआई-सक्षम दवा प्रतिरोध मानचित्रण, और टीबी-मुक्त भारत मिशन का समर्थन करने वाली कार्यान्वयन योग्य नस्ल-विशिष्ट जानकारियाँ शामिल हैं।
कृषि जैवप्रौद्योगिकी में बड़ी सफलताएं प्राप्त की गईं, जिसमें जीन-संपादित अधिक उपज वाले चावल (+20%), चावल की सूखा-प्रतिरोधी किस्में (अरुण), काबुली चने की जलवायु-सहिष्णु किस्में, और ट्रांसजीन-मुक्त सीआरआईएसपीआर-संपादित सरसों की कतारें शामिल हैं
मजबूत स्टार्टअप और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार हुआ, जिसमें 75 बायोनेस्ट (BioNEST) केंद्र, 19 ई-यूवा (E-YUVA) केंद्र, 3,000+ स्टार्टअप को समर्थन, 1,300 से अधिक आईपी (बौद्धिक संपदा) दाखिल और 800+ उत्पादों की वाणिज्यीकरण की ओर प्रगति शामिल हैं
विश्वस्तरीय अनुसंधान अवसंरचनाओं का निर्माण, जिसमें गैर-मानव प्राइमेट्स के लिए एनीमल बीएसएल-3 सुविधा, उन्नत क्रायो-ईएम, स्टेम-सेल और इमेजिंग सुविधाएँ, और डीबीटी-एसएएचएजे (DBT-SAHAJ) प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से देशव्यापी पहुँच शामिल हैं
प्रविष्टि तिथि:
16 DEC 2025 5:48PM by PIB Delhi
जैव प्रौद्योगिकी, जिसे तेज़ी से विकसित होता हुआ क्षेत्र माना जाता है, देश की जैव-अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में एक प्रमुख संवाहक है। भारत की जैव-अर्थव्यवस्था साल 2014 में 10 अरब डॉलर पर थी, जो साल 2024 में बढ़कर 165.7 अरब डॉलर से अधिक हो गई, और साल 2030 तक इसके 300 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। जैव प्रौद्योगिकी में भारत का स्थान विश्व में 12वां, एशिया-प्रशांत में तीसरा, वैश्विक स्तर पर स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में तीसरा सबसे बड़ा, और टीकों के उत्पादन में पहला है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), भारत सरकार, रणनीतिक साझेदारियों की शक्ति का उपयोग करके जैव प्रौद्योगिकी नवाचार मिशनों और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने में अग्रणी है तथा पूरे देश में क्षमताओं का विकास कर रहा है। डीबीटी द्वारा दूरदर्शिता और विज़न के साथ प्रयास किए गए हैं जिससे पूरे देश में एक जीवंत जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर, इसे पोषित किया जा सके, जो हमारी सरकार के राष्ट्रीय मिशनों - जैसे आत्मनिर्भर भारत, स्वस्थ भारत, स्वच्छ भारत, स्टार्टअप इंडिया और मेक-इन-इंडिया - के अनुरूप हो।
डीबीटी जैव प्रौद्योगिकी और आधुनिक जीवविज्ञान में उत्कृष्टता और नवाचार-संचालित अन्वेषणात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देने पर जोर देता है। इसका ध्यान सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) को प्रोत्साहित करने, नवाचार एवं उद्यमशीलता को पोषित करने, बायो-इन्क्यूबेटर्स, अत्याधुनिक अनुसंधान क्षेत्रों में क्षमता निर्माण, मौजूदा अवसंरचना का विस्तार, उपयुक्त नई अवसंरचना का निर्माण, और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियां स्थापित करने पर भी है।
I. मुख्य बिंदु:
• माननीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्वदेशी जैव-उत्पादन को सशक्त बनाने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क का उद्घाटन किया। इन बायोएनेबलरों से अनुसंधान, नवाचार और इन क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता बढ़ने की उम्मीद है।
• प्रधानमंत्री के 15 अगस्त 2025 भाषण में युवाओं की भागीदारी हेतु किए गए आह्वान का अनुसरण करते हुए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने “D.E.S.I.G.N फॉर BioE3 चैलेंज” का शुभारंभ किया—जिसका विषय था “अपने समय के महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने के लिए युवाओं को सशक्त बनाना”—जिसका उद्देश्य जमीनी स्तर के नवप्रवर्तकों को सशक्त बनाना, युवाओं द्वारा नेतृत्व किए जाने वाले परिवर्तन को बढ़ावा देना और स्थायी एवं आत्मनिर्भर जैवअर्थव्यवस्था की ओर भारत की यात्रा को मजबूत करना है।
• प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बायोमेडिकल रिसर्च करियर प्रोग्राम (बीआरसीपी), चरण-III (2025-26 से 2030-31 तक, उसके अतिरिक्त अगले छह वर्ष 2031-32 से 2037-38 तक) को जारी रखने की स्वीकृति दी है। इस चरण में 2030-31 तक स्वीकृत सर्विस फेलोशिप और अनुदानों को शामिल किया जाएगा, जिसकी कुल लागत 1500 करोड़ रुपये है, जिसमें जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) और वेलकम ट्रस्ट (डब्ल्यूटी), यूके क्रमशः 1000 करोड़ और 500 करोड़ रुपये का योगदान करेंगे।
• केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने ‘डेटा प्रोटोकॉल्स के आदान-प्रदान के लिए रूपरेखा (FeED)’ और भारतीय जैविक डेटा केंद्र (आईबीडीसी) पोर्टल्स का शुभारंभ किया, जिससे भारत और विश्व भर के शोधकर्ताओं के लिए 10,000 पूर्ण जीनोम नमूनों तक पहुँच संभव हुई।
• डेटा-चालित अनुसंधान के तहत तपेदिक उन्मूलन के लिए “Dare2eraD TB” कार्यक्रम में भारत के अधिकांश राज्यों में फैले नए तपेदिक रोगियों से प्राप्त 17,000 एमटीबी अलगावों का अनुक्रमण किया गया और अनुक्रमों का विश्लेषण किया गया।
• एक्सिओम-4 मिशन पर हाल ही में किए गए एक प्रयोग ने अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों के लिए सूक्ष्मशैवाल की क्षमता को सफलतापूर्वक प्रमाणित किया। दूसरी ओर, माइक्रोग्रैविटी में यूरिया पर साइनोबैक्टेरिया के विकास के लिए पहला प्रूफ ऑफ़ कॉन्सेप्ट प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त, माइक्रोग्रैविटी में मानव मांसपेशियों का पुनर्जनन उल्लेखनीय रूप से बाधित हुआ, जिसमें माइटोकॉन्ड्रियल कार्यक्षमता में कमी और विभेदन की गति धीमी पाई गई।
• डीबीटी और इंडिया एआई, जो डिजिटल इंडिया कॉर्पोरेशन के तहत एक स्वतंत्र व्यावसायिक विभाग (आईबीडी) है और एमईआईटीवाई के अंतर्गत आता है, ने 18 अगस्त 2025 को भारत में नवाचार और विकास को बढ़ावा देने के लिए जैव प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में अपनी-अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाने हेतु एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।
• फरीदाबाद स्थित सेंटर फॉर बायोडिज़ाइन, टीएचएसटीआई ने तीन प्रोटोटाइप विकसित किए हैं: सेप्टिचेक - एचपीएलसी आधारित मल्टीप्लेक्स दवा निगरानी किट; क्लेवरकप – एक मिडस्ट्रीम यूरिन संग्रहण उपकरण; और ऑन्कोअलर्ट - ओरल कैंसर के लिए स्क्रीनिंग उपकरण।
• उत्पादन में उच्च क्षमता वाली धान की एक किस्म DEP1 (डेंस पैनिकल-1) जीन को संपादित करके विकसित की गई है, जो उत्पादन का नकारात्मक नियंत्रक है। इस उन्नत किस्म ने जंगली प्रकार की तुलना में 20% अधिक उत्पादन प्रदर्शित किया।
• दो मल्टी-एपिटोप टीका प्रत्याशी, MEV1 और MEV2, सफलतापूर्वक क्लोन, अभिव्यक्त और शुद्ध किए गए। प्रतिरक्षा-शक्ति और चुनौती अध्ययन से पता चला कि दोनों टीकों ने ब्रुसेला मेलिटेंसिस और ब्रुसेला एबॉर्टस के खिलाफ महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान की।
• अनाज किण्वन के दौरान 1जी इथेनॉल उत्पादन हेतु आयात प्रतिस्थापन के रूप में ग्लूकोएमाइलेज स्रावित करने वाली अभियांत्रित यीस्ट स्ट्रेन का विकास किया गया।
• जलमग्नता के प्रति सहनशील धान की किस्म एडीटी 39-सब1 वर्ष 2025 में जारी की गई।
• असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट और असम राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, टिटाबोर द्वारा सूखा-प्रतिरोधी चावल की एक किस्म ‘अरुण’ विकसित की गई।
• ब्रिक–राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान के प्राइमेट अनुसंधान केंद्र में गैर-मानव प्राइमेट्स के लिए पशु जैव-सुरक्षा स्तर-3 (एबीएसएल-3) सुविधा की स्थापना की गई।
• एनबीएम ने कोविड-19 के लिए दो टीके—ज़ायकोव-डी और कॉर्बेवैक्स, मधुमेह के लिए बायोसिमिलर लिराग्लूटाइड, कोविड-19 के लिए पेगिलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2बी, पहला स्वदेशी एमआरआई स्कैनर, एकल-उपयोग जैव-रिएक्टर, कोविड-19 की नौ निदान किटें, वेंटिलेटर तथा अभिकर्मक सफलतापूर्वक प्रदान किए हैं।
डीबीटी की वर्ष 2025 की उपलब्धियाँ संक्षेप में निम्नलिखित हैं:
II. नीति सुधार:
मुख्य बिंदु:
• 'स्टैक्ड इवेंट वाले आनुवंशिक रूप से अभियांत्रित (जीई) पौधों पर दिशानिर्देश, 2025' अधिसूचित किए गए।
• “आईब्रिक में वैज्ञानिक उद्यमशीलता और अनुसंधान व्यावसायीकरण को लागू करने के लिए संचालनात्मक दिशानिर्देश” अधिसूचित किए गए।
• विभाग ने ‘स्टैक्ड इवेंट्स युक्त आनुवंशिक रूप से अभियांत्रित पौधों पर दिशानिर्देश, 2025’ अधिसूचित किए हैं। जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति के परिणामस्वरूप स्टैक्ड इवेंट्स वाले आनुवंशिक रूप से अभियांत्रित (जीई) पौधों का विकास हुआ है, जो कृषि नवाचार की दृष्टि से उल्लेखनीय संभावनाएँ प्रदान करते हैं। आनुवंशिक हेरफेर समीक्षा समिति (आरसीजीएम) ने सुरक्षित विकास एवं परिनियोजन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जैव-सुरक्षा आकलन हेतु ‘स्टैक्ड इवेंट्स युक्त आनुवंशिक रूप से अभियांत्रित पौधों पर दिशानिर्देश, 2025’ जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश भारत में स्टैक्ड जीई पौधों का विकास करने वाले संगठनों के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है तथा नवाचार को प्रोत्साहित करती है।
• आईब्रिक में वैज्ञानिक उद्यमिता एवं अनुसंधान के व्यावसायीकरण के क्रियान्वयन हेतु परिचालन दिशानिर्देश — डीबीटी ने 22 जनवरी, 2025 को “आईब्रिक में वैज्ञानिक उद्यमिता एवं अनुसंधान के व्यावसायीकरण के क्रियान्वयन हेतु परिचालन दिशानिर्देश” अधिसूचित किए। इन दिशानिर्देशों में अनुमोदनों की प्रक्रिया, आईब्रिक में सेवा के दौरान योजना के प्रावधानों का लाभ लेने के इच्छुक वैज्ञानिकों द्वारा व्यय किया जा सकने वाला समय तथा राजस्व साझेदारी से संबंधित प्रावधानों सहित अन्य विवरण शामिल हैं।
III. मात्रात्मक संकेतक:
|
क्रम संख्या
|
योजनाएँ/परिणाम
|
जनवरी 2025 से अब तक की उपलब्धियाँ
|
|
1
|
प्रकाशनों की संख्या
|
##
|
|
2
|
दाखिल/प्रदत्त पेटेंटों की संख्या
|
##
|
|
3
|
विकसित उत्पादों/प्रौद्योगिकियों की संख्या
|
##
|
|
4
|
प्रशिक्षित मानव संसाधनों की संख्या
|
7446
|
|
5
|
संस्वीकृत नई परियोजनाएँ
|
351
|
|
6
|
नई परियोजनाओं में समर्थित मुख्य अन्वेषकों की संख्या
|
482
|
|
7
|
समर्थित जारी परियोजनाओं की संख्या
|
1921
|
|
8.
|
समर्थित स्टार्टअप्स की संख्या
|
##
|
# क्रम संख्या 1, 2, 3 और 8 के लिए इनपुट मार्च 2026 में उपलब्ध होंगे।
IV. क्षेत्रीय उपलब्धियाँ:
जैवनिर्माण और बायोफाउंड्री:
मुख्य बिंदु:
- घरेलू जैवनिर्माण को सुदृढ़ करने के लिए पहला राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क स्थापित किया गया
- 1 नवंबर 2025 को युवाओं के लिए D.E.S.I.G.N फॉर BioE3 चैलेंज लॉन्च किया गया
- पहली बार डीबीटी‑ब्रिक संस्थानों के तीन शोधकर्ताओं ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में एक्सिओम‑4 मिशन के प्रयोगों में भाग लिया
- डीबीटी-बीआईआरएसी द्वारा फरवरी 2025 में “सेल एवं जीन थेरेपी उत्पादों के लिए उभरते नियामक मार्गों पर हितधारकों की परामर्श बैठक” का आयोजन किया गया
- डीबीटी और असम सरकार के बीच BioE3 सेल की स्थापना के लिए 12 मार्च 2025 को पहले समझौते ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए
- डीबीटी और इंडिया एआई, जो डिजिटल इंडिया कॉर्पोरेशन के अंतर्गत एक स्वतंत्र व्यावसायिक प्रभाग (आईबीडी) है, ने जैव प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में सहयोग के लिए 18 अगस्त 2025 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए
विषयगत क्षेत्रों पर राष्ट्रीय परामर्श
BioE3 नीति के अंतर्गत कार्यान्वयन हेतु छह विषयगत क्षेत्र/उप-क्षेत्रों की पहचान की गई है। इनमें शामिल हैं: (i) जैव-आधारित रसायन, बायोपॉलिमर, सक्रिय औषधीय घटक (एपीआई) एवं एंजाइम, (ii) स्मार्ट प्रोटीन और कार्यात्मक खाद्य पदार्थ, (iii) प्रिसीजन बायोथेरेप्यूटिक्स (सेल एवं जीन थेरेपी, mRNA आधारित थेरेप्यूटिक्स तथा मोनोक्लोनल एंटीबॉडी), (iv) जलवायु-सहिष्णु कृषि, (v) कार्बन कैप्चर एवं उपयोग; तथा (vi) भविष्यपरक समुद्री एवं अंतरिक्ष अनुसंधान। देश भर में सभी हितधारकों (शिक्षा जगत, उद्योग, एसएमई तथा स्टार्ट-अप्स) के साथ लगभग 25 विचार-मंथन सत्र आयोजित किए गए। इसके परिणामस्वरूप, जैव-निर्माण पहल के अंतर्गत इन विषयगत क्षेत्रों/उप-क्षेत्रों के कार्यान्वयन हेतु रणनीतिक रोडमैप/लैंडस्केपिंग रिपोर्ट तैयार की गई। BioE3 नीति के अंतर्गत कई विषयगत क्षेत्रों/उप-क्षेत्रों के लिए प्रस्ताव आमंत्रित करने हेतु आह्वान जारी किए गए, जिनके अंतर्गत 2000 से अधिक प्रस्ताव प्राप्त हुए। अब तक 186 परियोजनाओं को वित्तपोषण हेतु अनुशंसित किया गया है (शैक्षणिक प्रस्ताव: 131 तथा उद्योग/उद्योग-शैक्षणिक प्रस्ताव: 55)।
अंतरिक्ष जैव-निर्माण:
बायोई3 नीति के अंतर्गत एक्सिओम-4 मिशन पर हाल ही में किए गए एक प्रयोग ने अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों के लिए सूक्ष्मशैवाल की क्षमता को सफलतापूर्वक प्रमाणित किया। खाद्य सूक्ष्मशैवाल की दो प्रजातियों — क्लोरेला सोरोकिनियाना-आई और डिस्मॉर्फोकोकस ग्लोबोसस-एचआई — ने भू-नियंत्रण की तुलना में, माइक्रोग्रैविटी में उल्लेखनीय रूप से दो गुना बढ़ोतरी प्रदर्शित की।
दूसरे प्रयोग में यूरिया पर साइनोबैक्टेरिया के विकास के लिए पहला प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट (अवधारणा का प्रमाण) प्राप्त किया गया। इससे दीर्घकालिक अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के लिए मानव अपशिष्ट (कार्बन डाइऑक्साइड और यूरिया) के उपयोग से उपयोगी पोषण पूरक तैयार करने हेतु विधियाँ विकसित करने की संभावना खुलती है।
अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भारत के पहले मानव मांसपेशी स्टेम-सेल प्रयोग से यह प्रदर्शित हुआ कि माइक्रोग्रैविटी में मानव मांसपेशियों का पुनर्जनन उल्लेखनीय रूप से बाधित होता है, जिसमें माइटोकॉन्ड्रियल कार्यक्षमता में कमी और विभेदन की गति धीमी पाई गई—जो पृथ्वी पर सार्कोपीनिया की विशेषताओं से मेल खाती है। ये प्रारंभिक परिणाम माइक्रोग्रैविटी को मांसपेशियों की आयु तेज़ी से बढ़ने के एक त्वरित मॉडल के रूप में स्थापित करते हैं।
नियामक सम्मेलन
नियामक सम्मेलन प्रत्येक विषयगत क्षेत्र/उप-क्षेत्र के लिए समन्वित नियामक सुधारों की रूपरेखा विकसित करने हेतु आयोजित किए जा रहे हैं। अप्रैल 2024 में “स्मार्ट प्रोटीन पर नियामक सम्मेलन” आयोजित किया गया। इसके बाद, फरवरी 2025 में डीबीटी-बीआईआरएसी द्वारा “सेल एवं जीन थेरेपी उत्पादों के लिए उभरते नियामक मार्गों पर हितधारकों की परामर्श बैठक” का आयोजन किया गया। अन्य क्षेत्रों के लिए नियामक सम्मेलन योजना में हैं।
बायो-एनेबलर्स की स्थापना
डीबीटी-बीआईआरएसी के ‘मूलांकुर’ बायो-एनेबलर, जिनमें जैव-कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) केंद्र, बायोफाउंड्री और जैव-विनिर्माण केंद्र शामिल हैं, देशभर में स्थापित किए जा रहे हैं। अब तक बायोफाउंड्री और जैव-विनिर्माण केंद्र की स्थापना के लिए 21 प्रस्तावों को वित्तपोषण हेतु अनुशंसित किया गया है (शैक्षणिक प्रस्ताव: 6 तथा उद्योग/उद्योग-शैक्षणिक प्रस्ताव: 15)। इन बायो-एनेबलर के ज़रिए इन क्षेत्रों में अनुसंधान, नवाचार और उत्पादन क्षमता बढ़ाए जाने की उम्मीद है।
6 बायोफाउंड्री और BioE3 नीति के अंतर्गत ‘उच्च प्रदर्शन जैव-विनिर्माण प्लेटफॉर्म’ के साथ, भारत के पहले राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क का शुभारंभ किया गया।
जैव-कृत्रिम बुद्धिमत्ता केंद्र के अंतर्गत प्रस्ताव आमंत्रित करने के लिए भी आह्वान किया गया और 250 से अधिक प्रस्ताव प्राप्त हुए। विभिन्न हितधारकों के साथ पिच टॉक्स और एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। प्रस्ताव मूल्यांकन के विभिन्न चरणों में हैं।
अंतर-मंत्रालयी सहयोग:
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) और इंडिया एआई, डिजिटल इंडिया कॉर्पोरेशन के तहत एक स्वतंत्र व्यावसायिक प्रभाग (आईबीडी), जो इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन है, ने 18 अगस्त 2025 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य दोनों संगठनों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना है, जिससे जैव प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में अपनी-अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाकर भारत में नवाचार और विकास को बढ़ाया जा सके।
केंद्र-राज्य भागीदारी:
BioE3 नीति के अंतर्गत केंद्र-राज्य भागीदारी स्थापित करने के उद्देश्य से 7 फरवरी 2025 को बायोई3 नीति पर केंद्र-राज्य भागीदारी सम्मेलन की अध्यक्षता माननीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, डॉ. जितेंद्र सिंह ने की। सम्मेलन के दौरान राज्य सरकारों से BioE3 सेल स्थापित करने का आग्रह किया गया, जो राज्य और राष्ट्रीय हितधारकों को जोड़ने वाले परस्पर संबंधित ज्ञान केंद्र के रूप में कार्य करेंगे। इन सेल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जैवविनिर्माण पहल स्थानीय प्राथमिकताओं और संसाधनों के अनुरूप हों, साथ ही, राष्ट्रीय उद्देश्यों से भी जुड़े रहें।
“राज्यों में BioE3 सेल की स्थापना के लिए परिचालन दिशानिर्देश” अनुमोदित कर दिए गए हैं।
हितधारक बैठकें आयोजित की गई हैं और गुजरात, महाराष्ट्र तथा पंजाब राज्यों के साथ राज्य बायोई3 सेल स्थापित करने तथा राज्य BioE3 कार्ययोजना तैयार करने के लिए अनुवर्ती कार्रवाई शुरू की गई है। केरल, कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना के साथ चर्चा उन्नत चरण में है।
इसके परिणामस्वरूप, रणनीतिक सहयोग को औपचारिक रूप देने के लिए 12 मार्च 2025 को डीबीटी और असम सरकार के बीच पहले समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
ओडिशा और महाराष्ट्र सरकारों के साथ समझौता ज्ञापन के लिए मसौदा भी तैयार कर लिया गया है, जबकि अन्य राज्यों के लिए योजना प्रक्रिया में है।
सिक्किम राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के साथ आईब्रिक+ के सहयोग से बड़ी इलायची पर नेटवर्क परियोजना कार्यान्वयन के अधीन है। सिक्किम राज्य में एक बायोई3 सेल अधिसूचित किया गया है।
कौशल विकास:
1 नवंबर 2025 को युवाओं के लिए डिज़ाइन (D.E.S.I.G.N) फॉर BioE3 चैलेंज लॉन्च किया गया। यह “डिज़ाइन माइक्रोब्स, मॉलीक्यूल्स एंड मोर” विषय के तहत युवा नवप्रवर्तकों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर का आह्वान है, जिसमें वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने के लिए सूक्ष्मजीवी, अणु और जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके इनोवेटिव डिज़ाइन और समाधानों का मनस-चित्रण करने को कहा गया है।
प्रसार गतिविधियाँ:
BioE3 नीति के प्रसार कार्य प्रेस मीट, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, संपादकीय और स्कूल अभियानों के माध्यम से व्यापक रूप से किए जा रहे हैं, जिससे इसके महत्व को उजागर किया जा सके।
बायोफाउंड्री और जैव-विनिर्माण पहल के अंतर्गत गतिविधियों को प्रसारित करने के लिए जैव-विनिर्माण और बायोफाउंड्री के लिए एक समर्पित वेबसाइट भी बनाई गई है।
BioE3 नीति के बारे में जानकारी और विषयगत क्षेत्र/उप-क्षेत्रों पर चर्चा को आगे प्रसारित करने के लिए डीबीटी और बीआईआरएसी ने ‘बायोफाउंड्री और बायोमैन्युफैक्चरिंग’ पहल पर वेबिनार श्रृंखला लॉन्च की है। इस श्रृंखला के अंतर्गत चौदह वेबिनार आयोजित किए गए हैं।
स्वास्थ्य-रक्षा: चिकित्सीय जैव-प्रौद्योगिकी:
मुख्य अंश:
भारतीय गर्भावस्थाओं के लिए भारतीय उपकरणों का निर्माण: गर्भ-इनि (GARBH-INi) से प्रमुख निष्कर्ष और अंतर्दृष्टियाँ
स्वदेशी कृत्रिम बुद्धिमत्ता संचालित मॉडल, जो गर्भाधान की अवधि निर्धारित करने के लिए प्रेग्नेंसी डेटिंग मॉडल्स को पुन:परिभाषित कर रहे हैं
समय से पहले जन्म (प्री-टर्म बर्थ-पीटीबी) के आनुवंशिक निर्धारक: 66 एसएनपी वाला एक पैनल विकसित किया गया है, जो भारतीय महिलाओं में sPTB (स्पॉन्टेनियस प्री-टर्म बर्थ) का पर्याप्त सटीकता के साथ पता लगा सकता है।
गर्भ-इनि बायोरिपॉजिटरी: एक राष्ट्रीय संसाधन; 12,000 गर्भवती महिलाओं का समूह, लंबवत रूप से संग्रहित 1 लाख अल्ट्रासाउंड छवियाँ, 14 लाख जैव नमूने
प्रजनन तंत्र में पीटीबी-संबंधित बैक्टीरिया की पहचान के लिए त्वरित डिपस्टिक आधारित परीक्षण
संभावित स्वास्थ्य संबंधी लाभ वाले लैक्टोबेसिलस क्रिस्पेटस अलगावों का समूह विकसित किया गया और इस प्रौद्योगिकी को अहमदाबाद स्थित एक प्रमुख भारतीय न्यूट्रास्यूटिकल कंपनी को हस्तांतरित कर दिया गया, जहाँ इसे न्यूट्रास्यूटिकल और कॉस्मेटिक, दोनों के लिए उपयोग किया जाएगा।
प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में कई उच्च प्रभाव कारक प्रकाशन
आईएनडी-सीईपीआई (Ind-CEPI)
चिकनगुनिया, कोरोनावायरस और मंकीपॉक्स के लिए टीका प्रत्याशियों का प्रारंभिक चरण विकास
बीआरआईसी-टीएचएसटीआई में टीका विकास हेतु सुसज्जित साझे इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना, जिसमें बीएसएल-3 सुविधा, जैव-परीक्षण प्रयोगशाला (जिसे सीईपीआई केंद्रीकृत प्रयोगशाला नेटवर्क की 17 प्रयोगशालाओं में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है) और प्रायोगिक पशु सुविधा शामिल हैं।
बीआरआईसी-टीएचएसटीआई द्वारा दूसरा उन्नत टीकाविज्ञान पाठ्यक्रम (टीआईवीएसी 2024; 27 मई से 1 जून, 2024 तक) आयोजित किया गया, जिसमें भारत और कम एवं मध्यम आय वाले देशों से 56 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
एनबीएम ने सफलतापूर्वक 02 कोविड-19 टीके, ज़ाइकोवी डी और कॉर्बेवैक्स, मधुमेह के लिए बायोसिमिलर लिराग्लूटाइड, कोविड-19 के लिए पेगिलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2बी, पहला स्वदेशी एमआरआई स्कैनर, एकल-उपयोग बायोरिएक्टर, 09 कोविड-19 निदान किट, वेंटिलेटर और अभिकारक डिलीवर किए हैं।
माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्युलोसिस कल्चर (किसी प्रयोगशाला पोषपदार्थ में वर्धित किसी जीव का विभेद) और संक्रमित चूहों के फेफड़ों में क्यूप्याफोर अपघटन के लिए एक एंज़ाइमेटिक मार्ग
आईटीबीपीएफ और डीबीटी ने ऊँचाई से मानव का अनुकूलन, जैवसुरक्षा, बायोमेडिकल उपकरण, कृत्रिम अंग और खाद्य जैव प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों पर केंद्रित संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
तीन प्रोटोटाइप विकसित किए गए: सेप्टिचेक - एचपीएलसी आधारित मल्टीप्लेक्स दवा निगरानी किट; क्लेवरकप - मिडस्ट्रीम मूत्र संग्रहण उपकरण; और ऑन्कोअलर्ट - मुंह के कैंसर के लिए स्क्रीनिंग उपकरण।
जीनोमिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करके ‘दवा प्रतिरोध’ का मानचित्रण करना, जिससे दवा-प्रतिरोधी टीबी नस्लों की त्वरित और व्यापक पहचान की जा सके। 18,000 एमटीबी अलगावों का पूर्ण जीनोम अनुक्रमण पूरा किया गया। यह अधिक प्रभावी टीबी नियंत्रण और प्रबंधन के लिए साक्ष्य-आधारित रणनीतियों का समर्थन करेगा।
नवजात सेप्सिस कार्यक्रम: जीनोमिक और मेटाजीनोमिक अध्ययन के लिए सार्वभौमिक माइक्रोबियल नमूना परिवहन माध्यम। प्रौद्योगिकी हस्तांतरित की गई: रुहवेनील बायोमेडिकल प्रा. लि. 2025-26 में जैव अभियांत्रिकी और औषधि खोज के क्षेत्र में 18 पेटेंट (जिसमें 10 अस्थायी पेटेंट शामिल हैं) दाखिल किए गए।
बाजार में लॉन्च की गई प्रौद्योगिकियाँ:
इनोहील - उन्नत घाव उपचार प्रौद्योगिकी (50+ अस्पतालों में स्थापित, 6.5 करोड़ रुपये का अनुवर्ती वित्तपोषण)
हिप प्रो – एल्डर्ली गार्जियन स्मार्टबेल्ट
ईटर्नल (बिस्तर पर पड़े मरीजों में प्रेशर अल्सर रोकने के लिए उपकरण)
स्पास्टिक फुटड्रॉप के लिए कार्यात्मक विद्युत उत्तेजक
सूक्ष्म शल्य चिकित्सा अनुप्रयोगों के लिए उच्च प्रदर्शन, टिकाऊ और किफायती सूक्ष्म-कैंची (माइक्रो-सिज़र्स) का विकास (आयातित कैंची के मुकाबले का भारतीय उत्पाद विकसित किया गया)
“जीनोमइंडिया”, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) का एक प्रमुख कार्यक्रम, भारतीय जनसंख्या के अद्वितीय आनुवंशिक परिदृश्य को मान्यता देता है। 9 जनवरी 2025 को माननीय प्रधानमंत्री ने एक विशेष वीडियो संबोधन में डीबीटी जीनोमइंडिया परियोजना को देश के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक निर्णायक क्षण के रूप में सराहा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जीनोमिक डेटा सेट का अनावरण किया गया और केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने ‘डेटा प्रोटोकॉल विनिमय रूपरेखा (FeED-फ्रेमवर्क फॉर एक्सचेंज ऑफ़ डेटा प्रोटोकॉल्स)’ और भारतीय जैविक डेटा केंद्र (आईबीडीसी) पोर्टल लॉन्च किए, जिससे 10,000 पूर्ण जीनोम नमूने भारत और विश्व भर के शोधकर्ताओं के लिए सुलभ हुए।
टीबी उन्मूलन के लिए डेटा-संचालित अनुसंधान – “Dare2eraD TB” कार्यक्रम। यह भारत सरकार की ‘टीबी मुक्त भारत’ पहल के अनुरूप है। वर्तमान स्थिति तक, भारत के अधिकांश राज्यों में नए टीबी रोगियों से प्राप्त 18,000 एमटीबी अलगावों का अनुक्रमण किया जा चुका है और अनुक्रमों का विश्लेषण किया गया है। अनुक्रम विश्लेषण से भारतीय जनसंख्या में विभिन्न माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्युलोसिस वंशों का वितरण उजागर हुआ और उनके दवा प्रतिरोध प्रोफाइल के साथ संबंधों को रेखांकित किया गया। ऐतिहासिक रूप से भारत में अधिक प्रचलित वंश 1 और 3 में दवा प्रतिरोध की कम प्रचलन दर पाई गई, जबकि संख्या में अपेक्षाकृत कम वंश 2 और 4 में बहु-औषधि प्रतिरोध की उच्च प्रचलन दर देखी गई।
माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्युलोसिस में क्यूप्याफ़ोर अपघटन के लिए एंज़ाइमेटिक मार्ग: धातु होमियोस्टेसिस और टर्नओवर की क्रिया। इस सहयोगात्मक अनुसंधान में एक नया मेटाबोलाइट अपघटन मार्ग पहचाना गया है। जबकि न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन के टर्नओवर को अच्छी तरह से समझा गया है, मेटाबोलाइट्स के अपघटन पर अभी तक कम अध्ययन किया गया है। अब तक केवल मेटालोफोर मेटाबोलाइट्स के जैवसंश्लेषण और कार्य का अध्ययन किया गया था। यह अध्ययन, हालांकि, जैविक प्रणाली में मेटालोफोर्स के सरल, आत्मसात्य योग्य यौगिकों में अपघटन को स्पष्ट करता है। यहाँ शोधकर्ताओं ने माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्युलोसिस कल्चर और संक्रमित चूहों के फेफड़ों में क्यूप्याफ़ोर अपघटन के लिए एक एंज़ाइमेटिक मार्ग का गूढ अर्थ समझा। (https://doi.org/10.1021/acschembio.5c00078)
गर्भ-इनि: प्री-टर्म बर्थ (समय से पहले जन्म) सिंड्रोम की अधिकता को पहचानते हुए और बेहतर जन्म परिणामों के समाधान खोजने के उद्देश्य से एक अंतरविषयक अंतर-संस्थागत कार्यक्रम, गर्भ-इनि, का समर्थन किया जा रहा है। इस गर्भावस्था समूह में 12,000 गर्भवती महिलाओं का नामांकन पूरा कर लिया गया है। प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं: गर्भकाल के सटीक आकलन और जन्म परिणामों की व्यक्तिगत भविष्यवाणी के लिए अल्ट्रासाउंड और कृत्रिम बुद्धिमत्ता संचालित उपकरण; गर्भ-इनि समूह में नामांकित 6,211 महिलाओं पर किए गए जीनोम वाइड एसोसिएशन अध्ययन ने 66 आनुवंशिक मार्करों की पहचान की जो प्री-टर्म बर्थ के जोखिम की भविष्यवाणी कर सकते हैं; प्री-टर्म बर्थ के जोखिम वाली माताओं की पहचान के लिए डिपस्टिक परीक्षण; और एक राष्ट्रीय बायोरिपॉजिटरी का निर्माण जिसमें पूरी तरह से फेनोटाइप किए गए लंबवत जैव नमूने (14 लाख एलीक्वॉट्स में संग्रहित) और 5 लाख अल्ट्रासाउंड छवियाँ शामिल हैं। इस डेटाबेस में 2,000+ परिवर्ती कारकों का लंबवत नैदानिक डेटा, 10,000+ महिलाओं की अल्ट्रासाउंड छवियाँ और वीडियो शामिल हैं।
अंतरमंत्रालयी सहयोग: भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आईटीबीपीएफ) और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने 31 जुलाई 2025 को सहयोगात्मक बायोमेडिकल अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस सहयोग का उद्देश्य आईटीबीपीएफ की विशेष चिकित्सीय और पैरामेडिकल सुविधाओं और डीबीटी के सशक्त अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषज्ञता का उपयोग करके राष्ट्रीय महत्व की महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय चुनौतियों को संबोधित करना है। आईटीबीपीएफ और डीबीटी संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएँ करेंगे, जो, आईटीबीपीएफ की आवश्यकतानुसार, ऊँचाई वाले स्थानों पर मानव की अनुकूलन क्षमता, जैवसुरक्षा, बायोमेडिकल उपकरण, कृत्रिम अंग और खाद्य जैव प्रौद्योगिकी आदि जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित होंगी। यह साझेदारी आईटीबीपीएफ और डीबीटी की नवाचार को प्रोत्साहित करने, अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाने और भारत की वैज्ञानिक प्रगति में योगदान देने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है, जो 2047 तक एक विकसित भारत के विज़न के अनुरूप है।
बायोडिज़ाइन और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग: दो उत्पादों का व्यावसायीकरण किया गया:
इनोहील - उन्नत घाव उपचार प्रौद्योगिकी; यह उपकरण जटिल चिकित्सा घावों, जैसे मधुमेह रोगी में फुट अल्सर, प्रेशर सोर और संक्रामक घाव आदि के त्वरित उपचार की सुविधा प्रदान करने वाली समग्र घाव उपचार प्रौद्योगिकी है। यह स्राव हटा कर, सूजन और जलन कम करके, कोशिका वृद्धि और ऊतक परिसंचरण बढ़ाकर तथा सूक्ष्मजीव विकास को नियंत्रित कर घाव भरने की रुकी हुई प्रक्रिया को बहाल करेगा।
This ensures that the hips are cushioned before impact, reducing the risk of injury from falls. हिप प्रो – एल्डर्ली गार्जियन स्मार्टबेल्ट। यह उपयोगकर्ता को एक बटन दबाने मात्र से पतले कुशन को स्वचालित रूप से फुलाने की सुविधा देकर त्वरित सुरक्षा प्रदान करता है। इससे गिरने से होने वाली चोट के जोखिम को कम करते हुए कूल्हों को प्रभावित होने से पहले ही कुशन कर दिया जाता है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) ने वैश्विक स्वास्थ्य नवाचार फैलोशिप का समर्थन करने के लिए साझेदारी की है। साल 2023-24 में नई दिल्ली में डब्ल्यूआईपीओ, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, आईआईटी-दिल्ली और आईआईटी-बॉम्बे के बायोडिज़ाइन केंद्र ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। चार अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता ( आईआईटी-दिल्ली और आईआईटी-बॉम्बे, प्रत्येक से 2-2) बायोडिज़ाइन कार्यक्रम में 24 महीनों की अवधि के लिए शामिल हुए। दो शोधकर्ताओं ने प्रोटोटाइप विकास पूरा कर लिया है। डब्ल्यूआईपीओ ने डीबीटी-बायोडिज़ाइन शोधकर्ताओं के लिए कस्टमाइज़्ड (आवश्यकतानुसार तैयार किए गए) आईपी पाठ्यक्रम भी विकसित किए हैं।
एम्स और आईआईटी-दिल्ली में समर्थित अंतरराष्ट्रीय बायोडिज़ाइन स्कूल ने दो उत्पादों का व्यावसायीकरण किया है: (क) इनोहील - उन्नत घाव उपचार प्रौद्योगिकी, (ख) हिप प्रो – एल्डर्ली गार्जियन स्मार्टबेल्ट।
एम्स और आईआईटी-दिल्ली में समर्थित अंतरराष्ट्रीय बायोडिज़ाइन स्कूल ने दो उत्पादों को लाइसेंस प्रदान किया: (ए) “यूरोविब: कैथीटर से संबंधित मूत्रमार्ग संक्रमण (सीएयूटीआई) रोकथाम उपकरण”; और (बी) “प्रेज़्टिक - अल्ट्रासाउंड मशीनों के लिए सटीक नीडल नेविगेशन प्रणाली।”
बायोडिज़ाइन केंद्र, टीएचएसटीआई, फरीदाबाद ने तीन प्रोटोटाइप विकसित किए हैं: सेप्टिचेक - एचपीएलसी आधारित मल्टीप्लेक्स दवा निगरानी किट; क्लेवरकप - मिडस्ट्रीम मूत्र संग्रहण उपकरण; और ऑन्कोअलर्ट - मुंह के कैंसर के लिए स्क्रीनिंग उपकरण।
कैबिनेट ने राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (एनबीएम) को मंजूरी दी। इस मिशन ने 161 परियोजनाओं को समर्थन दिया, जिनमें से 80 परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं और 56 परियोजनाएँ वित्तीय चरण के समापन की प्रक्रिया में हैं। लगभग 25 परियोजनाएँ अंतिम कीर्तिमान हासिल करने के लिए जारी हैं। पिछले 07 वर्षों में इस मिशन ने सफलतापूर्वक 02 कोविड-19 टीके, ज़ाइकोवी डी और कॉर्बेवैक्स, मधुमेह के लिए बायोसिमिलर लिराग्लूटाइड, कोविड-19 के लिए पेगिलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2बी, पहला स्वदेशी एमआरआई स्कैनर, एकल-उपयोग बायोरिएक्टर, 09 कोविड-19 निदान किट, वेंटिलेटर और अभिकारक, लैबोरेटरी सूचना प्रबंधन प्रणाली, सीएचओ कोशिका कल्चर मीडिया डिलीवर किए हैं, जो विकसित करके और वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध कराए जा चुके हैं। साझा सुविधाओं के लिए समर्थित परियोजनाओं में से 21 सुविधाओं को सफलतापूर्वक स्थापित कर लिया गया है और 18 सुविधाएँ सेवाएँ प्रदान कर रही हैं।
2025 में, रिपोर्ट इंडिया (RePORT -Regional Prospective Observational Research for Tuberculosis) ने प्रमुख वैज्ञानिक, नैदानिक और नीति-संबंधी उपलब्धियाँ हासिल कीं, जिन्होंने वैश्विक क्षय रोग (टीबी) अनुसंधान में भारत की नेतृत्व भूमिका को मजबूत किया। कई साझेदार संस्थानों में, रिपोर्ट इंडिया ने उच्च-प्रभाव वाले साक्ष्य तैयार किए, मल्टी-साइट समूह विज्ञान को आगे बढ़ाया, और सीधे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैश्विक दिशा-निर्देशों और भारत की राष्ट्रीय टीबी रणनीति में योगदान दिया। नियोजित उप-अध्ययनों और नए विचारों (एनीमिया मार्ग, इनटीजीएस डब्ल्यूजीएस, सिस्टम्स सेरोलॉजी, विस्तृत पीसीआर प्लेटफ़ॉर्म) के लिए संग्रहित नमूनों का सक्रिय उपयोग किया गया, जिससे नई भर्ती के बिना चरण II मल्टी-ओमिक्स और प्रतिरक्षा संबंधी कार्य संभव हुआ।
miR-451a: हेपेटाइटिस के चलते हुए फैटी लिवर रोग के खिलाफ एक दोहरा-क्रियाशील (डुएल-एक्शन) रक्षक : आईपीजीएमईआर में किए गए एक अध्ययन ने जीर्ण हेपेटाइटिस में गंभीर फैटी लिवर रोग की हमारी समझ को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाया और एक नियामक माइक्रो-आरएनए, miR-451a को एक संभावित चिकित्सीय लक्ष्य के रूप में स्थापित किया। हेपेटाइटिस सी संक्रमण miR-451a में तेज गिरावट का कारण बनता है, जिससे यकृत में हानिकारक वसा संचयन को तेज करने वाली एक श्रृंखला शुरू होती है। यह कार्य जर्नल ऑफ ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है, जिसका इम्पैक्ट फैक्टर 8.5 है। DOI: 10.1186/s12967-025-06286-9
माइटोफैगी की दक्षता के लिए वीडीएसी-1 द्वारा मध्यस्थित पीएचबी-2 का अनावरण आवश्यक है: क्षतिग्रस्त माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिकाएं किस प्रकार कुशलतापूर्वक साफ़ करती हैं, यह समझ महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस प्रक्रिया में विफलता कई न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों में योगदान देती है। कोलकाता के आईआईसीबी में समर्थित एक अध्ययन ने माइटोकॉन्ड्रियल क्लियरेंस में वोल्टेज डिपेंडेंट एनियन चैनल 1 (वीडीएसी1) की अनिवार्य भूमिका दिखाई, जो प्रगतिशील न्यूरोडीजेनेरेशन से संबंधित तंत्रों में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। वीडीएसी1 आंतरिक माइटोकॉन्ड्रियल झिल्ली प्रोटीन, प्रोहिबिटिन 2 (पीएचबी2) का एक्सपोज़र सक्षम बनाता है, जो माइटोफैगी के लिए एक प्रमुख ट्रिगर है। (DOI: 10.1080/15548627.2024.2426116)
एमगैट4बी (Mgat4b)-मध्यस्थित चयनात्मक एन-ग्लाइकोसाइलेशन मेलानोसाइट विकास और मेलानोमा की प्रगति को नियंत्रित करता है: यह समझना कि ग्लाइकोसाइलेशन कोशिका व्यवहार को कैसे आकार देता है, सामान्य विकास को कैंसर से जोड़ने के लिए आवश्यक है। दिल्ली के बीआरआईसी-एनआईआई में समर्थित एक अध्ययन ने दिखाया कि एक ग्लाइकोसिल ट्रांसफरेज़—एमगैट4बी द्वारा मध्यस्थ चयनात्मक एन-ग्लाइकोसाइलेशन मेलानोसायट विकास और मेलानोमा प्रगति दोनों का एक प्रमुख नियामक है, जिससे पता चलता है कि एमगैट4बी विशिष्ट प्रोटीनों को संशोधित करता है, जिससे पिगमेंट कोशिका परिपक्वता का मार्गदर्शन हो और साथ ही मेलानोमा के विकास और फैलाव को भी बढ़ावा मिले। इसलिए मेलानोमा उपचार के लिए चिकित्सीय लक्ष्य के रूप में एमगैट4बी पर खोज की जा सकता है। यह कार्य पीएनएएस में प्रकाशित हुआ है; इम्पैक्ट फैक्टर 9.1 (DOI: 10.1073/pnas.2423831122)
रोगजनक संक्रमण और बीमारी पैदा करने के लिए होस्ट (पोषक) की शारीरिक प्रक्रियाओं को बाधित करते हैं। माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्युलोसिस (एमटीबी), वह बैक्टीरिया जो मनुष्यों में क्षय रोग (टीबी) का कारण बनता है, होस्ट के कई एंटीबैक्टीरियल कार्यों को बदलने के लिए जाना जाता है। इस अध्ययन में, आईसीजीईबी के शोधकर्ताओं ने एक प्रक्रिया बताई, जो एमटीबी को विशेष रूप से होस्ट आरएनए स्प्लाइसिंग को बदलने की अनुमति देता है। आरएनए स्प्लाइसिंग यूकैरियोटिक जीन अभिव्यक्ति के लिए मौलिक है, और परिवर्तित स्प्लाइसिंग ईवेंट्स, इस प्रकार बनाए गए प्रोटीनों के कार्य को प्रभावित कर सकते हैं। इस समूह ने दिखाया कि एमटीबी से स्रावित एक विषाणु प्रोटीन स्प्लाइसिओसोम नामक आणविक मशीनरी की असेंबली में हस्तक्षेप करता है। एमटीबी में इस विषाणु प्रोटीन की कमी होस्ट मैक्रोफेज और पशु मॉडलों में इनके जीवित रहने को प्रभावित करती है। होस्ट आरएनए स्प्लाइसिंग को बदलने की क्षमता संभवतः रोगजनक एमटीबी के विकास में योगदान कर सकती है। (https://doi.org/10.1073/pnas.2423349122)
एक लघु अणु रासायनिक अवरोधक - ‘डिसारिब’ जो एक एंटीअपोप्टोटिक प्रोटीन, बीसीएल2 को लक्षित करता है। बीसीएल2 विभिन्न कैंसरों में अत्यधिक व्यक्त होता है। प्रीक्लीनिकल विषाक्तता अध्ययन का पहला चरण पूरा हो चुका है और जीएलपी प्रमाणित प्रयोगशाला में नॉन-रोडेंट मॉडल में इसका आगे मूल्यांकन किया जा रहा है। फेज़ I परीक्षण के लिए पेटेंट दाखिला और आईएनडी जमा कराने की प्रक्रिया चल रही है।
C. Agriculture Biotechnology, Animal Biotechnology, Aquaculture and Marine Biology: कृषि जैवप्रौद्योगिकी, पशु जैवप्रौद्योगिकी, जलीय कृषि और समुद्री जीवविज्ञान:
मुख्य बिंदु:
• अलसी (लिनसीड) की किस्म टी 397 का जीनोम स्वदेशी रूप से अनुक्रमित किया गया
• जीनोटाइपिंग हेतु एसएनपी गेहूँ एरे चिप के लिए पेटेंट आवेदन दाखिल किया गया
• संवर्धित कुसुम (सैफ्लावर) प्रजाति का संदर्भ जीनोम अनुक्रमित किया गया
• उच्च रोपण घनत्व के लिए मक्का संकर जेएच 20909 एआईसीआरपी परीक्षणों के अंतर्गत है
• ग्लूकोसाइनोलेट मात्रा के लिए सरसों (ब्रैसिका जुनसिया) की किस्म वरुणा की जीनोम-संपादित पंक्तियाँ एआईसीआरपी परीक्षणों के अंतर्गत हैं
• जलमग्नता-सहिष्णु धान की किस्म एडीटी 39-सब-1 वर्ष 2025 में जारी की गई
काबुली चने पर आईसीएआर-एआईसीआरपी के एवीटी परीक्षणों के तहत काबुली चने की कतारें:
- यांत्रिक कटाई के लिए उपयुक्त, सीधा-प्रकार (इरेक्ट-टाइप) तथा गिराव-प्रतिरोधी चना, जिसे CabHLH121 के साथ अंतःसंकरण किया गया है : एवीटी-2 परीक्षण, आईसीएआर-एआईसीआरपी (काबुली चना)
- शीघ्र पुष्पन करने वाला, उच्च उपज देने वाला काबुली चना, जिसे CaCLV3_1 के साथ अंतःसंकरण किया गया है : एवीटी-2 परीक्षण, आईसीएआर-एआईसीआरपी (काबुली चना)
- अत्यधिक बड़े दाने वाला, उच्च उपज देने वाला काबुली चना, जिसे CaABCC3 के साथ अंतःसंकरण किया गया है : एवीटी-2 परीक्षण, आईसीएआर-एआईसीआरपी (काबुली चना)
- लवणता-सहिष्णु तथा स्थिर उपज देने वाला काबुली चना, जिसे CaHKT1 के साथ अंतःसंकरण किया गया है : एवीटी-1 परीक्षण, आईसीएआर-एआईसीआरपी (काबुली चना)
- उच्च प्रोटीन तत्व एवं स्थिर उपज वाला काबुली चना, जिसे CaNAC22 के साथ अंतःसंकरण किया गया है : एवीटी-1 परीक्षण, आईसीएआर-एआईसीआरपी (काबुली चना)।
- सूखा-सहिष्णु एवं उच्च उपज देने वाला काबुली चना (JG11), जिसे CabHLH10 के साथ अंतःसंकरण किया गया है : एवीटी-1 परीक्षण, आईसीएआर-एआईसीआरपी (काबुली चना)।
दो उत्कृष्ट सूखा-सहिष्णु एवं उच्च-उपज देने वाली काबुली चने की किस्में: डीबीटी कार्यक्रम के अंतर्गत ब्रिक-एनआईपीजीआर द्वारा विकसित दो सूखा-सहिष्णु चना किस्में — अद्विका और सात्विक — को दलहन आत्मनिर्भरता मिशन पहल के तहत संभावनाशील दलहन किस्मों के रूप में चयनित किया गया है। ये उन्नत बीज किस्में कुल प्रजनक बीज माँग (ब्रीडर सीड इंडेंट) में 30 प्रतिशत से अधिक का योगदान देती हैं, जो अब तक जारी की गई चना किस्मों में इनके लिए व्यापक स्वीकृति को दर्शाता है।
जीन संपादन के माध्यम से उच्च उपज देने वाली चावल की एक किस्म विकसित की गई है। DEP1 (डेंस पैनिकल-1) जीन उपज का नकारात्मक नियंत्रक है। लोकप्रिय चावल किस्म MTU-1010 की आनुवंशिक पृष्ठभूमि में DEP1 जीन में जीन संपादन द्वारा एक उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) उत्पन्न किया गया है। DEP1 संपादित कतारें जंगली प्रकार की कतारों की तुलना में 20% अधिक उपज देती है।
ब्रिक-एनआईपीजीआर के शोधकर्ताओं ने CRISPR/Cas9-माध्यम से ALKENYL HYDROXALKYL PRODUCING 2 (AOP2) जीन परिवार के नॉकआउट के द्वारा ट्रांसजीन-मुक्त भारतीय सरसों (ब्रासिका जुनसिया) की कतारें विकसित की हैं, जिससे माइक्रोग्रीन्स में सबसे अधिक ग्लूकोराफैनिन संचय (75 PPM तक) हुआ है। इन सरसों की पंक्तियों में हानिकारक ग्लूकोसिनोलेट्स की मात्रा भी कम है और ये नई पीढ़ी के सुपरफूड के रूप में कार्य कर सकती हैं, जिनमें संभावित एंटी-कैंसर और रासायनिक रोकथाम (कीमोप्रिवेंटिव) लाभ हैं। इनके विभिन्न भाग – अंकुर, माइक्रोग्रीन, पत्ते, तेल और खल – मानव और पशु आहार में उपयोग किए जा सकते हैं और औद्योगिक पैमाने पर ग्लूकोराफेनिन-आधारित सप्लीमेंट और दवाएँ बनाने में इस्तेमाल हो सकते हैं।
कश्मीर के प्रमुख अखरोट-उगाने वाले जिलों में किए गए व्यापक सर्वेक्षण के परिणामस्वरूप अखरोट और इसकी गिरी के गुणों के आधार पर 63 श्रेष्ठ अखरोट जीनोटाइप्स की पहचान और स्क्रीनिंग की गई। इन जीनोटाइप्स को अब केवीके कुलगाम में एक जीन बैंक में सफलतापूर्वक संरक्षित किया गया है। चुने गए जीनोटाइप्स में से एक अत्यंत आशाजनक अखरोट जीनोटाइप विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है। इसमें गिरी की शानदार प्राप्ति (68%), बहुत हल्के रंग की गिरी, आसानी से खोल से निकलने वाली गिरी, मध्यम मजबूती वाले खोल, भरपूर गिरी और उच्च उत्पादन क्षमता है। इस जीनोटाइप को अब नई किस्म के रूप में जारी करने की तैयारी की जा रही है और इसके अखरोट किसानों के लिए बहुत ही लाभप्रद होने की संभावना है।
बी. जुनसिया (किस्म वरुणा), बी. नाइग्रा (लाइन संगम) तथा बी. कैरिनाटा (लाइन एचसी-20) के उच्च-निष्ठा पूर्ण जीनोम अनुक्रम विकसित किए गए। बी. नाइग्रा (लाइन संगम) और बी. कैरिनाटा (लाइन एचसी-20) के जीनोम असेम्बली भी तैयार की गईं। बी. नाइग्रा के लिए जीनोम असेम्बली ऑक्सफोर्ड नैनोपोर लॉन्ग-रीड सीक्वेंसिंग एवं ऑप्टिकल मैपिंग का उपयोग करके की गई।
संवर्धित कुसुम (सैफ्लावर) प्रजाति कार्थामस टिंक्टोरियस का संदर्भ जीनोम 1.09 जीबी की अंतिम पूर्ण असेम्बली के साथ निर्मित किया गया। जीनोम पूर्वानुमान से 65,289 जीनों की पहचान हुई, जिनमें से लगभग ~70% का कार्यात्मक एनोटेशन किया गया। इसके अतिरिक्त, कुसुम का एक पैन-जीनोम भी तैयार किया गया, जिसमें लगभग ~114.5 एमबी अतिरिक्त अनुक्रम शामिल हैं, जिससे पैन-जीनोम की कुल लंबाई 1.20 जीबी हो गई।
अलसी की प्रमुख किस्म (टी-397) की एक उच्च-गुणवत्ता टेलोमियर-से-टेलोमियर जीनोम असेम्बली पूर्ण की गई है, जिसकी अंतिम असेम्बली का आकार लगभग ~495 एमबी है। इसमें 15 सुव्यवस्थित स्कैफोल्डेड गुणसूत्र, 29 टेलोमियर तथा 15 सेंट्रोमियर सम्मिलित हैं। कुल 34,572 प्रोटीन-कोडिंग जीनों का पूर्वानुमान एवं विभिन्न डेटाबेसों की सहायता से एनोटेशन किया गया। सम्पूर्ण जीनोम पुनः-अनुक्रमण (होल जीनोम री-सीक्वेंसिंग) पद्धति का उपयोग करते हुए 2,557 एक्सेशनों की जीनोटाइपिंग पूर्ण की गई, जिसके परिणामस्वरूप कुल 17,13,507 एसएनपी की पहचान की गई। [यादव एच.*, सिंह, एन, सिंह बी., कौर वी., सावंत एस. (2025). प्लांट बायोटेक्नोलॉजी जर्नल, पृष्ठ 1–15. doi: 10.1111/pbi.70183]
कंपनियों के साथ प्रौद्योगिकी के दो हस्तांतरण सम्पन्न हुए—एक सरसों में और एक कपास में। व्हाइट रस्ट प्रतिरोधी सरसों की किस्में वरुणा, पूसा बोल्ड, पूसा जय किसान तथा रोहिणी को दिल्ली विश्वविद्यालय और बीआईआरएसी की सहभागिता से त्रिपक्षीय प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते (टीटीए) पर हस्ताक्षर के माध्यम से आठ बीज कंपनियों को हस्तांतरित किया गया। इसके अतिरिक्त, कपास के दो ट्रांसजेनिक इवेंट (टीजी2ई-13 तथा टीएम2), जिनमें Cry1Ac जीन निहित है, का प्रौद्योगिकी हस्तांतरण बीआईआरएसी के माध्यम से किया जा रहा है।
जीनोटाइपिक जानकारी के आधार पर डुप्लीकेट जर्मप्लाज़्म की पहचान और उन्हें हटाने के लिए एक उपकरण जर्मप्लाज़्म डुप्लीकेट आइडेंटिफिकेशन एंड रिमूवल टूल (जी-डीआईआरटी) (http://webtools.nbpgr.ernet.in/gdirt/) विकसित किया गया है। इसके माध्यम से कुल जीनोटाइपिक अंतर तथा होमोज़ाइगस अंतर के आधार पर डुप्लीकेट की पहचान की जा सकती है। (साहू, टी. के., सिंह, ए. के., मित्तल, एस., झा, एस. के., कुमार, एस., जैकब, एस. आर., एवं सिंह, के. (2022). जी-डीआईआरटी: सिंगल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमॉर्फ़िज़्म जीनोटाइपिंग डेटा का उपयोग करते हुए आइडेंटिटी-बाय-स्टेट विश्लेषण के आधार पर डुप्लीकेट जर्मप्लाज़्म की पहचान करने और हटाने हेतु एक वेब सर्वर. ब्रीफिंग्स इन बायोइन्फ़ॉर्मैटिक्स, 23(5), bbac348)।
मुख्य दलहनी खाद्य फसल काबुली चने के लिए एक पैन-जीनोम एसएनपी जीनोटाइपिंग एरे “इंडिका (Indian Chickpea panArray – IndiCA)” विकसित किया गया है। यह शोधकर्ताओं को पारंपरिक रेफरेंस जीनोम में अनुपस्थित नए लक्षण-संबद्ध जीनोमिक विविधताओं को लक्षित करने में सक्षम बनाता है। इंडिका असे में रेफरेंस जीनोम से प्राप्त एसएनपी के अतिरिक्त, विशेष रूप से भारतीय मूल की विविध किस्मों से संबंधित (पैन-जीनोम) जीनोमिक विविधताओं को शामिल किया गया है।
“इंडियन राइस पैनएरे (IndRA)” फसल पौधों के लिए विकसित पहला पैन-जीनोम-आधारित एसएनपी जीनोटाइपिंग असे है। यह शोधकर्ताओं को विभिन्न चावल आबादियों (इंडिका, एरोमैटिक, आउस और जापोनिका आदि) के लिए विशिष्ट जीनोमिक विविधताओं को लक्षित करने में सक्षम बनाता है, क्योंकि इसमें जापोनिका निप्पोनबेयर रेफरेंस जीनोम से प्राप्त मार्करों के अतिरिक्त, अलग-अलग चावल आबादियों के लिए विशिष्ट एसएनपी मार्कर शामिल हैं। इस प्रकार, IndRA अन्य उपलब्ध चावल जीनोटाइपिंग एरे की तुलना में विविध चावल आबादियों में अधिक व्यापक जीनोमिक कवरेज प्रदान करता है।
गेहूं में उच्च-घनत्व जीनोटाइपिंग और लक्षण मैपिंग के लिए 1,05,000 एसएनपी वाला एक उच्च-गुणवत्ता एसएनपी चिप विकसित एवं सत्यापित किया गया है। गेहूं एरे के लिए “पैन-जीनोम जीनिक एसएनपी चिप ऑफ व्हीट एंड एप्लिकेशंस देयरऑफ” शीर्षक से पेटेंट दाखिल किया गया है। इसकी पेटेंट आवेदन संख्या 202511065089 है।
“बनाना बंची टॉप वायरस (बीबीटीवी)” के कोट प्रोटीन जीन की बैक्टीरियल होस्ट में अभिव्यक्ति की एक विधि” शीर्षक के आविष्कार के लिए पेटेंट प्रदान किया गया है।
मक्का संकर जेएच20909 आईसीएआर-एआईसीआरपी के अंतर्गत उन्नत प्रजातीय परीक्षण-I (एवीटी-I) में है; यह उच्च पौध घनत्व रोपण (1,05,000 पौधे/हेक्टेयर) के लिए उपयुक्त है।
ब्रैसिका की संबंधी एक जंगली प्रजाति डिप्लोटैक्सिस एरुकोइड्स का टेलोमियर-से-टेलोमियर संपूर्ण जीनोम तथा क्लोरोप्लास्ट जीनोम तैयार किया गया है।
ब्रैसिका में मोनोजेनिक (एकल जीन) डॉमिनेंट जीन के लिए अल्टरनेरिया ब्लाइट प्रतिरोध रेखा की पहचान की गई है और उसका मैपिंग कार्य प्रगति पर है।
धान की किस्म एएसडी16 में सुगंध बढ़ाने के लिए ओएसबीएडीएच2 जीन में एसडीएन-1 प्रकार का उत्परिवर्तन जीन संपादन द्वारा उत्पन्न किया गया है। ये लाइनें अब ट्रांसजीन-मुक्त हैं और क्षेत्रीय परीक्षण के लिए ली जा सकती हैं।
एक माइक्रोफ्लूडिक-आधारित नैनो-फाइबर एनकैप्सुलेशन प्रणाली विकसित की गई है, जिसके माध्यम से आर्बस्कुलर माइकोराइज़ल फंगी (एएमएफ) के बीजाणुओं तथा माइकोराइज़ल हेल्पर बैक्टीरिया (एमएचबीएस) को जैवअपघट्य एल्जिनेट में, कैल्शियम नैनोकणों से सुदृढ़ित रूप में को-एनकैप्सुलेट किया गया है (ईएसपी-बीएफ-एमएचबीएस-एएमएफ)।
काइटिनेज एंज़ाइम नैनोफॉर्मुलेशन, विशेष रूप से एसीएनपी फॉर्मुलेशन, को अंगूर के P. viticola, पाउडर मिल्ड्यू E. necator और टमाटर के पाउडर मिल्ड्यू Leveilulla taurica को नियंत्रित करने में सबसे प्रभावी विधि पाया गया, भले ही एंज़ाइम का सांद्रण कम हो। रासायनिक उपचार रोगजनक के खिलाफ प्रभावी नहीं रहे, जिससे एक स्थायी विकल्प के रूप में नैनोफॉर्मुलेशन के लिए संभावनाएं उजागर होती हैं।
ऊतक संवर्धन से उत्पादित पौधों हेतु राष्ट्रीय प्रमाणीकरण प्रणाली: ऊतक संवर्धन से उत्पादित पौधों हेतु राष्ट्रीय प्रमाणीकरण प्रणाली (एनसीएस-टीसीपी), जिसे बीज अधिनियम, 1966 के अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) द्वारा स्थापित किया गया है, भारत में ऊतक-संवर्धित रोपण सामग्री के लिए प्रमुख गुणवत्ता आश्वासन रूपरेखा के रूप में कार्यरत है। इसकी प्रभावशीलता इस बात से प्रमाणित होती है कि इसकी स्थापना के बाद से अब तक 1.43 अरब से अधिक सुरक्षित व कठोर किए गए (हार्डन) पौधों का प्रमाणीकरण किया जा चुका है। वर्ष 2025 में ही एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त हुई, जिसमें 21 करोड़ से अधिक पौधों का प्रमाणीकरण किया गया।
सौंफ की किस्म, ‘अबू सौंफ-440’ एक किसान-प्रेरित नवाचार जिसे सिरोही के कछोली गांव के श्री इसहाक अली ने डीबीटी बायोटेक-किसान हब के अंतर्गत विकसित किया, एक जलवायु-विशिष्ट, सूखा प्रतिरोधी, उच्च उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी किस्म है। इसे जुलाई 2025 में पौध प्रजातियों और किसान अधिकार संरक्षण अधिनियम (पीपीवी एवं एफआरए) के तहत आधिकारिक रूप से पंजीकृत किया गया, जिससे यह सिरोही की पहली सौंफ किस्म बनी जिसे राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। वर्तमान में इसका संवर्धन माउंट आबू की तलहटी में लगभग 9,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है, और जैव विविधता संरक्षण के लिए सिरोही में अबू सौंफ समुदाय जीन बैंक स्थापित किया गया है।
हैदराबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनीमल बायोटेक्नोलॉजी (एनआईएबी) में ज़ूनोटिक बैक्टीरियल रोगजनक ब्रुसेला से प्राप्त नवीन इम्यूनो डॉमिनेंट प्रोटीन के वैक्सीन संभावित मूल्यांकन पर चल रहे शोध कार्य के परिणामस्वरूप ब्रुसेलोसिस के लिए वैक्सीन प्रत्याशी विकसित किए गए हैं, जो तीन अलग-अलग दृष्टिकोणों पर आधारित हैं: इम्यूनो डॉमिनेंट प्रोटीन, मल्टी-एपिटोप प्रोटीन और लक्षित जीन विलोपन। दो मल्टी-एपिटोप वैक्सीन प्रत्याशी, MEV1 और MEV2, सफलतापूर्वक क्लोन किए गए, अभिव्यक्त किए गए और शुद्ध किए गए। इम्यूनोजेनेसिटी और चुनौती अध्ययन में पाया गया कि दोनों वैक्सीन ने B. melitensis और B. abortus के खिलाफ महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान की।
टॉक्सोप्लाज़्मा गोंडीई, एक एपिकॉम्प्लेक्सन परजीवी जिसके जीनोम में इंट्रॉन की उच्च संख्या है, लंबे समय से उन शोधकर्ताओं के लिए चुनौती बनी हुई है जो यह समझना चाहते हैं कि आरएनए स्प्लाइसिंग इसकी जीवविज्ञान को कैसे प्रभावित करती है। एनआईएबी के एक अध्ययन ने स्प्लाइसिंग फैक्टर Cdc5 की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया, जो परजीवी की जीन-नियामक प्रणाली को समझने में एक महत्वपूर्ण कदम है। TgCdc5 को आरएनए स्प्लाइसिंग और परजीवी की जीवित रहने की क्षमता के मास्टर रेगुलेटर के रूप में पहचानना, टॉक्सोप्लाज़्मा गोंडीई के खिलाफ चिकित्सीय और वैक्सीन रणनीतियों के नए अवसर खोलता है।
D. सैद्धांतिक एवं संगणकीय जीवविज्ञान (बायोइनफॉर्मेटिक्स, बीटीआईएस-नेट, एआई एवं बिग डेटा) तथा भारतीय जैविक डेटा केंद्र (आईबीडीसी)
मुख्य अंश:
देशभर में कुल 52 बायोइनफॉर्मेटिक्स केंद्र उन्नत और अत्याधुनिक जैव-चिकित्सीय शोध को आगे बढ़ा रहे हैं।
आईबीडीसी वेब और डेटा पोर्टल: आईबीडीसी वेब पोर्टल (https://ibdc.dbtindia.gov.in/) का विकास और उद्घाटन माननीय केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा 30 जुलाई, 2021 को किया गया। यह पोर्टल आईबीडीसी द्वारा प्रदान की जाने वाली सभी सेवाओं के लिए प्रवेश बिंदु का कार्य करता है और डेटा सबमिशन, एक्सेस, सहयोग मॉडल आदि से संबंधित विभिन्न पहलुओं का सार प्रस्तुत करता है। जैविक डेटा के आकार और जटिलता के कारण, आईबीडीसी को मॉड्यूलर रूप में विकसित किया जा रहा है। आईबीडीसी में संग्रहीत डेटा बड़े डेटा एनालिटिक्स को सक्षम करेगा, जो जैविक प्रणालियों में उभरती विशेषताओं की पहचान करने में मदद करेगा और इस प्रकार उन समस्याओं का समाधान विकसित करने में सहायक होगा, जिनका सामना स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण के क्षेत्रों में भारतीयों द्वारा किया जा रहा है। आईबीडीसी सात विशिष्ट डेटा पोर्टलों के माध्यम से कार्य करता है, जो विविध जैविक डेटा प्रकारों के प्रबंधन के लिए समर्पित हैं।
देशभर में कुल 52 बायोइनफॉर्मेटिक्स केंद्र अत्याधुनिक जैव-चिकित्सीय शोध, सिंथेटिक बायोलॉजी और स्वास्थ्य एवं कृषि के लिए एआई-आधारित उपकरणों के विकास को आगे बढ़ा रहे हैं। ये केंद्र विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखते हैं, जिनमें स्ट्रक्चरल बायोइनफॉर्मेटिक्स, दवाओं की खोज, केमिनफॉर्मेटिक्स, मेटाजेनोमिक्स और सिस्टम्स बायोलॉजी शामिल हैं, और अपने-अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
डीबीटी-बायोइनफॉर्मेटिक्स केंद्र (बीआईसी), ब्रिक-नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी में एक नया मशीन-लर्निंग दृष्टिकोण विकसित किया गया है, जो नए प्रतिरोध-संबंधित उत्परिवर्तन को स्वचालित रूप से पहचान सकता है और प्रतिरोध संकेतकों के पूर्व ज्ञान की आवश्यकता के बिना आनुवंशिक दवा प्रतिरोध की भविष्यवाणी कर सकता है। इस अध्ययन में बीवी बीआरसी से प्राप्त 13,947 पूर्ण जीनोम अनुक्रमों का उपयोग किया गया, जिनके ज्ञात फेनोटाइपिक दवा प्रतिरोध प्रोफाइल थे, जिससे तपेदिक दवाओं के लिए 5 प्रथम-लाइन (आइसोनियाज़िड, एथंबुटोल, रिफैम्पिसिन, स्ट्रेप्टोमाइसिन, पाइराजिनामाइड) और 8 द्वितीय-लाइन (कैनामाइसिन, अमिकासिन, एथियोनामाइड, ऑफ़्लोक्सासिन, मोक्सिफ्लोक्सासिन, साइक्लोसरीन, पीएएस, कैप्रोमाइसिन) एक्सजीबूस्ट और कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क क्लासिफ़ायर प्रशिक्षित किए जा सकें।
ऊर्जा और पर्यावरण तथा जैवसंसाधन
मुख्य अंश:
आयात विकल्प के रूप में उपयोग के लिए, आईसीजीईबी ने 1G एथेनॉल उत्पादन हेतु अनाज किण्वन के दौरान ग्लुकोअमाइलेज एंज़ाइम स्रावित करने वाली एक अनुयोजित खमीर जाति विकसित है।
बीआरआईसी-एनएबीआई ने लिग्निन को प्लेटफ़ॉर्म रसायनों में तोड़ने के लिए एक प्रभावशाली फोटोकैटालिस्ट विकसित किया।
आयात विकल्प के रूप में उपयोग के लिए, आईसीजीईबी ने 1G एथेनॉल उत्पादन हेतु अनाज किण्वन के दौरान ग्लुकोअमाइलेज एंज़ाइम स्रावित करने वाली एक अनुयोजित खमीर जाति विकसित है। इससे पूर्व आईसीजीईबी ने एक ऊष्मा-सहिष्णु और अवरोधक-प्रतिरोधी सैकेरॉमाइसेस सेरेविसीए जाति (एनजीवाई10) विकसित की थी, जो 1G एथेनॉल उत्पादन के लिए शर्करा किण्वन में प्रभावी है। यह जाति बाहरी रूप से ग्लुकोअमाइलेज जोड़ने पर अनाज किण्वन के माध्यम से 1G एथेनॉल उत्पादन के लिए उपयोग की जा सकती है। आईसीजीईबी ने इस जाति का एक ग्लुकोअमाइलेज स्रावित व्युत्पन्न विकसित किया है, जो अनाज किण्वन के दौरान बाहरी ग्लुकोअमाइलेज की आवश्यकता को लगभग 50 प्रतिशत तक कम करता है। यह जाति औद्योगिक परीक्षण और उसके बाद उद्योग में हस्तांतरण के लिए तैयार है।
ब्रिक-एनएबीआई ने लिग्निन को प्लेटफ़ॉर्म रसायनों में तोड़ने के लिए एक प्रभावशाली फोटोकैटालिस्ट विकसित किया; प्रतिक्रिया को 500 मिलीलीटर फोटोरिएक्टर तक बढ़ाया गया (पेटेंट स्वीकृत, उद्योग के साथ गोपनीयता समझौता किया गया)। लिग्निन अपशिष्ट से सीमेंट एडमिशर के रूप में लिग्नोसुल्फोनेट का संश्लेषण सफल हुआ (भारतीय पेटेंट आवेदन संख्या 202411103885)। लकड़ी पाउडर बोर्ड अनुप्रयोगों के लिए लकड़ी चिपकने वाला भी तैयार किया गया, जो महंगे यूरिया फॉर्मलडिहाइड-आधारित रेजि़न का विकल्प हो सकता है। फिल्टर मेम्ब्रेन में पेट्रोलियम-आधारित पॉलीमर की बड़ी मात्रा को बदलते हुए 40 प्रतिशत लिग्निन जोड़कर पॉलीमर नैनोफाइबरस मेम्ब्रेन का निर्माण किया गया।
मुंबई के आईसीटी ने प्रकाश-ऑक्सीकरणीय परिपक्वता का अनुकरण करके प्लास्टिक की जैव-विघटनशीलता की जांच के लिए एक त्वरित और पुनरुत्पादन योग्य क्यूयूवी (ASTM G154)–आधारित प्रोटोकॉल विकसित किया है। एलएलडीपीई, पीईटी, पीएलए, पीबीएटी और कम्पोस्टेबल प्लास्टिक की फिल्में डेल्टा ई, तन्यता ह्रास और स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी विश्लेषण के माध्यम से मूल्यांकित की गईं। पीएलए, पीबीएटी और कम्पोस्टेबल फिल्मों ने 600–800 घंटे के भीतर 85–90 प्रतिशत तन्यता ह्रास और विखंडन प्रदर्शित किया।
इमर्जिंग फ्रंटिअर्स इन बायो-टैक्नोलॉजी (जैव प्रौद्योगिकी में उभरते क्षेत्र):
मुख्य अंश:
विभाग ने चालू वर्ष में 230 परियोजनाओं का समर्थन किया है। परियोजनाएँ पूरे भारत में फैली हैं।
डीबीटी का इमर्जिंग फ्रंटिअर्स इन बायो-टैक्नोलॉजी (ईएफबी) कार्यक्रम नवाचार और उच्च-जोखिम वाले शोध को प्रोत्साहित करने के लिए तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य जैव प्रौद्योगिकी के उभरते क्षेत्रों में अत्याधुनिक वैज्ञानिक चुनौतियों को संबोधित करना और नया ज्ञान व प्रौद्योगिकियां विकसित करना है, जिनका सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। चालू वर्ष में देशभर में 123 परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान की गई है।
मानव संसाधन विकास
बेहतर मार्गदर्शन और निगरानी: डीबीटी ने कार्यक्रम की कार्यान्वयन क्षमता सुधारने के लिए पूरे देश के 90 स्टार कॉलेजों के लिए वेबिनार आयोजित किए।
भविष्य के लिए तैयार जैव प्रौद्योगिकी प्रतिभा पाइपलाइन: जेआरएफ, आरए और री-एंट्री अनुदानों के माध्यम से 700 से अधिक शोधकर्ताओं को समर्थन दिया गया।
डीबीटी की पहलें पूरे भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी और गणित (STEM) में नामांकन बढ़ाने और ड्रॉपआउट दर कम करने में सहायक साबित हुई हैं।
स्टार कॉलेज कार्यक्रम स्नातक शिक्षा प्रदान करने वाले कॉलेजों का समर्थन करता है, जिससे विज्ञान विषयों की शिक्षण गुणवत्ता में सुधार किया जा सके। कॉलेजों, विशेष रूप से आकांक्षी जिलों के, में मार्गदर्शन और नेटवर्किंग अवसरों के साथ-साथ सरकार की विभिन्न प्रासंगिक योजनाओं और कार्यक्रमों के प्रति जागरूकता प्रदान करने के लिए स्टार वेबिनार सत्र आयोजित किए गए। उत्तर-पूर्वी राज्यों में कार्यक्रम की पहुँच बढ़ाने के लिए इन राज्यों के कॉलेजों के लिए एक विशेष आमंत्रण घोषित किया गया है। स्टार कॉलेज कार्यक्रम ने विज्ञान के छात्रों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान किया है, कॉलेजों को छात्र अनुसंधान परियोजनाएँ करने के लिए सक्षम बनाया है, उन्हें अधिक सेमिनार और विशेषज्ञ वार्ता आयोजित करने में मदद की है, आदि।
विभिन्न मानव संसाधन विकास कार्यक्रमों के लिए डीबीटी के समर्थन की एक छोटी सी झलक
|
क्रम संख्या
|
कार्यक्रम का नाम
|
वित्त वर्ष 2025-26 में शामिल हुए नए शोधकर्ता
|
|
1.
|
जेआरएफ़
|
501*
|
|
2.
|
आरए
|
52
|
|
3.
|
पीजी शिक्षण
|
771
|
|
4.
|
टीडब्ल्यूएएस
|
6
|
|
5.
|
बायोकेयर (BioCARe)
|
67
|
|
6.
|
आरआरएफ़
|
36
|
*154 ने अपनी फेलोशिप एक्टिवेट की
अवसंरचना
मुख्य अंश:
भारत के अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को गति प्रदान करना: उन्नत बीएसएल-3, क्रायो-ईएम, स्टेम सेल और इमेजिंग सुविधाएं स्थापित की गईं
- डीबीटी - अकादमिक विश्वविद्यालय अनुसंधान संयुक्त सहयोग (डीबीटी-सहज) के दोहन के लिए वैज्ञानिक अवसंरचना तक पहुँच का उद्देश्य “राष्ट्रीय” सेवा सुविधा/शोध संसाधन/मंच बनाना है, जिससे उन संसाधनों तक पहुँच प्रदान की जा सके जो किसी एक शोधकर्ता की प्रयोगशाला या वैज्ञानिक विभाग द्वारा प्रदान नहीं किए जा सकते।
बिल्डर कार्यक्रम के अंतर्गत 45 विश्वविद्यालयों और संस्थानों को समर्थन प्रदान किया गया है, जिनमें 9 केंद्रीय विश्वविद्यालय, 14 राज्य विश्वविद्यालय और 22 निजी विश्वविद्यालय या स्नातकोत्तर महाविद्यालय शामिल हैं। सामूहिक रूप से, इस पहल से 177 विभागों को लाभ हुआ है—केंद्रीय विश्वविद्यालयों के 34, राज्य विश्वविद्यालयों के 56 और निजी संस्थानों के 87 विभाग।
अनुसंधान संसाधन और सुविधाएँ कार्यक्रम (आरआरएसएफपी–सहज) के अंतर्गत, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने जीवन विज्ञान और जैव-चिकित्सीय शोध में राष्ट्रीय क्षमताओं को सुदृढ़ करने के लिए प्रमुख संस्थानों में बारह अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं को समर्थन दिया है।
VII. उत्तर-पूर्वी क्षेत्र कार्यक्रम
मुख्य अंश:
धान की एक सूखा प्रतिरोधी किस्म ‘अरुण’ विकसित की गई।
एप्टामर द्वारा पकड़े गए विभिन्न एंज़ाइमों का पता लगाने के लिए एक संशोधित सीरिंज विकसित की गई।
“फर्मेंटेड सीटीसी चाय पत्तियों और ब्लैक टी से उच्च-शुद्धता वाला थेफ्लेविन निकालने” की प्रौद्योगिकी विकसित की गई।
असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट, असम और असम धान अनुसंधान संस्थान, टिटाबोर द्वारा धान की एक सूखा प्रतिरोधी किस्म ‘अरुण’ विकसित की गई और इसे नवंबर 2025 में असम सरकार के कृषि मंत्री द्वारा जारी किया गया। ‘अरुण’ धान किस्म को लोकप्रिय ‘कोलोंग’ की विशेषताओं और ‘आईआर64-ड्राउट’ से प्राप्त उन्नत सूखा सहिष्णुता को मिलाकर विकसित किया गया। यह किस्म किसानों को बढ़ती जलवायु अस्थिरताओं के तहत टिकाऊ धान उत्पादन के लिए व्यावहारिक समाधान प्रदान करती है।
एप्टामर द्वारा पकड़े गए विभिन्न एंज़ाइमों का पता लगाने के लिए एक संशोधित सीरिंज विकसित की गई है, जिसमें उल्टे स्थिति में कागज मैट्रिक्स पर स्ट्रेप्टाविडिन मैग्नेटिक बीड्स के जुड़ाव को रोकने के लिए चुंबक और विशेष एंज़ाइम को घोल से पकड़ने और रंगधारण के लिए कागज की विक का प्रावधान किया गया है। इसके लिए “विभिन्न यंत्र-मुक्त पहचान अनुप्रयोगों में विभिन्न एंज़ाइमों का पता लगाने के लिए संशोधित सीरिंज (पेटेंट संख्या 568397)” शीर्षक के तहत पेटेंट भी प्रदान किया गया है।
नागालैंड और मेघालय से एकत्रित जंगली सेब से मूल्य वर्धित उत्पाद जैसे स्क्वैश, जूस, जैम, जेली, अचार, फ्रूट बार, किण्वित स्वास्थ्य पेय, कैंडी, वाइन और माउथ फ्रेशनर विकसित किए गए हैं। ये उत्पाद असम के कामरूप और गोवालपुरा जिलों में स्वयं सहायता समूह, स्थानीय उद्यमियों और कृषि विज्ञान केंद्र, गोवालपुरा के सहयोग से विकसित किए गए। ये जंगली सेब आधारित पेय उपभोक्ताओं को पोषक, प्रिज़र्वेटिव-रहित पेय प्रदान करेंगे और साथ ही जातीय समुदायों के लिए उद्यमिता और आय के अवसर भी सृजित करेंगे। समुदाय आधारित खेती और शीत भंडारण सुविधाओं की स्थापना कच्चे माल की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करेगी और रोजगार सृजित करेगी।
“फर्मेंटेड सीटीसी चाय पत्तियों और ब्लैक टी से उच्च-शुद्धता वाला थेफ्लेविन निकालने” की प्रौद्योगिकी विकसित की गई। यह आविष्कार फर्मेंटेड सीटीसी (क्रश टी एंड कर्ल) चाय पत्तियों और सीटीसी ब्लैक टी से उच्च शुद्धता वाले ब्लैक टी पॉलीफेनोल्स, विशेष रूप से थेफ्लेविन (टीएफ) निकालने की एक नवीन और प्रभावी प्रक्रिया से संबंधित है। थेफ्लेविन में एंटीऑक्सिडेंट, सूजन-रोधी और विषाणुरोधी स्वास्थ्य लाभ पाए जाते हैं और इन्हें खाद्य, स्वास्थ्य, चिकित्सा और कॉस्मेटिक्स में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया कम लागत वाली, समय-सक्षम है और उच्च-शुद्धता वाले थेफ्लेविन पाउडर का उत्पादन करती है, जिसमें थेफ्लेविन की मात्रा वजन के अनुसार 40% से अधिक होती है। इसके लिए पेटेंट (आवेदन संख्या 202531087727) भी दाखिल किया गया है।
असम, गोहाटी में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उन्नत अध्ययन संस्थान (आईएएसएसटी) में उन्नत स्तर संस्थागत जैव प्रौद्योगिकी हब परियोजना के अंतर्गत, हरी या काली चाय, चीनी और एससीओबीवाई स्टार्टर कल्चर का उपयोग करके मानक किण्वन तकनीकों के माध्यम से सफलतापूर्वक कॉम्बुचा तैयार किया गया। आगे मूल्य वर्धन के रूप में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध फल, जैसे तरबूज, कटहल और अनानास का उपयोग करके, फलों से मिश्रित वेरिएंट विकसित किए गए हैं। नवीन कटहल-मिक्स कॉम्बुचा फॉर्मुलेशन के लिए वर्तमान में पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रिया चल रही है।
बायोटेक हब कार्यक्रम के अंतर्गत, इस वित्तीय वर्ष में कुल 44 कार्यशालाएँ, संगोष्ठी और प्रशिक्षण आयोजित किए गए, जिनसे 1386 व्यक्तियों को लाभ हुआ। इस कार्यक्रम के परिणामस्वरूप 23 प्रकाशन और 4 मूल्य वर्धित उत्पाद विकसित किए गए। 54 उत्तर-पूर्वी क्षेत्र-विशेष जीनसंपदा और जैवसंसाधन एकत्रित किए गए। इसके अतिरिक्त, 8 प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप और क्षेत्रीय प्रदर्शन भी आयोजित किए गए। साथ ही, इन पहलों के माध्यम से 218 लाभार्थियों, जिनमें किसान और स्थानीय उद्यमी शामिल हैं, को लक्षित प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
हिमालयन जैवसंसाधन मिशन कार्यक्रम के अंतर्गत, स्वेरटिया चिरायता के लिए प्रभावी कृषि-प्रौद्योगिकी और सीधे उपयोग के लिए उत्पाद विकास प्राप्त किया गया। मिथाइल सैलिसिलेट से समृद्ध गौल्थेरिया फ्रैग्रेंटिसिमा का तेल दर्द निवारक साबुन के लिए अनुकूलित किया जा रहा है। दोनों प्रजातियों की खेती और मूल्य वर्धन पर क्षेत्रीय प्रशिक्षण ब्रिक-आईबीएसडी, शिलॉन्ग में आयोजित किया गया। किसानों को प्रेरित करने के लिए इंफाल में एक सफलता कथा साझा की गई, और 1,000 स्वेरटिया चिरायता के पौधे सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू को जम्मू और कश्मीर के किसानों में वितरण के लिए प्रदान किए गए।
हिमालयन जैवसंसाधन मिशन कार्यक्रम के अंतर्गत, इस वित्तीय वर्ष में कुल 17 कार्यशालाएँ, संगोष्ठी और प्रशिक्षण आयोजित किए गए, जिनसे 368 व्यक्तियों को लाभ हुआ। इस कार्यक्रम के परिणामस्वरूप 6 प्रकाशन और 12 मूल्य वर्धित उत्पाद विकसित किए गए। 126 उत्तर-पूर्वी क्षेत्र-विशेष जीनसंपदा और जैवसंसाधन एकत्रित किए गए। इसके अतिरिक्त, 7 प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप और क्षेत्रीय प्रदर्शन भी आयोजित किए गए। साथ ही, इन पहलों के माध्यम से 83 लाभार्थियों, जिनमें किसान और स्थानीय उद्यमी शामिल हैं, को लक्षित प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
VIII. नियामक सुधार
आरसीजीएम, डीबीटी ने कई सुधार किए हैं, जिसमें आईबीएससी को सशक्त बनाना शामिल है। इसी कारण आईबीकेपी पोर्टल के माध्यम से उनके मिनट्स, वार्षिक अनुपालन रिपोर्ट और मेडिकल सर्वेलांस रिपोर्ट के जरिए आईबीएससी की निगरानी के लिए कड़ा तंत्र शुरू किया गया है। आरसीजीएम सचिवालय आईबीएससी की निगरानी और अनुपालन दस्तावेजों के मूल्यांकन में आरसीजीएम की सहायता कर रहा है।
राष्ट्रीय संसाधन/सुविधाएँ
मुख्य अंश:
गैर-मानव प्राइमेट्स के लिए पशु जैव-सुरक्षा स्तर-3 (एबीएसएल-3) सुविधा प्राइमेट रिसर्च सेंटर, ब्रिक–राष्ट्रीय प्रतिरक्षा संस्थान में स्थापित की गई।
ब्रिक–एनआईआई में बीएसएल-3 गैर-मानव प्राइमेट सुविधा का उद्घाटन: 10 नवंबर, जो संयोग से दूसरे ब्रिक स्थापना दिवस के अवसर पर था, को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने प्राइमेट रिसर्च सेंटर, ब्रिक–राष्ट्रीय प्रतिरक्षा संस्थान में गैर-मानव प्राइमेट्स के लिए पशु जैव-सुरक्षा स्तर -3 (एबीएसएल-3) सुविधा का उद्घाटन किया। नई एबीएसएल-3 इकाई में 18 मकाक बंदरों तक की क्षमता है, जिससे यहॉं उच्च-संरक्षण इन विट्रो और इन विवो अध्ययन के साथ-साथ, टीकों और चिकित्सीय उपायों का पूर्व-चिकित्सीय मूल्यांकन किया जा सकता है।
वैश्विक नवाचार:
मुख्य अंश:
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक ने बायोमेडिकल अनुसंधान करिअर कार्यक्रम (बीआरसीपी) के तृतीय चरण को जारी रखने की स्वीकृति प्रदान की।
बायोमेडिकल अनुसंधान करिअर कार्यक्रम:
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बायोमेडिकल अनुसंधान करिअर कार्यक्रम (बीआरसीपी) के तृतीय चरण की निरंतरता को स्वीकृति प्रदान की है। यह चरण वर्ष 2025–26 से 2030–31 तक लागू होगा, तथा 2030–31 तक स्वीकृत फेलोशिप और अनुदानों की सेवा हेतु अतिरिक्त छह वर्षों (2031–32 से 2037–38) तक चलेगा। इस कार्यक्रम की कुल अनुमानित लागत 1500 करोड़ रुपये है, जिसमें से जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) द्वारा 1000 करोड़ रुपये तथा यूनाइटेड किंगडम के वेलकम ट्रस्ट (डब्ल्यूटी) द्वारा 500 करोड़ रुपये का योगदान किया जाएगा। विकसित भारत के लक्ष्यों के अनुरूप कौशल विकास एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने हेतु जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने बायोमेडिकल अनुसंधान करिअयर कार्यक्रम (बीआरसीपी) के तृतीय चरण की शुरुआत की है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य अत्याधुनिक बायोमेडिकल अनुसंधान के लिए उच्चस्तरीय वैज्ञानिक प्रतिभाओं का पोषण करना तथा ट्रांस्लेश्नल इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए अंतःविषय अनुसंधान को प्रोत्साहित करना है। इसके माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान को समर्थन देने वाली प्रणालियों को सुदृढ़ किया जाएगा, वैज्ञानिक क्षमता में क्षेत्रीय असमानताओं को कम किया जाएगा तथा वैश्विक प्रभाव वाली विश्वस्तरीय बायोमेडिकल अनुसंधान क्षमता का निर्माण किया जाएगा।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने भारत सरकार की प्रौद्योगिकी सुरक्षा पहल (टीएसआई) के अंतर्गत 3 मार्च 2025 को यूनाइटेड किंगडम के हैल्थ एंड सोशल केयर डिपार्टमेंट के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ एंड केयर रिसर्च के साथ “यूके–भारत फेमटेक (महिला-उन्मुख स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी) साझेदारी” पर एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।
11 मार्च 2025 को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद–जैव प्रौद्योगिकी विभाग (आईसीएमआर–डीबीटी), भारत और स्विस नेशनल साइंस फ़ाउंडेशन (एसएनएसएफ), स्विट्ज़रलैंड के बीच एक आशय पत्र पर भी हस्ताक्षर किए गए। इसका उद्देश्य भारत और स्विट्ज़रलैंड के वैज्ञानिक समुदायों के बीच अंतर्विषयक अनुसंधान एवं सहयोग को बढ़ावा देना है, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान किया जा सके, विशेष रूप से वन हेल्थ के संदर्भ में, जो मानव, पशु एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य के एकीकृत दृष्टिकोण को समाहित करता है। इस पहल के अंतर्गत प्रस्ताव आमंत्रित करने हेतु एक नया आह्वान तैयार किया जा रहा है।
जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं नवाचार परिषद (बीआरआईसी-ब्रिक)
मुख्य अंश:
- ब्रिक द्वारा 100 से अधिक वैज्ञानिकों की सहभागिता के साथ 47 एकीकृत, बहुविषयक, अंतर-संस्थागत नेटवर्क कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया गया।
- i3c ब्रिक आरसीबी पीएचडी कार्यक्रम के अंतर्गत 58 विद्यार्थियों का नामांकन किया गया।
- एक दिन एक जीनोम मिशन के तहत 244 एनोटेटेड जीनोम जारी किए गए।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा एक स्वायत्त निकाय, बीआरआईसी (जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं नवाचार परिषद - ब्रिक) का गठन किया गया है, जिसके अंतर्गत 13 उत्कृष्ट स्वायत्त अनुसंधान संस्थानों के शासन-प्रबंधन को एकीकृत किया गया है, जबकि उनकी विशिष्ट अनुसंधान पहचान को बनाए रखा गया है। ब्रिक का उद्देश्य देश में जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान, शिक्षा एवं उद्यमिता पर गहरा प्रभाव डालना है, जिसके लिए संबंधित संस्थानों के स्वतंत्र प्रयासों को समेकित किया जा रहा है। ब्रिक के अंतर्गत 13 संस्थानों हैं, जिन्हें ‘आईब्रिक’ कहा जाता है तथा जैव प्रौद्योगिकी विभाग के दो अन्य संस्थानों—आरसीबी और आईसीजीईबी—के सम्मिलन से कुल 15 संस्थान हो जाते हैं, जिन्हें ‘आई-ब्रिक प्लस’ कहा जाता है। ब्रिक की गतिविधियाँ नीचे सूचीबद्ध हैं।
(i) एकीकृत अनुसंधान पहलें
नेटवर्क आधारित अंतर्विषयी अनुसंधान कार्यक्रम – ब्रिक ने आई-ब्रिक प्लस के अंतर्गत एकीकृत अनुसंधान कार्यक्रम विकसित करके विभिन्न संस्थानों में चल रहे अनुसंधान प्रयासों को समेकित एवं परस्पर समन्वित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। ब्रिक द्वारा 47 एकीकृत, बहु-विषयी, अंतर-संस्थागत नेटवर्क अनुसंधान कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया गया है, जिनमें 100 से अधिक वैज्ञानिकों की सहभागिता है।
i3c ब्रिक आरसीबी पीएचडी कार्यक्रम: वर्ष 2024 ने भारत में ‘पीएचडी’ शिक्षा में एक क्रांतिकारी कदम चिह्नित किया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान के केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बायोसाइंसेज में i3c ब्रिक आरसीबी पीएचडी कार्यक्रम का शुभारंभ किया। यह कार्यक्रम डीबीटी ब्रिक (आईब्रिक), आरसीबी और आईसीजीईबी के संस्थानों के बीच शैक्षणिक और शोध संबंधी सहयोग को बढ़ावा देगा और पीएचडी शोधार्थियों के लिए पेशेवर नेटवर्किंग के अवसरों को विस्तार देगा। जून 2024 में पहले कॉल के खुलने के साथ, इसके पहले बैच में कुल 58 छात्रों का नामांकन किया गया।
आईब्रिक+ बायोटेक स्पॉटलाइट सीरीज – आईब्रिक+ बायोटेक स्पॉटलाइट सीरीज प्रत्येक माह आयोजित की जाती है। प्रत्येक सत्र में तीन आईब्रिक+ के शोधकर्ताओं द्वारा वैज्ञानिक प्रस्तुतियाँ दी जाती हैं, जिसमें उनके हाल के उत्कृष्ट शोध लेख या प्रौद्योगिकियां प्रदर्शित की जाती हैं। इसके अतिरिक्त, निदेशक द्वारा एक विशेष संबोधन दिया जाता है। ब्रिक सचिवालय विभिन्न प्रशासनिक और शासन संबंधी मामलों पर अपडेट प्रदान करता है। सचिव, डीबीटी/डीजी ब्रिक, ब्रिक द्वारा की गई पहलों को प्रस्तुत करते हैं और सभी प्रतिभागियों से सुझाव आमंत्रित करते हैं। इस श्रृंखला में 300 से ज़्यादा आईब्रिक+ वैज्ञानिक भाग लेते हैं। दिसंबर 2024 में इसकी शुरुआत के बाद, इस श्रृंखला के अंतर्गत कुल सात वेबिनार आयोजित किए जा चुके हैं। इन प्रस्तुतियों में एंटिफंगल वैक्सीन, न्यूरोसाइकेट्रिक विकारों के आणविक और कोशिकीय आधार, अंडाशय की वृद्धावस्था को रोकने की चिकित्सीय रणनीतियाँ, फसलों में कवक रोगों का प्रबंधन आदि जैसे विभिन्न विषय शामिल रहे हैं। यह पहल आईब्रिक+ में चल रहे शोध की दृश्यता बढ़ाती है और सहयोग के अवसरों को बढ़ावा देती है।
वन डे वन जीनोम मिशन 9 नवंबर 2024 को पहले ब्रिक स्थापना दिवस समारोह के दौरान लॉन्च किया गया था। इस कार्यक्रम की रूपरेखा हमारे देश की समृद्ध और अद्वितीय सूक्ष्मजीवी विविधता को सूचीबद्ध करने और इसे आम जनता के साथ रोचक ढंग से साझा करने के लिए तैयार की गई है। ब्रिक-एनआईबीएमजी, कल्याणी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह आईब्रिक+ में अनुक्रमित किए गए प्रत्येक सूक्ष्मजीव जीनोम का विवरण सरल शब्दों में प्रतिदिन सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से जनता तक पहुँचाए। अब तक, 244 एनोटेटेड सूक्ष्मजीव जीनोम जारी किए जा चुके हैं।
(ii) ज़ीरो वेस्ट लाइफ पहल - जीरो वेस्ट लाइफ ऑन कैंपस कार्यक्रम आईब्रिक+ परिसरों में 5आर—रिड्यूस, रियूज, रिफ्यूज, रीसाइकिल, रिपर्पज़—के माध्यम से स्थायित्व को बढ़ावा देता है, जिसे छठे आर - रिसर्च इनसाइट्स - के द्वारा और मजबूत किया गया है और यह राष्ट्रीय मिशन लाइफ मूवमेंट के अनुरूप है। विभिन्न कैंपस परिवेश रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों और प्रबंधन मॉडलों का परीक्षण करने और इन्हें सुधारने में मदद करते हैं। आईब्रिक+ की कुछ प्रमुख पहलों में निम्न शामिल हैं:
- ब्रिक-आरजीसीबी ने अपशिष्ट, जल, ऊर्जा, और जैव विविधता संरक्षण में उत्कृष्टता के लिए A+ ग्रीन प्रोटोकॉल रेटिंग प्राप्त की।
- आईसीजीईबी ने एक इन-हाउस इनोकुलम विकसित किया जो 16 दिनों में 60–70% मीथेन बायोगैस उत्पादन करता है, जिससे खाद्य अपशिष्ट लगभग 60 किग्रा/दिन से घटकर <3 किग्रा/दिन पर आ गए हैं।
- ब्रिक-टीएचएसटीआई ने 4,400 किग्रा कागज को रीसाइकिल करके डायरी, पेन और रीम बनाए, जिससे एक क्लोज़्ड-लूप सिस्टम तैयार हुआ।
- ब्रिक-एनएबीआई आस-पास के ग्रामीणों को प्लास्टिक अपशिष्ट एकत्र करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके तहत 2 किग्रा प्लास्टिक के बदले में 1 किग्रा चावल जैसे प्रोत्साहन दिए जाते हैं।
- ब्रिक-टीएचएसटीआई, ब्रिक-एनआईएबी, आरसीबी इलेक्ट्रिक वाहनों और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को संवर्द्धन देते हैं।
- ब्रिक-एनआईपीजीआर ने डीज़ल जनरेटर में रेट्रोफिट उत्सर्जन नियंत्रण उपकरण लगाए, जिससे हानिकारक उत्सर्जन में 70% तक कमी की आई।
- ब्रिक-टीएचएसटीआई और ब्रिक-सीडीएफ़डी पैकेजिंग (लकड़ी/कार्डबोर्ड) को फर्नीचर, स्टेप लैडर, पेडेस्टल बेस, अलमारी के पाये और टेंडर बॉक्स जैसी कार्यात्मक कैंपस वस्तुओं में पुनः प्रयोग करते हैं।
- सौर पैनल/हीटर इंस्टॉल करने से ऊर्जा लागत और कार्बन फुटप्रिंट में कमी आती है।
- सिंगल-यूज प्लास्टिक को दैनिक कार्यों, बैठकों और कार्यक्रमों में हतोत्साहित किया जाता है।
- ब्रिक-एनआईएबी आरओ के अपशिष्ट जल को बाग़वानी के लिए पुनः उपयोग करता है।
- ब्रिक-एनएबीआई ने स्व-पोषित पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए हर्बल गार्डन स्थापित किया।
- जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद् (बीआईआरएसी)
मुख्य अंश:
75 बायोनेस्ट केंद्र और 19 ई-युवा केंद्र मिलकर 9,00,000 वर्ग फुट से अधिक के कुल इन्क्यूबेशन स्पेस में योगदान दे रहे हैं।
ई-युवा योजना ने उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाई है, जिसके अंतर्गत इसका राष्ट्रीय विस्तार 10 से बढ़कर 15 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 19 प्री-इन्क्यूबेशन केंद्रों तक हो गया है।
बायो-इन्क्यूबेटर्स नर्चरिंग एंटरप्राइज फ़ॉर स्केलिंग टेक्नोलॉजीज़ (बायोनेस्ट): बीआईआरएसी का इन्क्यूबेशन नेटवर्क विस्तार पाकर 75 बायोनेस्ट केंद्रों और 19 ई-युवा केंद्रों तक पहुँच गया है, जो मिलकर 9,00,000 वर्ग फुट से अधिक के कुल इन्क्यूबेशन स्पेस में योगदान दे रहे हैं। यह नेटवर्क 3000 से अधिक उद्यमियों एवं स्टार्ट-अप्स को समर्थन प्रदान कर रहा है। इन्क्यूबेटीज़ द्वारा 1300 से अधिक आईपी (बौद्धिक संपदा) दाखिल की गई हैं तथा 800 से अधिक उत्पाद विपणन के विभिन्न चरणों तक पहुँच चुके हैं।
ई-युवा (एन्करेजिंग यूथ फ़ॉर अंडरटेकिंग इनोवेटिव रिसर्च थ्रू वाइब्रेंट एक्सेलरेशन): ई-युवा योजना बीआईआरएसी की एक पहल है, जिसका उद्देश्य भारत भर में युवाओं और विद्यार्थियों के बीच संबद्ध अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को विकसित करना है। यह योजना स्नातक, स्नातकोत्तर तथा डॉक्टोरल स्तर के छात्र नवप्रवर्तकों को संरचित सहायता प्रदान करती है, जिसमें मेंटरशिप, फेलोशिप, अनुसंधान अनुदान तथा इन्क्यूबेशन सुविधाओं तक पहुँच शामिल है।
ई-युवा योजना ने उल्लेखनीय प्रगति प्रदर्शित की है और अपने राष्ट्रीय विस्तार को 10 से बढ़ाकर 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 19 प्री-इन्क्यूबेशन केंद्रों तक विस्तृत कर लिया है। दो राष्ट्रीय कॉल के माध्यम से, इस योजना ने 460 से अधिक शोधकर्ताओं को समर्थन प्रदान किया है, जिनमें स्नातक, स्नातकोत्तर एवं पोस्टडॉक्टोरल छात्र शामिल हैं।
चुनिंदा प्रौद्योगिकियां/उत्पाद, जो अब व्यावसायिक रूप से उपयोग किए जा रहे हैं:
इम्यूनियल थेराप्यूटिक्स प्रा. लि. ने वार्निमकैबटाजीन ऑटोलेउसेल, आईएमएन‑003ए (जिसे एआरआई‑0001 भी कहा जाता है) की बिक्री शुरू की। यह एक नवीन CD19‑लक्षित काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर) टी‑सेल थेरेपी है, जो बी‑सेल कैंसर को लक्षित करती है। इसमें लिम्फोसाइट्स के आनुवंशिक संशोधन के बाद शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करके कैंसर का इलाज किया जाता है।
वाइब्रासेंस+टी एक पोर्टेबल, हाथ में पकड़ा जाने वाला, रिचार्ज होने वाला उपकरण है जिसे व्यापक मात्रात्मक संवेदी परीक्षण (क्यूएसटी) के लिए डिजाइन किया गया है। यह कंपन, गर्म और ठंडे की संवेदना की सीमा का सटीक मापन प्रदान करता है। बड़े और छोटे तंत्रिका (नर्व) फाइबर्स के कार्य का आकलन करके, वाइब्रासेंस+टी तंत्रिकात्मक स्वास्थ्य की अधिक पूर्ण तस्वीर प्रस्तुत करता है।
बायोडाइमेंशन (बीआईआरएसी के अंतर्गत बीआईजी योजना द्वारा समर्थित): यह कंपनी अन्य ऊतक मॉडलों से प्राप्त आय सहित, लगभग ₹35 लाख की आमदनी उत्पन्न कर चुकी है।
एक्समशीन्स (फ़्लिक फ़ार्म प्राइवेट लिमिटेड) (एसबीआईआरआई योजना के अंतर्गत बीआईआरएसी द्वारा समर्थित): कोरोमंडल फ़र्टिलाइज़र्स (मुरुगप्पा समूह की कंपनी) से 3 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त किया; शार्क टैंक इंडिया सीज़न 3 का हिस्सा; ओयो रूम्स के रितेश अग्रवाल एवं एमक्योर फ़ार्मा की नमिता थापर से 50 लाख रुपये का निवेश हासिल किया; यूरोप, स्पेन एवं ऑस्ट्रेलिया को 3 रोबोट निर्यात किए गए हैं और इस वर्ष सऊदी अरब एवं लैटिन अमेरिका से अतिरिक्त ऑर्डर प्राप्त हुए हैं।
बायोस्कैन रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड (एसबीआईआरआई योजना के अंतर्गत बीआईआरएसी द्वारा समर्थित): सेरेबो® – इंस्टेंट इंट्राक्रैनियल ब्लीड (मष्तिष्क या उसके आस-पास रक्तस्राव) डिटेक्टर, उपयोग में आसान, पूर्णतः स्वचालित एक अशल्य उपकरण, जो एक मिनट के भीतर ब्रेन हेमरेज की पहचान करता है।
टेकसॉल्वर कम्युनिकेशंस एंड इनोवेटिव प्लेटफॉर्म्स प्राइवेट लिमिटेड (अमृत ग्रैंड चैलेंज– जनCARE के अंतर्गत बीआईआरएसी द्वारा समर्थित): एम्स जोधपुर में 200 क्लीनिकल ट्रायल पूर्ण किए गए।
एम. जे. बायोफार्म प्राइवेट लिमिटेड (बीआईपीपी के अंतर्गत बीआईआरएसी द्वारा समर्थित): डीसीजीआई से विपणन की अनुमति प्राप्त हुई।
ब्रायोटा टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड (जनCARE के अंतर्गत बीआईआरएसी द्वारा समर्थित): विभिन्न राज्य एनएचएम के साथ प्रायोगिक चरणों में लाइव परियोजनाएँ संचालित की जा रही हैं। इन्हें राष्ट्रीय एनसीडी कार्यक्रम के अंतर्गत शामिल किया गया है तथा डीएसटी और वीसी से वित्तीय सहयोग के साथ विस्तार के लिए तैयार हैं।
इरिलिक प्रा. लि. द्वारा सीएमआर विश्वविद्यालय के सहयोग से (बीआईआरएसी के जनCARE कार्यक्रम के अंतर्गत समर्थित):
उत्पाद का विपणन तथा व्यावसायीकरण किया जा चुका है।
*******
पीके/केसी/पीके
(रिलीज़ आईडी: 2206132)
आगंतुक पटल : 47