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कोशिकीय परिमार्जन में हाल ही में खोजी गई लापता कड़ी अल्जाइमर, पार्किंसंस एवं कैंसर हेतु चिकित्सीय रणनीतियों को विकसित करने में सहायक हो सकती है

प्रविष्टि तिथि: 18 DEC 2025 4:28PM by PIB Delhi

शोधकर्ताओं ने ऑटोफैगी या "स्वपोषी" प्रक्रिया में एक आश्चर्यजनक भूमिका निभाने वाले कारक का पता लगाया है, जो क्षतिग्रस्त हिस्सों को अलग करता है, संक्रमण से लड़ता है और न्यूरॉन्स जैसी दीर्घकालिक कोशिकाओं को सुचारू रूप से कार्य करने में सक्षम बनाता है।

ऑटोफैगोसोम बायोजेनेसिस के प्रारंभिक चरणों में प्रमुख घटकों की पहचान, जो ऑटोफैजी प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण चरण है, इस प्रक्रिया को संशोधित करने के लिए आधार स्थापित कर सकती है ताकि अल्ज़ाइमर, पार्किंसंस एवं कैंसर जैसी बीमारियों में इस प्रक्रिया को पुनर्स्थापित करने के लिए मध्यवर्तन का पता लगाया जा सकें।

जिस प्रकार हमारे घरों को नियमित सफाई आवश्यक होती है, उसी प्रकार हमारी कोशिकाएं भी ऑटोफैगी नामक प्रक्रिया के माध्यम से क्षतिग्रस्त एवं अवांछित पदार्थों को साफ करती हैं।

जब कोई कोशिका अपशिष्ट पदार्थों की सफाई में विफल रहती है, तो उसका स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है, विशेषकर दीर्घ-जीवित न्यूरॉन में। क्षतिग्रस्त पदार्थों को हटाने एवं संक्रमणों से बचाव करने वाली ऑटोफैगी प्रक्रिया अल्जाइमर और हंटिंगटन रोग जैसी बीमारियों में प्रभावित हो जाती है। कैंसर में भी ऑटोफैगी की दोहरी भूमिका होती है क्योंकि यह शुरुआत में कैंसर को रोकती है लेकिन बाद में ट्यूमर के विकास में सहायक होती है।  ऑटोफैगी, जीनोम की समग्रता एवं कोशिका संतुलन बनाए रखकर ट्यूमर को दबाने का कार्य करती है। ऐसा वह प्रोटीन के जमाव और क्षतिग्रस्त माइट्रोकांड्रिया (सूत्रकणिका) जैसे कोशिकीय कचरे को साफ करके करती है। लेकिन यह एक दोधारी तलवार भी है, क्योंकि कुछ प्रकार की कैंसर कोशिकाएं अपने अस्तित्व एवं प्रसार के लिए ऑटोफैगी का दुरुपयोग करती हैं। इसके विनियमन को समझना प्रभावी उपचार विकसित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था, के शोधकर्ताओं ने पाया कि एक्सोसिस्ट कॉम्प्लेक्स नामक प्रोटीन का एक समूह, जो सामान्यतः महत्वपूर्ण अणुओं को कोशिका की सतह पर लाने में मदद करता है, ऑटोफैगी में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस कॉम्प्लेक्स में 8 प्रोटीनों की एक टीम होती है; दिलचस्प बात यह है कि इन 8 प्रोटीनों में से 7 प्रोटीन कोशिका को कचरे की थैली विकसित करने में सहायता करते हैं जिससे वह कचरे को पूरी तरह से लपेट सके। जब यह कॉम्प्लेक्स अनुपस्थित होता है, तो कोशिका की थैली बनाने वाली संरचना ठीक से काम करना बंद कर देती है और यहां तक ​​कि दोषपूर्ण, गैर-कार्यात्मक संरचना भी बनाने लगती है।

 

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चित्र: एक ऑटोफैगोसोम अपने अंतर्ग्रहण को निगलते हुए। इस सूक्ष्मदर्शी चित्र में, हरे रंग में दर्शाया गया एक ऑटोफैगोसोम, मैजेंटा रंग में दर्शाए गए प्रोटीन समूह के चारों ओर लिपटने का प्रयास कर रहा है। इसका आकार लगभग 1-2 माइक्रोन है।

 

प्रोफेसर रवि मंजिथया के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने ऑटोफैगोसोम (कोशिकीय कचरा थैला) के निर्माण को स्पष्ट करने के लिए सामान्य यीस्ट कोशिकाओं का उपयोग किया, जिससे यह समझने में मदद मिली कि यह महत्वपूर्ण प्रक्रिया उच्च जीवों में किस प्रकार होती है।

उन्होंने उस प्रक्रिया को स्पष्ट किया जिसके द्वारा एक प्रोटीन कॉम्प्लेक्स एक्सोसिस्ट, जिसे पहले स्राव में इसकी भूमिका के लिए पहचाना जाता था, ऑटोफैगी मार्ग में भी योगदान देता है, जो कोशिकीय स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। ऑटोफैगी में दोष कई न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगें और कैंसर से जुड़े होते हैं, इसलिए "प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज" में प्रकाशित निष्कर्षों ने इस मार्ग को नियंत्रित करके कोशिकीय संतुलन बहाल करने एवं संभावित चिकित्सीय विकास के नए रास्ते खोल दिए हैं।

प्रकाशन लिंक: https://www.pnas.org/doi/10.1073/pnas.2426476122

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