विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
संसद प्रश्न: जैव-औषधि क्षेत्र में उद्यमिता एवं स्वदेशी विनिर्माण का संवर्धन
प्रविष्टि तिथि:
18 DEC 2025 4:14PM by PIB Delhi
भारत सरकार ने जैव-औषधि क्षेत्र में उद्यमिता तथा स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं।
जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बाइरैक), भारत सरकार के बायोटेक्नोलॉजी विभाग (डीबीटी) की धारा 8 द्वारा स्थापित सार्वजनिक क्षेत्र का गैर-लाभकारी उद्यम है। बाइरैक की स्थापना एक इंटरफेस एजेंसी के रूप में की गई है, जिसका उद्देश्य स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित एवं सुदृढ़ करना तथा स्वास्थ्य क्षेत्र—जिसमें फार्मा और बायोफार्मा शामिल हैं—पर विशेष ध्यान देते हुए उद्यमिता को प्रोत्साहित करना है। बाइरैक ने अनुदान आधारित वित्तपोषण के माध्यम से स्टार्टअप्स, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) तथा नवोन्मेषकों को समर्थन प्रदान किया है। बाइरैक की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:
प्रारंभिक चरण के नवाचार को वित्तपोषण एवं समर्थन प्रदान करना
प्रमुख वित्तपोषण योजनाएँ शुरू की गईं जैसे बीआईजी (जैव प्रौद्योगिकी प्रज्ज्वलन अनुदान), स्पर्श (उत्पादों के लिए सामाजिक नवाचार कार्यक्रम: सामाजिक स्वास्थ्य के लिए सुलभ एवं प्रासंगिक उत्पाद), तथा इक्विटी योजनाएँ जैसे सीड (सस्टेनेबल एंटरप्रेन्योरशिप एंड एंटरप्राइज डेवलपमेंट) फंड और लीप (लॉन्चिंग एंटरप्रेन्योरियल ड्रिवन अफोर्डेबल प्रोडक्ट्स) फंड, जिससे स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ किया जा सके और अवधारणा के प्रमाण में बदलने व वाणिज्यीकरण से पहले के चरण में वित्तपोषण की कमी को दूर करते हुए निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित किया जा सके। बीआईजी योजना से लगभग 1000 स्टार्टअप्स और उद्यमियों को लाभ हुआ है, जबकि स्पर्श के तहत 150+ फेलोशिप प्रदान की गईं, जिससे 100+ स्टार्टअप्स और 65+ बौद्धिक संपदाएं (आईपी) सृजित हुए।
भारत के जैव-प्रौद्योगिकी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करना
बाइरैक ने 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 94 इन्क्यूबेशन और प्री-इन्क्यूबेशन केंद्रों सहित एक मजबूत इन्क्यूबेटर नेटवर्क स्थापित किया है, जो 3000 से अधिक इन्क्यूबेट्स और शोधकर्ताओं को समर्थन देता है। इसके माध्यम से BioNEST (बायोइन्क्यूबेटर्स नर्चरिंग एंटरप्रेन्योरशिप फॉर स्केलिंग टेक्नोलॉजीज) और E-YUVA (एम्पावरिंग यूथ फॉर अंडरटेकिंग वैल्यू-एडेड इनोवेशन ट्रांसलेश्नल रिसर्च) योजनाओं के तहत अवसर प्रदान किए गए हैं।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (एनबीएम) का समर्थन कर रहा है, जो कि एक मंत्रिमंडल स्वीकृत कार्यक्रम है और इसका शीर्षक है— बायोफार्मास्यूटिकल्स हेतु अन्वेषणात्मक अनुसंधान से प्रारंभिक विकास को गति देने के लिए उद्योग–अकादमिक सहयोगात्मक मिशन – ‘’इनोवेट इन इंडिया (i3) बायोटेक उद्यमियों को सशक्त बनाना एवं समावेशी नवाचार को तेज़ करना।” यह कार्यक्रम जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बाइरैक) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। यह मिशन भारत की नवाचार अनुसंधान और उत्पाद विकास क्षमताओं को बढ़ा रहा है, विशेष रूप से टीकों, बायोलॉजिक्स और चिकित्सा उपकरणों के विकास पर ध्यान केंद्रित करके, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से निपटने में सहायक हैं।
एनबीएम की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:
- एनबीएम के तहत 100 से अधिक बायोफार्मा-उन्मुख परियोजनाओं को समर्थन प्रदान किया गया है, जिनमें कई लघु एवं मध्यम उद्यम और स्टार्टअप्स शामिल हैं। इसके साथ ही साझा सुविधाओं (जाँच, प्रमाणीकरण, विनिर्माण) के निर्माण को भी प्रोत्साहित किया गया है, जिससे बायोलॉजिक्स, टीकों और डायग्नोस्टिक्स के लिए घरेलू क्षमता विकसित हो रही है।
- उत्पाद विकास – इस मिशन ने सफलतापूर्वक 02 कोविड-19 टीके, ZyCoV D और कॉर्बेवैक्स, डायबिटीज़ के लिए बायोसिमिलर लिराग्लूटाइड, कोविड-19 के लिए पेगिलेटेड इंटरफेरॉन अल्फा-2b, पहला स्वदेशी एमआरआई स्कैनर, सिंगल-यूज़ बायोरिएक्टर, 09 कोविड-19 डायग्नोस्टिक किट, वेंटिलेटर और रिएजेंट्स, प्रयोगशाला सूचना प्रबंधन प्रणाली, सीएचओ सेल कल्चर मीडिया जैसे उत्पाद विकसित और वाणिज्यीकृत किए हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र का सुदृढ़ीकरण – एनबीएम ने अनुसंधान और जीएमपी विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना को समर्थन दिया है, जहां 18 कार्यात्मक सुविधाओं के माध्यम से 500 से अधिक सेवाएँ प्रदान की गई हैं। भारत में पहली बार पेटेंट फाइलिंग और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुविधाजनक बनाने के लिए 7 टेक्नोलॉजी ट्रांसफर ऑफिस (टीटीओ) का नेटवर्क स्थापित किया गया है। इसके साथ ही टीकों और चिकित्सीय उत्पादों के लिए परीक्षणों को सुविधाजनक बनाने हेतु 46 जीसीपी-अनुपालक क्लीनिकल ट्रायल साइटों का नेटवर्क भी स्थापित किया गया है।
डीबीटी ने मंत्रिमंडल की मंजूरी के साथ अपनी 13 स्वायत्त संस्थाओं को समाहित करके पंजीकृत सोसाइटी के रूप में एक स्वायत्त निकाय, जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार परिषद (ब्रिक), बनाया है। ब्रिक का उद्देश्य विभिन्न डीबीटी संस्थाओं में संचालित बहुविषयक अनुसंधान, प्रशिक्षण और नवाचार कार्यक्रमों को एकीकृत करना है। ब्रिक के उपनियमों में वैज्ञानिक उद्यमिता और अनुसंधान वाणिज्यीकरण का समर्थन करने के लिए प्रावधान शामिल हैं। आईब्रिक में कार्यरत रहते हुए योजना के प्रावधानों का लाभ लेने के लिए संचालनात्मक दिशा-निर्देश और अनुमोदन प्रक्रियाएं सरल किए गए हैं और अधिसूचित किए गए हैं।
डीबीटी ने साल 2024 में मंत्रिमंडल की मंजूरी के साथ देश में उच्च प्रदर्शन वाली जैव-निर्माण क्षमता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से BioE3 नीति लागू की, जो अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार पर बखूबी प्रभाव डाल रही है।
इस पहल के तहत, जैव-निर्माण कार्यक्रम के सभी निर्दिष्ट थीमैटिक वर्टिकल्स में देशभर में बायोफाउंड्रीज और बायोमैन्युफैक्चरिंग हब स्थापित किए जा रहे हैं। इसमें "प्रिसिशन बायोथेरेप्यूटिक्स" शामिल है, जिसका उद्देश्य मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज, mRNA थेरेपीज़, सेल और जीन थेरेपीज़ तथा अन्य उन्नत प्रिसिशन मेडिसिन के घरेलू निर्माण को बढ़ावा देना है। इन कार्यक्रमों को समर्थन प्रदान किया जा रहा है।
इसके अलावा, विभाग ने अपनी “राष्ट्रीय जैवप्रौद्योगिकी पार्क योजना” के तहत हैदराबाद की जीनोम वैली में बायोफार्मा ग्रोथ फेज पार्क (बी-हब) स्थापित करने के लिए एक परियोजना का समर्थन किया है। इसका उद्देश्य बायोफार्मा स्टार्टअप्स और कंपनियों को इसकी स्केल-अप विनिर्माण सुविधा में प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट अध्ययन करने के लिए मंच प्रदान करना है। वर्तमान में, यह पार्क निर्माणाधीन है।
दवा विभाग फार्मास्यूटिकल्स के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना को लागू कर रहा है, जिसकी कुल अनुमानित बजटीय राशि ₹15,000 करोड़ है। इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में निवेश और उत्पादन बढ़ाकर भारत की विनिर्माण क्षमताओं को सुदृढ़ करना और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र में उच्च-मूल्य वाले उत्पादों के विविधीकरण में योगदान देना है। इस योजना के अंतर्गत, बायोफार्मास्यूटिकल्स को पात्र उत्पाद श्रेणियों में से एक के रूप में कवर किया गया है, जहाँ वृद्धिशील बिक्री पर 10% की दर से प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।
उपलब्धियाँ:
- सितंबर 2025 तक, इस योजना के तहत टीकों सहित 46 बायोफार्मास्यूटिकल उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है।
- इस योजना के अंतर्गत पात्र बायोफार्मास्यूटिकल्स की कुल बिक्री (वित्तीय वर्ष 2022-23 से सितंबर 2025 तक) ₹26,832 करोड़ रही है, जिसमें ₹16,290 करोड़ का निर्यात शामिल है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पशु विज्ञान संस्थान उद्यमिता और स्वदेशी बायोफार्मास्यूटिकल निर्माण को बढ़ावा दे रहे हैं। आईसीएआर-एनआईएचएसएडी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिज़ीज़) प्राथमिकता वाले टीके और डायग्नोस्टिक्स विकसित करता है। आईसीएआर-आईवीआरआई (इंडियन वेटरिनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट) का पशु विज्ञान इन्क्यूबेटर, आरकेवीवाई-आरएएफ़टीएएआर के अंतर्गत, पशुधन बायोफार्मा स्टार्टअप्स का समर्थन ₹5 लाख (नवोदय) और ₹25 लाख (समृद्धि) अनुदान के माध्यम से करता है, साथ ही अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना, मार्गदर्शन, और नियामक/वाणिज्यीकरण सहायता भी प्रदान करता है।
कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ:
- स्वदेशी पोल्ट्री टीके और डायग्नोस्टिक्स अब वाणिज्यिक रूप से निर्मित हो रहे हैं, जिससे आयात निर्भरता कम हुई है।
- चार कंपनियाँ एनआईएचएसएडी के H9N2 टीकों का निर्माण कर रही हैं, जिससे पक्षियों में फ्लू के लिए तैयारी को सुदृढ़ किया गया है।
- एक औद्योगिक साझेदार ने इंडायरेक्ट ELISA किट को वाणिज्यीकृत किया है, जिससे किफ़ायती देशव्यापी निगरानी संभव हुई है।
- आरकेवीवाई–आरएएफ़टीएएआर के तहत वित्तपोषित जेनएक्स्ट जीनोमिक्स प्रा. लि. क्लासिकल स्वाइन फीवर और ब्रुसेला के लिए डायग्नोस्टिक्स विकसित कर रही है तथा चिकित्सीय एंटीबॉडीज़, सेल लाइन्स और बायोसिमिलर्स के विकास को आगे बढ़ा रही है।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) अपनी प्रयोगशालाओं के माध्यम से उद्यमिता और स्वदेशी बायोफार्मा निर्माण को बढ़ावा देता है। विवरण और उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:
- वेंचर सेंटर (सीएसआईआर–राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (सीएसआईआर–एनसीएल), पुणे): कंपनियों को अनुसंधान एवं विकास तथा नियामक विश्लेषण में सहायता प्रदान करने के लिए जीएलपी-अनुपालक बायोफार्मा विश्लेषण केंद्र स्थापित किया गया है। इस केंद्र ने पहले लिराग्लूटाइड के विकास को सक्षम किया तथा कोवावैक्स प्लेटफॉर्म के लिए सीरम इंस्टीट्यूट की यूएस-एफडीए प्रस्तुति का समर्थन किया है।
- सीएसआईआर–केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर–सीडीआरआई), लखनऊ: स्वदेशी बायोमेडिकल एवं डायग्नोस्टिक प्रौद्योगिकियाँ विकसित करता है तथा किफायती प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से लघु एवं मध्यम उद्यमों/स्टार्टअप्स को सक्षम बनाता है। संस्थान द्वारा विकसित न्यूक्लिक-एसिड स्टेनिंग डाई के परिणामस्वरूप दो वाणिज्यिक उत्पाद—ग्रीनआर डीएनए स्टेन और रियल-टाइम ग्रीनआर मास्टर मिक्स—तैयार किए गए हैं, जो अब सरकारी ई-मार्केटिंग (जीईएम) पोर्टल पर उपलब्ध हैं।
- सीएसआईआर–सूक्ष्मजीवी प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर–आईएमटी), चंडीगढ़ ने एक जीएमपी- अनुपालक माइक्रोबियल सेल बैंक रिपॉजिटरी स्थापित की और बायोथेरेप्यूटिक्स तथा टीकों में अनुसंधान एवं विकास के लिए कई फार्मा कंपनियों के साथ एमओयू किए।
- अटल इन्क्यूबेशन सेंटर (एआईसी)–सीसीएमबी, जो सीएसआईआर–सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीएसआईआर–सीसीएमबी), हैदराबाद में स्थापित है: अटल इनोवेशन मिशन के तहत नवाचार-प्रधान बायोटेक स्टार्टअप्स का समर्थन करता है; वित्तपोषण, नियामक सुविधा, कौशल विकास और उद्योग–शिक्षा सहयोग प्रदान करता है। पिछले 7 वर्षों में इसने 220 स्टार्टअप्स का समर्थन किया, ₹250 करोड़ के निवेश की सुविधा प्रदान की, और कम से कम 12 उत्पादों के लॉन्च को सक्षम बनाया। कोविड-19 के दौरान, इसने निदान, उपचार तथा टीकों में स्वदेशी क्षमता विकसित करने में मदद की।
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पीके/केसी/पीके
(रिलीज़ आईडी: 2206342)
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