अंतरिक्ष विभाग
अंतरिक्ष विभाग - वार्षिकी 2025
प्रविष्टि तिथि:
17 DEC 2025 5:15PM by PIB Delhi
स्पेडेक्स मिशनः सम्मिलन, पृथक्करण, परिक्रमा प्रयोग समेत विद्युत् स्थानांतरण प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन
क्रॉप्स: अंतरिक्ष जैविक अनुसंधान की दिशा में एक बड़ा कदम
आदित्य एल1 डाटा प्रकाशन और पेलोड प्रदर्शन आकलन के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीसरी प्रक्षेपण पट्टी की स्थापना के लिए मंजूरी दी
इसरो ने जीएसएलवी-एफ15/एनवीएस-02 को प्रक्षेपित करने के साथ ही श्रीहरिकोटा में भारतीय अंतरिक्ष केंद्र से 100वां प्रक्षेपण पूरा किया
पीएसएलवी कक्षीय प्रायोगिक मॉड्यूल (पोएम-4) के लिए 1000 परिक्रमाएं पूर्ण
इसरो ने एससीएल चंडीगढ़ के साथ मिल कर अंतरिक्ष में उपयोग के लिए स्वदेश में निर्मित होने वाला पहला 32 बिट माइक्रोप्रोसेसर विकसित किया
आईआईटी मद्रास में उत्कृष्टता केंद्र का उद्घाटन
इसरो ने अंतरिक्षयान विद्युत प्रणोदन प्रणाली के लिए स्थैतिक प्लाज्मा प्रक्षेपक का 1000 घंटों का जीवन परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया
इसरो ने अप्रैल 2025 से छह महीनों के लिए ‘इंटरनेशनल चार्टर स्पेस एंड मेजर डिसैस्टर्स’ का नेतृत्व संभाला
इसरो के उपग्रहों ने गेहूं उपज का अनुमान लगाया
अंतरिक्ष पर जागरूकता, पहुंच और ज्ञान के लिए पूर्वोत्तर छात्र कार्यक्रम (एनई-स्पार्क्स) आरंभ
भारत ने की ग्लेक्स 2025 की मेजबानी: अंतरिक्ष अन्वेषण में वैश्विक मार्ग निर्माण
ईओएस-09 उपग्रह का पीएसएलवी-सी61 के जरिए प्रक्षेपण
इसरो ने सेमी-क्रायोजेनिक इंजन पॉवर हेड टेस्ट आर्टिकल का सफल तीसरा हॉट परीक्षण किया
इसरो ने एमएएनआईटी, भोपाल के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी उद्भवन केंद्र में एकैडमिया कनेक्ट कार्यशाला का आयोजन किया
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र में पहला भारतीय: गगनयात्री के साथ एक्जिओम-04 मिशन का सफल प्रक्षेपण और धरती पर वापसी
इसरो एकैडमिया कनेक्ट ने आईआईटी खड़गपुर में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ समागम आयोजित किया
अंतरिक्ष विभाग ने अंतरिक्ष अंतर्दृष्टि 2047 के क्रियान्वयन और इससे आगे के विचार के लिए चिंतन शिविर 2025 आयोजित किया
भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग में एक नया मुकाम: इसरो ने इसरो और नासा के साझा उपग्रह निसार का जीएसएलवी-एफ16-ए के जरिए सफल प्रक्षेपण किया
इसरो ने लद्दाख की त्सो कार घाटी में अंतरिक्ष एनालॉग मिशन आयोजित किया
एक निजी स्टार्टअप में विकसित ठोस ईंधन वाले रॉकेट मोटर ‘कलाम 1200’ का श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर सफल स्थैतिक परीक्षण
नेशनल मीट 2025 और राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस समारोह 2025 आयोजित
इसरो ने गगनयान अभियानों के लिए पहला समेकित एयर ड्रॉप परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया
कुलसेकरपट्टिणम के एसएसएलवी प्रक्षेपण परिसर में प्रक्षेपण पट्टी का शिलान्यास
एलपीएससी/इसरो में एमपीटीटीएफ और आईटीपीएफ सुविधाओं का उद्घाटन
छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यानों (एसएसएलवी) के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते पर हस्ताक्षर
सिडनी में आईएसी 2025 में भारत ने किया अंतरिक्ष उपलब्धियों का प्रदर्शन
एलवीएम3-एम5 प्रक्षेपण यान से सीएमएस-03 संचार उपग्रह का सफल प्रक्षेपण
एलवीएम3-एम5 मिशन में सी 25 क्रायोजेनिक चरण प्रदर्शन का पुर्नआरंभ
पीआरएल/इसरो ने एक नए बाह्यग्रह का पता लगाया
अंतरिक्ष चिकित्सा में सहयोग पर समझौता ज्ञापन
स्पैडेक्स मिशन: सम्मिलन, पृथक्करण और विद्युत हस्तांतरण तकनीक का प्रदर्शन, जिसमें नेविगेशन प्रयोग भी शामिल है
पीएसएलवी-सी60 ने 30 दिसंबर, 2024 को स्पैडेक्स (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) उपग्रहों को निर्धारित 474 किमी की वृत्ताकार कक्षा में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। इसके बाद, 16 जनवरी, 2025 को अंतरिक्ष में इन दोनों अंतरिक्ष यानों का सम्मिलन (जुड़ने की प्रक्रिया) सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
इस मिशन ने 'इंडिया स्पेस विजन 2047' के लिए महत्वपूर्ण स्वदेशी तकनीकों का प्रदर्शन किया, जिसमें कस्टम मिशन योजनाएं और संचालन, सेंसर, नियंत्रण एल्गोरिदम, सम्मिलन और पृथक्करण, उपग्रहों के बीच विद्युत हस्तांतरण और नेविगेशन शामिल हैं—इन सभी का अंतरिक्ष की कक्षा में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।
बाद में, पहली सम्मिलन, पृथक्करण और नेविगेशन के आधार पर ज़मीनी सिमुलेशन और अंतरिक्ष परीक्षणों के बाद, स्पैडेक्स प्लेटफॉर्म और अंतरिक्ष यान 20 अप्रैल, 2025 को फिर से जुड़ गए। इसके बाद, अंतरिक्ष यान 'संयुक्त नियंत्रण मोड' में चले गए और उनके बीच विद्युत हस्तांतरण का परीक्षण 21 अप्रैल, 2025 को सफलतापूर्वक पूरा किया गया।
चित्र - स्पैडेक्स उपग्रह
चित्र - डॉकिंग तंत्र
क्रॉप्स: अंतरिक्ष जैविक अनुसंधान की दिशा में एक बड़ा कदम
क्रॉप्स का पूर्ण रूप कॉम्पैक्ट रिसर्च मॉड्यूल फॉर ऑर्बिट प्लांट्स स्टडीज (कक्षीय पादप अध्ययन हेतु सघन अनुसंधान मॉड्यूल) है। यह एक मानवरहित प्रयोगात्मक मॉड्यूल है जो इसरो को अंतरिक्ष में पौधे उगाने और उनके रखरखाव के कौशल विकसित करने में मदद करता है। इसके पहले मिशन, क्रॉप्स-1 का उद्देश्य अंतरिक्ष की कक्षा में बीजों के अंकुरण और 'दो-पत्ती' के स्तर तक पौधों की वृद्धि का प्रदर्शन करना था। क्रॉप्स-1 ने पीएसएलवी-सी60 मिशन के दौरान पीओइएम-4 प्लेटफॉर्म पर एक पेलोड के रूप में उड़ान भरी, जहाँ 5 से 7 दिनों तक बीजों के अंकुरण और पौधों के जीवित रहने का परीक्षण किया गया। विभिन्न बीजों पर किए गए ज़मीनी परीक्षणों के बाद, लोबिया (वैज्ञानिक नाम: विग्ना उंगुइकुलाटा) को इसके तेजी से अंकुरण की क्षमता के कारण चुना गया था। मुख्य उपग्रह के प्रक्षेपण और अलग होने के बाद, पीओइएम प्लेटफॉर्म 350 किमी की निचली कक्षा में आया और क्रॉप्स-1 पेलोड को सक्रिय किया गया। मिशन के दौरान सभी प्रणालियों ने सामान्य रूप से कार्य किया, और तापमान को 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच नियंत्रित रखा गया। लगभग 90 मिनट के बाद, ज़मीन पर नियंत्रकों ने मिट्टी में पानी डालने के लिए एक इलेक्ट्रिक वाल्व खोला। बाद की कक्षाओं से प्राप्त आंकड़ों ने कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर को दिखाया, जो बीजों के अंकुरण का संकेत था। चौथे दिन, बीज अपनी बंद टिश्यू स्ट्रिप्स से फूटने लगे। पाँचवें दिन तक, अंकुरों पर दो पत्तियाँ दिखाई देने लगीं, जिसके बाद मिशन का लक्ष्य पूरी तरह से सफल रहा।
30 दिसंबर 2024 को कक्षा से प्राप्त क्रॉप्स का चित्र
6 जनवरी 2025 को कक्षा से प्राप्त क्रॉप्स का चित्र
आदित्य एल1 डाटा प्रकाशन और पेलोड प्रदर्शन आकलन के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित
6 जनवरी, 2025 को, इसरो ने भारत की पहली सौर वेधशाला—आदित्य-एल1 से वैज्ञानिक डेटा का पहला बैच बेंगलुरु स्थित इसरो मुख्यालय में दुनिया भर के वैज्ञानिकों के साथ साझा किया। यह तारीख सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के पहले लैग्रेंज बिंदु (एल1) के चारों ओर अपनी 'हेलो ऑर्बिट' में आदित्य-एल1 के प्रवेश की पहली वर्षगांठ थी। इस राष्ट्रीय बैठक में 15 भारतीय विश्वविद्यालयों और अनुसंधान केंद्रों के 40 वैज्ञानिकों, कई शिक्षाविदों और छात्रों ने भाग लिया।
प्रारंभिक डेटासेट में मिशन के सभी सात सुदूर संवेदन (रिमोट-सेंसिंग) और ऑन-साइट (स्व-स्थान) प्रयोगों के अवलोकन शामिल थे। इस कार्यक्रम के बाद अंतरिक्ष यान के उपकरणों के प्रदर्शन की समीक्षा की गई। इसके बाद, इसरो ने 14 फरवरी, 2025 को डेटा का दूसरा बैच जारी किया। ये डेटासेट सूर्य की सतह (फोटोस्फीयर), निचले वायुमंडल (क्रोमोस्फीयर) और बाहरी वायुमंडल (कोरोना) के साथ-साथ एल 1 पर कणों और चुंबकीय क्षेत्रों के प्रत्यक्ष माप के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।
चित्र-आदित्य L1 डेटा रिलीज़ पर राष्ट्रीय बैठक
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीसरी प्रक्षेपण पट्टी की स्थापना को मंजूरी दी
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में तीसरी प्रक्षेपण पट्टी की स्थापना को मंजूरी दे दी है।
तीसरी लॉन्च पैड परियोजना के तहत आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में इसरो के अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान-एनजीएलवी के प्रक्षेपण के लिए बुनियादी ढांचे की स्थापना की परिकल्पना की गई है। साथ ही, यह श्रीहरिकोटा स्थित दूसरी प्रक्षेपण पट्टी के लिए एक अतिरिक्त प्रक्षेपण पट्टी के रूप में भी सहायता प्रदान की जाएगी। यह भविष्य के भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशनों के लिए प्रक्षेपण क्षमता को भी बढ़ाएगा।
इसरो ने जीएसएलवी-एफ15/एनवीएस-02 को प्रक्षेपित करने के साथ ही श्रीहरिकोटा में भारतीय अंतरिक्ष केंद्र से 100वां प्रक्षेपण पूरा किया
29 जनवरी, 2025 को, इसरो ने जीएसएलवी रॉकेट की 17वीं उड़ान के साथ श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से अपने 100वें प्रक्षेपण की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। इस मिशन ने एनवीएस-02 नेविगेशन उपग्रह को सफलतापूर्वक निर्धारित जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में स्थापित कर दिया। सारे रॉकेट ने पूरी तरह से काम किया और कक्षा में सटीकता के साथ पहुंचा दिया। हालांकि, उपग्रह को उसके अंतिम स्थान तक ले जाने के लिए ऑर्बिट-रेजिंग (कक्षा बढ़ाना) के चरण पूरे नहीं हो सके, क्योंकि थ्रस्टर्स को ऑक्सीडाइज़र भेजने वाले वाल्व नहीं खुले। उपग्रह की सभी प्रणालियाँ स्वस्थ हैं और वर्तमान में यह एक वृत्ताकार कक्षा में है।
पीएसएलवी कक्षीय प्रायोगिक मॉड्यूल (पोएम-4) के लिए 1000 परिक्रमाएं पूर्ण
पीएसएलवी के चौथे चरण (पीएस4) ने पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल (पीओइएम-4) के रूप में कार्य किया और यह अपने साथ 24 पेलोड लेकर गया था—जिनमें से 10 गैर-सरकारी संस्थाओं (निजी स्टार्टअप और शैक्षणिक संस्थान) के थे और 14 इसरो के थे। गैर-सरकारी समूहों के पेलोड सहित सभी पेलोड ने अंतरिक्ष की कक्षा में अपने नियोजित प्रयोगों को सफलतापूर्वक पूरा किया।
पीओइएम-4 ने 4 मार्च, 2025 को अपनी 1,000 कक्षाएं पूरी कीं। इसने अंतरिक्ष रोबोटिक्स, सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण में बीजों के अंकुरण और बैक्टीरिया की वृद्धि, ग्रीन प्रोपल्शन (हरित प्रणोदन), थ्रस्टर्स के लेजर इग्निशन, एमेच्योर रेडियो सिग्नल और उन्नत सेंसर जैसे विभिन्न प्रयोगों का परीक्षण किया। एक अंतरिक्ष स्टार्टअप ने कक्षा में एआई लैब के हिस्से के रूप में एक एआई मॉडल को भी अपलोड किया और सफलतापूर्वक चलाया। पीओइएम-4 ने अब तक के किसी भी मिशन की तुलना में सबसे अधिक पेलोड ले जाने का रिकॉर्ड बनाया, जो पिछले तीन पीओइएम मिशनों से कहीं अधिक है। इसने एक बार फिर विविध प्रयोगों के लिए एक कम लागत वाले और लचीले प्लेटफॉर्म के रूप में अपनी उपयोगिता साबित की।
इसरो ने एससीएल चंडीगढ़ के साथ मिल कर अंतरिक्ष में उपयोग के लिए स्वदेश में निर्मित होने वाला पहला 32 बिट माइक्रोप्रोसेसर विकसित किया
5 मार्च, 2025 को, अंतरिक्ष में उपयोग के लिए बनाए गए दो 32-बिट माइक्रोप्रोसेसरों— ‘विक्रम’ 3201 और ‘कल्पना’ 3201 के पहले बैच को नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव श्री एस. कृष्णन ने अंतरिक्ष विभाग के सचिव/इसरो अध्यक्ष डॉ. वी. नारायणन को सौंपा। इस कार्यक्रम का आयोजन चंडीगढ़ स्थित सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला (एससीएल) द्वारा किया गया था। इन माइक्रोप्रोसेसरों को इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र द्वारा एससीएल के साथ मिलकर डिजाइन और विकसित किया गया था।
विक्रम 3201 पहला पूर्णत "मेक-इन-इंडिया"32-बिट माइक्रोप्रोसेसर है, जिसे प्रक्षेपण यान की कठिन पर्यावरणीय स्थितियों में उपयोग के लिए प्रमाणित किया गया है। इसका उत्पादन चंडीगढ़ स्थित एससीएल के 180 एनएम सीएमओ सेमीकंडक्टर प्लांट में किया गया था। यह 16-बिट प्रोसेसर विक्रम 1601 का एक उन्नत संस्करण है, जो 2009 से इसरो के प्रक्षेपण वाहन प्रणालियों को शक्ति प्रदान कर रहा है।
‘कल्पना’ 3201 एक 32-बिट स्पार्क वी 8 आरआईएससी माइक्रोप्रोसेसर है, जो आईइइइ 1754 इंस्ट्रक्शन सेट आर्किटेक्चर पर आधारित है। यह ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर टूल्स के साथ-साथ कस्टम सिमुलेटर और डेवलपमेंट एनवायरनमेंट के लिए सहायक है। इसका परीक्षण वास्तविक फ्लाइट सॉफ्टवेयर के साथ सफलतापूर्वक किया जा चुका है।
आईआईटी मद्रास में उत्कृष्टता केंद्र का उद्घाटन
इसरो अध्यक्ष/अंतरिक्ष विभाग के सचिव द्वारा 17 मार्च, 2025 को आईआईटी-मद्रास में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' का उद्घाटन किया, जो मुख्य रूप से द्रव और तापीय विज्ञान के क्षेत्र में उन्नत अनुसंधान के लिए समर्पित है। इस केंद्र का नाम इसरो के दिग्गज वैज्ञानिक और एलपीएससी व वीएसएससी के पूर्व निदेशक दिवंगत डॉ. एस. रामकृष्णन के सम्मान में रखा गया है, जो स्वयं आईआईटी-मद्रास के पूर्व छात्र रहे थे।
11 नवंबर, 2024 को इसरो और आईआईटी-मद्रास के बीच द्रव और तापीय विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य इसरो के अंतरिक्ष यान और प्रक्षेपण यानों के विभिन्न 'फ्लुइड-थर्मल' घटकों के डिजाइन, विश्लेषण और परीक्षण के दौरान आने वाली जटिल तापीय और द्रव संबंधी समस्याओं का समाधान करना है। यह सहयोग अकादमिक अनुसंधान और व्यावहारिक अंतरिक्ष इंजीनियरिंग के बीच के अंतर को पाटते हुए भविष्य के मिशनों के लिए उन्नत स्वदेशी तकनीकी समाधान विकसित करने में मदद करेगा।
इसरो ने अंतरिक्षयान विद्युत प्रणोदन प्रणाली के लिए स्थैतिक प्लाज्मा प्रक्षेपक का 1000 घंटों का जीवन परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया
27 मार्च, 2025 को इसरो ने उपग्रहों की विद्युत प्रणोदन प्रणाली के लिए विकसित 300एमएन स्टेशनरी प्लाज्मा थ्रस्टर का 1000 घंटे का परिक्षण सफलतापूर्वक संपन्न किया। यह विद्युत प्रणोदन प्रणाली भविष्य में इसरो के उपग्रहों में पारंपरिक रासायनिक प्रणोदन प्रणाली का स्थान लेगी, जिससे उन संचार उपग्रहों के लिए रास्ता साफ होगा जो अपनी कक्षा बढ़ाने और स्टेशन को बनाये रखने के लिए पूरी तरह से विद्युत ऊर्जा का उपयोग करेंगे। इस तकनीक का सबसे बड़ा लाभ उपग्रह के वजन में भारी कमी लाना है, क्योंकि इससे भारी ईंधन ले जाने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है और उपग्रह का जीवनकाल भी बढ़ जाता है।
इन थ्रस्टर्स के शामिल होने से उपग्रह के वजन में व्यापक बचत होगी, जिससे संचार उपग्रहों में ट्रांसपोंडर क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलेगी। ये थ्रस्टर क्सीनन का प्रणोदक के रूप में उपयोग करते हैं। विद्युत प्रणोदन प्रणाली का विशिष्ट आवेग जो अंतरिक्ष प्रणोदन प्रणाली का एक प्रमुख प्रदर्शन संकेतक है, पारंपरिक प्रणोदन प्रणाली की तुलना में कम से कम 6 गुना अधिक है। यह परीक्षण अंतरिक्ष की निर्वात स्थितियों को सिमुलेट करने वाले एक चैंबर में 5.4कि.वा. के पूर्ण पावर स्तर पर रखा गया था और इस दौरान इलेक्ट्रोड लाइनर्स के कटाव की भी समय-समय पर निगरानी की गई।
इसरो ने अप्रैल 2025 से छह महीनों के लिए ‘इंटरनेशनल चार्टर स्पेस एंड मेजर डिसैस्टर्स’ का नेतृत्व संभाला
भारत ने अपनी अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के माध्यम से अप्रैल 2025 से 'अंतर्राष्ट्रीय चार्टर अंतरिक्ष और बड़ी आपदाओं' पर छह महीने की नेतृत्वकारी भूमिका निभाकर अंतरिक्ष-आधारित आपदा प्रबंधन में अपनी मजबूत क्षमता का प्रदर्शन किया। इस कार्यकाल की शुरुआत इसरो के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र द्वारा 14-17 अप्रैल, 2025 तक हैदराबाद में चार्टर की 53वीं बैठक की मेजबानी के साथ हुई। इस बैठक में दुनिया की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों और व्यक्तिगत रूप से उपस्थित 22 विदेशी प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
भारत इस चार्टर का एक संस्थापक सदस्य और हस्ताक्षरकर्ता है, जिसने 2025 में अपनी 25वीं वर्षगांठ मनाई। यह चार्टर 17 संगठनों का एक सामूहिक मंच है, जो दुनिया भर में आपदा प्रबंधन में मदद करने के लिए पृथ्वी अवलोकन डेटा और उपयोगी उत्पादों को आपस में साझा करता है।
अगले छह महीनों के दौरान, एनआरएससी/इसरो अंतरिक्ष उपकरणों का उपयोग करके चार्टर की वैश्विक आपदा की जानकारी देने में नेतृत्व करेगा। इसमें आपदा सक्रियण अनुरोधों का प्रबंधन, आपदा से संबंधित डेटा उत्पादों को तेजी से पहुँचाना, चार्टर की रणनीतियों का मार्गदर्शन करना और प्रशिक्षण, आउटरीच व क्षमता निर्माण के प्रयासों में सहायता करना शामिल है।
इसरो के उपग्रहों ने गेहूं उपज का अनुमान लगाया
इसरो ने सुदूर संवेदन उपग्रह के माध्यम से किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया है कि 31 मार्च, 2025 तक भारत के आठ प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में कुल गेहूं उत्पादन 122.724 मिलियन टन होगा।
क्रॉप (कंप्रिहेंसिव रिमोट सेंसिंग ऑब्जर्वेशन ऑन क्रॉप प्रोग्रेस) एक अर्ध-स्वचालित और मापनीय फ्रेमवर्क है, जिसे इसरो के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र द्वारा विकसित किया है। यह पूरे भारत में रबी सीजन के दौरान फसलों की बुवाई और कटाई की वास्तविक समय पर निगरानी करता है। इस दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, रबी सीजन 2024-25 के लिए ईओएस-04 (आरआईएसएटी-1ए), ईओएस-06 (ओशनसैट-3) और रिसोर्ससैट-2ए से प्राप्त ऑप्टिकल और सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर) डेटा के माध्यम से गेहूं के बुवाई क्षेत्र और फसल की समग्र स्थिति का व्यवस्थित मूल्यांकन किया गया।
31 मार्च, 2025 तक उपग्रह डेटा से प्राप्त जानकारी में गेहूं का बुवाई क्षेत्र 330.8 लाख हेक्टेयर रहा है, यह कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 4 फरवरी, 2025 को जारी आंकड़ों (324.38 लाख हेक्टेयर) के काफी करीब है।
राष्ट्रीय स्तर पर गेहूं के उत्पादन का प्रायोगिक मूल्यांकन एक प्रक्रिया-आधारित फसल विकास सिमुलेशन मॉडल में उपग्रह से प्राप्त मापदंडों—जैसे कि फसल क्षेत्र, बुवाई की तारीख की जानकारी और सीजन के दौरान फसल की स्थिति—को समाहित करके किया जाता है। यह विश्लेषण 5 किमी x 5 किमी के स्थानिक विभेदन पर किया जाता है।
उत्तर पूर्व छात्रों के लिए अंतरिक्ष पर जागरूकता, पहुंच और ज्ञान कार्यक्रम (एनई-स्पार्क्स) आरंभ
उत्तर-पूर्वी छात्र जागरूकता, पहुँच और अंतरिक्ष ज्ञान कार्यक्रम (एनई-स्पार्क्स) एक अनूठी पहल है, जिसका उद्देश्य भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के छात्रों के बीच अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रति जिज्ञासा जगाना और जागरूकता बढ़ाना है। यह कार्यक्रम बेंगलुरु स्थित इसरो केंद्रों के भ्रमण के माध्यम से छात्रों को भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान और अन्वेषण की प्रगति का प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करता है, जिससे भौगोलिक और सूचनात्मक दूरियों को पाटने का प्रयास किया जाता है।
यह कार्यक्रम अप्रैल 2025 से दिसंबर 2025 तक कम से कम एक महीने के अंतराल पर आठ बैचों में चलाया जा रहा है। अब तक 7 बैचों में लगभग 700 छात्रों को एक सावधानीपूर्वक तैयार किए गए 'गाइडेड टूर' के माध्यम से अत्याधुनिक तकनीकों को देखने और प्रख्यात वैज्ञानिकों व इंजीनियरों के साथ बातचीत करने का अवसर प्रदान किया गया है। छात्रों ने इसरो के अज्ञात जानकारी को खोजने के मिशन के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त की, जिससे वे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) के क्षेत्र में अपना भविष्य संवारने के लिए प्रेरित हुए। छात्रों को उपग्रह नियंत्रण केंद्र (एससीसी), मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स (एमओएक्स) और ब्याललू स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) का दौरा करने का अवसर मिला, जहाँ उन्होंने उपग्रह संचालन और गहरे अंतरिक्ष संचार की प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त की। इसके अलावा, उन्होंने यू.आर. राव उपग्रह केंद्र (यूआरएससी) का भ्रमण किया, जहाँ उन्होंने अंतरिक्ष यान एकीकरण सुविधाओं और यूआरएससी प्रदर्शनी क्षेत्र को देखा। साथ ही, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू तारामंडल का भी दौरा किया। वहां 'गगनयान' मिशन पर एक प्रभावशाली व्याख्यान और तारामंडल शो आयोजित किया गया था।
भारत ने की ‘ग्लेक्स 2025’की मेजबानी: अंतरिक्ष अन्वेषण में वैश्विक मार्ग निर्माण
7 से 9 मई, 2025 के बीच नई दिल्ली में आयोजित ‘ग्लोबल स्पेस एक्सप्लोरेशन कॉन्फ्रेंस 2025’ (ग्लेक्स) में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की। इस शिखर सम्मेलन की सह-मेजबानी इसरो और एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा 'इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन' के तत्वावधान में की गई। 'रीचिंग न्यू वर्ल्ड्स: ए स्पेस एक्सप्लोरेशन रेनेसां' थीम पर आधारित इस उच्च-स्तरीय सम्मेलन में 35 से अधिक देशों के नेताओं, अंतरिक्ष यात्रियों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया, जिसने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष कूटनीति और नवाचार में भारत की केंद्रीय भूमिका को और अधिक सुदृढ़ किया। ग्लेक्स (जीएलइएक्स) 2025 के दौरान 15 विषयगत क्षेत्रों और 10 तकनीकी सत्रों में 240 से अधिक प्रस्तुतियां दी गईं जिनमें अंतरिक्ष अन्वेषण में वैश्विक प्रगति को प्रदर्शित किया गया।
ईओएस-09 उपग्रह का पीएसएलवी-सी61 के जरिए प्रक्षेपण
इसरो के 101वें प्रक्षेपण प्रयास, पीएसएलवी-सी61 मिशन का उद्देश्य 1,696 किलोग्राम वजनी इओएस-09 पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को 505 किमी की सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करना था। इस उपग्रह को कृषि, आपदा प्रबंधन और निगरानी के लिए भारत की 'ऑल-वेदर' (हर मौसम में सक्षम) रडार इमेजिंग क्षमताओं को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया था। यह पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल की 63वीं उड़ान और इसके पीएसएलवी-एक्सएल कॉन्फ़िगरेशन का 27वां उपयोग था। 18 मई, 2025 को प्रक्षेपण का प्रयास किया गया और द्वितीय चरण तक रॉकेट का प्रदर्शन सामान्य रहा, लेकिन तीसरे चरण में खराबी के कारण मिशन पूरा नहीं हो सका।
इसरो ने सेमी-क्रायोजेनिक इंजन पॉवर हेड टेस्ट आर्टिकल का सफल तीसरा हॉट परीक्षण किया
इसरो ने मार्च 2025 में सेमी-क्रायोजेनिक इंजन पावर हेड टेस्ट आर्टिकल (पीएचटीए) के प्रदर्शन मूल्यांकन परीक्षणों की एक श्रृंखला शुरू की, जिसमें थ्रस्ट चैंबर को छोड़कर इंजन की सभी प्रणालियां शामिल हैं। इन परीक्षणों की योजना प्रोपेलेंट फीड सिस्टम के डिजाइन को सत्यापित करने के लिए बनाई गई थी, जिसमें कम दबाव और उच्च दबाव वाले टर्बो-पंप, प्री-बर्नर, स्टार्ट सिस्टम और नियंत्रण घटक शामिल हैं। 28 मई, 2025 को, पीएचटीए ने इसरो प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स (आईपीआरसी), महेंद्रगिरि में अपना तीसरा 'हॉट टेस्ट' परीक्षण पूरा किया। इसका उद्देश्य इंजन के इग्निशन और स्टार्ट-अप अनुक्रम को मान्य करना और एकीकृत इंजन के लिए एक अधिकतम अनुक्रम प्राप्त करना था। परीक्षण के दौरान, इंजन को सफलतापूर्वक चालू किया गया और इसे इसके निर्धारित शक्ति स्तर के 60% तक संचालित किया गया, जिसने पूरी फायरिंग के दौरान स्थिर और नियंत्रित का प्रदर्शन किया। पीएचटीए के इससे पहले दो हॉट टेस्ट हो चुके हैं। 28 मार्च, 2025 को हुए पहले परीक्षण में 2.5 सेकंड की छोटी अवधि के लिए सुचारू इग्निशन और 'बूटस्ट्रैप' ऑपरेशन का प्रदर्शन किया गया था। 24 अप्रैल, 2025 को हुए दूसरे हॉट टेस्ट में 3.5 सेकंड की अवधि के लिए हॉट-फायरिंग करके 'स्टार्ट ट्रांजिएंट बिल्ड-अप' का प्रदर्शन किया गया और स्टार्ट-अप सीक्वेंस का परीक्षण किया गया। तीसरा परीक्षण, स्टार्ट-अप सीक्वेंस को और अधिक बेहतर बनाने और अंतिम रूप देने के लिए 3 सेकंड की अवधि के लिए किया गया था।
एसइ 2000 इंजन केएन-क्लास द्वारा संचालित सेमी-क्रायोजेनिक प्रोपल्शन स्टेज (एससी 120) को एलवीएम 3 प्रक्षेपण यान के वर्तमान लिक्विड कोर स्टेज (एल110) को बदलने के लिए विकसित किया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य रॉकेट की पेलोड ले जाने की क्षमता को काफी हद तक बढ़ाना है।
इसरो ने एमएएनआईटी, भोपाल के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी उद्भवन केंद्र में एकैडमिया कनेक्ट कार्यशाला का आयोजन किया
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 22 मई, 2025 को 'मानित' भोपाल में मध्य क्षेत्र (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़) के लिए एक दिवसीय एकेडेमिया कनेक्ट कार्यशाला का आयोजन किया। अंतरिक्ष विभाग के सचिव और इसरो के अध्यक्ष डॉ. वी. नारायणन ने 'मानित' भोपाल के निदेशक डॉ. के. के. शुक्ला और इसरो के वैज्ञानिक सचिव श्री एम. गणेश पिल्लई की गरिमामय उपस्थिति में इस कार्यशाला का उद्घाटन किया।
इसरो और अंतरिक्ष विभाग के विभिन्न केंद्रों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उन संभावित अनुसंधान क्षेत्रों पर व्याख्यान दिए, जहाँ शिक्षा जगत और इसरो मिलकर काम कर सकते हैं। इस कार्यक्रम में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 70 इंजीनियरिंग कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के 200 से अधिक शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया।
अन्तराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने वाले पहले भारतीय: गगनयात्री शुभांशु शुक्ला के साथ एक्सिओम-04 मिशन सफलतापूर्वक पूरा हुआ।
एक्सिओम-04 मिशन तब सफलतापूर्वक समाप्त हुआ जब इसरो के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर लौट आए। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर उनके ऐतिहासिक 18 दिनों के वैज्ञानिक प्रवास के बाद यह इसरो और भारत के लिए गर्व का क्षण था। यह मिशन 25 जून, 2025 को स्पेसएक्स ड्रैगन अंतरिक्ष यान 'ग्रेस' के माध्यम से शुरू किया गया था, जो नासा, एक्सिओम स्पेस और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (इएसए) के साथ एक वैश्विक साझेदारी थी। 15 जुलाई, 2025 को कैलिफोर्निया के तट के पास प्रशांत महासागर में एक सफल 'स्प्लैशडाउन' के साथ उनकी वापसी हुई।
अन्तराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अपने प्रवास के दौरान, शुभांशु शुक्ला ने सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण वातावरण में खुद को असाधारण रूप से अच्छी तरह से ढाल लिया। अंतरिक्ष यान की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने पूरे मिशन के दौरान अपना स्वास्थ्य बनाए रखा। उन्होंने कक्षा में जीवन और कार्य को प्रमाणित करने वाले फोटोग्राफ और वीडियो की एक विस्तृत श्रृंखला तैयार की। उन्होंने मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (एचएसएफसी) के समन्वय में भारतीय अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित सात सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण प्रयोगों के एक सेट को भी सफलतापूर्वक पूरा किया।
इन प्रयोगों ने मांसपेशियों के पुनर्जनन, शैवाल की वृद्धि, फसल की व्यवहार्यता, सूक्ष्मजीवी उत्तरजीविता, अंतरिक्ष में संज्ञानात्मक प्रदर्शन और साइनोबैक्टीरिया के व्यवहार का पता लगाया। प्रत्येक प्रयोग का उद्देश्य मानव अंतरिक्ष उड़ान और सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण विज्ञान की समझ को बढ़ाना था।
इस मिशन में भारत की अंतरिक्ष सफलता को जनता और युवाओं के साथ साझा करने के लिए मजबूत सार्वजनिक संपर्क कार्यक्रम शामिल थे। इन गतिविधियों ने अगली पीढ़ी को प्रेरित किया और राष्ट्रीय गौरव का जश्न मनाया। 28 जून, 2025 को, शुभांशु ने अन्तराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक वीडियो के जरिये लाइव बातचीत की। माननीय प्रधानमंत्री ने भारत की अंतरिक्ष यात्रा में उनकी भूमिका की सराहना की और कक्षा में भारतीय ध्वज को देखकर पूरे देश के साथ खुशी साझा की। इस कार्यक्रम को भारत में करोड़ों दर्शकों ने देखा और यह भारत की अंतरिक्ष साझेदारी में एक प्रमुख कदम बन गया। इसके बाद, 3 जुलाई, 2025 को गगनयात्री शुभांशु शुक्ला ने वीडियो लिंक के माध्यम से तिरुवनंतपुरम और लखनऊ के स्कूली छात्रों के साथ बातचीत की, जहाँ उन्होंने अंतरिक्ष यात्री बनने और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जीवन से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए।
इसरो एकैडमिया कनेक्ट ने आईआईटी खड़गपुर में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ समागम आयोजित किया
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर के सहयोग से 1 और 2 जुलाई, 2025 को आईआईटी खड़गपुर में इसरो- एसटीसी समागम के दूसरे संस्करण का आयोजन किया।
इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ. वी. नारायणन ने सम्मेलन का उद्घाटन किया और इसरो के वैज्ञानिक सचिव तथा आईआईटी खड़गपुर के निदेशक की उपस्थिति में 'इसरो-एसटीसी समागम कार्यवाही' पर रिपोर्ट जारी की। यह दस्तावेज़ देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में इसरो द्वारा स्थापित 9 अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सेल (एसटीसी) की चुनिंदा शोध परियोजनाओं का एक व्यापक संकलन है। इन परियोजनाओं ने महत्वपूर्ण तकनीकी प्रासंगिकता प्रदर्शित की है और अंतरिक्ष यान प्रणाली, प्रणोदन, सेंसर, सामग्री और एआई अनुप्रयोगों जैसे क्षेत्रों में विभिन्न इसरो मिशनों में सीधे योगदान दिया है।
अंतरिक्ष विभाग ने 'स्पेस विज़न 2047' को लागू करने और उससे आगे की कल्पना करने के लिए चिंतन शिविर 2025 का आयोजन किया
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के निर्देशानुसार, 'स्पेस विजन 2047' में परिकल्पित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए रणनीतियों, कार्य योजनाओं और महत्वपूर्ण पड़ावों को आगे बढ़ाने के साथ-साथ 2047 के बाद की अंतरिक्ष दृष्टि को विकसित करने के उद्देश्य से, अंतरिक्ष विभाग ने 16 से 18 जुलाई, 2025 तक तीन दिवसीय कार्यशाला 'चिंतन शिविर 2025' का आयोजन किया। इस तीन दिवसीय कार्यशाला का विषय 'इम्प्लीमेंटिंग स्पेस विजन 2047 एंड लुकिंग बियॉन्ड' रखा गया था, जो कार्यशाला के मुख्य उद्देश्यों के अनुरूप है।
कार्यशाला में इसरो, एनएसआईएल, आईएन-स्पेस, डीओएस और अंतरिक्ष विभाग के अन्य स्वायत्त प्रतिष्ठानों के विशेषज्ञों को एक साथ ले कर आया ताकि अंतरिक्ष विभाग ‘अंतरिक्ष विजन 2047’ पर फिर से विचार करके और 2047 से आगे के ‘अंतरिक्ष विजन’ विकसित करने के लिए एक व्यापक रोडमैप तैयार कर सके। विशेषज्ञों की चर्चा में अंतरिक्ष परिवहन, अंतरिक्ष अवसंरचना, अंतरिक्ष अनुप्रयोगों, मानव अंतरिक्ष अन्वेषण, भारतीय अंतरिक्ष उद्योगों और अंतरिक्ष व्यवसाय को सक्षम करने सहित लगभग 11 महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर विचार किया गया।
भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग में एक नया मुकाम: इसरो ने इसरो और नासा के साझा उपग्रह निसार का जीएसएलवी-एफ16-ए के जरिए सफल प्रक्षेपण किया
इसरो और नासा के पहले संयुक्त उपग्रह, नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (निसार) का 30 जुलाई, 2025 को भारतीय समयानुसार 17:40 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से इसरो के जीएसएलवी-एफ 16 रॉकेट द्वारा सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।
2392 किलोग्राम वजनी निसार एक अनोखा पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है। यह दोहरी आवृत्ति सिंथेटिक अपर्चर रडार (नासा का एल-बैंड और इसरो का एस-बैंड) के साथ पृथ्वी का अवलोकन करने वाला पहला उपग्रह है। ये दोनों रडार नासा के 12 मीटर लंबे खुलने योग्य मेश रिफ्लेक्टर एंटीना का उपयोग करते हैं, जिसे इसरो के संशोधित ‘I3के’ उपग्रह बस के साथ मिलाया गया है। निसार पहली बार 'स्वीपसार' तकनीक का उपयोग करके 242 किमी की चौड़ाई और उच्च स्थानिक रिज़ॉल्यूशन के साथ पृथ्वी का अवलोकन करता है। यह उपग्रह 12 दिनों के अंतराल पर पूरे विश्व को स्कैन करता है और सभी मौसमों में, दिन और रात का डेटा प्रदान करता है, जिससे कई प्रकार के अनुप्रयोग संभव होते हैं।
निसार पृथ्वी की सतह पर होने वाले मामूली परिवर्तनों का भी पता लगा सकता है, जैसे कि जमीन का विरूपण, हिमचादरों की गति और वनस्पति की गतिशीलता। इसके अतिरिक्त अनुप्रयोगों में समुद्री बर्फ का वर्गीकरण, जहाजों का पता लगाना, तटरेखा की निगरानी, तूफानों का लक्षण वर्णन, मिट्टी की नमी में बदलाव, सतही जल संसाधनों का मानचित्रण और निगरानी तथा आपदा प्रतिक्रिया शामिल हैं।
निसार का प्रक्षेपण एक दशक से भी अधिक समय तक इसरो और नासा/जेपीएल तकनीकी टीमों के बीच सहयोग का परिणाम है।
इसरो ने लद्दाख की त्सो कार घाटी में अंतरिक्ष एनालॉग मिशन का आयोजन किया
भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम, इसरो के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय प्रयास है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी की निचली कक्षा (एलइओ) से शुरू होकर सौर मंडल में मानव उपस्थिति का विस्तार करना और 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय चालक दल को उतारना है। इसके लिए अंतरिक्ष उड़ान मिशनों से जुड़ी विभिन्न शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और परिचालन चुनौतियों के समाधान के लिए आवश्यक 'भारतीय डेटा' उत्पन्न करने हेतु व्यवस्थित अध्ययन की आवश्यकता है। इस संबंध में, मानव अंतरिक्ष मिशन के कुछ पहलुओं का अनुकरण करने वाले वातावरण में जमीन-आधारित एनालॉग मिशन, मानव स्वास्थ्य और प्रदर्शन जोखिमों को समझने का अवसर प्रदान करते हैं।
इसरो का मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (एचएसएफसी) आगामी मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए इस प्रयास का नेतृत्व कर रहा है। एचएसएफसी की टीम ने नवंबर 2024 में लद्दाख ह्यूमन एनालॉग मिशन (एलएचएएम) का संचालन किया और जुलाई 2025 में इसरो के 'गगनयात्री' को शामिल करते हुए दस दिवसीय पृथक अध्ययन 'अनुगामी' में भागीदारी की। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए, 31 जुलाई 2025 को अंतरिक्ष विभाग के सचिव और इसरो के अध्यक्ष डॉ. वी. नारायणन ने लद्दाख की त्सो कर घाटी में 'हिमालयन आउटपोस्ट फॉर प्लैनेटरी एक्सप्लोरेशन' (होप) एनालॉग मिशन का उद्घाटन किया।
उद्घाटन के बाद, औद्योगिक भागीदार ने राष्ट्रीय संस्थानों जैसे आईआईएसटी और आरजीसीबी, तिरुवनंतपुरम,आईआईटी हैदराबाद, आईआईटी बॉम्बे और इंस्टीट्यूट फॉर एयरोस्पेस मेडिसिन (बेंगलुरु) से चुने गए प्रयोगों के साथ 10-दिवसीय एचओपीइ (होप) एनालॉग मिशन का आयोजन किया। इन संस्थानों के जांचकर्ताओं ने दो एनालॉग मिशन क्रू सदस्यों की एपिजेनेटिक, जीनोमिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं का परीक्षण किया। साथ ही, स्वास्थ्य-निगरानी प्रोटोकॉल, ग्रहों की सतह पर किए जाने वाले कार्यों को सत्यापित किया गया और नमूना संग्रह तथा सूक्ष्मजीवी विश्लेषण तकनीकों को परिष्कृत किया गया। इससे प्राप्त मूल्यवान डेटा तकनीकी प्रदर्शन, क्रू वर्कफ़्लो और पर्यावरणीय अनुकूलन में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करके भविष्य के भारतीय मानव अन्वेषण मिशनों के बुनियादी ढांचे और प्रोटोकॉल के डिजाइन का आधार बनेगा।
होप एक विशेष रूप से निर्मित अंतरिक्ष केंद्र है, जिसमें चालक दल के रहने के लिए 8 मीटर व्यास वाला 'हैबिटेट मॉड्यूल' और परिचालन व सहायता प्रणालियों के लिए 5 मीटर व्यास वाला 'यूटिलिटी मॉड्यूल' शामिल है, जो सुचारू कार्यप्रवाह के लिए आपस में जुड़े हुए हैं। इस एनालॉग मिशन के लिए लद्दाख की त्सो कर घाटी का चयन विशेष रूप से इसलिए किया गया क्योंकि यहाँ का वातावरण प्रारंभिक मंगल ग्रह के समान है, जहाँ उच्च यूवी विकिरण, कम वायुदाब, अत्यधिक ठंड और लवणीय परमाफ्रॉस्ट (जमी हुई खारी मिट्टी) जैसी कठोर परिस्थितियाँ मौजूद हैं।
एक निजी स्टार्टअप में विकसित ठोस ईंधन वाले रॉकेट मोटर ‘कलाम 1200’ का श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर सफल स्थैतिक परीक्षण
मेसर्स स्काईरूट एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (एसएपीएल) के विक्रम-1 प्रक्षेपण यान के पहले चरण—"कलाम 1200” मोटर का पहला स्थैतिक परीक्षण 08 अगस्त, 2025 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, इसरो द्वारा सफलतापूर्वक संपन्न किया गया। यह विक्रम-1 प्रक्षेपण यान की प्रणालियों के विन्यास और प्राप्ति का एक मुख्य पड़ाव है। यह 11 मीटर लंबी, 1.7 मीटर व्यास वाली एक 'मोनोलिथिक कंपोजिट मोटर' (एकल संरचना वाली मिश्रित मोटर) है, जिसमें 30 टन ठोस प्रणोदक का द्रव्यमान है। डिजाइन के आधार पर, इस सबसे लंबी मोनोलिथिक मोटर को श्रीहरिकोटा स्थित ठोस प्रणोदक संयंत्र में तैयार किया गया है। इसी तरह, इसरो की टीम ने 'टेस्ट स्टैंड' का डिजाइन प्रदान किया, जिसका उपयोग मोटर के स्थैतिक परीक्षण के लिए किया गया था।
यह अंतरिक्ष आर्थिक विकास में योगदान देने के लिए निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों को आवश्यक तकनीकी बुनियादी ढांचा और प्रबंधकीय मार्गदर्शन प्रदान करने की भारत सरकार की अंतरिक्ष नीति, 2023 की पहल के अनुरूप है। इसके तहत परीक्षण स्थल और संबंधित प्रणालियों का प्रदर्शन अनुमान के अनुसार सामान्य रहा।
भारत मंडपम, नई दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मलेन 2025 और राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस समारोह 2025
22 अगस्त, 2025 को इसरो ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में राष्ट्रीय सम्मलेन 2.0 का आयोजन किया, जो दूसरे राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के समारोहों के साथ संपन्न हुआ। राष्ट्रीय सम्मलेन 2.0 का आयोजन 'विकसित भारत 2047 के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोगों का लाभ उठाना' विषय के साथ किया गया था। इसने मंत्रालयों, राज्य सरकारों, उद्योगों, स्टार्टअप्स, शिक्षा जगत और अंतरिक्ष प्रेमियों जैसे हितधारकों को एकजुट करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य किया। राष्ट्रीय सम्मलेन 2.0 ने राष्ट्रीय विकास में अंतरिक्ष की भूमिका पर प्रकाश डाला। इसके बाद एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया, जिसमें स्टार्टअप्स, अनुसंधान संस्थानों और उद्योग के नवाचारों को प्रदर्शित किया गया।
दूसरा राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस 23 अगस्त 2025 को भारत मंडपम, नई दिल्ली में "आर्यभट्ट से गगनयान: प्राचीन ज्ञान से अनंत संभावनाओं तक" थीम के साथ भव्यता और गौरव के साथ मनाया गया।
इसरो ने गगनयान मिशन के लिए पहला समेकित एयर ड्रॉप परिक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया
24 अगस्त, 2025 को इसरो ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा में गगनयान कार्यक्रम के लिए पहला एकीकृत एयर ड्रॉप टेस्ट (आईएडीटी-01) सफलतापूर्वक संपन्न किया। इस परीक्षण ने मिशन के एक विशिष्ट परिदृश्य में गगनयान के 'क्रू मॉड्यूल' के लिए महत्वपूर्ण पैराशूट-आधारित प्रणाली का आद्योपांत प्रदर्शन का सफलतापूर्वक सत्यापन किया। यह परीक्षण प्रणाली पैराशूट खुलने की पूरी प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें एक सिम्युलेटेड क्रू मॉड्यूल को हेलीकॉप्टर की सहायता से ऊँचाई से गिराकर सुरक्षित उतारने की क्षमता को परखा गया।
गगनयान मिशनों में, क्रू मॉड्यूल के उतरने के अंतिम चरण के दौरान समुद्र पर सुरक्षित उतरने के लिए अधःस्पर्श वेग को स्वीकार्य सीमा तक कम करने हेतु पैराशूट-आधारित प्रणाली का उपयोग किया जाता है। आईएडीटी के लिए पैराशूट प्रणाली और उसका विन्यास गगनयान मिशनों के समान ही था। इसमें चार प्रकार के पैराशूट शामिल थे: एपेक्स कवर सेपरेशन (एसीएस - 2.5 मीटर, 2 संख्या), ड्रग (5.8 मीटर, 2 संख्या), पायलट (3.4 मीटर, 3 संख्या) और मुख्य पैराशूट (25 मीटर, 3 संख्या)।
कुलसेकरपट्टिणम के एसएसएलवी प्रक्षेपण परिसर में प्रक्षेपण पट्टी का शिलान्यास
देश की बढ़ती प्रक्षेपण मांगों को पूरा करने के लिए, मुख्य रूप से लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) प्रक्षेपणों और गैर-सरकारी उद्यमों की प्रक्षेपण गतिविधियों के लिए तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले के कुलसेकरपट्टिनम में एक समर्पित प्रक्षेपण परिसर स्थापित किया जा रहा है। माननीय प्रधानमंत्री ने इससे पहले 28 फरवरी, 2024 को थूथुकुडी से इस परिसर की आधारशिला रखी थी। इस परिसर में 33 प्रमुख सुविधाओं में से 32 का निर्माण प्रगति पर है। 27 अगस्त, 2025 को, इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ. वी. नारायणन ने इस परिसर के मुख्य 'प्रक्षेपण पैड' की आधारशिला रखी।
इस प्रक्षेपण परिसर में रॉकेट के विभिन्न चरणों की तैयारी और एकीकरण करने, प्रक्षेपण पैड और रेल ट्रैक सिस्टम, रेंज प्रणाली, जाँच प्रणाली, टेलीमेट्री और टेली-कमांड सिस्टम, सुरक्षा और अग्निशमन सुविधाएं तथा सामान्य नागरिक सुविधाएं शामिल हैं। मोबाइल प्रक्षेपण ढांचे, बोगी, प्लेटफॉर्म, दरवाजे, जेट डिफ्लेक्शन डक्ट और वाइब्रेशन आइसोलेशन सिस्टम जैसे प्रमुख प्रणालियों को आंतरिक रूप से डिजाइन किया गया है। रडार, टेलीकमांड और टेलीमेट्री जैसे प्रमुख रेंज सिस्टम देश में ही विकसित किए जा रहे हैं और औद्योगिक भागीदारी के माध्यम से उन्हें साकार किया जा रहा है।
एलपीएससी/इसरो में एमपीटीटीएफ और आईटीपीएफ सुविधाओं का उद्घाटन
3 सितंबर, 2025 को एमपीटीटीएफ (मोनोप्रोपेलेंट थ्रस्टर टेस्ट फैसिलिटी) और आईटीपीएफ (इंटीग्रेटेड टाइटेनियम अलॉय प्रोपेलेंट टैंक प्रोडक्शन फैसिलिटी) का उद्घाटन किया गया, जिन्हें तुमकुरु, कर्नाटक में एलपीएससी/इसरो द्वारा साकार किया गया है। एमपीटीटीएफ को 'मोनोप्रोपेलेंट हाइड्राजीन थ्रस्टर्स' की योग्यता, स्वीकृति और प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए डिजाइन और स्थापित किया गया है। ये थ्रस्टर्स उपग्रहों, अंतरिक्ष यान और लॉन्च वाहनों में दिशा नियंत्रण और कक्षा के रखरखाव के लिए अनिवार्य होते हैं।
आईटीपीएफ एक अत्याधुनिक संयंत्र है जो अंतरिक्ष यान और पीएसएलवी के पीएस4 चरण के लिए हल्के टाइटेनियम मिश्र धातु प्रणोदक टैंक के निर्माण में विशेषज्ञता रखता है, जिसमें सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण संचालन के लिए प्रणोदक प्रबंधन उपकरण भी शामिल हैं। यह सुविधा इसरो मिशनों की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग, सटीक मशीनिंग, गैर-विनाशकारी परीक्षण और क्लीनरूम असेंबली जैसी उन्नत प्रक्रियाओं में सहायक होती है।
लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते पर हस्ताक्षर
10 सितंबर, 2025 को बेंगलुरु स्थित इसरो मुख्यालय में न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड, इसरो, इन-स्पेस और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच 'लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान' (एसएसएलवी) तकनीक के हस्तांतरण के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता भारत के निजी अंतरिक्ष क्षेत्र को सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिसके तहत अब एचएएल जैसे औद्योगिक भागीदार इसरो द्वारा विकसित इस किफायती रॉकेट तकनीक का उपयोग करके बड़े पैमाने पर उत्पादन और व्यावसायिक प्रक्षेपण कर सकेंगे।
एसएसएलवी तीन चरणों वाला एक पूर्णतः ठोस ईंधन वाहन है, जिसे 500 किलोग्राम तक के उपग्रहों को निचली पृथ्वी कक्षा में प्रक्षेपित करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसे इसरो द्वारा एक त्वरित टर्नअराउंड और 'ऑन-डिमांड' प्रक्षेपण वाहन के रूप में विकसित किया गया है, जो औद्योगिक उत्पादन के लिए उपयुक्त है और इसका लक्ष्य वैश्विक लघु उपग्रह प्रक्षेपण बाजार की जरूरतों को पूरा करना है। इसे झुकी हुई कक्षाओं के लिए श्रीहरिकोटा से और ध्रुवीय कक्षाओं के लिए कुलसेकरपट्टिनम में आगामी नए प्रक्षेपण स्थल से प्रक्षेपित किया जाएगा।
एसएसएलवी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता भारत सरकार द्वारा घोषित अंतरिक्ष-क्षेत्र सुधारों द्वारा सक्षम एक बड़ा महत्वपूर्ण पड़ाव है। एसएसएलवी के सफल व्यावसायीकरण से भारतीय अंतरिक्ष परिवेश को बढ़ावा मिलने और छोटे उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मांग को पूरा करने की उम्मीद है।
सिडनी में आईएसी 2025 में भारत ने किया अंतरिक्ष उपलब्धियों का प्रदर्शन
29 सितंबर से 3 अक्टूबर तक सिडनी में आयोजित 76वीं अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्री कांग्रेस (आईएसी 2025) में वैश्विक अंतरिक्ष प्रयासों में भारत की भूमिका पर प्रकाश डाला गया। इसरो और इन-स्पेस ने मिलकर 'इंडिया स्पेस पवेलियन' की स्थापना की, जिसमें भारत की अंतरिक्ष यात्रा के छह दशकों के सफर को प्रदर्शित किया गया। इसमें चंद्रयान और आदित्य एल 1 जैसे अग्रणी मिशनों से लेकर गगनयान और प्रस्तावित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसी भविष्य की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं तक के महत्वपूर्ण लक्ष्य को रेखांकित किया गया। सामूहिक रूप से, इन प्रदर्शनों ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में नवाचार और उत्कृष्टता के प्रति भारत के निरंतर प्रयास को प्रतिबिंबित किया।
इंडिया स्पेस पवेलियन के हिस्से के रूप में, 18 भारतीय अंतरिक्ष उद्योगों और स्टार्टअप्स ने अपने उत्पादों और उपलब्धियों का प्रदर्शन किया। इसके अलावा, 5 भारतीय अंतरिक्ष उद्योगों और स्टार्टअप्स ने आईएसी -2025 अपने स्वतंत्र पवेलियन लगाए।
एलवीएम3-एम5 प्रक्षेपण यान से सीएमएस-03 संचार उपग्रह का सफल प्रक्षेपण
भारत के एलवीएम 3 प्रक्षेपण यान ने 02 नवंबर, 2025 को अपनी पाँचवीं प्रचालनात्मक उड़ान (एलवीएम 3 -एम 5) के माध्यम से सीएमएस-03 संचार उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है। सीएमएस-03 एक बहु-बैंड संचार उपग्रह है जो भारतीय भूभाग सहित एक विस्तृत समुद्री क्षेत्र में सेवाएँ प्रदान करेगा। लगभग 4400 किलोग्राम वजन वाला सीएमएस-03, भारतीय मिट्टी से भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (जीटीओ) में प्रक्षेपित किया जाने वाला अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह है।
एलवीएम3-एम5 मिशन में सी25 क्रायोजेनिक चरण प्रदर्शन का पुर्नआरंभ
एलवीएम 3-एम 5 मिशन ने अपने स्वदेशी रूप से विकसित सी 25 क्रायोजेनिक ऊपरी चरण, जो सीइ -20 इंजन द्वारा संचालित है, को अंतरिक्ष में पहली बार सफलतापूर्वक पुनः शुरू कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह क्षमता अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भविष्य के मिशनों को अधिक लचीलापन प्रदान करती है, जिससे एलवीएम 3 रॉकेट एक ही उड़ान में विभिन्न कक्षाओं में कई उपग्रहों को स्थापित करने में सक्षम होगा। यह सफल परीक्षण मुख्य उपग्रह, सीएम्एस-03, को उसकी निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक पहुँचाने के बाद संपन्न किया गया।
पीआरएल/इसरो ने एक नए एक्सोप्लैनेट (सौर-बाह्य ग्रह) की खोज की
अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने एक विस्तृत बाइनरी सिस्टम (दो तारों वाले तंत्र) में 'टीओआई-6038A बी' नामक एक नए एक्सोप्लैनेट की खोज की है, जो एक सघन 'सब-सैटर्न' (उप-शनि) आकार का ग्रह है जिसका द्रव्यमान पृथ्वी से 78.5 गुना और त्रिज्या 6.41 गुना है। यह ग्रह एक चमकीले, धातु-समृद्ध एफ-प्रकार के तारे की परिक्रमा मात्र 5.83 दिनों में एक वृत्ताकार कक्षा में पूरी करता है। टीओआई-6038A बी नेपच्यून जैसे ग्रहों और विशाल ग्रहों के बीच के संक्रमण क्षेत्र में स्थित है, जिसे 'सब-सैटर्न' श्रेणी कहा जाता है; हमारे सौर मंडल में इस श्रेणी का कोई ग्रह नहीं है, इसलिए यह ग्रह निर्माण और विकास के अध्ययन का एक अनोखा अवसर प्रदान करता है।
यह दूसरी सौर-बाह्य ग्रह की खोज माउंट आबू के गुरुशिखर स्थित पीआरएल की वेधशाला में 2.5 मीटर के टेलीस्कोप से जुड़े अत्याधुनिक 'पारस-2' स्पेक्ट्रोग्राफ का उपयोग करके की गई। इसके अलावा, यह 'पारस-1' और 'पारस-2' स्पेक्ट्रोग्राफ के संयुक्त प्रयासों से खोजी गई पांचवीं सौर-बाह्य ग्रह पहचान है, जो उन्नत खगोलीय उपकरणों के क्षेत्र में भारत की बढ़ती विशेषज्ञता को उजागर करती है। उल्लेखनीय है कि पारस-2 स्पेक्ट्रोग्राफ एशिया का सबसे उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाला स्थिर रेडियल वेलोसिटी स्पेक्ट्रोग्राफ है।
अंतरिक्ष चिकित्सा में सहयोग पर समझौता ज्ञापन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), अंतरिक्ष विभाग और श्री चित्रा तिरुनल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने अंतरिक्ष चिकित्सा के क्षेत्र में सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। यह साझेदारी देश में अंतरिक्ष चिकित्सा के विकास और इसके अनुप्रयोगों की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
भारतीय मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम 'गगनयान' इसरो का एक राष्ट्रीय प्रयास है, जो मानव स्वास्थ्य अनुसंधान, सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (माइक्रोग्रैविटी) अनुसंधान, अंतरिक्ष चिकित्सा और अंतरिक्ष जीवविज्ञान के क्षेत्रों में विभिन्न राष्ट्रीय एजेंसियों, शिक्षा जगत और उद्योगों को एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। इसरो और एससीटीआईएमएसटी के बीच हस्ताक्षरित यह समझौता ज्ञापन अंतरिक्ष चिकित्सा के विशिष्ट क्षेत्र में सहयोग का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे न केवल राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम को लाभ होगा, बल्कि मानव शरीर क्रिया विज्ञान अध्ययन, व्यवहारिक स्वास्थ्य अध्ययन, जैव चिकित्सा प्रणाली, विकिरण जीवविज्ञान और चिकित्सा, अंतरिक्ष वातावरण में मानव प्रदर्शन सुधारने के उपाय, टेलीमेडिसिन और चालक दल के लिए क्रू चिकित्सा किट जैसे क्षेत्रों में नवाचार और विकास को भी गति मिलेगी। यह कार्यक्रम विशेष रूप से अंतरिक्ष चिकित्सा के क्षेत्र में गहन अध्ययन और प्रयोगों के नए अवसर पैदा करेगा।
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पीके/केसी/एसके
(रिलीज़ आईडी: 2206435)
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