विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग - वर्षांत 2025

प्रविष्टि तिथि: 16 DEC 2025 5:58PM by PIB Delhi
  1. ग्लोबल साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंडेक्स में भारत की रैंकिंग लगातार बढ़ रही है।

ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (GII) 2025 के अनुसार, भारत ने दुनिया की टॉप इनोवेटिव इकोनॉमी में 38वीं रैंक हासिल की है। WIPO रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत दुनिया में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (IP) फाइलिंग के मामले में छठे स्थान पर है। नेटवर्क रेडीनेस इंडेक्स (NRI) 2024 रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने अपनी रैंकिंग में सुधार करते हुए 2019 के 79वें स्थान से 2024 में 49वें स्थान पर आ गया है। NRI दुनिया भर की 133 इकोनॉमी में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के इस्तेमाल और प्रभाव पर प्रमुख ग्लोबल इंडेक्स में से एक है। रिसर्च पब्लिकेशन के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है।

II. अनुसंधान और नवाचार कोष

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 01 जुलाई 2025 को निजी क्षेत्र की अनुसंधान एवं विकास में भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए अनुसंधान, विकास और नवाचार (RDI) योजना को मंज़ूरी दी है। इस योजना के लिए छह वर्षों की अवधि में कुल ₹1.0 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया है, जिसमें से वित्त वर्ष 2025–26 के लिए ₹20,000 करोड़ आवंटित किए गए हैं। RDI योजना के प्रमुख उद्देश्य हैं—उभरते (सनराइज़) क्षेत्रों और देश की आर्थिक सुरक्षा, रणनीतिक ज़रूरतों तथा आत्मनिर्भरता से जुड़े अन्य क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को अनुसंधान, विकास और नवाचार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना; प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर (TRL) 4 और उससे ऊपर की उच्च स्तर की परिवर्तनकारी परियोजनाओं को वित्तीय सहायता देना; अत्यंत महत्वपूर्ण या रणनीतिक रूप से आवश्यक प्रौद्योगिकियों के अधिग्रहण को समर्थन देना; तथा डीप-टेक फंड ऑफ फंड्स की स्थापना को आसान बनाना। यह योजना ऊर्जा सुरक्षा और ऊर्जा संक्रमण तथा जलवायु कार्रवाई जैसे सनराइज़ क्षेत्रों को लक्षित करती है। इसके साथ ही क्वांटम कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स और अंतरिक्ष जैसी डीप-टेक प्रौद्योगिकियाँ; कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और उसके अनुप्रयोग; जैव प्रौद्योगिकी, बायो-मैन्युफैक्चरिंग, सिंथेटिक बायोलॉजी, फार्मा और मेडिकल डिवाइस; तथा डिजिटल कृषि और डिजिटल अर्थव्यवस्था सहित डिजिटल इकोनॉमी भी इसके दायरे में हैं। इसके अतिरिक्त, वे प्रौद्योगिकियाँ भी शामिल की गई हैं जिनका स्वदेशीकरण रणनीतिक कारणों से या आर्थिक सुरक्षा और आत्मनिर्भर भारत के लिए आवश्यक है, साथ ही कोई अन्य क्षेत्र या प्रौद्योगिकी जिसे सार्वजनिक हित में आवश्यक माना जाए।

यह योजना अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF) के अंतर्गत एक विशेष प्रयोजन कोष (स्पेशल पर्पज़ फंड – SPF) के माध्यम से लागू की जाएगी। इसके लिए दो-स्तरीय (टू-टियर) वित्तपोषण व्यवस्था अपनाई जाएगी:

    • प्रथम स्तर: ANRF के अंतर्गत स्थापित विशेष प्रयोजन कोष (SPF), जो निधियों का संरक्षक (कस्टोडियन) होगा।
    • द्वितीय स्तर: योजना का क्रियान्वयन द्वितीय-स्तरीय फंड प्रबंधकों के माध्यम से किया जाएगा। द्वितीय-स्तरीय फंड प्रबंधक निम्न स्वरूपों में हो सकते हैं—
      वैकल्पिक निवेश कोष (AIF), विकास वित्त संस्थान (DFI), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC) तथा केंद्रित अनुसंधान संगठन (FRO), जैसे प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (TDB), जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC), आईआईटी रिसर्च पार्क आदि।

इस योजना के तहत वित्तपोषण कम या शून्य ब्याज दर पर असुरक्षित दीर्घकालिक ऋण के रूप में उपलब्ध कराया जाएगा। चुनिंदा मामलों में, विशेष रूप से स्टार्ट-अप्स के लिए इक्विटी आधारित वित्तपोषण भी किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, डीप-टेक फंड ऑफ फंड्स (FoF) या अन्य अनुसंधान, विकास और नवाचार (RDI) पर केंद्रित फंड ऑफ फंड्स में योगदान देने पर भी विचार किया जाएगा।

कार्यक्रम के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार और उसकी जानकारी को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से, देश के विभिन्न हिस्सों में कई स्थानों पर आउटरीच कार्यक्रमों की एक श्रृंखला आयोजित की गई है।

इन कार्यक्रमों में 200 से अधिक फंड मैनेजर, स्टार्ट-अप्स और कॉरपोरेट संस्थानों ने भाग लिया, जिससे भारत के नए ₹1 लाख करोड़ के आरडीआई फंड को लेकर उद्योग जगत में उत्साह स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। चर्चाओं में इस बात पर जोर दिया गया कि एएनआरएफ के अंतर्गत बनाया गया यह विशेष प्रयोजन कोष निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाले अनुसंधान एवं विकास इकोसिस्टम को मजबूत करेगा और एआई, सेमीकंडक्टर, बायोटेक, स्वच्छ ऊर्जा, अंतरिक्ष तथा अन्य उभरते क्षेत्रों में डीप-टेक नवाचार को तेज़ी से आगे बढ़ाएगा। यह आयोजन भारत में उच्च प्रभाव और उच्च जोखिम वाले अनुसंधान के लिए बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

  1. अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एएनआरएफ):

अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एएनआरएफ) की स्थापना एएनआरएफ अधिनियम, 2023 के तहत की गई है, जिसके प्रावधान 5 फरवरी 2024 से प्रभावी हुए। इसका उद्देश्य भारत के अनुसंधान एवं विकास (R&D) इकोसिस्टम में परिवर्तन लाना और वैज्ञानिक उत्कृष्टता को नई गति देना है।

एएनआरएफ के क्रियान्वयन की शुरुआत 10 सितंबर 2024 को गवर्निंग बोर्ड (जीबी) की पहली बैठक के साथ हुई, जिसकी अध्यक्षता गवर्निंग बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में माननीय प्रधानमंत्री ने की। इसके बाद, 14 अक्टूबर 2024 को गवर्निंग बॉडी ने दो नई प्रमुख पहलों की शुरुआत की। पहली पहल प्रधानमंत्री अर्ली करियर रिसर्च ग्रांट (PMECRG) है, जिसका उद्देश्य शुरुआती चरण के शोधकर्ताओं को समर्थन देना है। दूसरी पहल मिशन फॉर एडवांसमेंट इन हाई-इम्पैक्ट एरियाज़ – इलेक्ट्रिक व्हीकल (MAHA-EV) मिशन है, जिसका लक्ष्य इलेक्ट्रिक वाहन घटकों से जुड़े अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना है।

वर्तमान में एएनआरएफ के अंतर्गत कई पहलें और कार्यक्रम शुरू किए जा चुके हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार हैं MAHA: मेडटेक मिशन, विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI-SE), इन्क्लूसिविटी रिसर्च ग्रांट (IRG), स्टेट यूनिवर्सिटी रिसर्च एक्सीलेंस (SERB-SURE), PAIR (त्वरित नवाचार एवं अनुसंधान के लिए साझेदारी), जे.सी. बोस ग्रांट, प्रधानमंत्री प्रोफेसरशिप, कन्वर्जेन्स रिसर्च सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस (CoE), ARG-MATRICS, एडवांस्ड रिसर्च ग्रांट (ARG), नेशनल साइंस चेयर (NSC), नेशनल पोस्ट-डॉक्टोरल फेलोशिप (N-PDF) तथा रामानुजन फेलोशिप

 

  1. नेशनल क्वांटम मिशन

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) को आठ वर्षों की अवधि के लिए ₹6,003.65 करोड़ की कुल लागत के साथ स्वीकृति दी है। इसका उद्देश्य क्वांटम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना, उसे पोषित करना और बड़े स्तर पर विस्तार देना, साथ ही एक सशक्त, नवाचारी और जीवंत क्वांटम इकोसिस्टम का निर्माण करना है। अब तक:

  • आईआईएससी बेंगलुरु, आईआईटी मद्रास, आईआईटी बॉम्बे और आईआईटी दिल्ली में 4 थीमैटिक हब स्थापित किए गए हैं, जिनमें 43 संस्थानों के 152 शोधकर्ता और 17 परियोजना टीमें शामिल हैं। ये गतिविधिया देश के 17 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करती हैं।
  • इसके साथ ही, क्वांटम प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में स्टार्ट-अप्स को समर्थन देने के लिए विशेष दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं और अब तक आठ स्टार्ट-अप्स को सहायता प्रदान की गई है।

आठ स्टार्ट-अप्सक्वनू लैब्स (QuNu Labs), क्यूपीआईएआई (QpiAI), डिमिरा टेक्नोलॉजीज़, प्रेनिशक्यू (PRENISHQ), क्वप्रयोग (QuPrayog), प्रिस्टीन डायमंड्स, क्वानास्त्रा (Quanastra) और क्वान2डी टेक्नोलॉजीज़—को समर्थन प्रदान किया जा चुका है।

  • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) के सहयोग से देश भर के कॉलेजों में क्वांटम प्रौद्योगिकियों में बी.टेक और एम.टेक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।
  • भारत में उभरते क्वांटम खतरों के विरुद्ध दीर्घकालिक साइबर सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए एक रणनीतिक रूपरेखा प्रस्तुत करने हेतु क्वांटम सेफ इकोसिस्टम पर एक कॉन्सेप्ट पेपर भी लॉन्च किया गया है।

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) के तहत लगभग ₹720 करोड़ के निवेश से देश के प्रमुख संस्थानों—आईआईटी दिल्ली, आईआईएससी बेंगलुरु, आईआईटी बॉम्बे और आईआईटी कानपुर-में राष्ट्रीय स्तर की केंद्रीय फैब्रिकेशन सुविधाएं स्थापित की गई हैं। ये सुविधाएं राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में कार्य करेंगी और शिक्षा जगत, उद्योग, स्टार्ट-अप्स तथा रणनीतिक क्षेत्रों के लिए उपयोग हेतु उपलब्ध होंगी।

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के अंतर्गत अब तक निम्नलिखित प्रौद्योगिकियाँ विकसित की गई हैं:

  • क्वनू लैब्स प्रा. लि. (QNu Labs Pvt. Ltd.) ने राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के सहयोग से दुनिया का सबसे लंबा 500 किमी का क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन (QKD) नेटवर्क विकसित किया है। साथ ही, QShield नामक दुनिया का पहला फुल-स्टैक क्वांटम सिक्योरिटी-एज़-ए-सर्विस प्लेटफॉर्म भी लॉन्च किया गया है।
  • QpiAI ने वास्तविक उपयोगों में क्वांटम लाभ प्राप्त करने के लिए 64-क्यूबिट का स्केलेबल और फॉल्ट-टॉलरेंट क्वांटम प्रोसेसर यूनिट (QPU) विकसित किया है।
  • आईआईटी बॉम्बे के क्वांटम सेंसिंग एवं मेट्रोलॉजी टी-हब के अंतर्गत पीक्वेस्ट (PQuest) समूह ने उन्नत चुंबकीय क्षेत्र इमेजिंग के लिए भारत का पहला स्वदेशी क्वांटम डायमंड माइक्रोस्कोप (QDM) लॉन्च किया है।

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) से समर्थित स्टार्ट-अप प्रेनिशक्यू (Prenishq) ने क्वांटम संचार और क्वांटम कंप्यूटिंग के लिए उच्च सटीकता वाला डायोड लेज़र विकसित किया है, जिसमें बेहतर बीम गुणवत्ता और उच्च स्थिरता सुनिश्चित की गई है।

 

  1. राष्ट्रीय अंतःविषय साइबर–फिजिकल एल सिस्टम मिशन

राष्ट्रीय अंतःविषय साइबर–फिजिकल सिस्टम मिशन (NM-ICPS) का उद्देश्य अनुसंधान एवं विकास (R&D), ट्रांसलेशनल रिसर्च, उत्पाद विकास, स्टार्ट-अप्स को प्रोत्साहन व सहयोग तथा व्यावसायीकरण के लिए तकनीकी प्लेटफॉर्म विकसित करना है। पिछले एक वर्ष के दौरान:

पिछले एक वर्ष के दौरान, मिशन के तहत भारतजेन (BharatGen)—भारतीय भाषाओं में जनरेटिव एआई मॉडल—को समर्थन दिया गया है, जिसे आईआईटी बॉम्बे स्थित टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब (TIH) के माध्यम से लागू किया जा रहा है।

  • तृतीय-पक्ष मूल्यांकन में इस मिशन को अत्यंत प्रभावी (Highly Effective) आंका गया है।

 

4 टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब्स (TIHs) को उन्नत कर टेक्नोलॉजी ट्रांसलेशन रिसर्च पार्क्स (TTRPs) में परिवर्तित किया गया है। इनमें आईआईटी इंदौर (डिजिटल हेल्थकेयर), आईआईएससी बेंगलुरु (रोबोटिक्स एवं एआई), आईआईटी कानपुर (साइबर सुरक्षा) और आईआईटी (आईएसएम) धनबाद (खनन नवाचार) शामिल हैं।

 

  1. नेशनल सुपर कम्प्यूटिंग मिशन (एनएसएम)

नेशनल सुपरकंप्यूटिंग मिशन (NSM) को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) मिलकर लागू और मैनेज कर रहे हैं। एनएसएम का मकसद देश भर में फैले हमारे राष्ट्रीय शैक्षणिक और R&D संस्थानों को अलग-अलग कैपेसिटी वाले हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग (HPC) इंफ्रास्ट्रक्चर देकर उन्हें मज़बूत बनाना है। इसे चरणबद्ध तरीके से हासिल किया जा रहा है; शुरुआती कमीशनिंग खरीदे गए सिस्टम का इस्तेमाल करके की गई है, जिसके बाद देश में सिस्टम को असेंबल किया गया है। अब तक, 37 जगहों पर 39 पेटाफ्लॉप के सुपरकंप्यूटर बनाए जा चुके हैं। हाल ही में बनाया गया इंफ्रास्ट्रक्चर रुद्र सर्वर, सॉफ्टवेयर स्टैक वगैरह जैसे स्वदेशी डेवलपमेंट पर आधारित है। NSM के ज़रिए, भारत सरकार देश के बड़े वैज्ञानिक और टेक्नोलॉजी समुदाय तक पहुंचना चाहती है और देश को मल्टी-डिसिप्लिनरी बड़ी चुनौतियों वाली समस्याओं को हल करने के लिए HPC क्षमता देना चाहती है।

 

  1. जलवायु ऊर्जा और टिकाऊ प्रौद्योगिकियां

• कोयला गैसीकरण, मेथनॉल, DME के ​​लिए पायलट-स्केल प्रोजेक्ट शुरू किए गए।

• केरल में सस्टेनेबल बायोएनर्जी-आधारित एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ETP) का उद्घाटन किया गया।

• सीमेंट सेक्टर में पांच कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइज़ेशन (CCU) टेस्टबेड बनाए गए, जो इंडस्ट्रियल कार्बन उत्सर्जन से निपटने के लिए अपनी तरह का पहला रिसर्च और इनोवेशन क्लस्टर है।

— यह सस्टेनेबल इंडस्ट्रियल तरीकों और भारी उद्योगों से कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग में CCU टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देकर, इस प्रोजेक्ट का मकसद क्लाइमेट-फ्रेंडली इंडस्ट्रियल ग्रोथ को सपोर्ट करना और भारत को अपने कार्बन-कटौती के वादों को पूरा करने में मदद करना है।

  1. अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव:

• FAIR प्रोजेक्ट, CERN, SKA, Elettra जैसी मेगा S&T सुविधाओं में भारतीय भागीदारी के तहत दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विज्ञान से जुड़ने के लिए कई नए अंतर्राष्ट्रीय S&T सहयोग और पहल की गई हैं।

• DST और फ्रेंच नेशनल रिसर्च एजेंसी (ANR), फ्रांस के बीच भारत-फ्रांस वैज्ञानिक साझेदारी के तहत "टिकाऊ ऊर्जा समाधानों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन इनोवेशन" में प्रोजेक्ट प्रस्तावों को जमा करने के लिए पहली कॉल लॉन्च की गई।

• 20 महिला वैज्ञानिकों (20 भारतीय और 20 जर्मन) की जोड़ियों को IGSTC-WISER ग्रांट से सम्मानित किया गया है।

• भारत और रूस "STI सहयोग के लिए रोडमैप" को मजबूत करने पर सहमत हुए, जिसमें संयुक्त R&D, प्रौद्योगिकियों का सह-विकास (डिजिटल प्रौद्योगिकियों में सहयोग का विस्तार और स्टार्टअप एक्सचेंज कार्यक्रमों का समर्थन सहित) और सामाजिक चुनौतियों से निपटने वाली पहलों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

• DST और तृतीयक शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान मंत्रालय, मॉरीशस गणराज्य के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग पर MoU पर हस्ताक्षर किए गए।

  1. IX. एसटीआई डेटा और नीति अनुसंधान

साक्ष्य-आधारित नीति प्रणाली को सशक्त बनाने की दिशा में विभाग द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रबंधन सूचना प्रणाली (NSTMIS) और नीति अनुसंधान प्रकोष्ठ (PRC) को लागू किया जा रहा है। NSTMIS कार्यक्रम देश की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (S&T) क्षमता के आकलन, निगरानी और बेंचमार्किंग के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न सर्वेक्षण करता है। वर्तमान में दो प्रमुख सर्वेक्षण चल रहे हैं, जिनमें राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सर्वेक्षण प्रमुख है, जिसका उद्देश्य अनुसंधान एवं विकास (R&D) में लगाए गए संसाधनों से संबंधित आंकड़े एकत्र करना है। यह सर्वेक्षण देशभर की 8000 से अधिक संस्थाओं—जैसे अनुसंधान प्रयोगशालाएं, उच्च शिक्षण संस्थान और उद्योग—से डेटा एकत्र करने का लक्ष्य रखता है। देश में एक मज़बूत, साक्ष्य-आधारित विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) नीति तंत्र विकसित करने और सुदृढ़ करने के लिए, नीति अनुसंधान प्रकोष्ठ (PRC) के अंतर्गत विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में डीएसटी–सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPRs) स्थापित किए गए हैं और उन्हें मजबूत किया जा रहा है। ये केंद्र देश से जुड़े कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में लक्षित नीति अनुसंधान करते हैं, STI नीति के क्षेत्र में शोधार्थियों को प्रशिक्षण देते हैं और बेहतर नीति निर्माण में योगदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, नीति विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं की एक सशक्त आधारशिला तैयार करने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा STI पॉलिसी फेलोशिप प्रोग्राम (DST–STI PFP) को भी समर्थन दिया जा रहा है। यह कार्यक्रम वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और नीति में रुचि रखने वालों को नीति निर्माण की प्रक्रिया को निकट से समझने और STI नीति के क्षेत्र में अपने ज्ञान व विश्लेषणात्मक कौशल का योगदान देने का अवसर प्रदान करता है। वर्तमान में कुल 9 नीति अनुसंधान केंद्र (CPRs) विभिन्न STI क्षेत्रों में नीति अनुसंधान कार्य कर रहे हैं।

 

  1. स्वायत्त संस्थानों से प्रमुख उपलब्धियां

यह विभाग 25 ऑटोनॉमस संस्थानों (AI) को सपोर्ट करता है। इनमें 16 रिसर्च और डेवलपमेंट संस्थान, 04 स्पेशलाइज्ड नॉलेज और S&T सर्विस संगठन, 05 प्रोफेशनल बॉडी शामिल हैं। साल 2025 के दौरान कुछ मुख्य उपलब्धियां इस प्रकार हैं:

 

आईएनएसटी (नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी संस्थान)

INST ने नैनोमेडिसिन और सस्टेनेबल नैनोटेक्नोलॉजी में कई बड़े ब्रेकथ्रू की रिपोर्ट दी है। इसके वैज्ञानिकों ने पार्किंसन रोग को टारगेट करने वाले नए नैनो-फॉर्मूलेशन विकसित किए हैं, जिसमें मेलाटोनिन-आधारित "डार्कनेस हार्मोन" नैनो-सिस्टम और मरीजों के लिए एक और सुरक्षित थेराप्यूटिक डिलीवरी प्लेटफॉर्म शामिल है। INST ने एक एडवांस्ड नैनो-कैटेलिस्ट भी बनाया है जो इंडस्ट्रियल केमिकल प्रोसेस के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में सक्षम है, जो दक्षता और पर्यावरण-मित्रता दोनों को दिखाता है। रुमेटाइड आर्थराइटिस के लिए उनके इनोवेटिव ड्रग-डिलीवरी सिस्टम कम साइड इफेक्ट के साथ लक्षित राहत का वादा करते हैं, जबकि कैंसर थेरेपी के लिए नैनो-कप पर उनका काम अधिक सटीक और प्रभावी गर्मी-आधारित ऑन्कोलॉजिकल उपचारों के लिए रास्ता खोलता है। कुल मिलाकर, ये प्रगति स्वास्थ्य सेवा और ग्रीन केमिस्ट्री के लिए ट्रांसलेशनल नैनोसाइंस में INST के नेतृत्व को उजागर करती है।

 

आईआईए (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स)

IIA ने एस्ट्रोनॉमी और सोलर फिजिक्स में शानदार योगदान दिया है, जिसमें NGC 3785 की असामान्य रूप से लंबी टाइडल टेल के आखिर में बन रही एक नई गैलेक्सी की खोज शामिल है, जो गैलेक्सी के विकास के बारे में जानकारी देती है। रिसर्चर्स ने एक बाइनरी ब्लैक होल सिस्टम से X-रे में आयरन लाइनें डिटेक्ट कीं, जिससे ब्लैक होल की प्रॉपर्टीज़ का बेहतर अनुमान लगाया जा सका। कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) के रेडियल डाइमेंशन तय करने की उनकी गैर-पारंपरिक तकनीक पृथ्वी पर स्पेस-वेदर के असर की भविष्यवाणियों को बेहतर बनाती है। IIA टीमों ने सोलर कोरोनल होल की थर्मल संरचना और मैग्नेटिक फील्ड का मैप भी बनाया है, तारकीय रसायन विज्ञान का एक नया रूप खोजा है, और छोटे कोरोनल लूप्स की पहचान की है जो सूर्य की हल्की विस्फोटक गतिविधियों को उजागर करते हैं। इसके अलावा, IIA के वैज्ञानिकों ने लद्दाख में देखे गए असामान्य सौर-संचालित वायुमंडलीय घटनाओं की व्याख्या की, जिससे सौर-स्थलीय इंटरैक्शन में भारत के फ्रंटियर रिसर्च को मजबूती मिली।

एस.एन. बोस राष्ट्रीय बुनियादी विज्ञान केंद्र

SNBNCBS ने क्वांटम साइंस, मटीरियल रिसर्च और एस्ट्रोफिजिकल इंस्ट्रूमेंटेशन में भारत की ताकत को बढ़ाया है। इसने पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में एक नई ऑब्ज़र्वेटरी बनाई है, जिससे एस्ट्रोफिजिक्स में राष्ट्रीय क्षमताओं को काफी मज़बूती मिलने की उम्मीद है। रिसर्चर्स ने क्वांटम फायदे का एक रियल-वर्ल्ड डेमोंस्ट्रेशन देकर एक बड़ी सफलता हासिल की है, जिससे क्वांटम टेक्नोलॉजी के भविष्य को बेहतर बनाया जा सकेगा। उनके द्वारा विकसित किए गए मिले-जुले हाइब्रिड मटीरियल ने ऐसे आर्टिफिशियल सिनेप्स बनाए हैं जो दिमाग जैसे काम करते हैं, जिससे न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के लिए नए रास्ते खुले हैं। हेल्थकेयर में, SNBNCBS के वैज्ञानिकों ने पर्सनलाइज़्ड थेरेपी के लिए कैंसर के तरीकों को समझने के लिए AI का इस्तेमाल किया, जिससे सटीक दवा को सपोर्ट मिला। ये योगदान संस्थान की अलग-अलग क्षेत्रों में बेहतरीन काम को दिखाते हैं।

 

बीएसआईपी (बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज)

बीएसआईपी ज़बरदस्त पैलियोबोटैनिकल और भूवैज्ञानिक खोजों के ज़रिए पृथ्वी के गहरे अतीत पर रोशनी डाल रहा है। अध्ययनों से पता चला कि डेक्कन ज्वालामुखी के दौरान उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों ने आश्चर्यजनक लचीलापन दिखाया, जिससे प्रागैतिहासिक जलवायु तनाव की समझ बदल गई। शोधकर्ताओं ने भारत के पर्मियन आग के रिकॉर्ड को डिकोड किया, जिससे प्राचीन जंगल की आग के इतिहास के सबूत मिले। संस्थान ने 24 मिलियन साल पुराना जीवाश्म रहस्य उजागर किया, और पत्ती के जीवाश्म विश्लेषण से पता चला कि लगभग 4 मिलियन साल पहले हिमालय के उदय ने कश्मीर की जलवायु को कैसे बदल दिया। लद्दाख के गर्म झरनों के बारे में उनकी जानकारी शुरुआती पृथ्वी और यहां तक ​​कि मंगल ग्रह पर जीवन की उत्पत्ति के सुराग देती है। BSIP ने मणिपुर में 37,000 साल पुराने बांस के अवशेषों की भी पहचान की, जिससे एशिया में महत्वपूर्ण हिमयुग के पारिस्थितिक इतिहास का पता चला।

 

जेएनसीएसआर (जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च)

जेएनसीएसआर ने मटीरियल साइंस, स्वास्थ्य अनुसंधान और क्वांटम टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कई बड़े बदलाव किए हैं। पहनने योग्य उपकरणों के ज़रिए तनाव का पता लगाने के लिए उनका नया सिस्टम मटीरियल इंजीनियरिंग को स्वास्थ्य निगरानी के साथ जोड़ता है। शोधकर्ताओं ने सीमित इलेक्ट्रॉन व्यवहार में सफलता हासिल की, जिससे ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक मटीरियल, सेंसर और नैनोकैटलिस्ट में सुधार हुआ। मेटल-सेमीकंडक्टर सुपरलैटिस से थर्मियोनिक उत्सर्जन में एक अग्रणी खोज अगली पीढ़ी के ऊर्जा उपकरणों का वादा करती है। जेएनसीएसआर एक संभावित नई ऑटिज्म थेरेपी की खोज कर रहा है जिसका लक्ष्य रोगी की आत्मनिर्भरता में सुधार करना है। संस्थान ने तेजी से चार्ज होने वाली, लंबी चलने वाली सोडियम-आयन बैटरी भी विकसित की, जो किफायती ऊर्जा भंडारण की दिशा में एक बड़ा कदम है, और भविष्य के क्वांटम अनुप्रयोगों के लिए महत्वपूर्ण दुर्लभ-पृथ्वी चुंबकत्व घटनाओं का पता लगाया। इसके अलावा, भारतीय महिलाओं में मुंह के कैंसर के आनुवंशिक कारणों के बारे में जानकारी लक्षित हस्तक्षेपों का मार्ग प्रशस्त करती है।

 

आईएएसएसटी (इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी)

आईएएसएसटी का बहु-विषयक अनुसंधान विष जीव विज्ञान, नैनोमेडिसिन, पर्यावरणीय सामग्री, एथनोबॉटनी और पोषण विज्ञान तक फैला हुआ है। इसके वैज्ञानिकों ने पोप्स पिट वाइपर के जहर में छिपी जटिलताओं को उजागर किया, जिससे एंटीवेनम विकास से संबंधित ज्ञान का विस्तार हुआ। उन्होंने संभावित कैंसर-रोधी अनुप्रयोगों वाले चुंबकीय नैनोकण विकसित किए, और एक पर्यावरण-अनुकूल, उच्च-प्रदर्शन स्नेहक बनाया जो स्थायी औद्योगिक प्रथाओं का समर्थन करता है। IASST ने पूर्वोत्तर भारत के जहरीले पौधों में औषधीय क्षमता का भी दस्तावेजीकरण किया, जिससे पारंपरिक "छिपे हुए उपचारकर्ताओं" का पता चला। उनके शोध से यह भी पता चला कि कैसे किण्वित खाद्य पदार्थ भारत की विविध आबादी के लिए व्यक्तिगत पोषण को सक्षम कर सकते हैं, माइक्रोबायोम विज्ञान को आहार संस्कृति के साथ एकीकृत कर सकते हैं।

बोस इंस्टीट्यूट

बोस इंस्टीट्यूट ने बायोलॉजिकल साइंस और वियरेबल टेक्नोलॉजी दोनों में महत्वपूर्ण रिसर्च किया। एक स्टडी में वियरेबल डिवाइस में इंटीग्रेटेड एक नए सिस्टम को दिखाया गया जो एडवांस्ड सेंसिंग और डेटा इंटरप्रिटेशन के ज़रिए स्ट्रेस का पता लगा सकता है, जो अगली पीढ़ी की हेल्थ मॉनिटरिंग का वादा करता है। एक और बड़ी उपलब्धि में भारतीय वैज्ञानिकों ने 50 साल पुराने बायोलॉजिकल नियम को फिर से लिखा, जिससे लाइफ साइंस में मौलिक समझ को नया आकार मिला और मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में भविष्य के रिसर्च पर असर पड़ा।

 

CeNS (सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज)

CeNS ने रिन्यूएबल एनर्जी मटीरियल, स्मार्ट सरफेस और सस्टेनेबल बैटरी में बड़ी प्रगति की है। बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने कुशल ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए एक नया अलॉय-आधारित कैटेलिस्ट विकसित किया और ऐसी स्मार्ट खिड़कियां बनाईं जो बाहरी बिजली के बिना रंग बदलती हैं, जिससे ऊर्जा-कुशल बिल्डिंग टेक्नोलॉजी में क्रांति आ गई है। उनके काम ने भारत के सौर-संचालित हाइड्रोजन उत्पादन के तरीकों को भी मजबूत किया। CeNS के शोधकर्ताओं ने सुपरचार्ज्ड ग्रीन-एनर्जी मटीरियल बनाए और लागत प्रभावी स्मार्ट खिड़कियां बनाईं, जिससे किफायती स्मार्ट-इंफ्रास्ट्रक्चर समाधानों को आगे बढ़ाया गया। इसके अलावा, संस्थान ने लचीली, सुरक्षित, पर्यावरण के अनुकूल बैटरी बनाईं और कुशल जिंक-आयन बैटरी टेक्नोलॉजी में सफलता हासिल की, जो भविष्य में हरित ऊर्जा भंडारण की ओर इशारा करता है।

 

आरआरआई (रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट)

आरआरआई ने क्वांटम फिजिक्स, अल्ट्राकोल्ड मैटर और कॉस्मोलॉजी में मौलिक रिसर्च को आगे बढ़ाया है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि एब्सोल्यूट ज़ीरो के पास पार्टिकल ट्रांसपोर्ट स्मार्ट क्वांटम डिवाइस बनाने में कैसे मदद कर सकता है। क्वांटम मैग्नेटोमेट्री में एक बड़ी छलांग ने सटीक चुंबकीय-क्षेत्र माप को सरल बनाया। उनके रिसर्च ने क्वांटम सिस्टम में शोर के आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाए, जो क्लासिकल अपेक्षाओं को चुनौती देते हैं। RRI ने यह जांच करके कॉस्मोलॉजी में योगदान दिया कि छोटे क्वांटम कंप्यूटर शुरुआती ब्रह्मांड के संकेतों को समझने में कैसे मदद कर सकते हैं, और यह दिखाया कि उच्च-ऊर्जा घटनाएं परमाणु-स्तर की बातचीत को कैसे आकार देती हैं, जिससे अगली पीढ़ी के क्वांटम मटीरियल संभव होते हैं। इसके अलावा, उन्होंने क्वांटम सिस्टम का उपयोग करके सच्ची रैंडमनेस को प्रमाणित किया, जिससे सुरक्षित डिजिटल टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाया गया।

 

एआरसीआई (इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मटीरियल्स)

एआरसीआई ने एक हाइड्रोजन-आधारित फ्यूल-सेल पावर सिस्टम विकसित किया है जिसे टेलीकॉम टावरों के लिए निर्बाध बैकअप पावर प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह इनोवेशन विश्वसनीयता बढ़ाता है और कार्बन फुटप्रिंट को कम करता है, जो भारत के स्वच्छ-ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर में हाइड्रोजन को एकीकृत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

 

एनईसीटीएआर (नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन एंड रीच)

एनईसीटीएआर ने बेहतर निगरानी और आपदा-प्रबंधन कार्यों के लिए तैयार किया गया एक इनोवेटिव एयरोस्टैटिक ड्रोन सिस्टम दिखाया। इसकी ज़्यादा स्थिरता और भार उठाने की क्षमता इसे प्राकृतिक आपदाओं, सुरक्षा अभियानों और आपातकालीन प्रतिक्रिया के दौरान रियल-टाइम निगरानी के लिए मूल्यवान बनाती है।

 

एआरआई (अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट)

एआरआई के वैज्ञानिकों ने एस्परगिलस सेक्शन निग्री के भीतर पहले से अज्ञात जैव विविधता का खुलासा किया, जिसमें भारत से दो नई प्रजातियों की पहचान की गई। यह खोज फंगल टैक्सोनॉमी की वैश्विक समझ को गहरा करती है और कृषि, खाद्य सुरक्षा, चिकित्सा और औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी के लिए इसके निहितार्थ हैं।

XI. रिसर्च इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करना

    • विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के 44 विभागों और 22 पोस्टग्रेजुएट कॉलेजों को फंड फॉर इम्प्रूवमेंट ऑफ S&T इंफ्रास्ट्रक्चर (FIST) प्रोग्राम के तहत सहायता दी गई है, जिसमें रिसर्च इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने और इनोवेशन को बढ़ावा देने, सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने और ट्रेनिंग और वर्कफोर्स डेवलपमेंट को बढ़ाने के लिए कुल ₹57.0 करोड़ आवंटित किए गए हैं।
    • विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के 285 FIST समर्थित विभागों की समीक्षा और निगरानी पांच चरणों की विषय विशेषज्ञ समिति की बैठकों के साथ पूरी हो गई है।
    • इसी तरह, विश्वविद्यालयों में रिसर्च इकोसिस्टम को मज़बूत करने के लिए PURSE के 19 चल रहे प्रोजेक्ट और 06 पूरे हो चुके प्रोजेक्ट की भी समीक्षा की गई, साथ ही राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप मिशन-उन्मुख रिसर्च का समर्थन किया गया और STEM विषयों में कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों, विश्वविद्यालयों और भौगोलिक क्षेत्रों का व्यापक प्रतिनिधित्व बढ़ाया गया।
    • प्रमोशन ऑफ यूनिवर्सिटी रिसर्च एंड साइंटिफिक एक्सीलेंस (PURSE) के तहत नौ नए विश्वविद्यालयों को कुल ₹99.0 करोड़ की सहायता दी गई।
    • आने वाले वर्ष में, FIST, PURSE, SAIF, SUPREME, और STUTI जैसे कार्यक्रम पोस्टग्रेजुएट कॉलेजों, संस्थानों और विश्वविद्यालयों सहित लगभग 150 अतिरिक्त विभागों की पहचान करने और उनका समर्थन करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे ताकि बेहतर रिसर्च इंफ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से वैज्ञानिक प्रतिभा की अगली पीढ़ी को मज़बूत और विस्तारित किया जा सके।
    • फंड फॉर इम्प्र्रूवमेंट ऑफ S&T इंफ्रास्ट्रक्चर (FIST) 2024 के तहत 115 विभागों और 22 PG कॉलेजों के लिए ₹273.89 करोड़ स्वीकृत किए गए।
    • IIT हैदराबाद में CISCoM की स्थापना DST- सोफिस्टिकेटेड एनालिटिकल एंड टेक्निकल हेल्प इंस्टीट्यूट (SATHI) के तहत की गई - यह भारत का पहला इन-सीटू माइक्रोस्कोपी केंद्र है।
    • आगामी: FIST के तहत 100 और विभागों के लिए समर्थन, नए PURSE चयन।

 

XII. टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और ट्रांसफर और स्टार्ट-अप और इनोवेशन इकोसिस्टम को मज़बूत करना

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) स्टार्ट-अप और व्यक्तिगत इनोवेटर्स को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हुए नेशनल इनिशिएटिव फॉर डेवलपिंग एंड हार्नेसिंग इनोवेशन (NIDHI) प्रोग्राम को लागू कर रहा है। मुख्य उपलब्धियों में शामिल हैं:

 

    • NIDHI प्रोग्राम का विस्तार टियर II/III शहरों तक किया गया।
    • 8 नए इंक्लूसिव टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्यूबेटर (iTBI) और 10 एंटरप्रेन्योर-इन-रेजिडेंस सेंटर स्थापित किए गए।
    • एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजीज (AMT) प्रोग्राम ने सरफेस इंजीनियरिंग और प्रिसिजन मैन्युफैक्चरिंग में 11 प्रोजेक्ट्स को सपोर्ट किया।
    • डेंटल टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब (MAIDS) का उद्घाटन — स्वदेशी उपकरणों को बढ़ावा — इस इनोवेटिव हब के उद्घाटन के साथ, DST का लक्ष्य स्वदेशी मेडिकल-डेंटल उपकरणों के विकास और निर्माण को सपोर्ट करना, आयात पर निर्भरता कम करना और हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता को मज़बूत करना है। यह हब भारतीय रोगियों और चिकित्सा संस्थानों के लिए अनुसंधान को किफायती उपकरणों में बदलने में तेज़ी ला सकता है।

 

XIII. समाज के समावेशी विकास के लिए समानता, सशक्तिकरण और विकास हेतु विज्ञान (SEED):

साइंस फॉर इक्विटी, एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट (SEED) प्रभाग समाज के वंचित वर्गों के सामने मौजूद सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के समाधान के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित पहलों के कार्यान्वयन को समर्थन देता है।

  • दिव्यांगजनों के लिए सहायक एवं पुनर्वास तकनीकों के विषय में 21 नई परियोजनाओं को समर्थन दिया गया है। इनमें वाणी और श्रवण विकारों के समाधान, दृष्टिबाधितों के लिए डिजिटल सुलभता उपकरण, तथा एक्सोस्केलेटन, प्रोस्थेटिक्स और अनुकूलित वाहनों जैसे गतिशीलता बढ़ाने वाले उपकरण शामिल हैं।
  • चार महिला प्रौद्योगिकी पार्क (WTPs) उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में स्थापित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों के माध्यम से लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और महिलाओं को सशक्त बनाना है।
  • आईसीएआर–आईआईएचआर, बेंगलुरु ने मिट्टी की दक्षता और पौधों के समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए “अर्का मैंगो स्पेशल” नामक सूक्ष्म पोषक तत्व मिश्रण विकसित किया है। इसके साथ आम किसानों की सहायता के लिए जल ट्रैप और फल मक्खी ट्रैप जैसी सहायक तकनीकें भी विकसित की गई हैं।
  • एक नेटवर्क परियोजना के तहत ICAR-NBAGR एवं NDRI, करनाल; DRDO-DIPAS एवं DIHAR; IISc बेंगलुरु और जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली ने लद्दाख की देशी ट्रांस-हिमालयी गायों के कोलोस्ट्रम और दूध में लाभकारी मेटाबोलाइट्स की पहचान की तथा सटीक प्रोटिओमिक विश्लेषण के लिए एंडोजीनस पेप्टाइड्स निकालने की प्रभावी विधि विकसित की।
  • विज्ञान आश्रम, पुणे ने ब्लैक सोल्जर फ्लाई (BSF) तकनीक को अपनाया और राजगुरुनगर में प्रति माह लगभग 60 मीट्रिक टन शहरी जैव-कचरे का प्रसंस्करण किया।
  • राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी, तिरुवनंतपुरम (केरल) ने सोलैनम नाइग्रुम (ब्लैक नाइटशेड) की पत्तियों से एक नवीन हर्बल मिनरल वॉटर फॉर्मुलेशन विकसित किया, जिसे पायलट-स्तर पर सफलतापूर्वक सत्यापित किया गया।
  • राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI), करनाल, हरियाणा में लैक्टोज असहिष्णु उपभोक्ताओं के लिए बेहतर घुलनशीलता और पोषण मूल्य वाला लैक्टोज-फ्री मिल्क पाउडर (LFMP) तैयार करने की पूरी तरह मानकीकृत प्रक्रिया विकसित की गई है।

XIV. अनुसूचित जाति उप-योजना (SCSP) एवं जनजातीय उप-योजना (TSP):

  • अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के समग्र विकास के लिए पांच (5) STI हब स्थापित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य प्रमुख आजीविका और आजीविका प्रणालियों से जुड़ी चुनौतियों के समाधान हेतु विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) आधारित समाधान विकसित करना है।
  • एनआईटी पुडुचेरी द्वारा किए गए STI हस्तक्षेप कराईकल ज़िले के आर्थिक रूप से वंचित मछुआरों की आजीविका आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं, जिसमें कटाई-पश्चात मत्स्य मूल्य श्रृंखला को सुदृढ़ किया जा रहा है।
  • आईआईटी जोधपुर पश्चिमी राजस्थान के 25 गाँवों में पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ जोड़कर आजीविका, स्थिरता और समुदाय-आधारित सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा दे रहा है।
  • आईआईटी गुवाहाटी असम की ग्रामीण जनजातीय समुदायों के लिए पर्यावरण-अनुकूल पॉलिमर का उपयोग कर जैव-अपघट्य खिलौना निर्माण इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित कर रहा है, जिससे आजीविका और सामाजिक उत्थान को बल मिल रहा है।
  • आईसीएआर–नेशनल रिसर्च ऑन पिग, गुवाहाटी असम के धेमाजी और लखीमपुर जिलों में मिसिंग और बोडो महिलाओं को सशक्त बना रहा है। इसके लिए सुअर पालन में एक STI हब स्थापित किया गया है, जहाँ ट्रेसबिलिटी, IoT-आधारित मांस निरीक्षण, माइक्रो एबेटॉयर और पोर्क उत्पाद प्रौद्योगिकियाँ शुरू की गई हैं।

XV. विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षमता निर्माण

"इंस्पायर्ड रिसर्च के लिए साइंस पर्सूट में इनोवेशन (INSPIRE)" विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक प्रमुख योजना है जो विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए है। INSPIRE कार्यक्रम का उद्देश्य कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर बेसिक और प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन करने के लिए मेधावी युवाओं को आकर्षित करना, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, कृषि और पशु चिकित्सा विज्ञान सहित बेसिक और एप्लाइड विज्ञान दोनों क्षेत्रों में अनुसंधान करियर बनाना और इस प्रकार, देश की विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रणाली और अनुसंधान और विकास आधार को मजबूत करने और विस्तार करने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण मानव संसाधन पूल का निर्माण करना है।

 

INSPIRE MANAK

 

    • INSPIRE MANAK देश भर के स्कूलों और छात्रों तक सफलतापूर्वक पहुंचा है, जिससे STEM शिक्षा को बढ़ावा मिला है। वर्ष 2025-26 के दौरान देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्कूलों से कुल 11.47 लाख विचारों और नवाचारों को जुटाया गया।
    • सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने कार्यक्रम में भाग लिया।
    • प्राप्त नामांकन में से 52% लड़कियों और 48% लड़कों के थे।
    • भाग लेने वाले 84% स्कूल देश के ग्रामीण हिस्सों में स्थित हैं।
    • वित्त वर्ष 2024-25 में INSPIRE-MANAK के लिए कुल 50009 स्कूली छात्रों का चयन किया गया और उन्हें प्रत्येक को 10000/- रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
    • चयनित छात्रों में से 27% (13495) SC/ST श्रेणी के हैं।
    • 54 छात्रों और 03 पर्यवेक्षकों ने SAKURA साइंस हाई स्कूल कार्यक्रम में भाग लिया और 15-21 जून, 2025 के दौरान जापान का दौरा किया।
    • मन की बात के 124वें एपिसोड में, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने INSPIRE-MANAK पहल पर प्रकाश डाला, और बच्चों में नवाचार की भावना को बढ़ावा देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया।

INSPIRE

    • वर्ष 2025 के दौरान, 24785 INSPIRE स्कॉलर्स, 3277 INSPIRE फेलो और 352 INSPIRE फैकल्टी फेलो को क्रमशः विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में स्नातक और स्नातकोत्तर, डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टोरल अनुसंधान करियर बनाने के लिए सहायता प्रदान की गई। • कॉम्पिटिटिव सिलेक्शन के आधार पर, 14 INSPIRE स्कॉलर्स और 3 सुपरवाइज़र ने एशियन साइंस कैंप (ASC) 2025 में हिस्सा लिया और 31 जुलाई से 6 अगस्त, 2025 के दौरान सुरनारी यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी, नाखोन रत्चासिमा, थाईलैंड का दौरा किया और कई शानदार अवॉर्ड जीते: 2 सिल्वर मेडल, 3 ब्रॉन्ज़ मेडल, 3 ऑनरेरी मेंशन, और एकमात्र स्पेशल प्राइज़।
    • कॉम्पिटिटिव सिलेक्शन के आधार पर, 8 INSPIRE फेलो को 9 से 13 मार्च 2025 के दौरान इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस सेंटर (ICC), योकोहामा, जापान में हुई 16वीं JSPS-HOPE मीटिंग में हिस्सा लेने का मौका दिया गया और उन्होंने अपने किए गए रिसर्च वर्क को दिखाया।

वाइज़-किरण

'साइंस एंड इंजीनियरिंग में महिलाएं-किरण (WISE-KIRAN)' का मकसद साइंस एंड टेक्नोलॉजी (S&T) के क्षेत्र में रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) में महिलाओं को बढ़ावा देना और प्रोत्साहित करना है। WISE-KIRAN स्कीम महिला वैज्ञानिकों को, खासकर उन महिलाओं को जिन्होंने करियर में ब्रेक लिया है, बेसिक और एप्लाइड साइंस में रिसर्च करने, सामाजिक चुनौतियों का सामना करने और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के क्षेत्र में ट्रेनिंग पाने के मौके देती है।

    • विज्ञान ज्योति कार्यक्रम में STEM में सपोर्ट की गई स्कूली लड़कियों की संख्या 29443 है।
    • PhD डिग्री हासिल करने के लिए सपोर्ट की गई महिलाओं की संख्या 108 है।
    • CURIE में R&D इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सपोर्ट किए गए सिर्फ महिलाओं के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की संख्या 27 है।
    • सपोर्ट की गई सीनियर महिला वैज्ञानिकों की संख्या 23 है।
    • UKIERI के सहयोग से लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम में प्रशिक्षित महिला वैज्ञानिकों की संख्या 168 है।
    • बेसिक साइंस, एप्लाइड साइंस और समाज के लिए ट्रांसलेशनल काम में R&D करने के लिए सपोर्ट की गई महिला वैज्ञानिकों की संख्या 572 है।
  • X. XVI. विज्ञान एवं विरासत अनुसंधान पहल (SHRI)

विज्ञान एवं विरासत अनुसंधान पहल (SHRI) के अंतर्गत आईआईटी-दिल्ली में सतत वस्त्र विरासत एवं प्रौद्योगिकी केंद्र की स्थापना की गई है, जिसका उद्देश्य भारत की पारंपरिक वस्त्र परंपराओं—जैसे बनारसी, तसर रेशम, बालूचरी/स्वर्णाचरी, फुलकारी कढ़ाई, महेश्वरी, इलकल बुनाई, जैन पाटा संरक्षण, भवानी जामक्कलम, मलमल (मुसलिन) बुनाई, मैसूर/मलबरी सिल्क, पुँजा दरी शिल्प, नामदा शिल्प तथा रिंडिया वस्त्र—का पुनरुद्धार करना है। यह केंद्र विरासत वस्त्र प्रक्रियाओं के कार्बन फुटप्रिंट का आकलन, उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों की पहचान तथा शमन और सततता रणनीतियों के विकास पर भी कार्य करेगा, जिससे देश में ग्रीन टेक्सटाइल्स के लिए नीतिगत ढांचा तैयार किया जा सके।

इसी पहल के तहत गोबर से विकसित एक प्राकृतिक हाइब्रिड ऐडसॉर्बेंट तैयार किया गया है, जिसका उपयोग कम लागत वाले ऊर्जा-भंडारण इलेक्ट्रोड के रूप में किया जा सकता है। इस संश्लेषित छिद्रयुक्त कार्बन सामग्री ने 45°C पर 20 मिनट के भीतर पानी से क्रोमियम (VI) का 90% निष्कासन प्रदर्शित किया, जिसकी अधिकतम अवशोषण क्षमता 219 mg/g रही। आगे चलकर इन इलेक्ट्रोड्स का उपयोग सुपरकैपेसिटर के रूप में किया गया, जहाँ 10,000 चक्रों के बाद भी 84% कैपेसिटेंस रिटेंशन दर्ज की गई।

 

  1. XVII. चिकित्सा उपकरण एवं प्रौद्योगिकी

“उन्नत स्वदेशी कॉक्लियर इम्प्लांट प्रणाली (श्रवण–II)” के डिज़ाइन, विकास, प्रमाणन एवं नैदानिक परीक्षण से संबंधित परियोजना को सोसाइटी फॉर बायोमेडिकल टेक्नोलॉजी (SBMT) द्वारा कार्यान्वयन हेतु स्वीकृति प्रदान की गई है। इस चार वर्षीय परियोजना के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने ₹1999.265 लाख का बजट प्रतिबद्ध किया है। प्रथम किस्त के रूप में ₹2.5 करोड़ (पूंजी मद के अंतर्गत ₹2 करोड़ तथा सामान्य मद के अंतर्गत ₹50 लाख) जारी किए गए हैं। यह परियोजना देश में किफायती और उन्नत चिकित्सा उपकरणों के स्वदेशी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

इसके अतिरिक्त, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के बीच 27.11.2025 को एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए, जिसका उद्देश्य आयुष अवधारणाओं, प्रक्रियाओं एवं उत्पादों को समर्थन देने वाले अनुसंधान को प्रोत्साहित करना है।

XVIII. राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यक्रम

अरुणाचल प्रदेश राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (APSCST) ने तापमान-स्वतंत्र एवं पुनर्जीवनीय सूक्ष्मजीव संरक्षण प्रणाली विकसित की है, जो कोल्ड-चेन-मुक्त जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह स्वदेशी प्लेटफॉर्म –196°C से +50°C तक के तापमान दायरे में, विभिन्न सूक्ष्मजीव समूहों के अनुरूप तैयार की गई स्वामित्व वाली हाइड्रोजेल-आधारित संरचनाओं के माध्यम से बैक्टीरिया, यीस्ट, एनारोब्स एवं फंगस सहित अनेक सूक्ष्मजीवों का 36 महीनों तक दीर्घकालिक संरक्षण संभव बनाता है।

यह प्रौद्योगिकी OECD/World Federation for Culture Collections (WFCC) के वैश्विक मानकों से भी बेहतर प्रदर्शन करती है और इसके व्यावसायीकरण हेतु राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (NRDC) को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित की जा चुकी है। इससे भारत की जैव-प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य लॉजिस्टिक्स, औद्योगिक किण्वन, कृषि तथा सूक्ष्मजीव संसाधन वितरण क्षमताओं को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा।

XIX. वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक (VAIBHAV)

ESTIC–2025 के दौरान, 4 नवम्बर 2025 को भारत मंडपम, नई दिल्ली में “विकसित भारत के लिए VAIBHAV विज़न” विषय पर एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र में यूके, अमेरिका, कनाडा, स्वीडन, जर्मनी, सिंगापुर, फिनलैंड, ऑस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों के विश्वविद्यालयों, संस्थानों, उद्योग तथा अनुसंधान एवं विकास केंद्रों से जुड़े 19 VAIBHAV फेलो और 20 भारतीय होस्ट संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रतिभागियों ने VAIBHAV फेलोशिप के माध्यम से प्रवासी भारतीय वैज्ञानिकों के संरचित और संस्थागत जुड़ाव के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना की। साथ ही, भारतीय संस्थानों और प्रवासी भारतीय शिक्षाविदों/वैज्ञानिकों के बीच सहयोग को और सुदृढ़ करने के लिए छात्र एवं संकाय विनिमय यात्राओं, फेलोशिप की अवधि बढ़ाने तथा अकादमिक–उद्योग सहयोग को प्रोत्साहित करने जैसे सुझाव साझा किए।

VAIBHAV फेलोशिप के दूसरे आह्वान के अंतर्गत कुल 216 प्रस्ताव प्राप्त हुए, जिनमें से 17 आवेदकों को पुरस्कार के लिए अनुशंसित किया गया। तीसरे आह्वान की घोषणा वर्ष 2025 में की गई, जिसके तहत 227 प्रस्ताव प्राप्त हुए। पात्रता जांच के उपरांत 201 प्रस्तावों को तकनीकी मूल्यांकन के लिए स्वीकृत किया गया है, जो वर्तमान में मूल्यांकन की प्रक्रिया में हैं।

XX. भू-स्थानिक (जियोस्पेशियल) मिशन


वित्त वर्ष 2025–26 के बजट में घोषित राष्ट्रीय भू-स्थानिक मिशन के लिए वर्ष 2025–26 में ₹100 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इस मिशन का उद्देश्य पीएम गति शक्ति फ्रेमवर्क के माध्यम से आधारभूत भू-स्थानिक अवसंरचना का आधुनिकीकरण करना है। मिशन के प्रमुख लक्ष्यों में शहरी नियोजन को सुदृढ़ करना, भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण तथा अवसंरचना के बेहतर नियोजन और अनुकूलन को बढ़ावा देना शामिल है। वर्तमान में इस मिशन की स्वीकृति प्रक्रिया प्रगति पर है।

XXI. राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (NCSTC)


राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद (NCSTC) प्रभाग ने “साइंस ऑन व्हील्स” पहल के अंतर्गत महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में गतिविधियाँ प्रारंभ की हैं। महाराष्ट्र में यह विज्ञान बस नासिक जिले के त्र्यंबकेश्वर तहसील के 16 जनजातीय गांवों के 22 स्कूलों में पहुंची। अब तक इस पहल से 240 शिक्षकों सहित कुल 9,348 लाभार्थी लाभान्वित हुए हैं, जहां हैंड्स-ऑन गतिविधियों, STEM प्रदर्शनों और उभरती तकनीकों के माध्यम से इंटरैक्टिव विज्ञान शिक्षण प्रदान किया गया।
पश्चिम बंगाल में, यह बस उत्तर 24 परगना जिले के 36 स्कूलों में गई, जहां अनुसूचित जाति और पिछड़े क्षेत्रों के लगभग 8,000 विद्यार्थियों को इंटरैक्टिव विज्ञान शिक्षा से लाभ मिला।

आंध्र प्रदेश में “साइंस ऑन व्हील्स” बस ने अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले के 60 स्कूलों का दौरा किया, जिससे 40,500 विद्यार्थियों को लाभ पहुँचा। इस पहल के माध्यम से भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की गौरवशाली विरासत को पुनर्जीवित किया गया। विद्यार्थियों को भारतीय गणित, खगोल विज्ञान, कला एवं वास्तुकला, प्राचीन पुरातात्विक प्रणालियाँ, खाद्य संस्कृति, शिल्प, बुनाई और हथकरघा वस्त्र, मिट्टी के बर्तन, धातु कार्य, स्वास्थ्य प्रणालियाँ, धातुकर्म, मृदा संरक्षण तथा प्राचीन काल की ऊर्जा उत्पादन प्रणालियों से संबंधित इंटरैक्टिव सत्रों और प्रदर्शनों के माध्यम से अवगत कराया गया।

दिल्ली में इस बस के माध्यम से 4,150 विद्यार्थियों को अत्यंत प्रासंगिक विषय “स्वच्छ और हरित ऊर्जा” पर जागरूक किया गया। 31वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस (NCSC) का आयोजन 3 से 6 जनवरी 2025 के दौरान भोपाल, मध्य प्रदेश में “स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पारितंत्र को समझना” विषय पर किया गया। इसमें राज्य स्तरीय बाल विज्ञान कांग्रेस से चयनित 607 बाल वैज्ञानिकों ने अपने प्रोजेक्ट प्रस्तुत किए, जिनमें से 20 सर्वश्रेष्ठ प्रोजेक्ट राष्ट्रीय स्तर पर चयनित किए गए।

इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पूरे देश में मनाया गया, जिससे 6,35,894 से अधिक लोग लाभान्वित हुए। इस अवसर पर विज्ञान किट/वीडियो/ऐप निर्माण, पोस्टर प्रस्तुति, विज्ञानोत्सव – राष्ट्रीय विज्ञान दिवस क्विज़ 2025, रैली, सेमिनार और कार्यशालाओं जैसी विविध वैज्ञानिक गतिविधियां स्कूलों, कॉलेजों, संस्थानों और विश्वविद्यालयों में आयोजित की गईं। इस दौरान विशेष रूप से दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए तकनीक-सक्षम विशेष सत्र भी आयोजित किए गए हैं।

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पीके/केसी/वीएस

 


(रिलीज़ आईडी: 2206885) आगंतुक पटल : 35
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