संस्कृति मंत्रालय
आत्मबोध केवल ज्ञान नहीं, बल्कि अनुभव है - डॉ. भागेश वासुदेव झा
प्रविष्टि तिथि:
29 DEC 2025 10:40PM by PIB Delhi
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के कला निधि प्रभाग द्वारा 29 दिसंबर 2025 को सम्वेत सभागार में “आत्मबोध से विश्वबोध” विषय पर डॉ. कपिला वात्स्यायन स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया।

यह स्मृति व्याख्यान गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. भागेश वासुदेव झा, आईएएस (सेवानिवृत्त) ने दिया। सत्र की अध्यक्षता आईजीएनसीए न्यास के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय ने की। आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने स्वागत भाषण दिया, जबकि प्रो. (डॉ.) रमेश चंद्र गौड़, डीन एवं प्रमुख, कला निधि प्रभाग ने कार्यक्रम का आरंभ किया।

आईजीएनसीए की संस्थापक सदस्य सचिव डॉ. कपिला वात्स्यायन भारतीय कला, संस्कृति और आध्यात्मिक चिंतन की प्रतिष्ठित विदुषी थीं और उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। प्रत्येक वर्ष उनकी स्मृति में आईजीएनसीए डॉ. कपिला वात्स्यायन स्मृति व्याख्यान का आयोजन करता है।

व्याख्यान से पूर्व, आईजीएनसीए की दर्शनम I और II गैलरी में ‘अभिव्यक्ति:एक्सप्रेशन्स ऑफ द लूम फ्रॉम द वॉल्ट ऑफ ए विज़नरी’ प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। यह प्रदर्शनी डॉ. कपिला वात्स्यायन के व्यक्तिगत वस्त्र संग्रह से ली गई है और इसे सुश्री सारिका अग्रवाल, वस्त्र अभिलेखकर्ता एवं शोधकर्ता ने क्यूरेट किया है। इस प्रदर्शनी में वस्त्रों को स्मृति, सांस्कृतिक निरंतरता और अनुभवों के वाहक के रूप में प्रस्तुत किया गया है और यह 7 जनवरी 2026 तक दर्शकों के लिए खुली रहेगी।

स्मृति व्याख्यान देते हुए डॉ. भागेश वासुदेव झा ने कहा कि समकालीन वैश्विक संकट मूलतः पहचान का संकट है, जो मानवता को व्यापक पैमाने पर प्रभावित कर रहा है। उन्होंने फ्रांसिस फुकुयामा, सैमुअल हंटिंगटन और शंकराचार्य जैसे विचारकों का हवाला देते हुए कहा कि आधुनिक विचारधाराएँ समयबद्ध होती हैं, जबकि भारतीय चिंतन स्थायी है। उन्होंने इस्राइल–हामास युद्ध और रूस–यूक्रेन संघर्ष सहित वैश्विक संघर्षों का उदाहरण देते हुए कहा कि सभी संघर्षों की जड़ में पहचान के प्रश्न निहित हैं।

उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान को भारतीय आत्म-बोध की आधुनिक अभिव्यक्ति बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि इस प्रौद्योगिकी प्रधान युग में सबसे बड़ा खतरा मानसिक असंतुलन है, जिसका उपचार केवल प्रौद्योगिकी में नहीं, बल्कि आत्म-बोध में निहित है।
डॉ. झा ने भगवद गीता और उपनिषदों का हवाला देते हुए “अहं ब्रह्मास्मि” और “तत्त्वमसि” को भारतीय चेतना के मूल सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया, जो व्यक्तियों को अहंकार, भय और ईर्ष्या से मुक्त करते हैं। उन्होंने जोर दिया कि आत्मबोध केवल ज्ञान नहीं, बल्कि अनुभव है। शंकराचार्य की साधन चतुष्टय में—विवेक, वैराग्य, गुणों का विकास और मोक्ष की आकांक्षा—को आत्म-साक्षात्कार के व्यवस्थित मार्ग के रूप में वर्णित किया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मोक्ष का अर्थ केवल उद्धार नहीं है, बल्कि यह भय, अहंकार और आसक्ति से स्वतंत्रता प्रदान करता है।
भारतीय दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि मृत्यु को अंत के रूप में नहीं, बल्कि चेतना की सतत यात्रा के रूप में देखा जाता है, जो उपनिषदों और जीवित परंपराओं के माध्यम से निरंतर बनी रहती है। साक्षी भाव के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि स्वयं का अवलोकन करने की क्षमता ही आत्मबोध की शुरुआत है। भगवद गीता में वर्णित विश्वरूप का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि भारतीय वैश्विक दृष्टि स्वयं और अन्य के बीच विभाजन को समाप्त कर देती है। उन्होंने “सर्वे भवन्तु सुखिनः” को भारत के दृष्टिकोण का आधार बताते हुए कहा कि भारत का विजन सार्वभौमिक रूप से कल्याणकारी है। अंत में उन्होंने कहा कि नदियों, प्रकृति और पृथ्वी को माता के रूप में पूजना भारत की वैश्विक दृष्टि को दर्शाता है, और आत्मबोध से विश्वबोध की यात्रा समकालीन वैश्विक चुनौतियों को हल करने में भारत का सार्थक योगदान है।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अपने स्वागत भाषण में डॉ. कपिला वात्स्यायन के आईजीएनसीए के साथ गहरे संबंध और संस्था में उनके अटूट विश्वास को याद किया। उन्होंने बताया कि पद ग्रहण करने के बाद, अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय के मार्गदर्शन में, उनके साथ प्रत्यक्ष संवाद स्थापित हुआ, जिससे आपसी विश्वास और मार्गदर्शन की निरंतर परंपरा बनी। उन्होंने कहा कि यह निरंतरता और सम्मान आईजीएनसीए के सांस्कृतिक लोकाचार को दर्शाता है।
अभिव्यक्ति वस्त्र प्रदर्शनी का हवाला देते हुए डॉ. जोशी ने कहा कि वस्त्र केवल भौतिक वस्तुएँ नहीं, बल्कि स्मृति, भाव और परंपरा के वाहक हैं। उन्होंने बताया कि कपिला वात्स्यायन का वस्त्र संग्रह बहु-स्तरीय कथाएँ और जीवित अनुभव प्रकट करता है, और उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि स्मृति व्याख्यान और प्रदर्शनी दर्शकों को नवीन बौद्धिक अनुभव प्रदान करेंगे।
इस अवसर पर प्रो. (डॉ.) रमेश चंद्र गौड़ ने कहा कि डॉ. कपिला वात्स्यायन स्मृति व्याख्यान सतत विद्वत परंपरा के तहत नियमित रूप से आयोजित किया जाता रहा है। उन्होंने विद्वानों के व्यक्तिगत संग्रह को संरक्षित करने और जनता के लिए उपलब्ध कराने की आईजीएनसीए की प्रतिबद्धता को दोहराया। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि कॅटलॉग के साथ आयोजित अभिव्यक्ति प्रदर्शनी इसी संस्थागत प्रयास का विस्तार है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि वस्त्र मानव सभ्यता का अभिन्न अंग रहे हैं और ये सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक कथाओं के वाहक हैं। उन्होंने देखा कि भारत की वस्त्र परंपराएँ इसके सभ्यतागत लोकाचार का जीवित अभिलेख प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि स्मृति व्याख्यान और प्रदर्शनी अनुसंधान, विमर्श और सांस्कृतिक संवाद के नए मार्ग खोलेंगे।
‘अभिव्यक्ति’ को डॉ. कपिला वात्स्यायन के वस्त्र संग्रह को समर्पित श्रद्धांजलि, प्रतिबिंब और कार्य के लिए आह्वान के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह संग्रह उनके सूक्ष्म सौंदर्यबोध, भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में गहन संलग्नता और धरोहर के संरक्षण में विश्वास को दर्शाता है। उनकी शारीरिक अनुपस्थिति में यह संग्रह एक खजाना और जिम्मेदारी दोनों के रूप में खड़ा है, जो भावी पीढ़ियों को उस दूरदर्शी से जोड़ने का अवसर देता है, जिन्होंने परंपरा में निहित और दूरदर्शी बने रहते हुए भारत के सांस्कृतिक विमर्श को आकार दिया।
इस कार्यक्रम में विद्वानों, शोधकर्ताओं और संस्कृति में रुचि रखने वाले लोगों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही।
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पीके/केसी/आरके
(रिलीज़ आईडी: 2209727)
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