प्रधानमंत्री कार्यालय
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में ज्ञान भारतम पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया
प्रधानमंत्री ने पांडुलिपि के डिजिटलीकरण, संरक्षण और सार्वजनिक पहुंच में तेजी लाने के लिए एक समर्पित डिजिटल प्लेटफॉर्म ज्ञान भारतम पोर्टल का शुभारंभ किया
ज्ञान भारतम मिशन भारत की संस्कृति, साहित्य और चेतना का उद्घोष बनने जा रहा है: प्रधानमंत्री श्री मोदी
भारत के पास वर्तमान में लगभग एक करोड़ पांडुलिपियों का दुनिया का सबसे बड़ा संग्रह है: प्रधानमंत्री
इतिहास में करोड़ों पांडुलिपियाँ नष्ट कर दी गईं, लेकिन जो शेष हैं, वे दर्शाती हैं कि हमारे पूर्वज ज्ञान, विज्ञान और शिक्षा के प्रति कितने समर्पित थे: प्रधानमंत्री
भारत की ज्ञान परंपरा संरक्षण, नवाचार, संवर्धन और अनुकूलन के चार स्तंभों पर बनी है: प्रधानमंत्री श्री मोदी
भारत का इतिहास केवल सल्तनतों के उत्थान और पतन के बारे में नहीं है: प्रधानमंत्री
भारत स्वयं एक जीवंत प्रवाह है, जिसे इसके विचारों, आदर्शों और मूल्यों द्वारा आकार दिया गया है: प्रधानमंत्री
भारत की पांडुलिपियों में समूची मानवता की विकास यात्रा के पदचिह्न शामिल हैं: प्रधानमंत्री
Posted On:
12 SEP 2025 8:11PM by PIB Delhi
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ज्ञान भारतम पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए कहा कि विज्ञान भवन आज भारत के सुनहरे अतीत के पुनरुत्थान का साक्षी बन रहा है। उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले ही उन्होंने ज्ञान भारतम मिशन की घोषणा की थी और इतने कम समय में ज्ञान भारतम अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मोदी ने बताया कि मिशन से जुड़ा पोर्टल का भी शुभारंभ किया गया है। श्री मोदी ने कहा कि यह कोई सरकारी या शैक्षणिक कार्यक्रम नहीं है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि ज्ञान भारतम मिशन भारत की संस्कृति, साहित्य और चेतना की उद्घोषणा बनने के लिए तैयार है। उन्होंने हजारों पीढ़ियों की चिंतनशील विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने भारत के ज्ञान, परंपराओं और वैज्ञानिक विरासत का उल्लेख करते हुए भारत के महान संतों, आचार्यों और विद्वानों के ज्ञान तथा अनुसंधान की प्रशंसा की। श्री मोदी ने कहा कि ज्ञान भारतम मिशन के माध्यम से इन विरासतों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है। उन्होंने इस मिशन के लिए सभी नागरिकों को बधाई दी और ज्ञान भारतम की पूरी टीम और संस्कृति मंत्रालय को अपनी शुभकामनाएं दीं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पांडुलिपि को देखना समय यात्रा के समान लगता है। श्री मोदी ने वर्तमान परिस्थितियों और अतीत की स्थितियों के बीच विशाल अंतर पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज, कीबोर्ड की सहायता से, हम डिलीट और करेक्शन विकल्पों की सुविधा के साथ बड़े पैमाने पर लिखने में सक्षम हैं और प्रिंटर के माध्यम से एक पृष्ठ की हजारों प्रतियां तैयार की जा सकती हैं। श्री मोदी ने उपस्थित लोगों से सदियों पहले की दुनिया की कल्पना करने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि उस समय आधुनिक भौतिक संसाधन उपलब्ध नहीं थे और हमारे पूर्वजों को केवल बौद्धिक संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता था। उन्होंने प्रत्येक पत्र को लिखते समय सावधानीपूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। प्रत्येक ग्रंथ को बनाने में शामिल अपार प्रयास को रेखांकित करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि उस समय भी भारत के लोगों ने भव्य पुस्तकालयों का निर्माण किया जो ज्ञान के वैश्विक केंद्र बन गए। प्रधानमंत्री ने इस बात की पुष्टि की कि भारत के पास अब भी दुनिया का सबसे बड़ा पांडुलिपि संग्रह है। श्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के पास लगभग एक करोड़ पांडुलिपियां मौजूद हैं।
इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि लाखों पांडुलिपियां नष्ट हो गईं और इतिहास के क्रूर थपेडों में खो गईं, श्री मोदी ने इस बात पर बल दिया कि बची हुई पांडुलिपियां ज्ञान, विज्ञान, पढ़ने और सीखने के प्रति हमारे पूर्वजों के गहन समर्पण का प्रमाण हैं। भोजपत्र और ताड़ के पत्तों पर लिखे गए ग्रंथों की नाजुकता और तांबे की प्लेटों पर अंकित शब्दों में धातु के क्षरण के खतरे को ध्यान में रखते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इन चुनौतियों के बावजूद, हमारे पूर्वजों ने शब्दों को दिव्य मानकर 'अक्षर ब्रह्म भव' की भावना के साथ उनकी सेवा की। उन्होंने कहा कि पीढ़ी दर पीढ़ी परिवारों ने ज्ञान के प्रति अपार श्रद्धा को रेखांकित करते हुए इन ग्रंथों और पांडुलिपियों को सावधानी से संरक्षित किया। श्री मोदी ने समाज के प्रति दायित्व की भावना पर बल देते हुए आने वाली पीढ़ियों की चिंता की बात की। उन्होंने राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना की पुष्टि करते हुए कहा कि इस तरह की प्रतिबद्धता का एक बड़ा उदाहरण कहां पाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा, "भारत की ज्ञान परंपरा आज भी समृद्ध बनी हुई है क्योंकि यह संरक्षण, नवाचार, परिवर्धन और अनुकूलन के चार मूलभूत स्तंभों पर बनी हुई है। " पहले स्तंभ- संरक्षण के बारे में विस्तार से बताते हुए, श्री मोदी ने कहा कि वेद, भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथों को भारतीय संस्कृति की नींव माना जाता है। वेदों के सर्वोच्च होने की पुष्टि करते हुए, उन्होंने बताया कि पहले, वेदों को मौखिक परंपरा- 'श्रुति' के माध्यम से अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जाता था। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हजारों वर्षों तक, वेदों को पूरी प्रामाणिकता के साथ और बिना किसी त्रुटि के संरक्षित किया गया था। इसके बाद प्रधानमंत्री ने दूसरे स्तंभ- नवाचार के बारे में बात की, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि भारत आयुर्वेद, वास्तु शास्त्र, ज्योतिष और धातु विज्ञान में लगातार नवाचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक पीढ़ी पिछली पीढ़ी से आगे बढ़ी और प्राचीन ज्ञान को और अधिक वैज्ञानिक बनाया। उन्होंने निरंतर विद्वानों के योगदान और नए ज्ञान को जोड़ने के उदाहरण के रूप में सूर्य सिद्धांत और वराहमिहिर संहिता जैसे ग्रंथों का हवाला दिया। तीसरे स्तंभ-परिवर्धन के बारे में चर्चा करते हुए, श्री मोदी ने बताया कि हर पीढ़ी ने न केवल पुराने ज्ञान को संरक्षित किया बल्कि नई अंतर्दृष्टि का भी योगदान दिया। उन्होंने उदाहरण दिया कि मूल वाल्मीकि रामायण के बाद कई अन्य रामायणों की रचना की गई। उन्होंने इस परंपरा से उभरे रामचरितमानस जैसे ग्रंथों का उल्लेख किया, जबकि वेदों और उपनिषदों पर टीकाएं लिखी गईं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय आचार्यों ने द्वैत और अद्वैत जैसी व्याख्याएं कीं।
भारत की ज्ञान परंपरा के चौथे स्तंभ- अनुकूलन पर चर्चा करते हुए, प्रधानमंत्री ने बताया कि समय के साथ, भारत आत्मनिरीक्षण में लगा हुआ है और आवश्यक परिवर्तन किए हैं। उन्होंने चर्चा को दिए गए महत्व और शास्त्रार्थ की परंपरा को जारी रखने पर बल दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि समाज ने पुराने विचारों को त्याग दिया और नए विचारों को अपनाया। श्री मोदी ने कहा कि मध्यकाल के दौरान, जब विभिन्न सामाजिक बुराइयों का उदय हुआ, तो प्रतिष्ठित हस्तियों का उदय हुआ, जिन्होंने सामाजिक चेतना को जागृत किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि इन व्यक्तियों ने भारत की बौद्धिक विरासत को संरक्षित और सुरक्षित किया।
प्रधानमंत्री ने कहा, "राष्ट्रीयता की आधुनिक धारणाओं के विपरीत, भारत की एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, अपनी चेतना और अपनी आत्मा है। " उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत का इतिहास केवल वंशवादी जीत और हार का रिकॉर्ड नहीं है। उन्होंने कहा कि समय के साथ रियासतों और राज्यों का भूगोल बदल गया है, लेकिन भारत हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक अक्षुण्ण रहा है। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि भारत एक जीवंत धारा है, जो अपने विचारों, आदर्शों और मूल्यों से आकार लेती है। श्री मोदी ने कहा, "भारत की प्राचीन पांडुलिपियां इस सभ्यतागत यात्रा के निरंतर प्रवाह को दर्शाती हैं।" उन्होंने कहा कि ये पांडुलिपियां विविधता में एकता की भावना भी प्रदर्शित करती हैं। उन्होंने बताया कि देश भर में लगभग 80 भाषाओं में पांडुलिपियां मौजूद हैं। उन्होंने संस्कृत, प्राकृत, असमिया, बंगाली, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम और मराठी को कई भाषाओं में सूचीबद्ध किया, जिनमें भारत के ज्ञान का विशाल महासागर संरक्षित है। इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि गिलगित पांडुलिपियां कश्मीर में प्रामाणिक ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं, प्रधानमंत्री ने कहा कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र की पांडुलिपि राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र की भारत की गहरी समझ को प्रकट करती है। उन्होंने कहा कि आचार्य भद्रबाहु की कल्पसूत्र पांडुलिपि जैन धर्म के प्राचीन ज्ञान की रक्षा करती है और सारनाथ की पांडुलिपियों में भगवान बुद्ध की शिक्षाएं हैं। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि रसमंजरी और गीतगोविंद जैसी पांडुलिपियों ने भक्ति, सौंदर्य और साहित्य के विविध रंगों को संरक्षित किया है।
श्री मोदी ने जोर देकर कहा, "भारत की पांडुलिपियों में मानवता की संपूर्ण विकास यात्रा के पदचिह्न शामिल हैं।” उन्होंने कहा कि इनमें चिकित्सा और तत्वमीमांसा शामिल हैं और कला, खगोल विज्ञान और वास्तुकला के ज्ञान को भी संरक्षित किया जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अनगिनत उदाहरण दिए जा सकते हैं, इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि गणित से लेकर बाइनरी-आधारित कंप्यूटर विज्ञान तक, आधुनिक विज्ञान की नींव शून्य की अवधारणा पर टिकी हुई है। इस बात की पुष्टि करते हुए कि शून्य की खोज भारत में हुई थी, श्री मोदी ने कहा कि बख्शाली पांडुलिपि में शून्य और गणितीय सूत्रों के प्राचीन उपयोग के प्रमाण हैं। उन्होंने कहा कि यशोमित्र की बोवर पांडुलिपि सदियों पुराने चिकित्सा विज्ञान में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों की पांडुलिपियों ने आज तक आयुर्वेद के ज्ञान को संरक्षित रखा है। उन्होंने कहा कि सुल्व सूत्र प्राचीन ज्यामितीय ज्ञान प्रदान करता है, जबकि कृषि पराशर पारंपरिक कृषि ज्ञान के बारे में जानकारी प्रदान करता है। उन्होंने आगे कहा कि नाट्य शास्त्र जैसे ग्रंथों की पांडुलिपियां हमें मानव भावनात्मक विकास की यात्रा को समझने में सहायता करती हैं।
यह कहते हुए कि प्रत्येक राष्ट्र अपनी ऐतिहासिक संपत्ति को सभ्यता की महानता के प्रतीक के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है, प्रधानमंत्री ने कहा कि देश एक भी पांडुलिपि या कलाकृति को राष्ट्रीय खजाने के रूप में संरक्षित करते हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत के पास पांडुलिपियों का अपार भंडार है, जो राष्ट्रीय गौरव का विषय है।
प्रधानमंत्री ने कुवैत की अपनी यात्रा का एक व्यक्तिगत अनुभव साझा किया, जहां वह एक ऐसे सज्जन से मिले, जिनके पास भारत के प्राचीन समुद्री व्यापार मार्गों का विवरण देने वाले ऐतिहासिक दस्तावेजों का एक व्यापक संग्रह है। उन्होंने कह कि उन सज्जन ने बड़े गर्व के साथ उनसे संपर्क किया और ऐसी सामग्री प्रस्तुत की जो यह दर्शाती है कि सदियों पहले भारत ने समुद्र आधारित व्यापार कैसे किया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस तरह के संग्रह भारत के वैश्विक जुड़ाव की गहराई और सीमाओं के पार इसके सम्मान को दर्शाते हैं। उन्होंने इन बिखरे हुए खजानों को व्यापक राष्ट्रीय प्रयास में संरक्षित और एकीकृत करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये अभिलेख - चाहे वे कहीं भी मिलें - उनका दस्तावेजीकरण, डिजिटलीकरण और भारत की सभ्यतागत विरासत के हिस्से के रूप में जश्न मनाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, 'भारत ने दुनिया का विश्वास अर्जित किया है। आज, राष्ट्र भारत को सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और सम्मान करने के लिए सही स्थान के रूप में देखते हैं।” उन्होंने कहा कि इससे पहले, केवल कुछ चोरी की गई भारतीय मूर्तियां ही वापस की जाती थीं। लेकिन अब सैकड़ों प्राचीन मूर्तियों को वापस लाया जा रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये वापस लाने की भावना या सहानुभूति से प्रेरित नहीं हैं, बल्कि विश्वास से प्रेरित हैं कि भारत उनके सांस्कृतिक मूल्य को गरिमा के साथ संरक्षित और संवर्धित करेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत दुनिया की नजरों में विरासत का एक विश्वसनीय संरक्षक बन गया है। उन्होंने मंगोलिया की अपनी यात्रा का एक व्यक्तिगत अनुभव साझा किया, जहां उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं के साथ बातचीत की और उनके समृद्ध पांडुलिपि संग्रह का अवलोकन किया। उन्होंने उन पांडुलिपियों पर काम करने की अनुमति का अनुरोध करने के बारे में बताया, जिन्हें बाद में भारत लाया गया, डिजिटल किया गया और सम्मानपूर्वक वापस कर दिया गया। उन्होंने पुष्टि की कि वे पांडुलिपियां अब मंगोलिया के लिए एक क़ीमती विरासत बन गई हैं।
यह पुष्टि करते हुए कि भारत अब इस विरासत को गर्व के साथ दुनिया के सामने पेश करने की तैयारी कर रहा है, श्री मोदी ने कहा कि ज्ञान भारतम मिशन इस भव्य पहल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि देश भर में कई संस्थान जनभागीदारी की भावना से सरकार के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने काशी नागरी प्रचारिणी सभा, कोलकाता की एशियाटिक सोसाइटी, उदयपुर के 'धरोहर', गुजरात के कोबा में आचार्य श्री कैलाशसूरी ज्ञानमंदिर, हरिद्वार में पतंजलि, पुणे में भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट और तंजावुर में सरस्वती महल पुस्तकालय के नाम का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि ऐसे सैकड़ों संस्थानों के सहयोग से अब तक दस लाख से अधिक पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जा चुका है। श्री मोदी ने कहा कि कई नागरिक अपनी पारिवारिक विरासत को राष्ट्र के लिए उपलब्ध कराने के लिए आगे आए हैं। उन्होंने इन सभी संस्थानों और ऐसे प्रत्येक नागरिक के प्रति आभार व्यक्त किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने कभी भी अपने ज्ञान को मौद्रिक शक्ति से नहीं मापा है। भारतीय ऋषियों के प्राचीन ज्ञान को उद्धृत करते हुए कि ज्ञान सबसे बड़ा दान है, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्राचीन काल में, भारत के लोग उदारता की भावना के साथ पांडुलिपियों का दान करते थे। श्री मोदी ने कहा कि जब चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भारत का दौरा किया, तो वह छह सौ से अधिक पांडुलिपियों को अपने साथ ले गए। उन्होंने कहा कि कई भारतीय पांडुलिपियां चीन के रास्ते जापान पहुंचीं। इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि 7वीं शताब्दी में, इन पांडुलिपियों को जापान के होर्यू-जी मठ में राष्ट्रीय राजधानी के रूप में संरक्षित किया गया था, प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भी दुनिया भर के कई देशों में भारत की प्राचीन पांडुलिपियां हैं। उन्होंने आगे कहा कि ज्ञान भारतम मिशन के अंतर्गत भारत मानवता की इस साझा विरासत को एकजुट करने का भी प्रयास करेगा।
यह उल्लेख करते हुए कि भारत ने जी-20 के सांस्कृतिक संवाद के दौरान इस प्रयास की शुरुआत की, प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि भारत के साथ सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंध वाले देश इस अभियान में सक्रिय रूप से शामिल हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि मंगोलियाई कंजुर के पुनर्मुद्रित खंड मंगोलिया के राजदूत को उपहार में दिए गए थे। उन्होंने कहा कि 2022 में, इन 108 खंडों को मंगोलिया और रूस के मठों में भी वितरित किया गया था। श्री मोदी ने कहा कि भारत ने थाईलैंड और वियतनाम के विश्वविद्यालयों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने कहा कि इन देशों के विद्वानों को प्राचीन पांडुलिपियों को डिजिटल बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, पाली, लन्ना और चाम भाषाओं में कई पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया गया है, श्री मोदी ने पुष्टि की कि ज्ञान भारतम मिशन के माध्यम से, भारत इन पहलों का और अधिक विस्तार करेगा।
यह कहते हुए कि ज्ञान भारतम मिशन एक बड़ी चुनौती का भी समाधान करेगा, प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सदियों से उपयोग की जाने वाली भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के कई तत्वों को अक्सर दूसरों द्वारा कॉपी और पेटेंट कराया जाता है। उन्होंने पायरेसी के इस रूप पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि डिजिटल पांडुलिपियां इस तरह के दुरुपयोग का मुकाबला करने के प्रयासों में तेजी लाएंगी और बौद्धिक चोरी को विनियमित करने में मदद करेंगी। श्री मोदी ने पुष्टि की कि दुनिया विभिन्न विषयों में प्रामाणिक और मूल स्रोतों तक पहुंच प्राप्त करेगी।
ज्ञान भारतम मिशन के एक और महत्वपूर्ण आयाम और अनुसंधान त्था नवाचार के नए क्षेत्रों को खोलने में इसकी भूमिका के बारे में बताते हुए, श्री मोदी ने कहा कि वैश्विक सांस्कृतिक और रचनात्मक उद्योग का मूल्य लगभग 2.5 ट्रिलियन डॉलर है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डिजिटल पांडुलिपियां इस उद्योग की मूल्य श्रृंखलाओं में शामिल होंगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये करोड़ों पांडुलिपियां और उनमें निहित प्राचीन ज्ञान, एक विशाल डेटा बैंक के रूप में काम करेंगे। श्री मोदी ने इस बात की पुष्टि की कि यह डेटा-संचालित नवाचार को एक नया बढ़ावा देगा। यह कहते हुए कि तकनीकी क्षेत्र में युवाओं के लिए नए अवसर उभरेंगे, श्री मोदी ने कहा कि जैसे-जैसे पांडुलिपि डिजिटलीकरण आगे बढ़ेगा, अकादमिक अनुसंधान के लिए भी नई संभावनाएं खुलेंगी।
यह देखते हुए कि इन डिजिटल पांडुलिपियों का प्रभावी ढंग से अध्ययन करने के लिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि एआई की मदद से प्राचीन पांडुलिपियों को अधिक गहराई से समझा जा सकता है और अधिक व्यापक रूप से विश्लेषण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि एआई इन पांडुलिपियों में निहित ज्ञान को प्रामाणिक और प्रभावशाली माध्यम से दुनिया के सामने प्रस्तुत करने में भी सहायता कर सकता है।
देश के सभी युवाओं से आगे आने और ज्ञान भारतम मिशन में सक्रिय रूप से भाग लेने की अपील करते हुए, श्री मोदी ने प्रौद्योगिकी के माध्यम से अतीत की खोज करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस ज्ञान को साक्ष्य-आधारित मापदंडों पर मानवता के लिए सुलभ बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए। प्रधानमंत्री ने देश भर के विश्वविद्यालयों और संस्थानों से इस दिशा में नई पहल करने का भी आग्रह किया। यह देखते हुए कि पूरा देश स्वदेशी की भावना और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, श्री मोदी ने पुष्टि की कि यह मिशन उस राष्ट्रीय भावना का विस्तार है। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी विरासत को अपनी ताकत के प्रतीक में बदलना चाहिए। प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त करते हुए अपने संबोधन का समापन किया कि ज्ञान भारतम मिशन भविष्य के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत करेगा।
इस कार्यक्रम में केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत, श्री राव इंद्रजीत सिंह सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
पृष्ठभूमि
ज्ञान भारतम पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 11 से 13 सितंबर तक "पांडुलिपि विरासत के माध्यम से भारत की ज्ञान विरासत को पुनः प्राप्त करना" विषय के अंतर्गत आयोजित किया जा रहा है। यह सम्मेलन भारत की अद्वितीय पांडुलिपि संपदा को पुनर्जीवित करने के तरीकों पर विचार-विमर्श करने और इसे वैश्विक ज्ञान संवाद के केंद्र में रखने के लिए प्रमुख विद्वानों, संरक्षणवादियों, प्रौद्योगिकीविदों और नीति विशेषज्ञों को एक साथ लाएगा। इसमें पांडुलिपि संरक्षण, डिजिटलीकरण प्रौद्योगिकियों, मेटाडेटा मानकों, कानूनी ढांचे, सांस्कृतिक कूटनीति और प्राचीन लिपियों की व्याख्या जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर दुर्लभ पांडुलिपियों और विद्वानों की प्रस्तुतियों को प्रदर्शित करने वाली एक प्रदर्शनी भी शामिल होगी।
Addressing the International Conference on #GyanBharatam in Delhi. The initiative focuses on preserving, digitising and popularising India's manuscript heritage. https://t.co/NOoPBkEZRg
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September 12, 2025
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