Rural Prosperity
सरस आजीविका मेला 2025
जहाँ ग्रामीण महिलाओं की उद्यमशीलता की भावना दिल्ली के दिल में जगमगाती है
लखपति बनने का सपना अब बन रहा है हकीकत
Posted On: 20 SEP 2025 12:37PM
जहाँ परंपराएं, उम्मीदों को मूर्त रुप देती है और ग्रामीण सपने कामयाब व्यवसायों में तब्दील होते हैं, ऐसे ही बदलावों से परिपूर्ण है दिल्ली का सरस आजीविका मेला 2025, जो विभिन्न रंगों और ध्वनियों से जगमगा रहा है। अपनी प्रेरक टैगलाइन, "लखपति दीदियों का निर्माण" के साथ, यह मेला केवल एक प्रदर्शनी नहीं है, बल्कि महिलाओं द्वारा अपनी नियति को फिर से लिखने का एक उत्सव है।
दीन दयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित, यह पहल भारत के सुदूर गाँवों की ग्रामीण महिलाओं की असाधारण उद्यमशीलता के अनुभवों को एक साथ लाती है। भागीदारी प्रक्रिया में स्वयं सहायता समूहों का ऑनलाइन पंजीकरण/नामांकन शामिल है।
1999 से, ग्रामीण विकास मंत्रालय, सरस आजीविका मेले के ज़रिए ग्रामीण उद्यमिता की भावना को पोषित कर रहा है। पैकेजिंग और डिज़ाइन पर कार्यशालाओं के साथ-साथ संचार और व्यवसाय-से-व्यवसाय विपणन में प्रशिक्षण देकर यह मेला इन महिलाओं को मुख्यधारा के बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए उपकरण प्रदान करता है।

5 से 22 सितंबर 2025 तक, मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम दृढ़ संकल्प, कौशल और उद्यम के एक जीते जागते उत्सव में तब्दील हो रहा है, जहाँ हर स्टॉल एक कहानी कहती है, हर उत्पाद में सशक्तिकरण की भावना दिखती है, और हर मुस्कान महत्वाकांक्षा और मज़बूती का प्रमाण है।

पहली बार, राजधानी दिल्ली इस मेले की पूरी भव्यता के साथ मेजबानी कर रही है, जिसमें खाने के स्टॉल से लेकर उत्पादों की प्रदर्शनियाँ, सब कुछ एक ही स्थान पर उपलब्ध है। कल्पना कीजिए कि आप 200 से अधिक चहल-पहल से भरे स्टॉलों में घूम रहे हैं, जिनमें हर स्वाद और परंपराओं का खजाना है, और साथ ही विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आई स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की 400 से अधिक ग्रामीण महिला उद्यमियों से मिलने का मौका भी मिल रहा है। यह महज़ एक मेला नहीं है, बल्कि यह प्रतिभा, उद्यमशीलता और सामुदायिक भावना का एक राष्ट्रीय उत्सव है। यहां आने वाले आगंतुक भारत की ग्रामीण विविधता को उजागर करने वाले उत्पादों की एक बड़ी श्रृंखला देख सकते हैं, जैसे हथकरघा, हस्तशिल्प, जैविक खाद्य पदार्थ और प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधन।
मेले में जहां सरस इंडिया फ़ूड कोर्ट देश भर के जायके पेश करता है, वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम, कई पर्यावरण-अनुकूल पहल, वरिष्ठ नागरिकों के लिए कार्ट सेवाएँ, बच्चों के लिए मनोरंजन क्षेत्र और छात्रों के लिए प्रतियोगिताएँ उत्सव के उत्साह को और बढ़ा देती हैं।
यह मेला न केवल ग्रामीण महिलाओं को अपने उत्पादों को बेचने के लिए एक मंच प्रदान करता है, बल्कि उन्हें शहरी ग्राहकों से सीधे जुड़ने, बाज़ार के रुझानों को समझने और मूल्य निर्धारण एवं पैकेजिंग रणनीतियों को और बेहतर करने में भी मदद करता है। इस मंच के ज़रिए ये महिलाएँ न केवल अपने लिए स्थायी रोज़गार हासिल कर रही हैं, बल्कि वे सशक्तिकरण की कहानियाँ भी बुन रही हैं और पूरे भारत में समुदायों के लिए महिला-नेतृत्व वाले सशक्तिकरण के बुलंद मार्ग तैयार कर रही हैं।
एक लखपति दीदी एक स्वयं सहायता समूह की सदस्य होती है, जिसका परिवार कम से कम 1,00,000 रुपए वार्षिक आय अर्जित करता है, और कम से कम चार कृषि मौसमों या व्यावसायिक चक्रों में 10,000 रुपए की औसत मासिक आय बनाए रखता है। सरकार के 3 करोड़ के लक्ष्य के तहत 2 करोड़ महिलाएँ पहले ही लखपति दीदी बन चुकी हैं, और देश भर में ग्रामीण महिलाओं द्वारा अपने जीवन और समुदायों को बदलने की अनगिनत प्रेरक कहानियाँ सामने आ रही हैं।

लखपति दीदियों का निर्माण: बदलाव की कहानियाँ

असम के हरे-भरे इलाके में, सृष्टि स्वयं सहायता समूह की एक महिला एक वक्त में अपने हाथ से बने उत्पाद, साड़ियाँ, स्टोल, कुशन कवर, मेखला चादर (असम का पारंपरिक परिधान) केवल अपने इलाके में ही बेचती थी। ग्राहक बहुत कम आते थे, ऑर्डर भी कम मिलते थे, और काफी मेहनत और उसकी बेजोड़ प्रतिभा के बावजूद, बाज़ार के दरवाज़े उसके लिए मानो बंद से थे।
उसके बाद जीवन में एक अहम मोड़ तब आया, जब वह स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का हिस्सा बनी और सरस मेलों से जुड़ीं। उनके शिल्प को अपने इलाके से बाहर भी दर्शकों तक पहुँचने का एक मंच मिला। आज, उनके उत्पाद न केवल स्थानीय स्तर पर सराहे जाते हैं, बल्कि देश भर के घरों तक पहुँच रहे हैं। मेले के माध्यम से, उन्होंने मार्केटिंग रणनीतियाँ और ग्राहक जुड़ाव जैसे ज़रुरी बातें सीखीं, और इस सबकी मदद से उनकी बिक्री तीन से चार गुना बढ़ गई है!
उन्होंने अपने ग्राम संगठन और समूह-स्तरीय महासंघों से ऋण भी हासिल किया, जिससे उन्हें उत्पादन बढ़ाने और बढ़ती माँग को पूरा करने में मदद मिली। अब, वह कुछ ही महीनों में लाखों रुपये कमा लेती हैं। इस बदलाव की उन्होंने पहले कभी कल्पना भी नहीं की थी।
पश्चिम में राजस्थान की ओर बढ़ें, तो लड्डू गोपाल राजीविका स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी कुछ इसी तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा। सीमित संसाधनों के साथ, हर दिन एक कठिन चढ़ाई जैसा लगता था। यहाँ तक कि अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना भी रेगिस्तान में मृगतृष्णा का पीछा करने जैसा लगता था।


बाद में जब वे स्वयं सहायता समूह में शामिल हुईं और एक साल बाद, सरस मेलों से जुड़ीं, तो उनके लिए भी चीजें बदलने लगीं। सरकार से मिले 4 लाख रुपए के ऋण के साथ, उन्होंने स्वयं सहायता समूह की अन्य दीदियों के साथ मिलकर घर पर मशीनें लगाईं और लोहे के बर्तन बनाना शुरू किया, जो हानिकारक नॉनस्टिक उत्पादों का एक स्वस्थ विकल्प है। अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए एक छोटे से उद्यम के रूप में शुरू हुआ यह काम जल्द ही उनके लिए जीवन रेखा बन गया।
आज, उनके सपने हकीकत में बदल गए हैं और उनकी मासिक बिक्री 6-7 लाख रुपए और सालाना मुनाफ़ा 10 लाख रुपए तक पहुँच गया है। इस बदलाव ने उन्हें एक नया जुनून और ऊर्जा दी है। उनके स्टॉक में छह से सात गुना वृद्धि हुई है, और सबसे अहम बात यह है कि उनके बच्चे अच्छे भविष्य की उम्मीद और सहयोग के साथ स्नातक स्तर तक आत्मविश्वास से पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी यात्रा इस बात का सुबूत है कि जब महिलाओं को अवसर मिलते हैं, तो पूरा परिवार उनके साथ आगे बढ़ता है।
पश्चिमी तट पर की तरफ गोवा का रुख करें, तो माहिर महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएँ खामोशी से अपना काम करते हुए सूती प्रिंट से छोटी कुर्तियाँ, लंबे टॉप, स्कर्ट और बारीक ब्लॉक-प्रिंटेड डिज़ाइन तैयार कर रहीं हैं। लेकिन फिर भी उनके कौशल के बावजूद, उनकी कला शायद ही कभी मुट्ठी भर ग्राहकों तक पहुँच पाती थीं।

छह साल पहले, ये महिलाएँ माहिर महिला स्वयं सहायता समूह में शामिल हुईं और दो साल पहले उन्होंने सरस मेलों के ज़रिए एक बड़े मंच पर कदम रखा। तब से, उनकी दुनिया ही बदल गई है। जो ग्राहक कभी उनके स्टॉल पर कुछ देर के लिए रुकते थे, अब वापस आते हैं, उनके नंबर लेते हैं और ऑनलाइन ऑर्डर देते हैं। इस तरह, उनका छोटा सा घरेलू प्रयास एक ऐसे व्यवसाय में बदल गया है, जो तीन से चार गुना बढ़ गया है!
सरकारी सहायता से उनकी यात्रा, ठहरने और स्टॉल का खर्चा उठा पाने के बाद, ये महिलाएँ अब पूरी तरह से ज़रूरी चीज़ों पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं, अपने हुनर और अपने सपनों को आगे बढ़ा सकती हैं। जो कभी नामुमकिन सा लगता था, वह अब साफ नज़र आ रहा है: लखपति दीदी से करोड़पति दीदी बनने का सफ़र। आख़िरकार, जो आय कभी 1 लाख रुपए प्रति वर्ष हुआ करती थी, अब 1 लाख रुपए प्रति माह हो रही है!
आंध्र प्रदेश के दक्षिण में, श्रीसाई स्वयं सहायता समूह की एक महिला का सफ़र दर्शाता है कि कैसे जुनून और दृढ़ संकल्प स्थायी प्रभाव डालते हैं। पिछले 10 वर्षों से वह मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली और हैदराबाद जैसे शहरों में आयोजित होने वाले सरस मेलों में गर्व से भाग लेती रही हैं, तथा अपनी हस्तनिर्मित कृतियों को व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंचाती रही हैं, जिसकी वह हकदार हैं।

1 लाख रुपए की मामूली राशि से शुरू होकर, उनका व्यवसाय लगातार बढ़कर 8-10 लाख रुपए तक पहुँच गया है, और जैसे-जैसे उनके उत्पाद ज़्यादा से ज़्यादा ग्राहकों तक पहुँच रहे हैं, उनका मुनाफ़ा भी बढ़ रहा है। उन्हें मिलने वाला सहयोग, जिसमें सरस के आयोजनों में मुफ़्त स्टॉल भी शामिल हैं, लागत की चिंता किए बिना विस्तार करने में अमूल्य रहा है।
उनकी विशेषज्ञता हस्तनिर्मित चमड़े के उत्पादों में है, जिनमें सजावटी हैंगिंग और बेड लैंप से लेकर आकर्षक चित्रकारी वाली पेंटिंग तक शामिल हैं। हर कलाकृति उनके कौशल, रचनात्मकता और गहरी जड़ों वाली परंपरा को दर्शाती है।
बिहार में, कुरैशा खातून की यात्रा सशक्तिकरण की एक और कहानी है। कभी गरीबी और अनिश्चितता से जूझने के बाद, सहारा स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) में शामिल होने पर उन्हें एक नई शुरुआत मिली। अपनी उत्कृष्ट लाख की चूड़ियों के साथ, वह सरस मेलों की सुर्खियों में आईं, जहाँ उनके शिल्प की चमक उनके गाँव से कहीं आगे तक फैलने लगी।

आज, उनके घर की आर्थिक स्थिति में खासा सुधार हुआ है। न केवल स्टॉल से, बल्कि टेलीफ़ोन पर भी ऑर्डर मिलने से, वह आत्मविश्वास और गरिमा के साथ अपना व्यवसाय खड़ा कर रही हैं। देश भर में विभिन्न सरस मेलों में यात्रा करते हुए, कुरैशा को अपने ग्राहकों में एक ऐसा समुदाय मिला है, जो उनके हुनर में विश्वास करते हैं।
असम से राजस्थान, गोवा से आंध्र प्रदेश और बिहार तक- हर कहानी में एक ही बात अहम है: सरस मेलों की परिवर्तनकारी शक्ति। रोज़गार के मौके देकर और ज़रुरी विपणन सहायता प्रदान करके, इन मंचों ने लाखों ग्रामीण महिलाओं के जीवन को बदल कर रख दिया है, चुनौतियों को अवसरों में तब्दील किया है और एक ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया है, जहाँ सशक्त महिलाएँ अदम्य साहस और प्रतिभा के साथ नेतृत्व कर सकें।
जैसे-जैसे सरस आजीविका मेला 2025 आगे बढ़ रहा है, यह आत्म विश्वास की भावना को आगे बढ़ा रहा है, ग्रामीण नवाचार और परंपरा की समृद्धि को शहरी भारत के दिल तक पहुंचा रहा है, साथ ही सशक्त महिलाओं द्वारा आकार और नेतृत्व वाले भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
संदर्भ
ग्रामीण विकास मंत्रालय
पीआईबी प्रेस रिलीज
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