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Farmer's Welfare

“ब्लू इकोनॉमी का बढ़ता दायरा: भारत के मत्स्य पालन पर एक नज़र”

Posted On: 23 AUG 2025 9:37AM

 

मुख्य बातें

मछली उत्पादन 2013-14 के 96 लाख टन से 104% बढ़कर 2024-25 में 195 लाख टन हो गया है।

इसी अवधि में अंतर्देशीय मत्स्य पालन में भी 142% की वृद्धि हुई है, जो 61 लाख टन से बढ़कर 147.37 लाख टन हो गया है।

22 जुलाई 2025 तक, विभाग ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 21,274.16 करोड़ रुपए मूल्य की मत्स्य विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी है।

अप्रैल 2025 तक, शीघ्र कार्यान्वयन हेतु प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) के अंतर्गत 11.84 करोड़ रुपए पहले ही स्वीकृत किए जा चुके हैं।

अगस्त 2025 तक, मछुआरों, सूक्ष्म उद्यमों, मत्स्यपालक उत्पादक संगठनों और निजी कंपनियों सहित कुल 26 लाख से अधिक हितधारकों ने राष्ट्रीय मत्स्यपालन डिजिटल प्लेटफॉर्म (एनएफडीपी) पर पंजीकरण कराया है।

29 जुलाई 2025 तक, मत्स्यपालन विभाग ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 17,210.46 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की मदद की है।

जून 2025 तक, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मछुआरों और मत्स्यपालकों को 4.76 लाख केसीसी जारी किए गए हैं, जिनका कुल वितरण 3,214.32 करोड़ रुपए है।

प्रस्तावना

नवकिशर गोपे ने एक शून्य से शुरुआत की थी। अपने घर से विस्थापित होकर, वे झारखंड के गंगुडीह पुनर्वास गाँव में बगैर किसी ज़मीन, किसी संपत्ति और बिना परिवहन के साधन के बस गए। उनका जीवन एक दैनिक संघर्ष था। चांडिल बांध विस्थापित मत्स्य जीवी सहकारी समिति से जुड़ने के बाद उनकी ज़िंदगी मानो बदल गई। मत्स्य विभाग की मदद से उन्होंने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत एक केज कल्चर परियोजना के लिए आवेदन किया और मछली पालन के लिए एक केज स्थापित करने के लिए उन्हें मदद मिल गई।

शुरुआत में, उनके पास सीमित जानकारी थी और मुनाफा भी कम होता था। लेकिन मत्स्य अधिकारियों के प्रशिक्षण और उनकी सलाह से, उन्होंने नियमित रूप से केज की सफाई और दवाओं के उचित उपयोग जैसी बेहतर प्रथाओं को अपनाया। उनका उत्पादन बेहतर हुआ, मछलियों की मृत्यु दर कम हुई और मुनाफे में भारी वृद्धि हुई।

एक वक्त जहां उनके पास एक साइकिल भी नहीं थी, अब उनके पास एक घर और एक मोपेड है। उनकी सफलता ने उन्हें आत्मविश्वास दिया है और आगे और पिंजरों के साथ विस्तार करने का सपना दिखाया है। नवकिशर का सफ़र साबित करता है कि कैसे अवसर, मार्गदर्शन और दृढ़ संकल्प किसी जीवन को कठिनाई से गरिमा की ओर ले जा सकते हैं।

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन में करीब 8% का योगदान देता है। यह क्षेत्र लाखों परिवारों के लिए, विशेष रूप से तटीय और ग्रामीण क्षेत्रों में, भोजन, रोज़गार और आय का एक प्रमुख स्रोत है। पिछले एक दशक में इसके पैमाने और विधि, दोनों में बड़े बदलाव आए हैं।

2013-14 से 2024-25 तक, देश के कुल मछली उत्पादन में समुद्री और अंतर्देशीय दोनों क्षेत्रों में 104% की शानदार वृद्धि हुई है। उत्पादन 96 लाख टन से बढ़कर 195 लाख टन हो गया है। इस वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा अंतर्देशीय मत्स्य पालन से आया है, जिसमें इसी अवधि में 142% की वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में उत्पादन 61 लाख टन से बढ़कर 147.37 लाख टन हो गया है।

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यह बदलाव आधुनिक, टिकाऊ और उच्च उपज वाली जलीय कृषि की ओर बढ़ते कदम को दर्शाता है। बेहतर तकनीक, उन्नत बुनियादी ढाँचे और मज़बूत मूल्य श्रृंखलाओं की मदद से किसानों को अधिक उत्पादन और अधिक कमाई करने में मदद मिली है। हैचरी, तालाब प्रणालियों, कोल्ड चेन और बाज़ार नेटवर्क में निवेश ने मछलियों को उपभोक्ताओं तक तेज़ी से तथा बेहतर स्थिति में पहुँचाया है। नतीजतन यह एक मज़बूत क्षेत्र बनकर उभरा है, जो पहले से कहीं अधिक लोगों को भोजन और रोज़गार प्रदान कर रहा है।

मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए बजट

केंद्रीय बजट 2025-26 में मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए अब तक का सबसे अधिक कुल वार्षिक बजटीय समर्थन 2,703.67 करोड़ रुपये प्रस्तावित किया गया है।

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मत्स्य पालन क्षेत्र में बदलावों का सफर

नीली क्रांति से पीएमएमएसवाई तक

नीली क्रांति की शुरुआत 2015 में हुई थी, जिसका मकसद अंतर्देशीय और समुद्री क्षेत्रों में मत्स्य उत्पादन को बढ़ाना और मत्स्य पालन मूल्य श्रृंखला में सुधार करना था। इसका मकसद उत्पादकता बढ़ाना, बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना और मछुआरों तथा मत्स्यपालकों तक आधुनिक पद्धतियों को पहुँचाना भी था। वक्त के साथ, कटाई के बाद की देखभाल, पता लगाने की क्षमता, मछुआरों के कल्याण और ऋण व बाज़ारों से औपचारिक जुड़ाव जैसे क्षेत्रों में गंभीर कमियाँ चुनौतियों के रुप में सामने आती रहीं। इन कमियों को दूर करने और बदलावों को रफ्तार देने के लिए, सरकार ने 2020 में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना शुरू की। यह नया कार्यक्रम नीली क्रांति के लाभों पर आधारित है और इसकी पहुँच को और अधिक गहराई और अभिसरण के साथ बढ़ाता है।

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क्षेत्रीय घटक और कार्यक्रम

1. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई)

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना को भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र में बड़ी कमियों को दूर करने के लिए बनाया गया है। यह मछली उत्पादन और उत्पादकता में सुधार, गुणवत्ता मानकों को बेहतर बनाने, आधुनिक तकनीक लाने, कटाई के बाद के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने और बेहतर प्रबंधन के लिए काम करती है। यह योजना एक मज़बूत मूल्य श्रृंखला बनाने, पता लगाने की क्षमता में सुधार, एक मज़बूत मत्स्य प्रबंधन प्रणाली बनाने और मछुआरों के कल्याण को सुनिश्चित करने पर भी केंद्रित है।

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वित्तीय परिव्यय

इस योजना को कुल 20,050 करोड़ रुपए के निवेश के साथ मंज़ूरी दी गई थी। इसमें केंद्र सरकार से 9,407 करोड़ रुपए, राज्य सरकारों से 4,880 करोड़ रुपए और लाभार्थियों से 5,763 करोड़ रुपए का अंशदान शामिल है, जो 2020-21 से 2024-25 तक पाँच वर्षों की अवधि के लिए है। वित्त मंत्रालय, व्यय विभाग ने मौजूदा योजना के स्वरूप और वित्तपोषण पैटर्न के अनुसार, पीएमएमएसवाई को वित्तीय वर्ष 2025-26 तक बढ़ाने पर सहमति जताई है।

पीएमएमएसवाई के अंतर्गत मत्स्य विकास

22 जुलाई 2025 तक, मत्स्य विभाग ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 21,274.16 करोड़ रुपए मूल्य की मत्स्य विकास परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है। ये मंज़ूरियाँ राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों से प्राप्त प्रस्तावों पर आधारित हैं।

स्वीकृत राशि में से, केंद्र का हिस्सा 9,189.79 करोड़ रुपए है। अब तक, इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए विभिन्न राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य एजेंसियों को 5,587.57 करोड़ रुपए जारी किए जा चुके हैं।

इस योजना ने मत्स्य पालन और इससे जुड़ी गतिविधियों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों तरह के रोज़गार सृजन में अहम योगदान दिया है। इनमें मछली पकड़ना, जलीय कृषि, तालाब तैयार करना, प्रसंस्करण, परिवहन और विपणन शामिल हैं। पीएमएमएसवाई इस क्षेत्र में रोज़गार के मौके मुहैया कराने में अहम भूमिका निभा रहा है।

 

29 जुलाई 2025 तक, मत्स्य पालन विभाग ने मौजूदा 2000 मत्स्य सहकारी समितियों को एफएफपीओ के रूप में गठित करने तथा 195 नए एफएफपीओ के गठन को मंजूरी दे दी है।

 

2. प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह योजना

प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई), प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत एक केंद्रीय क्षेत्र की उप-योजना है। इसे फरवरी 2024 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था और इसे 2023-24 से 2026-27 तक चार वर्षों की अवधि के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 6,000 करोड़ रुपए के अनुमानित वित्तीय परिव्यय के साथ लागू किया जा रहा है। अप्रैल 2025 तक, इस योजना के तहत शीघ्र कार्यान्वयन में सहायता के लिए 11.84 करोड़ रुपए पहले ही स्वीकृत किए जा चुके हैं।

उद्देश्य और फोकस

पीएम-एमकेएसएसवाई को मत्स्य पालन क्षेत्र में लंबे वक्त से चली आ रही संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें संस्थागत सुधारों द्वारा समर्थित वित्तीय और तकनीकी गतिविधियों का तालमेल है। यह योजना औपचारिकीकरण, बीमा कवरेज, वित्तीय मदद तक पहुंच और मूल्य श्रृंखला में गुणवत्ता आश्वासन को बढ़ावा देकर मत्स्य पालन व्यवस्था में दीर्घकालिक बदलाव लाने में मदद करती है।

3. राष्ट्रीय मत्स्य पालन डिजिटल प्लेटफॉर्म (एनएफडीपी)

मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत, मत्स्य पालन विभाग ने 11 सितंबर 2024 को राष्ट्रीय मत्स्य पालन डिजिटल प्लेटफॉर्म (एनएफडीपी) का शुभारंभ किया। यह डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) के तहत विकसित किया गया है।

इस प्लेटफॉर्म का मकसद सभी हितधारकों के लिए काम-आधारित डिजिटल पहचान बनाकर मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्षेत्र को औपचारिक रूप देना है। यह मछुआरों, मत्स्य कृषकों, सहकारी समितियों, उद्यमों और अन्य मूल्य श्रृंखला कर्ताओं का एक केंद्रीकृत डेटाबेस भी तैयार कर रहा है।

एनएफडीपी एक एकल-खिड़की प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करता है, जो लाभार्थियों को संस्थागत ऋण, जलीय कृषि बीमा, ट्रेसेबिलिटी सिस्टम और प्रदर्शन-संबंधी प्रोत्साहनों तक पहुँचने में मदद करता है। यह मत्स्य सहकारी समितियों को मजबूत बनाने में भी मदद करता है और प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण के मौके देता है।

एनएफडीपी पंजीकरण के लिए लिंक: https://nfdp.dof.gov.in/nfdp/#/?t=PM_MKSSY

अगस्त 2025 तक, मछुआरों, सूक्ष्म उद्यमों, मछली किसान उत्पादक संगठनों और निजी कंपनियों सहित कुल 26 लाख से अधिक हितधारकों ने पोर्टल पर पंजीकरण कराया है।

 

4. मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि

मत्स्य पालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि की घोषणा सबसे पहले 2018 के केंद्रीय बजट में की गई थी। इसे मत्स्य पालन विभाग द्वारा 2018-19 में औपचारिक रूप से लॉन्च किया गया था। यह निधि समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन में मूलभूत ढ़ांचे को मज़बूत करने के लिए बनाई गई थी। इस निधि की कुल राशि 7,522.48 करोड़ रुपए है।

विस्तार और ऋण गारंटी सुविधा

इस रफ्तार को जारी रखने के लिए, सरकार ने एफआईडीएफ योजना को अप्रैल 2023 से मार्च 2026 तक तीन और वर्षों के लिए बढ़ा दिया है। इस विस्तारित अवधि के दौरान, पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ) से मौजूदा निधि का इस्तेमाल करके ऋण गारंटी सुविधा प्रदान की जा रही है।

यह योजना 12.50 करोड़ रुपए तक का ऋण गारंटी कवर प्रदान करती है, जिससे मछुआरों और उद्यमियों को कम वित्तीय जोखिम के साथ ज़रुरी ऋण मिलने में मदद मिलती है। यह एफआईडीएफ के तहत प्रति वर्ष 3% तक की ब्याज सहायता भी प्रदान करती है। यह सहायता नोडल ऋण देने वाली संस्थाओं को न्यूनतम 5% प्रति वर्ष की ब्याज दर पर रियायती वित्त प्रदान करने में मदद करती है।

कार्यान्वयन और डिजिटल निगरानी

राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी), एफआईडीएफ के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है। इसने एक समर्पित ऑनलाइन एफआईडीएफ पोर्टल भी विकसित किया है। यह डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म निम्नलिखित सुविधाएँ प्रदान करता है:

ऑनलाइन आवेदन और ट्रैकिंग

सभी हितधारकों के लिए अलग-अलग लॉगइन

लाइव डैशबोर्ड के ज़रिए वास्तविक अपडेट

मत्स्य पालन विभाग ने राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड के ज़रिए उन पंचायतों और गाँवों में 12,000 मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना के लिए एक कार्ययोजना तैयार की है, जहाँ बड़े जलाशय या तटीय क्षेत्र हैं, लेकिन वे अभी भी खुले हैं। यह योजना दस वर्षों में दो चरणों में क्रियान्वित की जाएगी। पहले चरण में 2023-24 और 2027-28 के बीच 6,000 सहकारी समितियों का गठन किया जाएगा, जबकि शेष 6,000 सहकारी समितियों का गठन दूसरे चरण में, 2028-29 से 2032-33 के दौरान किया जाएगा।

 

मत्स्य पालन अवसंरचना और निवेश में हालिया उपलब्धियाँ

29 जुलाई 2025 तक, मत्स्य पालन विभाग ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत 17,210.46 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ अवसंरचना परियोजनाओं को मदद की है। इसमें से 6,761.80 करोड़ रुपए केंद्रीय अंशदान से प्राप्त हुए हैं।

मत्स्य पालन समूह

विभाग ने देश भर में 34 मत्स्य पालन समूहों को आधिकारिक तौर पर अधिसूचित किया है। इनमें सिक्किम और मेघालय में समर्पित जैविक मत्स्य पालन समूह शामिल हैं, जो पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हैं।

जलपार्क

एकीकृत जलपार्क मत्स्य पालन गतिविधियों के लिए व्यापक केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। ये पार्क, जलीय कृषि मूल्य श्रृंखला की हर कड़ी को मज़बूत करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। ये पार्क मत्स्य बीज और चारे से लेकर कृषि सेवाओं, प्रसंस्करण, शीत भंडारण और बाज़ारों तक पहुँच तक संपूर्ण बुनियादी ढाँचागत सहायता प्रदान करते हैं। ये पार्क समूह-आधारित विकास के ज़रिए दक्षता का स्तर बनाते हैं। इसके साथ ही ये फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और मूल्य संवर्धन तथा संगठित विपणन के ज़रिए किसानों की आय बढ़ाने में मदद करते हैं।

जुलाई 2025 तक, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत, मत्स्य पालन विभाग ने विभिन्न राज्यों में 11 एकीकृत जल पार्कों के विकास को मंज़ूरी दी है। इन परियोजनाओं की कुल स्वीकृत लागत 682.60 करोड़ रुपए है।

 

स्टार्टअप और नवाचारों के लिए समर्थन

इस क्षेत्र में नवाचार लाने के लिए, विभाग पीएमएमएसवाई के तहत मत्स्य पालन स्टार्टअप्स की मदद कर रहा है। स्टार्टअप इंडिया के सहयोग से, स्टार्टअप्स को निम्नलिखित प्राप्त होता है:

प्रारंभिक निधि

इन्क्यूबेशन में सहायता

उत्पादकता और बाज़ार पहुँच में सुधार के लिए सलाह

पीएमएमएसवाई योजना के उद्यमी मॉडल के तहत अब तक 39 स्टार्टअप परियोजना प्रस्तावों को 31.22 करोड़ रुपए की कुल सब्सिडी सहायता के साथ स्वीकृत किया जा चुका है।

वित्त वर्ष 2025-26 में स्वीकृत नई परियोजनाएँ

जुलाई 2025 तक, विभिन्न राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और निजी उद्यमियों के 163 नए परियोजना प्रस्तावों को मंजूरी दी जा चुकी है। इन परियोजनाओं की कुल लागत 6,273.31 करोड़ रुपए है। इसमें से 4,209.05 करोड़ रुपए, विशेष रूप से ब्याज अनुदान सहायता के लिए निर्धारित किए गए हैं।

5. मत्स्य पालन के लिए किसान क्रेडिट कार्ड

किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी), पूरे भारत में किसानों के लिए वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करने में एक अहम साधन के रूप में उभरा है। कामकाज के लिए पूंजी तक त्वरित और आसान पहुँच प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया, केसीसी किसानों को बीज, उर्वरक और कीटनाशक जैसे सामान खरीदने और फसल उत्पादन तथा इससे जुड़ी गतिविधियों से संबंधित नकदी की ज़रुरतों को पूरा करने में सक्षम बनाता है।

2019 से, इस योजना का विस्तार पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन को कवर करने के लिए किया गया है, जिससे यह संबद्ध क्षेत्रों के लिए भी समावेशी हो गई है

भारत सरकार ने मत्स्य पालन और संबद्ध गतिविधियों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना के तहत ऋण सीमा 2 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दी है, जिससे संशोधित ब्याज अनुदान योजना के तहत मछुआरों, किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और अन्य हितधारकों के लिए ऋण तक पहुँच में सुधार होगा।

जून 2025 तक, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मछुआरों और मछली किसानों को 4.76 लाख केसीसी जारी किए गए हैं, जिनका कुल संवितरण 3,214.32 करोड़ रुपए है।

 

6. धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान

धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान, जिसे डीए-जेजीयूए के नाम से भी जाना जाता है, भारत का सबसे बड़ा आदिवासी विकास मिशन है। यह 63,843 गाँवों, 549 जिलों और 2,911 ब्लॉकों के पाँच करोड़ से ज़्यादा आदिवासी लोगों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान पर केंद्रित है। एकीकृत विकास के लिए इस योजना के तहत 17 मंत्रालय मिलकर काम करते हैं।

यह योजना जनजातीय समुदायों के लिए परिसंपत्ति निर्माण, तकनीकी सहायता और बाजार संपर्क सुनिश्चित करने के लिए मत्स्य पालन हस्तक्षेप को प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के साथ संरेखित करती है।

जुलाई 2025 तक, धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के तहत, 10,000 आदिवासी सामुदायिक समूहों और 1,00,000 व्यक्तिगत लाभार्थियों को मत्स्य पालन सहायता प्रदान की जा रही है।

इसे सुगम बनाने के लिए, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत मत्स्य पालन विभाग को कुल 375 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। इसमें 225 करोड़ रुपए का केंद्रीय अंश और 150 करोड़ रुपए का राज्य अंश शामिल है।

 

प्रौद्योगिकियाँ और मूल्य श्रृंखला संवर्धन

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत, प्रौद्योगिकी-संचालित प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जो पानी के सदुपयोग (फसल के लिए हर बूंद ज़रुरी) के साथ उच्च उत्पादकता को बढ़ावा देती हैं।

पीएमएमएसवाई मत्स्य पालन मूल्य श्रृंखला में आधुनिक प्रौद्योगिकी के समावेश का समर्थन करता है, जिससे बेहतर उत्पादन, गुणवत्ता और स्वच्छता को बढ़ावा मिलता है। यह खासकर उच्च-घनत्व वाली जलीय कृषि प्रौद्योगिकियों, जैसे कि पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणाली (आरएएस) और बायोफ्लोक प्रणालियों का समर्थन करता है।

पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणाली

पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणाली, या आरएएस, एक आधुनिक मत्स्य पालन पद्धति है, जिसमें पानी को शुद्ध करके फिल्टर के ज़रिए उसे दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। यह प्रणाली अपशिष्ट और अशुद्धियों को हटा देती है, जिससे उसी पानी का फिर से उपयोग किया जा सकता है। यह बहुत कम ज़मीन और पानी का इस्तेमाल करके अधिक संख्या में मछली पालन के लिए बेहतर विकल्प है। आरएएस मछली के विकास के लिए स्वस्थ परिस्थितियों को बनाए रखते हुए संसाधनों के संरक्षण में मदद करता है।

बायोफ्लोक प्रणाली

बायोफ्लोक तकनीक एक स्थायी जलीय कृषि पद्धति है, जो लाभकारी सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके जल में पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण करती है। ये सूक्ष्मजीव, बायोफ्लोक नामक गुच्छे बनाते हैं, जो प्राकृतिक आहार के रूप में काम करते हैं और पानी को साफ करने में भी मदद करते हैं।

इस पद्धति में जल विनिमय की बहुत कम या बिल्कुल ज़रुरत नहीं होती, जिससे यह न्यूनतम संसाधनों के साथ उच्च घनत्व वाली मछली पालन के लिए आदर्श बन जाती है। यह उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी है, इसलिए इसे जलीय कृषि जगत में "ग्रीन सूप" या परपोषी तालाब कहा जाता है।

स्वीकृत परियोजनाएँ (2020-21 से 2024-25):

12,000 आरएएस इकाइयाँ स्वीकृत

• कुल लागत: 902.97 करोड़ रुपए

• केंद्रीय हिस्सा: 298.78 करोड़ रुपए

4,205 बायोफ्लोक इकाइयाँ स्वीकृत

• कुल लागत: 523.30 करोड़ रुपए

• केंद्रीय हिस्सा: 180.04 करोड़ रुपए

(मार्च 2025 तक)

 

मत्स्य पालन अवसंरचना का सतत् आधुनिकीकरण

पीएमएमएसवाई के तहत स्मार्ट और पर्यावरण-अनुकूल मत्स्य बंदरगाह

भारत सरकार, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत मत्स्य पालन व्यवस्था का सक्रिय रूप से आधुनिकीकरण कर रही है। स्मार्ट सुविधाओं, हरित घटकों और जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता वाले मत्स्य पालन बंदरगाहों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। ये पहल खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के इको-फिशिंग पोर्ट्स और ब्लू पोर्ट पहल जैसे वैश्विक मॉडलों के अनुरूप हैं।

स्मार्ट और एकीकृत मत्स्य पालन बंदरगाह

पीएमएमएसवाई के अंतर्गत तीन स्मार्ट और एकीकृत मत्स्य पालन बंदरगाहों को मंजूरी दी गई है:

दीव में वनकबारा

पुडुचेरी में कराईकल

गुजरात में जखाऊ

इन परियोजनाओं की अनुमानित लागत 369.8 करोड़ रुपए है और इन्हें केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 लागत-साझाकरण के आधार पर क्रियान्वित किया जा रहा है। (जुलाई 2025 तक)

मुख्य विशेषताएँ

स्मार्ट प्रौद्योगिकियाँ: ऑनलाइन नीलामी, एआई उपकरण, आईओटी प्रणालियाँ और बंदरगाह प्रबंधन सॉफ़्टवेयर

कनेक्टिविटी: हाई-स्पीड इंटरनेट, सैटेलाइट सिस्टम और साइबर सुरक्षा उपाय

सुरक्षा: उन्नत सुरक्षा उपकरण और निगरानी प्रणालियाँ

नवीकरणीय ऊर्जा: सौर ऊर्जा इकाइयाँ और ऊर्जा-कुशल प्रकाश व्यवस्था

स्थायित्व: वर्षा जल संचयन और अपशिष्ट प्रसंस्करण प्रणालियाँ

बुनियादी ढाँचा: स्वचालित बर्फ कन्वेयर, मछली पकड़ने की इकाइयाँ और आधुनिक क्रेन

पर्यावरण-अनुकूल सुविधाएँ: बंदरगाह क्षेत्रों के आसपास हरियाली और भूनिर्माण

सूक्ष्म और लघु उद्यमों को सहायता

प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) 6,000 करोड़ रुपए के कुल निवेश के साथ मत्स्य पालन क्षेत्र के औपचारिकीकरण के लिए सूक्ष्म और लघु उद्यमों को मदद देती है। इस योजना को 1,500 करोड़ रुपए के बाहरी वित्तपोषण द्वारा समर्थित किया गया है, जिसमें विश्व बैंक से 1,125 करोड़ रुपए और एएफडी से 375 करोड़ रुपए शामिल हैं।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

मार्च 2025 में, मत्स्य पालन विभाग ने भारत में ब्लू पोर्ट्स को मज़बूत करने के लिए एफएओ के साथ एक तकनीकी सहयोग कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किए।

मई 2025 में, इको-फिशिंग पोर्ट्स की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए फ्रांसीसी विकास बैंक (एएफडी) के साथ एक संयुक्त कार्यशाला आयोजित की गई।

मत्स्य पालन में महिलाएँ और हाशिए पर पड़े समूह

पीएमएमएसवाई समावेशी विकास पर ज़ोर देता है।

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला लाभार्थियों को अधिक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

मत्स्य पालन में महिलाओं से संबंधित 3,973.14 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को 2020-21 और 2024-25 के बीच मंज़ूरी दी गई। (मार्च 2025 तक)

निष्कर्ष

भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र, मज़बूत नीतिगत समर्थन, आधुनिक तकनीकों और समावेशी पहलों के ज़रिए एक बड़े बदलाव के दौर से गुज़र रहा है। पीएमएमएसवाई और पीएम-एमकेएसएसवाई जैसी योजनाएँ उत्पादन को बढ़ावा दे रही हैं, बुनियादी ढाँचे में सुधार कर रही हैं और मछुआरों, खासकर महिलाओं और जनजातीय समुदायों को सशक्त बना रही हैं। आरएएस, बायोफ्लोक, स्मार्ट बंदरगाह और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म जैसे नवाचारों के साथ, यह क्षेत्र अधिक टिकाऊ और कुशल बन रहा है। ये प्रयास न केवल आजीविका को बढ़ा रहे हैं, बल्कि खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी योगदान दे रहे हैं। अब इससे आगे बढ़ने का रास्ता दीर्घकालिक, समावेशी विकास के लिए इस गति को और आगे बढ़ाना है।

संदर्भ

मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय

मत्स्य पालन विभाग

https://dof.gov.in/sites/default/files/2025-04/AnnualReport2025English.pdf

https://dof.gov.in/sites/default/files/2021-10/Reform_Booklet_English.pdf

https://dof.gov.in/fidf

पीएम इंडिया.गॉव

PM’s address in the 124th Episode of ‘Mann Ki Baat’ | Prime Minister of India

राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड

https://nfdb.gov.in/PDF/100%20SSS%20English.pdf

https://nfdb.gov.in/PDF/PMMSY-Guidelines24-June2020.pdf

https://nfdb.gov.in/PDF/06_Ras%20Booklet%20Eng.pdf

https://www.nfdb.gov.in/PDF/Biofloc%20booklet%20v6.pdf

लोक सभा प्रश्न

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https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/185/AU1413_DS01Ap.pdf?source=pqals

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पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति

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