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राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2025
आवाज़ों को सशक्त बनाना, लोकतंत्र को मजबूत करना
Posted On:
16 NOV 2025 10:39AM
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय प्रेस दिवस, जो 16 नवंबर को मनाया जाता है, भारतीय प्रेस परिषद की शुरुआत का प्रतीक है।
- भारत में पंजीकृत प्रकाशनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2004-05 में 60,143 से बढ़कर 2024-25 में 1.54 लाख हो गई है।
- श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम, 1955, के साथ-साथ प्रेस और आवधिक पंजीकरण अधिनियम 2023 जैसे हालिया सुधार पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा करते हैं और मीडिया विनियमन का आधुनिकीकरण करते हैं।
- प्रेस सेवा पोर्टल ने आवधिक पंजीकरण को डिजिटल कर दिया है, छह महीनों के भीतर 40,000 प्रकाशकों को इसमें शामिल किया है, और 3,000 प्रेसों को पंजीकृत किया है, जिससे प्रकाशकों के लिए व्यापार करना आसान हो गया है।
- पीआरपी (प्रेस और आवधिक पंजीकरण) अधिनियम 2023 और प्रेस सेवा पोर्टल आवधिक पंजीकरण का आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण करते हैं, जिससे प्रकाशकों के लिए व्यापार करना आसान हो जाता है।
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परिचय

16 नवंबर को, भारत में राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है, जो हमारे समाज में एक स्वतंत्र और ज़िम्मेदार प्रेस की आवश्यक भूमिका का सम्मान करता है। मीडिया को अक्सर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, जो जनमत को आकार देने, विकास को आगे बढ़ाने और सत्ता को जवाबदेह ठहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रगति के एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में, यह आवश्यक है कि प्रेस पूर्वाग्रह से मुक्त रहे और जनता को सूचित करने तथा शिक्षित करने के अपने कर्तव्य का पालन करे। वर्षों से, मीडिया लाखों लोगों के हितों की रक्षा करने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहा है।
राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता की जड़ें
राष्ट्रीय प्रेस दिवस (16 नवंबर) भारतीय प्रेस परिषद अधिनियम, 1965 के तहत 1966 में भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना का प्रतीक है। 1965 के अधिनियम को बाद में 1975 में निरस्त कर दिया गया, और इसके बाद एक नया अधिनियम लागू किया गया। इस नए कानून के तहत, भारतीय प्रेस परिषद का 1979 में पुनर्गठन किया गया। एक स्वतंत्र निकाय के रूप में स्थापित, प्रेस परिषद की प्राथमिक भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि प्रेस बाहरी प्रभावों से मुक्त रहते हुए पत्रकारिता के उच्च मानकों को बनाए रखे। परिषद का विचार सबसे पहले 1956 में प्रथम प्रेस आयोग द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने और नैतिक रिपोर्टिंग को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था।

भारत का जीवंत मीडिया परिदृश्य लगातार बढ़ रहा है; पंजीकृत प्रकाशनों की संख्या 2004-05 में 60,143 से बढ़कर 2024-25 में 1.54 लाख हो गई है, जो प्रेस की बढ़ती पहुँच और शक्ति को दर्शाती है।
यह दिन एक स्वतंत्र और ज़िम्मेदार प्रेस का प्रतीक है, जो लोकतंत्र के लिए केंद्रीय है। यह विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से मनाया जाता है, जिनमें पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार और एक स्मारिका का विमोचन शामिल है।
पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रिंट मीडिया में उत्कृष्ट योगदानों को सम्मानित करते हैं। राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर प्रतिवर्ष दिए जाने वाले ये पुरस्कार, विभिन्न क्षेत्रों के असाधारण पत्रकारों को पहचानते हैं, जिसमें प्रतिष्ठित राजा राम मोहन राय पुरस्कार सर्वोच्च सम्मान के रूप में कार्य करता है। स्मारिका वर्ष की थीम पर आधारित नेताओं के सद्भावना संदेशों और मीडिया विशेषज्ञों तथा शिक्षाविदों के विचारों का संकलन होती है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर जारी की गई यह स्मारिका, विजेताओं की उपलब्धियों को उजागर करती है, लेखों और तस्वीरों के माध्यम से उनके काम को प्रदर्शित करती है।
मीडिया प्रशासन: प्रमुख पहलें एवं न्यायिक सुधार
भारत का मीडिया प्रशासन ढाँचा संस्थाओं, कानूनों और पहलों का एक मज़बूत समूह है, जिसे प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने, नैतिक पत्रकारिता को मजबूत करने, नियामक प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण करने और मीडिया पेशेवरों का समर्थन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। भारतीय प्रेस परिषद और भारत के प्रेस रजिस्ट्रार जनरल जैसे वैधानिक निकायों से लेकर, पीआरपी अधिनियम, 2023 और डिजिटल प्रेस सेवा पोर्टल जैसे ऐतिहासिक सुधारों तक, समर्पित प्रशिक्षण संस्थानों और कल्याणकारी योजनाओं के साथ, यह इकोसिस्टम सामूहिक रूप से देश के मीडिया क्षेत्र की अखंडता, जवाबदेही और विकास को बनाए रखता है।
भारत के प्रेस महापंजीयक (पीआरजीआई)

1956 में स्थापित, प्रेस रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (पीआरजीआई) का संबंध भारत में प्रिंट मीडिया के उदय से है। प्रिंट मीडिया, विशेषकर समाचार पत्रों ने, जनता को सूचित करके, सामाजिक मुद्दों का विश्लेषण करके और सामाजिक विकास को आगे बढ़ाकर भारत के लोकतंत्र को लंबे समय से पोषित किया है। अपने शानदार इतिहास के साथ, यह नागरिकों को उन मामलों से जोड़े रखता है जो उन्हें प्रभावित करते हैं। आवधिक पंजीकरण की देखरेख करने वाले निकाय के रूप में, यह इस विरासत और चल रही प्रगति में एक भागीदार बना हुआ है।
पहले रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर्स फॉर इंडिया या आरएनआई के नाम से जाना जाने वाला पीआरजीआई, प्रेस और आवधिक पंजीकरण अधिनियम, 2023 के अनुसार एक वैधानिक निकाय है।
प्रेस ने जनमत को आकार देने और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लोगों की ऊर्जा को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। स्वतंत्रता संग्राम में प्रिंट मीडिया की भूमिका और लोकतंत्र को मजबूत करने में इसकी निरंतर भागीदारी की क्षमता के बारे में जागरूक होकर, स्वतंत्र भारत की सरकार ने 1956 में प्रथम प्रेस आयोग की स्थापना की। आयोग को भारत में प्रेस की स्थिति की जाँच करने और लंबी अवधि में इसके सर्वांगीण विकास के लिए सिफारिशें करने का दायित्व सौंपा गया था।
भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई)

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई), एक सांविधिक स्वायत्त निकाय, की स्थापना मुख्य रूप से प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने और देश में समाचार पत्रों तथा समाचार एजेंसियों के मानकों में सुधार करने के उद्देश्य से प्रेस काउंसिल अधिनियम, 1978 के तहत की गई है। पीसीआई, प्रेस की स्वतंत्रता में कटौती, पत्रकारों पर शारीरिक हमला/आक्रमण आदि से संबंधित 'प्रेस द्वारा' दर्ज की गई शिकायतों पर विचार प्रेस काउंसिल अधिनियम 1978 की धारा 13 के तहत करता है और इन पर प्रेस काउंसिल (जांच प्रक्रिया) विनियम, 1979 के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जाती है। पीसीआई को प्रेस की स्वतंत्रता और इसके उच्च मानकों की सुरक्षा से संबंधित दबाव वाले मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लेने का भी अधिकार प्राप्त है।
अपनी स्थापना के बाद से, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने प्रेस की स्वतंत्रता के परिदृश्य को आकार देने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं कि भारत में मीडिया उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखे और स्वतंत्र बनी रहे। यहाँ वर्षों से परिषद के प्रमुख घटनाक्रमों और पहलों का संक्षिप्त अवलोकन दिया गया है:
· 2023: एलजीबीटीक्यू + समुदाय का प्रतिनिधित्व: पीसीआई ने मीडिया में एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के प्रतिनिधित्व पर एक रिपोर्ट अपनाई, जिसमें निष्पक्ष और ज़िम्मेदार कवरेज को बढ़ावा दिया गया।
· 2023: प्राकृतिक आपदाओं की रिपोर्टिंग के लिए दिशानिर्देश: परिषद ने प्राकृतिक आपदाओं के दौरान समाचार कवर करने वाले मीडिया पेशेवरों के लिए दिशानिर्देश तैयार किए, जिसमें रिपोर्टिंग में संवेदनशीलता और सटीकता पर ज़ोर दिया गया।
· पीसीआई ने वर्षों से अपने पत्रकारिता आचरण के मानदंड को अपडेट करके पत्रकारिता नैतिकता के लिए अपना समर्थन जारी रखा है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि पत्रकार पेशेवर और नैतिक मानकों का पालन करें।
अंतरर्राष्ट्रीय जुड़ाव:
- पीसीआई ने इंडोनेशिया, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों की प्रेस परिषदों के साथ आपसी सहयोग को बढ़ावा देने और वैश्विक स्तर पर प्रेस की स्वतंत्रता को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।
इंटर्नशप कार्यक्रम एवं शैक्षिक पहले:
· पीसीआई ने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति जिम्मेदारी और जागरूकता की भावना को बढ़ावा देने के लिए पत्रकारिता के छात्रों के लिए योग्यता-आधारित इंटर्नशिप शुरू की। समर इंटर्नशिप प्रोग्राम (एसआईपी) और विंटर इंटर्नशिप प्रोग्राम (डब्लूआईपी) छात्रों को पीसीआई के काम से जुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं।
पीसीआई की गतिविधियाँ और पहलें पूरे भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने, नैतिक मानकों को बनाए रखने और पत्रकारों के व्यावसायिक विकास का समर्थन करने की अपनी निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) द्वारा जारी पत्रकारिता आचरण के मानदंड प्रिंट मीडिया में नैतिक रिपोर्टिंग के लिए मार्गदर्शन ढाँचे के रूप में कार्य करते हैं। समाचार पत्रों को इन मानदंडों का पालन करना आवश्यक है, जो, अन्य प्रावधानों के अलावा, फर्जी, मानहानिकारक या भ्रामक समाचारों के प्रकाशन को हतोत्साहित करते हैं। प्रेस काउंसिल को प्रेस काउंसिल अधिनियम की धारा 14 के तहत इन मानदंडों के कथित उल्लंघनों की जांच करने का अधिकार है और वह उचित समझे जाने पर समाचार पत्रों, संपादकों या पत्रकारों को चेतावनी दे सकती है, भर्त्सना कर सकती है या निंदा कर सकती है।
प्रेस एवं पत्र-पत्रिका पंजीकरण (पीआरपी) अधिनियम, 2023
प्रेस और पत्र-पत्रिका पंजीकरण अधिनियम, 2023 (पीआरपी अधिनियम) को 29 दिसंबर 2023 को अधिसूचित किया गया और 1 मार्च 2024 से लागू किया गया। यह अधिनियम औपनिवेशिक पीआरबी अधिनियम, 1867 का आधुनिकीकरण करता है और उसका स्थान लेता है। यह प्रेस सेवा पोर्टल के माध्यम से कार्यान्वित, एक पूरी तरह से ऑनलाइन, एकीकृत प्रणाली पेश करता है, जिसके द्वारा शीर्षक का आवंटन और पंजीकरण एक साथ किया जा सकता है। यह अधिनियम आरएनआई (रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर्स फॉर इंडिया) का नाम बदलकर प्रेस रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (पीआरजीआई) करता है, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करता है, भौतिक इंटरफेस को हटाता है, अनुपालन बोझ को कम करता है, और प्रक्रियात्मक चूकों का गैर-अपराधीकरण करता है। इसके साथ संलग्न पीआरपी नियम, 2024, परिचालन ढाँचा प्रदान करते हैं, जो मिलकर पत्रिकाओं के लिए एक पारदर्शी, कुशल और समकालीन नियामक प्रणाली का निर्माण करते हैं।
प्रेस सेवा पोर्टल
प्रेस रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (पीआरजीआई) द्वारा प्रेस और पत्र-पत्रिका पंजीकरण अधिनियम, 2023 (पीआरपी अधिनियम, 2023) के तहत विकसित प्रेस सेवा पोर्टल, पत्र-पत्रिकाओं के पंजीकरण और विनियमन के लिए एक पूर्ण रूप से डिजिटल और कागज़ रहित प्रणाली लेकर आया है। सभी प्रक्रियाओं को ऑटोमेट करके, पोर्टल ने प्रकाशन क्षेत्र में पारदर्शिता, दक्षता और व्यवसाय करने में आसानी को बढ़ाया है। पोर्टल ने पत्र-पत्रिकाओं के पंजीकरण और विनियमन को पूरी तरह से डिजिटल, कागज़ रहित प्रणाली में बदल दिया है और प्रकाशकों के लिए व्यवसाय करने में आसानी को बढ़ाया है। छह महीने के भीतर 40,000 प्रकाशक इससे जुड़ चुके हैं, 37,000 वार्षिक विवरण दाखिल किए जा चुके हैं, और 3,000 प्रिंटिंग प्रेस पंजीकृत हो चुके हैं, जो इसके मजबूत रूप से अपनाए जाने को दर्शाता है। एक समर्पित वेबसाइट पोर्टल की पूरक है, जो आवश्यक जानकारी तक पहुँच प्रदान करती है और उपयोगकर्ता के अनुकूल इंटरैक्शन के लिए एक एआई-आधारित चैटबॉट की सुविधा देती है।
आटोमेशन के लाभ
- शीर्षक पंजीकरण और संबंधित अनुमोदनों के लिए ऑनलाइन सेवाएँ।
- ई-हस्ताक्षर सुविधाओं के साथ पेपरलेस प्रोसेसिंग।
- निर्बाध लेनदेन के लिए एकीकृत डायरेक्ट पेमेंट गेटवे।
- प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए क्यूआर कोड-सक्षम डिजिटल प्रमाणपत्र।
- प्रेस संचालकों के लिए प्रेस विवरण को ऑनलाइन पंजीकृत और अद्यतन करने हेतु समर्पित मॉड्यूल।
- पंजीकरण स्थिति की रियल टाइम पर ट्रैकिंग।
- शीघ्र निवारण के लिए चैटबॉट-आधारित शिकायत निवारण प्रणाली।
ये सभी विशेषताएँ एक साथ मिलकर मीडिया पंजीकरण को सुव्यवस्थित करने और पूरे भारत के प्रकाशकों के लिए एक पारदर्शी, जवाबदेह, और प्रौद्योगिकी-संचालित पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी)

17 अगस्त, 1965 को उद्घाटन किए गए, भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) की शुरुआत यूनेस्को के दो सलाहकारों सहित एक छोटे से कर्मचारियों के साथ हुई थी। पहले कुछ वर्षों में, संस्थान ने मुख्य रूप से केंद्रीय सूचना सेवा अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किए और एक मामूली पैमाने पर अनुसंधान अध्ययन किए। 1969 में, एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम, विकासशील देशों के लिए पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम, शुरू किया गया। यह पाठ्यक्रम अफ्रीकी-एशियाई देशों के मध्य-स्तर के कार्यरत पत्रकारों के लिए था। इसके बाद, केंद्र और राज्य सरकारों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों के विभिन्न मीडिया और प्रचार संगठनों में कार्यरत संचार पेशेवरों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, संस्थान द्वारा एक सप्ताह से लेकर तीन महीने की अवधि के विभिन्न विशेषज्ञतापूर्ण अल्पकालिक पाठ्यक्रम शुरू किए गए। समय के साथ आईआईएमसी ने नियमित स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रदान करना शुरू कर दिया।
भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) ने संस्कृत पत्रकारिता में तीन महीने का उन्नत प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम संयुक्त रूप से संचालित करने के लिए सितंबर, 2017 में श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (एसएलबीएसआरएसवी) के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए। यह प्रमाणपत्र एसएलबीएसआरएसवी और आईआईएमसी द्वारा संयुक्त रूप से दिया जाता है। संस्कृत पत्रकारिता में प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम फरवरी, 2018 में शुरू हुआ। भारतीय जनसंचार संस्थान उर्दू, ओडिया, मराठी और मलयालम भाषाओं में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी संचालित करता है। विशेष पत्रकारिता कार्यक्रमों को शुरू करने और भाषाई पेशकशों का विस्तार करके आईआईएमसी एक समावेशी मीडिया इकोसिस्टम को बढ़ावा दे रहा है और कल के पत्रकारों को पोषित करने तथा भारतीय मीडिया में विविध आवाज़ों को सशक्त बनाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर रहा है।
अपनी स्थापना के बाद से, संस्थान ने कुल 700 ऐसे पाठ्यक्रम आयोजित किए हैं और भारत तथा विदेशों से 15,000 से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया है। भारतीय जनसंचार संस्थान कुशल मीडिया पेशेवरों को आकार देने में एक आधारशिला के रूप में खड़ा है, जो नैतिक पत्रकारिता के मूल्यों को बनाए रखने के लिए भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों को लगातार सशक्त बना रहा है।
2024 में शिक्षा मंत्रालय ने आईआईएमसी नई दिल्ली को जम्मू (जम्मू एवं कश्मीर), अमरावती (महाराष्ट्र), आइजोल (मिजोरम), कोट्टायम (केरल) और ढेकानाल (ओडिशा) में स्थित इसके पांच क्षेत्रीय परिसरों के साथ एक विशिष्ट श्रेणी के तहत डीम्ड विश्विद्यालय घोषित कर दिया। इस उन्नत दर्जे के साथ आईआईएमसी को अब डॉक्टरेट डिग्री सहित अन्य डिग्री प्रदान करने का अधिकार मिल गया है।
पत्रकार कल्याण योजना
यह योजना मूल रूप से वर्ष 2001 में शुरू की गई थी, और इसे 2019 में संशोधित किया गया। पत्रकार कल्याण योजना (जेडब्लूएस) का मुख्य उद्देश्य पत्रकारों और उनके परिवारों को अत्यधिक कठिनाइयों के तहत वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस योजना के तहत उपलब्ध सहायता:
पत्रकार की अत्यधिक कठिनाई के कारण मृत्यु होने की स्थिति में परिवार को ₹5 लाख तक।
स्थायी विकलांगता की स्थिति में पत्रकार को ₹5 लाख तक।
प्रमुख बीमारियों (कैंसर, किडनी फेल्योर, हृदय शल्य चिकित्सा, एंजियोप्लास्टी, मस्तिष्क रक्तस्राव, लकवाग्रस्त दौरा, आदि) के उपचार के लिए ₹3 लाख तक, बशर्ते यह सीजीएचएस/बीमा के तहत कवर न हो; 65 वर्ष से अधिक आयु के गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए उपलब्ध नहीं (समिति द्वारा आयु में छूट दी जा सकती है)।
दुर्घटना से संबंधित गंभीर चोटों के लिए जिसके लिए अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता हो, ₹2 लाख तक, बशर्ते यह सीजीएचएस/बीमा के तहत कवर न हो; गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए, (ii), (iii), और (iv) के लिए सहायता 5 वर्षों के कार्य के लिए ₹1 लाख तक सीमित है, साथ ही निर्धारित अधिकतम सीमा तक प्रत्येक अतिरिक्त 5 वर्षों के लिए ₹1 लाख अतिरिक्त।
श्रमजीवी पत्रकार एवं अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1955
यह अधिनियम कार्यशील पत्रकारों और गैर-पत्रकार समाचार पत्र कर्मचारियों के लिए रोजगार की शर्तों को नियंत्रित करता है। इसमें काम के घंटे, छुट्टी की पात्रता और वेतन निर्धारण जैसे प्रमुख पहलुओं को शामिल किया गया है। यह अधिनियम समाचार पत्र उद्योग में वेतन दरों को संशोधित करने और निर्धारित करने के लिए एक वेतन बोर्ड के गठन का भी प्रावधान करता है।

कर्मचारी भविष्य निधि एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1952
यह अधिनियम 31 दिसंबर 1956 से समाचार पत्र प्रतिष्ठानों पर लागू होता रहा है और दिसंबर 2007 में निजी क्षेत्र की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कंपनियों तक इसका विस्तार किया गया था। इन प्रतिष्ठानों के कर्मचारी ईपीएफ योजनाओं के तहत सामाजिक सुरक्षा लाभों के हकदार हैं। इसके अतिरिक्त, कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) अधिनियम, 1948 के तहत कवर की गई इकाइयों में ₹21,000 प्रति माह तक कमाने वाले प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कर्मी अपनी पात्रता के अनुसार ईएसआई लाभ प्राप्त करने के पात्र हैं।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2025 लोकतंत्र के एक स्तंभ के रूप में एक स्वतंत्र, ज़िम्मेदार और निष्पक्ष प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका का उत्सव मनाता है, जो पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक जागरूकता में इसके योगदान पर ज़ोर देता है।प्रेस और पत्र-पत्रिका पंजीकरण अधिनियम, 2023 और पूर्णतः डिजिटल प्रेस सेवा पोर्टल जैसी ऐतिहासिक पहलों के साथ, सरकार ने पंजीकरण प्रक्रिया का आधुनिकीकरण और सरलीकरण किया है, जिससे प्रकाशकों के लिए व्यवसाय करने में आसानी को बढ़ावा मिला है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और प्रेस रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के नैतिक पत्रकारिता को बनाए रखने, समावेशिता को बढ़ावा देने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़ने के निरंतर प्रयास एक जीवंत मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करते हैं। यह दिन लोकतंत्र को मजबूत करने और नागरिकों को सशक्त बनाने में प्रेस की स्वतंत्रता के स्थायी महत्व की याद दिलाता है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस 2025 राष्ट्र को सूचित करने और शिक्षित करने के लिए मीडिया के अटूट समर्पण को एक श्रद्धांजलि के रूप में खड़ा है।
संदर्भ:
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय
भारतीय प्रेस परिषद
प्रेस रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया
पीआईबी बैकग्राउंडर्स
श्रम एवं सेवायोजन मंत्रालय
प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो
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पीके/केसी/एसके
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