Social Welfare
भारत के शैक्षिक परिदृश्य को सुदृढ़ बनाना
शिक्षा उत्कृष्टता में भारत
Posted On: 21 JUN 2025 9:41AM
प्रमुख बिंदु
• राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने शिक्षा को लचीला, बहुविषयक और वैश्विक मानकों और 21वीं सदी की जरूरतों के अनुरूप बनाने के लिए व्यापक सुधार पेश किए।
• निपुण भारत मिशन की शुरुआत इस मकसद के साथ की गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 2026-27 तक ग्रेड 3 के अंत तक हर बच्चा बुनियादी साक्षरता और संख्याओं का ज्ञान हासिल कर सके।
• मौजूदा केंद्रीय/राज्य/स्थानीय निकाय संचालित स्कूलों को मजबूत करते हुए 14500 से अधिक पीएम श्री (पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) स्थापित किए जाएंगे।
• उच्च शिक्षा संस्थान: संख्या में 70,018 (2025)
संस्थान
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2014-15
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2024-25
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आईआईटी
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16
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23
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आईआईएम
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13
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21
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एम्स
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7
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20
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• जंज़ीबार और अबू धाबी में आईआईटी के दो विदेशी कैंपस स्थापित किए गए हैं।
• ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत की रैंक 2014 में 76 से बढ़कर 2024 में 39 हो गई है।
• क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में, 2026 के संस्करण में 54 भारतीय विश्वविद्यालय शामिल हुए, जबकि 2025 में यह संख्या 46 और 2015 में केवल 13 थी।
• नेशनल फोरेंसिक साइंसेज यूनिवर्सिटी (एनएफएसयू) दुनिया का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है, जो पूरी तरह से फोरेंसिक विज्ञान और संबद्ध क्षेत्रों के लिए समर्पित है।
प्रस्तावना
पिछले एक दशक के दौरान, भारत ने स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों को मज़बूत करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत बड़े स्तर पर बदलावकारी सुधार किए हैं। निपुण भारत मिशन, पीएम श्री योजना, राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा, राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क जैसी अभूतपूर्व पहल लचीलेपन, बहुविषयकता और शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देती हैं, जिससे हज़ारों संस्थानों में गुणवत्ता में सुधार होता है। पीएम विद्यालक्ष्मी जैसी नई योजनाओं का मकसद, सीखने में आने वाली वित्तीय मुश्किलों को कम करना है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी, आईआईएम और एम्स का विस्तार, साथ ही गति शक्ति विश्वविद्यालय जैसे अग्रणी संस्थानों का निर्माण और अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना सभी विषयों में विश्व स्तरीय शिक्षा के लिए एक मज़बूत प्रतिबद्धता को दर्शाती है। बुनियादी शिक्षा से लेकर क्वांटम कंप्यूटिंग और रचनात्मक तकनीकों जैसे क्षेत्रों में उन्नत शोध तक, ये प्रयास पहुँच को व्यापक बना रहे हैं, गुणवत्ता में सुधार कर रहे हैं और प्रतिभाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। वैश्विक विश्वविद्यालय रैंकिंग में भारत का बेहतर प्रदर्शन और नालंदा विश्वविद्यालय जैसे विरासत केंद्रों का पुनरुद्धार शिक्षा, नवाचार और अवसर के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में इसके बढ़ते कद को और उजागर करता है।
बदलावकारी नीति: एनईपी 2020
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में स्कूली शिक्षा के साथ-साथ उच्च और व्यावसायिक शिक्षा में विभिन्न परिवर्तनकारी सुधारों का प्रस्ताव है। पहुँच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही के आधार पर बनाई गई इस नीति का मकसद स्कूली और कॉलेज शिक्षा को अधिक समग्र, लचीला, बहु-विषयक, 21वीं सदी की ज़रुरतों के अनुकूल बनाना है और हर छात्र की अनोखी क्षमताओं को सामने लाकर भारत को एक जीवंत ज्ञान से भरपूर समाज और वैश्विक ज्ञान महाशक्ति में बदलना है। इस नीति की कुछ मुख्य विशेषताएँ नीचे दी गई तालिका में देखी जा सकती हैं।

विश्व स्तरीय संस्थानों के ज़रिए भारत को सशक्त बनाना
अपने विश्व स्तरीय संस्थानों का विकास करते हुए भारत अपनी ज्ञान की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है, जो विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार, वैश्विक सहयोग और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा को बढ़ावा देते हैं। ये संस्थान अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और मानव पूंजी में वैश्विक नेता बनने की देश की आकांक्षा के प्रमुख कारक हैं।
• उच्च शिक्षा संस्थान: AISHE पोर्टल के अनुसार, उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) की संख्या में उल्लेखनीय 13.8% की वृद्धि देखी गई, जो 2014-15 में 51,534 से बढ़कर जून 2025 तक 70,018 हो गई। इस आंकड़े में विश्वविद्यालय, कॉलेज, स्टैंडअलोन विश्वविद्यालय/कॉलेज, पीएम विद्यालक्ष्मी और अनुसंधान एवं विकास संस्थान शामिल हैं।
• विश्वविद्यालय वृद्धि: विश्वविद्यालयों की संख्या 2014-15 में 760 से बढ़कर जून 2025 तक 1,338 हो गई, जो विश्व स्तरीय संस्थानों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
• कॉलेज वृद्धि: उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग को पूरा करते हुए कॉलेजों की संख्या 2014-15 में 38,498 से बढ़कर जून 2025 तक 52,081 हो गई।
• आईआईटी की वृद्धि: 2014 में, 16 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) थे। बाद में 7 नए आईआईटी के जुड़ने के साथ, जून 2025 तक इनकी कुल संख्या 23 हो गई है।
आईआईटी इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा: 7 मई 2025 को कैबिनेट ने 5 आईआईटी (तिरुपति, पलक्कड़, भिलाई, जम्मू, धारवाड़) के लिए चरण-बी विस्तार को मंजूरी दी। इसके अलावा, 2025 से 2029 तक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 11,828.79 करोड़ रुपए मंजूर किए गए। निर्माण पूरा होने पर, ये पांच आईआईटी 7,111 की वर्तमान छात्र संख्या के मुकाबले, 13,687 छात्रों को शिक्षा प्रदान करने में सक्षम होंगे, यानी छात्रों की संख्या में 6,576 की वृद्धि होगी।
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• आईआईएम: वर्ष 2014 में 13 भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) थे। जून 2025 तक यह संख्या बढ़कर 21 हो गई है।

• चिकित्सा शिक्षा को बढ़ावा: वर्ष 2014 से एम्स संस्थानों की संख्या 7 से बढ़कर 20 (जून 2025) हो गई है, जो प्रभावी रूप से तीन गुना है।
• स्कूलों का उन्नयन: पीएम श्री (पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) योजना के तहत 14,500 स्कूलों को अपग्रेड किया जाएगा।
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एकलव्य मॉडल स्कूल पहल: ईएमआरएस का मकसद दूरदराज के क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है, जिससे समान शैक्षणिक अवसर मिल सकें। इनका प्रबंधन जनजातीय मामलों के मंत्रालय के तहत जनजातीय छात्रों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा सोसायटी (एनईएसटीएस) द्वारा किया जाता है।[1] कार्यरत एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) की संख्या 2013-14 में 123 से बढ़कर 2024-25 में 477 हो गई है।


शिक्षा से जुड़े मूलभूत ढ़ांचे और रैंकिंग में सुधार
उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (एचईएफए) और विश्व स्तरीय संस्थान योजना जैसी प्रमुख पहलों ने संस्थानों को अत्याधुनिक मूलभूत ढ़ांचा विकसित करने और अकादमिक उत्कृष्टता को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाया है। प्रतिष्ठित संस्थानों (आईओई) का पदनाम, वैश्विक रैंकिंग में बढ़ती उपस्थिति और आईआईटी जैसे प्रमुख संस्थानों का जंज़ीबार और अबू धाबी में अंतर्राष्ट्रीय कैंपसों में विस्तार, भारत की उच्च शिक्षा और नवाचार के लिए खुद को वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
- उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (एचईएफए) की स्थापना सरकार द्वारा 2017 में विश्व स्तरीय अवसंरचना के विकास के लिए संस्थानों को ऋण देने के लिए की गई थी। अब तक 106 संस्थानों को 43,028.24 करोड़ रुपये का ऋण स्वीकृत किया गया है, जिनमें से 21,590.59 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं।
- भारत में उच्च शिक्षण संस्थानों को किफायती विश्व स्तरीय शैक्षणिक और अनुसंधान सुविधाएं मुहैया कराने के लिए साल 2017 में विश्व स्तरीय संस्थान योजना की शुरूआत की गई थी। विश्व स्तरीय संस्थान योजना के तहत 12 संस्थानों (8 सार्वजनिक वित्त पोषित और 4 निजी) को उत्कृष्ट संस्थान (आईओई) के रूप में अधिसूचित किया गया है।
- भारत वैश्विक नवाचार सूचकांक (जीआईआई) में वर्ष 2014 में 76वें स्थान से बढ़कर 2024 में 39वें स्थान पर पहुंच गया है।
- 2026 क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में 54 भारतीय विश्वविद्यालयों को वैश्विक स्तर पर स्थान मिला है, जो 2025 में छियालीस (46) और 2015 में तेरह (13) थे।
- जंज़ीबार में आईआईटी मद्रास परिसर और अबू-धाबी में आईआईटी दिल्ली परिसर
नए भारत के लिए उत्कृष्टता केंद्रों का निर्माण
भारत ने संस्थान निर्माण को लेकर एक बदलावकारी दौर देखा है, जिसमें परिवहन और फोरेंसिक विज्ञान से लेकर क्वांटम प्रौद्योगिकी और डिजिटल शिक्षा तक विविध क्षेत्रों में अत्याधुनिक विश्वविद्यालयों और उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना की गई है। ये संस्थान नवाचार, उद्योग सहयोग और ज्ञान और कौशल विकास में वैश्विक नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए देश की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
गति शक्ति विश्वविद्यालय
गति शक्ति विश्वविद्यालय (जीएसवी), परिवहन और रसद क्षेत्र में भारत का पहला विश्वविद्यालय है, जिसे केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम 2022 को अगस्त 2022 में संसद द्वारा पारित करने के बाद स्थापित किया गया था। रेल मंत्रालय (भारत सरकार) के तहत काम करते हुए, विश्वविद्यालय को 6 दिसंबर 2022 को शुरू किया गया था।[2]
विश्वविद्यालय ने सितंबर 2023 में एयरबस के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। यह एमओयू एयरोस्पेस और विमानन क्षेत्र के लिए शैक्षणिक पाठ्यक्रम के विकास, इन पाठ्यक्रमों को संचालित करने के लिए संकाय समर्थन, अंतर्राष्ट्रीय शिक्षाविदों से जुड़ने, संयुक्त अनुसंधान और संगोष्ठियों, कार्यशालाओं आदि जैसे संयुक्त कार्यक्रमों के आयोजन पर केंद्रित है। इसके अलावा, यह एमओयू जीएसवी छात्रों के लिए एयरबस विशेषज्ञों द्वारा उद्योग के अनुभव और प्रशिक्षण, संकाय, छात्रों और प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए संस्थागत आदान-प्रदान, तथा मेधावी और जरूरतमंद छात्रों के लिए छात्रवृत्ति को बढ़ावा देता है।[3]
भारतीय रचनात्मक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी)
मुंबई में तैयार किया जा रहा राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र, भारतीय रचनात्मक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी) रचनात्मक अर्थव्यवस्था के लिए क्षमता निर्माण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। एवीजीसी-एक्सआर क्षेत्र के लिए विशेष रूप से समर्पित, इस संस्थान की स्थापना वेव्स 2025 के तीसरे दिन औपचारिक रूप से की गई। आईआईसीटी को एमएंडई क्षेत्र में विश्व स्तरीय संस्थान के रूप में बदलने के लिए वेव्स ने उद्योग संघों के साथ रणनीतिक समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर भी किए। जिन कंपनियों ने दीर्घकालिक सहयोग के लिए अपना हाथ बढ़ाया है, वे हैं जियोस्टार, अडोबी, गूगल और यू ट्यूब, मेटा, वाकोम, माइक्रोसॉफ्ट और एनवीडिया।[4]
राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय
राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (एनएफएसयू), जिसे पहले गुजरात फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (जीएफएसयू) के नाम से जाना जाता था, फोरेंसिक विज्ञान और इससे जुड़े विषयों के लिए समर्पित, दुनिया का पहला और एकमात्र विश्वविद्यालय है।[5] इसे देश के सभी हिस्सों में गुणवत्तापूर्ण और प्रशिक्षित फोरेंसिक जनशक्ति प्रदान करने के लिए वर्ष 2020 में संसद के अधिनियम के तहत स्थापित किया गया है। एनएफएसयू का मुख्यालय गांधीनगर, गुजरात में स्थित है और यह विभिन्न ऑफ-कैंपस और संबद्ध कॉलेजों के माध्यम से संचालित होता है, जिन्हें छात्रों की उपलब्धता, स्थान की व्यवहार्यता और राज्य / केंद्र शासित प्रदेश सरकार की इच्छा आदि जैसे कारकों के आधार पर स्थापित किया जाता है।[6]
नालंदा का पुनर्जन्म: शैक्षिक उत्कृष्टता को दोबारा हासिल करने की भारत की यात्रा

भारत के उत्तरी राज्य बिहार के राजगीर शहर में स्थित, नालंदा विश्वविद्यालय 25 नवंबर 2010 को स्थापित एक स्नातकोत्तर, गहन-शोध अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है। इसका मकसद शिक्षा के प्रसिद्ध प्राचीन केंद्र को पुनर्जीवित करना है, जो 5वीं शताब्दी सीई से 12वीं शताब्दी सीई तक दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में बेहद प्रसिद्ध था।
जून 2024 में, बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया गया। इस विश्वविद्यालय की कल्पना, भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) देशों के बीच सहयोग के रूप में की गई है।
यह परिसर एक ‘नेट जीरो’ ग्रीन परिसर है। यह एक सौर संयंत्र, घरेलू और पेयजल उपचार संयंत्र, अपशिष्ट जल के दोबारा प्रयोग के लिए जल पुनर्चक्रण संयंत्र, 100 एकड़ के जल निकाय और कई अन्य पर्यावरण-अनुकूल सुविधाओं के साथ बना आत्मनिर्भर परिसर है।
इस विश्वविद्यालय का इतिहास से गहरा संबंध है। करीब 1600 साल पहले स्थापित मूल नालंदा विश्वविद्यालय को दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है।[7]
क्या आप जानते हैं?
नालंदा के खंडहरों को 2016 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
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अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एएनआरएफ)
एएनआरएफ का मकसद, भारत के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, शोध संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) को बढ़ावा देना और उन्हें विकसित करना है। इसके अलावा अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को भी बढ़ावा देना है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की सिफारिशों के अनुसार देश में वैज्ञानिक अनुसंधान की उच्च-स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करने के लिए एक शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करता है। यह उद्योग, शिक्षाविदों और सरकारी विभागों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देगा और वैज्ञानिक और संबंधित मंत्रालयों के अलावा उद्योगों और राज्य सरकारों की भागीदारी और योगदान के लिए एक इंटरफेस तंत्र तैयार करेगा।
नई सरकारी पहल
- पीएम श्री: सितंबर 2022 में शुरू की गई पीएम श्री (पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) योजना एक केंद्र प्रायोजित पहल है, जिसका पांच वर्षों (2022-23 से 2026-27) के लिए कुल परिव्यय 27,360 करोड़ रुपए (केंद्रीय हिस्से के रूप में 18,128 करोड़ रुपए) है। इस योजना का मकसद चयनित स्कूलों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के सभी पैमानों को प्रदर्शित करते हुए मॉडल संस्थानों में बदलना है। ये स्कूल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, समग्र विकास और 21वीं सदी के कौशल पर ध्यान केंद्रित करते हैं, साथ ही नज़दीकी स्कूलों के लिए भी संरक्षक संस्थान के रूप में काम करते हैं।[8]
- पीएम विद्यालक्ष्मी: सरकार का एक प्रमुख मकसद ये भी है कि कोई भी छात्र वित्तीय समस्याओं के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रहे। मौजूदा योजनाओं से बाहर रखे गए युवाओं की मदद के लिए, केंद्रीय बजट 2024-25 में 10 लाख रुपए तक के उच्च शिक्षा ऋण के लिए वित्तीय सहायता की घोषणा की गई थी। नवंबर 2024 में, कैबिनेट ने “प्रधानमंत्री विद्यालक्ष्मी” (पीएम-विद्यालक्ष्मी) योजना को मंजूरी दी, ताकि वित्तीय बाधाओं के कारण मेधावी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में कोई मुश्किल न आए।[9]

3. केंद्रीय क्षेत्र ब्याज सब्सिडी योजना (सीएसआईएस) और शिक्षा ऋण के लिए ऋण गारंटी निधि योजना (सीजीएफएसईएल): इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उन विद्यार्थियों को भारतीय बैंक संघ की आदर्श शिक्षा ऋण योजना के तहत, निर्धारित बैंकों से लिए गए शिक्षा ऋण पर अधिस्थगन अवधि यानि पाठ्यक्रम अवधि के साथ एक वर्ष के लिए ब्याज सब्सिडी दी जाती है, जिनके माता-पिता की वार्षिक आय सभी स्रोतों से मिलाकर 4.5 लाख रुपये तक है।[10]
4. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत ने 51 देशों के साथ शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रम/समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं और यह शैक्षणिक सहयोग, छात्र विनिमय और योग्यता की पारस्परिक मान्यता को बढ़ावा देने के लिए यूनेस्को, ब्रिक्स, सार्क, आसियान आदि जैसे अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करता है।[11] शिक्षा मंत्रालय, विदेशी छात्रों को भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में आने और यहां पढ़ाई करने के लिए आकर्षित करने के लिए स्टडी इन इंडिया योजना चलाता है। मंत्रालय भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के बीच संयुक्त अनुसंधान के लिए शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने की योजना भी चलाता है। एनईपी 2020 की सिफारिशों के अनुरूप, कई अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय भारत में अपने परिसर स्थापित कर रहे हैं, जबकि आईआईटी मद्रास ने जंज़ीबार और आईआईटी दिल्ली ने अबू धाबी में एक शाखा खोली है।
निष्कर्ष
ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में मजबूत संस्थागत ढांचे और दूरदर्शी नीति सुधारों की मदद से, भारत की ये यात्रा लगातार आगे बढ़ रही है। नालंदा जैसे प्राचीन शिक्षण केंद्रों को पुनर्जीवित करने से लेकर अत्याधुनिक पहलों को आगे बढ़ाने तक, देश न केवल अपनी शैक्षणिक विरासत को संरक्षित कर रहा है, बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में नए रास्ते भी बना रहा है। शिक्षा, रक्षा, रचनात्मक उद्योग, अंतरिक्ष और जनजातीय विकास के क्षेत्रों में फैले ये संस्थान महज़ भौतिक संरचनाओं से कहीं अधिक हैं। ये प्रगति, सशक्तिकरण और अवसर को आगे बढ़ाने वाले कारक हैं। जैसे-जैसे भारत भविष्य के संस्थानों का निर्माण कर रहा है, यह एक आत्मनिर्भर और आने वाले वक्त के लिए तैयार मज़बूत भारत की नींव भी रख रहा है।
संदर्भ
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विश्लेषक 20/ सरकार के 11 वर्षों पर सीरीज
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