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रक्षा आत्मनिर्भरता: रिकॉर्ड उत्पादन और निर्यात
Posted On:
20 NOV 2025 10:29AM by PIB Delhi
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मुख्य बिन्दु
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- वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का रक्षा उत्पादन 1.54 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो अब तक का सर्वोच्च स्तर है।
- वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का स्वदेशी रक्षा उत्पादन रिकॉर्ड 1,27,434 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो 2014-15 के 46,429 करोड़ रुपये की तुलना में 174% की वृद्धि दर्शाता है।
- करीब 16,000 एमएसएमई स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को सशक्त बनाते हुए देश की रक्षा आत्मनिर्भरता में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
- 462 कम्पनियों को 788 रक्षा औद्योगिक लाइसेंस जारी किये गये हैं।
- भारत का रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड 23,622 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो 2014 में 1,000 करोड़ रुपये से भी कम था।
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परिचय
भारत का स्वदेशी रक्षा उत्पादन वित्त वर्ष 2023-24 में रिकॉर्ड 1,27,434 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जो वर्ष 2014-15 के 46,429 करोड़ रुपये की तुलना में 174% की उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत नीति और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाली सशक्त नीतिगत पहलों का परिणाम है। पिछले एक दशक में सरकार द्वारा रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए किए गए वित्तीय आवंटन, नीतिगत सुधार और औद्योगिक सहयोग ने देश के सैन्य औद्योगिक ढांचे को सशक्त बनाया गया है। रक्षा बजट में भी निरंतर वृद्धि दर्ज की गई है, जो 2013-14 के 2.53 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में अनुमानित 6.81 लाख करोड़ रुपये तक आ गया है। यह वृद्धि सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दृढ़ प्रतिबद्धता को उजागर करती है। दूसरे देशों पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से, सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों ने उल्लेखनीय प्रगति की है। यह वृद्धि पिछले दशक में किए गए दूरगामी नीतिगत सुधारों, व्यापार सुगमता में सुधार और स्वदेशीकरण पर केंद्रित रणनीतिक दृष्टिकोण का प्रत्यक्ष परिणाम है। वर्तमान में भारत अमरीका, फ्रांस और आर्मेनिया सहित 100 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रहा है। कुल रक्षा उत्पादन में रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (डीपीएसयू) और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का योगदान लगभग 77% है, जबकि निजी क्षेत्र का योगदान 23% तक पहुंच गया है — जो वित्त वर्ष 2023-24 के 21% से बढ़कर 2024-25 में दर्ज किया गया है। यह आंकड़ा भारत के रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में निजी क्षेत्र की तेजी से बढ़ती भूमिका को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। निर्यात के क्षेत्र में भी भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है और वित्त वर्ष 2023-24 की तुलना में 2,539 करोड़ रुपये (12.04%) की बढ़त दर्ज की गई है। सरकार ने वर्ष 2029 तक 3 लाख करोड़ रुपयेके रक्षा विनिर्माण और 50,000 करोड़ रुपये के रक्षा निर्यात का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इन महत्वपूर्ण गतिविधियों के माध्यम से भारत न केवल अपने आर्थिक विकास को नई दिशा दे रहा है, बल्कि एक वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर रहा है। आने वाले वर्षों में भारत का रक्षा उत्पादन क्षेत्र तेजी, नवाचार और आत्मनिर्भरता की नई ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए तैयार है।
नीतिगत सुधारों के समक्ष चुनौतियां
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले दशक में आरंभ किए गए नीतिगत सुधारों से पहले भारत का रक्षा क्षेत्र अनेक संरचनात्मक चुनौतियों से जूझ रहा था। रक्षा खरीद प्रक्रियाएं अत्यंत धीमी थीं, जिसके कारण आवश्यक क्षमताओं में गंभीर परेशानियां उत्पन्न हो रही थीं। अत्यधिक आयात निर्भरता ने न केवल देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ाया, बल्कि वैश्विक अस्थिरता के समय भारत की सामरिक कमजोरियों को भी उजागर किया। इससे पहले, प्रतिबंधात्मक नीतियों, रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों के वर्चस्व और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंच के कारण निजी क्षेत्र की भागीदारी नगण्य थी। परिणामस्वरूप, रक्षा निर्यात का स्तर अत्यंत निम्न रहा था। यह वित्त वर्ष 2013-14 में यह मात्र 686 करोड़ था, जिससे भारत वैश्विक रक्षा बाजार में एक उत्पादक की बजाय मुख्यतः आयातक देश के रूप में जाना जाता था। इन चुनौतियों से निपटने हेतु, रक्षा मंत्रालय ने मसौदा रक्षा उत्पादन एवं निर्यात संवर्धन नीति (डीपीईपीपी) तैयार की, जिसका उद्देश्य अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना, नवाचार व बौद्धिक संपदा सृजन को बढ़ावा देना, उद्योग–अकादमिक सहयोग को सशक्त करना, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को सहायता प्रदान करना तथा और रक्षा निर्यात में महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करना है। यह नीति उत्पादन, प्रौद्योगिकी और बाजार पहुंच के बीच समन्वय स्थापित कर भारत को एक अग्रणी वैश्विक रक्षा निर्माता के रूप में स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करती है।

सुधारों के उद्देश्य
सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए एक आत्मनिर्भर और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी रक्षा उद्योग के निर्माण हेतु कई सुधार शुरू किए हैं। इनके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- सुव्यवस्थित रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) के माध्यम से खरीद प्रक्रियाओं में गति लाना, जिससे आवश्यक स्वीकृति प्राप्त होने पर रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) द्वारा अधिग्रहण को शीघ्र अनुमोदन मिल सके।
- सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची के माध्यम से देश में रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया है। साथ ही, 74% तक स्वचालित मार्ग और 100% तक सरकारी अनुमोदन मार्ग के तहत एफडीआई मानदंडों में उदारता लाई गई है। इसके अतिरिक्त, 1 लाख करोड़ रुपये की अनुसंधान, विकास एवं नवाचार (आरडीआई) योजना के माध्यम से डीपीएसयू, निजी क्षेत्र, एमएसएमई और स्टार्टअप्स के बीच सहयोग को सुदृढ़ किया जा रहा है, जिससे रक्षा प्रौद्योगिकी और आत्मनिर्भरता को नई गति मिल रही है।
- सरलीकृत लाइसेंसिंग के साथ रक्षा निर्यात को बढ़ावा देना, जिसमें बुलेटप्रूफ जैकेट, डोर्नियर विमान, चेतक हेलीकॉप्टर, तेज गति के इंटरसेप्टर नौकाएं और हल्के वजन वाले टारपीडो जैसे प्लेटफॉर्म शामिल हैं।

साल 2025 को 'सुधारों का वर्ष' घोषित किया गया है। इन गतिविधियों का उद्देश्य सशस्त्र बलों को तकनीकी रूप से उन्नत, युद्ध के लिए तैयार बल में बदलना है, जो बहु-डोमेन एकीकृत संचालन में सक्षम हो। साथ ही रक्षा उत्पादन को 3 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाना और 2029 तक 50,000 करोड़ रुपये के निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करना है।
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) सुधार
भारत सरकार ने आत्मनिर्भर देश के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए रक्षा खरीद पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव लाने के लिए कई ऐतिहासिक सुधार किए हैं। रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 और रक्षा खरीद नियमावली (डीपीएम) 2025 जैसे दोनों ढांचे मिलकर इस परिवर्तन की मेरुदंड के रूप में कार्य कर रहे हैं, जो पूंजीगत तथा राजस्व खरीद दोनों में गति, पारदर्शिता, नवाचार एवं आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करते हैं।
डीएपी 2020: आत्मनिर्भर अधिग्रहण के लिए रणनीतिक रोडमैप
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 एक परिवर्तनकारी नीतिगत ढांचा है, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी घरेलू रक्षा उद्योग के विकास को प्रोत्साहित करते हुए अधिग्रहण प्रक्रिया के आधुनिकीकरण के लिए एक व्यापक नियम-पुस्तिका तथा रणनीतिक रोडमैप के रूप में कार्य करती है। यह नीति देरी तथा आयात पर अत्यधिक निर्भरता जैसी पुरानी चुनौतियों को दूर करने हेतु तैयार की गई है और अधिग्रहण के प्रत्येक चरण में स्पष्टता, पारदर्शिता एवं स्वदेशी नवाचार को केंद्र में रखती है।

अधिग्रहण को पुनः परिभाषित करने वाली प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:
- भारतीय प्रथम दृष्टिकोण: यह नीति ‘{भारतीय-आईडीडीएम (स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित एवं निर्मित) खरीदें} श्रेणी को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है, स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित व निर्मित प्रणालियों को बढ़ावा देती है, जिससे देश आत्मनिर्भर बनता है।
- पारदर्शिता के साथ गति: सरलीकृत अनुमोदन प्रक्रिया और डिजिटल एकीकरण ने जवाबदेही बढ़ाते हुए खरीद समयसीमा में तेजी ला दी है।
- भविष्य की प्रौद्योगिकी: डीएपी 2020 में बहु-डोमेन संचालन को सक्षम करने के लिए एआई, रोबोटिक्स, साइबर, अंतरिक्ष और उन्नत युद्ध प्रणाली जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने के लिए समर्पित प्रावधान शामिल हैं।
- भागीदार के रूप में उद्योग: यह रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (आईडेक्स) और आसान लाइसेंसिंग मानदंडों जैसी गतिविधियों के माध्यम से निजी क्षेत्र की कंपनियों, स्टार्ट-अप तथा एमएसएमई को शामिल करते हुए एक सहयोगी पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देता है।
- अनुमोदन में आसानी: सुव्यवस्थित ढांचे और सशक्त अधिग्रहण विंग के माध्यम से प्रक्रियागत अड़चनों को दूर किया गया है, जिससे समय पर निर्णय लेना सुनिश्चित हुआ है।
डीपीएम 2025: राजस्व खरीद को सुव्यवस्थित करना
रक्षा खरीद नियमावली (डीपीएम) 2025 को रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने अक्टूबर 2025 में डीएपी ढांचे के आधार पर शुरू किया था, जो प्रक्रियाओं को सरल बनाने और कार्यप्रणाली में एकरूपता स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह नियमावली सशस्त्र बलों को परिचालन तत्परता के लिए आवश्यक लगभग 1 लाख करोड़ रुपये मूल्य के उपकरणों और सेवाओं की समयबद्ध उपलब्धता सुनिश्चित करने में सहायक सिद्ध होगी। 1 नवंबर, 2025 से प्रभावी, डीपीएम 2025 में कई उद्योग-अनुकूल सुधार सम्मिलित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य रक्षा खरीद प्रक्रिया में निष्पक्षता, पारदर्शिता, जवाबदेही और घरेलू उद्यमों की सक्रिय भागीदारी को सुदृढ़ बनाना है।
मुख्य बातों में शामिल हैं: व्यापार सुगमता को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से, सभी सशस्त्र बलों एवं रक्षा मंत्रालय के संगठनों में प्रक्रियाओं का मानकीकरण किया गया है, जिससे अनावश्यक देरी को न्यूनतम किया जा सके। इसके साथ ही, नवाचार और स्वदेशीकरण को प्रोत्साहित करने हेतु रक्षा उद्योग तथा अकादमिक सहयोग को बढ़ावा दिया गया है। नीतिगत सुधारों के अंतर्गत कई उद्योग-अनुकूल प्रावधान शामिल किए गए हैं, जिनमें स्वदेशीकरण परियोजनाओं के लिए कम परिसमाप्त क्षतिपूर्ति दर (0.1% प्रति सप्ताह), स्वदेशी उत्पादों हेतु पांच वर्षों तक गारंटीकृत आदेश और पूर्व आयुध निर्माणी बोर्ड से पुराने ‘अनापत्ति प्रमाण पत्र’ की अनिवार्यता को समाप्त करना शामिल है। इसके साथ ही, डिजिटल एकीकरण और पारदर्शिता को सुदृढ़ किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप ई-खरीद प्रणाली तथा डेटा-संचालित निगरानी में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इससे खरीद प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता सुनिश्चित हुई है।
भविष्य के लिए एक एकीकृत खरीद ढांचा
डीएपी 2020 और डीपीएम 2025 मिलकर एक एकीकृत, दूरदर्शी खरीद संरचना का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया को परिचालन तत्परता तथा औद्योगिक आत्मनिर्भरता के दोहरे लक्ष्यों के साथ संरेखित करती है। पूंजी एवं राजस्व खरीद का एकीकरण सशस्त्र बलों को महत्वपूर्ण प्रणालियों की तेज आपूर्ति सुनिश्चित करता है और साथ ही भारतीय उद्योग को नवाचार, विनिर्माण व निर्यात को बढ़ाने के लिए सशक्त बनाता है।
यह व्यापक खरीद पारिस्थितिकी तंत्र भारत को रक्षा उत्पादन और नवाचार के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाने की दिशा में एक निर्णायक बदलाव का प्रतीक है, जो रणनीतिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की प्राप्ति को गति प्रदान करता है।
घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा
1. निर्भरता से प्रभुत्व तक:
देश ने वित्त वर्ष 2024-25 में 1.54 लाख करोड़ रुपये का अब तक का सर्वाधिक रक्षा उत्पादन दर्ज किया, जो आत्मनिर्भर भारत की ताकत का प्रमाण है। भारत चालू वित्त वर्ष में रक्षा उत्पादन में 1.75 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य हासिल करने की राह पर है, जबकि इसका लक्ष्य 2029 तक रक्षा उत्पादन को 3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाना है, जिससे देश स्वयं को वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर सकेगा।

2. रक्षा औद्योगिक गलियारे - विकास के नए मार्ग:
दो गलियारे, उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारा (यूपीडीआईसी) और तमिलनाडु रक्षा औद्योगिक गलियारा (टीएनडीआईसी), इस बदलाव की जीवनरेखा हैं। इन दोनों गलियारों ने मिलकर 9,145 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आकर्षित किया है और 289 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे अक्टूबर 2025 तक 66,423 करोड़ रुपये के संभावित अवसर खुलेंगे।
3. रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार:
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन आज भारत की रक्षा क्रांति का अग्रदूत बन चुका है। रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीडीएफ) योजना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कार्यक्रम और 15 रक्षा उद्योग-अकादमिक उत्कृष्टता केंद्र (डीआईए-सीओई) के अंतर्गत डीप-टेक एवं अत्याधुनिक परियोजनाओं को प्रोत्साहित करने हेतु 500 करोड़ रुपये के विशेष कोष को मंजूरी दी है। यह पहल शिक्षा जगत, स्टार्टअप्स और उद्योगों के बीच सीधा सहयोग स्थापित कर रक्षा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बना रही है। आयुध कारखानों का पुनर्गठन और सात नई रक्षा कंपनियों का गठन, कार्यात्मक स्वायत्तता बढ़ाने, दक्षता सुधारने और आत्मनिर्भरता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। देश में अब निजी क्षेत्र रक्षा उद्योग जगत का मूक दर्शक नहीं रहा है, बल्कि वह सक्रिय सहभागी बन चुका है। ड्रोन, एवियोनिक्स और अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में बड़ी से लेकर उभरती कंपनियां अग्रणी भूमिका निभा रही हैं, जबकि लगभग 16,000 एमएसएमई देश के रक्षा नवाचार परिदृश्य में गेम-चेंजर के रूप में उभर रहे हैं।
4. नए क्षितिज खोलना - निवेश के अवसर:
भारत रक्षा निवेश के लिए सबसे आकर्षक स्थलों में से एक के रूप में उभरा है। 462 कंपनियों को जारी किए गए 788 औद्योगिक लाइसेंसों के साथ, रक्षा निर्माण में भारतीय उद्योग की भागीदारी त्वरित गति से बढ़ रही है। रक्षा उत्पादन विभाग ने निर्यात प्राधिकरणों के लिए एक पूर्णतः डिजिटल पोर्टल के माध्यम से इस क्षेत्र को सुव्यवस्थित किया है, जिसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2024-25 में 1,762 स्वीकृतियां प्राप्त हुईं, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में यह संख्या 1,507 थी, जो वर्ष-दर-वर्ष 16.92% की वृद्धि और निर्यातकों की संख्या में 17.4% की बढ़त को दर्शाता है। उदारीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मानदंडों, पीएलआई योजना और आधुनिक रक्षा गलियारों के साथ, भारत घरेलू नवप्रवर्तकों तथा वैश्विक निवेशकों के लिए एक आकर्षक अवसर प्रदान करता है।
रक्षा मंत्रालय ने 2024-25 में, 2,09,050 करोड़ रुपये मूल्य के रिकॉर्ड 193 अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए, जो किसी एक वित्तीय वर्ष में अब तक का सबसे अधिक है। इनमें से 1,68,922 करोड़ रुपये मूल्य के 177 अनुबंध घरेलू उद्योग को दिए गए, जो भारतीय निर्माताओं की ओर एक निर्णायक बदलाव तथा एक सशक्त स्वदेशी रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को दर्शाता है। स्थानीय खरीद पर जोर देने से पूरे क्षेत्र में रोजगार सृजन और तकनीकी नवाचार को भी बढ़ावा मिला है।
रक्षा अधिग्रहण: आत्मनिर्भरता में तेजी
आत्मनिर्भर भारत पहल के अंतर्गत, भारत के रक्षा अधिग्रहण परिदृश्य में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिला है। रिकॉर्ड स्तर के बजट आवंटन, प्रक्रियाओं के सरलीकरण और तीनों सेनाओं में स्वदेशीकरण पर नए सिरे से केंद्रित दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप रक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। भारत के लगभग 65% रक्षा उपकरण आज देश में ही निर्मित हो रहे हैं। यह उस समय से बड़ा बदलाव है, जब 65–70% उपकरणों के लिए आयात पर निर्भरता हुआ करती थी। यह परिवर्तन भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता और तकनीकी क्षमता में आए सशक्त उत्थान को दर्शाता है। भारत की नीति अब इस बात पर केंद्रित है कि हर रक्षा खरीद न केवल राष्ट्रीय उद्योग को सशक्त बनाए, बल्कि आयात पर निर्भरता घटाए और सेनाओं की परिचालन क्षमता को अधिक मजबूत करे।

बढ़ता अधिग्रहण बजट और दशकीय वृद्धि
रक्षा मंत्री की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने हाल के वर्षों में रिकॉर्ड मात्रा में स्वदेशी खरीद को मंजूरी दी है। सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण और स्वदेशीकरण सरकार की प्रमुख प्राथमिकता बनी हुई है। केंद्रीय बजट 2024-25 में, रक्षा सेवाओं के लिए पूंजीगत मद में 1.72 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो वित्त वर्ष 2022-23 के वास्तविक व्यय से 20.33% और वित्त वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 9.40% की वृद्धि दर्शाता है।
मार्च 2025 में, डीएसी ने 54,000 करोड़ रुपये से अधिक के आठ पूंजी अधिग्रहण प्रस्तावों को मंजूरी दी, जिसमें टी-90 टैंकों के लिए 1,350 एचपी इंजन और स्वदेशी रूप से विकसित वरुणास्त्र टॉरपीडो तथा एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (एईडब्ल्यू एंड सी) सिस्टम शामिल हैं।
जुलाई 2025 में, डीएसी ने लगभग 1.05 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 10 पूंजी अधिग्रहण प्रस्तावों को मंज़ूरी दी, जिनमें बख्तरबंद रिकवरी वाहन, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली, तीनों सेनाओं के लिए एकीकृत कॉमन इन्वेंट्री मैनेजमेंट सिस्टम, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, मूर्ड माइंस, माइन काउंटर मेजर वेसल्स, सुपर रैपिड गन माउंट और सबमर्सिबल ऑटोनॉमस वेसल्स शामिल हैं। स्वीकृत सभी उपकरण खरीद (भारतीय-आईडीडीएम) श्रेणी के अंतर्गत स्वदेशी हैं, जिनमें स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित प्रणालियों पर बल दिया गया है।
अगस्त 2025 में, रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए 67,000 करोड़ रुपये के प्रस्तावों को मंज़ूरी दी। प्रमुख स्वीकृतियों में सेना के लिए बीएमपी के लिए थर्मल इमेजर-आधारित नाइट साइट्स, कॉम्पैक्ट ऑटोनॉमस सरफेस क्राफ्ट, ब्रह्मोस फायर कंट्रोल सिस्टम और नौसेना के लिए बराक-1 अपग्रेड, और वायु सेना के लिए माउंटेन रडार के साथ-साथ सक्षम/स्पाइडर अपग्रेड शामिल थे। डीएसी ने तीनों सेनाओं के लिए स्वदेशी मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (एमएएलई) आरपीए और सी-17, सी-130जे और एस-400 प्रणालियों के लिए रखरखाव सहायता को भी स्वीकृति दी है।
डीएसी ने इस गति को जारी रखते हुए अक्टूबर 2025 में सेना, नौसेना और वायु सेना के लिए लगभग 79,000 करोड़ रुपये मूल्य के खरीद प्रस्तावों को मंजूरी दी, जिससे राष्ट्रीय रक्षा के सभी क्षेत्रों में क्षमता वृद्धि तथा आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से सरकार की निरंतर प्रतिबद्धता को बल मिला। डीआरडीओ की नौसेना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला द्वारा नौसेना के लिए विकसित उन्नत हल्के वजन वाले टॉरपीडो (एएलडब्ल्यूटी) एक प्रमुख स्वदेशी विशेषता है। अन्य स्वीकृतियों में सेना हेतु नाग मिसाइल सिस्टम (ट्रैक्ड) एमके-II (एनएएमआईएस), ग्राउंड बेस्ड मोबाइल ईएलआईएनटी सिस्टम (जीबीएमईएस) और हाई मोबिलिटी व्हीकल्स (एचएमवी); नौसेना के लिए लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक्स और 30 मिमी नेवल सरफेस गन; और वायु सेना को सहयोगी लंबी दूरी की लक्ष्य संतृप्ति/विनाश प्रणाली शामिल हैं।
रक्षा निर्यात संवर्धन: भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा
निर्यात की नई कहानी: ऐसे आंकड़े जो बोलते हैं
रक्षा निर्यात जो कभी एक बूंद थी, अब एक स्थिर धारा है: भारत का रक्षा निर्यात अभूतपूर्व ऊंचाइयों को छू रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का रक्षा निर्यात रिकॉर्ड 23,622 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो वित्त वर्ष 2023-24 के 21,083 करोड़ रुपये से 12.04% की वृद्धि दर्शाता है। इस उल्लेखनीय उपलब्धि में निजी क्षेत्र ने 15,233 करोड़ रुपये और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों ने 8,389 करोड़ रुपये का योगदान दिया। पिछली अवधि में ये आंकड़े क्रमशः 15,209 करोड़ रुपये और 5,874 करोड़ रुपये थे, जिससे स्पष्ट होता है कि विशेष रूप से डीपीएसयू के निर्यात में 42.85% की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान, भारत ने लगभग 80 देशों को गोला-बारूद, हथियार, उप-प्रणालियां , संपूर्ण प्रणालियां और महत्वपूर्ण घटकों सहित उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला निर्यात की है। यह न केवल भारत की उत्पादन क्षमता का प्रमाण है, बल्कि वैश्विक रक्षा आपूर्ति श्रृंखला में भारत के एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में उभरने का भी प्रतीक है।
तेज, सरल और डिजिटल नीतियां: प्रगति के नए द्वार
सरकार ने निर्यात मार्ग को सक्रिय रूप से सरल बनाया है, युद्ध सामग्री सूची की वस्तुओं के निर्यात हेतु मानक संचालन प्रक्रियाओं को युक्तिसंगत बनाया गया है और एक पूर्णतः ऑनलाइन पोर्टल अब निर्यात प्राधिकरणों को डिजिटल रूप से संसाधित करता है, जिससे निर्यातकों के लिए समय तथा कागजी कार्रवाई में कमी आई है। खुले सामान्य निर्यात लाइसेंस (ओजीईएल) व एक डिजिटल प्राधिकरण प्रणाली ने नियमित निर्यात को और भी आसान बना दिया है।
कूटनीति के रूप में रक्षा निर्यात
निर्यात केवल वाणिज्य नहीं, विश्वास का सेतु: ये विश्वास, आपसी सहभागिता और दीर्घकालिक साझेदारी का निर्माण करते हैं। मित्र देशों को आपूर्ति की जा रही भारत की बढ़ती निर्यात टोकरी केवल उत्पादों का समूह नहीं, बल्कि रक्षा सहयोग, रसद समर्थन, प्रशिक्षण और बिक्री पश्चात सेवाओं के व्यापक ढांचे का प्रतीक है। आयातकों की लगातार बढ़ती सूची भारतीय रक्षा मंचों, प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों में वैश्विक स्तर पर बढ़ते विश्वास को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करती है। भारत के रक्षा निर्यात अब केवल सौदों का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि साझा सुरक्षा और पारस्परिक प्रगति की साझी यात्रा का प्रतीक बन चुके हैं।

सफल स्वदेशी प्लेटफॉर्म और निर्यात बास्केट
भारत का रक्षा निर्यात आज न केवल व्यापक है, बल्कि अत्यंत व्यावहारिक भी है। बुलेटप्रूफ जैकेट, गश्ती नौकाओं और हेलीकॉप्टरों से लेकर रडार प्रणाली तथा हल्के टॉरपीडो तक की यह विविधता भारत के रक्षा विनिर्माण क्षेत्र की गहराई और परिपक्वता को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करती है। जहां ‘तेजस’ जैसे लड़ाकू विमान कार्यक्रम परिचालन परिपक्वता और निर्यात संभावनाओं की दिशा में अग्रसर हैं, वहीं भारत की वास्तविक शक्ति आज सिद्ध एवं परिचालित प्रणालियों व घटकों की विस्तृत श्रृंखला में निहित है।
निष्कर्ष
भारत के रणनीतिक सहयोग और साहसिक नीतिगत पहल मात्र सुधार नहीं हैं; वे रक्षा आत्मनिर्भरता एवं तकनीकी संप्रभुता के एक नए युग की ठोस नींव रख रहे हैं। घरेलू उत्पादन और निर्यात में निरंतर वृद्धि के साथ-साथ अत्याधुनिक तकनीकों का औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र में तीव्र एकीकरण इस दिशा में भारत की प्रगति को रेखांकित करता है। आज एक वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरने का भारत का स्वप्न कोई दूर की आकांक्षा नहीं, बल्कि एक साकार होती वास्तविकता बन चुका है।
भारत ने स्वदेशी रक्षा उत्पादन के मूल्य के संदर्भ में अब तक की सर्वोच्च वृद्धि दर्ज की है, जो आत्मनिर्भर भारत अभियान, सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियां और निजी क्षेत्र के साथ रणनीतिक साझेदारी जैसी सरकारी कार्यक्रमों की उल्लेखनीय सफलता को दर्शाती है। मेक इन इंडिया पर बल देने के साथ-साथ एक सशक्त अनुसंधान एवं विकास ढांचे तथा गतिशील स्टार्ट-अप इकोसिस्टम के निर्माण ने इस रूपांतरण की गति को और भी तीव्र किया है।
रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना से लेकर निर्यात सुविधाओं के विस्तार तक प्रत्येक कदम भारत की इस अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह आयात पर निर्भरता घटाकर स्वदेशी क्षमताओं को सशक्त बनाए। ये सभी कार्यक्रम मिलकर एक सुदृढ़, प्रौद्योगिकी-संचालित रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर रही हैं, जो न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को नई मजबूती प्रदान करता है, बल्कि भारत को रक्षा निर्माण और नवाचार के क्षेत्र में एक विश्वसनीय तथा अग्रणी वैश्विक भागीदार के रूप में स्थापित कर रहा है।
संदर्भ:
पत्र सूचना कार्यालय:
डीडी न्यूज़:
रक्षा मंत्रालय (रक्षा मंत्रालय)
डीआरडीओ
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