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विकास इंजन से वैश्विक बढ़त तक: भारत के लॉजिस्टिक्स का सशक्तिकरण
प्रविष्टि तिथि:
27 NOV 2025 9:54AM by PIB Delhi
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मुख्य बातें
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- भारत की लॉजिस्टिक्स लागत जीडीपी के 7.97 प्रतिशत तक गिर गई है।
- एशियन डेवलपमेंट बैंक की ओर से विकसित आईपीआरएस 3.0 औद्योगिक पार्कों का उनके स्थायित्व, हरित अवसंरचना, संपर्क-सुविधा, डिजिटल तैयारी और कौशल के आधार पर उनका मूल्यांकन करता है।
- एसएमआईएलई कार्यक्रम ने मौजूदा लॉजिस्टिक्स अवसंरचना का आकलन करने और क्षमता में सुधार करने और लागत घटाने के लिए 8 राज्यों के 8 पायलट शहरों में लॉजिस्टिक्स योजनाएं शुरू की हैं।
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भारत की लॉजिस्टिक्स कहानी में एक नया अध्याय
भारत की लॉजिस्टिक्स एक नये चरण में प्रवेश कर रही है और खुद को एक तेज स्मार्ट और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी क्षेत्र में परिवर्तित कर रही है। एकीकृत डिजिटल प्लेटफार्मों से जो माल परिवहन को नियंत्रित करते हैं से लेकर आधुनिक अवसंरचना तक देश के हर भाग को जोड़नेवाला अगली पीढ़ी का लॉजिस्टिक इकोसिस्टम धीरे-धीरे आकार ले रहा है। लक्षित नीति सुधारों, सांस्थानिक पुनर्व्यवस्था और तकनीक आधारित समाधानों की सहायता से सरकार लॉजिस्टिक्स को भारत के आर्थिक विकास और वैश्विक व्यापार व्यवस्था के मुख्य कारक में परिवर्तित कर रही है।
ढांचागत बदलावों की लहर देश भर में लॉजिस्टिक्स के नियोजन, कार्यान्वयन और परिमापन के तरीके को बदल रही है। यूएलआईपी (यूनीफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफार्म) जैसे प्लेटफार्म विभिन्न विभागों के आंकड़ों का एकीकरण कर रहे हैं, जबकि एलडीबी (लॉजिस्टिक्स डाटा बैंक) 2.0 वास्तविक समय में लाखों कंटेनरों की दृश्यता को सुगम बना रहा है। प्रत्येक एचएसएन (हार्मोनाइज्ड सिस्टम ऑफ नॉमिनक्लेचर) कोड को उसके मंत्रालय से जोड़ा जाता है जिससे जवाबदेही और नीति निर्धारण में सुधार होता है। एसएमआईएलई (स्ट्रेंथनिंग मल्टीमॉडल एंड इंटीग्रेटेड लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम) प्रोग्राम के तहत शहर और राज्य स्तर की लॉजिस्टिक्स योजना को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ जोड़ा जा रहा है। अंतर्देशीय जलमार्ग ने पिछले साल 145.84 मीलियन टन का कार्गो का परिवहन करके रिकॉर्ड बनाया है जबकि रेल में भीड़ कम करने के लिए समर्पित माल गलियारों का उपयोग किया जा रहा है। औद्योगिक जोन में एनआईसीडीसी (नेशनल इंडस्ट्रियल कॉरिडोर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) के तहत प्लग-एंड-प्ले पार्क निवेशकों के लिए तैयार अवसंरचना पेश करते हैं। जमीनी स्तर पर जीएसटी जैसे सुधारों और ई-वे बिल ने अंतर्राज्यीय परिवहन में लंबे समय से चली आ रही दिक्कतों को दूर किया है। इन हस्तक्षेपों का स्पष्ट उद्देश्य है: लॉजिस्टिक्स लागत घटाना, क्षमता में सुधार करना और वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की स्थिति को मजबूत करना।
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गंगा के मैदान में मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स
भारत गंगा के मैदान में लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को एक एकीकृत मल्टीमॉडल तरीके के जरिये बदल रहा है जिसमें रोड, रेल और अंतर्देशीय जलमार्ग शामिल हैं और जिसकी वजह से परिवहन तेज, सस्ता और ज्यादा हरित हो रहा है। पूर्वी समर्पित माल गलियारा (ईडीएफसी) एक तीव्र गति वाला मालवाहन सेवा है जिसने वैगन टर्नअराउंड समय को 15-16 दिन से घटाकर 2-3 दिन कर दिया है और ट्रांजिट समय को 60 घंटे से घटाकर 35-38 घंटे कर दिया है। मालवाहन परिचालन का प्रबंधन अब प्रयागराज में मध्य नियंत्रण केन्द्र के जरिये होता है जिसकी वजह से मौजूदा रेल नेटवर्क पर भीड़ कम होती है। गंगा जलमार्ग का पुनर्जीवन वाराणसी में ईडीएफसी से जुड़ा है जो विनिर्माताओं को कार्गो को हल्दिया जैसे पूर्वी बंदरगाहों तक ले जाने की अनुमति देता है। कॉरिडोर के नजदीक भंडारण और लॉजिस्टिक्स सुविधाओं के तीव्र विकास ने रोजगार बढ़ाया है, भंडारण प्रबंधन में सुधार किया है और समय पर उत्पादन और निर्यात सुनिश्चित किया है। इन परियोजनाओं को विश्व बैंक से अच्छा निवेश मिला है जिसमें 1.96 अरब डॉलर ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और रेल लॉजिस्टिक्स पहलकदमियों के लिए और 375 मिलियन डॉलर गंगा जलमार्ग विकास के लिए है। कुल मिलाकर ये प्रयास एक कुशल, एकीकृत लॉजिस्टिक्स तंत्र बना रहे हैं जो लागत घटाता है, कार्बन उत्सर्जन कम करता है और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत के संपर्क को मजबूत करता है।
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लॉजिस्टिक्स पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी क्यों हैं
भारत के आर्थिक विकास का रास्ता कुशल लॉजिस्टिक्स पर निर्भर करता है, जो प्रतिस्पर्धा और वैश्विक संपर्क को बढ़ाने के लिए जरूरी हैं।
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति और पीएम गतिशक्ति ने इस बदलाव में नई रफ़्तार डाली है जिसने एक ज्यादा एकीकृत और आंकड़ा-संचालित लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम की नींव रखी है। लेकिन रणनीति में सटीकता की जरूरत होती है और यह लॉजिस्टिक्स की सही लागत की जानकारी से शुरू होती है।
कुछ समय पहले तक, भारत की लॉजिस्टिक्स लागत को अकसर ज़्यादा आंका जाता था। जीडीपी के 13 से 14 परसेंट के आम तौर पर बताए जाने वाले आंकड़े कुछ खास या बाहरी आंकड़ों पर आधारित थे। इससे नीति बनाने में भ्रम पैदा हुआ और दुनिया भर में गलत धारणा फैलीं।
अब यह बदल गया है।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद (एनसीएईआर) के साथ मिलकर अपनी तरह की पहला अध्ययन किया है। ‘भारत में लॉजिस्टिक्स लागत का आकलन’ नामक इस अध्ययन में वैज्ञानिक आधार पर आकलन किया गया है। इसमें हाइब्रिड मेथड का इस्तेमाल करते हुए 3,500 से ज़्यादा उद्योगों के हितधारकों के प्राथमिक आंकड़ों को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीएल), भारतीय रिजर्व बैंक और वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) के द्वितीयक आंकड़ों से मिलान किया गया है। इसकी रिपोर्ट में 2023 और 2024 के लिए भारत की लॉजिस्टिक्स लागत को जीडीपी का 7.97 प्रतिशत और गैर-सेवा आउटपुट का 0.09 प्रतिशत बताया गया है। कुल मिलाकर कुल लागत 24.01 लाख करोड़ रुपये आंकी गयी है।
यह सिर्फ़ एक हेडलाइन नंबर नहीं है। यह रिपोर्ट लागत घटकों, फर्म के आकार और उत्पादन के आधार पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करती है। ये एक महत्वपूर्ण बात पर रोशनी डालती है: अपेक्षाकृत छोटे फर्म को ज्यादा लॉजिस्टिक लागत झेलनी पड़ती है जो उनकी क्षमता को प्रभावित करता है। इस अध्ययन में अलग-अलग परिवहन के माध्यमों और दूरियों के आधार पर न्यूनतम मालवाहन लागत भी बताई गयी है। यह आंकड़ा सप्लाई चेन की योजना बनाने और उसका मूल्य तय करने के लिए जरूरी है।
मल्टीमॉडल परिवहन क्षमता बढ़ाने के मुख्य उपाय के रूप में उभर रहा है। उदाहरण के लिए, रिपोर्ट ये दिखाती है कि लगभग 600 किलोमीटर की यात्रा के लिए पहले और आखिरी 50 किलोमीटर को बेहतर बनाने से कुल लॉजिस्टिक लागत काफी कम हो सकती है। यह अंतिम-मील अवसंरचना और मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक एकीकरण की महत्ता को दिखाता है।
सभी नतीजे एक नये संवादात्मक डैशबोर्ड के जरिये उपलब्ध है जिसे वास्तविक-समय विश्लेषण और सोच समझकर फैसला लेने के लिए तैयार किया गया है। इस आंकड़ा-आधारित स्पष्टता से सरकार और उद्योग दोनो बेहतर निवेश कर सकते हैं, ज्यादा अनुकूल नीतियां बना सकते हैं और अवसंरचना का तेजी से उन्नयन कर सकते हैं। यह भारत को वैश्विक लॉजिस्टिक केन्द्र बनने के लक्ष्य के और करीब लाता है।
कम शब्दों में कहें तो, लॉजिस्टिक्स अब कोई ब्लैक बॉक्स नहीं रहा। सटीक लागत आकलन, व्यवहार-योग्य अंतर्दृष्टि और लक्षित हस्तक्षेपों के जरिये भारत अपनी सप्लाई चेन को एक छुपे हुए बोझ से शक्ति के स्रोत में बदल रहा है।
2025: भारत की सप्लाई चेन का सशक्तिकरण
2025 में शुरू की गयी कई पहलें दिखाती हैं कि सरकार मापन, स्थानीय नियोजन, अवसंरचना और आंकड़ा एकीकरण में लॉजिस्टिक्स को अद्यतन बनाने की कोशिश कर रही है। नई पीढ़ी के लॉजिस्टिक्स कार्यक्रम रूकावटों को खत्म करने, गति को बढ़ाने और सप्लाई चेन के सशक्तिकरण के लिए शुरू किये गये थे।
- पीएम गतिशक्ति: एकीकृत नियोजन को आगे बढ़ाना
पीएम गतिशक्ति के राष्ट्रीय मास्टर प्लान के चार साल पूरे होने के मौके पर इस अग्रणी पहल के परिवर्तनकारी प्रभाव को प्रमुखता से दिखाया गया और कई खास पहलें शुरू की गयीं। जो इस प्रकार हैं
- पीएम गति शक्ति जिला मास्टर प्लान सभी 112 आकांक्षी जिलों में ताकि सामाजिक और आर्थिक अवसंरचना परियोजनाओं को दिशा दी जा सके।
- पीएम गतिशक्ति – अपतटीय कई मंत्रालयों से भू-स्थानिक आंकड़ों को जुटा रहा है ताकि अपतटीय परियोजनाओं जैसे पवन फार्म, समुद्री संसाधन अन्वेषण और समुद्रतटीय अवसंरचना को दिशा दी जा सके और इसमें न्यूनतम नियामक और पर्यावरण संबंधी खतरे हों।
- PM गतिशक्ति पब्लिक, एक वेब-आधारित प्लेटफॉर्म है जो निजी इकाइयों, अनुसंधानकर्ताओं और नागरिकों को 230 गैर-संवेदनशील आंकड़ासमूहों तक पहुंच देता है जिससे पारदर्शिता, आंकड़ा-चालित निर्णय प्रक्रिया और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा मिले।
- ज्ञान प्रबंधन प्रणाली, एनएमपी (राष्ट्रीय मास्टर प्लान) डैशबोर्ड और विकेन्द्रिकृत आंकड़ा अपलोडिंग सिस्टम से समन्वय, पारदर्शिता और सरकारी विभागों के बीच आपसी समझ बेहतर हो रही है।
- कम्पेन्डियम खंड-3 सामाजिक, आर्थिक और अवसंरचना क्षेत्रों की सर्वश्रेष्ठ कार्यपद्धतियों और सफल जमीनी उपयोग के मामलों दिखाता है।
- एलईएपीएस 2025 डीपीआईआईटी की एक पहल है जो लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन के न्यूनतम मानदंड को जाहिर करता है और इस क्षेत्र में नवाचार और स्थायित्व को बढ़ावा देता है।
- एसएमआईएलई: शहर-स्तरीय लॉजिस्टिक्स प्लानिंग
डीपीआईआईटी ने एशियन डेवलपमेंट बैंक के साथ मिलकर जो स्ट्रेंथनिंग मल्टीमॉडल एंड इंटीग्रेटेड लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम (एसएमआईएलई) कार्यक्रम तैयार किया है वह राज्य और शहर दोनों स्तर पर लॉजिस्टिक्स को दुरूस्त करने पर ध्यान दे रहा है। इस पहल के तहत आठ राज्यों के आठ पायलट शहरों में योजनाएं शुरू की गयी हैं। इनमें से हर को दिखाने के लिए चुना गया है कि स्थानीय लॉजिस्टिक्स प्रणाली राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ मिल कर कैसे काम कर सकती है।

एसएमआईएलई दो मोर्चों पर एक साथ काम करता है:
- राज्य स्तर: यह विकास केन्द्र को ट्रंक रूट, आर्थिक गलियारे और लॉजिस्टिक्स प्रवेश द्वार से जोड़ता है।
- शहर स्तर: यह शहर में माल वहन को शहर की परिवहन व्यवस्था, मास्टर प्लान और भूमि उपयोग की नीतियों के साथ जोड़ता है। यह द्विस्तरीय व्यवस्था लॉजिस्टिक्स को बाद में सोचने वाली बात नहीं बल्कि तैयार आर्थिक और स्थानिक योजना बनाती है।

एसएमआईएलई के तहत आठ पायलट शहरों में से हर एक एकीकृत लॉजिस्टिक्स योजना तैयार करेगा जिसमें शहरी और परिनगरीय क्षेत्र शामिल होंगे। ये योजनाएं मालवाहन गतिविधियों का खाका तैयार करते हैं और उनका सर्वोत्तम इस्तेमाल करते हैं जैसे स्थानीय दुकानदारों, ई-कॉमर्श डिलीवरि रूट, भंडारण केन्द्र, ट्रक टर्मिनलों और अंतिम मील के गलियारों को जोड़ना। इसका उद्देश्य आंकड़ा-आधारित फैसलों को स्पष्ट शहरी नीतियों और सांस्थानिक समन्वय के साथ जोड़ना है। इन योजनाओं में शोर कम करने, शहर में भीड़ घटाने, कम और शून्य-उत्सर्जन वाली गाड़ियों के इस्तेमाल, प्रोसेस ऑटोमेशन और मालवाहन और यात्रियों की संख्या के बीच बेहतर तालमेल पर ध्यान दिया गया है।
इसका निष्कर्ष एक राष्ट्रीय मॉडल है जहां केन्द्र, राज्य, शहरों की एजेंसियां निजी क्षेत्र के प्रतिभागी और स्टार्ट-अप्स आपस में समन्वय के साथ काम करते हैं। यह स्थायी शहरी मालवाहन, सामान की तेज़ और ज़्यादा सस्ती आवाजाही, साफ़ और कम भीड़ वाले शहरों और लॉजिस्टिक्स वैल्यू चेन को बढ़ावा देता है और इससे लाखों नयी नौकरियां पैदा होती हैं।
- एलईएडीएस 2025: लॉजिस्टिक्स पर राज्यों का वरीयता क्रम
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लॉजिस्टिक्स ईज़ अक्रॉस डिफरेंट स्टेट्स (एलईएडीएस) 2025 पहल राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के लॉजिस्टिक्स संबंधी प्रदर्शन को मापने का नया मानदंड पेश करता है। समग्र ढांचे के रूप में विकसित एलईएडीएस में अब प्रदर्शन आधारित जानकारी और वस्तुनिष्ठ आंकड़े दोनों शामिल होते हैं। इस ढांचे में वस्तुनिष्ठ आंकड़ों का प्रतिशत 32.5 है जिसमें और वृद्धि होने की संभावना है। इस आकलन में नियामक संबंधी और सांस्थानिक समर्थन, लॉजिस्टिक्स को बेहतर बनाने वाले, अवसंरचना, सेवाएं, संचालन वातावरण और स्थायित्व शामिल होते हैं।
यह पहल पांच से सात मुख्य परिवहन गलियारे की भी निगरानी करती है, जिसमें यात्रा के समय, ट्रक की औसत स्पीड और वेटिंग पीरियड का वास्तविक-समय का आंकड़ा जुटाया जाता है। एपीआई लगे उपकरण सड़क के खास हिस्से में गति की निगरानी की सुविधा देते हैं जिससे विलंब वाले बिंदुओं और प्रदर्शन में अंतर की पहचान हो पाती है। लॉजिस्टिक्स सिस्टम में विस्तृत जानकारी और सुधार के विंदुओं की पहचान करके एलईएडीएस राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लॉजिस्टिक्स क्षमता और सप्लाई चेन की मजबूती को बढ़ाने के लिए एक मुख्य तंत्र के तौर पर काम करता है, जो भारत के दीर्घकालिक लक्ष्यों की ओर बढ़ने में मदद करता है।
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- एलडीबी 2.0: विज़िबिलिटी जो बाजार को आगे बढ़ाती है
उन्नयित लॉजिस्टिक्स आंकड़ा बैंक 2.0 अब यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफार्म (यूएलआईपी) एपीआई के साथ मेल करता है जो निर्यातकों और एमएसएमई को सड़क, रेल, समुद्र और यहां तक कि उंचे समुद्रों में भी वास्तविक-समय में दृश्यता की सुविधा देता है। एक लाइव कंटेनर हीटमैप दिखाता है कि कंटेनर को कहां देर हो रही है जिससे कि छोटी-मोटी दिक्कतें बढ़ने से पहले तुरंत सुधार किया जा सके। अब उपयोगकर्ता कंटेनर नंबर, गाड़ी नंबर और रेलवे एफएनआर (फ्रेट नेम रिकॉर्ड) नंबर का इस्तेमाल करके शिपमेंट को ट्रैक कर पाएँगे।
जिसके लिए पहले कई दिनों तक समन्वय करना और अंदाज़ा लगाना पड़ता था वे सारी चीजें अब एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर तुरंत दिखाई देती हैं। जिससे भारत को अपने लंबे समय के डेवलपमेंट लक्ष्यों की ओर बढ़ने में मदद मिलती है।
- आईपीआरएस3.0: औद्योगिक पार्कों का वरीयता क्रम
डीपीआईआईटी और एशियन डेवलपमेंट बैंक ने मिलकर इंडस्ट्रियल पार्क रेटिंग सिस्टम (आईपीआरएस) 3.0 बनाया है जो भारत की औद्योगिक अवसंरचना में पारदर्शिता और जवाबदेही लाता है। यह कई तरह के प्रदर्शन संकेतकों के आधार पर औद्योगिक पार्कों का मूल्यांकन करता है, जिससे यह पता लगाने में मदद मिलती है कि कहां बेहतरी की गुंजाइश है और कहां सुधार की ज़रूरत है।
हर पार्क का मूल्यांकन किया जाता है और उसे नेतृत्वकर्ता, चुनौती देने वाला या आकांक्षी की श्रेणी में अवसंरचना की गुणवत्ता, लॉजिस्टिक्स संपर्क, डिजिटल तैयारी, स्थायित्व कारकों और उपयोगकर्ताओं संतुष्टि के आधार पर बांटा जाता है। यह स्पष्ट और लगातार वर्गीकरण निवेशकों को फैसले लेने में मदद करने के लिए भरोसेमंद जानकारी देता है, साथ ही राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी सुविधाओं को बेहतर बनाने और ज़्यादा निवेश के लिए प्रोत्साहित करती है।
एनआईसीडीसी के तहत 20 प्लग-एंड-प्ले औद्योगिक पार्क बन रहे हैं। इनमें से 4 पूरे हो चुके हैं, बाकी 4 बन रहे हैं, और कई का खाका तैयार हो रहा है। ये इस्तेमाल के लिए तैयार पार्क उद्योगों के लिए प्रवेश की रुकावटों को कम करते हैं और वैश्विक और घरेलू निवेशकों को एक मज़बूत संकेत देते हैं कि भारत व्यवसाय करने में आसानी और औद्योगिक विकास को लेकर गंभीर है। आईपीआरएस 3.0 के साथ, भारत सिर्फ़ ज़्यादा पार्क ही नहीं बना रहा है बल्कि बेहतर पार्क भी बना रहा है जो ज़्यादा प्रतिस्पर्धी ज़्यादा समावेशी और राष्ट्रीय विकास के लक्ष्यों की ओर ज़्यादा ध्यान देने वाले हैं।

- एचएसएन कोड पर मार्गदर्शक पुस्तिका : स्पष्टता जो मायने रखती है
एक पूरी मार्गदर्शक पुस्तिका में 31 मंत्रालयों के 12,167 एचएसएन कोड पेश किए गए हैं। हर एचएसएन कोड को संबंधित मंत्रालय के साथ पेश करने से उद्योग को अपने क्षेत्र से जुड़ी प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलेगी। व्यवसाय के लिए, यह समन्वय को आसान बनाता है। नीति निर्धारकों के लिए, यह जवाबदेही को बेहतर बनाता है, और व्यवसाय करने वालों के लिए यह वैश्विक मंच पर भारत की पकड़ को मज़बूत करता है।
निष्कर्ष
लॉजिस्टिक्स लंबे समय से पर्दे के पीछे काम कर रहा है और धीरे-धीरे इस पर ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है। पिछले दशकों में ट्रैक बिछाए गए और सिस्टम बनाए गए, और विकास की मौजूदा कोशिशें इसे शीर्ष पर पहुंचा रही हैं जो ज्यादा तेज, ज्यादा हरित और पूरी तरह से संपर्क सुविधा से युक्त है।
अगर मेक इन इंडिया कारखाने बनाता है, तो लॉजिस्टिक्स राजमार्ग, जलमार्ग और आंकड़ों का प्रवाह तैयार करता है जो उनके उत्पादों को दुनिया तक पहुंचाते हैं। पीएम गतिशक्ति पब्लिक/ऑफशोर, एसएमआईएलई, एलईएपीएस 2025, एलईएडीएस 2025, आईपीआरएस 3.0, एलडीबी 2.0 जैसे पहलों के जरिये भारत अपने लॉजिस्टिक्स को एक ज्यादा लागत वाले केन्द्र की बजाय एक सशक्त प्रतिस्पर्धी अग्रणी तंत्र में बदल रहा है। विकास इंजन से वैश्विक बढ़त तक का सफर शुरू हो गया है।
संदर्भ
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय
पत्र सूचना कार्यालय
अन्य
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पीके/केसी/एमएस
(रिलीज़ आईडी: 2195126)
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