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आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर: भारतीय नौसेना की आत्मनिर्भर भारत यात्रा

प्रविष्टि तिथि: 03 DEC 2025 5:59PM by PIB Delhi

मुख्य बिंदु

सरकार ने भारतीय नौसेना स्वदेशीकरण योजना (आईएनआईपी) 2015-2030 को लागू करने के प्रयास तेज कर दिए हैं।

जहाज निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण; देश में 51 बड़े जहाज निर्माणाधीन हैं, जिनकी कीमत लगभग 90,000 करोड़ रुपये है।

अगस्त में 100वें और 101वें स्वदेशी युद्धपोत, आईएनएस उदयगिरि तथा आईएनएस हिमगिरि नौसेना में शामिल किए गए, जिससे नौसेना के आत्मनिर्भर दृष्टिकोण 2047 को बल मिला।

वर्ष 2014 से, भारतीय शिपयार्ड ने नौसेना को 40 से अधिक स्वदेशी युद्धपोत और पनडुब्बियां प्रदान की हैं और पिछले एक साल में औसतन हर 40 दिनों में एक नया जहाज शामिल किया गया है।

पिछले 10 वर्षों में नौसेना के लगभग 67% पूंजीगत अधिग्रहण भारतीय उद्योगों के पास रहे हैं।

नौसेना का बजट 2020-21 में 49,623 करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 1,03,548 करोड़ रुपये हो गया, जिससे रक्षा खर्च में इसका हिस्सा 15% से बढ़कर 21% हो गया।

परिचय

राष्ट्र 04 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाता है, जो 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान ऑपरेशन ट्राइडेंट में भारतीय नौसेना की निर्णायक भूमिका का स्मरण कराता है। इससे नौसेना का दीर्घकालिक परिवर्तन एजेंडा अब स्पष्ट रूप से सामने उभर रहा है। भारतीय नौसेना का विजन 2047 पूरी तरह से स्वदेशी, तकनीकी रूप से उन्नत और आत्मनिर्भर बल बनने की दिशा में एक संरचित मार्ग की रूपरेखा तैयार करता है। यह विजन तीन मुख्य चालकों निरंतर नवाचार, व्यवस्थित स्वदेशीकरण और उभरती प्रौद्योगिकियों का नौसेना संचालन में एकीकरण पर आधारित है।

हाल के घटनाक्रम इस परिवर्तन के मापन योग्य संकेतक प्रदान करते हैं। 24 नवंबर, 2025 को स्वदेश निर्मित आईएनएस माहे का जलावतरण उन प्लेटफार्मों की श्रृंखला में शामिल हो गया है, जो नौसेना की बढ़ती घरेलू क्षमताओं को प्रदर्शित करते हैं। पिछले एक दशक में, नए स्वदेशी फ्रिगेट तथा उन्नत लड़ाकू जहाजों को शामिल किया गया है और ये उपलब्धियां समुद्री आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की निरंतर प्रगति को उजागर करती हैं।

स्वदेशीकरण अब परिचालन स्वायत्तता, आपूर्ति-श्रृंखला सुरक्षा और दीर्घकालिक रक्षा तैयारियों पर इसके प्रभाव को देखते हुए नौसेना के लिए एक रणनीतिक अनिवार्यता बन गया है। बाहरी विक्रेताओं पर निर्भरता कम करने से युद्ध की तैयारी बढ़ती है और संकट की स्थिति में लचीलापन सुनिश्चित होता है। साथ ही, घरेलू उत्पादन राष्ट्रीय उद्योग को प्रोत्साहित करता है और रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करता है। यह भारत सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल के व्यापक उद्देश्यों के अनुरूप है। वर्तमान में भारत के पास विमानवाहक पोतों और अग्रिम पंक्ति के युद्धपोतों से लेकर विशिष्ट अनुसंधान जहाजों और ऊर्जा-कुशल वाणिज्यिक जहाजों तक, नौसैनिक प्लेटफार्मों की एक पूरी श्रृंखला को डिजाइन और निर्माण करने की क्षमता है। यह उपलब्धि देश के जहाज निर्माण बुनियादी ढांचे की गहराई, विविधता और परिपक्वता को दर्शाती है।

स्वदेशीकरण और समुद्री क्षमता: भारतीय नौसेना के लिए रणनीतिक अनिवार्यताएं

स्वदेशी नौसैनिक क्षमता का विकास भारत सरकार के आत्मनिर्भर भारत दृष्टिकोण का एक प्रमुख स्तंभ है, जिसकी मूल भावना बाहरी आपूर्ति श्रृंखलाओं पर न्यूनतम निर्भरता सुनिश्चित करना है। यह परिवर्तन और भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि भारत हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में स्वयं को एक विश्वसनीय और त्वरित “प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता” के रूप में स्थापित कर रहा है। पिछले कुछ महीनों में भारतीय नौसेना ने मानवीय सहायता, आपदा राहत और समुद्री सुरक्षा से जुड़े कई संवेदनशील अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। इन अभियानों में न केवल जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित की गई, बल्कि महत्वपूर्ण वाणिज्यिक मार्गों और उच्च-मूल्य वाले समुद्री संसाधनों की रक्षा भी की गई। इन सक्रिय और समयबद्ध हस्तक्षेपों ने भारत की समुद्री क्षमताओं में अंतरराष्ट्रीय भरोसा और अधिक गहरा किया है। साथ ही, क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे में भारत की एक स्थिरकारी शक्ति के रूप में भूमिका को उल्लेखनीय रूप से मजबूत किया है।

भारत का समुद्री भूगोल उसकी समुद्री क्षमता विस्तार की रणनीतिक आवश्यकता को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है। देश की लगभग 11,098 किलोमीटर लंबी तटरेखा और 24 लाख वर्ग किलोमीटर का अनन्य आर्थिक क्षेत्र न केवल महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों से समृद्ध है, बल्कि राष्ट्रीय अवसंरचना एवं ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र से होकर वैश्विक व्यापार का लगभग 50% और तेल का 40% गुजरता है। इसके साथ ही, भारत का लगभग 90% विदेशी व्यापार और 80% महत्वपूर्ण वस्तुएं—जैसे कोयला, पेट्रोलियम, लौह अयस्क और उर्वरक—समुद्री मार्गों पर निर्भर हैं। ऐसे में समुद्री संचार लाइनों की सुरक्षा राष्ट्रीय आर्थिक विकास और रणनीतिक लचीलेपन के लिए अनिवार्य हो जाती है। भारत की बढ़ती समुद्री सक्रियता इस आवश्यकता को और बल देती है। भारतीय नौसेना की सतत उपस्थिति ने आसियान, ऑस्ट्रेलिया, फारस की खाड़ी और अफ्रीकी देशों के साथ भारत के आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को उल्लेखनीय रूप से मजबूत किया है। वर्ष 2008 से अदन की खाड़ी और अफ्रीका के पूर्वी तट पर नियमित समुद्री डकैती-रोधी तैनाती के परिणामस्वरूप अब तक 3,765 व्यापारिक जहाजों का सुरक्षित आवागमन सुनिश्चित हुआ है और 27,260 से अधिक नाविकों की सुरक्षा की गई है। यह सफलता न केवल भारत की दीर्घकालिक परिचालन क्षमता को दर्शाती है, बल्कि वैश्विक समुद्री नेतृत्व में उसकी भूमिका को भी सुदृढ़ करती है।

परिणामस्वरूप, भारतीय नौसेना का कार्यात्मक क्षेत्र अब पारंपरिक नौसैनिक युद्ध से कहीं आगे तक विस्तृत हो गया है। इसकी जिम्मेदारियों में ईईजी निगरानी, ​​समुद्री डकैती-रोधी मिशन, व्यापारिक जहाजों की सुरक्षा, समुद्री क्षेत्र जागरूकता और हिंद महासागर क्षेत्र की स्थिरता बनाए रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ समन्वित संचालन शामिल हैं।

इस उभरते रणनीतिक परिवेश में, स्वदेशीकरण समुद्री क्षमता के एक आधारभूत घटक के रूप में उभरा है। भारतीय नौसेना जहाज निर्माण, हथियार प्रणालियों, सेंसरों एवं लॉजिस्टिक्स अवसंरचना में घरेलू क्षमताओं को मजबूत करके परिचालन स्वायत्तता बढ़ाती है, अग्रिम तैनाती को बनाए रखती है और बाहरी आपूर्ति व्यवधानों से जुड़ी कमज़ोरियों को कम करती है।

भारतीय नौसेना स्वदेशीकरण योजना (आईएनआईपी) द्वारा निर्देशित, नौसैनिक आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत के प्रयासों ने नए सिरे से तेजी को पकड़ा है। आपूर्ति श्रृंखलाओं में वैश्विक व्यवधान, उभरते तकनीकी प्रतिमान और बढ़ते समुद्री खतरे आधुनिक नौसैनिक युद्ध की रूपरेखा को तीव्रता से परिभाषित कर रहे हैं। इसलिए स्वदेशीकरण न केवल एक औद्योगिक या तकनीकी लक्ष्य के रूप में कार्य करता है, बल्कि आने वाले दशकों में सुरक्षित, विश्वसनीय और लचीली समुद्री स्थिति बनाए रखने की भारत की क्षमता के एक महत्वपूर्ण रणनीतिक निर्धारक के रूप में भी कार्य करता है।

आईएनआईपी 2015–2030: उद्देश्य, सिफारिशें, अनुसरण और परिणाम

भारतीय नौसेना स्वदेशीकरण योजना (आईएनआईपी) 2015–2030 को इस उद्देश्य के साथ विकसित किया गया कि फ्लोट, मूव और फाइट श्रेणियों में प्रमुख नौसैनिक प्रणालियों का व्यवस्थित स्वदेशीकरण तेज गति से आगे बढ़ सके। इसका लक्ष्य आंशिक आयात-निर्भर ढांचे से हटकर एक संरचित, दीर्घकालिक 15-वर्षीय रोडमैप स्थापित करना था, जो मेक इन इंडिया दृष्टिकोण के अनुरूप उन्नत जहाज-आधारित तकनीकों के घरेलू अनुसंधान, विकास तथा उत्पादन को बढ़ावा दे। इस योजना का एक प्रमुख उद्देश्य विशेष रूप से उच्च-स्तरीय हथियार प्रणालियों, उन्नत सेंसरों, प्रणोदन तकनीकों, गियरबॉक्स और पनडुब्बी संबंधी उपकरणों में महत्वपूर्ण क्षमता अंतरालों पहचान करना था। इसके साथ ही, उद्योग जगत को भविष्य की आवश्यकताओं का स्पष्ट पूर्वानुमान उपलब्ध कराकर स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास और विनिर्माण को प्रोत्साहन देना भी इसका अहम हिस्सा था।

योजना की प्रमुख सिफारिशों में डीआरडीओ, डीपीएसयू और निजी उद्योग के साथ रणनीतिक साझेदारी को सुदृढ़ करना, भारतीय खरीद तथा भारतीय खरीद एवं निर्माण जैसी नीतिगत श्रेणियों को व्यापक रूप से अपनाना, और एमएसएमई के साथ सहयोग को और बढ़ावा देना शामिल था। इसके अतिरिक्त, प्रणोदन प्रणालियों, उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स, पनडुब्बी प्रौद्योगिकियों, विमानन प्रणालियों और अन्य महत्वपूर्ण घटकों में मजबूत घरेलू क्षमता निर्माण पर विशेष जोर दिया गया। योजना ने मानकीकरण को बढ़ावा देने, ओपन-आर्किटेक्चर आधारित नियंत्रण प्रणालियों के विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के प्रभावी अवशोषण, और संयुक्त विकास मॉडल पर आधारित एक व्यापक औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने की भी सिफारिश की थी।

इस प्रयास में रक्षा उद्योग के साथ संरचित जुड़ाव, आयातित प्रणालियों का क्रमिक प्रतिस्थापन और डीआरडीओ तथा मेक श्रेणी के अंतर्गत लक्षित विकास परियोजनाएं शामिल थीं। परिणामस्वरूप, जहाज के ढांचे की शुरुआत, सहायक प्रणालियां, युद्ध प्रबंधन, ईडब्ल्यू सूट, सोनार, यूएवी, विमानन पुर्जे और पनडुब्बी उप-प्रणालियों में महत्वपूर्ण स्वदेशीकरण हासिल किया गया। इसके अलावा प्रमुख तथा एमएसएमई क्षेत्रों में उद्योग की भागीदारी का विस्तार हुआ है।

इस प्रयास को दर्शाते हुए, नौसेना सहित सशस्त्र बलों ने 5,000 से अधिक उपकरणों की पहचान की है, जिन्हें घरेलू स्तर पर प्राप्त किया जाएगा। फ्रिगेट, युद्धपोतों एवं पनडुब्बियों का स्वदेशी निर्माण आत्मनिर्भर भारत के तहत रक्षा उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है और नौसेना को एक निर्माणकर्ता नौसेना में बदलने में मदद कर रहा है, जिसके युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो ने स्थापना के बाद से कई जहाजों का डिजाइन तैयार किया है।

स्वदेशीकरण क्रेता की नौसेना से निर्माता की नौसेना में बदलाव के केंद्र में है

पिछले दो दशकों में, भारतीय नौसेना ने आयात पर निर्भर “खरीदार की नौसेना” से मुख्यतः स्वदेशी “निर्माता की नौसेना” में एक उल्लेखनीय परिवर्तन देखा है। यह बदलाव युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो द्वारा सहायता प्राप्त प्रमुख शिपयार्डों में सौ से अधिक युद्धपोतों के घरेलू डिजाइन और निर्माण में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।

भारतीय नौसेना ने स्वदेशी नौसेना प्रौद्योगिकी और डिजाइन को बढ़ावा देने के लिए अग्रणी आईआईटी संस्थानों के साथ सहयोग बढ़ाया है। आईआईटी दिल्ली के साथ इसकी साझेदारी चालक दल-केंद्रित युद्धपोत डिज़ाइन, एर्गोनॉमिक्स और मानव-प्रणाली एकीकरण पर केंद्रित है। आईआईटी कानपुर के साथ समझौता ज्ञापन आईएनएस शिवाजी स्थित नौसेना के उत्कृष्टता केंद्र के माध्यम से संयुक्त अनुसंधान एवं विकास, इंजीनियरिंग समाधान और प्रशिक्षण को सक्षम बनाता है। आईआईटी मद्रास के साथ सहयोग से नौसैन्य निर्माण कार्य, हाइड्रोडायनामिक्स और महासागर इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता बढ़ेगी।

हाल के स्वदेशीकरण प्लेटफार्म ने अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास में तेजी लाने के लिए शिक्षा जगत के साथ साझेदारी को बढ़ाया है और निजी क्षेत्र की भागीदारी को 50 प्रतिशत या उससे अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य स्पष्ट किया है। नौसेना भविष्य के नौसैनिक प्लेटफ़ॉर्मों के लिए अनुसंधान, नवाचार और क्षमता विकास को सुदृढ़ करने हेतु भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के साथ सहयोग कर रही है। स्वावलंबन 3.0 स्वदेशीकरण योजना 2023 में शुरू की गई थी और यह एक उद्योग एवं शिक्षा-उन्मुख रोडमैप प्रदान करती है। यह योजना प्राथमिकता वाले प्लेटफार्म, प्रणालियों और उप-प्रणालियों के स्वदेशी विकास को निर्देशित करती है। योजना के अनुसार, फ्लोट, मूव एवं फाइट श्रेणियों में जहाजों पर लगाई गई मशीनरी का क्रमशः लगभग 90%, 60% तथा 50% तक स्वदेशीकरण हुआ है, जिसमें तीसरी श्रेणी में अपेक्षाकृत कम अनुपात दर्शाता है कि इसमें और विकास की आवश्यकता है।

जहाज के ढांचे की शुरुआत, जहाज निर्माण, प्रणोदन सहायक उपकरण, शक्ति एवं वितरण प्रणाली, युद्ध प्रबंधन प्रणाली, संचार उपकरण, सोनार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरणों में पर्याप्त आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई है। स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किए गए माहे-श्रेणी के एएसडब्ल्यू-शैलो वाटर क्राफ्ट श्रृंखला के पहले पोत, आईएनएस  माहे का जलावतरण, परिपक्व होते सहयोगी पारिस्थितिकी तंत्र का उदाहरण है। इसके विकास ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, एलएंडटी डिफेंस, महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स और बीस से अधिक एमएसएमई को एक साथ लाया, साथ ही नौसेना नवाचार ढांचे के माध्यम से जुड़े अनुसंधान संस्थानों तथा शैक्षणिक भागीदारों से डिजाइन एवं परीक्षण सहायता भी प्राप्त हुई।

प्रमुख शिपयार्डों का आधुनिकीकरण, तकनीकी विश्वविद्यालयों और विशिष्ट अनुसंधान केंद्रों के साथ सुदृढ़ संबंध, उन्नत सक्षम जटिल कार्यक्रम, भारतीय नौसेना के लिए अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों के विकास में परिणत हुए हैं। आईएनएस विक्रांत में भारत में निर्मित उपकरणों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जो बीईएल, बीएचईएल, जीआरएसई, केलट्रॉन, किर्लोस्कर, एलएंडटी तथा वार्टसिला इंडिया जैसी प्रमुख फर्मों द्वारा आपूर्ति की जाती है और 100 से अधिक एमएसएमई द्वारा सहायता प्राप्त है। युद्धपोत-ग्रेड स्टील का विकास नौसेना, डीआरडीओ और सेल द्वारा संयुक्त रूप से किया गया, जिससे भारत नौसैनिक जहाजों के लिए आवश्यक इस्पात के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया। सामूहिक रूप से, ये विकास एक मजबूत नौसेना-औद्योगिक-शैक्षणिक पारिस्थितिकी तंत्र के एकीकरण को प्रदर्शित करते हैं और एक सक्षम निर्माणकर्ता नौसेना के रूप में नौसेना के उभरने की पुष्टि करते हैं।

 

प्रमुख क्षमता क्षेत्र: स्वदेशीकरण की स्थिति

सतही बेड़ा और जहाज निर्माण

भारतीय नौसेना के सतही बेड़े का स्वदेशीकरण तेज़ी से आगे बढ़ा है: देश में 51 बड़े जहाज निर्माणाधीन हैं, जिनकी लागत लगभग 90,000 करोड़ रुपये है और यह  देश की बढ़ती जहाज निर्माण क्षमता को दर्शाता है।

पिछले डेढ़ दशकों में भारत के नौसैनिक आधुनिकीकरण में काफी तेजी आई है, जिसमें विमानवाहक पोतों, विध्वंसक और बहु-मिशन फ्रिगेट में उन्नत स्वदेशी प्लेटफार्मों को शामिल किया गया है, जो समुद्री रक्षा में देश की बढ़ती आत्मनिर्भरता को रेखांकित करता है।

आईएनएस विक्रांत (आईएसी-1)

आईएनएस विक्रांत भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत है, जिसका निर्माण 76% स्वदेशी सामग्री से किया गया है। 2 सितंबर 2022 को कमीशन होने वाला यह पोत सेल द्वारा आपूर्ति किए गए लगभग 30,000 टन स्टील का उपयोग करता है, जो इसे आत्मनिर्भर जहाज निर्माण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बनाता है।

प्रोजेक्ट 15बी - विशाखापत्तनम श्रेणी के विध्वंसक

प्रोजेक्ट 15बी में नौसेना के नवीनतम निर्देशित-मिसाइल विध्वंसक शामिल हैं: आईएनएस विशाखापत्तनम (नवंबर 2021), आईएनएस मोरमुगाओ (दिसंबर 2022), आईएनएस इम्फाल (दिसंबर 2023), और आईएनएस सूरत (जनवरी 2025)। ये जहाज भारत की सतही युद्ध और वायु रक्षा क्षमताओं को बढ़ाते हैं।

प्रोजेक्ट 17 – शिवालिक-श्रेणी के फ्रिगेट

प्रोजेक्ट 17 के अंतर्गत शिवालिक-श्रेणी के फ्रिगेट में आईएनएस शिवालिक (अप्रैल 2010), आईएनएस सतपुड़ा (अगस्त 2011) और आईएनएस सह्याद्री (जुलाई 2012) शामिल हैं। ये बहु-भूमिका वाले स्टील्थ फ्रिगेट नौसेना के समुद्री अभियानों को मज़बूत करते हैं।

प्रोजेक्ट 17ए - नीलगिरि श्रेणी के स्टील्थ फ्रिगेट

प्रोजेक्ट 17ए में उन्नत स्टील्थ फ्रिगेट, आईएनएस नीलगिरि (जनवरी 2025), आईएनएस हिमगिरि (अगस्त 2025), आईएनएस उदयगिरि (अगस्त 2025) और तारागिरि शामिल हैं। एमडीएल द्वारा निर्मित पी17ए का तीसरा जहाज 28 नवंबर, 2025 को भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया है। तीन और जहाज, आईएनएस दुनागिरि, आईएनएस विंध्यगिरि और आईएनएस महेंद्रगिरि, वर्तमान में निर्माणाधीन हैं। इस श्रेणी में आधुनिक सेंसर, हथियार और उच्च स्वदेशी सामग्री शामिल है।

परियोजना 15ए - कोलकाता श्रेणी के विध्वंसक

कोलकाता श्रेणी के विध्वंसक: आईएनएस कोलकाता (अगस्त 2014), आईएनएस कोच्चि (सितंबर 2015), और आईएनएस चेन्नई (नवंबर 2016) उन्नत रडार एवं मिसाइलों के साथ भारत की नौसेना-रक्षा तथा आक्रमण क्षमताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

सर्वेक्षण पोत (बड़े)

नौसेना ने आईएनएस संध्याक (फरवरी 2024), आईएनएस निर्देशक (दिसंबर 2024) और आईएनएस इक्षक (अगस्त 2025) को नौसेना में शामिल कर लिया है, जबकि आईएनएस संशोधक अभी निर्माणाधीन है। आईएनएस इक्षक 80% से अधिक स्वदेशी घटकों के साथ भारत की बढ़ती जहाज निर्माण क्षमता को दर्शाता है, जो आत्मनिर्भर भारत की प्रगति को दर्शाता है।

पनडुब्बी रोधी युद्धक उथले जलयान (एएसडब्ल्यू एसडब्ल्यूसी)

इसमें आईएनएस अर्नाला (जून 2025), आईएनएस एंड्रोथ (अक्टूबर 2025) और आईएनएस माहे (24 नवंबर, 2025) शामिल हैं। 80% से अधिक स्वदेशी सामग्री से निर्मित आईएनएस एंड्रोथ, आत्मनिर्भर भारत के तहत भारत की समुद्री आत्मनिर्भरता का एक सशक्त प्रतीक है।

पनडुब्बी और पानी के नीचे की प्रणालियां

आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अंतर्गत स्वदेशी निर्माण एवं प्रौद्योगिकी विकास पर केंद्रित प्रयासों ने भारत की पनडुब्बी क्षमता में उल्लेखनीय परिवर्तन लाया है। रक्षा मंत्रालय, डीआरडीओ व घरेलू शिपयार्डों की सहभागिता के तहत चल रहे स्वदेशी पनडुब्बी कार्यक्रम और उससे संबंधित अनुवर्ती गतिविधियां जैसे कि डिजाइन, स्थानीयकृत उप-प्रणाली विकास तथा उन्नत तकनीकी उपकरणों का स्वदेशीकरण आदि लगातार प्रगति कर रही हैं।

प्रोजेक्ट-75 (कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां)

प्रोजेक्ट-75 में छह कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां शामिल हैं: आईएनएस कलवरी (दिसंबर 2017), आईएनएस खंडेरी (सितंबर 2019), आईएनएस करंज (मार्च 2021), आईएनएस वेला (नवंबर 2021), आईएनएस वागीर (जनवरी 2023) और आईएनएस वाग्शीर (जनवरी 2025)। ये डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां भारत की पानी के भीतर युद्ध क्षमताओं को सशक्त बनाती हैं।

स्वदेशी वायु स्वतंत्र प्रणोदन (एआईपी) प्रणाली

डीआरडीओ-एनएमआरएल द्वारा परियोजना-75 पनडुब्बियों में एकीकरण के लिए विकसित

उन्नत स्वदेशी सोनार प्रणालियां

यूएसएचयूएस-2 (मार्च 2017), एचयूएमएसए एनजी/यूजी (हल-माउंटेड सोनार ऐरे नेक्स्ट जनरेशन/अपग्रेड) (दिसंबर 2016), अभय (छोटे जहाजों तथा उथले पानी के जहाजों के लिए कॉम्पैक्ट हल-माउंटेड सोनार), एनएसीएस (जहाज सोनार के लिए निकट-क्षेत्र ध्वनिक अभिलक्षणन प्रणाली (एनएसीएस)), एआईडीएसएस (पनडुब्बियों के लिए उन्नत स्वदेशी संकट सोनार प्रणाली (एआईडीएसएस)) और उन्नत लाइट टोड ऐरे सोनार (एएलटीएएस) (विकसित एवं परीक्षणित) हैं।

हथियार, सेंसर और युद्ध प्रणालियां

डीआरडीओ ने नौसेना और रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों/उद्योग के साथ साझेदारी में महत्वपूर्ण सेंसर, रडार, ईडब्ल्यू सूट तथा नौसैनिक हथियारों का स्वदेशीकरण किया है और उपयोगकर्ता परीक्षण एवं उत्पादन हस्तांतरण जारी रखे हुए है। जुलाई 2025 में, डीआरडीओ ने निगरानी प्रणालियों और वाहनों सहित छह रणनीतिक, स्वदेशी रूप से तैयार तथा विकसित उत्पाद भारतीय नौसेना को सौंपे। मंत्रालय की सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों व जनहित याचिका-संचालित कार्यक्रमों ने घरेलू स्रोतों के लिए उच्च-स्तरीय एलआरयू, सेंसर एवं हथियारों को प्राथमिकता दी है और सृजन पोर्टल स्वदेशीकरण के लिए उद्योग को दी जाने वाली वस्तुओं पर नजर रखता है।

मिसाइल प्रणालियां: मार्च 2025 में वर्टिकल लॉन्च शॉर्ट रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (वीएल-एसआरएसएएम) और ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्राप्त कीं।

टॉरपीडो एंड काउंटरमेजर्स: मारीच उन्नत टॉरपीडो रक्षा प्रणाली (झंडी दिखाकर रवाना), वरुणास्त्र (भारी वजन वाला टॉरपीडो), उन्नत हल्के वजन वाला पनडुब्बी रोधी टॉरपीडो (एएलडब्ल्यूटी) (परीक्षण पूरा हो चुका है), मल्टी-इन्फ्लुएंस ग्राउंड माइंस (एमआईजीएम) (विकसित व  शामिल करने के लिए तैयार) है।

इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और युद्ध प्रबंधन: उन्नत इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (ईडब्ल्यू) प्रणाली 'शक्ति', इलेक्ट्रॉनिक सहायता उपाय 'वरुण', इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली 'संग्रह'।

भारतीय नौसेना की जहाज-जनित और रोटरी-विंग विमानन क्षमताओं में स्वदेशी प्लेटफार्मों, प्रणालियों और सहायक बुनियादी ढांचे का तेजी से समावेश हो रहा है, जिससे समुद्री हवाई अभियानों में आत्मनिर्भरता में योगदान मिल रहा है।

एचएएल एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच/ध्रुव): यह बहुउद्देशीय कार्यों जैसे कि उपयोगिता परिवहन, खोज एवं बचाव (एसएआर) में काम आता है। एचएएल द्वारा 340 से अधिक ध्रुव हेलीकॉप्टरों का उत्पादन किया जा चुका है। विदेशी बाजार में, ध्रुव का संचालन मॉरीशस पुलिस और नेपाल सेना द्वारा किया जाता है।

स्वदेशी जहाज-जनित हेलीकॉप्टर और सेंसर: नौसेना उन्नत रडार व हथियार एकीकरण से लैस एएलएच एमके III का उपयोग निगरानी और उपयोगिता मिशनों के लिए करती है।

प्रमुख घरेलू शिपयार्ड

मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड, गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड, अग्रिम पंक्ति के प्लेटफार्मों के निर्माण, उपकरण निर्माण और हमेशा मरम्मत के लिए प्रमुख साझेदार बने हुए हैं। सरकार ने इन कार्यक्रमों, नए युद्धपोतों के अधिग्रहण और स्वदेशीकरण प्रयासों के वित्तपोषण के लिए पिछले पांच वर्षों में नौसेना बजट को ऐतिहासिक उच्च स्तर तक बढ़ा दिया है।

नौसेना का बजट दोगुना होकर 1.03 लाख करोड़ रुपये हुआ, पांच साल में हिस्सेदारी 15% से बढ़कर 21% हुई

रत का रक्षा बजट 2013-14 के 2.53 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 6.81 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 9.53% की वृद्धि है। भारतीय नौसेना का बजट भी 2020-21 से 2025-26 तक लगातार बढ़ा है, खासकर पूंजीगत व्यय में, जो तकनीकी रूप से उन्नत और रणनीतिक रूप से सक्षम समुद्री बल के निर्माण पर भारत के फोकस को दर्शाता है।

यह अलग बात है कि कुल रक्षा सेवा अनुमानों (डीएसई) में नौसेना का हिस्सा अपेक्षाकृत मामूली रहा है, फिर भी राजस्व और पूंजी आवंटन दोनों में निरपेक्ष रूप से लगातार वृद्धि देखी गई है, जो नौसेना की तत्परता में निरंतर निवेश को दर्शाता है।

राजस्व व्यय 2020-21 में 22,934.75 करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 38,194.80 करोड़ रुपये हो गया है, इसमें परिचालन, रखरखाव, ईंधन, प्रशिक्षण और रसद शामिल हैं। हालांकि कुल रक्षा व्यय में इसका प्रतिशत हिस्सा 6.5% और 7.5% के बीच रहा है। इसके विपरीत, जहाजों, पनडुब्बियों, विमानों, हथियारों और बुनियादी ढांचे के लिए उपयोग किए जाने वाले पूंजीगत व्यय में तेजी से वृद्धि हुई है, जो 2020-21 में 26,688.28 करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 62,545.98 करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें पूंजीगत हिस्सेदारी 8.26% से बढ़कर 13.75% हो गई है। इस अवधि में संयुक्त नौसेना बजट (राजस्व + पूंजी) में काफी बढ़ोतरी हुई है, जो 2020-21 में कुल रक्षा बजट के 7-8% से बढ़कर 2025-26 में लगभग 21% हो गया है, जो उच्च मूल्य वाले आधुनिकीकरण कार्यक्रमों जैसे कि पनडुब्बियों, सतह पर लड़ने वाले जहाजों, नौसैनिक विमानन और पानी के नीचे युद्ध प्रौद्योगिकियों की ओर एक बड़े बदलाव का संकेत देता है।

 

नीतिगत ढांचा और पहल

भारतीय नौसेना स्वदेशी उपकरणों के माध्यम से अपनी क्षमताओं को लगातार सशक्त कर रही है और आत्मनिर्भर भारत के एक प्रमुख वाहक के रूप में अपनी स्थिति बना रही है। पिछले एक दशक में, इसके लगभग 67% पूंजी अधिग्रहण अनुबंध भारतीय उद्योगों को मिले हैं, जो आयात पर कम निर्भरता एवं घरेलू प्रतिभाओं, एमएसएमई और स्टार्ट-अप्स में बढ़ते विश्वास को दर्शाता है। नौसेना वर्तमान में विभिन्न कार्यक्रमों के तहत 194 नवाचार एवं स्वदेशीकरण परियोजनाओं पर काम कर रही है, जो तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ाती हैं और निजी उद्योग तथा नवप्रवर्तकों को रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकृत करती हैं।

भारतीय नौसेना का स्वदेशीकरण अभियान रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 और रक्षा खरीद नियमावली (डीपीएम) 2025 सहित प्रमुख सरकारी नीतियों द्वारा निर्देशित है, जो रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए स्वदेशी स्रोतों से खरीद को प्राथमिकता देते हैं। आत्मनिर्भर भारत पहल मुख्य फोकस रही है क्योंकि भारतीय नौसेना 2047 तक पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रतिबद्ध है।

प्रमुख कार्यक्रमों में शामिल हैं:

अगस्त 2020 में स्थापित नौसेना नवाचार और स्वदेशीकरण संगठन (एनआईआईओ), भारत में निर्मित रक्षा तकनीक को बढ़ावा देने के लिए नौसेना के स्वदेशीकरण निदेशालय के साथ मिलकर काम करता है। यह नवाचार को गति देने के लिए नौसेना प्रौद्योगिकी त्वरण परिषद और एक प्रौद्योगिकी विकास त्वरण प्रकोष्ठ को एक साथ लाता है। एनआईआईओ व्यावहारिक, किफायती और स्वदेशी नौसेना समाधान विकसित करने के लिए स्टार्टअप्स, एमएसएमई, उद्योग तथा विश्वविद्यालयों को जोड़ता है, जिससे भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता मजबूत होती है।

स्प्रिंट की चुनौतियां: 2022 में प्रधानमंत्री द्वारा अनावरण किए गए एनआईआईओ के अंतर्गत, स्प्रिंट का लक्ष्य नौसेना में कम से कम 75 स्वदेशी तकनीकों को विकसित और शामिल करना है। इसने नवाचार को बढ़ावा देने के लिए रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (आईडेक्स) योजना के तहत 213 एमएसएमई और स्टार्टअप्स के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया है।

आईडेक्स: आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और नवाचार एवं प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अप्रैल 2018 में "रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार" पहल शुरू की गई थी। आईडेक्स एक व्यापक रक्षा नवाचार ढांचे के रूप में कार्य करता है, जो सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई), स्टार्ट-अप्स, व्यक्तिगत नवप्रवर्तकों, अनुसंधान व विकास संस्थानों और शिक्षा जगत सहित उद्योगों को वित्त पोषण तथा सहायता प्रदान करता है। आईडेक्स के अंतर्गत, रक्षा भारत स्टार्ट-अप चैलेंज (डिस्क) समय-समय पर सशस्त्र बलों और रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों (डीपीएसयू) के समस्या-विवरणों के साथ शुरू किया जाता है, जिनमें अक्सर भारतीय नौसेना भी शामिल होती है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से, आईडेक्स विभिन्न योजनाओं में चयनित नवप्रवर्तकों को 10 करोड़ रुपये तक का वित्त पोषण प्रदान करता है, जिससे उन्नत समाधानों का विकास संभव हो पाता है।

सृजन पोर्टल: 2020 में शुरू किए गए इस पोर्टल का उपयोग भारतीय नौसेना (सेना और वायु सेना के साथ) द्वारा स्वदेशीकरण हेतु निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करने के लिए किया जाता है, जिसके तहत भारत में विकसित या निर्मित की जाने वाली वस्तुओं को प्रदर्शित किया जाता है। पोर्टल के उपयोगकर्ता के रूप में, भारतीय नौसेना अपनी स्वदेशीकरण आवश्यकताओं के लिए भागीदारों की तलाश हेतु इस मंच के माध्यम से उद्योग जगत के साथ बातचीत कर सकती है। आत्मनिर्भर भारत के तहत स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लिए अगस्त 2020 में रक्षा उत्पादन विभाग (डीडीपी) द्वारा शुरू की गई इस पहल में अब 38,000 से अधिक उपकरण शामिल हैं, जिनमें से नौसेना सहित 14,000 से अधिक उपकरणों का फरवरी 2025 तक सफलतापूर्वक स्वदेशीकरण किया जा चुका है।

 

सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियां (पीआईएल) नौसेना उपकरणों के स्वदेशीकरण को बढ़ावा देती हैं: रक्षा मंत्रालय ने लगातार कई जनहित सूचनाएं जारी की हैं जिनमें उन प्रणालियों, उप-प्रणालियों एवं  घटकों की पहचान की गई है, जिन्हें विशेष रूप से भारतीय रक्षा उद्योग से खरीदा जाना है। इनमें शामिल 5,500 से अधिक उपकरणों में से, 3,000 से अधिक का फरवरी 2025 तक स्वदेशीकरण कर दिया गया है। इन प्रमुख सफलताओं में प्रमुख नौसैनिक प्रौद्योगिकियां जैसे कोरवेट और उन्नत सोनार प्रणालियां, तोपें, असॉल्ट राइफलें, परिवहन विमान, एलसीएच, रडार, बख्तरबंद प्लेटफॉर्म, रॉकेट, बम तथा अन्य महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण शामिल हैं।

भारतीय-स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित (आईडीडीएम) श्रेणी के माध्यम से हथियार प्रणाली की खरीद: '(भारतीय-आईडीडीएम) खरीदें' श्रेणी का तात्पर्य किसी भारतीय विक्रेता से उन उत्पादों के अधिग्रहण से है जो स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित एवं निर्मित किए गए हों और जिनमें न्यूनतम 50% स्वदेशी सामग्री (आईसी) हो, जो आधार अनुबंध मूल्य, यानी कुल अनुबंध मूल्य से करों व शुल्कों को घटाकर लागत के आधार पर हो। उदाहरण के तौर पर एलसीए तेजस और मारीच एडवांस्ड टॉरपीडो डिकॉय सिस्टम शामिल हैं, जिसे नौसेना में शामिल किया गया था। इसके अतिरिक्त, नौसेना ने समुद्री उपकरणों के लिए बीईएमएल लिमिटेड और चालक दल-केंद्रित युद्धपोत डिजाइन के लिए आईआईटी दिल्ली जैसी संस्थाओं के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे बाहरी मानकों पर निर्भरता कम हुई है।

निष्कर्ष

वर्ष 2014 से, भारतीय शिपयार्ड नौसेना को 40 से अधिक स्वदेशी युद्धपोत एवं पनडुब्बियां प्रदान कर चुके हैं और औसतन हर 40 दिनों में एक नया प्लेटफार्म शामिल किया जाता है। इस नौसेना दिवस पर, भारतीय नौसेना की स्वदेशीकरण यात्रा, एक निर्माता की नौसेना के रूप में इसके परिवर्तन को उजागर करती है, जो रोजगार सृजन और एमएसएमई सशक्तिकरण के माध्यम से भारत की रणनीतिक स्वायत्तता एवं आर्थिक विकास में योगदान दे रही है।

'जलमेव यस्य, बलमेव तस्य'

(जो समुद्र को नियंत्रित करता है, वह सर्वशक्तिमान है)

संदर्भ:

पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी)

https://www.pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=1774977

रक्षा मंत्रालय

भारतीय नौसेना

भारतीय रक्षा निर्माता समिति

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड

संसद / स्थायी समिति की रिपोर्ट

आकाशवाणी

 

आईआईटी

 

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(रिलीज़ आईडी: 2198807) आगंतुक पटल : 53
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